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Thursday, 24 May 2007

सुंदरबन के बाघ

पश्चिम बंगाल के सुंदरबन डेल्टा के बाघों को बचाने के लिए एक ख़ास अभियान की शुरूआत की जा रही है, इसके तहत बूढ़े बाघों के लिए विशेष सुरक्षित क्षेत्र बनाया जाएगा. जो बाघ बूढ़े हो चुके हैं और ख़ुद शिकार नहीं कर सकते सरकार उनकी देखभाल की ज़िम्मेदारी लेगी ताकि वे अवैध शिकारियों के हत्थे न चढ़ जाएँ. अधिकारियों का कहना है कि इससे बाघों की तादाद में आ रही गिरावट को रोकने में मदद मिलेगी. सुंदरबन के मुख्य वन संरक्षक अतनु राहा ने बीबीसी को बताया कि नई व्यवस्था के तहत 'बाघों के लिए वृद्धाश्रम' बनाया जाएगा. उनका कहना है कि बाघों को उनके प्राकृतिक वातावरण में ही रखा जाएगा ताकि वे ख़ुद को बंधा हुआ न महसूस करें लेकिन उन्हें आबादी से दूर रखा जाएगा क्योंकि बूढ़े बाघ आसान शिकार की तलाश में अक्सर लोगों या पालतू जानवरों पर हमला करते हैं. भारत और बांग्लादेश सुंदरवन मे संयुक्त रुप से बाघों की गणना की योजना बना रहे हैं. बाघों की गिनती जंगल के उस हिस्से मे की जाएगी जो दोनो देशों की सीमा के आर पार फैला हुआ है. जंगल के अधिकारियों का कहना है कि बाघों की पहले की गयी गिनती शायद सही नहीं थी क्योंकि कुछ बाघ छूट गए थे. सुंदरवन दो देशों के बीच बँटा हुआ है लेकिन बाघों को क्या पता कि राजनीतिक सीमाएँ क्या होती हैं. इसलिए उनकी सही गणना के लिए जाने के सीमा के दोनो ओर उनकी गिनती करने की ज़रूरत है. '' मात्र एक ही भौगोलिक क्षेत्र मे बाघों की ये सबसे बड़ी गणना होगी. सुंदरवन के दस हज़ार वर्ग किलोमीटर तक फैले इस क्षेत्र मे अनुमान है कि छह सौ रॉयल बंगाल टाइगर रहते हैं. जंगल के भारतीय क्षेत्र की ओर बाघों की पिछले साल जो गणना की गई थी उसके अनुसार वहाँ 271 बाघ थे. बांग्लादेश की ओर हाल के वर्षों मे ऐसी कोई गणना नही की गई है. पिछले कुछ सालों मे सुंदरवन के मैनग्रोव जंगल मे चोरी से जानवरों के मारे जाने और अवैध रूप से जंगल के काटे जाने के कारण जंगल के बांग्लादेश वाले हिस्से मे बाघों की संख्या काफ़ी कम हुई है. और वो भी इस तरह की रिपोर्टों के बावजूद कि इन सालों मे भारतीय हिस्से मे रहने वाले कुछ बाघ बांग्लादेश की ओर चले गए हैं. संयुक्त राष्ट्र से आर्थिक सहायता प्राप्त करने वाली इस योजना के अंतर्गत न केवल रॉयस बंगाल टाइगरों की गिनती की जाएगी बल्कि उनके रहन सहन, उनके व्यवहार और प्रजनन की स्थिति का भी अध्ययन किया जाएगा. सुंदरवन के भारतीय हिस्से के बाघ प्रतिवर्ष लगभग पचास लोगों की हत्या कर देते हैं. आशा की जा रही है कि उन बाघों की गणना करते समय ये भी पता लगाया जा सकेगा कि कुछ बाघ आदमख़ोर क्यों हो जाते हैं. बाघों के लिए मनुष्य स्वाभाविक भोजन नही हैं. एक बाघ किसी असामान्य स्थिति के बाद ही आदमख़ोर बनता है. जैसे या तो बहुत ही कमज़ोर हाल में वो बड़ा होता है या शिकार करने के लायक नही होता या फिर उसे खाने के लिए पर्याप्त प्राकृतिक पदार्थ नही मिलते. भारत में बाघों की घटती संख्या के बारे में लगातार दी जा रही चेतावनियों के बावजूद एक ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार बाघों की संख्या जैसी अपेक्षा थी उससे कहीं अधिक कम हुई है. भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा बुधवार को जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ राज्यों में बाघों की संख्या अपेक्षा से 65 प्रतिशत कम देखी गई है. पिछली बार 2002 में जब बाघों की गिनती हुई थी तो यह संख्या साढे तीन हज़ार के लगभग थी लेकिन अब विशेषज्ञों का कहना है कि यह संख्या बहुत अधिक आंकी गई है. छत्तीसगढ़ में 2002 में बाघों की संख्या 710 थी जबकि इस समय यह संख्या 290 है. इसी तरह महाराष्ट्र में पिछले पांच वर्षों में बाघों की संख्या 238 से घटकर 95 रह गई है और राजस्थान में 58 से 32 हो गई है. सिर्फ जिम कार्बेट नेशनल पार्क में ही बाघों की संख्या बेहतर देखी गई है जहां अभी भी 500 वर्ग किलोमीटर में 112 बाघ हैं. सौ साल पहले बाघों की संख्या हज़ारों में थी लेकिन अब यह संख्या सैकड़ों में है. अवैध शिकार और घटते जंगलों को इसका सबसे बड़ा कारण बताया जा रहा है लेकिन पिछले कुछ वर्षों में संरक्षण के उपायों के बावजूद बाघों की संख्या लगातार घट रही है. कभी भारत की शान कहे जाने वाले बाघों की संख्या तेजी से घट रही है और वे लुप्त होने के कगार पर हैं. इसके मद्देनज़र टाइगर टास्क फोर्स ने बाघों के संरक्षण के लिए पुख़्ता सुरक्षा उपाय और वन्य जीव अपराध ब्यूरो के गठन की सिफ़ारिश की है. बाघों की घटती संख्या का अंदाज़ा बेहद नाटकीय ढंग से मिला जब राजस्थान के सरिस्का अभ्यारण्य में एक भी बाघ की निशानी नहीं मिली.'सरिस्का शॉक' के सामने आने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाई और मामले की गंभीरता को समझते हुए सरकार ने एक टाइगर टास्क फोर्स का गठन किया. टास्क फ़ोर्स की प्रमुख सुनीता नारायण ने बीबीसी को बताया कि उन्होंने अपनी रिपोर्ट में तीन बातों पर ज़ोर दिया है. पहला बाघों के संरक्षण के लिए जंगलों में सुरक्षा के ठोस इंतज़ाम किए जाएँ, वन्य जीव अपराध ब्यूरो का गठन किया जाए और बाघों के संक्षरण से स्थानीय लोगों को जोड़ा जाए. प्रशासनिक सुस्ती टास्क फ़ोर्स की रिपोर्ट पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में एक बैठक हुई. बाघों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर की कई फ़िल्में बना चुके वन्यजीव संरक्षक वाल्मिकी थापर कहते हैं "इस बैठक में सबने शिकायत की कि वन और पर्यावरण मंत्रालय बहुत सुस्ती से काम कर रहा है और रिपोर्ट पर अमल करने में ढुलमुल रवैया अपनाया जा रहा है." टास्क फ़ोर्स की रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि स्थानीय लोगों को वन विभाग में नौकरियाँ दी जाएँ और उन्हें बाघों के संक्षरण में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए. केंद्रीय पर्यावरण सचिव का कहना है कि वैज्ञानिक तरीक़े से गिनती हो रही है और इस वर्ष के अंत तक बाघों की गिनती का काम पूरा हो जाएगा. अब तक दावा किया जाता रहा है कि भारत में लगभग 3600 बाघ हैं. थापर आशंका व्यक्त करते हैं कि बाघों की वास्तविक संख्या 1200 तक हो सकती है और सरिस्का जैसी हालत कई और जगहों पर हो सकती है. देहरादून स्थित भारतीय वन्य-जीव संस्थान द्वारा की गई बाघों की अखिल भारतीय गणना में कॉर्बेट में प्रति 400 वर्ग किमी में 74 बाघ पाए गये जो कि किसी एक आवास-स्थल में बाघों की सबसे ज़्यादा है. अगर कुल संख्या देखें तो रिपोर्ट के मुताबिक 1973 में कॉर्बेट उद्यान में सिर्फ़ 44 बाघ थे जो कि अब बढ़कर 175 हो गये हैं. इतनी बड़ी गिनती में बाघ पाए जाने से ज़ाहिर है कि कॉर्बेट प्रशासन काफ़ी उत्साहित है. कॉर्बेट पार्क की ज़ारी रिपोर्ट में ये तथ्य उजागर हुआ. 17 राज्यों में जिन 27 जगहों पर 'प्रोजेक्ट टाइगर' यानी बाघ परियोजना चल रही है वहाँ ये गिनती कराई गई. इनमें सुंदर बन, बाँधवगढ़, तमिलनाडु और कर्नाटक के प्रमुख आवास-स्थल शामिल हैं. कैमरा-ट्रैपिंग विधि के तहत पहले बाघों के पदचिन्हों की पहचान और गिनती की जाती है और उसके बाद किसी एक वन क्षेत्र का नमूना लेकर वहां एक लंबी अवधि के लिये कई सारे कैमरे लगा दिये जाते हैं. बाघ जब इनके सामने से गुजरता है तो उसका चित्र खिंच जाता है. वन्य-जीव विशेषज्ञ इन चित्रों का वैज्ञानिक तरीके से आकलन करते हैं और सांख्यिकी फ़ॉर्मूले के तहत उसका घनत्व निकाला जाता है. कॉर्बेट में 400 वर्ग किमी के क्षेत्र में ऐसे 60 कैमरा-ट्रैप्स लगाए गये थे. बाघ रूस सहित एशिया के 12 देशों में पाये जाते हैं. जहाँ सरिस्का जैसे वन क्षेत्रों में बाघ नहीं बचे हैं कॉर्बेट में ये कैसे संभव हो पाया. इस सवाल का जवाब देते हुए वन्य-जीव विशेषज्ञ आनन्द सिंह नेगी बताते हैं,"शुरूआत में कॉर्बेट का वनक्षेत्र सिर्फ 520 वर्ग किमी था लेकिन 1991 में आसपास के वन क्षेत्रों को भी उसमें जोड़कर इसका विस्तार करीब 1285 वर्ग किमी कर दिया गया और यहां बसे आबादी वाले कई गांवों और इलाक़ों को खाली कराया गया. उसका परिणाम अब सामने आ रहा है. इससे बाघों को बहुत सुविधा मिली और उनकी गिनती तेज़ी से बढ़ी." साथ ही विशेषज्ञों का ये भी कहना है कि कॉर्बेट में अब सुरक्षा का स्तर और बढ़ाना होगा और उसके क़रीब के रामनगर और लैंसडाउन वन प्रभाग को भी सुरक्षित क्षेत्र घोषित करना होगा क्योंकि बाघ के लिये विशाल क्षेत्र ज़रूरी है और कॉर्बेट के सुरक्षित क्षेत्र के बाहर निकलने से ही अक्सर उन्हें ख़तरा है. बाघों को शिकारियों और आबादी से होने वाली मुठभेड़ से भी ख़तरा रहता है. इसके साथ ही संरक्षण-प्रबंधन को भी और मजबूत करने की सिफारिश की जा रही है. महीनों में वहां सात बाघों की मौत हो चुकी है. भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि बाघों को अवैध शिकारियों से बचाने के लिए ज़रूरी है कि कड़े क़दम उठाए जाएँ. रणथंभौर नेशनल पार्क के दौरे पर गए प्रधानमंत्री ने कहा कि बाघों को बचाने के लिए एक दीर्घकालिक रणनीति बनाने की ज़रूरत है. भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को एक लिखित बयान में बताया है कि पिछले पाँच वर्षों में 400 से अधिक बाघ लापता हो चुके हैं. भारत में इस समय बाघों की कुल संख्या लगभग साढ़े तीन हज़ार आँकी गई है लेकिन कुछ लोगों का कहना है कि यह आँकड़ा वास्तविक संख्या से अधिक हो सकता है.

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