Wednesday, 2 July 2008
मंदिरों के प्रसाद व असम की चाय भी दूसरे को दे देंगे डाकिए !
डाक विभाग तमाम नए प्रयोग कर रहा है टिकने के लिए मगर उसके लापरवाह व गुटबाज कर्मचारीहर कोशिश को धूल में मिलाते जा रहे हैं। विश्वसनीयता भी इसी से दाव पर लगी हुई है। डाक विभाग को टेलीफोन व संचार तकनीक की क्रांति ने वैसे ही हासिए पर ला खड़ा किया है। डाक गायब होने, सही तरीके से डाक वितरित नहीं हो पाने, लोगों की गाढ़ी कमाई के मनीआर्डर गायब होने, बचत व निवेश के तौरतरीके अपारदर्शी होने के कारण डाक विभाग लोगों की नजर में उतना महत्वपूर्ण नहीं रह गया है जितना कभी मजबूरी के कारण था। आज निवेश के हजारों विकल्प हैं। मनीआर्डर को एटीएम निगल गया है। चिट्ठी को मेल और कंपनियों वगैरह की डाक ज्यादातर आनलाइन के हवाले हो गई है। डाक विभाग की मासिक बचत योजना तमाम परिवारों की अब भी जीवनरेखा बनी हुई है मगर डाकघरों के फौरन कंप्यटरीकृत नहीं किए जाने से स्टेट बैंक आप इंडिया का मासिक बचत योजना अब विकल्प बन रही है। ऐसे में डाक विभाग को बचाने की नई कवायद हो रही है।
इसी कोशिश के तहत डाक विभाग अब दक्षिण भारत के प्रसिद्ध मंदिरों के प्रसाद और मसालों से लेकर सुदूर असम की चाय और पंजाब की मिठाइयां तक आपके दरवाजे तक पहुंचाने की तैयारी में है। पंजाब में शुरू की जा रही इस योजना के तहत वस्तु की असली कीमत से केवल दस रुपये ज्यादा लिए जाएंगे। उपभोक्ता को केवल नजदीक के डाक घर में जाकर आर्डर करना है, उसके बाद संबंधित संगठन को एक ई-मेल भेज दिया जाएगा। इसके बाद एक या दो दिनों में सामान पैक होकर उसके घर पहुंच जाएगा। पंजाब के मुख्य पोस्टमास्टर जनरल पृथ्वीराज कुमार ने बताया, "इंडिया पोस्ट ने स्पाइस बोर्ड आफ इंडिया के साथ एक समझौता किया है जिसके तहत अब उत्पादों को ग्राहकों केघर तक पहुंचाया जाएगा। यह योजना लगभग एक साल से कागजों पर ही है और इसकी ठीक ढंग से मार्केटिंग नहीं की गई और अब इसकी पुनरीक्षा की जा रही है।" उन्होंने बताया कि आंध्र प्रदेश में तिरुपति मंदिर और असम के चाय बागानों के अलावा पंजाब के कोट कपूरा कस्बे की प्रसिद्ध ढोडा मिठाइयों की भी आपूर्ति के लिए समझौते किए गए हैं।
कर्मचारी ही प्रतिबद्ध नहीं
लेकिन क्या गारंटी है कि डाक विभाग को ये योजनाए बचा पाएंगी ? जबतक विभाग के कर्मचारी खुद इसके प्रति प्रतिबद्ध नहीं होंगे यह लक्ष्य हासिल करना मुश्किल होगा। प्रतिबद्धता में कमी और धोखाधड़ी की तमाम खबरें लोगों को मालूम हैं मगर मैं सिर्फ अपना उदाहरण दूंगा जिसके कारण डाक विभाग के डाकिए संदिग्ध लगने लगे हैं। मैं कोलकाता शहर के दमदम इलाके में रहता हूं। मेरे दो बच्चे स्टेट बैंक आफ इंडिया के क्लर्क पद के लिए आनलाइन फार्म भरे। बैंक ने नियत समय पर प्रवेश पत्र डाक विभाग क् जरिए वितरित करने की व्यवस्था भी की। मगर यह महामहिम डाकिए की कृपा रही कि मेरे दोनों बच्चे का प्रवेशपत्र किसी ऐसे गैर लोगों के हाथों में सौंप गया जिनसे मैं कभी भले की उम्मीद नहीं रखता। जब मेरे इन शत्रुओं को पता चला कि प्रवेश पत्र चुरा लेने से उम्मीदवार को परीक्षा में बैठने से नहीं रोका जा सकता तो कटे-फटे हालत में पहुंचाकर मेरे यहां फेंक दिया गया। दूसरा प्रवेश पत्र भी इसी तरह से किसी को सौंप कर डाकिया चला गया। यह बाकायदा लिफाफा था जिसमें प्रवेश पत्र के अलावा एक बुकलेट भी था। जबकि पहला वाला सिर्फ प्रवेश पत्र मिला।
पोस्ट आफिस जाकर पूछा कि ऐसा क्यों हुआ तो एक अधिकारी ने कहा कि ऐसा लोग न जाने क्यों करते हैं। उन्होंने स्वीकार किया कि उनके फ्लैट में भी लोग डाकिए से किसी की भी डाक लेकर गायब कर देते हैं। उन्होंने डाकिए को बुलाकर कह दिया कि इनकी डाक सिर्फ इन्हें हीं सौंपें। डाकिए ने मानने को भी कहा मगर मेरा विस्वास तो डिग गया है कि इतनी संवेदनशील डाक को जो डाकिया गैरजरूरी की तरह फेंक गया तो आगे कितना ध्यान रखेगा।
लगे हाथ आपको यह भी बतादूं कि हर साल ऐसे तमाम नौजवानों को अपनी नौकरी के बुलावा पत्र से डाक विभाग के ऐसे डाकिए के कारण वंचित होना पड़ता है। पश्चिम बंगाल में हर आदमी पार्टी या खेमे में बंटा हुआ है लिहाजा खुन्नस में यह काम डाकिए स्थानीय लोगों की मर्जी से करते हैं। यह डाकिए की भी मजबूरी होगी क्यों कि वह किस- किस से लड़ाई करेगा। या फिर वह भी किसी पार्टी का समर्थक होता है। कोलकाता में बाहरी लोग इस विरोध के ज्यादा शिकार होते हैं। ऐसे में नए तरीके अपनाकर डाक विभाग विश्वसनीयता नहीं हासिल करता जबतक नीचे से अपनी कार्यप्रणाली को फुलप्रूफ नहीं करेगा। डाक बिना किसी भेदभाव के वितरित हो इसके लिए डाकिए को जिम्मेदार बनाना होगा। डाक विभाग का फौरन आधुनिकीकरण करना होगा ताकि बचत व निवेश जैसे उत्पाद के काम त्वरित व विश्वसनीय हों। अगर ऐसा नहीं हुआ तो चाय, मिटाई और डाक भी किसी दूसरे को ही देकर लोगों की आखों में धूल झोंकते रहेंगे डाकिए।
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