Monday, 28 February 2011

मजीठिया आयोग की सिफारिशों पर जल्द अमल की सरकार से अपील


     पत्रकारों की चेतावनी- छेड़छाड़ हुई तो विरोध किया जाएगा

   सात पत्रकार इकाइयों और अखबारी कर्मचारियों के संगठनों ने आम बजट की पूर्व संध्या पर केंद्र सरकार से अपील की है कि वह जस्टिस मजीठिया आयोग की सिफारिशों को जल्दी ही अधिसूचित करे। नेशनल प्लेटफार्म आफ जर्नलिस्ट आरगेनाइजेशन की स्टीयरिंग कमिटी ने अपनी दो दिन की बैठक के बाद यह घोषणा की। स्टीयरिंग कमिटी ने चेतावनी दी है कि यदि आयोग की सिफारिशों के साथ छेड़-छाड़ की गई तो इस पूरे मुद्दे को जनता के बीच, सड़कों पर, संसद में उठाया जाएगा। इस मौके पर दिल्ली प्रेस यूनिटी सेंटर के गठन की घोषणा की गई जिसके अध्यक्ष रूपचंद राजपूत हैं। उन्होंने कार्यकारिणी की भी घोषणा की।
दिल्ली यूनियन आफ जर्नलिस्ट्स (डीयूजे) की अगुआई में आंध्र प्रदेश वर्किंग जर्नलिस्ट फेडरेशन, उत्तर प्रदेश के एलायंस आफ जर्नलिस्ट्स, उत्तरांचल के पत्रकार संघ, जम्मू कश्मीर की पत्रकार इकाई, छत्तीसगढ़ के पत्रकार मंच, केरल के पत्रकार और एसोसिएशन आफ एक्रिडेटेड न्यूज कैमरामैन की अगुआई में बने नेशनल प्लेटफार्म आफ जर्नलिस्ट्स आरगेनाइजेशन के तहत शनिवार और रविवार को राजधानी में हुए अपने सम्मेलन में फैसला लिया कि जस्टिस मजीठिया की सिफारिशों से कोई छेड़छाड़ यदि हुई तो इसका पुरजोर विरोध होगा। इस सम्मेलन में बताया गया कि विभिन्न सिफारिशों पर संशोधनों के लिए अब मंत्रालय पर दबाव डाले जा रहे हैं जो अनुचित है। नेशनल प्लेटफार्म आॅफ जर्नलिस्ट्स आरगेनाइजेशन की स्टीयरिंग कमिटी में शामिल पत्रकारों और गैर पत्रकार कर्मचारियों ने यह साफ किया कि उनका यह संगठन मीडिया के विभिन्न संगठनों में एका बढ़ाने के लिए बना है। इनकी मांग है कि जस्टिस मजीठिया की सिफारिशों पर जल्द से जल्द अमल हो। सिफारिशों में एरियर की अवधि कम न की जाए क्योंकि आयोग का गठन ही लगभग दो दशक बाद हुआ। तबसे महंगाई लगातार बढ़ी है।
आंध्र प्रदेश वर्किंग जर्नलिस्ट्स फेडरेशन के महासचिव जी आंजनेयलु ने कहा कि पत्रकारों और गैर पत्रकार कर्मचारियों को अर्से बाद जस्टिस मजीठिया आयोग मिला। इसकी सिफारिशों पर हमारे मतभेद हैं लेकिन जो भी सिफारिशें हैं उन पर जल्दी से जल्दी अमल होना चाहिए। एपीडब्लू जेएफ के राष्ट्रीय संयोजक परमेश्वर राव ने कहा कि जस्टिस मजीठिया की सिफारिशों पर कोई छेड़छाड़ किसी भी स्तर पर नहीं की जानी चाहिए। उप्र एलायंस आफ जर्नलिस्ट्स के शिव प्रकाश गौर ने कहा कि जिलों में अखबारों के संवाददाताओं को उचित मानदेय दिया जाना चाहिए। डीयूजे के महासचिव एसके पांडे ने कहा कि नेशनल प्लेटफार्म आफ जर्नलिस्ट्स आरगेनाइजेशन का गठन आज की जरूरत है।  कन्फेडरेशन और एआईईएनएफ के साथ यह आरगेनाइजेशन सहयोग करते हुए पत्रकारों और गैर पत्रकार अखबारी कर्मचारियों की एका बढ़ाने के लिए बना है।
इस मौके पर दिल्ली प्रेस यूनिटी सेंटर का गठन हुआ। आम राय से रूपचंद राजपूत इसके अध्यक्ष और दिनेश चंद्र उपाध्यक्ष घोषित किए गए। महासचिव बनीं सरस्वती। इनके अलावा सुजाता मधोक, राजकुमार और सीएस नायडू सचिव बने। प्रचार सचिव बने एसके पांडे। राजपूत ने बताया कि दिल्ली प्रेस यूनिटी सेंटर पत्रकारों व अखबारी कर्मचारियों में एका और जुझारूपन को धारदार बनाने के इरादे से गठित हुआ है। इसमें राजधानी से प्रकाशित अखबारों के अलावा क्षेत्रीय अखबारों के लोगों को  कार्यकारिणी में जल्दी ही शामिल किया जाएगा। ( साभार- जनसत्ता ब्यूरो , २८ फरवरी )

पत्रकारों-गैरपत्रकारों के वेतन में 35 फीसदी वृध्दि की सिफारिश

   पत्रकारों और गैरपत्रकारों के लिये गठित मजीठिया वेतनबोर्ड ने आज ( 31 December 2011 को ) केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट दे दी जिसमें लगभग 35 प्रतिशत वेतन वृध्दि की सिफारिश की गई है। न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) जी.आर. मजीठिया ने केंद्रीय श्रम सचिव पीसी चतुर्वेदी को आज अपनी रिपोर्ट दी। श्री चतुर्वेदी ने बाद में संवाददाताओं को बताया कि पत्रकारों और गैरपत्रकारों के वेतन में बढ़ोतरी के लिये रिपोर्टों की समीक्षा करके जल्द ही उसकी सिफारिशों को लागू किया जायेगा। न्यायमूर्ति मजीठिया ने बताया कि एक जुलाई 2010 के वेतन के आधार पर विभिन्न मदों में कुल मिलाकर लगभग 35 प्रतिशत वृध्दि की सिफारिश की गयी है। इसके अलावा पत्रकारों की सेवानिवृत्ति की उम्र बढ़ाकर 65 वर्ष करने और भविष्य में वेतन वृध्दि के मामलों पर विचार करने के लिये न्यायाधिकरण बनाने का भी सुझाव दिया गया है। न्यायमूर्ति मजीठिया ने बताया कि वेतन वृध्दि के लिये मूल वेतन की वर्तमान दरें, महंगाई भत्ता और पहले से ही मंजूर 30 प्रतिशत अंतरिम राहत को ध्यान में रखा गया है। सालाना वेतन वृध्दि विभिन्न वेतनमानों में शुरुआती दर के आधार पर तय होगी। नये वेतनमानों में आवास भत्ता, परिवहन भत्ते, रात्रि पाली भत्ते, विषम परिस्थितिजन्य भत्ते, अवकाश यात्रा भत्ते और चिकित्सा भत्ते में भी उचित वृध्दि की सिफारिश की गई है। जनसंख्या के आधार पर शहरों के वर्गीकरण के लिये आवास भत्ता और परिवहन भत्ता से जोड़ते हुये शहर क्षतिपूर्ति भत्ता के बारे में विचार नहीं किया गया। नये वेतमान में महंगाई भत्ता को शत-प्रतिशत समायोजित करने की सिफारिश की गयी है और अब इसमें वर्ष में दो बार ही घट-बढ़ होगी। अभी हर तिमाही में  महंगाई भत्ते में संशोधन किया जाता है। ( साभार- रांची एक्सप्रेस )

Wednesday, 9 February 2011

बदल रही है सागरद्वीप की फिजा !



चित्र में बाएं से प्रभात खबर के अखिलेश, दैनिक जागरण के अरविंद दूबे, जनसत्ता के डा. मान्धाता सिंह, राजस्थान पत्रिका के प्रभात गुप्ता और जनसत्ता के जयनारायण प्रसाद। पीछे दिख रहा है निर्माणाधीन शिविर स्थल। हमारे सामने की तरफ समुद्र और पीछे की तरफ कपिलमुनि का मंदिर व मेला स्थल है। दूसरी फोटो में पीछे दिख रही हैं समुद्र की लहरे।
 ६  जनवरी २०११ को १६ साल बाद पत्रकार मित्रों ( जयनारायण प्रसाद, अरविंद दूबे व कोलकाता के बांग्ला, हिंदी व अंग्रेजी के पत्रकारों )  के साथ दूसरी बार गंगासागर गया था। पश्चिम बंगाल सरकार का सूचना विभाग गंगासागर मेले की पूर्व तैयारियों की देने के लिए हर साल पत्रकारों को गंगासागर ले जाता है। सागरद्वीप पर १४ जनवरी को मकर संक्रांति के मौके पर पुण्यस्नान के लिए लाखों तीर्थयात्री आते हैं। इस बार सागरद्वीप पूरी तरह से बदला हुआ दिखा। सागरद्वीप की बेतहासा बढ़ी आबादी ने बाजार को भी फैलने में सहयोग दिया। १६ साल पहले सागरद्वीप में कहीं-कहीं या कहें बेहद कम आबादी थी मगर इस बार जब से बस सागरद्वीप की ओर दौड़ने लगी तब से रास्तें में बाजार ही बाजार दिखाई दिए। इतना ही नहीं बाजार और सड़क के किनारे के गांवों में खपरैल या छत वाले जायादातर मकानों पर सोलर पैनल लगे दिखे। सागरद्वीप में बिजली इसी से प्राप्त होती है।इसी सोलर बिजली के कारण इन घरों पर डिस एंटिना भी लगे हुए दिखे। अभी तक  बिजली के खंभे नहीं पहुंच पाए हैं। यह जरूर है २०११-१२ तक सागद्वीप तक भी बिजली पहुंच जाएगी। हमने कचूबेड़िया तट से सागर को जोड़ने वाले मीलों लंबी नदी में बनाए जा चुके कई बिजली के खंभे देखे। अब महज दो तीन और बनना बाकी था। यानी जल्दी सही सागरद्वीप भी बिजली की रोशनी में रोशन हो जाएगा। हो सकता है कि आनेवाले दोतीन सालों में इसी नदी पर (हारवुड़ प्वाइंट पर ) पुल भी बन जाए। फिलहाल अभी तो हमें लांच से इसे पार करने में घंटे भर लगे। अफसोस होता है कि गंगासागर जैसे महत्वपूर्ण व इतने बड़े तीर्थ तक जाने के लिए सरकारें माकूल इंतजाम तक नहीं कर पाईं हैं। जबकि यहां आने वाले लाखों तीर्थयात्रियों से आम भाड़े से कई गुना भाड़ा वसूला जाता है। मसलन जो लांच आम दिनों में सिर्फ छह रुपए लेते हैं वहीं लांच का किराया तीर्थयात्रियों के लिए ४० रुपए हो जाता है। बहरहाल आने वाले दिनों में सागरद्वीप अब कोई बियावान जंगल नहीं रह जाएगा और न ही कोई कष्टसाध्य तीर्थ रह जाएगा। गंगासागर के बार में मान्यता थी कि वहां से कम ही लोग वापस लौट पाते हैं। कहावत भी है कि- सभी तीर्थ बार-बार, गंगासागर एक बार। पर अब यह मिथ आपको टूटता नजर आएगा। बड़ी ही मनोरम स्थल है गंगासागर। मैं तो कहूंगा कि आप भी जरूर जाइए एक बार गंगासागर।

दुःस्वप्न सी लगती है वह यात्रा

१६ साल पहले गंगासागर से जुड़ी एक घटना तो मुझे जीवनभर याद रहेगी। इस घटना से शायद आपको भी अंदाजा हो जाएगा कि तमाम व्यवस्था के बावजूद तबतक तो बहुत कष्टसाध्य थी गंगासागर की यात्रा। १३ जनवरी १९९४ की रात में आमतीर्थयात्रियों की तरह कोलकाता के दमदम कैंट इलाके से गंगासागर जाने वाली एक बस से हम सात लोग रवाना हुए। मैं, मेरी मां, मेरे मित्र अनिल त्रिवेदी व उनकी मां, मेरे मित्र अभय सिंह उनकी मां व पत्नी सभी बेहद उत्साहित से इस यात्रा की शुरुआत से। मगर यात्रा के मध्य से ही कष्ट के संकेत मिलने लगे थे। रात दो बजे बस जब हारवुड़ प्वाइंट की तरफ बढ़ रही थी तभी हमारी बस को पुलिसवालों के निर्देश पर नामखाना की तरफ मोड़ दिया गया। आपको बता दें कि हारवुड प्वाइंट ही वह जगह है जहां से गंगासागर जाना सुरक्षित और आसान है। इसी हारवुड प्वाइंट से ही सागरद्वीप के लिए पुल बनाए जाने की बात कही जा रही है। ममता बनर्जी ने तो इस पुल के बनवाने का वायदा भी किया है। नामखाना से गंगासागर का रास्ता खतरनाक माना जाता है। लांच जब नामखाना से सागरद्वीप की ओर बढ़ता है तो घंटों दूर-दूर तक सिर्फ अथाह सागर दिखता है। हिंदमहासागर के पास से गुजरते हुए रोमाच के साथ भय भी लगता है।

बहरहाल हमारी बस नामखाना तो पहुंच नहीं सकी। लापरवाही से ज्यादा तीर्थयात्रियों को इस तरफ भेज देने से बस ने हमें काफी हगले उतार दिया। तब सुबह के चार बजे थे। तीन बूढ़ी माताओं के साथ हम भी लांच पकड़ने के लिए कतारबद्ध हो गए। सोचे थे कि घंटे भर में लाच मिल जाएगी। मगर हमारा अंदाजा गलत निकला। शौच, दातून, नाश्ता की तो सोच भी नहीं सकते थे। खड़े-खड़े बुरी तरह से थक गए। हमारा धैर्य भी जवाब दे गया था। लांच तक पहुंचने तक ११ बज गए। नजदीक हुंचे तो देखा कि जमीन से करीब पंद्रह फुट उंची सीढ़ी पर चढ़कर लांच पर जाना होगा। बहरहाल मैं सबसे पीछे रहकर अपने मित्रों अनिलजी व अभयजी के साथ अपनी व उनकी माताओं को लांच पर चढ़ने में मदद की। सभी ऊपर चढ़ चुके थे अब सिर्फ मैं बाकी था और मेरे पीछे भारी भीड़ धक्का-मुक्की कर रही थी। जल्दी से सीढ़ियां चढ़ रहा था। जब आखिरी सिरे पर था तभी पार फिसल गया और मैं नीचे गिरने ही वाला थी तभी मुझे पकड़ने के लिए उपर खड़े अभय सिंह ने मेरा दाहिना हाथ पकड़ लिया। दो मिनट के लिए मेरे हाथ पैर सुन्न हो गए। बहरहाल अभयजी व दूसरे लोगों ने मुझे खींचकर लांच पर चढ़ा लिया। मैं इतना डर गया था कि करीब डेढ़ घंटे तक मारे डर के कांपता रहा। सीढ़ी से गिरने का वह दृश्य आज भी जब मेरे आंखों के सामने आता है तो मेरी रुह कांप जाती है। दरअसल नामखाना में लांच पर चढ़ने के लिए जेटी ही नहीं थी। ज्वार खत्म होने के बाद लांच पर चढ़ना सामान्य लोगों के लिए बेहद खतरनाक हो जाता है। समुद्र में जब ज्वार होता है तो पानी १०-१५ मीटर ऊंचा होकर करार तक चला जाता है। उस समय तो आप लांच पर आसानी से चढ़ सकते हैं मगर भाटा होने पर लांच तट से काफी दूर ही रह जाता है जहां से लांच पर चढ़ने के लिए सीढ़ी लगानी पड़ती है। अब ऐसी अव्यवस्था वाली जगह पर प्रशासन ने भारी तादाद में तीर्थयात्रियों को भेज दिया था। इसके ठीक विपरीत हारवुड प्वाइंट पर बहुत जेटी बनीं हैं जहां से लांच पर जाना आसान होता हैं। इसके अलावा हारवुड प्वाइंट में नौसेना के तटरक्षक होते हैं। इस लिए भी भय की कोई बात नहीं होती। नामखाना आज भी सागरद्वीप के लिए कष्टसाध्य रास्ता है।

एक और घटना आज भी मेरे मन में सिहरन पैदा करती रहती है। दरअसल जिस लांच से हम सागरद्वीप पहुंचे थे, वह मां अभया लांच थी। यहीं लांच रात को लौटते वक्त दुर्घनाग्रस्त हो गया। नामखाना के रास्ते पर सागर में चलने वाले इस रूट पर रात में लांच चलाने के कोई माकूल इंतजाम नहीं थे। फिर तो दुर्घटना होनी ही थी। रात में सागरद्वीप से तीर्थयात्रियों को लेकर वहीं मां अभया लांच लौट रही थी। अंधेरा और सिगनल का सही इंतजाम नहीं होने के कारण सागरद्वीप की ओर जारही एक दूसरी लांच ने मां अभया लांच को टक्कर मार दी। मां अभया के दो टुकड़े हो गए। इस भयानक हादसे में मां अभया पर सवार ज्यादातर तीर्थयात्रियों की मौत हो गई। इस इलाके में निगरानी का कोई इंतजाम नहीं होने किसी को बचाना संभव नहीं था। यह हादसा अगर हारवुड प्वाइंट पर होता तो नौसेना के तटरक्षक ज्यादातर को बचा लेते। अव्वल तो यह है कि हारवुड इलाके में हादसा होता ही नहीं। सवाल यह उठता है कि जहां सुरक्षा के इतजाम नहीं वहां से इतनी भारी तादाद में तीर्थयात्रियों को प्रशासन भेजता ही क्यों है ?

हमें जब इस घटना की सूचना सुबह सागरद्वीप में मिली तो हमें भी काठ मार गया। अगर हमारे साथ ऐसा होता हम क्या करते ? शाम को हम भी लौटने की योजना बना रहे थे। मगर बसवालों की वजह से सुबह जाना तय किया था। अगर रात में लौटते तो हम भी उसी मां अभया में होते जिसकी सागर में जलसमाधि बन गई। हम बच गए मगर सागरद्वीप की वह यात्रा एक दुःस्वप्न की तरह लगती है।

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