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Monday, 14 March 2011

ममता बनर्जी सीटों के बंटवारें में उलझीं, वाममोर्चा ने उम्मीदवार घोषित कर चुनाव प्रचार शुरू किया


१८ अप्रैल २०११ से छह चरणों में पश्चिम बंगाल विधानसभा के चुनाव होने हैं। चुनाव के लिहाज से पश्चिम बंगाल की फिजा अलग ही होती है। ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस की वाममोर्चा को सत्ता से बेदखल की मुहिम ने माहौल को और गरमा दिया है। १९७७ से लगातार तीन दशक से अधिक समय से पश्चिम बंगाल की सत्ता पर काबिज कम्युनिष्ट सरकार की नींव पिछले पंचायत , लोकसभा और कोलकाता नगर निगम व नगरपालिका चुनावों में हिल चुकी है। अब विधानसभा चुनावों पर भारत समेत पूरी दुनिया की नजर है। कौतूहल भरी इस दिलचस्प लड़ाई का बिगुल बज चुका है। मैं भी अपने ब्लाग के माध्यम से आपको इस जंग से रूबरू कराना चाहता हूं। निरपेक्ष भाव से इस महाभारत की कथा सुनाऊंगा। रखिए मेरे ब्लाग के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव-२०११ धारावाहिक की हर कड़ी पर नजर।
ब्लाग नियंत्रक - डा.मान्धाता सिंह
असम में ममता की कांग्रेस से नहीं पटी, पश्चिम बंगाल में भी सीटों पर तकरार
     तमिलनाडु में द्रमुक के साथ अपने माफिक समझौते की कामयाबी के बाद कांग्रेस अब पश्चिम बंगाल में भी ज्यादा सीटें पाने की उम्मीद लगाए है। ममता बनर्जी कांग्रेस को साठ से सीटें देना चाहतीं है जबकि कांग्रेस 75 से ज्यादा चाहती है। इसके पहले शहरी निकाय के चुनाव में सीटों के तालमेल नहीं हो पाने के कारण दोनों पार्टियां अलग-अलग लड़ी थीं। तृणमूल कांग्रेस अभी भी उसी तरह की हेकड़ी दिखा रही है। फिलहाल बातचीत जारी है मगर सीटों पर जारी तकरार शायद इसलिए खत्म नहीं हो पाएगी क्यों कि ममता को बंगाल में अकेले ही विधानसभा चुनाव जीत लेने का भरोसा है।

   असम में जीत की हैट्रिक की तैयारी कर रही कांग्रेस पड़ोसी पश्चिम बंगाल की तर्ज पर तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) से समझौता नहीं करेगी। जबकि अपने प्रभाव क्षेत्र के बाहर फैलकर राष्ट्रीय दल बनने की महत्वाकांक्षा पाल रही टीएमसी पश्चिम बंगाल और असम के चुनाव समझौतों को आपस में जोड़कर कांग्रेस पर दबाव बनाने की कोशिश कर रही है। लेकिन सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस ने दबाव में आने से इनकार करते हुए असम में टीएमसी की सीटों की मांग ठुकरा दी है। अब टीएमसी वहां अकेले चुनाव लड़ने की धमकी दे रही है। लेकिन असम के मामले देख रहे कांग्रेस के नेताओं ने साफ कर दिया है कि टीएमसी की वोट काटने की भूमिका को वहां स्वीकार नहीं किया जाएगा। टीएमसी वहां 126 में से 110 सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही है। उसका कहना है कि सोमवार को वह पार्टी उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर देगी।असम में टीएमसी का कोई असर नहीं है। मगर प. बंगाल से लगे कुछ इलाकों में उसे समर्थन मिलता रहा है। 2001 के विधानसभा चुनाव में टीएमसी ने एक सीट जीती थी। लेकिन 2006 में उसका खाता भी नहीं खुला। हां, इस बीच 2003 के एक उपचुनाव में टीएमसी जीत चुकी है। उत्तर-पूर्व के इलाकों में अपना असर बढ़ाने के लिए ममता वहां के राज्यों में चुनाव लड़ती रहती है। पिछले महीने मणिपुर विधानसभा के एक उपचुनाव में टीएमसी कांग्रेस को शिकस्त दे चुकी हैं।

    उधर काग्रेस ने असम में विधानसभा चुनाव के लिए अपने 118 उम्मीदवारों की सूची जारी की। इसमें मुख्यमंत्री तरुण गोगोई और विधानसभा अध्यक्ष टांका बहादुर राय के भी नाम हैं। पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता में शनिवार को हुई पार्टी की चुनाव समिति की बैठक में 126 सदस्यीय प्रदेश विधानसभा के लिए 118 उम्मीदवारों के नाम पर मुहर लगाई गई।

   पश्चिम बंगाल में वाममोर्चा अपनी पूरी टीम के दो तिहाई चेहरों को बदलकर चुनाव प्रचार शुरू कर दिया है। वाममोर्चा के उम्मीदवारों की जारी सूची में 149 नए चेहरे शामिल किए गए हैं। मौजूदा की विधायकों और नौ मंत्री रहे लोगों को उम्मीदवार नहीं बनाया है। वाममोर्चा ने ऐसा करके यह संकेत दिया है कि हम अनुशासित हैं और एक नई टीम लेकर अपनी लड़ाई लड़ेंगे। जिस तरह से फेरबदल करके वाममोर्चा ने उम्मीदवार तय किए वह अगर दूसरी पार्टी करती तो बगावत और मारपीट की नौबत आ जाती। ऐसा पश्चिम बंगाल कांग्रेस में अभी हाल में हो चुका है। वाममोर्चा ने इस बार के चुनाव में महिला उम्मीदवारों की संख्या में वृद्धि कर 46 महिलाओं को उम्मीदवार बनाया है। 2006 के विधानसभा चुनाव में महिला उम्मीदवारों की संख्या 34 थी। इसी तरह अबकी सूची में नए चेहरों की संख्या भी पिछली बार के 134 से बढ़कर 149 हो गई है। खास बात यह कि इस बार करीब 60 ऐसे उम्मीदवार हैं, जिनकी उम्र 40 वर्ष से कम है।

विधानसभा चुनाव-2011 के लिए दो सीटों को छोड़कर बाकी 292 सीटों पर खड़े होने वाले वाममोर्चा  उम्मीदवारों के नामों की सूची इस प्रकार है-

1. मेखलीगंज (सुरक्षित)-परेश चंद्र अधिकारी (फारवर्ड ब्लाक), 2. माथाभांगा (सुरक्षित) -अनंत राय (माकपा), 3. कूचबिहार उत्तर (सुरक्षित)-नगेन राय (फारवर्ड ब्लाक), 4. कूचबिहार दक्षिण-अक्षय ठाकुर (फारवर्ड ब्लाक), 5. शीतलकूची (सु)-विश्वनाथ प्रमाणिक (माकपा), 6. सिताई (सु)- दीपक राय (फारवर्ड ब्लाक), 7. दिनहाटा -उदयन गुहा (फारवर्ड ब्लाक), 8. नटबाड़ी-तमशेर अली (माकपा), 9. तूफानगंज (एसटी)-धनंजय रावा (माकपा), 10. कुमारग्राम (अनु. जाति) - दशरथ तिर्के (आरएसपी), 11. कालचीनी (अनु. जाति) से विनय भूषण करकेट््टा (आरएसपी), 12. अलीपुरडुआर्स -क्षिति गोस्वामी (आरएसपी), 13. फालाकाटा (सु)- रवींद्रनाथ वर्मा (माकपा), 14. मदारीहाट (अनु. जाति) - कुमारी कुजूर (आरएसपी), 15. धूपगुड़ी (सु) -ममता राय (माकपा), 16. मोयनागुड़ी (सु) - अनंत देव अधिकारी (आरएसपी), 17. जलपाईगुड़ी (सु)- गोविंद राय (फारवर्ड ब्लाक), 18. राजगंज (सु) -अमूल्य राय (माकपा), 19. देवग्राम-फूलबाड़ी -दिलीप सिंह (माकपा), 20. माल (अनु. जाति) -बुलू बराइक (माकपा), 21. नगराकाटा (अनु. जाति) - सुखमोआइत ओरांव (माकपा), 22. कलिमपोंग सीट (घोषणा बाद में), 23. दार्जिलिंग- केबी वत्तार (माकपा), 24. कर्सियांग - दीपा छेत्री (माकपा), 25. माटीगाड़ा-नक्सलबाड़ी (सु)-झरेन राय (माकपा), 26. सिलीगुड़ी- अशोक भट््टाचार्य (माकपा), 27. फांसीदेवा (अनु. जाति)- छोटन किस्कू (माकपा), 28. चोपड़ा -अनवारुल हक (माकपा), 29. इस्लामपुर - सइदा फरहत अफरोज (माकपा), 30. गोपालपोखड़ - शफीउर रहमान (फारवर्ड ब्लाक), 31. चाकुलिया - अली इमरान रम्ज (विक्टर) (माकपा), 32. करण दिघी (सु) - गोकुल राय (फारवर्ड ब्लाक), 33. हेमताबाद (सु) -खगेन सिन्हा (माकपा), 34. कालियागंज (सु)- ननीगोपाल राय (माकपा), 35. रायगंज -किरणमय नंद (एसपी), 36. इटाहार- श्रीकुमार मुखर्जी (भाकपा), 37. खुशमंडी (सु)-नर्मदा चंद्र राय (आरएसपी), 38. कुमारगंज -मफूजा खातून (माकपा), 39. बालूरघाट - विश्वनाथ चौधरी (आरएसपी), 40. तपन (अनु. जाति)- खारा सोरेन (आरएसपी), 41. गंगारामपुर (सु) - नंदलाल हाजरा (माकपा), 42. हरिरामपुर -नारायणचंद्र विश्वास (माकपा), 43. हबीबपुर (अनु. जाति) - खगेन मुर्मू (माकपा), 44. गाजोल (सु) गोविंद मंडल (माकपा), 45. चांचल - अंजुमनारा बेगम (माकपा), 46. हरीश्चंद्रपुर -तजमुल हुसैन (फारवर्ड ब्लाक), 47. मालतीपुर- अब्दुर रहीम बक्शी (आरएसपी),48. रातुआ - शैलेन सरकार (माकपा), 49. माणिकचक -रत्ना भट््टाचार्य (माकपा), 50. मालदा (सु) - राहुल रंजन दास (माकपा), 51. इंग्लिशबाजार - समर राय (माकपा), 52. मोथाबाड़ी - नइमुद्दीन शेख (माकपा), 53. सूजापुर - केताबुद्दीन (माकपा), 54. वैष्णवनगर- विश्वनाथ घोष (माकपा), 55. फरक्का -अब्दुस सलाम (माकपा), 56. शमशेरगंज - तोयब अली (माकपा), 57. सुती - जाने आलम मियां (आरएसपी), 58. जंगीपुर - पूर्णिमा भट््टाचार्य (माकपा), 59. रघुनाथगंज- अब्दुल हसनत खान (आरएसपी), 60. सागरदिघी - इस्माइल (माकपा), 61. लालगोला -यान अली (माकपा), 62. भगवानगोला -चांद मोहम्मद (एसपी), 63. रानीनगर - मकसुदा बेगम (फारवर्ड ब्लाक), 64. मुर्शिदाबाद -विभाष चक्रवर्ती (फारवर्ड ब्लाक), 65. नवग्राम (सु) - कनाई मंडल (माकपा), 66. खारग्राम (सु) -गौतम मंडल (माकपा), 67. बरवान (सु) -विनय सरकार (आरएसपी), 68. कांदी -इनाल हक (भाकपा), 69. भरतपुर -ईद मोहम्मद (आरएसपी), 70. रेजीनगर- सिराजुल इस्लाम मंडल (आरएसपी), 71. बेलडांगा -मोहम्मद रफतुल्ला (आरएसपी), 72. बहरमपुर - तड़ित ब्रह्मचारी (आरएसपी), 73. हरिहरपाड़ा -इंसार अली (माकपा), 74. नवदा -जयंत विश्वास (आरएसपी), 75. डोमकल - अनिसुर रहमान (माकपा), 76. जालंगी - अब्दुर रज्जाक (माकपा), 77. करीमपुर -समर घोष (माकपा), 78. तेहट््टा -रंजीत मंडल (माकपा), 79. पलाशीपाड़ा - एसएम सद्दी (माकपा), 80. कालीगंज -शंकर सरकार (आरएसपी), 81. नक्काशीपाड़ा (अनु. जाति)-गायत्री सरदार (माकपा), 82. चापरा - शमशुल इस्लाम मोल्ला (माकपा), 83. कृष्णनगर उत्तर -सुविनय घोष (माकपा), 84. नवद्वीप - सुमित विश्वास (माकपा),85. कृषणनगर दक्षिण (सु) - रमा विश्वास (माकपा), 86. शांतिपुर - यार मल्लिक (आरसीपीआई), 87.रानाघाट उत्तर पश्चिम - मीना भट््टाचार्य (माकपा), 88. कृष्णागंज (सु) -वरुण विश्वास (माकपा), 89. रानाघाट उत्तर पूर्व (सु) - अर्चना विश्वास (माकपा), 90. रानाघाट दक्षिण (सु) - आलोक दास (माकपा), 91. चाकदा - विश्वनाथ गुप्त (माकपा), 92. कल्याणी (सु)-ज्योत्सना सरकार (माकपा), 93. हरिणघाटा (सु)-डा. विश्वजीत पाल (माकपा), 94. बागदा (सु)-मृणाल सिकदर (फारवर्ड ब्लाक), 95. बनगांव उत्तर (सु)- डा. विश्वजीत विश्वास (माकपा), 96. बनगांव दक्षिण (सु) -अनुज सरकार (माकपा), 97. गाइघाटा (सु) -मनोज कांति विश्वास (भाकपा), 98. स्वर्णनगर (सु)- शिवपद दास (माकपा), 99. बादुरिया-मोहम्मद सलीम गाएन (माकपा), 100. हबरा-प्रणव भट््टाचार्य (माकपा), 101. अशोकनगर -सत्यसेवी कर (माकपा), 102. आमडांगा - अब्दुस सत्तार (माकपा),103. बिजपुर- निर्झरणी चक्रवर्ती (माकपा), 104. नैहाटी - रंजीत कुंडू (माकपा), 105. भाटपाड़ा -नेपालदेव भट््टाचार्य (माकपा), 106. जगदल (सु) - हरिपद विश्वास (फारवर्ड ब्लाक),107. नोआपाड़ा - डा. केडी घोष (माकपा),108. बैरकपुर - डा. मधुसूदन सामंत (माकपा), 109. खरदह-असीम दासगुप्त (माकपा), 110. दमदम उत्तर-रेखा गोस्वामी (माकपा), 111.पानीहाटी - दुलाल चक्रवर्ती (माकपा), 112. कमरहट््टी-मानस मुखर्जी (माकपा), 113. बरानगर- अमर चौधरी (आरएसपी),114. दमदम-गौतम देव (माकपा), 115. राजारहाट न्यूटाउन -तापस चटर्जी (माकपा), 116. विधाननगर-पलाश दास (माकपा), 117. राजारहाट गोपालपुर-रबीन मंडल (माकपा), 118. मध्यमग्राम -रंजीत चौधरी (फारवर्ड ब्लाक), 119. बारासात- संजीव चटर्जी (फारवर्ड ब्लाक ), 120. देगंगा- डा. मुर्तजा हुसैन (फारवर्ड ब्लाक), 121. हाड़ोआ-इम्तियाज हुसैन (माकपा), 122. मिनाखां (सु) -दिलीप राय (माकपा), 123. संदेशखाली (अनु. जाति) - निरापद सरदार (माकपा), 124. बशीरहाट दक्षिण -नारायण मुखर्जी (माकपा), 125. बशीरहाट उत्तर - मुस्तफा बिन कासिम (माकपा), 126. हिंगलगंज (सु) - आनंद मंडल (भाकपा), 127. गोसाबा (सु) - समरेंद्र नाथ मंडल (आरएसपी), 128. बासंती (सु) - सुभाष नस्कर (आरएसपी), 129. कुलतली (सु) -रामशंकर हालदार (माकपा), 130. पाथरप्रतिमा - योगेश्वर दास (माकपा), 131. काकद्वीप -मिलन भट््टाचार्य (माकपा), 132. सागर -मिलन पारुआ (माकपा), 133. कुल्पी (सु)- शकुंतला पाइक (माकपा), 134. रायदिघी - कांति गांगुली (माकपा), 135. मंदिरबाजार (सु) -डा. शरत हालदार (माकपा), 136. जयनगर (सु) - श्यामली हालदार (माकपा), 137. बारुईपुर पूर्व (सु)-विमल मिस्त्री (माकपा), 138. कैनिंग पश्चिम (सु) -जयदेव पुरकायत (माकपा), 139. कैनिंग पूर्व -अब्दुर रज्जाक मोल्ला (माकपा), 140. बारुईपुर पश्चिम -कनक कांति पारिया (माकपा), 141. मगराहाट पूर्व (सु)- चंदन साहा (माकपा), 142. मगराहाट पश्चिम -डा. अब्दुल हसनत (माकपा), 143. डायमंड हार्बर-शुभ्रा साव (माकपा), 144. पालता -अर्द्धेंदु शेखर बिंदु (माकपा), 145. सातगाछिया (सु) -वरुण नस्कर (माकपा), 146. विष्णुपुर (सु) -प्रो. सुधीन सिन्हा (माकपा), 147. सोनारपुर दक्षिण -तड़ित चक्रवर्ती (भाकपा), 148. भांगड़ - बादल जमादार (माकपा), 149. कसबा - शतरूप घोष (माकपा), 150. यादवपुर - बुद्धदेव भट््टाचार्य (माकपा), 151. सोनारपुर उत्तर (सु)- श्यामल नस्कर (माकपा), 152. टालीगंज -प्रो. पार्थ प्रतीम विश्वास (माकपा), 153. बेहला पूर्व -कुमकुम चक्रवर्ती (माकपा), 154. बेहला पश्चिम- प्रो. अनपम देव शंकर (माकपा),155. महेशतला- शेख मोहम्मद इसरायल (माकपा), 156. बजबज- हृषिकेश पोद्दार (माकपा), 157. मटियाबुर्ज -बदरुदोजा मोल्ला (माकपा), 158. कोलकाता पोर्ट -मोइनुद्दीन शम्स (फारवर्ड ब्लाक), 159. भवानीपुर-नारायण जैन (माकपा), 160. रासबिहारी- प्रो. शांतनु बोस (माकपा), 161. बालीगंज - डा. फुआद हलीम (माकपा), 162. चौरंगी-विमल सिंह (राजद), 163. इंटाली (सु)- डा. देवेश दास (माकपा),164. बेलेघाटा-अनादि साहू (माकपा), 165. जोड़ासांको- जानकी सिंह (माकपा), 166. श्यामपुकुर-जीवन साहा (फारवर्ड ब्लाक),167. मानिकतला- रूपा बागची (माकपा), 168. काशीपुर-बेलगछिया-कनिनिका घोष (माकपा), 169. बाली - कनिका गांगुली (माकपा), 170. हावड़ा उत्तर - निमाई सामंत (माकपा), 171. हावड़ा मध्य-अरूप राय (माकपा), 172. शिवपुर- डा. जगन्नाथ भट््टाचार्य (फारवर्ड ब्लाक), 173. हावड़ा दक्षिण-कृष्ण किशोर राय (माकपा), 174. सांकराइल (सु)-अनिर्वाण हाजरा (माकपा), 175. पांचला-डोला राय (फारवर्ड ब्लाक), 176. उलबेड़िया पूर्व- मोहन मंडल (माकपा), 177. उलबेड़िया उत्तर (सु)- भीम घुकू (माकपा), 178. उलबेड़िया दक्षिण-शेख कुतुबुद्दीन अहमद (फारवर्ड ब्लाक), 179. श्यामपुर-मिनती प्रमाणिक (पारवर्ड ब्लाक), 180. बागनान-अक्केल अली (माकपा), 181. आमता सीट से रवींद्रनाथ मित्र (माकपा), 182. उदयनारायणपुर सीट से चंद्रलेखा बाग (माकपा), 183. जगतवल्लभपुर-काजी जफ्फार अहमद (माकपा), 184. डोमजुर -मोहंत चटर्जी (माकपा), 185. उत्तरपाड़ा-श्रतिनाथ प्रहराज (माकपा), 186. श्रीरामपुर (बाद में घोषित), 187. चंपदानी -जीवेश चक्रवर्ती (माकपा), 188. सिंगुर-डा. असित दास (माकपा), 189. चंदननगर- शिव प्रसाद बनर्जी (माकपा), 190. चूंचुड़ा -नरेन दे (फारवर्ड ब्लाक), 191. बलागढ़ (सु)-भुवन प्रमाणिक (माकपा), 192. पंडुआ-अमजद हुसैन (माकपा), 193. सप्तग्राम -आशुतोष मुखोपाध्याय (माकपा), 194. चंडीतला - शेख आजिम अली (माकपा), 195. जंगीपाड़ा- प्रो. सुदर्शन रायचौधरी (माकपा), 196. हरिपाल-भारती मुखर्जी, 197. धनियाखाली (सु)-श्रवाणी सरकार (फारवर्ड ब्लाक), 198. तारकेश्वर-प्रतीम चटर्जी (मार्क्सवादी फारवर्ड ब्लाक), 199. पुरसुरा -सौमेंद्रनाथ बेरा (माकपा), 200. आरामबाग (सु)- असित मलिक (माकपा), 201. गोघाट (सु)- विश्वनाथ कराक (फारवर्ड ब्लाक), 202. खानकुल- शुभ्रा पारुई (माकपा), 203. तमलुक-जगन्नाथ मित्र (भाकपा), 204. पांशकुरा पूर्व -अमिय साहू (माकपा), 205. पांशकुरा पश्चिम- निर्मल कुमार बेरा (भाकपा), 206. मोयना-मुजीबुर रहमान (माकपा), 207. नंदकुमार -ब्रह्ममय नंद (एसपी), 208. महिषादल-तमालिका पंडा सेठ (माकपा), 209. हल्दिया (सु)-नित्यानंद बेरा (माकपा), 210. नंदीग्राम-परमानंद बेरा (भाकपा), 211. चंडीपुर -विद्युत गुछायट (माकपा), 212. पटाशपुर-माखन नायक (भाकपा), 213. कांथी उत्तर (ओबीसी)-चक्रधर मैकप (माकपा), 214. भगवानपुर- रंजीत मन्ना (एसपी), 215. खेजुरी (सु) -असीम मंडल (एसपी), 216. कांथी दक्षिण -उत्तम कुमार प्रधान (भाकपा), 217. रामनगर -स्वदेश रंजन नायक (माकपा), 218. एगरा- प्रो. हृषिकेश पायरा (डीएसपी), 219. दांतन -अरुण महापात्र (भाकपा), 220. नयाग्राम (अनु.जाति) - भूतनाथ सोरेन (माकपा), 221. गोपीवल्लभपुर -रविलाल मोइत्र (माकपा), 222. झाड़ग्राम-अमर बोस (माकपा), 223. केशियारी (अनु. जाति) - विराम मांडी (माकपा),

224. खड़गपुर सदर - अनिल दास (माकपा), 225. नारायणगढ़- सूर्यकांत मिश्र (माकपा), 226. संबग-रामापद साहू (बीबीसी), 227. पिंगला- प्रो. प्रबोध चंद्र सिन्हा (डीएसपी), 228. खड़गपुर-नजामुल हक (माकपा), 229. डेबरा-शोहराब हुसैन शेख (माकपा), 230. दासपुर-सुनील अधिकारी (माकपा), 231. घटाल (सु)-छवि पाखीरा (माकपा), 232. चंद्रकोना (सु)-छाया दलुई (माकपा), 233. गड़बेता-सुशांत राणा (भाकपा), 234. सालबनी-अभिराम महतो (माकपा), 235. केशपुर (सु)-रामेश्वर दालुई (माकपा),236. मेदिनीपुर सीट से संतोष राणा (भाकपा), 237. बीनपुर- दिवाकर हांसदा (माकपा), 238. बांदवान (अनु. जाति)-सुशांत बेसरा (माकपा), 239. बलरामपुर (ओबीसी)- मणिंद्र गोप (माकपा), 240. बाघमुंडी-मंगल महतो (फारवर्ड ब्लाक), 241.जयपुर-धीरेन महतो (फारवर्ड ब्लाक), 242. पुरुलिया सीट से कौशिक मजुमदार (माकपा), 243. मानबाजार (अनु. जाति) सीट से हीमानी हांसदा (माकपा), 244. काशीपुर सीट से सुभाष महतो (माकपा), 245. पारा (सु) सीट से दीपक बारुई (माकपा), 246. रघुनाथपुर (सु) सीट से दीपाली बाउरी (माकपा), 248. छातना सीट से अनाथबंधु मंडल (आरएसपी), 249. रानीबांध (अनु. जाति) सीट से देवलीना हेंब्रम (माकपा), 250. रायपुर (अनु. जाति) सीट से उपेन किस्कू (माकपा), 251. तालडांगा सीट से मनोरंजन पात्र (माकपा), 252. बांकुड़ा सीट से प्रतीक मुखर्जी (माकपा), 253. बरजोरा सीट से सुष्मिता विश्वास (माकपा), 254. ओंदा सीट से तारापद चक्रवर्ती (फारवर्ड ब्लाक), 255. विष्णुपुर-स्वपन घोष (माकपा), 256. कतुलपुर (सु)- पूर्णिमा बागदी (माकपा), 257. इंदस (सु)- शांतनु बोरा (माकपा), 258. सोनामुखी (सु)- मनोरंजन चोंगरे (माकपा), 259. खंडघोष (सु)- नवीन बाग (माकपा), 260. बर्दवान दक्षिण- निरूपम सेन (माकपा), 261. रायना (सु)- बासुदेव खान (माकपा), 262. जमालपुर (सु)-समर हाजरा (मार्क्सवादी फारवर्ड ब्लाक), 263. मंतेश्वर- चौधरी मोहम्मद हिदायतुल्ला (माकपा), 264. कालना (सु)- प्रणव सिकदर (माकपा), 265. मेमारी- देवाशीष घोष (माकपा), 266. बर्दवान उत्तर (सु)- अपर्णा साहा (माकपा), 267. भातार- श्रीजीत कोनार (माकपा), 268. पूर्वस्थली दक्षिण- आलिया बेगम (माकपा), 269. पूर्वस्थली उत्तर-प्रदीप साहा (माकपा), 270. काटवा-सुदीप्ता बागची (माकपा)स 271. केतुग्राम- प्रो. सैयद अबुल कादर (माकपा), 272. मंगलकोट-शाहजहां चौधरी (माकपा),

273. आउसग्राम (सु)- बासुदेव मेटे (माकपा), 274. गलसी (सु)- सुनील कुमार मंडल (फारवर्ड ब्लाक), 275. पंजेश्वर- गौरांग चटर्जी (माकपा), 276. दुर्गापुर पूर्व- अल्पना चौधरी (माकपा), 277. दुर्गापुर पश्चिम-बीपरेंदु चक्रवर्ती (माकपा), 278. रानीगंज- रुनू दत्त (माकपा), 279. जामुड़िया-जहांआरा खान (माकपा), 280. आसनसोल दक्षिण-आलोक मुखर्जी (माकपा), 281. आसनसोल उत्तर-रानू राय चौधरी (माकपा), 282. कुल्टी-मानिकलाल आचार्य (फारवर्ड ब्लाक), 283. बाराबनी- आभास रायचौधरी (माकपा), 284. दुबराजपुर (सु)- विजय बागदी (फारवर्ड ब्लाक), 285. सुरी-अब्दुल गफ्फार (माकपा), 286. बोलपुर- तपन होड़ (आरएसपी), 287. नानूर (सु)-श्यामली प्रधान (माकपा), 288. लाभपुर-नवनीता मुखर्जी (माकपा), 290. मयुरेश्वर-अशोक राय (माकपा), 291. रामपुरहाट- रेवती रंजन भट््टाचार्य (फारवर्ड ब्लाक), 292. हासन-कमल हासन (आरसीपीआई), 293. नलहाटी-दीपक चटर्जी (फारवर्ड ब्लाक) व 294. मुराराई-डा. कमरे इलाही (माकपा)।









Tuesday, 1 March 2011

पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, असम और पुडुचेरी में विधाननसभा चुनाव की तारीखों का एलान



१८ अप्रैल २०११ से छह चरणों में पश्चिम बंगाल विधानसभा के चुनाव होने हैं।। चुनाव के लिहाज से पश्चिम बंगाल की फिजा अलग ही होती है। ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस की वाममोर्चा को सत्ता से बेदखल की मुहिम ने माहौल को और गरमा दिया है। १९७७ से लगातार तीन दशक से अधिक समय से पश्चिम बंगाल की सत्ता पर काबिज कम्युनिष्ट सरकार की नींव पिछले पंचायत , लोकसभा और कोलकाता नगर निगम व नगरपालिका चुनावों में हिल चुकी है। अब विधानसभा चुनावों पर भारत समेत पूरी दुनिया की नजर है। कौतूहल भरी इस दिलचस्प लड़ाई का बिगुल बज चुका है। मैं भी अपने ब्लाग के माध्यम से आपको इस जंग से रूबरू कराना चाहता हूं। निरपेक्ष भाव से इस महाभारत की कथा सुनाऊंगा। रखिए मेरे ब्लाग के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव-२०११ धारावाहिक की हर कड़ी पर नजर।
ब्लाग नियंत्रक - डा.मान्धाता सिंह  

लोकलुभावन-बेवकूफबनावन कार्यक्रमों में ठहराव और चुनाव प्रचार में तेजी 


 वैसे तो पश्चिम बंगाल में चुनावी जंग तीन-चार महीने पहले से शुरू हो चुकी है मगर आज पहली मार्च को चुनाव आयोग ने तारीखों का एलान करके बाकायदा युद्ध आरम्भ करा दिया। जिन पाच राज्यों में चुनाव होने हैं उसमें सबसे संवेदनशील माहौल पश्चिम बंगाल में है। हालांकि छह चरणों में चुनाव सत्तापक्ष के गले शायद नहीं उतरे मगर सत्ता के लिए पहले से हो रहे खूनखराबे के मद्देनजर चुनाव आयोग ने सही फैसला लिया है। अब चुनाव आचार संहिता प्रभावी होगी। इस बीच जनता के लिए लोकलुभावन-बेवकूफबनावनकार्यक्रमों में ठहराव और चुनाव प्रचार में तेजी होगी। देखते हैं जनता किसके झांसे में आती है ?
चुनाव आयोग ने मंगलवार को पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, असम और पुडुचेरी में विधासभा चुनाव की तारीखों का एलान किया।
मुख्‍य चुनाव आयुक्त कुरैशी ने बताया कि पश्चिम बंगाल में छह चरणों में - 18, 23, 27 अप्रैल और 7, 10 मई को चुनाव होंगे, जबकि असम में 4 और 11 अप्रैल को दो चरणों में चुनाव होंगे। केरल, तमिलनाडु, पुडुचेरी में 13 अप्रैल को वोट डाले जाएँगे। कुरैशी ने बताया विधानसभा चुनाव अप्रवासी भारतीय भी वोट डाल सकेंगे। उन्होंने बताया कि यह पहला मौका है जब अप्रवासी भारतीय वोट डाल सकेंगे। पाँचों राज्यों की मतगणना 13 मई को होगी। चुनावों की तारीख का एलान करते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त सैय्यद याकूब क़ुरैशी ने कहा कि तारीख़ें तय करने से पहले स्थानीय मौसम, स्कूलों की परीक्षाओं, त्योहारों और केंद्रीय सुरक्षा बलों की उपलब्धि का ध्यान रखा गया है।
चुनाव का तिथिवार विवरण
प. बंगाल
पहला चरण- अधिसूचना जारी करने की तारीख- 24 मार्च, चुनाव की तारीख- 18 अप्रैल
दूसरा चरण- अधिसूचना जारी करने की तारीख- 30 मार्च,  चुनाव की तारीख- 23 अप्रैल
तीसरा चरण- अधिसूचना जारी करने की तारीख- 2 अप्रैल,  चुनाव की तारीख- 27 अप्रैल
चौथा चरण- अधिसूचना जारी करने की तारीख- 7 अप्रैल,  चुनाव की तारीख- 3 मई
पांचवा चरण- अधिसूचना जारी करने की तारीख- 11 अप्रैल,  चुनाव की तारीख- 7 मई
छंठवा चरण- अधिसूचना जारी करने की तारीख- 14 अप्रैल,  चुनाव की तारीख- 10 मई

तमिलनाडू


अधिसूचना जारी करने की तारीख- 19 मार्च
चुनाव की तारीख- 13 अप्रैल

केरल
अधिसूचना जारी करने की तारीख- 19 मार्च
चुनाव की तारीख- 13 अप्रैल

असम
पहला चरण- अधिसूचना जारी करने की तारीख- 10 मार्च, चुनाव की तारीख- 4 अप्रैल
दूसरा चरण - अधिसूचना जारी करने की तारीख- 18 मार्च, चुनाव की तारीख- 11 अप्रैल

पुडुचेरी

अधिसूचना जारी करने की तारीख- 19 मार्च
चुनाव की तारीख- 13 अप्रैल

सभी राज्यों में कुल विधानसभा क्षेत्रों की संख्या इस प्रकार है-
राज्य                  कुल विधानसभा क्षेत्र
तमिलनाडू                    234
केरल                        140
पुडुचेरी                       30
पश्चिम बंगाल                 294
असम                       126








Tuesday, 26 May 2009

बंगाल को छीन लेने की राजनीतिक होड़








पश्चिम बंगाल आइला के तांडव के बाद तृणमूल और वाममोर्चा सरकार दोनों में जनता से सहानुभूति बटोरने की होड़ लग गई है। मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य जामतला समेत कई ग्रामीण इलाकों में पीड़ितों से हालचाल पूछते नजर आए तो ममता बनर्जी सुंदरवन इलाके के दौरे पर निकल गईं। उन्होंने नामखाना इलाके में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। एक को अपनी खिसकती जमीन खोजनी है तो दूसरे को अपने जनाधार का वह दायरा ढूंढना है जहां से सत्ता की संभावनाएं प्रबल हो जाती हैं। ऐसा मौका ३२ साल बाद विपक्ष के हाथ लगा है जब जनता पश्चिम बंगाल में परिवर्तन के मूड में है। इस बात की गंभीरता को महसूस करते हुए ममता बनर्जी रेल मंत्रालय का कार्यभार संभालने की औपचारिकता पूरा करने दिल्ली तक नहीं जा पाईं। सियालदह स्टेशन स्थित बीसी राय इंस्टीट्यूट में ही रेलमंत्रालय की जिम्मेदारी ओढ़कर पहुंच गईं जनता जनार्दन के दरबार में। सबसे बड़ी बात काबिले गौर है कि कोलकाता महानगर की तबाही इन दोनों को ग्रामीण इलाकों से अहम नहीं लगी जहां तमाम सारे इलाकों में सारे दिन की मसक्कत के बाद भी अंधेरा होने तक बिजली बहाल नहीं हो पाई
थी। जाहिक है कि कोलकाता महानगर से २०० किलोमाटर की परिधि से बाहर वामपंथी राजनीति को धकेलने के बाद तृणमूल अब बंगाल के उन गांवों को जीतना चाहती हैं जहां इस लोकसभी चुनाव में सेंध नहीं लगा पाईं। जबकि वाममोर्चा सरकार के मुख्यमंत्री बुद्धदेव जनता के घावों पर मरहम लगाने के साथ यह भरोसा दिला रहे हैं कि- हमें न बिसारिए, हम ही हैं आप के सुखदुख के साथी। जनता पता नहीं क्या समझेगी और वक्त आने पर किसे अपना समझेगी मगर इतनी सी बात तो समझ में आ रही है कि मामूली सी चोट देकर जनता ने खुद को दोनों का जनार्दन बना लिया है। वरना इसी बंगाल में ३२ साल के शासन ने वाममोर्चा में इतना घमंड पैदा कर दिया था कि कभी किसी नीतिगत मुद्दे पर विपक्ष से राय तक की जरूरत नहीं समझी जाती थी और फैसले इकतरफा लिए जाते थे। भूमि अधिग्रहण व बंगाल के औद्योगिकीकरण में माकपा के इसी एकतरफा रवैए ने विपक्ष के उस जिन्न को पैदा कर लिया है जो मुमकिन है कि उससे सत्ता भी छीन ले। बंगाल किसके आधीन सुखी है और सुखी रहेगा, यह सवाल तो विधानसभा चुनाव होने तक सवाल ही बना रहेगा मगर चुनाव बाद विचारमंथन को बैठी उस माकपा को अपनी गलतियां साफ नजर आनी चाहिए जिसे सिंगुर और नंदीग्राम के ममता के आंदोलन में अपने घटक भाइयों की सलाह तक नागवार गुजरती थी। लोकतंत्र में ताकत का घमंड तभी तक कायम रहता है जब तक जनता भीरु बनकर सिर पर बैठाए रखती है। राजनीति की दुनिया वोलों तुम्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि यही जनता बास्तील की जेल तोड़ सकती है और अंग्रेजों को वापस उनके देश भेज सकती है। पश्चिम बंगाल की जनता को नागवार गुजरने वाले बयानों से तार-तार करने वाले विमान बोस और बिनय कोनार या फिर दखल की लड़ाई घोषित करने वाले बुद्धदेव या अपनी सरकार व पार्टी को ऐसे संवेदनशील मौके पर चाणक्य की तरह सही सलाह न दे पाने वाले प्रकाश करात को जनता की इस ताकत का क्या अंदाजा नहीं था ? दखल की लड़ाई में अपनी ही जनता के भक्षक बन बैठे थे यो लोग। क्या इस निरीह जनता की ताकत नहीं मालूम थी ? अगर सचमुच नहीं थी, तो संभल जाओ दंभ में जीने वालों। अब जनता ने अपनी ताकत का न सिर्फ एहसास करा दिया है बल्कि उसने अपना वह नायक भी खोजना शुरू कर दिया है जो उसे संत्रास की जिंदगी से मुक्ति दिलाए।

Friday, 23 May 2008

दखल की लड़ाई में बेदखल हुए वामपंथी

कोलकाता में राजभवन के नजदीक पश्चिम बंगाल औद्योगिक विकास निगम का दफ्तर है। इस दफ्तर में प्रवेश करते ही सामने एक बोर्ड लगा है जिसपर लिखा है- टर्न लेफ्ट फार राइट डायरेक्शन। इसका सीधा अर्थ तो यही हुआ कि दफ्तर में घुसने के लिए बाएं मुड़िए। इसका सांकेतिक अर्थ भी है। अर्थात् अगर पश्चिम बंगाल को औद्योगीकृत देखना चाहते हैं तो वामपंथी रूझान रखिए। यानी वामपंथी बनिए या वामपंथ की राह चलिए। प्रकारांतर से यह एक नारा भी है कि अगर वामपंथी सरकार पर भरोसा रखें तभी पश्चिम बंगाल का औद्योगिकीकरण संभव होगा। अब पंचायत चुनाव के नतीजों ने इस नारे पर सवाल उठा दिया है। वह लाख टके का सवाल यह भी है कि क्या जिन तौर-तरीकों, सिद्धांतों को हथियार बनाकर बंगाल का औद्योगिकीकरण किया जा रहा है, वह जनता को स्वीकार्य है ?
कम से कम सिंगूर और नंदीग्राम में वाममोर्चा की भारी पराजय से तो यही लगता है कि सेज की यह नीति जनता को मंजूर नहीं। विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईज़ेड) के लिए भूमि अधिग्रहण को लेकर हिंसा का शिकार रहे सिंगूर और नंदीग्राम में त्रिस्तरीय पंचायती चुनाव में विपक्षी पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने जीत हासिल की है। इन चुनावों को उद्योग के लिए कृषि भूमि के अधिग्रहण की बुद्धदेव भट्टाचार्य सरकार की नीति के लिए अग्निपरीक्षा के तौर पर देखा जा रहा था। जबरन कैडरवाहिनी के आतंक के साये में औद्योगिकीकरण के इस प्रयास को जनता ने नकारकर वाममोर्चा सरकार पुनर्विचार करने पर विवश कर दिया है।

माना जाता है कि पश्चिम बंगाल में पंचायतें जिनके आधीन होती हैं राज्य में सरकारें भी उन्हीं की कायम रहती हैं। यही ग्रामीण आधार हैं जिनपर १९७१ के बाद से वाममोर्चा सरकार कायम है। इसी कारण बंगाल को वामपंथियों का अभेद्य लालदुर्ग कहा जाता है। लेकिन मई २००८ में हुए पंचायत चुनाव में ममता बनर्जी की अगुआई में तृणमूल कांग्रेस ने इसी अभेद्य लालदुर्ग में सेंध लगा दी है।

आखिर ऐसा क्यों हुआ ?
अगर पंचायत चुनाव को जनादेश मानें तो ऐसे कई कारण हैं जिसने माकपा समेत उसके घटक दलों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया है। पहला तो यह कि जिस सरकारी गुंडीगर्दी और कैडर राज का वाममोर्चा सरकार ने अधिग्रहण वाले इलाकों में प्रदर्शन किया उससे जनता बेहद भयभीत हो गई। इस डर का ही विपक्ष ने फायदा उठाया। दूसरे घटक दलों को हासिए पर रखनेऔर उन्हें दरकिनार कर अकेले फैसले लेने की रवायत ने इतना नाराज किया कि उन्हें मजबूर होकर अपनी ही सरकार की आलोचना करनी पड़ी। इसका मनोवैग्यानिक असर यह पड़ा कि जनता ने उनके विकल्प के तौर पर दूसरे दलों को चुना। घटक दलों को भी नुकसान इसी लिए हुआ क्यों कि वे विरोध भी करते रहे और वाममोर्चा में भी बने रहे। घटक दलों की इस बेवकूफी ने वाममोर्चा को वोट देने वालों में काफी भ्रम पैदा किया।
ममता बनर्जी के आंदोलन को बंगाल के बुद्धिजीवियों का समर्थन और सरकार की नीतियों के विरोध में कोलकाता में बुद्धिजीवियों का जुलूस वह मंजर था जहां साबित हो गया कि सरकार कहीं न कहीं तो गलत है। इसने एक ऐसा वातावरण तैयार किया जो सरकार की नीतियों की धज्जी उड़ाने के लिए काफी थी।
किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में तरह सरकार चलाने वालों का व्यवहार भी लोगों में सरकार के प्रति घृणा ही पैदा किया। मसलन तसलामा नसरीन के मुद्दे से लेकर सिंगुर और नंदीग्राम के मुद्दे पर पार्टी के आला नेता विमान बसु. विनय कोन्नार और खुद मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य का रवैया अल्पसंख्यकों को बेहद नाराज करने वाला रहा। इनकी जगह अनिल विश्वाश होते तो शायद विपक्ष इन मुद्दों को इतना भुना नहीं पाता। इसका सीधी अर्थ यह भी है कि पिछले दो साल में सरकार को डांवाडोल करने वाले रिजवानुर रहमान, तस्लीमा नसरीन, सिंगुर और नंदीग्राम के साथ खेती की जमीन के अधिग्रहण के तमामा मुद्दे पर ज्योति बसु को छोड़कर बाकी राज्य के माकपा के कर्णधारों का रवैया किसानों और अल्पसंख्यकों को नाराज करने वाला ही रहा। नतीजे में लालदुर्ग में तृणमूल ने आसानी से सेंध लगा ली। अगर यह शहरी इलाका होता माकपा को कम परेशानी होती मगर गांवों में तृणमूल का बढ़ता जनाधार वाममोर्चा के लिए खतरे की घंटी है।
चुनाव के बाद हिंसा तो अब भी नंदीग्राम में जारी है। नीचे दिए गए कुछ फोटो देखिए जो सरकार की उस मनमानी की कहानी कह रहे हैं जिसने आज वाममोर्चा को कुछ हद तक कमजोर कर दिया है और ऐसा बंगाल में वाममोर्चा के साथ पहली बार हुआ है।

टाटा की वह नैनो कार जिसका कारखाना सिंगुर में विवाद का विषय बना।


तापसी मलिक। सिंगुर में टाटा मोटर कारखाना स्थल से इसकी जली लाश बरामद हुई। सरकार के विरोध का इसे भी भिगतना पड़ा खामियाजा।


सरकार का विरोध करने वालों के तहस-नहस कर दिया गए घर।


नंदीग्राम में खाली कराए गए एक गांव में लहराता माकपा का झंडा।


नरसंहार के बाद खाली पड़े वे गांव जिन पर माकपा कैडरों ने पुनर्दखल का दावा किया।


बूथ रिगिंग करने के आरोप में इन लोगों को पकड़ी है पुलिस


अंततः ११ मई से शुरू हुए पंचायत चुनाव। नंदीग्राम में वोट डालने कतारबद्ध महिलाएं। बुलेट को बैलेट की ताकत दिखाने का वक्त आ गया था।


हिंसा में मारे गए बेकसूर लोगों के शव


नंदीग्राम में फायरिंग से दीवालों पर गोलियों के निशान


नंदीग्राम में नरसंहार की खबर के बाद ममता भी रवाना हुई नंदीग्राम। सभी को रास्ते में रोक लिया गया।


मेधापाटकर हिंसाग्रस्त नंदीग्राम को रवाना होती हुईं


बुद्धिजीवी सड़कों पर

कोलकाता में नंदीग्राम की हिंसा और सरकार के पुनर्दखल के बयान से बौखलाए बुद्धिजीवी सड़कों पर उतरे


नंदीग्राम में हिंसा के खिलाफ कोलकाता में बुद्धिजीवियों की रैली


नंदीग्राम में तैनात सीआरपीएफ जवान


पंचायत चुनाव में इस तरह ममता ने लगाई सेंध
पूर्वी मिदनापुर ज़िले में ज़िला परिषद की 53 सीटों में से 36 तृणमूल कांग्रेस के कब्ज़े में आई है।इसी जिले में नंदीग्राम है। तीन चरणों में हुए पंचायत चुनावों में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी और दस से ज़्यादा लोग मारे गए थे। पिछले पंचायत चुनाव में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी यानी सीपीएम के नेतृत्व में वाम मोर्चे ने नंदीग्राम की 24 में से 19 पंचायत समितियों में जीत हासिल की थी। भूमि अधिग्रहण को लेकर तृणमूल कांग्रेस नीत भूमि उच्छेद प्रतिरोध समिति और माकपा के बीच विवाद में पिछले दो वर्षों में नंदीग्राम में काफी हिंसा हुई है और कई लोग मारे गए हैं। वाम मोर्चा को सिंगूर में भी करारा झटका लगा है। यहीं पर टाटा मोटर्स की प्रतिष्ठित नैनो कार परियोजना का निर्माण स्थल है। माकपा का पारंपरिक गढ़ रहे इस जिले में 1978 के बाद ऐसा पहली बार हो रहा है, जब जिला परिषद पर उसका नियंत्रण खत्म हो गया है। इस जिले में मिली हार इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यहीं ऐतिहासिक तेभागा कृषक विद्रोह हुआ था। पिछले तीन दशकों से इस जिले की जनता पार्टी के साथ दृढ़ता से खड़ी थी।

वाम मोर्चे के परंपरागत गढ़ दक्षिण चौबीस परगना में सीपीएम को 1978 के बाद पहली बार ज़िला परिषद में हार का सामना करना पड़ा है। यहाँ ग्राम पंचायत की 73 में से 34 पर तृणमूल ने जीत दर्ज की है, जबकि पांच पर उसकी सहयोगी सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर के उम्मीदवार जीते हैं। जिले में वाम मोर्चा सरकार को ऐसे समय में झटका लगा है, जब वह नॉलेज सिटी और हेल्थ सिटी जैसी अनेक मेगा परियोजनाएँ शुरू करने की योजना बना रही है। इस जिला परिषद पर माकपा का कब्जा लगातार पिछले छह कार्यकाल से था। तृणमूल कांग्रेस ने कुल्पी पंचायत समिति में जबरदस्त जीत हासिल की। वहाँ पार्टी ने 31 सीटें जीतीं। माकपा को महज पाँच सीटों से संतोष करना पड़ा जबकि कांग्रेस को एक सीट पर जीत मिली।
वाम मोर्चा ने हालाँकि मुर्शिदाबाद जिला परिषद का नियंत्रण कांग्रेस से छीन लिया। इस क्षेत्र से कांग्रेस के कद्दावर नेता प्रणब मुखर्जी और दो अन्य नेता अधीर चौधरी तथा मन्नान हुसैन 2004 में लोकसभा पहुँचे थे। उत्तरी दीनाजपुर जिला परिषद सीटों पर कांग्रेस ने माकपा से कब्जा छीन लिया। इस बार पंचायत चुनाव में भूमि अधिग्रहण बड़ा मुद्दा था।

Wednesday, 21 May 2008

दखल की लड़ाई में बेदखल हुआ वाममोर्चा

कोलकाता में राजभवन के नजदीक पश्चिम बंगाल औद्योगिक विकास निगम का दफ्तर है। इस दफ्तर में प्रवेश करते ही सामने एक बोर्ड लगा है जिसपर लिखा है- टर्न लेफ्ट फार राइट डायरेक्शन। इसका सीधा अर्थ तो यही हुआ कि दफ्तर में घुसने के लिए बाएं मुड़िए। इसका सांकेतिक अर्थ भी है। अर्थात् अगर पश्चिम बंगाल को औद्योगीकृत देखना चाहते हैं तो वामपंथी रूझान रखिए। यानी वामपंथी बनिए या वामपंथ की राह चलिए। प्रकारांतर से यह एक नारा भी है कि अगर वामपंथी सरकार पर भरोसा रखें तभी पश्चिम बंगाल का औद्योगिकीकरण संभव होगा। अब पंचायत चुनाव के नतीजों ने इस नारे पर सवाल उठा दिया है। वह लाख टके का सवाल यह भी है कि क्या जिन तौर-तरीकों, सिद्धांतों को हथियार बनाकर बंगाल का औद्योगिकीकरण किया जा रहा है, वह जनता को स्वीकार्य है ?
कम से कम सिंगूर और नंदीग्राम में वाममोर्चा की भारी पराजय से तो यही लगता है कि सेज की यह नीति जनता को मंजूर नहीं। विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईज़ेड) के लिए भूमि अधिग्रहण को लेकर हिंसा का शिकार रहे सिंगूर और नंदीग्राम में त्रिस्तरीय पंचायती चुनाव में विपक्षी पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने जीत हासिल की है। इन चुनावों को उद्योग के लिए कृषि भूमि के अधिग्रहण की बुद्धदेव भट्टाचार्य सरकार की नीति के लिए अग्निपरीक्षा के तौर पर देखा जा रहा था। जबरन कैडरवाहिनी के आतंक के साये में औद्योगिकीकरण के इस प्रयास को जनता ने नकारकर वाममोर्चा सरकार पुनर्विचार करने पर विवश कर दिया है।

माना जाता है कि पश्चिम बंगाल में पंचायतें जिनके आधीन होती हैं राज्य में सरकारें भी उन्हीं की कायम रहती हैं। यही ग्रामीण आधार हैं जिनपर १९७१ के बाद से वाममोर्चा सरकार कायम है। इसी कारण बंगाल को वामपंथियों का अभेद्य लालदुर्ग कहा जाता है। लेकिन मई २००८ में हुए पंचायत चुनाव में ममता बनर्जी की अगुआई में तृणमूल कांग्रेस ने इसी अभेद्य लालदुर्ग में सेंध लगा दी है।

आखिर ऐसा क्यों हुआ ?
अगर पंचायत चुनाव को जनादेश मानें तो ऐसे कई कारण हैं जिसने माकपा समेत उसके घटक दलों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया है। पहला तो यह कि जिस सरकारी गुंडीगर्दी और कैडर राज का वाममोर्चा सरकार ने अधिग्रहण वाले इलाकों में प्रदर्शन किया उससे जनता बेहद भयभीत हो गई। इस डर का ही विपक्ष ने फायदा उठाया। दूसरे घटक दलों को हासिए पर रखनेऔर उन्हें दरकिनार कर अकेले फैसले लेने की रवायत ने इतना नाराज किया कि उन्हें मजबूर होकर अपनी ही सरकार की आलोचना करनी पड़ी। इसका मनोवैग्यानिक असर यह पड़ा कि जनता ने उनके विकल्प के तौर पर दूसरे दलों को चुना। घटक दलों को भी नुकसान इसी लिए हुआ क्यों कि वे विरोध भी करते रहे और वाममोर्चा में भी बने रहे। घटक दलों की इस बेवकूफी ने वाममोर्चा को वोट देने वालों में काफी भ्रम पैदा किया।
ममता बनर्जी के आंदोलन को बंगाल के बुद्धिजीवियों का समर्थन और सरकार की नीतियों के विरोध में कोलकाता में बुद्धिजीवियों का जुलूस वह मंजर था जहां साबित हो गया कि सरकार कहीं न कहीं तो गलत है। इसने एक ऐसा वातावरण तैयार किया जो सरकार की नीतियों की धज्जी उड़ाने के लिए काफी थी।
किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में तरह सरकार चलाने वालों का व्यवहार भी लोगों में सरकार के प्रति घृणा ही पैदा किया। मसलन तसलामा नसरीन के मुद्दे से लेकर सिंगुर और नंदीग्राम के मुद्दे पर पार्टी के आला नेता विमान बसु. विनय कोन्नार और खुद मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य का रवैया अल्पसंख्यकों को बेहद नाराज करने वाला रहा। इनकी जगह अनिल विश्वाश होते तो शायद विपक्ष इन मुद्दों को इतना भुना नहीं पाता। इसका सीधी अर्थ यह भी है कि पिछले दो साल में सरकार को डांवाडोल करने वाले रिजवानुर रहमान, तस्लीमा नसरीन, सिंगुर और नंदीग्राम के साथ खेती की जमीन के अधिग्रहण के तमामा मुद्दे पर ज्योति बसु को छोड़कर बाकी राज्य के माकपा के कर्णधारों का रवैया किसानों और अल्पसंख्यकों को नाराज करने वाला ही रहा। नतीजे में लालदुर्ग में तृणमूल ने आसानी से सेंध लगा ली। अगर यह शहरी इलाका होता माकपा को कम परेशानी होती मगर गांवों में तृणमूल का बढ़ता जनाधार वाममोर्चा के लिए खतरे की घंटी है।
चुनाव के बाद हिंसा तो अब भी नंदीग्राम में जारी है। नीचे दिए गए कुछ फोटो देखिए जो सरकार की उस मनमानी की कहानी कह रहे हैं जिसने आज वाममोर्चा को कुछ हद तक कमजोर कर दिया है और ऐसा बंगाल में वाममोर्चा के साथ पहली बार हुआ है।

टाटा की वह नैनो कार जिसका कारखाना सिंगुर में विवाद का विषय बना।


तापसी मलिक। सिंगुर में टाटा मोटर कारखाना स्थल से इसकी जली लाश बरामद हुई। सरकार के विरोध का इसे भी भिगतना पड़ा खामियाजा।


सरकार का विरोध करने वालों के तहस-नहस कर दिया गए घर।


नंदीग्राम में खाली कराए गए एक गांव में लहराता माकपा का झंडा।


नरसंहार के बाद खाली पड़े वे गांव जिन पर माकपा कैडरों ने पुनर्दखल का दावा किया।


बूथ रिगिंग करने के आरोप में इन लोगों को पकड़ी है पुलिस


अंततः ११ मई से शुरू हुए पंचायत चुनाव। नंदीग्राम में वोट डालने कतारबद्ध महिलाएं। बुलेट को बैलेट की ताकत दिखाने का वक्त आ गया था।


हिंसा में मारे गए बेकसूर लोगों के शव


नंदीग्राम में फायरिंग से दीवालों पर गोलियों के निशान


नंदीग्राम में नरसंहार की खबर के बाद ममता भी रवाना हुई नंदीग्राम। सभी को रास्ते में रोक लिया गया।


मेधापाटकर हिंसाग्रस्त नंदीग्राम को रवाना होती हुईं


बुद्धिजीवी सड़कों पर

कोलकाता में नंदीग्राम की हिंसा और सरकार के पुनर्दखल के बयान से बौखलाए बुद्धिजीवी सड़कों पर उतरे


नंदीग्राम में हिंसा के खिलाफ कोलकाता में बुद्धिजीवियों की रैली


नंदीग्राम में तैनात सीआरपीएफ जवान


पंचायत चुनाव में इस तरह ममता ने लगाई सेंध
पूर्वी मिदनापुर ज़िले में ज़िला परिषद की 53 सीटों में से 36 तृणमूल कांग्रेस के कब्ज़े में आई है।इसी जिले में नंदीग्राम है। तीन चरणों में हुए पंचायत चुनावों में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी और दस से ज़्यादा लोग मारे गए थे। पिछले पंचायत चुनाव में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी यानी सीपीएम के नेतृत्व में वाम मोर्चे ने नंदीग्राम की 24 में से 19 पंचायत समितियों में जीत हासिल की थी। भूमि अधिग्रहण को लेकर तृणमूल कांग्रेस नीत भूमि उच्छेद प्रतिरोध समिति और माकपा के बीच विवाद में पिछले दो वर्षों में नंदीग्राम में काफी हिंसा हुई है और कई लोग मारे गए हैं। वाम मोर्चा को सिंगूर में भी करारा झटका लगा है। यहीं पर टाटा मोटर्स की प्रतिष्ठित नैनो कार परियोजना का निर्माण स्थल है। माकपा का पारंपरिक गढ़ रहे इस जिले में 1978 के बाद ऐसा पहली बार हो रहा है, जब जिला परिषद पर उसका नियंत्रण खत्म हो गया है। इस जिले में मिली हार इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यहीं ऐतिहासिक तेभागा कृषक विद्रोह हुआ था। पिछले तीन दशकों से इस जिले की जनता पार्टी के साथ दृढ़ता से खड़ी थी।

वाम मोर्चे के परंपरागत गढ़ दक्षिण चौबीस परगना में सीपीएम को 1978 के बाद पहली बार ज़िला परिषद में हार का सामना करना पड़ा है। यहाँ ग्राम पंचायत की 73 में से 34 पर तृणमूल ने जीत दर्ज की है, जबकि पांच पर उसकी सहयोगी सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर के उम्मीदवार जीते हैं। जिले में वाम मोर्चा सरकार को ऐसे समय में झटका लगा है, जब वह नॉलेज सिटी और हेल्थ सिटी जैसी अनेक मेगा परियोजनाएँ शुरू करने की योजना बना रही है। इस जिला परिषद पर माकपा का कब्जा लगातार पिछले छह कार्यकाल से था। तृणमूल कांग्रेस ने कुल्पी पंचायत समिति में जबरदस्त जीत हासिल की। वहाँ पार्टी ने 31 सीटें जीतीं। माकपा को महज पाँच सीटों से संतोष करना पड़ा जबकि कांग्रेस को एक सीट पर जीत मिली।
वाम मोर्चा ने हालाँकि मुर्शिदाबाद जिला परिषद का नियंत्रण कांग्रेस से छीन लिया। इस क्षेत्र से कांग्रेस के कद्दावर नेता प्रणब मुखर्जी और दो अन्य नेता अधीर चौधरी तथा मन्नान हुसैन 2004 में लोकसभा पहुँचे थे। उत्तरी दीनाजपुर जिला परिषद सीटों पर कांग्रेस ने माकपा से कब्जा छीन लिया। इस बार पंचायत चुनाव में भूमि अधिग्रहण बड़ा मुद्दा था।

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