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Friday, 7 January 2011

चुनाव या खूनी जंग


मई २०११ में पश्चिम बंगाल विधानसभा के चुनाव होने हैं। चुनाव के लिहाज से पश्चिम बंगाल की फिजा अलग ही होती है। ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस की वाममोर्चा को सत्ता से बेदखल की मुहिम ने माहौल को और गरमा दिया है। १९७७ से लगातार तीन दशक से अधिक समय से पश्चिम बंगाल की सत्ता पर काबिज कम्युनिष्ट सरकार की नींव पिछले पंचायत , लोकसभा और कोलकाता नगर निगम व नगरपालिका चुनावों में हिल चुकी है। अब विधानसभा चुनावों पर भारत समेत पूरी दुनिया की नजर है। कौतूहल भरी इस दिलचस्प लड़ाई का बिगुल बज चुका है। मैं भी अपने ब्लाग के माध्यम से आपको इस जंग से रूबरू कराना चाहता हूं। निरपेक्ष भाव से इस महाभारत की कथा सुनाऊंगा। रखिए मेरे ब्लाग के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव-२०११ धारावाहिक की हर कड़ी पर नजर। पढ़िए दूसरी कड़ी।
ब्लाग नियंत्रक - डा.मान्धाता सिंह
 धारावाहिक : पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव-२०११ ( भाग-2 )

चुनाव या खूनी जंग


पश्चिम बंगाल में चुनावी संघर्ष की शुरुआत हो चुकी है। आशंका जताई जा रही है कि इस बार का पश्चिम बंगाल चुनाव खून खराबे का हर रिकार्ड तोड़ देगा। लालगढ़ में हर्मद वाहिनी के मुद्दे पर जो वाकयुद्ध ममता बनर्जी और बुद्धदेव भट्टाचार्य में चल रहा है वह अब खून कराबे की शक्ल अख्तियार करने लगा है। ममता ने आरोप लगाया है कि जो यूथवाहिनी लालगढ़ में तैनात की गई है दरअसल में वह हथियारबंद माकपा कैडर हैं। ऐसे लोगों को ममता हर्मदवाहिनी कहती हैं। माकपा ने इस शब्द पर कड़ा प्रतिवाद किया है। इसी आशय की मुख्यमंत्री बुद्धदेव को लिखी गई चिट्ठी ने तो पश्चिम बंगाल की राजनीति में भूचाल खड़ा कर दिया है। अब उसके आगे ममता के लोग लालगढ़ में हर्मदवाहिनी के सबूत पुख्ता कर रहे हैं और साबित करने में तुले हैं कि खूनखराबा यही हर्मदवाहिनी के लोग करके इलाका दखल कर रहे हैं। इलाका दखल की इसी लड़ाई ने सिंगुर, नंदीग्राम की जंग को अंजाम दिया था। छोटा अंगुरियाकांड भी शायद आप नहीं भूले होंगे जिसमें एक घर में सभा कर रहे तृणमूल के लोगों को घर समेत विस्फोट करके उड़ा दिया गया था और आरोप माकपा पर लगा था।

ठीक वैसी ही घटना आज लालगढ़ में घटी। एक घर में जुटे माकपा कार्यकर्ताओं को जब लोगों ने घेरा तो भीतर बैठे माकपा के लोगों ने अंधाधुंध फायरिंग कर दी जिसमें  पांच लोग मारे गए और २० लोग जख्मी होगए हैं। पांच और की हालत नाजुक है। इस घटना के बाद से पश्चिम बंगाल में बंद की अफवाह फैली हुई है। लोग बदले की कार्रवाई में और खूनखराबा होने की आशंका से सहमें हुए हैं। जब कि अभी चुनाव में चार महीने बाकी हैं। बहरहाल भाषा समाचार एजंसी की वह खबर पढ़िए जिसने फिर लालागढ़ समेत बंगाल में भय का माहौल पैदा कर दिया है।

अंधाधुंध फायरिंग में मारे गए

पश्चिम मिदनापुर के लालगढ़ क्षेत्र में एक महिला समेत पांच लोग तब मारे गए, जब गांववालों ने माकपा कार्यकर्ताओं के द्वारा एक घर का इस्तेमाल होने के संदेह में उसका घेराव किया, इसी दौरान घर के भीतर से गोली बरसाई गई। इस घटना में 20 से ज्यादा लोग घायल हो गए।

जिले के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने प्रेट्र को बताया कि पांच लोगों की मौत हो गई और 20 से ज्यादा लोग तब घायल हो गए, जब लालगढ़ पुलिस थाना क्षेत्र के बेलाटिकरी ग्राम पंचायत के नेताई गांव में एक घर के अंदर से गोलीबारी होने लगी। उन्होंने कहा मृतकों में एक महिला भी शामिल है। घायलों को अस्पताल पहुंचाया गया जहां पांच की हालत नाजुक बनी हुई है।

मृतकों की शिनाख्त फूलकुमारी , सौरभ घोराई, श्यामनंदा घोरोई, कबलू पात्र और धिरेन सेन के तौर पर की गई है। यह पूछे जाने पर कि उस घर को माकपा के सशस्त्र कैंप की तरह इस्तेमाल किया जा रहा था, उन्होंने कहा, ‘‘हमलोग इसकी जांच कर रहे हैं।’’ इस संबंध में जब लालगढ़ माकपा के नेता चांदी किरण से संपर्क किया गया तो उन्होंने कहा, ‘‘मैं अभी एक निजी दौरे पर पश्चिम मेदिनीपुर में हूं, इसलिए अभी कुछ नहीं कह सकता।’’ ( कोलकाता, ७ जनवरी - भाषा )

Friday, 3 April 2009

वादा तेरा वादा, वादे पे तेरे..............।

लगभग सभी दलों ने जनता से वोट पाने के लिए वादे कर डाले हैं। सिर्फ पांच साल बाद ही वादों का यह मेला लगता है। और हर बार जनता को मूर्ख बनाने के भरपूर प्रयास ( वायदे ) यह सोचकर किए जाते हैं कि जनता को पिछला कुछ याद नहीं रहता। बेचारी जनता भी आखिर भूले नहीं तो क्या करे। सर्वशक्तिमान जो ठहरी। शायद इसी लिए क्षमा मुद्रा में आ जाती है। नए वायदे में फिर उम्मीदों को पाल लेती है। तभी तो सबकुछ झूठ-सच जानते हुए भी इनके मजमों में जुटती है और अंततः वोट देकर जिता भी देती है। हर जीतने वाले से यह उम्मीद भी रहती है कि इस बार उसे कम ठगा जाएगा। मगर हकीकत यही है कि उसे ठगे जाने का क्रम कभी बंद नहीं हुआ है। खजाने और पैसे का रोना रोकर नौकरीपेशा लोगों की उन उम्मीदों को रौंदा जिनसे कम आय नौकरी पेशा लोगों का जीवन चलता है। १४ प्रतिशत से लाकर अब ८.३० प्रतिशत पर भविष्यनिधि के ब्याज को रख छोड़ा। जबकि इससे ज्यादा कई बैंक सूद दे रहे हैं। कोई इन लोगों से यह पूछे कि इतने सारे वेतनमान बढ़ाने और बैंकों वगैरह को हजारों करोड़ रूपए कहां से दिए गए। थोक के भाव में नौकरियां बांटी तो उसी अनुपात में मंदी बताकर छीन भी लिया।
शिक्षा को बाजार बनाकर आम लोगों की पहुंच से बाहर कर दिया। या फिर उन्हें मंहगी पढ़ाई के नाम पर कई सालों के लिए कर्ज में डुबो दिया। कर्ज का सब्जबाग दिखाकर किसानों समृद्ध करने का ऐसा सब्जबाग दिखाया कि कर्ज में डूबे किसान आत्महत्या करने पर मजबूर हो गए। यह सब हर चुनाव में बेहतर बनाने के बायदे के बावजूद हुआ। सरकारी और सस्ते स्वास्थ्य सुविधा देने वाले अस्पताल बदहाल और नर्सिंग होम फलफूलकर इलाज के नाम पर लूट मचा रहे हैं। यह सब किस आम आदमी के हित में किए जा रहे हैं। नौकरी, शिक्षा और स्वास्थ्य तीनों मोर्चों पर इनके वायदे आम आदमी के लिए फेल हो गए हैं। कृषि की दशा उन किसानों के परिवारों से पूछिए जिनका मुखिया बेहतरी की मृगमरीचिका में जल चुका है। आरएसएस प्रमुख भागवत और अल्पसंख्यकों के सामाजिक संगठनों ने हालांकि चुनाव में वोट के लिए जनता को दिशा निर्देश तो जारी कर दिए हैं कि राषट्रहित और समाज हित में मतदान करें मगर इसकी कौन गारंटी देगा कि यहां से संसद पहुचते ही इन नेताओं को जनता से किए वायदे याद रहेंगे। यहां तो हर ख्वाहिश पर जनता को दर-दर की ठोकरें खाना है। वायदे तो वायदे ही होते हैं जो फिर पांच साल बाद दुहराए जाएंगें मगर इसे अपराध कब माना जाएगा। क्या देश की ऐसी कोई जनता की अदालत नहीं बन सकती जहां पूरे पांच साल बीतने पर देश और जनता से किए वायदे पूरे न करने पर इन्हें अपराधी ठहराकर सजा का प्रावधान हो। यह भी प्रावधान हो कि ऐसे लोग राजनीति के लिए अयोग्य करार दिए जाएं। और कोई नहीं तो चुनाव आयोग कोही इस हिसाब किताब की जिम्मेदारी सौंपी जानी चाहिए। वायदों और उनके पूरे होने व न होने का ब्यौरा आम जनता के सामने रखा जाना चाहिए। जनता के साथ वायदों का मजाक करने वालों के खिलाफ कड़ी सजा का भी प्रावधान होगा तभी राजनीति से भ्रष्टाचार भी खत्म हो पाएगा। ऐसा नहीं होगा तो आखिर जनता के साथ वायदों का यह मजाक कब रुकेगा ? बहरहाल वायदों का सब्जबाग कुछ दलों ने विस्तार से दिखाया है। आप भी बानगी लीजिए और इन्हें इसलिए याद रखिए क्यों कि कोई अदालत बने या न बने मगर आप अपनी अदालत में झूठे वायदे करने वालों को सजा अपनी मुहर से तो दे ही सकते हैं। अमेरिकी जनता ने तो ऐसा कर दिखाया है। अब आपकी बारी है।


घोषणा पत्र जारी, भाजपा फिर राम भरोसे...

http://www.tarakash.com/images/Bjp_manifesto_hindi.pdf ( इस लिंक में भाजपा का मूल घोषणापत्र पढ़ें )
नई दिल्ली. भाजपा ने आज बीजेपी मुख्यालय पर एक समारोह में अपना मैनिफेस्टो जारी किया। घोषणा पत्र जारी करने के लिए आयोजित इस समारोह के दौरान मंच पर पीएम इन वेटिंग लालकृष्ण आडवाणी और राजनाथ सिंह के साथ अटल बिहारी वाजपेयी का फोटो भी लगा था। यह माना जा रहा है कि पिछले विधानसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी को प्रचार से दूर रखने के बाद भाजपा को फिर उनका महत्व समझ आ गया है। भाजपा ने मान लिया है कि अटलजी के बिना पार्टी अधूरी है और इसी कारण उन्हें घोषणा पत्र के कवर पर भी जगह दी गई है।
माना जा रहा था कि भाजपा अपने मैनिफेस्टो में हिन्दुत्व पर लौट सकती है। पिछले चुनावों में भाजपा ने अपना घोषणा पत्र जारी नहीं किया था। एनडीए का कॉमन मिनिमम प्रोग्राम जारी कर भाजपा ने अपने गठबंधन की बात प्रमोट की थी। उम्मीद यह भी की जा रही थी की यह घोषणा पत्र कांग्रेसी मैनिफेस्टो का जवाब होगा।
घोषणा पत्र जारी करने से पहले समारोह में भाजपा का अभियान गीत सुनाया गया। इस दौरान मंच पर आडवाणी, वैंकया, जसवंत सिंह, मुरली मनोहर जोशी, राजनाथ सिंह और अरूण जेटली मौजूद थे। भाजपा के वरिष्ठ नेता रविशंकर प्रसाद ने घोषणा पत्र पढ़कर सुनाया।
भाजपा के इस घोषणा पत्र की खूबियां .......
- २ रूपए गेंहूं चावल
- किसानों को ४ फीसदी पर लोन
- ६ फीसदी पर होम लोन देने का वादा
- सेंट्रल सेल्स टेक्स खत्म होगा
- रेहड़ी वालों को ४ फीसदी पर लोन
- पोटा कानून लाएंगे
- विदेश में जमा काला धन वापस लाएंगे
- एफबीटी खत्म करेंगे ( फ्रिंज बैनिफिट टैक्स )
- गांवो को पक्की सड़क
- आयकर में छूट
- रामसेतु नहीं टूटने देंगे
- पर्यटन क्षेत्रों को बढावा
- पूर्ण ऊर्जा व सड़क संपर्क स्थापित करने देंगे
- जनसुरक्षा बढ़ाई जाएगी
- भारत बांग्लादेश बाड़ लगाने का काम पूरा
- माओवादियों , आतंकवादियों के खिलाफ अभियान
- अलगवावादी, आतंकवादी समर्थित देशों पर दबाव नीति
- जय जवान सैन्य बलों अर्धसैनिक बलों को आयकर मुक्त
- सैन्य बलों के लिए पृथक वेतन आयोग का गठन
- सेनाओं और पैरामिलिट्री फोर्स को वेतन पर आयकर में छूट
- बिजली का उत्पादन निर्भरता कम
- मध्य प्रदेश की लाड़ली लक्ष्मी को पूरे देश में
- धारा 370 हटाएंगे
- सस्ती शिक्षा
- 2014 तक सभी के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं
- घर पर एम्बुलैंस की व्यवस्था, नए एम्स की स्थापना पुर्नजीवित
- ग्लोबल वॉर्मिंग को रोकने के लिए कार्यक्रम
- अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनाएंगें
- वरिष्ठ नागरिकों की पेंशन कर मुक्त
भाजपा ने उन चीजों को भी अपने मैनिफेस्टो में शामिल किया है जो कांग्रेस से कहीं छूट गए थे। राजनाथ सिंह ने अंत में मैनिफेस्टो कमेटी के अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी समेत सभी को धन्यवाद दिया जिन्होंने घोषणा पत्र तैयार करने में मदद की है। राजनाथ सिंह ने कहा कि उन्होंने राजनीतिक , आर्थिक, सामाजिक , सांस्कृतिक सभी पक्षों को ध्यान में रखते हुए पत्र तैयार किया है। इसमें भाजपा की दार्शनिक अवधारणा को ध्यान में रखा गया है, यह संतुलित है। उन्होंने कहा कि यह अन्य पार्टियों के घोषणा पत्र की तरह विचार शून्य नहीं है। हमने यह केवल वादे नहीं किए हम इसका अक्षरशः पालन करेंगे, हर साल इसकी समीक्षा करेंगे। इस मौके पर आडवाणी ने कहा की घोषणा पत्र के अनुसार हम यह सारे वादे पूरे करना चाहते हैं। हम देश को सुरक्षा देना चाहते हैं। उन्होंने सैन्य सेवाओं को ज्यादा से ज्यादा आर्थिक फायदा पहुंचाने का वादा किया, उन्होंने वीरता पुरस्कारों की राशी को 30000 रूपए तक बढ़ाने की बात भी कही।

सामाजिक संगठनों ने तैयार किया घोषणा पत्र

नई दिल्ली। राजधानी के सामाजिक संगठनों ने संसदीय चुनाव के लिए जनता का घोषणा पत्र तैयार किया है। सोमवार को जारी घोषणा पत्र में संगठनों ने मांग की है कि प्रवासी मेहनतकश मजदूरों के लिए भोजन, वस्त्र, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य की जिम्मेवारी सरकार की हो। इसके अलावा संगठित व असंगठित क्षेत्र के दलित सफाई कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान की जाए एवं हाईकोर्ट के अंतरिम निर्णय का पालन किया जाए। लाडली योजना को समानता एवं निरंतरता के आधार पर पुन: लागू किया जाए। कूड़ा बीनने वाले मजदूरों को सरकारी योजना में स्थान मिले एवं बच्चों के लिए स्कूल की व्यवस्था की जाए। राष्ट्रीय स्तर पर प्रवासी मजदूर आयोग बनाया जाए। घोषणा पत्र बनाने वाले संगठनों में दलित अधिकार शोध एवं संदर्भ केंद्र, सक्षम, लेबर एजुकेशन एंड डवलपमेंट सोसाइटी, ज्ञान उदय, बाल विकास धारा आदि संगठन प्रमुख हैं।

माकपा का घोषणा पत्र : प्रमुख मुद्देपरमाणु नीति

- 123 के समझौते पर पुनर्विचार। इसमें अहितकारी प्रावधानों को हटाने का वादा।
विदेश व रक्षा नीति
- अमेरिका के साथ सामरिक गठजोड़ खत्म करेंगे। - दस वर्षीय रक्षा सहयोगसमझौता भी समाप्त होगा। - किसी भी अंतरराष्ट्रीय संधि को संसद की मंजूरी को अनिवार्य करने के लिए संविधान में संशोधन होगा।
आर्थिक नीति
-यूपीए की नव उदारवादी आर्थिक नीतियों की आलोचना। -वार्षिक योजना के खर्च में सकल घरेलू उत्पाद की तुलना में 10 फीसदी बढ़ोतरी का वादा। -कॉपरेरेट घरानों को करों में मिलने वाली छूट बंद होगी। -काले धन की बरामदगी के लिए अभियान चलेगा। -बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को 26 से बढ़ाकर 49 फीसदी करने के प्रस्ताव का विरोध। -बीमा क्षेत्र के निजीकरण को भी समर्थन नहीं।
कृषि नीति
-न्यूनतम समर्थन मूल्य के दायरे में आने वाली फसलों की संख्या बढ़ेगी।
उद्योग व श्रम नीति
-घरेलू उद्योगों को संरक्षण। -मजदूरों व अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए श्रम कानूनों पर सख्ती से अमल और समान अवसर आयोग के गठन का वादा।
लोक लुभावन वादे
-पेट्रोल व डीजल की कीमतें घटाने के लिए आयात व उत्पाद शुल्क में कटौती होगी। -सार्वजनिक क्षेत्र को मजबूती देंगे। -विधायिका में महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण देने के लिए बिल लाएंगे। -पिछड़े मुसलमानों को अन्य पिछड़ी जातियों के आरक्षण कोटे में शामिल करने की घोषणा। -भ्रष्टाचार रोकने के लिए पार्टी लाएगी लोकपाल विधेयक। -अनुच्छेद 355 व 356 में संशोधन।
तृणमूल कांग्रेस का घोषणापत्र
Tuesday 24 Mar, 2009 08:51 PM कोलकाता। अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस ने सोमवार को अपना चुनाव घोषणा पत्र जारी कर दिया। 80 पृष्ठों से ज्यादा के घोषणा पत्र में धर्मनिरपेक्षता, विकास, स्थायी सरकार के निर्माण में पार्टी के योगदान को रेखांकित किया गया है। कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, पर्यटन, कर प्रक्रिया का सरलीकरण, जमीन अधिग्रहण कानून में बदलाव, छोटे व मझोले उद्योगों को संरक्षण समेत विविध विषयों पर पार्टी की नीतियों को घोषणा पत्र में जगह दी गई है।

पार्टी का घोषणा पत्र जारी करते हुए तृणमूल नेत्री ममता बनर्जी ने कहा कि पार्टी केन्द्र में धर्मनिरपेक्ष सरकार को समर्थन देने पर प्रतिबद्ध है। पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठजोड किया है। केन्द्र में पार्टी भाजपा के साथ नहीं जाने वाली है। यह पूछे जाने पर कि क्या चुनाव के बाद कांग्रेस, लेफ्ट का साथ नहीं लेगी। इस पर ममता ने कहा कि कांग्रेस के साथ तृणमूल का गठजोड इसी शर्त पर हुआ है कि कांग्रेस चुनाव के बाद लेफ्ट का साथ नहीं लेगी।

घोषणा पत्र के आमुख पृष्ठ के ऊपरी हिस्से में पार्टी का नारा मां, माटी और मानुस को जगह दी गई है। नीचे की ओर पार्टी की नीतियां धर्मनिरपेक्षता और विकास को जगह दी गई है। अंदर के पन्नों में राज्य सरकार की विफलता को रेखांकित करते हुए पार्टी ने अपनी नीतियों को विस्तार से जगह दी है।

कर प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए अलग अलग करों की जगह इकलौता कर लगाने के वायदे को प्रमुखता से जगह दी गई है। जमीन अधिग्रहण कानून में संशोधन व कृषि आधारित उद्योगों के विकास को भी घोषणा पत्र में महत्व दिया गया है। अल्पसंख्यकों के विकास, उर्दू, भोजपुरी व मैथिली को जरूरी सम्मान देने की बात कही गई है।


दीघा को गोवा, कोलकाता को लंदन बनाएगी तृणमूल घोषणा पत्र में ममता बनर्जी के वक्तव्य के नीचे ही दीघा को गोवा, कोलकाता को लंदन व उत्तर बंग के पर्यटक केन्द्रों को स्विटजरलैंड बनाने का वायदा किया गया है। संवाददाता सम्मेलन में ममता ने कहा कि राज्य में प्राकृतिक संसाधनों की भरमार है। पार्टी इन क्षेत्रों के विकास पर खासा जोर देगी। पार्टी राज्य से प्रतिभा पलायन रोकने के लिए रोजगार के अवसर जुटाएगी।


काग्रेस का घोषणापत्रTuesday 24 Mar, 2009 08:49 PM नई दिल्ली। कांग्रेस ने अगले लोकसभा चुनावों में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को ही पीएम पद के उम्मीदवार के रूप में पेश किया है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने आगामी लोकसभा चुनाव के लिए आज पार्टी का चुनाव घोषणा पत्र जारी करते हुए जनता से अपील की कि वह सरकार के कामकाज और नीति को ध्यान में रखते हुए पार्टी और डॉ. सिंह को जनादेश दे।

सोनिया ने कहा कि प्रधानमंत्री पद के कई उम्मीदवार हो सकते हैं लेकिन मनमोहन सिंह के आगे कोई अन्य नहीं टिकता। मनमोहन सिंह देश के काबिल और अनुभवी प्रधानमंत्री हैं। इस पद के लिए सबसे बेहतर उम्मीदवार मनमोहन सिंह ही हैं। सोनिया ने कहा कि वो अपनी स्थिति पर तटस्थ हैं और भविष्य में भी पीएम नहीं बनेंगी। वहीं, राहुल गांधी के पीएम बनने के बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में श्रीमती सोनिया गांधी ने कुछ नहीं कहा और घोषणापत्र का कवर पेज दिखाकर मनमोहन सिंह की ओर इशारा कर दिया।

सोनिया ने ने कहा कि जनता वही सरकार चुनें जो देश को स्थायित्व और निरंतरता दे सके। वरूण गांधी के बारे में पूछे गए सवालों से सोनिया बचती ही रहीं और इस मामले में कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। इस मौके पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी भी मौजूद थे। लेफ्ट से समर्थन के बारे में भी सोनिया चुप रहीं और कहा कि चुनाव के बाद ही इस पर कोई निर्णय लिया जाएगा।

थर्ड फ्रंट एक दिशाहीन मोर्चा : मनमोहन सिंह
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि हाल ही बनाए गए थर्डफ्रंट के पास एक दिशाहीन सोच है। कांग्रेस के चुनावी घोषणापत्र जारी किए जाने के मौके पर मनमोहन सिंह ने तीसरे मोर्चे के अलावा भाजपा और लेफ्ट की सोच को भी दिशाहीन बताया। प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार ने वर्ष 2004 में किए गए सभी वादे पूरे किए हैं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ही एक ऎसी पार्टी है जिसका विस्तार पूरे देश में है। घेाषणापत्र में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों को तीन रूपए प्रति किलो चावल का वादा किया गया है।

वरूण को प्रत्याशी बनाना देशहित में नहीं
वरूण गांधी के भाषण को आपत्तिजनक बताते हुए उन्होंने कहा कि भाजपा उनका साथ देकर गलत कर रही है। वरूण को प्रत्याशी बनाना देशहित में नहीं है।

परमाणु करार सबसे बडी उपलब्धि
मनमोहन सिंह ने यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान अमरीका के साथ परमाणु करार को अहम उपलब्धि बताया। उन्होंने कहा कि सरकार ने हर मोर्च पर सफलता पाई है फिर चाहे वो आतंकवाद से मुकाबला हो या मंदी से निपटना। उन्होंने कहा कि चीन के बाद भारत सबसे ज्यादा विकासशील देश है। मंदी के बावजूद भारत के हालात कहीं बेहतर हैं। हालांकि, पीएम ने माना कि इस साल विकास दर में जरूर थोडी गिरावट देखने को मिली है लेकिन इसमें जल्द ही सुधार होगा।

Monday, 7 April 2008

माकपा और प्रकाश करात दोनों की होगी अग्नि परीक्षा


लालबंगाल के युगपुरुष ज्योति बसु की पार्टी और राजनीति में भूमिका कम कर दी गई है। इसके लिए काफी पहले ज्योति बसु और हरकिशन सिंह सुरजीत ने आग्रह भी किया था। माकपा की १९वीं पार्टी कांग्रेस ने पोलित ब्यूरों के १५ सदस्यों में इनका नाम दर्ज नहीं किया। बसु को पोलितब्यूरो का और सुरजीत को केंद्रीय समिति का आमंत्रित सदस्य का दर्जा दिया गया है। प्रकाश करात के अलावा पार्टी कांग्रेस ने केरल के मुख्यमंत्री वी. एस. अच्युतानंदन, बुद्धदेव भट्टाचार्य और मानिक सरकार, सीताराम येचुरी, सीटू अध्यक्ष एम. के. पांधे. पी. विजयन, एस रामचंद्रन पिल्लै, और बिमान बोस को पोलित ब्यूरो का सदस्य बनाए रखा है। के. वरदराजन, बी. पी. राघावुलु और बृंदा करात पोलित ब्यूरो के अन्य सदस्य हैं। पार्टी कांग्रेस ने 17 नये सदस्यों समेत 87 सदस्यीय नयी केंद्रीय समिति का भी चुनाव किया। इन सदस्यों में केरल के वित्त मंत्री थॉमस इसाक और पश्चिम बंगाल के मंत्री गौतम देव शामिल हैं।
पोलित ब्यूरो माकपा का नीति निर्धारण का सर्वोच्च मंच है। इसकी सदस्यता का अर्थ है पार्टी में अहमियत का बढ़ जाना। मगर बसु और सुरजीत इन मायनों से ऊपर हैं। छह दिनों तक पोलित ब्यूरो के विचार मंथन के बाद प्रकाश करात को पोलित ब्यूरो का दुबारा महासचिव बनाया जाना भी यह संकेत है कि पार्टी ने न सिर्फ भरोसा जताया बल्कि उनपर अगले लोकसभा चुनाव की जिम्मेदारी भी डाल दी है। इसका लक्ष्य होगा तीसरे विकल्प की तलाश। करात ने दिल्ली में २००५ में हरकिशनसिंह सुरजीत से यह उत्तराधिकार हासिल किया था। अब यह भी जिम्मेदारी करात पर है कि उत्तर भारत में माकपा के विस्तार के लिए क्या कर सकते हैं जबकि इस बार हरकिशनसिंह सुरजीत के बाद पोलित ब्यूरो में उत्तर भारत का कोई प्रतिनिधि नहीं है।

रिटायर हो गए सभी संस्थापक कामरेड
बहरहाल माकपा की स्थापना के ४४ साल बाद यह पहला पोलित ब्यूरो है जिसमें कोई संस्थापक सदस्य नहीं है। नौ संस्थापक सदस्यों की यह आखिरी जोड़ी थी जिसने खुद के लिए आराम मांगा और मिल भी गया। कोलकाता में हुए एक सम्मान समारोह में ज्योति बसु ने कहा था कि- कामरेड कभी रिटायर नहीं होता। सच भी है। ज्योति बसु अभी भी आमंत्रित सदस्य हैं। हों भी क्यों नहीं अपने समकक्षीय सुरजीत से दो साल बड़े होते हुए भी मानसिक और शारीरिक तौर पर उनसे काफी ठीक हैं। इन दोनों के नाम यह भी रिकार्ड है कि इन दोनों ने स्वेच्छा से अवकाश लिया जबकि बाकी सात या तो निधन या खुद पोलित ब्यूरो से जुदा हुए।
११ अप्रैल १९६४ में भाकपा से मतभेद के बाद ३२ सदस्यों ने आंध्रप्रदेश के तेनाली में स्थापना के अगले ही साल सम्मेलन किया। यहीं पर तय हुआ कि अलग पार्टी माकपा का गठन किया जाएगा। औपचारिक तौरपर सीपीएम का गठन कोलकाता में १९६४ में ३१ अक्तूबर से ७ नवंबर तक चली सातवीं कांग्रेस में हुआ। प्रथम पोलित ब्यूरो का गठन हुआ। इसके नौ संस्थापक सदस्य थे-
१- पी. सुन्दरैया
२- एम. बासवपुनैया
३- ईएमएस नम्बूदिरिपाद
४- ए. के. गोपालन
५- बी. टी. रणदिवे
६- पी. रामामूर्ति
७- प्रमोद दासगुप्ता
८- ज्योति बसु
९- हरकिशन सिंह सुरजीत
पोलित ब्यूरो के ये संस्थापक सदस्य ही भारतीय राजनीति के इतिहास में माकपा की वह नींव डाली जिसके बलबूते माकपा किंगमेकर बन गई है। पोलित ब्यूरो के ये पितामह आजादी के संघर्ष के दिनों में साथ-साथ बैठकें किए, जेल गए या फिर भूमिगत रहे। यह जरूर है कि माकपा के गठन के बाद नक्सलवादियों के अलग होने तक इन नौ धुरंधरों के बीच भी दरार पड़ी। यह विचारों के टकराव के कारण हुआ। मसलन पहले महासचिव पी सुन्दरैया पोलित ब्यूरो के इस फैसले से सहमत नहीं थे कि माकपा का मासपार्टी में तब्दील किया जाए। यह सैद्धांतिक विरोध इतना गहराया कि १९७६ में उन्होंने पोलित ब्यूरो छोड़ दी। तब भारत में आपातकाल लगा हुआ था। औपचारिक तौर पर उन्हें तब पद से हटाया गया जब उनकी जगह आपातकाल हटने के बाद माकपा की १९७८ में हुई १०वीं पार्टी कांग्रेस में ईएमएस नम्बूदिरिपाद महासचिव बना दिए गए। इस लिहाज से सुन्दरैया पहले संस्थापक सदस्य थे जिन्होंने पद पहले छोड़ा और निधन १९८५ में हुआ। मगर माकपा सबसे लोकप्रिय और जमीनी नेता गोपालन पद पर रहते हुए १९७७ में अपने कामरेड साथियों को अलविदा कह गए। इनकी जगह १९८३ में प्रमोददासगुप्ता को लाया गया। सुन्दरैया के बाद तमिलनाडु के मजदूर नेता पी रामामूर्ति १९८७ में निधन से पहले ही पोलित ब्यूरो छोड़ गए। तीन और संस्थापक सदस्य- रणदिवे, वासवपुनैया और नम्बूदिरिपाद आखिरी समय तक पोलित ब्यूरो से जुड़ रहे। १९९० तक इन तीनों का क्रमशः निधन हो गया।



बसु और सुरजीत की लंबी पारी
१९वीं पार्टी कांग्रेस इसी लिहाज से ऐतिहासिक रही कि इसने अपने दो संस्थापकों ज्योति बसु और हरकिशन सिंह सुरजीत को उनके ही आग्रह पर कार्यमुक्त कर दिया। इन दोनों ने अपनी लंबी पारी में माकपा को वहां पहुंचाया है जहां वह केंद्र सरकार की नीति नियामक बन गई है। इनका सबसे बड़ा योगदान अपने बेहतर उत्तराधिकारी तैयार करना और मजबूत कैडर आधारित संगठन तैयार करना रहा है। नए तेजतर्रार नेताओं की ऐसी जमात खड़ी कर दी है जो उनकी विरासत संभालने में सक्षम है। इनके इस कार्य से दूसरे दलों को सीखना चाहिए कि संगठन तभी मजबूत रह सकता है जब उभरते हुए प्रतिभाशाली पार्टी कैडरों का ईर्ष्या का शिकार नहीं बनाकर उनको और आगे बढ़ने को न सिर्फ प्रोत्साहित किया जाए बल्कि नई प्रतिभाओं के सम्मानपूर्वक पार्टीं में जिम्मेदारी देकर प्रशिक्षित किया जाए। माकपा के संस्थापक सदस्यों खासतौरपर इस आखिरी जोड़ी ने यह भूमिका बखूबी निभाई। बंगाल में मजबूत सत्ता कायम रहने के पीछे ज्योति बसु की यही कार्यप्रणाली कारगर सिद्ध हुई। अभी माकपा जिन हाथों में सौंपी गई है उनमें से प्रकाश करात पहले महासचिव सुन्दरैया और गोपालन की ईजाद हैं। इतना ही नहीं इन्हें तीसरे सेस्थापक नम्बूदिरिपाद से भी सीखने को मिला।
पश्चिम बंगाल के मौजूदा मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य, और बंगाल में पार्टी का कामकाज देख रहे विमान बोस भी प्रमोददासगुप्ता और ज्योति की प्रेरणा से माकपा के कर्णधार बने। माकपा के बड़े और लोकप्रिय नेता सीताराम येचुरी को प्रेरणा तो बासवपुनैया से मिली मगर राजनीति के हुनर के मामले में उनके गुरू हरकिशन सिंह सुरजीत हैं।


केंद्रीय राजनीति में सुरजीत ने फहराया लाल झंडा
हरकिशनसिहं सुरजीत वह नाम है जिसने ४४ सालों से माकपा का लाल झंडा बुलंद कर रखा था। ९२ वर्षीय यह वही कामरेड है जिसने २००४ में यूपीए सरकार के गठन में अहम भूमिका निभाई। १९६४ में जब भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी के विभाजन के बाद माकपा बनी तो ऐसा नहीं लगता था कि बाद में चलकर यही भाकपा से बड़ी पार्टी बन जाएगी। हिंदी इलाकों में माकपा ( देखें इसी पास्ट के साथ पीडीएफ लेख- हिंदी इलाकों में सिकुड़ गई है माकपा ) हालाकि वह सम्मानजनक स्थिति नहीं हासिल कर पाई जो तब और अब भी भाकपा को हासिल है मगर तीन राज्यों केरल, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल माकपा के गढ़ बन गए हैं। यह अलग बात है कि सत्ता पर काबिज होने में उसे भाकपा, फारवर्ड ब्लाक और आरएसपी ने मजबूत सहारा दिया है।

हिंदी क्षेत्रों में माकपा के प्रभावी नही पाने की शायद यह भी वजह रही है कि माकपा ने क्षेत्रीयता के पैमाने से सत्ता को हासिल किया और देश के दूसरे हिस्से में अपना कोई दूसरा ज्योति बसु और ईएमएस नम्बूदिरी पाद पैदा नहीं होने दिया। जालंधर में जन्में इस कामरेड की किंगमेकर की गतिविधियों को माकपा कभी भुला नहीं पाएगी। ज्योति बसु जैसे समर्पित कामरेड ने जहां सजबूत सत्ता के लिए माकपा को बंगाल में समेट लिया वहीं माकपा को राष्ट्रीय राजनीति में जिंदा रखने का स्मरणीय कार्य हरकिशन सिह सुरजीत ने किया। धर्मनिरपेक्ष सरकार कायम कराने में भी आगे रहे। जब केंद्र में भाजपा की सरकार अल्पमत में आ गई थी तब कांग्रेस जैसी धर्मनिरपेक्ष पार्टी के लिए किंगमेकर की सुरजीत ने भूमिका निभाई। यानी १९८९ में विश्वनाथ सिंह की सरकार हो या फिर १९९६ में यूनाइटेड फ्रंट की सरकार या फिर २००४ में यूपीए की सरकार हो सभी के रणनीतिकार हरकिशन किंह सुरजीत ही रहे।
यह माकपा के कर्णधारों की चूक थी अन्यथा १९९६ में सुरजीत की रणनीति देश को वामपंथी प्रधानमंत्री देने की थी। इसके लिए पूरा खाका तैयार हो गया था मगर माकपा की केंद्रीय समिति ने बसु को प्रधानमंत्री बनाने से रोक दिया। बाद में बसु के प्रधानमंत्री न बनाए जाने को ऐसिहासिक भूल भी पार्टी और बसु दोनों को मानना पड़ा। कुल मिलाकर सुरजीत ही वह कामरेड जिनकी सूझबूझ से केंद्र में माकपा समेत वाममोर्चा का महत्व बढ़ा। ज्योति बसु का वामपंथियों के लिए इस मायने में योगदान सराहनीय नहीं रहा। एक क्षेत्र में वामपंथी राजनीति कर रहे बसु ने राष्ट्रीय महत्व को लगभग भुला दिया था। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि वामपंथी सत्ता की मजबूती के लिए बंगाल में जो कुछ हो रहा था उसका असर पूरे देश पर पड़ा।

दरअसल राष्ट्रीयता और क्षेत्रीयता दोनों की राजनीति एकसाथ संभव भी नहीं है। इसी कारण हिंदीक्षेत्रों में वामपंथी आंदोलनों के अगुवा रहे माकपा या भाकपा समर्थकों की जमीन ही खिसक गई। इस क्रम में उत्तरप्रदेश के सिर्फ दो बड़े नेताओं का जिक्र किया जाना काफी होगा जिनकी राजनीतिक सक्रियता पर इस क्षेत्रीयता का असर पड़ा। इनमें से एक गाजीपुर के सरयू पांडेय और दूसरे थे घोषी के झारखंड राय। दोनों ऐसी जमीन के नेता थे जिन्हें मजदूर स्वतः अपना रहनुमा समझते थे। मगर इनका इतना लोकप्रिय होना इस लिए काम नहीं आया क्यों कि तत्कालीन कांग्रेस की चतुर संचालक इंदिरा गांधी ने वामपंथियों के विखंडन का फायदा गरीबी हटाओ नारा देकर उठाया।



सर्वमान्य बनने की अग्नि परीक्षा
बंगाल में बाहरी लोगों के प्रति दुराव की खबरें देश के दूसरे कोने तक पहुंचने लगीं थी। बंगाल की इन खबरों ने वामपंथियों के गढ़ में भी माकपा के समर्थकों के कांग्रेस की तरफ विस्थापन का काम किया। नतीजा बंगाल के हक में तो अच्छा रहा क्यों कि इससे स्थानीय बहुमत उनके पक्ष में गया। ज्योति बसु जैसे माकपा के रणनीतिकार ने समय को भांपकर इस खिचाव को वोट और सत्ता में तबदील कर लिया और उसी ठोस धरातल पर बंगाल में माकपा सत्ता पर काबिज है। नुकसान इसका यह हुआ कि हिंदी क्षेत्रों में वामपंथी जमीन लगभग खिसक ही गई। इसका दुखद पहलू यह भी है कि देशभर के मजदूरों और गरीबों के भरोसे का वामपंथी सिर्फ बंगाल का ही प्रतीक बनकर रह गया। इसका खामियाजा अब देश भी भुगत रहा है और बंगाल भी। जो भी हो मगर माकपा को क्षेत्रीयता के कलंक बंगाल से मिटाने होंगे और राष्ट्रीय क्षितिज पर सर्वमान्य भूमिका में आना होगा। सवाल यह है कि क्या क्षेत्रीयता और राष्ट्रीयता दोनों एक साथ संभव है ? अगर हां तो बंगाल में क्षेत्रीय पार्टी की भूमिका से बाहर निकलना होगा जो बंगाल और देश दोनों के हित में है। प्रकाश करात की यही अग्निपरीक्षा भी है।

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