दिसंबर २०१३। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के इंस्टीटीयूट आप मेडिकल साइंस संस्थान का सर सुंदर लाल अस्पताल। गरीबों के लिए उत्तर पूर्वी भारत का सबसे बड़ा अस्पताल। आपरेशन थिएटर के सामने हम बेचैन थे। कैंसर के आपरेशन का अलग थिएटर। एक-एक करके आपरेशन किए जा चुके मरीजों को हमारे सामने जब ले जाया जाता तब हम उनकी दशा देखकर सिहर उठते थे। करीब पांच घंटे बाद मेरा भी नंबर आया। बड़े भाई मदन मोहन सिंह के गले के कैंसर का आपरेशन संपन्न हो गया था। तुरन्त उन्हें लेकर इंटेंसिव केयर यूनिट की ओर लेकर भागे। साथ में डाक्टर भी थे। तीन दिन तक हम इंटेंसिव केयर यूनिट के बाहर रात दिन पड़े रहे। तीसरे दिन जब भाई की आंख खुली तो जान में जान आई। मैं और भी मानसिक तौर पर परेशान था। क्यों कि मैंने ही भाई का बीएचयू में आपरेशन और इलाज का फैसला लिया था। इसका कारण धनाभाव व पारिवारिक असयोग था। मुझे कोलकाता से बनारस जाकर भाई की जांच करानी पड़ती थी। ऐसी स्थिति में लोगों के सुझाव पर मुम्बई टाटा सेंटर ले जाकर इलाज करा पाना मेरे लिए नामुमकिन था। हालांकि जब मैं तैयैर हो गया और सबकुछ करने लगा तोे बाकी परिवार के लोग साथ खड़े होगए।
यह मैं इसलिए बता रहा हूं कि कैंसर अगर किसी को हो जाए तो वह जीतेजी मर जाता है मगर उसके परिवार वाले भी भारी संकट में पड़ जाते हैं। अभी हाल में ही रिपोर्ट आई है कि हर छह घंटे में मुख, गले के कैंसर के एक मरीज की मौत हो जाती है। यह रिपोर्ट इस लिए भी भयावह है क्यों कि इसमें वह आंकड़े शामिल नहीं हैं जिनका पता ही नहीं चलता है। ग्रामीण इलाके और बेहद गरीब तबके के लोगों के केस तो ज्यादातर दर्ज नहीं हो पाते हैं। अंधाधुंध धूम्रपान और तंबाकू के सेवन से उत्तरपूर्वी भारत में यह महामारी बन गया है। इसके अलावा पश्चिम बंगाल, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात में यह कैंसर जानें ले रहा है। ओरल कैंसर का इलाज करने वाले डाक्टरों का दावा है कि समय रहते प्रथम चरण का पता चल जाने पर इसका सौ फीसद ईलाज संभव है मगर इसके दूसरे स्टेज में चले जाने पर मरीज चार-पांच सालों में ही दम तोड़ देता है।
मित्रों, इससे पहले कि मेरी तरह आपको किसी अपने के कैंसर की गिरफ्त में आने का पता चले, आप सतर्क हो जाइए। बचाव ही उचित इलाज है। मैंने अपने भाई को बचा तो लिया है मगर कैंसर का खौफ अपने मन से निकाल नहीं पाया हूं। किसी मुश्किल में फंसने से पहले सतर्क हो जाइए।
यह मैं इसलिए बता रहा हूं कि कैंसर अगर किसी को हो जाए तो वह जीतेजी मर जाता है मगर उसके परिवार वाले भी भारी संकट में पड़ जाते हैं। अभी हाल में ही रिपोर्ट आई है कि हर छह घंटे में मुख, गले के कैंसर के एक मरीज की मौत हो जाती है। यह रिपोर्ट इस लिए भी भयावह है क्यों कि इसमें वह आंकड़े शामिल नहीं हैं जिनका पता ही नहीं चलता है। ग्रामीण इलाके और बेहद गरीब तबके के लोगों के केस तो ज्यादातर दर्ज नहीं हो पाते हैं। अंधाधुंध धूम्रपान और तंबाकू के सेवन से उत्तरपूर्वी भारत में यह महामारी बन गया है। इसके अलावा पश्चिम बंगाल, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात में यह कैंसर जानें ले रहा है। ओरल कैंसर का इलाज करने वाले डाक्टरों का दावा है कि समय रहते प्रथम चरण का पता चल जाने पर इसका सौ फीसद ईलाज संभव है मगर इसके दूसरे स्टेज में चले जाने पर मरीज चार-पांच सालों में ही दम तोड़ देता है।
मित्रों, इससे पहले कि मेरी तरह आपको किसी अपने के कैंसर की गिरफ्त में आने का पता चले, आप सतर्क हो जाइए। बचाव ही उचित इलाज है। मैंने अपने भाई को बचा तो लिया है मगर कैंसर का खौफ अपने मन से निकाल नहीं पाया हूं। किसी मुश्किल में फंसने से पहले सतर्क हो जाइए।
1 comment:
बीमारी का खौफ ही लोगो को मार डालता है।
Post a Comment