Thursday 16 April 2009

पत्रकारिता की दुनिया में हैं कई और विसंगतियां

पत्रकारिता की दुनिया में कई और विसंगतियां हैं। मसलन अखबार निकालने और खबरों को संपादित करके एक बेहतर तेवर देने वाले संपादक भी पत्रकारिता के ही काम करतेहैं मगर उन्हें शासन की तरफ से मान्यता प्राप्त पत्रकारों की श्रेणी में नहीं रखा जाता। उपसंपादक से लेकर संपादक तक का पूरा कुनबा इस लिहाज से मान्यता प्राप्त दर्जे का पत्रकार नहीं होता। जबकि सिर्फ खबर लिखनेवाला इस लिहाज से मान्यता प्राप्त पत्रकार कादर्जा पाने की काबिलियत वाला माना जाता है। ऐसा क्यों? क्या संपादन पत्रकारिता की श्रेणी में नहीं आता है। खबरों का नियोजन भी संपादक ही करता है। इतना ही नहीं कोलकाता प्रेस क्लब समेत देश के तमाम प्रेस क्लबों में संपादकों को दोयम दर्जे की सदस्यता दी जाती है। यानी वे सदस्य बनाए जाते हैं मगर उन्हें मतदान का अधिकार नहीं होता। यह इस तर्क पर कि संपादक मान्यता प्राप्त पत्रकार नहीं होते। यह दोहरा मानदंड उसी तरह का है जैसे यशवंत ने भड़ास४मीडिया में हिंदी पत्रकारों की उपेक्षा पर सवाल उठाया है।
मान्यता प्राप्त पत्रकार अगर संपादक भी हों तो ऐसे किस कानून का उल्लंघन होता है या फिर संवाददाताओँ और शासन पर कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा। फिलहाल तो यह समझ से परे है। क्या यशवंतजी इस दोहरे मानदंड पर भी सवाल उठाने की कृपा करेंगे। पत्रकारों को बांटने की इस कुटिल चाल का भी पर्दाफास अवश्य किया जाना चाहिए।
इस लिंक पर यशवंत ने भड़ास4मीडिया में उठाये हैं सवाल कि हिंदी अखबारों के पत्रकार अवार्ड के लायक नहीं होते .

हिंदी अखबारों के पत्रकार एवार्ड लायक नहीं होते?


रामनाथ गोयनका एक्सीलेंस इन जर्नलिज्म एवार्ड 2007-08 की किसी कैटगरी में हिंदी प्रिंट का काई भी पत्रकार विजेता नहीं रहा। जिन लोगों को एवार्ड दिया गया है, उनमें ज्यादातर टीवी और अंग्रेजी अखबारों के पत्रकार हैं। प्रभात खबर, दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, अमर उजाला, राजस्थान पत्रिका, दैनिक हिंदुस्तान, नई दुनिया, नवभारत टाइम्स समेत दर्जनों हिंदी अखबारों और सैकड़ों हिंदी पत्रिकाओं के हजारों पत्रकारों में से कोई भी इस लायक नहीं था कि उसे पुरस्कार के लिए चुना जाए। भड़ास4मीडिया के पास कई हिंदी प्रिंट पत्रकारों के फोन आए और सभी ने पुरस्कार दिए जाने के पैमाने पर सवाल उठाया। ज्यादातर लोगों ने यह जानने की कोशिश की कि आखिर किन पैमानों पर ये पुरस्कार दिए जाते हैं और उन पैमानों पर क्या हिंदी हर्टलैंड के किसी भी पत्रकार की रिपोर्ट खरी नहीं उतरी। कहीं ऐसा तो नहीं कि दिल्ली में रहने वाले पत्रकारों को ही पुरस्कार देने के लिए सर्वथा उपयुक्त माना जाता है?

कुछ लोगों का यह भी कहना है कि हिंदी अखबारों के दूर-दराज के रिपोर्टर जिन खबरों को भेजते हैं और वे अखबारों में प्रकाशित होती हैं, उन्हीं खबरों को कई महीने बाद अंग्रेजी अखबारों के रिपोर्टर उठाते हैं और खबर ब्रेक करने का श्रेय भी ले जाते हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि अंग्रेजी अखबारों और टीवी के पत्रकार अपने व्यक्तित्व और काम की 'मार्केटिंग' अच्छी तरह से कर ले जाते हैं, इसीलिए उन्हें पुरस्कार मिल जाता है जबकि हिंदी का भदेस, मेहनती और जुझारू पत्रकार सब कुछ करने के बाद भी सिर्फ अपने किए को ठीक से 'मार्केट' न कर पाने की वजह से पिछड़ा रह जाता है। कुछ लोगों ने सुझाव दिया कि पुरस्कार देने वाली संस्थाओं को एवार्ड के लिए आवेदन आमंत्रित किए जाने की जानकारी सभी पत्रकारों तक पहुंचाने की गारंटी करनी चाहिए। होता यह भी है कि एवार्ड के लिए आवेदन मांगे जाने की जानकारी सिर्फ अंग्रेजी अखबारों में प्रकाशित करा दी जाती है। इससे यह सूचना दूर-दराज के इलाकों को तो छोड़ दीजिए, प्रदेश की राजधानियों के पत्रकारों तक भी नहीं पहुंच पाती।

रामनाथ गोयनका एक्सीलेंस एवार्ड 2007-08 के नामिनी में हिंदी अखबारों के कुछ पत्रकारों के नाम हैं लेकिन इन्हें विजेता घोषित नहीं किया गया। उदाहरण के तौर पर एक्सीलेंस इन जर्नलिज्म एवार्ड हिंदी प्रिंट कैटगरी में अमर उजाला के प्रताप सोमवंशी और दैनिक भास्कर के मनोज सिंह पमार के नाम हैं। इस कैटगरी में एवार्ड के विजेता रहे पुण्य प्रसून वाजपेयी। पुण्य को प्रिंट कैटगरी का पुरस्कार इसलिए दिया गया क्योंकि उन्होंने छत्तीसगढ़ के आदिवासियों पर जो रिपोर्टें लिखीं, उन्हें हिंदी मैग्जीन प्रथम प्रवक्ता में प्रकाशित किया गया। देखा जाए तो यह एवार्ड भी किसी हिंदी प्रिंट वाले को नहीं मिला बल्कि टीवी जर्नलिस्ट को दिया गया। यहां मकसद किसी के काम को कमतर आंकना नहीं है बल्कि पुरस्कार के पैमानों पर बात करना है। हिंदी भाषी इस देश में अगर पत्रकारिता के दो दर्जन से ज्यादा पुरस्कारों में हिंदी के टाप टेन अखबारों के एक भी पत्रकार नहीं आ पाते तो क्या इसे यूं ही संयोग मानकर छोड़ देना चाहिए या फिर इस पर बहस होनी चाहिए?

Monday 6 April 2009

15 अप्रैल से बेकार हो जाएँगे 2.5 करोड़ मोबाइल हैंडसेट

देश में बिना मोबाइल उपकरण पहचान संख्या (आईएमईआई) वाले करीब 2.5 करोड़ मोबाइल हैंडसेट आगामी 15 अप्रैल से बेकार हो जाएँगे। एयरटेल और वोडाफोन सहित जीएसएम सेवा उपलब्ध कराने वाली कई कंपनियाँ ऐसे हैंडसेटों को कनेक्टिविटी न देने का अभियान शुरू करने जा रही हैं, जिसके बाद ऐसे हैंडसेटों का कोई उपयोग नहीं रहेगा।

राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर दूरसंचार विभाग (डाट) ने ऑपरेटरों को बिना आईएमईआई संख्या वाले हैंडसेटों का कनेक्शन काटने का निर्देश दिया है। आईएमईआई 15 अंकों की वह संख्या होती है, जो कॉल किए जाने पर ऑपरेटर के नेटवर्क पर आती है।
उद्योग सूत्रों का कहना है कि यदि ऑपरेटर डाट द्वारा दी गई समयसीमा का पालन करते हैं तो देश में जीएसएम मोबाइल फोनों की कुल संख्या में से करीब 10 प्रतिशत यानी 2.5 करोड़ हैंडसेट बेकार हो जाएँगे। बिना आईएमईआई संख्या वाले ज्यादातर हैंडसेट चीन के बने हैं।

विश्लेषकों का कहना है कि इस कदम से दूरसंचार कंपनियों की आमदनी पर भी खासा असर पड़ेगा क्योंकि ज्यादातर बिना आईएमईआई संख्या वाले ज्यादातर फोन सस्ते और गैर ब्रांड के होते हैं और इनका इस्तेमाल कम आय वर्ग वाले ग्राहक करते हैं। उन्होंने कहा कि इस तरह के ग्राहकों को फिर से नेटवर्क पर लाना मोबाइल कंपनियों के लिए चुनौती होगी। ऑपरेटरों को ऐसे ग्राहकों को सस्ते या नि:शुल्क हैंडसेट उपलब्ध कराने होंगे। डाट ने अक्टूबर 2008 में ऐसे हैंडसेटों को सेवा बंद करने के लिए 31 दिसंबर की समयसीमा तय की थी। बाद में इसे बढ़ाकर 15 अप्रैल 2009 कर दिया गया था।

एक प्रमुख मोबाइल ऑपरेटर ने अपने अपने ग्राहकों को यह संदेश भेजना शुरू कर दिया है कि वे बिना आईएमईआई संख्या वाले हैंडसेटों का इस्तेमाल बंद कर दें अन्यथा उनका कनेक्शन काट दिया जाएगा। ऐसे हैंडसेट जिनका आईएमईआई नंबर नहीं है इसलिए खतरा हैं कि क्योंकि ऑपरेटर उन्हें ट्रेस नहीं कर सकता। आईएमईआई संख्या वाले हैंडसेटों का इस्तेमाल चोरी के बाद कॉल करने के लिए नहीं किया जा सकता क्योंकि वे पकड़ में आ जाते हैं।

हैंडसेट निर्माताओं के संगठन इंडियन सेल्युलर एसोसिएशन (आईसीए) का कहना है कि सरकार को आयात के स्तर पर ही बिना आईएमईआई संख्या वाले हैंडसेटों पर रोक लगानी चाहिए। आईसीए के अध्यक्ष पंकज महेंद्रू ने कहा कि ऐसे फोनों की सेवा तो बंद की ही जानी चाहिए साथ ही यह भी देखा जाना चाहिए कि इनका आयात ही न होने दिया जाए। महेंद्रू ने कहा कि चोरी वाले हैंडसेटों का इस्तेमाल रोकने के लिए कोई केंद्रीय तंत्र नहीं है। ग्रे मार्केट में आने वाले ज्यादातर चाइनीज हैंडसेटों का आईएमईआई नंबर सही नहीं होता। (साभार वेबदुनिया)

Friday 3 April 2009

वादा तेरा वादा, वादे पे तेरे..............।

लगभग सभी दलों ने जनता से वोट पाने के लिए वादे कर डाले हैं। सिर्फ पांच साल बाद ही वादों का यह मेला लगता है। और हर बार जनता को मूर्ख बनाने के भरपूर प्रयास ( वायदे ) यह सोचकर किए जाते हैं कि जनता को पिछला कुछ याद नहीं रहता। बेचारी जनता भी आखिर भूले नहीं तो क्या करे। सर्वशक्तिमान जो ठहरी। शायद इसी लिए क्षमा मुद्रा में आ जाती है। नए वायदे में फिर उम्मीदों को पाल लेती है। तभी तो सबकुछ झूठ-सच जानते हुए भी इनके मजमों में जुटती है और अंततः वोट देकर जिता भी देती है। हर जीतने वाले से यह उम्मीद भी रहती है कि इस बार उसे कम ठगा जाएगा। मगर हकीकत यही है कि उसे ठगे जाने का क्रम कभी बंद नहीं हुआ है। खजाने और पैसे का रोना रोकर नौकरीपेशा लोगों की उन उम्मीदों को रौंदा जिनसे कम आय नौकरी पेशा लोगों का जीवन चलता है। १४ प्रतिशत से लाकर अब ८.३० प्रतिशत पर भविष्यनिधि के ब्याज को रख छोड़ा। जबकि इससे ज्यादा कई बैंक सूद दे रहे हैं। कोई इन लोगों से यह पूछे कि इतने सारे वेतनमान बढ़ाने और बैंकों वगैरह को हजारों करोड़ रूपए कहां से दिए गए। थोक के भाव में नौकरियां बांटी तो उसी अनुपात में मंदी बताकर छीन भी लिया।
शिक्षा को बाजार बनाकर आम लोगों की पहुंच से बाहर कर दिया। या फिर उन्हें मंहगी पढ़ाई के नाम पर कई सालों के लिए कर्ज में डुबो दिया। कर्ज का सब्जबाग दिखाकर किसानों समृद्ध करने का ऐसा सब्जबाग दिखाया कि कर्ज में डूबे किसान आत्महत्या करने पर मजबूर हो गए। यह सब हर चुनाव में बेहतर बनाने के बायदे के बावजूद हुआ। सरकारी और सस्ते स्वास्थ्य सुविधा देने वाले अस्पताल बदहाल और नर्सिंग होम फलफूलकर इलाज के नाम पर लूट मचा रहे हैं। यह सब किस आम आदमी के हित में किए जा रहे हैं। नौकरी, शिक्षा और स्वास्थ्य तीनों मोर्चों पर इनके वायदे आम आदमी के लिए फेल हो गए हैं। कृषि की दशा उन किसानों के परिवारों से पूछिए जिनका मुखिया बेहतरी की मृगमरीचिका में जल चुका है। आरएसएस प्रमुख भागवत और अल्पसंख्यकों के सामाजिक संगठनों ने हालांकि चुनाव में वोट के लिए जनता को दिशा निर्देश तो जारी कर दिए हैं कि राषट्रहित और समाज हित में मतदान करें मगर इसकी कौन गारंटी देगा कि यहां से संसद पहुचते ही इन नेताओं को जनता से किए वायदे याद रहेंगे। यहां तो हर ख्वाहिश पर जनता को दर-दर की ठोकरें खाना है। वायदे तो वायदे ही होते हैं जो फिर पांच साल बाद दुहराए जाएंगें मगर इसे अपराध कब माना जाएगा। क्या देश की ऐसी कोई जनता की अदालत नहीं बन सकती जहां पूरे पांच साल बीतने पर देश और जनता से किए वायदे पूरे न करने पर इन्हें अपराधी ठहराकर सजा का प्रावधान हो। यह भी प्रावधान हो कि ऐसे लोग राजनीति के लिए अयोग्य करार दिए जाएं। और कोई नहीं तो चुनाव आयोग कोही इस हिसाब किताब की जिम्मेदारी सौंपी जानी चाहिए। वायदों और उनके पूरे होने व न होने का ब्यौरा आम जनता के सामने रखा जाना चाहिए। जनता के साथ वायदों का मजाक करने वालों के खिलाफ कड़ी सजा का भी प्रावधान होगा तभी राजनीति से भ्रष्टाचार भी खत्म हो पाएगा। ऐसा नहीं होगा तो आखिर जनता के साथ वायदों का यह मजाक कब रुकेगा ? बहरहाल वायदों का सब्जबाग कुछ दलों ने विस्तार से दिखाया है। आप भी बानगी लीजिए और इन्हें इसलिए याद रखिए क्यों कि कोई अदालत बने या न बने मगर आप अपनी अदालत में झूठे वायदे करने वालों को सजा अपनी मुहर से तो दे ही सकते हैं। अमेरिकी जनता ने तो ऐसा कर दिखाया है। अब आपकी बारी है।


घोषणा पत्र जारी, भाजपा फिर राम भरोसे...

http://www.tarakash.com/images/Bjp_manifesto_hindi.pdf ( इस लिंक में भाजपा का मूल घोषणापत्र पढ़ें )
नई दिल्ली. भाजपा ने आज बीजेपी मुख्यालय पर एक समारोह में अपना मैनिफेस्टो जारी किया। घोषणा पत्र जारी करने के लिए आयोजित इस समारोह के दौरान मंच पर पीएम इन वेटिंग लालकृष्ण आडवाणी और राजनाथ सिंह के साथ अटल बिहारी वाजपेयी का फोटो भी लगा था। यह माना जा रहा है कि पिछले विधानसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी को प्रचार से दूर रखने के बाद भाजपा को फिर उनका महत्व समझ आ गया है। भाजपा ने मान लिया है कि अटलजी के बिना पार्टी अधूरी है और इसी कारण उन्हें घोषणा पत्र के कवर पर भी जगह दी गई है।
माना जा रहा था कि भाजपा अपने मैनिफेस्टो में हिन्दुत्व पर लौट सकती है। पिछले चुनावों में भाजपा ने अपना घोषणा पत्र जारी नहीं किया था। एनडीए का कॉमन मिनिमम प्रोग्राम जारी कर भाजपा ने अपने गठबंधन की बात प्रमोट की थी। उम्मीद यह भी की जा रही थी की यह घोषणा पत्र कांग्रेसी मैनिफेस्टो का जवाब होगा।
घोषणा पत्र जारी करने से पहले समारोह में भाजपा का अभियान गीत सुनाया गया। इस दौरान मंच पर आडवाणी, वैंकया, जसवंत सिंह, मुरली मनोहर जोशी, राजनाथ सिंह और अरूण जेटली मौजूद थे। भाजपा के वरिष्ठ नेता रविशंकर प्रसाद ने घोषणा पत्र पढ़कर सुनाया।
भाजपा के इस घोषणा पत्र की खूबियां .......
- २ रूपए गेंहूं चावल
- किसानों को ४ फीसदी पर लोन
- ६ फीसदी पर होम लोन देने का वादा
- सेंट्रल सेल्स टेक्स खत्म होगा
- रेहड़ी वालों को ४ फीसदी पर लोन
- पोटा कानून लाएंगे
- विदेश में जमा काला धन वापस लाएंगे
- एफबीटी खत्म करेंगे ( फ्रिंज बैनिफिट टैक्स )
- गांवो को पक्की सड़क
- आयकर में छूट
- रामसेतु नहीं टूटने देंगे
- पर्यटन क्षेत्रों को बढावा
- पूर्ण ऊर्जा व सड़क संपर्क स्थापित करने देंगे
- जनसुरक्षा बढ़ाई जाएगी
- भारत बांग्लादेश बाड़ लगाने का काम पूरा
- माओवादियों , आतंकवादियों के खिलाफ अभियान
- अलगवावादी, आतंकवादी समर्थित देशों पर दबाव नीति
- जय जवान सैन्य बलों अर्धसैनिक बलों को आयकर मुक्त
- सैन्य बलों के लिए पृथक वेतन आयोग का गठन
- सेनाओं और पैरामिलिट्री फोर्स को वेतन पर आयकर में छूट
- बिजली का उत्पादन निर्भरता कम
- मध्य प्रदेश की लाड़ली लक्ष्मी को पूरे देश में
- धारा 370 हटाएंगे
- सस्ती शिक्षा
- 2014 तक सभी के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं
- घर पर एम्बुलैंस की व्यवस्था, नए एम्स की स्थापना पुर्नजीवित
- ग्लोबल वॉर्मिंग को रोकने के लिए कार्यक्रम
- अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनाएंगें
- वरिष्ठ नागरिकों की पेंशन कर मुक्त
भाजपा ने उन चीजों को भी अपने मैनिफेस्टो में शामिल किया है जो कांग्रेस से कहीं छूट गए थे। राजनाथ सिंह ने अंत में मैनिफेस्टो कमेटी के अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी समेत सभी को धन्यवाद दिया जिन्होंने घोषणा पत्र तैयार करने में मदद की है। राजनाथ सिंह ने कहा कि उन्होंने राजनीतिक , आर्थिक, सामाजिक , सांस्कृतिक सभी पक्षों को ध्यान में रखते हुए पत्र तैयार किया है। इसमें भाजपा की दार्शनिक अवधारणा को ध्यान में रखा गया है, यह संतुलित है। उन्होंने कहा कि यह अन्य पार्टियों के घोषणा पत्र की तरह विचार शून्य नहीं है। हमने यह केवल वादे नहीं किए हम इसका अक्षरशः पालन करेंगे, हर साल इसकी समीक्षा करेंगे। इस मौके पर आडवाणी ने कहा की घोषणा पत्र के अनुसार हम यह सारे वादे पूरे करना चाहते हैं। हम देश को सुरक्षा देना चाहते हैं। उन्होंने सैन्य सेवाओं को ज्यादा से ज्यादा आर्थिक फायदा पहुंचाने का वादा किया, उन्होंने वीरता पुरस्कारों की राशी को 30000 रूपए तक बढ़ाने की बात भी कही।

सामाजिक संगठनों ने तैयार किया घोषणा पत्र

नई दिल्ली। राजधानी के सामाजिक संगठनों ने संसदीय चुनाव के लिए जनता का घोषणा पत्र तैयार किया है। सोमवार को जारी घोषणा पत्र में संगठनों ने मांग की है कि प्रवासी मेहनतकश मजदूरों के लिए भोजन, वस्त्र, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य की जिम्मेवारी सरकार की हो। इसके अलावा संगठित व असंगठित क्षेत्र के दलित सफाई कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान की जाए एवं हाईकोर्ट के अंतरिम निर्णय का पालन किया जाए। लाडली योजना को समानता एवं निरंतरता के आधार पर पुन: लागू किया जाए। कूड़ा बीनने वाले मजदूरों को सरकारी योजना में स्थान मिले एवं बच्चों के लिए स्कूल की व्यवस्था की जाए। राष्ट्रीय स्तर पर प्रवासी मजदूर आयोग बनाया जाए। घोषणा पत्र बनाने वाले संगठनों में दलित अधिकार शोध एवं संदर्भ केंद्र, सक्षम, लेबर एजुकेशन एंड डवलपमेंट सोसाइटी, ज्ञान उदय, बाल विकास धारा आदि संगठन प्रमुख हैं।

माकपा का घोषणा पत्र : प्रमुख मुद्देपरमाणु नीति

- 123 के समझौते पर पुनर्विचार। इसमें अहितकारी प्रावधानों को हटाने का वादा।
विदेश व रक्षा नीति
- अमेरिका के साथ सामरिक गठजोड़ खत्म करेंगे। - दस वर्षीय रक्षा सहयोगसमझौता भी समाप्त होगा। - किसी भी अंतरराष्ट्रीय संधि को संसद की मंजूरी को अनिवार्य करने के लिए संविधान में संशोधन होगा।
आर्थिक नीति
-यूपीए की नव उदारवादी आर्थिक नीतियों की आलोचना। -वार्षिक योजना के खर्च में सकल घरेलू उत्पाद की तुलना में 10 फीसदी बढ़ोतरी का वादा। -कॉपरेरेट घरानों को करों में मिलने वाली छूट बंद होगी। -काले धन की बरामदगी के लिए अभियान चलेगा। -बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को 26 से बढ़ाकर 49 फीसदी करने के प्रस्ताव का विरोध। -बीमा क्षेत्र के निजीकरण को भी समर्थन नहीं।
कृषि नीति
-न्यूनतम समर्थन मूल्य के दायरे में आने वाली फसलों की संख्या बढ़ेगी।
उद्योग व श्रम नीति
-घरेलू उद्योगों को संरक्षण। -मजदूरों व अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए श्रम कानूनों पर सख्ती से अमल और समान अवसर आयोग के गठन का वादा।
लोक लुभावन वादे
-पेट्रोल व डीजल की कीमतें घटाने के लिए आयात व उत्पाद शुल्क में कटौती होगी। -सार्वजनिक क्षेत्र को मजबूती देंगे। -विधायिका में महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण देने के लिए बिल लाएंगे। -पिछड़े मुसलमानों को अन्य पिछड़ी जातियों के आरक्षण कोटे में शामिल करने की घोषणा। -भ्रष्टाचार रोकने के लिए पार्टी लाएगी लोकपाल विधेयक। -अनुच्छेद 355 व 356 में संशोधन।
तृणमूल कांग्रेस का घोषणापत्र
Tuesday 24 Mar, 2009 08:51 PM कोलकाता। अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस ने सोमवार को अपना चुनाव घोषणा पत्र जारी कर दिया। 80 पृष्ठों से ज्यादा के घोषणा पत्र में धर्मनिरपेक्षता, विकास, स्थायी सरकार के निर्माण में पार्टी के योगदान को रेखांकित किया गया है। कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, पर्यटन, कर प्रक्रिया का सरलीकरण, जमीन अधिग्रहण कानून में बदलाव, छोटे व मझोले उद्योगों को संरक्षण समेत विविध विषयों पर पार्टी की नीतियों को घोषणा पत्र में जगह दी गई है।

पार्टी का घोषणा पत्र जारी करते हुए तृणमूल नेत्री ममता बनर्जी ने कहा कि पार्टी केन्द्र में धर्मनिरपेक्ष सरकार को समर्थन देने पर प्रतिबद्ध है। पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठजोड किया है। केन्द्र में पार्टी भाजपा के साथ नहीं जाने वाली है। यह पूछे जाने पर कि क्या चुनाव के बाद कांग्रेस, लेफ्ट का साथ नहीं लेगी। इस पर ममता ने कहा कि कांग्रेस के साथ तृणमूल का गठजोड इसी शर्त पर हुआ है कि कांग्रेस चुनाव के बाद लेफ्ट का साथ नहीं लेगी।

घोषणा पत्र के आमुख पृष्ठ के ऊपरी हिस्से में पार्टी का नारा मां, माटी और मानुस को जगह दी गई है। नीचे की ओर पार्टी की नीतियां धर्मनिरपेक्षता और विकास को जगह दी गई है। अंदर के पन्नों में राज्य सरकार की विफलता को रेखांकित करते हुए पार्टी ने अपनी नीतियों को विस्तार से जगह दी है।

कर प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए अलग अलग करों की जगह इकलौता कर लगाने के वायदे को प्रमुखता से जगह दी गई है। जमीन अधिग्रहण कानून में संशोधन व कृषि आधारित उद्योगों के विकास को भी घोषणा पत्र में महत्व दिया गया है। अल्पसंख्यकों के विकास, उर्दू, भोजपुरी व मैथिली को जरूरी सम्मान देने की बात कही गई है।


दीघा को गोवा, कोलकाता को लंदन बनाएगी तृणमूल घोषणा पत्र में ममता बनर्जी के वक्तव्य के नीचे ही दीघा को गोवा, कोलकाता को लंदन व उत्तर बंग के पर्यटक केन्द्रों को स्विटजरलैंड बनाने का वायदा किया गया है। संवाददाता सम्मेलन में ममता ने कहा कि राज्य में प्राकृतिक संसाधनों की भरमार है। पार्टी इन क्षेत्रों के विकास पर खासा जोर देगी। पार्टी राज्य से प्रतिभा पलायन रोकने के लिए रोजगार के अवसर जुटाएगी।


काग्रेस का घोषणापत्रTuesday 24 Mar, 2009 08:49 PM नई दिल्ली। कांग्रेस ने अगले लोकसभा चुनावों में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को ही पीएम पद के उम्मीदवार के रूप में पेश किया है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने आगामी लोकसभा चुनाव के लिए आज पार्टी का चुनाव घोषणा पत्र जारी करते हुए जनता से अपील की कि वह सरकार के कामकाज और नीति को ध्यान में रखते हुए पार्टी और डॉ. सिंह को जनादेश दे।

सोनिया ने कहा कि प्रधानमंत्री पद के कई उम्मीदवार हो सकते हैं लेकिन मनमोहन सिंह के आगे कोई अन्य नहीं टिकता। मनमोहन सिंह देश के काबिल और अनुभवी प्रधानमंत्री हैं। इस पद के लिए सबसे बेहतर उम्मीदवार मनमोहन सिंह ही हैं। सोनिया ने कहा कि वो अपनी स्थिति पर तटस्थ हैं और भविष्य में भी पीएम नहीं बनेंगी। वहीं, राहुल गांधी के पीएम बनने के बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में श्रीमती सोनिया गांधी ने कुछ नहीं कहा और घोषणापत्र का कवर पेज दिखाकर मनमोहन सिंह की ओर इशारा कर दिया।

सोनिया ने ने कहा कि जनता वही सरकार चुनें जो देश को स्थायित्व और निरंतरता दे सके। वरूण गांधी के बारे में पूछे गए सवालों से सोनिया बचती ही रहीं और इस मामले में कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। इस मौके पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी भी मौजूद थे। लेफ्ट से समर्थन के बारे में भी सोनिया चुप रहीं और कहा कि चुनाव के बाद ही इस पर कोई निर्णय लिया जाएगा।

थर्ड फ्रंट एक दिशाहीन मोर्चा : मनमोहन सिंह
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि हाल ही बनाए गए थर्डफ्रंट के पास एक दिशाहीन सोच है। कांग्रेस के चुनावी घोषणापत्र जारी किए जाने के मौके पर मनमोहन सिंह ने तीसरे मोर्चे के अलावा भाजपा और लेफ्ट की सोच को भी दिशाहीन बताया। प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार ने वर्ष 2004 में किए गए सभी वादे पूरे किए हैं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ही एक ऎसी पार्टी है जिसका विस्तार पूरे देश में है। घेाषणापत्र में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों को तीन रूपए प्रति किलो चावल का वादा किया गया है।

वरूण को प्रत्याशी बनाना देशहित में नहीं
वरूण गांधी के भाषण को आपत्तिजनक बताते हुए उन्होंने कहा कि भाजपा उनका साथ देकर गलत कर रही है। वरूण को प्रत्याशी बनाना देशहित में नहीं है।

परमाणु करार सबसे बडी उपलब्धि
मनमोहन सिंह ने यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान अमरीका के साथ परमाणु करार को अहम उपलब्धि बताया। उन्होंने कहा कि सरकार ने हर मोर्च पर सफलता पाई है फिर चाहे वो आतंकवाद से मुकाबला हो या मंदी से निपटना। उन्होंने कहा कि चीन के बाद भारत सबसे ज्यादा विकासशील देश है। मंदी के बावजूद भारत के हालात कहीं बेहतर हैं। हालांकि, पीएम ने माना कि इस साल विकास दर में जरूर थोडी गिरावट देखने को मिली है लेकिन इसमें जल्द ही सुधार होगा।

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