एटीएम से पैसे निकालने के बाद मिलने वाली रसीद को सभी संभाल कर रखते हैं। बड़े-बड़े मॉल्स और शोरूम में खरीददारी के बाद पेमेंट की रसीद को लोग पर्स में भी रख लेते हैं। कुछ लोग तो पेट्रोल पंप, बस के टिकट की पर्चियां या रसीद तक घर में ले जाकर बच्चों को दे देते हैं। लेकिन प्रिंट के लिए इस्तेमाल होने वाली इन रसीदों पर चढ़ाई जाने वाली कोटिंग में बेहद खतरनाक केमिकल होता है। इसमें बायस्फीनॉल-ए (बीपीए) नामक केमिकल्स मिक्स होता है, जो टॉक्सिक होता है।
क्या है बीपीए?
डॉक्टर डी.के. दास ने बताया कि बायस्फीनॉल-ए एक केमिकल है जिसका यूज कई प्रोडक्ट में सालों से हो रहा है। खासकर एयर टाइट डिब्बे, स्पोटर्स के समान, सीडी और डीवीडी, वाटर पाइप की लीकेज को ठीक करने और खाने के प्रॉडक्ट वाले पैकेट पर कोटिंग चढ़ाने के काम में आता है। इस वजह से यूरोप में बच्चों की फीडिंग बॉटल बनाने में इसके यूज को सालों पहले बैन कर दिया गया है।
क्यों है खतरनाक?
हाल ही में महाराष्ट्र की डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर मराठवाड़ा यूनिवर्सिटी में हुई एक रिसर्च के मुताबिक इस कागज पर की गई केमिकल कोटिंग मानव शरीर के लिए काफी खतनाक हो सकती है। इन पर्चियों पर कुछ भी छापने के लिए थर्मल प्रिंटर का उपयोग किया जाता है। इसलिए जहां तक संभव हो ऐसी पर्ची को अपने से दूर रखें क्योंकि इसके लगातार संपर्क में आने से साइड इफेक्ट का खतरा रहता है और इंसान गंभीर बीमारी का शिकार हो सकता है। बीएलके सुपर स्पेशिएलिटी हॉस्पिटल के डॉक्टर आर. के. सिंघल का कहना है कि इन कागजों की कोटिंग में ट्रायरील मिथेन थॉलिड के ल्यूको डाय, बीपीए, बायस्फेनॉल-बी (बीपीएस) और स्टेब्लाइजर्स का उपयोग होता है। आज कल इसका सबसे ज्यादा यूज थर्मल प्रिंटर में उपयोग किए जाने वाले पेपर कोटिंग पर बायस्फेनॉल-ए का उपयोग किया जाता है।
1957 से इस्तेमाल में
बायस्फीनॉल-ए (बीपीए) एक ऐसा केमिकल है 1957 से यूज हो रहा है। जिसमें बॉटल को एयर टाइट करने, फीडिंग बॉटल की कोटिंग, फूड ड्रिंक्स के पैकेट की कोटिंग, लीकेज को बंद करने वाले पेस्ट में खूब हो रहा है। भारत में भी इसका प्रयोग सालों से हो रहा है। लेकिन आजकल प्रिंट पेपर पर इसकी कोटिंग चढ़ाई जाती है जिसका प्रयोग काफी बढ़ा है। लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि लोगों को इस बारे में जागरूक किया जाए और सरकार इसके दूसरे विकल्प को जल्द से जल्द बाजार में उतारने की कोशिश करे।
कैसे होती है बॉडी में एंट्री
उंगलियों के रास्ते : रिसर्च के अनुसार अगर ऐसे कागज को पांच सेकंड तक हाथ में रखा जाए तो 1 माइक्रोग्राम बीपीए हमारी उंगलियों में लग जाता है। अगर हाथ में नमी हो तो यह और तेजी से काम करता है। दस घंटे तक लगातार इस पेपर को हाथ मे रखने वाले इंसान के बॉडी में 71 बीपीए इंट्री कर सकता है।
पर्स से भी एंट्री : डॉक्टर का कहना है कि अगर आप पर्स में ऐसे पेपर रखते हैं तो इसकी इंक के कण पर्स में गिरते हैं और इससे पैसे के साथ-साथ पूरे पर्स में बीपीए मौजूद रहता है और इंसान बार-बार इसे टच करेगा, जो ज्यादा खतरनाक है।
फूड पैकेज और ड्रिंक्स से : डॉक्टर आर.के. सिंघल का कहना है कि फूड ड्रिंक्स के पैकेट में अगर कहीं पर लीक हो या कटा फटा हुआ हो तो यह खाने के पदार्थ से मिक्स होकर बॉडी तक जा सकता है।
पानी के पाइप से : इसी प्रकार अगर पानी के पाइप लाइन में लीकेज हो तो इसे बंद करने के लिए लोग पेस्ट यूज करते हैं, इस पेस्ट के साथ मिक्स होकर पानी के साथ बीपीए पेट में पहुंच सकता है।
अंडरग्राउंस वाटर तक पहुंच : यही नहीं अगर ऐसे प्रॉडक्ट को फेंक दिया जाए तो यह मिट्टी के साथ मिक्स होकर पानी में मिल जाएगा और फिर जमीन के पानी के साथ मिक्स हो जाएगा।
क्या है इससे खतरा?
डॉक्टर दास का कहना है कि बीपीए फीमेल हार्मोन इंस्ट्रोजोन की तरह काम करता है और इसके लगातार टच से जहां प्रिग्नेंट लेडीज के ब्लड में मिक्स हो कर प्लेसेंटा में जा सकता है और गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए खतरनाक हो सकता है। इसी प्रकार छोटे बच्चे में लीवर पर असर हो सकता है, क्योंकि बच्चे में टॉक्सिक को डिटॉक्सीफाई करने वाले एंजाइम नहीं बना होता है। जब यह बॉडी में जाता है तो इंस्ट्रोजोन की तरह बीहेव करता है और लड़कियों में फ्री मैच्योर नेचुरल साइकिल पर असर पड़ता है। इसके अलावे ब्रेस्ट कैंसर, प्रोस्टेट, बच्चों में हाइपर एक्टिविटी, न्यूरो, मोटापा, डायबिटीज और इम्यून सिस्टम कमजोर होने का खतरा रहता है। दोनों डॉक्टरों का कहना है कि इसके दूसरे विकल्प तलाशने की जरूरत है। टमाटर से एक ऐसे केमिकल का ईजाद किया गया है जो बीपीए फ्री है और इसका प्रयोग सेफ हो सकता है।
करें बीपीए बॉटल की पहचान
डॉक्टर डी.के. दास का कहना है कि बेबी फीडिंग बॉटल पर तो बीपीए का यूज अब नहीं हो रहा है। लेकिन अगर लोग थोड़ा सतर्क रहें तो बीपीए बॉटल की पहचान कर सकते हैं। हर बॉटल के पीछे हिस्से में एक त्रिकोण बना होता है और त्रिकोण के अंदर डिजिट में एक लिखा होता है और उसके नीचे pet लिखा होता है, इसका मतलब है कि बॉटल बीपीए फ्री है। लेकिन जिस त्रिकोण में 07 और नीचे pl लिखा होता है उसमें बीपीए होता है। डॉक्टर का कहना है कि इसी प्रकार अगर किसी के पानी के पाइप लाइन लीकेज हो तो उसे पेस्ट से बंद करने के बजाए पाइप को बदलें ताकि किसी भी प्रकार के ऐसे टॉक्सिक से बचा जा सके।
नष्ट नहीं होता यह केमिकल
डॉक्टर सिंघल ने कहा कि ऐसे प्रॉडक्ट को फेंकने का असर एक स्टडी में भी पाया गया है। अमेरिका में एक स्टडी में यूरिन टेस्ट किया गया था तो 80 पर्सेंट से ज्यादा लोगों का यूरिन पॉजिटिव आया था। इसका मतलब साफ है कि बीपीए ऐसा केमिकल है जो नष्ट नहीं होता है और पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाता है और नेचुरल प्रॉडक्ट के साथ मिक्स होकर बॉडी तक पहुंच जाता है। हालांकि डॉक्टर ने कहा कि इससे डरने की जरूरत नहीं है, बस थोड़ा सतर्क रहें और ऐसे प्रॉडक्ट से जहां तक संभव हो दूरी बनाए रखें। अगर इसे जला दिया जाए तो पर्यावरण को नुकसान होगा। सच तो यह है कि हमारे देश में ऐसे प्रॉडक्ट को डिस्पोज करने का कोई सिस्टम नहीं है। साभार- नवभारतटाइम्स.कॉम - राहुल आनंद की स्पेशल रिपोर्ट-
(http://navbharattimes.indiatimes.com/world/science-news/dangerous-chemical-in-ATM-Slip/articleshow/37503020.cms)
क्या है बीपीए?
डॉक्टर डी.के. दास ने बताया कि बायस्फीनॉल-ए एक केमिकल है जिसका यूज कई प्रोडक्ट में सालों से हो रहा है। खासकर एयर टाइट डिब्बे, स्पोटर्स के समान, सीडी और डीवीडी, वाटर पाइप की लीकेज को ठीक करने और खाने के प्रॉडक्ट वाले पैकेट पर कोटिंग चढ़ाने के काम में आता है। इस वजह से यूरोप में बच्चों की फीडिंग बॉटल बनाने में इसके यूज को सालों पहले बैन कर दिया गया है।
क्यों है खतरनाक?
हाल ही में महाराष्ट्र की डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर मराठवाड़ा यूनिवर्सिटी में हुई एक रिसर्च के मुताबिक इस कागज पर की गई केमिकल कोटिंग मानव शरीर के लिए काफी खतनाक हो सकती है। इन पर्चियों पर कुछ भी छापने के लिए थर्मल प्रिंटर का उपयोग किया जाता है। इसलिए जहां तक संभव हो ऐसी पर्ची को अपने से दूर रखें क्योंकि इसके लगातार संपर्क में आने से साइड इफेक्ट का खतरा रहता है और इंसान गंभीर बीमारी का शिकार हो सकता है। बीएलके सुपर स्पेशिएलिटी हॉस्पिटल के डॉक्टर आर. के. सिंघल का कहना है कि इन कागजों की कोटिंग में ट्रायरील मिथेन थॉलिड के ल्यूको डाय, बीपीए, बायस्फेनॉल-बी (बीपीएस) और स्टेब्लाइजर्स का उपयोग होता है। आज कल इसका सबसे ज्यादा यूज थर्मल प्रिंटर में उपयोग किए जाने वाले पेपर कोटिंग पर बायस्फेनॉल-ए का उपयोग किया जाता है।
1957 से इस्तेमाल में
बायस्फीनॉल-ए (बीपीए) एक ऐसा केमिकल है 1957 से यूज हो रहा है। जिसमें बॉटल को एयर टाइट करने, फीडिंग बॉटल की कोटिंग, फूड ड्रिंक्स के पैकेट की कोटिंग, लीकेज को बंद करने वाले पेस्ट में खूब हो रहा है। भारत में भी इसका प्रयोग सालों से हो रहा है। लेकिन आजकल प्रिंट पेपर पर इसकी कोटिंग चढ़ाई जाती है जिसका प्रयोग काफी बढ़ा है। लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि लोगों को इस बारे में जागरूक किया जाए और सरकार इसके दूसरे विकल्प को जल्द से जल्द बाजार में उतारने की कोशिश करे।
कैसे होती है बॉडी में एंट्री
उंगलियों के रास्ते : रिसर्च के अनुसार अगर ऐसे कागज को पांच सेकंड तक हाथ में रखा जाए तो 1 माइक्रोग्राम बीपीए हमारी उंगलियों में लग जाता है। अगर हाथ में नमी हो तो यह और तेजी से काम करता है। दस घंटे तक लगातार इस पेपर को हाथ मे रखने वाले इंसान के बॉडी में 71 बीपीए इंट्री कर सकता है।
पर्स से भी एंट्री : डॉक्टर का कहना है कि अगर आप पर्स में ऐसे पेपर रखते हैं तो इसकी इंक के कण पर्स में गिरते हैं और इससे पैसे के साथ-साथ पूरे पर्स में बीपीए मौजूद रहता है और इंसान बार-बार इसे टच करेगा, जो ज्यादा खतरनाक है।
फूड पैकेज और ड्रिंक्स से : डॉक्टर आर.के. सिंघल का कहना है कि फूड ड्रिंक्स के पैकेट में अगर कहीं पर लीक हो या कटा फटा हुआ हो तो यह खाने के पदार्थ से मिक्स होकर बॉडी तक जा सकता है।
पानी के पाइप से : इसी प्रकार अगर पानी के पाइप लाइन में लीकेज हो तो इसे बंद करने के लिए लोग पेस्ट यूज करते हैं, इस पेस्ट के साथ मिक्स होकर पानी के साथ बीपीए पेट में पहुंच सकता है।
अंडरग्राउंस वाटर तक पहुंच : यही नहीं अगर ऐसे प्रॉडक्ट को फेंक दिया जाए तो यह मिट्टी के साथ मिक्स होकर पानी में मिल जाएगा और फिर जमीन के पानी के साथ मिक्स हो जाएगा।
क्या है इससे खतरा?
डॉक्टर दास का कहना है कि बीपीए फीमेल हार्मोन इंस्ट्रोजोन की तरह काम करता है और इसके लगातार टच से जहां प्रिग्नेंट लेडीज के ब्लड में मिक्स हो कर प्लेसेंटा में जा सकता है और गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए खतरनाक हो सकता है। इसी प्रकार छोटे बच्चे में लीवर पर असर हो सकता है, क्योंकि बच्चे में टॉक्सिक को डिटॉक्सीफाई करने वाले एंजाइम नहीं बना होता है। जब यह बॉडी में जाता है तो इंस्ट्रोजोन की तरह बीहेव करता है और लड़कियों में फ्री मैच्योर नेचुरल साइकिल पर असर पड़ता है। इसके अलावे ब्रेस्ट कैंसर, प्रोस्टेट, बच्चों में हाइपर एक्टिविटी, न्यूरो, मोटापा, डायबिटीज और इम्यून सिस्टम कमजोर होने का खतरा रहता है। दोनों डॉक्टरों का कहना है कि इसके दूसरे विकल्प तलाशने की जरूरत है। टमाटर से एक ऐसे केमिकल का ईजाद किया गया है जो बीपीए फ्री है और इसका प्रयोग सेफ हो सकता है।
करें बीपीए बॉटल की पहचान
डॉक्टर डी.के. दास का कहना है कि बेबी फीडिंग बॉटल पर तो बीपीए का यूज अब नहीं हो रहा है। लेकिन अगर लोग थोड़ा सतर्क रहें तो बीपीए बॉटल की पहचान कर सकते हैं। हर बॉटल के पीछे हिस्से में एक त्रिकोण बना होता है और त्रिकोण के अंदर डिजिट में एक लिखा होता है और उसके नीचे pet लिखा होता है, इसका मतलब है कि बॉटल बीपीए फ्री है। लेकिन जिस त्रिकोण में 07 और नीचे pl लिखा होता है उसमें बीपीए होता है। डॉक्टर का कहना है कि इसी प्रकार अगर किसी के पानी के पाइप लाइन लीकेज हो तो उसे पेस्ट से बंद करने के बजाए पाइप को बदलें ताकि किसी भी प्रकार के ऐसे टॉक्सिक से बचा जा सके।
नष्ट नहीं होता यह केमिकल
डॉक्टर सिंघल ने कहा कि ऐसे प्रॉडक्ट को फेंकने का असर एक स्टडी में भी पाया गया है। अमेरिका में एक स्टडी में यूरिन टेस्ट किया गया था तो 80 पर्सेंट से ज्यादा लोगों का यूरिन पॉजिटिव आया था। इसका मतलब साफ है कि बीपीए ऐसा केमिकल है जो नष्ट नहीं होता है और पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाता है और नेचुरल प्रॉडक्ट के साथ मिक्स होकर बॉडी तक पहुंच जाता है। हालांकि डॉक्टर ने कहा कि इससे डरने की जरूरत नहीं है, बस थोड़ा सतर्क रहें और ऐसे प्रॉडक्ट से जहां तक संभव हो दूरी बनाए रखें। अगर इसे जला दिया जाए तो पर्यावरण को नुकसान होगा। सच तो यह है कि हमारे देश में ऐसे प्रॉडक्ट को डिस्पोज करने का कोई सिस्टम नहीं है। साभार- नवभारतटाइम्स.कॉम - राहुल आनंद की स्पेशल रिपोर्ट-
(http://navbharattimes.indiatimes.com/world/science-news/dangerous-chemical-in-ATM-Slip/articleshow/37503020.cms)