Monday 19 March 2012

'हिंदुओं के प्रति द्वेष बढ़ाती किताबें'

   अमरीकी सरकार के एक आयोग के अध्ययन के मुताबिक़ पाकिस्तानी स्कूलों की पाठ्यपुस्तकें हिंदू और बाक़ी धार्मिक अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ पक्षपात और असहिष्णुता की भावना को बढ़ावा देती हैं।
इस अध्ययन में ये भी सामने आया है कि ज़्यादातर पाकिस्तानी शिक्षक ग़ैर-मुस्लिमों को ‘इस्लाम का दुश्मन’ मानते हैं। अमरीकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग का ये अध्ययन जारी हुआ है। समाचार एजेंसी एपी के अनुसार आयोग के अध्यक्ष लियोनार्ड लियो का कहना था, “इस तरह का भेदभाव सिखाने से ये संभावना बढ़ जाती है कि पाकिस्तान में हिंसक धार्मिक चरमपंथ बढ़ता जाएगा जिससे धार्मिक स्वतंत्रता, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्थिरता और वैश्विक सुरक्षा कमज़ोर होती जाएगी।”

इस अध्ययन में पाकिस्तान के चार प्रांतों की पहली से 10वीं कक्षा की 100 से ज़्यादा पाठ्य पुस्तकों की समीक्षा की गई। इसके अलावा शोधकर्ताओं ने इस साल फ़रवरी में 37 पब्लिक स्कूलों के 277 छात्र और शिक्षकों और 19 मदरसों के 226 छात्र और शिक्षकों से साक्षात्कार किया। आयोग ने चेतावनी दी है कि ख़ासकर शिक्षा के क्षेत्र में धार्मिक भेदभाव से लड़ने के प्रयासों का कट्टरपंथी कड़ा विरोध करेंगे। रिपोर्ट के अनुसार पाठ्य पुस्तकों में अल्पसंख्यकों, मुख्य रूप से हिंदू और कुछ हद तक ईसाइयों, का व्यवस्थित तरीक़े से नकारात्मक चित्रण पाया गया।

रिपोर्ट में कहा गया है, “पाठ्य पुस्तकों में धार्मिक अल्पसंख्यकों को अक्सर दूसरे दर्ज़े के नागरिक के रूप में पेश किया जाता है, जिन्हें उदार पाकिस्तानी मुस्लिमों ने सीमित अधिकार और सुविधाएं दी हैं और उन्हें इसके लिए शुक्रगुज़ार होना चाहिए।” रिपोर्ट में आगे लिखा है, “हिंदुओं को लगातार चरमपंथी और इस्लाम का दुश्मन बताया जाता है जिनका समाज और संस्कृति अन्याय और क्रूरता पर आधारित है जबकि इस्लाम के शांति और भाईचारे के सिद्धांत हिंदुओं की समझ से परे हैं।”

अध्य्यन में ये भी पाया गया कि पांचवी कक्षा की आधिकारिक पाठ्य पुस्तकों के मुताबिक़ हिंदू और मुसलमान एक राष्ट्र नहीं, बल्कि दो अलग-अलग राष्ट्र हैं। रिपोर्ट के मुताबिक़ किताबों में सबसे बड़े पाकिस्तानी अल्पसंख्यक गुट ईसाइयों के बारे में अलग से ज़्यादा कुछ नहीं पाया गया. लेकिन जितना कुछ भी था, उससे ईसाइयों की नकारात्मक और अपूर्ण तस्वीर ही मिलती है।” पाकिस्तान के सांस्कृतिक, सैन्य और नागरिक जीवन में हिंदू, सिख और ईसाइयों की भूमिका के बारे में पाठ्य पुस्तकों में बहुत कम वर्णन है. यानी एक युवा अल्पसंख्यक छात्र को किताबों में पढ़े-लिखे धार्मिक अल्पसंख्यकों के बहुत ज़्यादा उदाहरण नहीं मिलेंगे

अध्ययन में शोधकर्ताओं ने ये भी पाया कि पाठ्य पुस्तकें इस भावना को भी बढ़ावा देती हैं कि पाकिस्तान की इस्लामी पहचान लगातार ख़तरे में है। रिपोर्ट ये भी कहती है कि इस्लाम से जुड़े संदर्भ और बातें न सिर्फ़ धार्मिक पुस्तकों बल्कि अनिवार्य पाठ्य पुस्तकों में भी सामान्य बात है, यानि पाकिस्तानी ईसाइयों, हिंदुओं और बाक़ी अल्पसंख्यकों को इस्लाम के बारे में पढ़ाया जा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक़, इससे लगता है कि पाकिस्तान के संविधान का उल्लंघन हो रहा है क्योंकि पाकिस्तानी संविधान कहता है कि छात्रों को उनके धर्म के अलावा किसी और धर्म की शिक्षा नहीं मिलनी चाहिए।

शिक्षकों का रवैया
अध्ययन के मुताबिक़ पब्लिक स्कूलों के आधे से ज़्यादा शिक्षक धार्मिक अल्पसंख्यकों की नागरिकता को तो स्वीकार करते हैं लेकिन ज़्यादातर शिक्षकों का मानना है कि पाकिस्तान और मुसलमानों की रक्षा के मद्देनज़र इन्हें कोई भी महत्वपूर्ण पद नहीं दिए जाने चाहिए। हालांकि कई शिक्षकों ने माना कि धार्मिक अल्पसंख्यकों के रीति-रिवाजों की इज़्ज़त करना ज़रूरी है लेकिन साथ ही ये भी पाया गया कि 80 प्रतिशत शिक्षक ग़ैर मुस्लिमों को किसी-न-किसी रूप में ‘इस्लाम का दुश्मन’ मानते हैं।

पाठ्यक्रम में बदलाव और सुधार
अध्ययन के अनुसार सरकार ने 2006 में पाठ्यक्रम में बदलाव के लिए एक योजना की घोषणा की थी लेकिन ऐसा अब तक नहीं किया गया है। पाकिस्तान की नई शिक्षा नीति, 2009, के तहत इस्लाम धर्म की पढ़ाई एक अनिवार्य विषय है। लेकिन रिपोर्ट ये भी कहती है कि इस नीति में बदलाव कर अब अल्पसंख्यकों को तीसरी कक्षा से ही इस्लाम की पढ़ाई की जगह नैतिकता पर पाठ्यक्रम चुनने का विकल्प दिया गया है. इससे पहले ये विकल्प केवल नवीं और दसवीं कक्षा में ही दिया जाता है।

वहीं पाकिस्तान के ग़ैर-सरकारी संस्थानों का कहना है कि असल में इस विकल्प का कोई ख़ास मतलब नहीं है क्योंकि नैतिकता पर मौजूदा पाठ्य पुस्तकें पिछले पाठ्यक्रमों के दिशा निर्देशों पर आधारित हैं जिनमें इस्लाम के प्रति पूर्वाग्रह साफ़ हैं। साथ ही बाक़ी छात्रों से अलग-थलग पड़ने और कम अंकों के डर से अब भी अल्पसंख्यक छात्र नैतिकता की जगह इस्लाम की पढ़ाई का विषय ही चुनते हैं। इस अध्ययन पर प्रतिक्रिया के लिए पाकिस्तान के शिक्षा मंत्री से संपर्क करने की कोशिशें असफल रहीं।
साभार-बीबीसी (http://www.bbc.co.uk/hindi/news/2011/11/111109_pak_curriculum_ar.shtml )

Tuesday 13 March 2012

8 माह में शादी के मात्र 9 मुहूर्त, शुभ समय का प्रतीक है मुहूर्त

हिंदू पंचांग में इस साल शादी के मुहूर्त का टोटा है। आने वाले आठ महीने में सिर्फ 9 श्रेष्ठ मुहूर्त हैं, जिसमें फेरे लिए जा सकते हैं। मार्च, अप्रैल और जून में तीन-तीन मुहूर्त हैं। इसके बाद अक्टूबर तक कोई मुहूर्त नहीं है। फिर नवंबर, दिसंबर में विवाह किए जा सकेंगे

मीनार्क, गुरु तारा अस्त होना प्रमुख वजह
ज्योतिषी डा. दत्तात्रेय होस्कर के अनुसार होलाष्टक के कारण होली तक कोई शुभ कार्य नहीं होगा। इस महीने शादी का मुहूर्त लगातार 9, 10 व 11 मार्च को है। 14 मार्च को सूर्य मीन राशि में प्रवेश कर रहा है। इसे शास्त्रों में मीनार्क कहा जाता है। मीनार्क में सूर्य को अस्त होना माना जाता है और जब सूर्य अस्त होता है तो शादी नहीं होती। यह स्थिति 13 अप्रैल तक रहेगी। इस दौरान विवाह नहीं होगा। इसके बाद अप्रैल में 20, 24 व 30 तारीख को फेरे लिए जा सकेंगे।

3 मई को गुरु तारा अस्त होने के कारण एक भी श्रेष्ठ मुहूर्त मई में नहीं है। जून में 24, 27 व 29 तारीख को विवाह किए जा सकेंगे। जून माह में ही देवशयनी एकादशी आ रही है। इस दिन देव सो जाएंगे और चार माह बाद देवउठनी एकादशी को जागेंगे तब तक विवाह वर्जित है। इस तरह जुलाई, अगस्त, सितंबर व अक्टूबर में फेरे नहीं ले सकेंगे।
शुभ समय का प्रतीक है मुहूर्त
सात 'स' से कीजिए हर काम का शुभारंभ
 कहते हैं किसी भी वस्तु या कार्य को प्रारंभ करने में मुहूर्त देखा जाता है, जिससे मन को बड़ा सुकून मिलता है। हम कोई भी बंगला या भवन निर्मित करें या कोई व्यवसाय करने हेतु कोई सुंदर और भव्य इमारत बनाएं तो सर्वप्रथम हमें 'मुहूर्त' को प्राथमिकता देनी होगी। शुभ तिथि, वार, माह व नक्षत्रों में कोई इमारत बनाना प्रारंभ करने से न केवल किसी भी परिवार को आर्थिक, सामाजिक, मानसिक व शारीरिक फायदे मिलते हैं वरन उस परिवार के सदस्यों में सुख-शांति व स्वास्थ्य की प्राप्ति भी होती है।  यहां शुभ वार, शुभ महीना, शुभ तिथि, शुभ नक्षत्र भवन निर्मित करते समय इस प्रकार से देखे जाने चाहिए ताकि निर्विघ्न, कोई भी कार्य संपादित हो सके।

शुभ वार : सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार (गुरुवार), शुक्रवार तथा शनिचर (शनिवार) सर्वाधिक शुभ दिन माने गए हैं। मंगलवार एवं रविवार को कभी भी भूमिपूजन, गृह निर्माण की शुरुआत, शिलान्यास या गृह प्रवेश नहीं करना चाहिए।

शुभ माह : देशी या भारतीय पद्धति के अनुसार फाल्गुन, वैशाख एवं श्रावण महीना गृह निर्माण हेतु भूमिपूजन तथा शिलान्यास के लिए सर्वश्रेष्ठ महीने हैं, जबकि माघ, ज्येष्ठ, भाद्रपद एवं मार्गशीर्ष महीने मध्यम श्रेणी के हैं। यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि चैत्र, आषाढ़, आश्विन तथा कार्तिक मास में उपरोक्त शुभ कार्य की शुरुआत कदापि न करें। इन महीनों में गृह निर्माण प्रारंभ करने से धन, पशु एवं परिवार के सदस्यों की आयु पर असर गिरता है।

शुभ तिथि : गृह निर्माण हेतु सर्वाधिक शुभ तिथिया ये हैं - द्वितीया, तृतीया, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी एवं त्रयोदशी तिथियां, ये तिथियां सबसे ज्यादा प्रशस्त तथा प्रचलित बताई गई हैं, जबकि अष्टमी तिथि मध्यम मानी गई है। हर  महीने में तीनों रिक्ता अशुभ होती हैं। ये रिक्ता तिथियां निम्न हैं- चतुर्थी, नवमी एवं चौदस या चतुर्दशी। रिक्ता से आशय रिक्त से है, जिसे बोलचाल की भाषा में खालीपन या सूनापन लिए हुए रिक्त (खाली) तिथियां कहते हैं। अतः इन उक्त तीनों तिथियों में गृह निर्माणनिषेध है।

शुभ नक्षत्र : किसी भी शुभ महीने के रोहिणी, पुष्य, अश्लेषा, मघा, उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तरा भाद्रपदा, स्वाति, हस्तचित्रा, रेवती, शतभिषा, धनिष्ठा सर्वाधिक उत्तम एवं पवित्र नक्षत्र हैं। गृह निर्माण या कोई भी शुभ कार्य इन नक्षत्रों में करना हितकर है। बाकी सभी नक्षत्र सामान्य नक्षत्रों की श्रेणी में आ जाते हैं।

सात 'स' और शुभता
शास्त्रानुसार (स) अथवा (श) वर्ण से शुरू होने वाले सात शुभ लक्षणों में गृहारंभ निर्मित करने से धन-धान्य व अपूर्व सुख-वैभव की निरंतर वृद्धि होती है व पारिवारिक सदस्यों का बौद्धिक, मानसिक व सामाजिक विकास होता है। सप्त साकार का यह योग है, स्वाति नक्षत्र, शनिवार का दिन, शुक्ल पक्ष, सप्तमी तिथि, शुभ योग, सिंह लग्न एवं श्रावण माह। अतः गृह निर्माण या कोई भी कार्य के शुभारंभ में मुहूर्त पर विचार कर उसे क्रियान्वित करना अत्यावश्यक है।
साभार -http://hindi.webdunia.com/religion-astrology-article/ 
 

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