Friday 20 May 2011

शून्य से बंगाल की पहली मुख्यमंत्री तक का ममता का सफर


जुझारू तेवर और सादगी व ईमानदारी की मिशाल बनकर लड़ीं

   जैसे ही घड़ी में दोपहर को घड़ी की सुईयां एक बजकर एक मिनट पर पहुंची ममता बनर्जी भी शपथ ग्रहण के लिए मंच पर पहुंच चुकी थीं। गर्मजोशी से राज्यपाल व शपथग्रहण समारोह में आमंत्रित अतिथियों का अभिवादन करके पश्चिम बंगाल की नई मुख्‍यमंत्री के तौर पर पद और गोपनीयता की शपथ ली। शपथ पश्चिम बंगाल के राज्यपाल एमके नारायणन ने दिलाई। ममता ने बांग्ला में शपथ ग्रहण किया। इसके साथ ही ममता राज्य की 11 वीं और पहली महिला मुख्यमंत्री बन गईं। शपथ ग्रहण समारोह राजभवन में आयोजित किया गया। ममता के बाद अमित मित्रा, मनीष गुप्ता, सुब्रत मुखर्जी, अब्दुल करीम चौधरी, उपेंद्र विश्वास, जावेद खान, साधन पांडेय , सावित्री मित्रा, मदन मित्रा और नूर आलम चौधरी सहित 42 विधायकों ने मंत्री पद की शपथ ली। इनमें तृणमूल कांग्रेस के ३५ कांग्रेस के ७ विधायक थे। शपथ ग्रहण के बाद शाम करीब 4 बजे ममता बनर्जी ने राजभवन में राज्‍यपाल से मुलाकात की। इसके बाद वह राइटर्स बिल्डिंग पैदल ही रवाना हुईं। उनके साथ करीब 1 हजार समर्थक भी चल रहे थे। इसके बाद ममता ने कोलकाता के राइटर्स बिल्डिंग में नई कैबिनेट की पहली बैठक की।

  पश्चिम बंगाल में 34 साल बाद वामपंथी सरकार को हराकर तृणमूल कांग्रेस सत्तारूढ़ हुई है। इसके साथ कांग्रेस का भी गठबंधन है। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी के साथ गृहमंत्री पी चिदंबरम कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए। बिमान बोस, रक्षा मंत्री एके एंटनी भी ममता को बधाई देने पहुंचे। दिलचस्प बात यह रही कि कार्यक्रम में पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य भी शामिल हुए। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह विदेश यात्रा के कारण इस कार्यक्रम में शिरकत नहीं कर पाए जबकि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी किसी और कारण से समारोह में शामिल नहीं हुईं।

जहां हुई थी बेइज्जती वहीं अब शान से पहुंचीं ममता


पश्चिम बंगाल में वामपंथियों का किला ध्वस्त करने के बाद धुन की पक्की ममता बनर्जी शान से शुक्रवार २० मई को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर रॉयटर्स बिल्डिंग में प्रवेश किया। कभी इसी रॉयटर्स बिल्डिंग में ममता बनर्जी को जीवन की सबसे बड़ी बेइज्जती का सामना करना पड़ा था। पुलिस ने ममता बनर्जी को इस बिल्डिंग से बाल पकड़कर बाहर निकाला था और लॉकअप में बंद कर दिया था। ममता का जुर्म सिर्फ यह था कि वो एक गूंगी बहरी लड़की के बलात्कार के मामले में न्याय चाहती थीं।

पश्चिम बंगाल के नदियाया जिले के फूलिया गांव की रहने वाली गूंगी बहरी लड़की दीपाली बसक का एक सीपीएम कार्यकर्ता ने बलात्कार किया था। ममता बनर्जी ने 1992 के इस मामले को रॉयटर्स बिल्डिंग में उठाने की कोशिश की थी। वो दीपाली को लेकर सचिवालय पहुंची थी और तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु से मिलना चाहती थी। ममता ने ज्योति बसु से मिलने के लिए पहले समय नहीं लिया था इसलिए उन्हें उनसे नहीं मिलने दिया गया बल्कि पुलिस ने ममता के साथ बदतमीजी की। 1992 की इस घटना के बाद ममता कभी भी रॉयटर्स बिल्डिंग में नहीं गईं और न ही उन्होंने कभी अपने बाल ठीक से बांधे।

दीपाली का क्या हुआ
दीपाली का बलात्कार एक सीपीएम कार्यकर्ता ने किया था जो बलात्कार के बाद गांव छोड़कर फरार हो गया। पुलिस ने भी इस मामले में दिलचस्पी नहीं ली। ममता बनर्जी ने मुद्दों को कलकत्ता में तो उठाया लेकिन वो भी कभी उससे मिलने फूलिया नहीं पहुंची। कुछ नेता दीपाली के घर पहुंचे लेकिन बंगाल ने धीरे-धीरे उसे भुला दिया। बलात्कार की शिकार दीपाली गर्भवती हो गई थी। उसने एक बेटी को जन्म दिया जो एक आश्रम में पल रही है। दो साल पहले सांप के काटने से दीपाली की मौत हो गई। दीपाली का परिवार अभी भी न्याय की आस लगाए बैठा है।

क्यों अलग हैं ममता


पश्चिम बंगाल में 34 साल से सत्ता में बने हुए वामपंथियों के ख़िलाफ़ एक बड़ा राजनीतिक युद्ध लड़ने के बाद ममता बनर्जी आगे की योजनाएँ बना रही हैं. कहने को इंदिरा गांधी से लेकर सोनिया गांधी, मायावती, उमा भारती और महबूबा मुफ़्ती से जयललिता तक, भारत में महिला राजनेताओं की बड़ी फ़ेहरिस्त है. लेकिन ममता अलग हैं. इंदिरा गांधी के पीछे जवाहर लाल नेहरु थे, सोनिया के पीछे राजीव गांधी, मायावती के पीछे कांशी राम, उमा भारती के पीछे पहले विजयाराजे सिंधिया और बाद में गोविंदाचार्य, महबूबा मुफ़्ती मुफ़्ती मोहम्मद सईद की बेटी हैं तो जयललिता एमजीआर की उत्तराधिकारी हैं. लेकिन ममता के पीछे किसी भी ऐसे बड़े पुरुष राजनेता का नाम नहीं लिया जा सकता जिसके बिना वो वहां पहुँच सकती थीं, जहाँ वो आज हैं. आज जब ममता बोलती है तो उनके शत्रु तक ध्यान से सुनते हैं. वो देश में वामपंथ विरोधी आंदोलन का एक मात्र चेहरा हैं."

उग्र स्वभाव, सादे जीवन ने ममता को बनाया बंगाल की दीदी
ममता बनर्जी का जन्म 5 जनवरी 1955 को कोलकाता के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ। ममता ने छात्र जीवन के शुरुआती दिनों से ही राजनीति में दिलचस्पी लेनी शुरु कर दी थी और 1970 के दशक में वो कांग्रेस की सक्रिय कार्यकर्ता बन गई। 1976 में ममता बंगाल महिला कांग्रेस की महासचिव बन गई थीं। जयप्रकाश नारायण की कार के बोनट पर कूदकर ममता सुर्खियों में आई और उसके बाद से बंगाल की राजनीति में अपना स्थान बनाती चली गईं। 1984 के चुनाव में जादवपुर सीट से सोमनाथ चटर्जी को हराकर ममता बनर्जी ने सबसे युवा सांसद बनने का इतिहास रचा।

1989 में कांग्रेस विरोधी माहौल में ममता सांसद का चुनाव हार गई लेकिन 1991 के आमचुनावों में उन्होंने दक्षिण कलकत्ता सीट से जीत दर्ज की। 1996, 1998, 1999, 2004 और 2009 के चुनावों में ममता ने इस सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा। 1991 में राव सरकार में ममता मानव संसाधन विकास, खेल ओर युवा कल्याण तथा महिला एवं बाल विकास मंत्री भी रहीं। हालांकि अप्रैल 1993 में ममता से मंत्रीपद ले लिया गया। ममता बनर्जी अपने उग्र स्वभाव के चलते काफी विवादों में भी रहीं। 1996 में उन्होंने अलिपुर में एक रैली के दौरान अपने गले में काली शाल से फांसी लगाने की धमकी भी दी। जुलाई 1996 में पेट्रोल की कीमतें बढ़ाने के विरोध में ममता सरकार का हिस्सा रहते हुए भी लोकसभा के पटल पर ही विरोध में पालथी मारकर बैठ गई थीं।

ममता ने इसी दौरान तत्कालीन समाजवादी पार्टी सांसद अमर सिंह का कॉलर भी पकड़ लिया था। फरवरी 1997 में रेल बजट पेश होने के दौरान ममता ने रेलमंत्री रामविलास पासवान पर अपनी शाल फेंककर बंगाल की अनदेखी के विरोध में अपने इस्तीफे की घोषणा कर दी थी। हालांकि बाद में उन्होंने इस्तीफा वापस ले लिया था। 11 दिसंबर 1998 को ममता ने समाजवादी पार्टी के सांसद दरोगा प्रसाद सरोज को महिला आरक्षण बिल का विरोध करने पर कॉलर पकड़कर संसद के बाहर खींच लिया था।

कांग्रेस से अलग होकर ममता ने 1 जनवरी 1998 को अपनी पार्टी आल इंडिया तृणमूल कांग्रेस का गठन किया और 1999 में एनडीए की गठबंधन सरकार में वो रेलमंत्री रहीं। हालांकि वो ज्यादा दिनों तक सरकार का हिस्सा नहीं रही और 2001 में सरकार से अलग हो गई। इसके बाद 2004 में चुनाव से पहले वो फिर एनडीए सरकार में आई और खदान एवं कोयला मंत्री रहीं। 2004 चुनाव में ममता की पार्टी की बुरी हार हुई लेकिन 2009 चुनाव में पार्टी ने अपना अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। ममता फिलहाल केंद्र सरकार में रेल मंत्री हैं। आजीवन कुंवारी रहने वाली ममता बनर्जी ने उतार-चढ़ाव भरे अपने अब तक के राजनीतिक जीवन में सादगी को बनाए रखा है और वो गहनों या कपड़ों पर कभी खर्च नहीं करती हैं। पार्टी में दीदी के नाम से जानी जाती हैं और बेहद सादा जीवन व्यतीत करती हैं।

कभी दूध बेचा करती थीं ममता बनर्जी, 28 किताबें लिख चुकी हैं

आज पश्चिम बंगाल की जिम्‍मेदारी संभालने वालीं ममता बनर्जी को कभी घर की जिम्‍मेदारी पूरी करने के लिए दूध बेचना पड़ा था। ममता के पिता स्वतंत्रता सेनानी थे और जब वे बहुत छोटी थीं तभी उनकी मृत्यु हो गई थी। तब दूध बेच कर उन्होंने अपनी विधवा मां की परिवार चलाने में मदद की। ममता ने 70 के दशक में कांग्रेस की छात्र इकाई से अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत की थी। उस समय इस इकाई ने कोलकाता से नक्सलियों को उखाड़ फेंकने में अहम भूमिका निभाई थी।

ममता ने कानून और शिक्षा के अलावा कला में भी डिग्री हासिल की है। ममता को राजनीति में सुब्रत मुखर्जी लाए थे। अब मुखर्जी तृणमूल कांग्रेस में ममता के अनुयायियों में से एक हैं। ममता को 1984 से पहले पश्चिम बंगाल के बाहर कोई नहीं जानता था, लेकिन जब उन्होंने इस साल के अपने पहले लोकसभा चुनाव में ही जादवपुर से माकपा नेता सोमनाथ चटर्जी को पराजित कर दिया तो वे देशभर में मशहूर हो गईं। इसके बाद उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। ममता राजनीति के अलावा चित्रकारी और लेखन में भी रुचि रखती हैं। वे एक अच्छी रसोईया भी हैं। वे धार्मिक भी हैं और हर साल काली पूजा में जरूर हिस्सा लेती हैं।साल 2009 के और इस बार के चुनावों में भी ममता का नारा 'मां, माटी और मानुष' था। बंगाल के जनमानस में ‘पोरीबोर्तन’ का सपना भरने वाली ममता बनर्जी के जीवन का एक अनजाना पहलू यह भी है कि वे एक संवेदनशील कवयित्री हैं। उनकी कविताओं में भी ‘बदरंग’ हो चुकी राजनीति के ‘पोरीबर्तन’ (बदलाव) की छटपटाहट है और साथ-साथ इसकी इस आशय की हुंकार भी है। उनकी अब तक 28 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें से 25 बांग्ला और तीन अंग्रेजी में हैं। इसके अलावा वह कुछ बांग्ला गीत लिखने के साथ-साथ उन गीतों को संगीतबद्ध भी कर चुकी हैं। सहयोगियों के अनुसार ममता चित्रकार भी हैं और लगभग पांच हजार से अधिक चित्र उकेर चुकी हैं। उन चित्रों को बेचने से हुई आय वे अपनी पार्टी के फंड एवं अन्य दान कार्यों के लिए देती रही हैं।


राजनीतिक सफर


जीवन के शुरुआती दिनों से ही राजनीति में दिलचस्पी लेनी शुरु कर दी थी और 1970 के दशक में ममता बनर्जी कांग्रेस की सक्रिय कार्यकर्ता बन गई. 1976 में ममता बंगाल महिला कांग्रेस की महासचिव बन गई थीं. जयप्रकाश नारायण की कार के बोनट पर कूदकर ममता सुर्खियों में आई और उसके बाद से बंगाल की राजनीति में अपना स्थान बनाती चली गईं. 1984 के चुनाव में जादवपुर सीट से सोमनाथ चटर्जी को हराकर ममता बनर्जी ने सबसे युवा सांसद बनने का इतिहास रचा. 1989 में कांग्रेस विरोधी माहौल में ममता सांसद का चुनाव हार गई लेकिन 1991 के आमचुनावों में उन्होंने दक्षिण कलकत्ता सीट से जीत दर्ज की.

1996, 1998, 1999, 2004 और 2009 के चुनावों में ममता ने इस सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा. 1991 में राव सरकार में ममता मानव संसाधन विकास, खेल ओर युवा कल्याण तथा महिला एवं बाल विकास मंत्री भी रहीं. हालांकि अप्रैल 1993 में ममता से मंत्रीपद ले लिया गया. ममता बनर्जी अपने उग्र स्वभाव के चलते काफी विवादों में भी रहीं. 1996 में उन्होंने अलीपुर में एक रैली के दौरान अपने गले में काली शॉल से खुद को फांसी लगाने की धमकी भी दी. जुलाई 1996 में पेट्रोल की कीमतें बढ़ाने के विरोध में ममता सरकार का हिस्सा रहते हुए भी लोकसभा के पटल पर ही विरोध में ज़मीन पर बैठ गई थीं. फरवरी, 1997 में रेल बजट पेश होने के दौरान ममता ने रेलमंत्री रामविलास पासवान पर अपनी शॉल फेंककर बंगाल की अनदेखी के विरोध में अपने इस्तीफे की घोषणा कर दी थी. हालांकि बाद में उन्होंने इस्तीफा वापस ले लिया था.

11 दिसंबर 1998 को ममता ने समाजवादी पार्टी के सांसद दरोगा प्रसाद सरोज को महिला आरक्षण बिल का विरोध करने पर कॉलर पकड़कर संसद के बाहर खींच लिया था. कांग्रेस से अलग होकर ममता ने 1 जनवरी, 1998 को अपनी पार्टी आल इंडिया तृणमूल कांग्रेस का गठन किया और 1999 में एनडीए की गठबंधन सरकार में वो रेलमंत्री रहीं. हालांकि वो ज्यादा दिनों तक सरकार का हिस्सा नहीं रही और 2001 में सरकार से अलग हो गई. इसके बाद 2004 में चुनाव से पहले वो फिर एनडीए सरकार में आई और खदान एवं कोयला मंत्री रहीं. 2004 चुनाव में ममता की पार्टी की बुरी हार हुई लेकिन 2009 चुनाव में पार्टी ने अपना अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया.


बंगाल में 34 साल बाद ईश्वर के नाम पर शपथ


पश्चिम बंगाल में बदलाव के पहले प्रतीक के रूप में तृणमूल कांग्रेस की नई सरकार के कई मंत्रियों ने शुक्रवार को ईश्वर को साक्षी मानकर पद और गोपनीयता की शपथ ली। इससे पहले वामपंथी सरकारों के मंत्री संविधान के प्रति निष्ठा के नाम पर शपथ लेते थे प्रदेश में वर्ष 1977 के बाद से लगातार सत्ता में रहे वाम मोर्चे की राजनीतिक विचारधारा नास्तिक है इसलिए मोर्चे के नेता शपथ ग्रहण के दौरान संविधान के प्रति निष्ठा व्यक्त करते थे। इसके विपरीत तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस के ज्यादातर मंत्रियों ने शुक्रवार को भगवान के नाम पर पद और गोपनीयता की शपथ ली। तृणमूल कांग्रेस के पूर्णेदू बोस जैसे कुछ ही नेताओं ने संविधान के प्रति सत्यनिष्ठा के नाम पर शपथ ली।
एक अन्य बदलाव के तहत प्रदेश की नई मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राजभवन से प्रदेश सचिवालय तक का दो किलोमीटर का रास्ता पैदल चलकर तय किया। इससे पहले वामपंथी शासन के समय नेतागण कार से ही यह रास्ता तय करते थे। ममता बनर्जी ने सभी मंत्रियों को धोती-कुर्ता पहनकर और महिला मंत्रियों को साड़ी पहनकर शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा लेने का निर्देश दिया था।



कभी मारी थी सिर पर लाठी, अब पैरों पर गिरना चाहता है

16 अगस्त 1990 को पश्चिम बंगाल में बंद के दौरान ममता बनर्जी कांग्रेस की रैली लेकर कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) के हाजरा रोड पर निकली थीं। इस रैली के दौरान सीपीआई की यूथ ब्रिगेड डीवाईएफआई का कार्यकर्ताओं ने चारों से घेरकर ममता पर हमला किया था। डीवाईएफआई के कार्यकर्ता लालू आलम ने ममता के सिर पर लाठी मारी थी। ममता के सिर में फ्रैक्चर हुआ था और उन्हें एक महीने अस्पताल में रहना पड़ा था। लालू अब अपने किए पर पछता रहा है। लालू अब अपने किए पर इतना ज्यादा शर्मिंदा है कि वो ममता के पैर पकड़कर माफी मांगना चाहता है। 21 साल पहले ममता पर हमला करने के मामले में लालू पर मुकदमा चल रहा है। 51 वर्षीय आलम का कहना है कि वो निर्दोष है क्योंकि उसका इरादा ममता की हत्या करने का नहीं था। ममता पर हमले के बाद सीपीआई ने भी लालू को पार्टी से निकाल दिया था। लालू आलम फिलहाल एक स्टूडियो चलाता है।


अब बंगाल के लिए खजाना खोलने को तैयार हैं 

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को मिली ऐतिहासिक जीत के बाद अब अप्रवासी भारतीय भी वहां निवेश के लिए अपना खजाना खोलने को तैयार दिख रहे हैं। कनाडा में रह रहे अप्रवासी भारतीयों ने ममता बनर्जी से अपील की है कि वे पश्चिम बंगाल में औद्योगिकीकरण को अपने एजेंडे में खास प्राथमिकता दें।

इस सिलसिले में कनाडा के सेर्टेक्स कार्पोरेशन के अध्यक्ष जय सरकार ने कहा है कि यह वक्त की बात है कि पश्चिम बंगाल बदलाव चाहता है और बदलाव हुआ है। नई सरकार को लोगों की आवाज सुनते हुए तेजी से काम करने की जरुरत है। उन्होंने यह भी कहा है कि वे पश्चिम बंगाल में उद्योग स्थापित करना चाहते हैं। और इसके लिए काम भी कर रहे हैं लेकिन पश्चिम बंगाल की स्थिति को लेकर अब तक वे आशंकित थे। लेकिन उन्हे उम्मीद है कि अब उद्योगों के लिए पश्चिम बंगाला में स्थिति बेहतर होगी।

जय सरकार ने यह भी कहा कि उनके अलावा भी ऐसे तमाम एनआरआई हैं जो बंगाल में निवेश करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। लेकिन इसके लिए वहां सुस्त पड़ी औद्योगिक विकास की रफ्तार में तेजी लाने की जरूरत है। दरअसल जानकारों का यह मानना है कि बीते कई सालों से बंगाल में औद्योगिक मामले में खास तेजी नहीं देखी गई है। ऐसे में वहां निवेश करना उद्योगपतियों के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है। दूसरी ओर इससे मुश्किल दौर से गुजर रही बंगाल की इकोनॉमी को भी मदद मिलेगी। ऐसे में इसे नई सरकार के लिए भी एक सुनहरे मौके के तौर पर देखा जा सकता है।

बंगाल में लहराया ममता का परचम, लेफ्ट के 26 मंत्री हारे

देश के चार राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश की विधानसभाओं के लिए हुए चुनाव में सबसे बड़ा उलटफेर बंगाल में हुआ है, जहां ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस के गठबंधन ने 34 साल से सत्ता पर काबिज वाम मोर्चे का लाल गढ़ ढहा दिया है। विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की अगुवाई वाले गठबंधन ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। सीएम बुद्धदेव भट्टाचार्य सहित लेफ्ट के कई दिग्‍गज अपनी सीट भी नहीं बचा सके हैं। तृणमूल-कांग्रेस गठबंधन 228 सीटें जीत चुका है। चुनाव परिणामों से उत्‍साहित ममता बनर्जी ने राज्‍य के मतदाताओं का शुक्रिया अदा किया है। उन्‍होंने कहा, ‘हमें उन शहीदों को याद करना चाहिए जो तीन दशक तक चले लंबे संघर्ष में मारे गए हैं।’ यह कहते-कहते ममता भावुक हो उठीं और उनकी आंखों से आंसू छलक उठे।

ममता ने दक्षिण कोलकाता में हरीश चटर्जी स्‍ट्रीट स्थित अपने घर के बाहर जुटी समर्थकों की भारी भीड़ को संबोधित करते हुए कहा, 'यह बंगाल की दूसरी आज़ादी है। यह मां, माटी और मानुष की जीत है। यह लोकतंत्र की जीत है। यह वामपंथियों की उत्‍पीड़न पर जीत है। अब राज्‍य में शांति और खुशहाली बहाल होगी।' ममता बनर्जी ने राज्‍य के लोगों से शांति की अपील की है। उन्‍होंने कहा कि यह बेहद खुशी की बात है कि उन्‍हें यह जीत रविंद्र नाथ टैगोर की 150वीं जयंती पर मिली है। उन्‍होंने कहा कि राज्‍य में शिक्षा और स्‍वास्‍थ्‍य से जुड़ी नीतियों में बदलाव की जरूरत है और ऐसा अब किया जाना संभव है। उन्‍होंने पीएम मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्‍यक्ष सोनिया गांधी के समर्थन के लिए शुक्रिया अदा किया।

क्‍यों ढहा लेफ्ट का किला?

लेफ्ट का गढ़ माने जा रहे पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस प्रमुख और रेल मंत्री ममता बनर्जी ने सेंध लगा दी। राज्य में वाम मोर्चे का 34 साल पुराना किला ढहने के संकेत पिछले लोकसभा चुनाव में ही मिल गए थे, जब तृणमूल कांग्रेस का जादू जनता के सिर चढ़कर बोला। 2010 में हुए स्‍थानीय निकाय के चुनावों में तृणमूल कांग्रेस का जोरदार प्रदर्शन रहा था। भूमि अधिग्रहण का शिकार हुए कमजोर गांववालों और किसानों की आवाज बनकर उभरी। वाम मोर्चा की अगुवाई वाली सरकार ने वर्ष 2006 में सत्ता में आने के बाद औद्योगिक नीतियों में बदलाव किया जिसके कारण सरकार के प्रति लोगों का विश्वास घट गया था। इसके बाद ‘नंदीग्राम’ और ‘सिंगूर’ की घटना ने आग में घी का काम किया। तृणमूल कांग्रेस ने इन मौका का भरपूर फायदा उठाया और खासकर ग्रामीण इलाकों में अपनी पकड़ मजबूत की।


पश्चिम बंगाल : सीट- 294
तृणमूल कांग्रेस 186
कांग्रेस 42
माकपा 39
सहयोगी 19
अन्य 08

Wednesday 11 May 2011

एक्जिट पोल की बजी ढोल- ढह गया कम्युनिस्टों का लाल किला

छह चरणों में पश्चिम बंगाल विधानसभा का चुनाव संपन्न हो गया है। नतीजे तो १३ को ही आएँगे मगर मंगलवार की शाम को ही एक्जिट पोल के नतीजे आ गए। सर्वे की रिपोर्ट को हकीकत मानें तो ३४ सालों बाद पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्टों का अभेद्य लाल गढ़ ढहता दिख रहा है। वैसे तो १९७७ से लगातार तीन दशक से अधिक समय से पश्चिम बंगाल की सत्ता पर काबिज कम्युनिष्ट सरकार की नींव पिछले पंचायत , लोकसभा और कोलकाता नगर निगम व नगरपालिका चुनावों में हिल चुकी है। अब विधानसभा चुनावों में कम्युनिस्टों को भारी पराजय का सामना करना पड़ सकता है। कौतूहल भरी इस दिलचस्प लड़ाई का आखिरी दौर भी खत्म हो चुका है। शुरू से ही निरपेक्ष भाव से मैं भी अपने ब्लाग के माध्यम से आपको इस जंग से रूबरू करा रहा था। जीत का सेहरा किसके सिर होगा, यह को १३ मई को ही मुकम्मल तौरपर पता चल पाएगा। फिलहाल आइए एक्जिट पोल पर नजर डालें।

यह भी जान लें कि किस चरण में कितना हुआ मतदान
पहला चरण - 54 सीटें - 83.75%
दूसरा चरण - 50 सीटें - 85.32%
तीसरा चरण - 75 सीटें - 78.3%
चौथा चरण - 63 सीटें - 84.8%
पाँचवाँ चरण - 38 सीटें - 83%
छठवाँ चरण - 14 सीटें - 83.48%

ब्लाग नियंत्रक - डा.मान्धाता सिंह

  बंगाल व केरल में होगा सत्ता परिवर्तन, वाममोर्चा का सफाया कर देगा तृणमूल-कांग्रेस गठबंधन - स्टार न्यूज टेलिविजन चैनल सर्वे

    आजतक, हेडलाइन्स, ओआरजी सर्वे और स्टार न्यूज टीवी ने अलग-अलग कराए सर्वे में बताया है कि ममता बनर्जी की तृणमूल और कांग्रेस गठबंधन पश्चिम बंगाल में आसानी से दो तिहाई बहुमत हासिल कर लेगा। यानी सर्वे की मानें तो कम्युनिस्टों का लाल किला ढह चुका है। हालांकि माकपा के राज्यसचिव विमान बोस ने कोलकाता में माकपा मुख्यालय अलीमुद्दीन स्ट्रीट में मंगलवार को पत्रकारों से बातचीत में सर्वे को सिरे से खारिज करके फिर दावा किया कि- सरकार वाममोर्चा की ही बनेगी। अभी हाल ही में बीबीसी हिंदी को कोलकाता स्थित संवाददाता से बातचीत में कहा था- लिख लो वाममोर्चा की ही सरकार बनेगी। उन्होंने यह भी कहा कि ये जो समाज शास्त्री चुनाव विश्लेषक 2009 के लोक सभा चुनावों के नतीजों को आधार बना कर कहते हैं कि वाम मोर्चा हार जाएगा. ये 13 मई को मतगणना के दिन चुप हो जाएँगें।


    दावे तो राजनीतिक स्तर पर किए ही जा सकते हैं। मगर इतना तो तय है कि ममता बनर्जीं की कम्युनिस्टों के साथ छिड़ी इस जंग ने पश्चिम बंगाल को एक ऐतिहासिक परिवर्तन के दौर में ला खड़ा किया है और कुशासन से लड़ना भी सिखा दिया। कांग्रेस भी पश्चिम बंगाल में मजबूत विपक्ष रह चुकी है मगर कभी परिवर्तन की वह इच्छाशक्ति नहीं दिखा पाई जो आज ममता बनर्जीं के कारण दिख रही है। कांग्रेस की इसी चरित्र के कारण उसके विरोधी उसे माकपा की बी टीम कहने लगे थे। यह सच है कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता मगर अपनी जान को जोखिम में डालकर पश्चिम बंगाल में संगठित वाममोर्चा से लड़ने की हिम्मत तो ममता बनर्जी ने ही जुटाई। बंगाल के इस परिवर्तनवादी मुकाम का एक ही चेहरा है-ममता बनर्जी।


ममता बनर्जी का सीएम बनना लगभग तय : आजतक सर्वे

   क्या पश्चिम बंगाल में बदला जाएगा इतिहास. 35 साल से सत्ता पर काबिज वाममोर्चे को बंगाल की जनता कर देगी सत्ता से बेदखल. आजतक, हेडलाइन्स, ओआरजी सर्वे ने पश्चिम बंगाल में सभी चरणों के मतदान के बाद तैयार की है बंगाल की पोस्टपोल तस्वीर इस तस्वीर में ममता अपने विरोधियों से काफी आगे दिख रही हैं जबकि वाममोर्चा का किला टूटता दिख रहा है.

   आजतक-हेडलाइन्स-ओआरजी सर्वे के मुताबिक पोस्ट पोल में वाममोर्चा को 65 से 70 सीट मिल सकती हैं. इन्हें 39 फीसदी वोट मिल सकता है. पोस्टपोल के मुताबिक वाममोर्चे को 160 सीटों का घाटा है जबकि उसका वोट प्रतिशत 9 फीसदी घटा है.

    2006 विधानसभा के मुताबिक वाममोर्चा को 294 में से 227 सीट मिलीं थीं जबकि उसका वोट प्रतिशत 48 फीसदी था. इस तरह से अगर मुकम्मल तस्वीर देखें तो 2011 में पोस्टपोल के मुताबिक वाममोर्चा 65 से 70 सीट पा सकता है उसे 39 फीसदी वोट मिलेंगे उसे 9 फीसदी वोटों के साथ 160 सीटों का नुकसान होगा जबकि 2006 में उसने 48 फीसदी वोट के साथ 227 सीट जीतीं थीं.

इस तरह से आजतक-हेडलाइन्स-ओआरजी पोस्ट सर्वे के मुताबिक लेफ्ट का लाल गढ़ ढहता दिख रहा है और ममता बनर्जी, कांग्रेस और अन्य की सरकार बनती दिख रही है. आंकड़ों की जुबानी अगर इस बात को समझें तो ममता बनर्जी गठबंधन को 210 से 220 सीट मिल सकती हैं. गठबंधन को 48 फीसदी मत मिल सकते हैं. ममता गठबंधन को 186 सीटों का फायदा होता दिख रहा है जबकि गठबंधन का वोट प्रतिशत 19 फीसदी बढ़ा है.

   2006 विधानसभा में ममता को बीजेपी के साथ 29 फीसदी वोट और 30 सीट मिलीं थीं जबकि कांग्रेस को 17 फीसदी वोट के साथ 21 सीट मिलीं थीं. पर 2011 में दोनो साथ में हैं लिहाजा पोस्ट पोल से जो मुकम्मल तस्वीर बनती है वो ये है कि गठबंधन को 210 से 220 सीट मिलेंगी इन्हें 48 फीसदी वोट मिल सकता है. इन्हें 2006 की अपेक्षा 186 सीट का फायदा हो सकता और उनका वोट प्रतिशत करीब 19 फीसदी बढ़ सकता है.

    इस तरह से साफ है कि ममता बनर्जी अपने गठबंधन के साथ बड़ी जीत पाती दिख रही हैं. यानी बंगाल में एक बड़े ऐतिहासिक बदलाव के संकेत दो तिहाई से ज्यादा के बहुमत से साफ हैं. सर्वे में बाकी सीटों के बारे में संकेत हैं कि अन्य 6 फीसदी वोट के साथ 16 सीट पर काबिज हो सकते हैं जो पिछली बार से 26 सीट कम होगा और वोट प्रतिशत में 10 फीसदी कम हो सकता है. इस तरह से ममता सत्ता पर काबिज दिखती हैं और लेफ्ट सत्ता से बाहर.

बंगाल व केरल में होगा सत्ता परिवर्तन, वाममोर्चा का सफाया कर देगा तृणमूल-कांग्रेस गठबंधन - स्टार न्यूज टेलिविजन चैनल सर्वे
    एक और चुनाव बाद सर्वे ने दावा किया है कि बंगाल व केरल में सत्ता परिवर्तन होगा जबकि तमिलनाडु में यह बेहद करीबी मामला होगा। चैनल के एक्जिट पोल सर्वे के मुताबिक बंगाल में तृणमूल को १८१, कांग्रेस को ४० और वाममोर्चा को ६२ सींटे मिल सकती हैं। अगर इस सर्वे पर भरोसा करें तो ३५ साल पुरानी वाममोर्चा सरकार का बंगाल से सफाया हो जाएगा जबकि इसके पूर्व विधानसभा में इसकी २२७ सीटें थीं।

इसी तरह केरल में कांग्रेस की संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा को ८८ और माकपा के वाम लोकतांत्रिक मोर्चा को ४९ सीटें मिलेंगी। तमिलनाडु की २३४ सीटों में से आलइंडिया अन्नाद्रमुक को ११० और द्रमुक को १२४ सीटें मिलने की संभावना जताई गई है।

असम में तरुण गोगोई सरकार को इस सर्वे में तीसरी बार भी सत्ता में आने की बात कही गई है। हेडलाइन्स टूडे के सर्वे के मुताबिक असम में कांग्रेस को १२६ में ४४ सीटें जीतने का दावा किया गया है। विपक्ष को महज १४ सीटें जीतने का अनुमान लगाया गया है।


प. बंगाल चुनाव: छठे चरण में 84 फीसदी मतदान

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के छठे एवं अंतिम चरण में 14 सीटों के लिए हुए मतदान में 84.8 फीसदी से ज्यादा मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया. मतदान पूरी तरह से शांतिपूर्ण रहा.

उप चुनाव आयुक्त विनोद जुत्शी ने मतदान की समाप्ति के बाद संवाददाताओं को बताया, ‘पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा, पुरूलिया और पश्चिमी मिदनापुर जिलों के 14 विधानसभा सीटों के लिए 84.8 प्रतिशत मतदान हुआ. मतदान बहुत ही शांतिपूर्ण रहा और कहीं से भी किसी अप्रिय घटना का समाचार नहीं है.’

उन्होंने बताया कि मतदान का प्रतिशत कुछ और बढ़ सकता है क्योंकि मतदान की समय सीमा समाप्त हो जाने के बाद भी अनेक मतदान केन्द्रों पर लोग वोट डालने के लिए लाइनों में लगे थे. गौरतलब है कि वर्ष 2006 में हुए विधानसभा चुनाव में इन निर्वाचन क्षेत्रों में 82.53 फीसदी और 2009 के लोकसभा चुनाव में 76.49 प्रतिशत मतदान हुआ था.

सबसे ज्यादा 86.6 प्रतिशत मतदान पश्चिमी मिदनापुर जिले में हुआ जबकि पुरूलिया जिले में 80.1 प्रतिशत और बाकुंड़ा जिले में 85.5 प्रतिशत मतदान हुआ. छठे चरण के इस मतदान से 97 उम्मीदवारों के राजनीतिक भाग्य का फैसला इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों में कैद हो गया. इन उम्मीदवारों में राज्य की मंत्री सुसांता घोष और पीसीपीए नेता छत्रधर महतो शामिल हैं.

अंतिम चरण में कुल 7 महिला उम्मीदवार चुनाव मैदान में थीं. 294 सदस्यीय पश्चिम बंगाल विधानसभा के लिए इस बार 18 अप्रैल से 10 मई के बीच छह चरणों में चुनाव कराये गये. सभी सीटों के लिए मतगणना 13 मई को होगी. उप चुनाव आयुक्त ने बताया कि इन 14 निर्वाचन क्षेत्रों के 26 लाख 57 हजार से ज्यादा मतदाताओं के लिए कुल 3534 मतदान केन्द्र बनाये गये थे.

शांतिपूर्ण तरीके से मतदान संपन्न कराने के लिये सुरक्षा के कड़े इंतजाम किये गये थे. स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव के लिए चुनाव आयोग ने एक विशेष पर्यवेक्षक, 14 सामान्य पर्यवेक्षक और तीन व्यय पर्यवेक्षकों के अलावा पुलिस पर्यवेक्षक के रूप में भारतीय पुलिस सेवा के तीन वरिष्ठ अधिकारियों को तैनात किया था.

जुत्शी ने बताया कि कानून व्यवस्था बनाये रखने के इरादे से निरोधात्मक कार्रवाई के तहत ऐहतियात के तौर पर 22 व्यक्तियों को हिरासत में लिया गया. उन्होंने बताया कि पुरूलिया जिले में एक मतदान केन्द्र में लोगों ने स्थानीय मुद्दे को लेकर मतदान का बहिष्कार किया.

उन्होंने राज्य की सभी 294 सीटों के लिए मतदान की प्रक्रिया पूरी तरह शांतिपूर्ण तरीके से पूरी होने पर प्रसन्नता जताई और साथ ही कहा कि इस बार राज्य में पिछले विधानसभा और 2009 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले ज्यादा मतदान हुआ.

पहले दौर के चुनाव में 54 सीटों के लिए मतदान हुआ था जिसमें 70 प्रतिशत से भी अधिक मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था. दूसरे चरण का मतदान 23 अप्रैल को हुआ था जिसमें 83 फ़ीसदी मतदान हुआ था.

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के लिए तीसरा चरण का मतदान ख़त्म हो गया है. चुनाव आयोग के मुताबिक़ इस चरण में 78.3 फ़ीसदी मतदान हुआ है. इस दौर में कुल 479 उम्मीदवारों की किस्मत का फ़ैसला होगा जिसमें मुख्यमंत्री बु्द्धदेव भट्टाचार्य भी शामिल हैं. मतदान के लिए सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम किए गए थे. कुल 17792 मतदान केंद्र बनाए गए थे. जिन 75 सीटों पर चुनाव हुए हैं, उनमें से 11 कोलकाता, 33 उत्तरी 24 परगना और 31 दक्षिणी परगना में हैं. मुख्यमंत्री के अलावा वित्त मंत्री असीम दासगुप्ता, आवास मंत्री गौतम देब, ट्रांसपोर्ट मंत्री रंजीत कुंडू, विपक्ष के नेता पार्था चटर्जी, फ़िक्की के महासचिव अमित मित्रा और फ़िल्म अभिनेत्री देबाश्री रॉय भी तीसरे दौर में प्रत्याशी हैं.

पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों के लिए हुए मतदान के चौथे दौर में 84.8 प्रतिशत मतदान हुआ है. चौथे चरण का मतदान हुगली और पूर्वी मिदनापुर ज़िले में हुआ है, जबकि बर्दवान ज़िले के कुछ हिस्से में भी इस चरण का मतदान संपन्न हुआ. जिन क्षेत्रों में मतदान हुआ है, उनमें नंदीग्राम और सिंगुर भी शामिल हैं. इन दोनों शहरों ने पिछले कुछ समय में राज्य की राजनीति का चेहरा बदल दिया।

राज्य में सत्ताधारी वाम मोर्चे के लिए पांचवे चरण का मतदान खासतौर पर अहमियत रखता है. 2006 के विधानसभा चुनावों में 38 में से 35 सीटें वाम मोर्चा ने जीती थी. शेष तीन में से दो कॉंग्रेस और एक पर तृणमूल कॉंग्रेस किसी सफल हो पाए थे. 2006 में वाम मोर्चा की ज़बरदस्त जीत का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसे डाले गए कुल मतों में से क़रीब 92 फ़ीसदी मत मिले थे.अभूतपूर्व सुरक्षा के बीच पश्चिम बंगाल के चार जिलों की 38 सीटों के लिए मतदान शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो गया है. राजनीतिक हिंसा के ख़ूनी इतिहास वाले राज्य में चुनाव आयोग ने इस बार वेबकास्ट और हेलीकॉप्टरों के सहारे मतदान प्रक्रिया पर नज़र रखी. पांचवे चरण में 82.2 फ़ीसदी मतदान हुआ है.



'लिख लो वाम मोर्चा फिर जीतेगा

सोमवार, 9 मई, 2011


अविनाश दत्त


बीबीसी संवाददाता, कोलकाता से

http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2011/05/110509_biman_iv_pp.shtml

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के कोलकाता दफ़्तर में सुबह से रात तीन-चार बजे तक बैठकें करने वाले राज्य इकाई के सचिव बिमान बसु दावे के साथ कहते हैं कि उन्हें आठवीं बार राज्य में वाम मोर्चा सरकार बनाने का पूरा भरोसा है.

बिमान बसु कहते हैं, "ये जो समाज शास्त्री चुनाव विश्लेषक 2009 के लोक सभा चुनावों के नतीजों को आधार बना कर कहते हैं कि वाम मोर्चा हार जाएगा. ये 13 मई को मतगणना के दिन चुप हो जाएँगें."

साल 2000 से पश्चिम बंगाल की कमान ज्योति बसु से लेने वाले बुद्धदेब भट्टाचार्य की जनता से अपने कार्यकर्ताओं की ग़लतियों के लिए बारंबार माफ़ी मांगने की बात पर पश्चिम बंगाल में पार्टी के मुखिया बसु कहते हैं कि हज़ारों ग़लत कार्यकर्ताओं को पार्टी से निकाल बाहर किया गया है.
उन्होंने कहा कि साल 2009 के चुनावी नतीजों से उन्होंने सबक लिया और भीतर बहस करके सुधार कार्यक्रम चलाए, जिनका अच्छा असर हुआ है.
आप उनसे पूछिए कि अगर सब कुछ उनके इच्छा के मुताबिक़ चल रहा है तो फिर उन्हें पार्टी से निकाल फेंके गए पूर्व लोक सभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी की प्रचार में मदद क्यों लेनी पड़ी.
इस पर उन्होंने कहा, "कुछ लोग बाहर रहते हुए पार्टी की मदद करना चाहते हैं वो करते हैं. कुछ भाषण भी दे देते हैं. सोमानाथ चटर्जी ने भी दो सीटों पर पार्टी के समर्थन में इसी तरह की सभाएं की."

विपक्ष की ममता

बसु से जब मैंने पूछा कि 34 साल बाद सत्ता से बहार हुए तो क्या पार्टी मुश्किल में नहीं पड़ जाएगी तो बसु ने सामने पड़ी काली चाय की चुस्की ली और चारों तरफ़ चलते पंखों की तेज़ हवा के बीच अपनी सिगरेट जलाई और बोले, "जो तेज़ हवा के बीच सिगरेट नहीं जला सकता वो स्मोकर नहीं है."
दोबारा पूछने पर बसु बोले प्रश्न बेमतलब है और आठवीं सरकार फिर उनकी बनेगी.
वर्षों पहले घर छोड़ कर पार्टी दफ़्तर में आ बसे बसु से जब ये पूछिए कि उनमे और सीपीएम के उन बहुसंख्यक कार्यकर्ताओं में क्या अंतर है जिन्होंने पैदा होते ही पार्टी की सत्ता देखी है, तो वो कहते हैं- जो ज़माने में फर्क आया है, समाज में आया है, वही कार्यकर्ता में आया है. मैं और बुद्धो बाबु धोती-कुर्ता पहनते हैं, हमारे पास बैंक अकाउंट नहीं है. लेकिन आजकल कार्यकर्ता नए तरह के कपड़ों में रहना चाहते हैं और ज़माने के साथ चलते हैं."
बिमान बसु बात करते-करते तेज़ी से हाथ उठा कर सामने की टेबल पर दौड़ रहे एक छोटे से कॉकरोच को मारने की कोशिश करते हैं और ममता बनर्जी के बारे में कहते हैं, "ममता कहती हैं कि माओवादी और मार्क्सिस्ट एक हैं. पिछले लोकसभा चुनावों के बाद से हमारे 400 कार्यकर्ता और नेता माओवादियों ने मार डाले. कितनों को उनके इलाक़ों से भगा दिया. ममता ने कभी माओवादियों के ख़िलाफ़ एक नारा तक नहीं दिया."
पार्टी के विरोध और आम लोगों के ग़ुस्से की बात करते हुए दोबारा टेबल पर भटक आए उस कॉकरोच को सफलता पूर्वक ठंडा करते हुए बसु कहते हैं, "तारीख़ समय नोट कर लीजिए मैं कहता हूँ कि आठवीं बार सरकार बनाएँगें."
लेकिन शायद 34 साल सत्ता में रहने के बाद चौतरफ़ा उपजे विरोध को दबाना सामने दौड़ रहे कीड़े को दबाने से बहुत ज़्यादा मुश्किल है

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