Monday 28 July 2008

भविष्य के लिए बुनें सपने

सामयिक कैरियर चुनना एक मुश्किल काम है। अगर इसमें मित्रों या माता-पिता के सुझावों को भी मिला दिया जाए तो ऐसी भ्रामक स्थिति पैदा हो जाती है जिसके कोई फैसला लेना भी लगभग असंभव हो जाता है। यहां हम कुछ तरीके बताने जा रहे हैं जिससे न सिर्फ उचित कैरियर चुना जा सकता है बल्कि उसके लक्ष्य तय करके सफलता भी हासिल की जा सकती है। हालांकि हर अलग-अलग युवा के लिए एक ही तरीका उपयुक्त नहीं होता क्यों कि सभी के व्यक्तित्व और क्षमता अलग-अलग होती है। फिर भी जो बात यहां रखी जा रही है उससे नवयुवकों को काफी मदद मिल सकती है।

आत्म मूल्यांकन

कैरियर चुनने की यह पहली और महत्वपूर्ण कड़ी है। इसके तहत खुद के बारे में सूचनाएं जुटानी होती हैं। ये सूचनाएं रुचि, योग्यताएं, व्यक्तिगत कौशल, मनपसंदजीवन शैली और मूल्यों पर आधारित होती हैं। आत्ममूल्यांकन के वक्त खुद और पेशागत चयन के बीच अंतरसंबंधों को ध्यान में रखकर सावधानी भी बरतनी चाहिए। आत्ममूल्यांकन न सिर्फ कैरियर चुनने बल्कि जीवन के हर दौर में खुद के बारें में फैसले लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
आत्ममूल्यांकन की प्रक्रिया आप इस तरह शुरू कर सकते हैं।
(अ)---- अपनी रूचियों, योग्यताएं, प्रवीणता और काम के महत्व का अध्ययन करिए।
(ब)---- उन क्षेत्रों को जानिए जहां आपको सराहा जाता है।
(स)---- भौतिक व मनोवैग्यानिक जरूरतों को समझें।
(द)---- महत्वाकाक्षांएं और असके प्रति तत्परता का स्तर पहचानें।
(य)---- और व्यक्तिगत कौशल व अपने गुण-दोष की पड़ताल करें।

एकबार जब आप खुद को बेहतर तरीके से समझने लगेंगे तो खुद के प्रति सावधानी भी बरतने लगेंगे। यही नहीं आपके आत्मविश्वास में सुधार आएगा, समय के प्रबंधन ( यानी समय के सदुपयोग ) की समझ के साथ व्यक्तिगत व व्यवहारिक प्रबंधन की प्रवीणता आ जाएगी।इन सब यानी आत्ममूल्यांकन के लिए कार्यशाला, क्लब की गतिविधियों में शामिल होने के अलावा दोस्तों की भी मदद ली जा सकती है।
आत्ममूल्यांकन के तहत पहले अपने व्यक्तित्व शैली की पहचान करनी होगी और यह भी देखना होगा कि उसके लिए उपयपक्त क्या है। जिस काम को चुना है उसके महत्व को जानने के साथ उसके प्रति अपनी सोच भी सार्थक रखें। एक बार जब आत्ममूल्यांकन का काम पूरा हो जाए तो यह जरूरी होगा कि उपलब्ध शैक्षणिक व कैरियर संबंधी विकल्पों की पहचान कर ली जाए। आत्ममूल्यांकन के बाद कैरियर की उपलब्ध संभावनाओं की पहचान करनी होगी। यानी प्रभावशाली कैरियर की तलाश, इसके बारे में उचित सूचनाएं जुटाना शुरू करके इन सूचनाओं यह परीक्षण भी करना होगा कि ये आपके आत्ममूल्यांकन के नतीजों से मेल खाते हैं या नहीं। दरअसल में आत्ममूल्यांकन के बाद यहीं से कैरियर के बारे में ठोस निर्णय लेने की प्रक्रिया शुरू होती है। यह तलाश करनी होगी कि कैसे और कहां शिक्षण और प्रशिक्षण की जरूरतें पूरी होंगी। जिस संस्थान में जाना चाहते हैं उसे जानें और उसके जरिए रोजगार के अवसर के विस्तार को समझना होगा। इतना ही नहीं विकल्प के तौर पर एक समानांतर योजना भी तैयार रखनी होगी। खुद में समस्याओं के समाधान की प्रवीणता भी विकसित करनी होगी।

प्रतिस्पर्धा के क्षेत्र
जिस कैरियर में जाना चाहते हैं उसके लिए दक्ष लोगों से बातचीत करनी चाहिए। शिक्षा व रोजगार के सलाहकारों व विशेषज्ञों से मिलना या ऐसी कार्यशालाओं में जाना चाहिए जहां कुछ जानने व सीखने को मिल सके। रोजगार से सम्बद्ध मेलों (कैरियर फेयर) में जाना चाहिए। कोई अंशकालिक रोजगार उपलब्ध हो तो उसे करना चाहिए इससे अपनी दक्षता बढ़ाने में मदद मिलेगी।

आदर्श जीवनशैली प्रश्नमाला

नीचे दिए प्रश्नों के तीन वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। इसमें से जो आपको अच्छा लगता है उसे आप चुनें। इसमें कोई मार्किंग नहीं है मगर यह आत्ममूल्यांकन में ापकी मदद करेगी।

१- घर में रहना ? बहुत महत्वपूर्ण , सामान्यतया महत्वपूर्ण, महत्वपूर्ण नहीं
२-ग्रामीण क्षेत्र में रहना ? बहुत महत्वपूर्ण , सामान्यतया महत्वपूर्ण, महत्वपूर्ण नहीं
३-अपने घर में मनोरंजन ? बहुत महत्वपूर्ण , सामान्यतया महत्वपूर्ण, महत्वपूर्ण नहीं
४-पैसे खर्च करना ? बहुत महत्वपूर्ण , सामान्यतया महत्वपूर्ण, महत्वपूर्ण नहीं
५-उन्मुक्त भ्रमण ? बहुत महत्वपूर्ण , सामान्यतया महत्वपूर्ण, महत्वपूर्ण नहीं
६-बहुत सारी जगहें रखना ? बहुत महत्वपूर्ण , सामान्यतया महत्वपूर्ण, महत्वपूर्ण नहीं
७-ढेर सारे पैसे रखना ? बहुत महत्वपूर्ण , सामान्यतया महत्वपूर्ण, महत्वपूर्ण नहीं
८-मनोरंजन वाली जगह पर रहना ? बहुत महत्वपूर्ण , सामान्यतया महत्वपूर्ण, महत्वपूर्ण नहीं
९-किसी सांस्कृतिक केंद्र के नजदीक रहना ? बहुत महत्वपूर्ण , सामान्यतया महत्वपूर्ण, महत्वपूर्ण नहीं
१०-सिनेमा देखना, रेस्तराओं में जाना ? बहुत महत्वपूर्ण , सामान्यतया महत्वपूर्ण, महत्वपूर्ण नहीं
११- किसी समुदाय का सक्रिय सदस्य बनना ? बहुत महत्वपूर्ण , सामान्यतया महत्वपूर्ण, महत्वपूर्ण नहीं
१२-अकेले रहना ? बहुत महत्वपूर्ण , सामान्यतया महत्वपूर्ण, महत्वपूर्ण नहीं
१३-पढ़ाई में व्यस्त रहना ? बहुत महत्वपूर्ण , सामान्यतया महत्वपूर्ण, महत्वपूर्ण नहीं
१४-काम करने वाली जगह के नजदीक रहना ? बहुत महत्वपूर्ण , सामान्यतया महत्वपूर्ण, महत्वपूर्ण नहीं
१५-सिर्फ पैसे के लिए काम करना ? बहुत महत्वपूर्ण , सामान्यतया महत्वपूर्ण, महत्वपूर्ण नहीं


उपर दिए गए सवाल के जो जवाब आप ईमानदारी से देंगे वे जवाब ही बताएंगें कि आपने कितना अपनी सही मूल्यांकन किया है। सार्थक और सही जवाब के रास्ते पर चलें तो आपकों वह काम ढूंढने में आसानी होगी। वैसे यह बात ठीक से समझ लेनी चाहिए कि अपनी योग्यता या मनमुताबिक काम पाना आसान नहीं होता है। बड़ी तैयारी व समर्पण की जरूरत होती है। बहरहाल भविष्य के जीवन के लिए खूब सपने बुनिए और उसे पाने के लिए ठोस प्रयास कीजिए। अभी आपने शुरू किया है तो कम से कम छह सात सालों तक जरूर ऐसा जीरी रखिए। जो आप कर रहे हैं उससे कम से कम दोगुना विस्तार की अपेक्षा रखिए। ऐसी बातें भी खूब करिए कि आप कहां रहेंगे और किसके साथ रहेंगे।

अपने भविष्य के लिए बुने सपने को साकार करिए। इन सब को पाने के लिए विशेषज्ञों से मिलते रहिए। उनसे अपने व्यवसायिक पहलुओं को खोजना शुरू करिए। नई जिम्मेदारियों को ओढ़ने की कोशिश करिए। अपने पेशे से संबद्ध शिक्षण, प्रशिक्षण के बारे में निरंतर जानकारी हासिल करना चाहिए। अपनी दक्षता, योग्यता को पेशे के अनुरू बनाए रखना होगा जिससे खोखलापन न दिखे। अखबारों व पत्रिकाओं का हमेशा साथी बनाए रखिए। इनसे अपडेट रहने में सुविधा होती है। जहां आप काम करते हैं वहां के लोगों का ध्यान से अध्ययन करके उनकी आदतें व काम को समझें।
इन सब के अलावा पेशे के बारे में लोगों से बात करें। और काम की जानकारियां संग्रह करके रखें। इस तरह की कुछ प्रश्नावलियां रखें जो आपको दिशानिर्देशन देंगी। नाचे की कुछ प्रश्नावलियों को देखें---

१- इस पेशे या संस्थान में आप कैसे आए ?
२-इस पेशे या संस्थान में आपकी रुचि कैसे जगी ?
३- शुरू में इस क्षेत्र में आने के लिए कौन सी परीक्षा से गुजरना होगा ?
४-इस पेशे में उच्च पद पर जाने के लिए क्या और कितने चरण हैं ?
५- इस काम में किन जिम्मेदारियों और कर्तव्यों का ध्यान रखना होगा ?
६-हमारे प्रतियोगी और ग्राहक कौन हैं ?
७-अपना काम दक्षतापूर्वक करने के लिए किन योग्यताओं की जरूरत होती है ?
८- रोजगार के क्षेत्र में घुसने के लिए किस शिक्षण, प्रशिक्षण या पृष्ठभूमि की जरूरत होती है ?
९-जिस संगठन में काम कर रहे हैं , उसके दिशा निर्देश के दर्शन क्या हैं ?
१०- अपने पेशे या संस्थान में आगे बढ़ने के लिए किन कौशल व मूल्यों की जरूरत होती है ?
११-इस पेशे की बड़ी गड़बड़ियां या परेशानियां क्या हैं ?
१२- काम के किए आप कितना समय देते हैं ?

विशेषज्ञों से मिलकर अपने दिमाग में उठी शंकाओं का निवारण करते रहना चाहिए। लेकिन इन सब सवालों का जवाब जानने या अपनी शंकाओं के निवारण के लिए यह ध्यान देना जरूरी है कि सामने वाला आपको ईमानदारी से सब बताए। अगर आप उस व्यक्ति या विशेषज्ञ को ठीक से नहीं जानते हैं तो यह पूरी आशंका रहेगी कि वह आपको ईमानदारी से जवाब दे। इसके लिए पहले संबद्ध व्यक्ति से पहले व्यवहारिक संबन्ध बनाएं, परखें कि वह आपको सही दिशा निर्देश देता है तब अपने पेशागत सवालों या निजी समस्याओं पर चर्चा करें। ये सारी सावधानियां व आत्ममूल्यांकन आपको निश्चित ही अपने काम की उचित जगह तलाशने में मदद करेंगी।
यह माडल भी इतना उपयुक्त नहीं माना जा सकता है क्यों कि इसकी सफलता या उपयोगिता इस बात पर निर्भर करती है कि आप कितनी ईमानदारी से आत्ममूल्यांकन करते हैं। साथ ही आप पर यह माडल कितना उपयुक्त साबित होता है। फिर भी आपके जीवन में महत्वपूर्ण भुमिका निभा सकता है। सतर्क व दक्ष होकर तो सभी को रहना होता है और इस माडल में भी इसी सिद्धांत पर जोर दिया गया है। ईश्वर आपको सफलता प्रदान करे।

Sunday 27 July 2008

परमाणु करार बनाम कांग्रेस, भाजपा, माकपा की अंतर्कथा



जनसत्ता दिल्ली के २७ जुलाई के अंक में पेज छह पर प्रभाष जोशी और सात पर साजिद रशीद व तरूणविजय के लेख एक साथ सरकार के विश्वास मत के संसद में चले ड्रामे के कई रहस्य खोलते हैं। यही प्रश्न मुझे भी उद्देलित कर रहे थे जिन्हें इन प्रबुद्ध लेखकों ने उठाया है। सांसदों की निष्ठा क्यों डोली? सिर्फ परमाणु करार के मुद्दे पर ही वामपंथी समर्थन वापस क्यों लिए? विपक्ष के नेता के तौर पर आडवाणी की खराब भूमिका जैसे सवाल भारतीय राजनीति उस काले पक्ष को सामने लाते हैं जिसमें पाकसाफ के भी दामन दागदार हैं। मैं इन लेखों की यहां ब्लाग में समीक्षा नहीं करना चाहता मगर यह जरूर चाहता हूं कि इन तीन धाराओं के विचारों से आप भी अवगत हों। तरणविजय को तो आप जानते ही हैं। पांचजन्य के संपादक रह चुके हैं जो कि संघ की विचारधारा को सामने लाते हैं। भाजपा या फिर किसी जनविरोधी मुद्दों पर बेबाक लिखने वाले जनसत्ता के संपादक रह चुके प्रभाष जोशी से भी आप अपरिचित नहीं होंगे। इनतीनों लेखकों में से प्रभाष जोशी और साजिद रशीद ने सरकार के उसी विश्वासमत मुद्दे की पेराई की है जिसपर अब भी मंथन चल रहा है। मगर तरणविजय ने ताजा मुद्दे रामसेतु के राम द्वारा तोड़े जाने के विवाद पर विश्वसनीय होकर सफाई पेश करने की कोशिश की है। इन तीनों लेख के पीडीएफ ब्लाग में दिए हैं। इनपर क्लिक करके पढ़ें। सांप्रदायिकता, वामपंथी और सत्ता के मुद्दे पर मैं भी अगले लेख में इनके चेहरे बेनकाब करूंगा।

Wednesday 2 July 2008

मंदिरों के प्रसाद व असम की चाय भी दूसरे को दे देंगे डाकिए !


डाक विभाग तमाम नए प्रयोग कर रहा है टिकने के लिए मगर उसके लापरवाह व गुटबाज कर्मचारीहर कोशिश को धूल में मिलाते जा रहे हैं। विश्वसनीयता भी इसी से दाव पर लगी हुई है। डाक विभाग को टेलीफोन व संचार तकनीक की क्रांति ने वैसे ही हासिए पर ला खड़ा किया है। डाक गायब होने, सही तरीके से डाक वितरित नहीं हो पाने, लोगों की गाढ़ी कमाई के मनीआर्डर गायब होने, बचत व निवेश के तौरतरीके अपारदर्शी होने के कारण डाक विभाग लोगों की नजर में उतना महत्वपूर्ण नहीं रह गया है जितना कभी मजबूरी के कारण था। आज निवेश के हजारों विकल्प हैं। मनीआर्डर को एटीएम निगल गया है। चिट्ठी को मेल और कंपनियों वगैरह की डाक ज्यादातर आनलाइन के हवाले हो गई है। डाक विभाग की मासिक बचत योजना तमाम परिवारों की अब भी जीवनरेखा बनी हुई है मगर डाकघरों के फौरन कंप्यटरीकृत नहीं किए जाने से स्टेट बैंक आप इंडिया का मासिक बचत योजना अब विकल्प बन रही है। ऐसे में डाक विभाग को बचाने की नई कवायद हो रही है।
इसी कोशिश के तहत डाक विभाग अब दक्षिण भारत के प्रसिद्ध मंदिरों के प्रसाद और मसालों से लेकर सुदूर असम की चाय और पंजाब की मिठाइयां तक आपके दरवाजे तक पहुंचाने की तैयारी में है। पंजाब में शुरू की जा रही इस योजना के तहत वस्तु की असली कीमत से केवल दस रुपये ज्यादा लिए जाएंगे। उपभोक्ता को केवल नजदीक के डाक घर में जाकर आर्डर करना है, उसके बाद संबंधित संगठन को एक ई-मेल भेज दिया जाएगा। इसके बाद एक या दो दिनों में सामान पैक होकर उसके घर पहुंच जाएगा। पंजाब के मुख्य पोस्टमास्टर जनरल पृथ्वीराज कुमार ने बताया, "इंडिया पोस्ट ने स्पाइस बोर्ड आफ इंडिया के साथ एक समझौता किया है जिसके तहत अब उत्पादों को ग्राहकों केघर तक पहुंचाया जाएगा। यह योजना लगभग एक साल से कागजों पर ही है और इसकी ठीक ढंग से मार्केटिंग नहीं की गई और अब इसकी पुनरीक्षा की जा रही है।" उन्होंने बताया कि आंध्र प्रदेश में तिरुपति मंदिर और असम के चाय बागानों के अलावा पंजाब के कोट कपूरा कस्बे की प्रसिद्ध ढोडा मिठाइयों की भी आपूर्ति के लिए समझौते किए गए हैं।

कर्मचारी ही प्रतिबद्ध नहीं

लेकिन क्या गारंटी है कि डाक विभाग को ये योजनाए बचा पाएंगी ? जबतक विभाग के कर्मचारी खुद इसके प्रति प्रतिबद्ध नहीं होंगे यह लक्ष्य हासिल करना मुश्किल होगा। प्रतिबद्धता में कमी और धोखाधड़ी की तमाम खबरें लोगों को मालूम हैं मगर मैं सिर्फ अपना उदाहरण दूंगा जिसके कारण डाक विभाग के डाकिए संदिग्ध लगने लगे हैं। मैं कोलकाता शहर के दमदम इलाके में रहता हूं। मेरे दो बच्चे स्टेट बैंक आफ इंडिया के क्लर्क पद के लिए आनलाइन फार्म भरे। बैंक ने नियत समय पर प्रवेश पत्र डाक विभाग क् जरिए वितरित करने की व्यवस्था भी की। मगर यह महामहिम डाकिए की कृपा रही कि मेरे दोनों बच्चे का प्रवेशपत्र किसी ऐसे गैर लोगों के हाथों में सौंप गया जिनसे मैं कभी भले की उम्मीद नहीं रखता। जब मेरे इन शत्रुओं को पता चला कि प्रवेश पत्र चुरा लेने से उम्मीदवार को परीक्षा में बैठने से नहीं रोका जा सकता तो कटे-फटे हालत में पहुंचाकर मेरे यहां फेंक दिया गया। दूसरा प्रवेश पत्र भी इसी तरह से किसी को सौंप कर डाकिया चला गया। यह बाकायदा लिफाफा था जिसमें प्रवेश पत्र के अलावा एक बुकलेट भी था। जबकि पहला वाला सिर्फ प्रवेश पत्र मिला।
पोस्ट आफिस जाकर पूछा कि ऐसा क्यों हुआ तो एक अधिकारी ने कहा कि ऐसा लोग न जाने क्यों करते हैं। उन्होंने स्वीकार किया कि उनके फ्लैट में भी लोग डाकिए से किसी की भी डाक लेकर गायब कर देते हैं। उन्होंने डाकिए को बुलाकर कह दिया कि इनकी डाक सिर्फ इन्हें हीं सौंपें। डाकिए ने मानने को भी कहा मगर मेरा विस्वास तो डिग गया है कि इतनी संवेदनशील डाक को जो डाकिया गैरजरूरी की तरह फेंक गया तो आगे कितना ध्यान रखेगा।
लगे हाथ आपको यह भी बतादूं कि हर साल ऐसे तमाम नौजवानों को अपनी नौकरी के बुलावा पत्र से डाक विभाग के ऐसे डाकिए के कारण वंचित होना पड़ता है। पश्चिम बंगाल में हर आदमी पार्टी या खेमे में बंटा हुआ है लिहाजा खुन्नस में यह काम डाकिए स्थानीय लोगों की मर्जी से करते हैं। यह डाकिए की भी मजबूरी होगी क्यों कि वह किस- किस से लड़ाई करेगा। या फिर वह भी किसी पार्टी का समर्थक होता है। कोलकाता में बाहरी लोग इस विरोध के ज्यादा शिकार होते हैं। ऐसे में नए तरीके अपनाकर डाक विभाग विश्वसनीयता नहीं हासिल करता जबतक नीचे से अपनी कार्यप्रणाली को फुलप्रूफ नहीं करेगा। डाक बिना किसी भेदभाव के वितरित हो इसके लिए डाकिए को जिम्मेदार बनाना होगा। डाक विभाग का फौरन आधुनिकीकरण करना होगा ताकि बचत व निवेश जैसे उत्पाद के काम त्वरित व विश्वसनीय हों। अगर ऐसा नहीं हुआ तो चाय, मिटाई और डाक भी किसी दूसरे को ही देकर लोगों की आखों में धूल झोंकते रहेंगे डाकिए।

मंदिरों के प्रसाद व असम की चाय भी दूसरे को दे देंगे डाकिए !

डाक विभाग तमाम नए प्रयोग कर रहा है टिकने के लिए मगर उसके लापरवाह व गुटबाज कर्मचारीहर कोशिश को धूल में मिलाते जा रहे हैं। विश्वसनीयता भी इसी से दाव पर लगी हुई है। डाक विभाग को टेलीफोन व संचार तकनीक की क्रांति ने वैसे ही हासिए पर ला खड़ा किया है। डाक गायब होने, सही तरीके से डाक वितरित नहीं हो पाने, लोगों की गाढ़ी कमाई के मनीआर्डर गायब होने, बचत व निवेश के तौरतरीके अपारदर्शी होने के कारण डाक विभाग लोगों की नजर में उतना महत्वपूर्ण नहीं रह गया है जितना कभी मजबूरी के कारण था। आज निवेश के हजारों विकल्प हैं। मनीआर्डर को एटीएम निगल गया है। चिट्ठी को मेल और कंपनियों वगैरह की डाक ज्यादातर आनलाइन के हवाले हो गई है। डाक विभाग की मासिक बचत योजना तमाम परिवारों की अब भी जीवनरेखा बनी हुई है मगर डाकघरों के फौरन कंप्यटरीकृत नहीं किए जाने से स्टेट बैंक आप इंडिया का मासिक बचत योजना अब विकल्प बन रही है। ऐसे में डाक विभाग को बचाने की नई कवायद हो रही है।
इसी कोशिश के तहत डाक विभाग अब दक्षिण भारत के प्रसिद्ध मंदिरों के प्रसाद और मसालों से लेकर सुदूर असम की चाय और पंजाब की मिठाइयां तक आपके दरवाजे तक पहुंचाने की तैयारी में है। पंजाब में शुरू की जा रही इस योजना के तहत वस्तु की असली कीमत से केवल दस रुपये ज्यादा लिए जाएंगे। उपभोक्ता को केवल नजदीक के डाक घर में जाकर आर्डर करना है, उसके बाद संबंधित संगठन को एक ई-मेल भेज दिया जाएगा। इसके बाद एक या दो दिनों में सामान पैक होकर उसके घर पहुंच जाएगा। पंजाब के मुख्य पोस्टमास्टर जनरल पृथ्वीराज कुमार ने बताया, "इंडिया पोस्ट ने स्पाइस बोर्ड आफ इंडिया के साथ एक समझौता किया है जिसके तहत अब उत्पादों को ग्राहकों केघर तक पहुंचाया जाएगा। यह योजना लगभग एक साल से कागजों पर ही है और इसकी ठीक ढंग से मार्केटिंग नहीं की गई और अब इसकी पुनरीक्षा की जा रही है।" उन्होंने बताया कि आंध्र प्रदेश में तिरुपति मंदिर और असम के चाय बागानों के अलावा पंजाब के कोट कपूरा कस्बे की प्रसिद्ध ढोडा मिठाइयों की भी आपूर्ति के लिए समझौते किए गए हैं।

कर्मचारी ही प्रतिबद्ध नहीं

लेकिन क्या गारंटी है कि डाक विभाग को ये योजनाए बचा पाएंगी ? जबतक विभाग के कर्मचारी खुद इसके प्रति प्रतिबद्ध नहीं होंगे यह लक्ष्य हासिल करना मुश्किल होगा। प्रतिबद्धता में कमी और धोखाधड़ी की तमाम खबरें लोगों को मालूम हैं मगर मैं सिर्फ अपना उदाहरण दूंगा जिसके कारण डाक विभाग के डाकिए संदिग्ध लगने लगे हैं। मैं कोलकाता शहर के दमदम इलाके में रहता हूं। मेरे दो बच्चे स्टेट बैंक आफ इंडिया के क्लर्क पद के लिए आनलाइन फार्म भरे। बैंक ने नियत समय पर प्रवेश पत्र डाक विभाग क् जरिए वितरित करने की व्यवस्था भी की। मगर यह महामहिम डाकिए की कृपा रही कि मेरे दोनों बच्चे का प्रवेशपत्र किसी ऐसे गैर लोगों के हाथों में सौंप गया जिनसे मैं कभी भले की उम्मीद नहीं रखता। जब मेरे इन शत्रुओं को पता चला कि प्रवेश पत्र चुरा लेने से उम्मीदवार को परीक्षा में बैठने से नहीं रोका जा सकता तो कटे-फटे हालत में पहुंचाकर मेरे यहां फेंक दिया गया। दूसरा प्रवेश पत्र भी इसी तरह से किसी को सौंप कर डाकिया चला गया। यह बाकायदा लिफाफा था जिसमें प्रवेश पत्र के अलावा एक बुकलेट भी था। जबकि पहला वाला सिर्फ प्रवेश पत्र मिला।
पोस्ट आफिस जाकर पूछा कि ऐसा क्यों हुआ तो एक अधिकारी ने कहा कि ऐसा लोग न जाने क्यों करते हैं। उन्होंने स्वीकार किया कि उनके फ्लैट में भी लोग डाकिए से किसी की भी डाक लेकर गायब कर देते हैं। उन्होंने डाकिए को बुलाकर कह दिया कि इनकी डाक सिर्फ इन्हें हीं सौंपें। डाकिए ने मानने को भी कहा मगर मेरा विस्वास तो डिग गया है कि इतनी संवेदनशील डाक को जो डाकिया गैरजरूरी की तरह फेंक गया तो आगे कितना ध्यान रखेगा।
लगे हाथ आपको यह भी बतादूं कि हर साल ऐसे तमाम नौजवानों को अपनी नौकरी के बुलावा पत्र से डाक विभाग के ऐसे डाकिए के कारण वंचित होना पड़ता है। पश्चिम बंगाल में हर आदमी पार्टी या खेमे में बंटा हुआ है लिहाजा खुन्नस में यह काम डाकिए स्थानीय लोगों की मर्जी से करते हैं। यह डाकिए की भी मजबूरी होगी क्यों कि वह किस- किस से लड़ाई करेगा। या फिर वह भी किसी पार्टी का समर्थक होता है। कोलकाता में बाहरी लोग इस विरोध के ज्यादा शिकार होते हैं। ऐसे में नए तरीके अपनाकर डाक विभाग विश्वसनीयता नहीं हासिल करता जबतक नीचे से अपनी कार्यप्रणाली को फुलप्रूफ नहीं करेगा। डाक बिना किसी भेदभाव के वितरित हो इसके लिए डाकिए को जिम्मेदार बनाना होगा। डाक विभाग का फौरन आधुनिकीकरण करना होगा ताकि बचत व निवेश जैसे उत्पाद के काम त्वरित व विश्वसनीय हों। अगर ऐसा नहीं हुआ तो चाय, मिटाई और डाक भी किसी दूसरे को ही देकर लोगों की आखों में धूल झोंकते रहेंगे डाकिए।

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