Wednesday, 23 December 2009

लोकतात्रिक सरकार का जनविरोधी राजशाही चरित्र

  अगर इतिहास की बात करें तो भारत के विभिन्न भूभागों में शासन कर रहे कई राजाओं को इतिहास के वर्तमान मूल्यांकन में जनविरोधी, आततायी इसी लिए कहा गया क्यों कि उन्होंने बेरहमी से जनता से जाजिया, जकात जैसे कर वसूले और उसे अपनी जरूरतों और विलासिता पर खर्च किया। इनमें सल्तनत काल के बलवन और मुगल बादशाह औरंगजेब का नाम कुख्यात है। आज वे भी जिंदा होते तो कर वसूलने की तमाम वजहें गिनाते और उसे जायज करार देते। मगर यह सच है की बेवश तत्कालीन जनता ने इसे सही नहीं माना। आज उसी जनता की दुख की कहानी इतिहास में दर्ज होकर उन बादशाहों की क्रूरता की मिशाल बन चुकी हैं। वह तो राजशाही का युग था मगर क्या हमारी आज की लोकतांत्रिक सरकार अपनी जनता के साथ क्या कर रही है? अगर आप आम नागरिक हैं तो इस सवाल पर गंभीरता से सोचिए। यकीन दिलाता हूं कि जिस दिन आप अपनी सरकारों के कामकाज का खुद मूल्यांकन करने लगेंगे आपका इस लोकतांत्रिक व्यवस्था और अपने रहनुमाओं पर से भरोसा उठ जाएगा। क्या आप कभी सोचते हैं जिन आलीशान भवनों में आपके रहनुमा रहते हैं और शाही जिंदगी जीते हैं वह सब आपकी कमाई से खर्च होता है। अपनी सारी जरूरतें के लिए बेहिसाब खर्च तो इनको वाजिब लगता है मगर जनता की सुविधाओं को यह कहकर छीनते हैं कि देश के खजाने में पैसा नहीं है।


अपनी इसी मनोवृत्ति ( मध्यकालीन क्रूर बादशाहों की मानसिकता ) के तहत वेतनभोगी भारतीयों को यह सरकार नया साल आने से पहले ही ऐसा तोहफा देने की शुरुआत कर दी है जिसके बोझ तले वेतनभोगियों व उसके परिवार के अरमान कुचल दिए जाएंगे। एक अप्रैल २००९ से ही एक अधिसूचना जारी कर आवास व यात्रा समेत कई मिलने वाले भत्तों को कर के दायरे में डाल दिया गया है। बजट से पहले ऐसा जानबूझकर किया गया है ताकि बजट के इससे अलग रखकर साफ सुथरा दिखाया जा सके। आपको याद होगा कि आम आदमी के सवाल पर सरकार के खजाने में पैसा नहीं होने का रोना रोया जाता है और दूसरी तरफ अपने वेतन भत्ते व सुविधाएं वगैरह बेहयाई से संसद में पास करा ली जाती है। अगर आप भूल रहे हों तो याद दिला दें कि भविष्य निधि की ब्याज दरों के साथ कैसा खिलवाड़ किया गया। यह बताने की जरूरत नहीं है कि भविष्यनिधि सचमुच में कर्मचारियों का भविष्य ही संवारती है मगर उस पर चोट करने से नही चूकती है हमारी जनहितकारी सरकार। १४ प्रतिशत से ८.५ प्रतिशत पर तो ला पटका और एहसान भी जताया कि हम आपके हिमायती हैं।


अपने दिमाग पर जोर डालिए तो ऐसे तमाम इनके कृत्य आपको भी दिखाई देने लगेंगे ।अभी ताजा उदाहरण तो यही है कि मंदी और खर्चों पर रोक के सरकारी नाटक के बावजूद मंत्रियों के हवाई यात्रा संबंधी विधेयक को मंजूरी २१ दिसंबर को दे दी गई। जबकि इसके ठाक पहले वेतनभोगियों की कमाई पर कर के ग्रहण की अधिसूचना जारी कर दी गई। पहले यह जानने की कोशिश करते हैं कि मंत्रियों को क्या दिया गया।

 जनसत्ता में २२ दिसंबर २००९ के अंक में छपी खबर देखिए----------।



मंत्रियों के हवाई यात्रा संबंधी विधेयक को मंजूरी

नई दिल्ली, 22 दिसंबर। मंत्रियों के हवाई यात्रा भाड़े संबंधी प्रावधान वाले एक विधेयक को संसद ने मंगलवार को मंजूरी दे दी। राज्यसभा ने इस संशोधन विधेयक को चर्चा के बिना ही ध्वनिमत से पारित कर दिया। लोकसभा ने इसे पहले ही अपनी मंजूरी दे दी थी। राज्यसभा में विधेयक को गृहराज्यमंत्री अजय माकन ने पेश किया था।

विधेयक के प्रावधान के हिसाब से किसी भी मंत्री, उसकी पत्नी और उसके आश्रितों को साल में एक बार देश के भीतर की जाने वाली हवाई यात्रा के भाड़े की राशि का भुगतान उसी तरह किया जाएगा जैसे उसे सरकारी यात्राओं के लिए किया जाता है। (जनसत्ता ब्यूरो )
 

भरपाई सिर्फ जनता से ही क्यों ?

   चुनाव जीतने के लिए पहले वेतन में बेतहासा वृद्धि की। इसके बाद बाकी खर्चे रोककर उसकी भरपाई करने की जगह आम वेतनभोगी की सुविधाओं को छीनने में जुट गए हैं। सभी जानते हैं कि सांसद निधि का क्या होता है? इसे खत्म करने की मांग खुद लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी कर चुके हैं। बार बार इसकी प्रासंगिकता पर सवाल उठाया जा चुका है । इसपर रोक लगाने की बजाए इसे २ करोड़ से बढ़ाकर पांच करोड़ करने की मांग की जा रही। जबकि समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद रामगोपाल यादव ने इसे खत्म करने की मांग फिर राज्यसभा में २१ दिसंबर को उठाई। खजाना भरने का तो यह भी तरीका ठीक ही था कि सासद निधि रोक दी जाए। या फिर देश किसी को कहीं से भी मिल रही सुविधाओं पर कर लगा दिया जाए। मगर ऐसा नहीं करेंगे। खुद पर आंच नहीं आने देंगे जनता के ये प्रतिनिधि मगर जनता को तकलीफ में डालने के हर बिल पास करा देंगे। अब उस खबर को देखिए जो इससे दो दिन पहले सभी अखबारों व समाचार एजंसियों ने प्रकाशित किए हैं। जिसमें वेतनभोगियों की कमाई छीनकर अपनी फिजूलखरची की भरपाई करने में लगी है हमारी सरकार। -----।



कर्मचारियों के भत्तों पर भी लग सकता है कर

नई दिल्ली, 19 दिसंबर (भाषा)। सरकार अब कर्मचारियों को मिलने वाले लाभों (पर्क्स) मसलन आवास और यातायात भत्ते पर भी इसी वित्त साल से कर लगाने पर विचार कर रही है। सूत्रों के मुताबिक वेतनभोगी वर्ग को अब उन्हें मिलने वाली सुविधाओं या लाभ पर भी कर का बोझ झेलना पड़ सकता है। सूत्रों ने बताया कि पर्क्स पर यह कर इसी साल एक अप्रैल से लगाया जा सकता है। समझा जाता है कि सरकार जल्द ही आवास किराया भत्ते और यातायात भत्ते पर कर के आकलन के लिए अधिसूचना जारी कर सकती है। बजट 2009-10 में फ्रिंज बेनिफिट टैक्स को खत्म कर दिया गया था। एफबीटी के खत्म होने के बाद अब सरकार की निगाह वेतनभोगी वर्ग को मिलने वाले लाभों पर कर लगाने की है। एफबीटी में कर का बोझ नियोक्ता पर पड़ता था। लेकिन इस कर का बोझ कर्मचारियों को उठाना पड़ेगा।

भत्तों पर इसी साल लग सकता है टैक्स

नई दिल्ली। सरकार ने वेतनभोगी कर्मचारियों के विभिन्न अनुलाभ भत्तों पर कर लगाने के नए कानून को अंतिम रूप दे दिया है। इससे उन्हें मकान और वाहन भत्ते के रूप में मिलने वाले पैसे पर टैक्स भरना जरूरी हो जाएगा। नया कानून फ्रिज बेनिफिट टैक्स (एफबीटी) की जगह लेगा। यह व्यवस्था चालू वित्त वर्ष से भी लागू हो सकती है। इससे महंगाई की मार झेर रहे कर्मचारियों पर अतिरिक्त बोझ बढेगा।

सूत्रों के अनुसार नियोक्ता द्वारा अपने कर्मचारी के परिवार को दिए जाने वाले आवास भत्ते, यात्रा भत्ते तथा अन्य अनुलाभा को शीघ्र ही आयकर काटने के उद्देश्य से वेतन में शामिल किया जा सकता है। सरकार इन भतों की गणना आदि की अधिसूचना जल्द जारी कर सकती है। उल्लेखनीय है कि अब तक वेतनभोगी कर्मचारी के इन भतों पर कर नियोक्ता कंपनी को कानून एफबीटी जमा कराना पडता था।

वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी ने एफबीटी को 2009-10 के बजट में समाप्त कर एक नई व्यवस्था का प्रस्ताव किया था जो एक अप्रैल 2010 से लागू होनी थी। जिन लाभो को कर योग्य वेतन में शामिल किया जाएगा उसमें नियोक्ता द्वारा देय आवास सुविधा, आधिकारिक तथा व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिए वाहन पर खर्च, चालक का वेतन, नियोक्ता द्वारा दिए जाने पर माली और सफाई कर्मचारी का वेतन तथा कर्मचारी के बच्चों को देय रियायती शिक्षा शामिल है। अर्नेस्ट एंड यंग कर सहयोगी अभिताब सिंह ने नए आयकर आकलन नियमों के बार में पूछने पर कहा, एफबीटी प्रणाली के तहत अनुलाभ का कर बोझ नियोक्ता पर रहता था लेकिन अब यह कर्मचारी पर होगा।

वित्त मंत्रालय आकलन नियमों की घोष्ाणा अभी करेंगा। इनके इस साल एक अप्रैल की पूर्व तिथि से लागू होने संभावना है। इससे कर्मचारियों मुश्किलें बढता तय है।

इस लिंक पर भी क्लिक करके पढ़िए -------------


अलाउंस पर टैक्स अप्रैल 2009 से लगेगा


पिछली तारीख से देना पड़ सकता है भत्तों पर कर




उपर्युक्त उदाहरणों के बाद अगर कुछ समझ में नहीं आ रहा हो तो हिंदी इकोनामिक टाइम्स में २५ अगस्त को डायरेक्ट टैक्स पर छपे इस लेख को पढ़िए। ------------।

नए डायरेक्ट टैक्स कोड से आम लोगों पर पड़ेगी मार

आम करदाता, छोटे निवेशक और इंडिया इंक सबकी जेब पर वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी का प्रस्तावित टैक्स कोड भारी पडे़गा। नए कोड से सब पर टैक्स का बोझ बढ़ेगा, ईटीआईजी का मानना है कि ऐसे में यह कोड अपने मकसद में शायद कामयाब न हो पाए। आइए जानें क्या हैं वे वजहें कि यह आम लोगों के लिए चाबुक का काम करेगा। जानकारों की राय में तो यह भारत के हक में है ही नहीं। यूपीए सरकार दावा करती आई है कि उसकी नीतियों के केंद्र में देश का आम आदमी है। क्या सरकार का यह दावा खोखला है? नए डायरेक्ट टैक्स कोड (डीटीसी) से तो यही लगता है कि आम आदमी के हितों का यूपीए सरकार का दावा हवाई है। यह कोड मध्यवर्ग के खिलाफ है। इस कोड का मकसद ज्यादातर करदाताओं पर टैक्स का बोझ बढ़ाना है। यही नहीं डीटीसी कम आय वर्ग वाले लोगों के लिए ज्यादा बुरा है।

इससे उन पर टैक्स का बोझ और बढ़ेगा वहीं इससे ज्यादा कमाने वाले लोगों के हाथों में टैक्स चुकाने के बाद ज्यादा पैसा आएगा। नए कोड की सबसे ज्यादा मार 5-6 लाख रुपए सालाना आमदनी वाले वर्ग पर पडे़गी। कर चुकाने वालों में सबसे ज्यादा संख्या ऐसे ही लोगों की है। नए कोड के लागू होने का बचत पर क्या असर पड़ेगा, ईटी ने इसका पता लगाने की कोशिश की है। टैक्स लायक आमदनी तय करने के लिए स्लैब दरों में बड़ा बदलाव किया गया है। नए कोड के मुताबिक भी 1.6 लाख रुपए की आमदनी पर कोई कर नहीं चुकाना होगा। अभी तक 5 लाख रुपए से ज्यादा की आमदनी पर 30 फीसदी कर लगता था, इस स्लैब को बढ़ाकर 25 लाख रुपए करने का प्रस्ताव है।

सबसे ज्यादा चर्चा इसी की हो रही है। नए कोड में सरचार्ज और सेस को खत्म करने की भी बात कही गई है। लेकिन नए कोड का दूसरा पहलू आम करदाताओं के हक में नहीं है। अभी टैक्स छूट के दायरे में शामिल होम लोन पर चुकाए गए ब्याज, हाउस रेंट अलाउंस, लीव ट्रैवल अलाउंस, मेडिकल रिम्बर्समेंट को इससे बाहर कर दिया जाएगा या इन्हें टैक्स लायक आमदनी माना जाएगा। यहां हम 3 सैलरी लेवल के लिए नए टैक्स कोड का मतलब समझने की कोशिश कर रहे हैं। इन सभी के लिए हमने यह माना है कि तनख्वाह की 10 फीसदी से ज्यादा रकम पर उन्हें आयकर छूट नहीं मिलेगी। बेसिक सैलरी हमने कुल सैलरी का 40 फीसदी तय किया है। हमने बेसिक सैलरी का 50 फीसदी एचआरए के मद में रखा है। 4 बडे़ मेट्रो में आयकर कानून के मुताबिक बेसिक सैलरी का 50 फीसदी एचआरए तय किया जाता है। होम लोन के लिए हमने 1.5 लाख रुपए और आयकर छूट के तहत 1.6 लाख रुपए की मान्य सीमा को शामिल किया है।

आयकर कानून की धारा 80सी के तहत कर छूट योग्य आमदनी, जो फिलहाल 1 लाख रुपए है, वह प्रस्तावित कोड के मुताबिक 3 लाख रुपए हो जाएगी। लेकिन पेंच यह है कि जिस आदमी की तनख्वाह 5 लाख रुपए सालाना है, अगर वह टैक्स छूट के लिए 3 लाख रुपए निवेश करता है तो उसके हाथ में कुछ भी नहीं बचेगा। ऐसे में हमने कर छूट के लिए निवेश को यहां 1.5 लाख रुपए माना है। आंकड़े बताते हैं कि इस आधार पर 5-6 लाख रुपए की सालाना आमदनी वाले लोगों पर टैक्स का बोझ बढ़ेगा। हालांकि, 10 लाख रुपए से ज्यादा तनख्वाह वाले लोगों पर टैक्स का बोझ नए कोड के मुताबिक कम हो सकता है।

नए टैक्स कोड से माइक्रो लेवल पर यह लगता है कि इससे लोगों के हाथ में खर्च करने लायक ज्यादा रकम बचेगी। नए कोड के तहत इफेक्टिव टैक्स रेट आम करदाताओं के लिए 5-6 फीसदी होगा। हालांकि नए कोड का सबसे ज्यादा फायदा ऊपरी स्लैब में शामिल लोगों को मिलेगा। ऐसे में इसका लाभ ऊपरी मध्यवर्ग लोगों की जरूरतें पूरी करने वाली कंपनियों को मिल सकता है। इनमें एफएमसीजी, एंटरटेनमेंट, रीटेल, वित्तीय सेवाओं और दूसरे लाइफ स्टाइल प्रोडक्ट बनाने वाली कंपनियों को शामिल किया जा सकता है। वहीं, इससे रियल्टी और एनबीएफसी को नुकसान होगा। हालांकि, यहां यह भी याद रखने की जरूरत है कि नया डायरेक्टर टैक्स कोड 1 अप्रैल 2011 से लागू होगा। उससे पहले इस पर संसद की मुहर लगनी जरूरी है। अगले दो साल में इस टैक्स कोड में काफी बदलाव भी आ सकता है।

Wednesday, 2 December 2009

जल्द अमीर बनने का ख्वाब भी टूटा !

 

       दावे चाहे जितना करें मगर यह कड़वा सच है कि दुबई में छोटी-मोटी नौकरियों के सहारे गुजर-बसर कररहे भारतीय परिवारों पर तो संकट के बादल मंडराने लगे हैं। किसी बड़े आंकड़े के चक्कर में न पड़कर सिर्फ यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सामान्य लोग इससे कितने प्रभावित हो रहे हैं या होंगे । मेरी जानकारी में मेरे गांव के करीब दर्जनों ऐसे बेरोजगार लड़के कंप्यूटर की डिप्लोमा सिर्फ इसलिए ले रहे हैं कि उन्हें दुबई में रह रहे लोगों ने साथ ले जाने और नौकरी दिलाने को कहा है। अभी वे घोर निराशा में जी रहे हैं। जो नौकरियां दिलाने की बात कर रहे थे, अब वे ही मुश्किल में यातो फंस गए हैं या फिर फंसने वाले हैं। कम से कम निर्माणकार्य में लगे हजारों मजदूरों को तो बेहद धक्का पहुंचा है।


     मेरठ के एक नौकरीपेशा भारतीय की नौकरीदुबई से एसएमएस भेजकर नौकरी खत्म किए जाने की कहानी तो सभी अखबारों में छप चुकी है।कुल मिलाकर दुबई संकट ने तमाम बरोजगारों के सपने भी तोड़ दिए हैं। एक तो बड़ी मुश्किल से दुबई जाने का मौका हाथ लगता है वह भी इस दुबई संकट ने छीन लिया। थोड़े दिनों में अमीर बन जाने का इनका भी सपना चनाचूर हो गया है। क्यों कि दुबई का आकर्षण शाहरूख खान से लेकर मामूली मजदूर तक को खांचकर यहां लाता है।


       दुबई आज दुनिया की सर्वाधिक आकर्षक जगहों में से एक है। यह सारा श्रेय दुबई वर्ल्ड को जाता है। यानी दुबई में तेज़ी से हुई विकास के पीछे बहुत हद तक दुबई वर्ल्ड का ही हाथ है। अब विश्व की आर्थिक मंदी का ग्रहण इसपर भी लग गया है। संयुक्त अरब अमीरात में सात स्वयं-शासित अमीरात या राज्य हैं और दुबई उनमें से एक है। इसी दुबई की मुख्य निवेश कंपनी दुबई वर्ल्ड संकट में है। यह दुनिया को इस संकट का तब पता चला जब दुबई की यह सरकारी कंपनी दुबई वर्ल्ड ने अनुरोध किया कि जिन कंपनियों ने उसे कर्ज़ दिया है वो उसे छह महीने की अवधि और दें ताकि वो ऋण चुका सके। कंपनी को पांच करोड़ नब्बे लाख डॉलर का कर्ज़ चुकता करना है। दरअसल छह साल से तेज़ गति से विकास के बाद 2008 से वहाँ अर्थव्यवस्था डगमगाई है. इस कारण प्रॉपर्टी मार्केट में दाम गिरे हैं। विदेशी पैसे और बड़ी योजनाओं पर आधारित आर्थिक मॉडल अपनाने का खामियाज़ा दुबई को भुगतना पड़ रहा है।
 
    दुबई वर्ल्ड के कर्ज़ अदायगी से संबंधित संकट के सार्वजनिक होने के बाद भारत समेत दुनिया भर के शेयर बाज़ार गिरे हैं। अनेक भारतीय जो दुबई में दशकों से काम करते रहे हैं, उनकी नौकरियाँ ख़तरे में आ गई हैं क्योंकि निवेश कंपनी दुबई वर्ल्ड कोई एक प्रतिष्ठान नहीं बल्कि पूँजी निवेश के हिसाब से उसका अनेक कंपनियों और प्रतिष्ठानों में दख़ल है।
दुबई संकट की मार वहां काम कर रहे भारतीय कर्मचारियों पर पड़ने लगी है। दुबई से ईद की छुट्टी पर मेरठ और कोच्चि आए हुए साठ से ज्यादा लोगों को एसएमएस के जरिए बताया गया है कि वो काम पर वापस न लौटें। इनमें से ज्यादातर लोग दुबई के ढ़ांचा निर्माण क्षेत्र की अलग-अलग कंपनियों में टाइल बनाने वाली इकाई में काम करते थे। प्रवासी भारतीय मामलों के मंत्री व्यालार रवि ने भी भरोसा दिलाया है कि दुबई वित्तीय संकट से ज्यादा घबराने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि इसमें नया कुछ नहीं है। मंदी की शुरूआत के समय से ही स्थिति खराब थी। उस वक्त करीब 1 लाख लोग देश वापस लौटे थे। लेकिन उनमें से ज्यादातर लोग वापस दुबई में काम के लिए चले गए हैं।

संकट और गहराएगा ?

   भारत के वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी ने भरोसा दिलाया है कि भारत पर दुबई संकट का कोई असर नहीं पड़ेगा। संभव है ऐसा हो मगर दुबई सरकार के दुबई वर्ल्ड के कर्ज की गारंटी लेने से मना कर देने के बाद दुबई का संकट अब और गहराता नजर आ रहा है। दुबई सरकार ने कहा है कि वह दुबई वर्ल्ड को सशर्त मदद देगी। साथ ही उसने कर्जदाताओं से री-स्ट्रक्चरिंग के जरिए मसला सुलझाने को कहा है। सरकार इस कंपनी की मालिक है। लेकिन सरकार ने कंपनी की कोई गारंटी नहीं ली है। दुबई वर्ल्ड द्वारा लिए गए कर्ज की भी सरकार गारंटी नहीं ले रही है।
 
 दुबई वल्र्ड के 80 अरब डॉलर के कर्ज में ज्यादातर गल्फ बैंकों की हिस्सेदारी है। इससे इन बैंकों के सामने भी समस्या खड़ी होने की बात से भी मना नहीं किया जा सकता। हालांकि यूएई के सेंट्रल बैंक ने भरोसा जताया है कि इन बैंकों पर आंच नहीं आने दी जाएगी। हालांकि सेंट्रल बैंक का यह बयान भी बाजार के दबाव को कम करने में असफल रहा।जिन कंपनियों के 26 अरब डॉलर की कर्ज़ अदायगी के बारे में बात हो रही है वे हैं - लिमिट्लेस और नाखील. इसमें छह अरब डॉलर के इस्लामी बॉंड भी हैं जिन पर इस्लामी क़ानून के हिसाब से ब्याज नहीं दिया जाता। फिलहाल दुबई वर्ल्ड ने अपना कर्ज़ नए सिरे दिए जाने की व्यवस्था करने पर बैंकों से बातचीत शुरु की है।यह घोषणा तब हुई है जब दुबई की सरकार ने स्पष्ट तौर पर दुबई वर्ल्ड के कर्ज़ की गारंटी लेने से इनकार कर दिया है.

दुबई को लेकर बॉलीवुड भी हुआ चिंतित
दुबई ऋण संकट ने बॉलीवुड निर्माताओं और वितरकों को भी चिंता में डाल दिया है। हिंदी फिल्मों के लिए पश्चिम एशिया बाजार में दुबई की अहम भूमिका रहती है।
बॉलीवुड की आगामी फिल्म 'पा', जिसमें अमिताभ बच्चन और अभिषेक बच्चन दिखाई देंगे, ने पहले ही अपने दुबई प्रीमियर को टाल दिया है, हालांकि फिल्म के सह-निर्माता, रिलायंस बिग पिक्चर्स ने इसके लिए साजो-सामान की किल्लत को जिम्मेवार बताया है।
फिल्म उद्योग के विशेषज्ञों के मुताबिक विदेशी बाजार कई बॉलीवुड की नई रिलीज होने वाली फिल्मों, दे दना दन, रेडियो, रॉकेट सिंग, पा और 3 इडियट्स के कारोबार के लिए अहम है। विदेशी बाजारों में भी खाड़ी क्षेत्र हिंदी फिल्मों के लिए अहम बाजार बनता जा रहा है।
मुंबई के एक उद्योग विशेषज्ञ का कहना है, 'लगभग 50 करोड़ रुपये इन फिल्मों में विदेशी बाजारों से हासिल होने की उम्मीद है, क्योंकि अनुमान लगाए जा रहे हैं कि इन फिल्मों की कलेक्शन का कम से कम 25 से 30 फीसदी हिस्सा यही से मिलेगा। निर्माताओं को लगभग विदेशी बाजारों से 50 करोड़ रुपये कमा पाने की उम्मीद है।'
हिंदी फिल्मों के वितरकों के मुताबिक दुबई के बाजार से बॉलीवुड फिल्मों के कुल विदेशी क्लेक्शन का लगभग 40 से 45 फीसदी हासिल होता है। किसी भी प्रमुख बॉलीवुड अभिनेता जैसे शाह रुख खान, आमिर खान, अमिताभ बच्चन या अक्षय कुमारकी कोई भी फिल्म विदेशी बाजारों में लगभग 35 से 40 फीसदी क्लेक्शन कर पाती है।
फिल्म निर्माता और वितरक कंपनी शेमारू फिल्म के निदेशक हीरेन गाडा का कहना है कि खाड़ी क्षेत्र, अमेरिका और ब्रिटेन से कुल मिलाकर किसी भी बॉलीवुड की फिल्म के लिए विदेशी कलेक्शन का 70 से 75 फीसदी हिस्सा हासिल होता है, जिसमें से पश्चिम एशिया हमेशा शीर्ष दो विदेशी बाजारों में शामिल होता है।
डागा बताते हैं, 'बॉलीवुड फिल्में दुबई की 40 से 50 स्क्रीनों पर काफी अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं। अक्षय कुमार की एक्शन फिल्म ब्लू हाल में ही खाड़ी बाजारों में बढ़िया कारोबार कर पाई है।' शेमारू के पास 'ब्लू' के अंतरराष्ट्रीय वितरण अधिकार हैं।
दुबई बाजार में बॉलीवुड फिल्मों के वितरक और एक फिल्म वितरक कंपनी अल-मनसूर की प्रवर्तक खुशी खटवानी का कहना है, 'रियल एस्टेट के लिए में कोई विशेषज्ञ नहीं हूं। लेकिन दुबई में बॉलीवुड बाजार पर क्या असर होगा, यह कह पाना जल्दबाजी होगा।' दुबई में फिल्म एवं वीडियो वितरण एजेंसी के साथ काम करने वाले एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि दुबई की विशेष जनसंख में लगभग 40 फीसदी भारतीय हैं।
रिलायंस बिग पिक्चर्स के अंतरराष्ट्रीय वितरण के प्रमुख जवाहर शर्मा मानते हैं, 'पिछले साल वित्तीय संकट के बावजूद अमेरिका में बॉक्स ऑफिस कलेक्शन को देखते हुए कह सकते हैं कि मंदी में भी लोग फिल्म पर खर्च कर रहे थे। लेकिन थिएटरों में फिल्म देखने जाने वालों की रफ्तार में कमी आई थी।'

दुबई वर्ल्ड में निवेश का ब्योरा दें बैंक : आरबीआई

     भारतीय रिजर्व बैंक दुबई वर्ल्ड में भारतीय बैंकों के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष निवेश की विस्तृत जानकारी मांगेगा।  उल्लेखनीय है कि दुबई सरकार के स्वामित्व वाली संकटग्रस्त होल्डिंग कंपनी दुबई वर्ल्ड ने अपना कर्ज चुकाने के लिए ऋणदाताओं से और अधिक समय देने की गुजारिश की है। आरबीआई ने हालांकि इस मुद्दे को ज्यादा तवज्जो नहीं दी लेकिन बैंक ऑफ बड़ौदा के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि दुबई वर्ल्ड में इसका निवेश तकरीबन 928 करोड़ रुपये का है।
बैंक के एक अधिकारी ने कहा, 'इस राशि का भुगतान साल 2012 के बाद किया जाना है। कंपनी ब्याज का भुगतान कर रही है और कोई बकाया नहीं है। इसलिए हमें तात्कालिक तौर पर कोई चिंता नहीं है।' अधिकारी ने कहा कि यूनाइटेड अरब अमीरात में बैंक का कुल निवेश अनुमानत: 10,000 करोड रुपये का है जिसमें दुबई की हिस्सेदारी लगभग 4,000 करोड रुपये की है।
यद्यपि यूएई की रियल एस्टेट कंपनियों में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का निवेश लगभग 600 करोड़ रुपये का है लेकिन अधिकारी ने बताया कि इस ऋणदाता ने दुबई वर्ल्ड की रियल एस्टेट इकाई नखील को किसी प्रकार का कर्ज नहीं दिया है।
उल्लेखनीय है कि रियल एस्टेट की कीमतों में लगभग 50 प्रतिशत तक की गिरावट आने से नखील को सर्वाधिक नुकसान उठाना पड रहा है। दुबई वर्ल्ड में बैंक ऑफ बड़ौदा के निवेश की खबरों से निवेशकों की धारणाओं पर विपरीत प्रभाव पड़ा और बैंक के शेयर की कीमतों में बंबई स्टॉक एक्सचेंज पर 4.64 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। इसके शेयर 521.40 रुपये पर बंद हुए।
  
  दुबई और यूएई में परिचालन कर रही कंपनियों में ऐक्सिस बैंक, आईसीआईसीआई बैंक और इंडियन ओवरसीज बैंकों (आईओबी) का भी निवेश है। भारतीय रियल एस्टेट डेवलपर्स की दुबई इकाई में निवेश के बारे में आईओबी ने बताया कि इसका निवेश तकरीबन 70 करोड़ रुपये का है जबकि ऐक्सिस बैंक के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इसका निवेश लगभग 46 करोड रुपये का है।
बैंक ऑफ इंडिया के अधिकारी ने कहा कि पश्चिम एशिया में बैंक की कोई शाखा नहीं है और इस क्षेत्र की रियल एस्टेट कंपनियों में इइसका कोई प्रत्यक्ष निवेश नहीं है। अधिकारी के अनुसार, इन कंपनियों में कुल निवेश लगभग 100 करोड रुपये का है, हालांकि उन्होंने कंपनियों के नाम नहीं बताए। उन्होंने कहा, 'ये सब निष्पादित परिसंपत्तियां हैं और हमें नहीं लगता कि पुनर्भुगतान में अधिक परेशानी होगी।'

रेमिटेंस नहीं होगा प्रभावित: चावला
वित्त मंत्रालय ने कहा कि रियल एस्टेट बाजार में आई मंदी से पैदा हुए वित्तीय संकट के चलते खाड़ी देश में भारतीयों द्वारा स्वदेश भेजा जाने वाला धन :रेमिटेंस: प्रभावित होने की संभावना नहीं है। वित्त सचिव अशोक चावला ने बताया, '' जब बड़ा संकट था उस दौरान भारतीयों द्वारा स्वदेश धन भेजने के रुख में कमी नहीं आई। इसलिए इस संकट का रोजगार, वेतन और रेमिटेंस पर असर पड़ने की संभावना नहीं है।''

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