जब कश्मीर में शुरुआती झगड़े हुए तभी मैंने इसी ब्लाग में लिखे लेख ( इसी देश के हैं अमरनाथ तीर्थयात्री ) में आशंका जताई थी कि अमरनाथ के तार्थयात्रियों के लिए जमीन देना और वापस लेना जानबूझकर खेला गया सियासी खेल है। अमरनाथ की जमीन तो बहाना है । दरअसल इसी बहाने कश्मीर केलोगों में अलगाववाद की भावनाओं को भड़काना है। और अब कुछ राजनीतिक दल और कश्मीर के अलगाववादी एक ही सुर में बोल रहे हैं। सज्जाद लोन ने तो शांति के लिए कश्मीर को बाकायदा तीन हिस्सों में बांटने की दलील पेश कर दी । अब इसके बाद से कश्मीर की हालत और बिगड़ गई है।
एनडीटीवी के मुकाबला कार्यक्रम में संचालक दिवांग ने पूछा था कि कैसे कश्मीर में शांति संभव है। ठीक इसी तरह के बयान लगभग धमकी के अंदाज में महबूबा मुफ्ती ने एनडीटीवी के चक्रव्यूह में कहा कि समस्या का हल नहीं निकला तो कश्मीर के कई टुकड़े हो जाएंगे। इस कार्यक्रम में महबूबा से विजय त्रिवेदी बात कर रहे थे। बंद के कारण कश्मीर का जो ब्लाकेड हुआ है उससे महबूबा काफी नाराज दिख रही थीं। साफ-साफ कहा कि हम पाकिस्तान से अपनी जरूरत का सामान मंगाने पर मजबूर हो जाएंगे। और वहीं किया जिसकी धमकी महबूबा ने दी थी। हुरियत नेता शेख अजीज के साथ घाटी के लोग और व्यापारियों का जत्था पाक अधिकृत कश्मीर के मुजफ्फराबाद की और कूच कर गया जिसे रोकने के लिए पुलिस और सेना ने फायरिंग की जिसमें १५ लोग मारे गए। इन प्रदर्शनों में अब तक २२ लोग मारे जा चुके हैं। यही तो चाहते हैं कश्मीर के उग्रवादी और उनसे सुर मिला रहे राजनीतिक दल। कशमीर की जनता जितनी भड़केगी वे उतनी ही सहानुभूति बटोरेंगे। दरअसल यह जानबूझकर कश्मीर को बांटने की साजिश रची गई है। तभी तो कुरान लेकर विरोध प्रदर्शन किए जा रहे हैं।
घाटी के अलगाववादी समर्थक मुसलमानों और सत्तालोलुप राजनैतिक दलों ने इस संकट में एक राजनीतिक अवसर देखा और जम्मू- श्रीनगर राजमार्ग के बदले मुज़फ़्फ़राबाद रोड खोलने और उसी रास्ते से कारोबार करने की धमकी दी। इस संघर्ष के कारण राज्य की स्थिति 1990 से भी ख़राब हो गई है. वर्ष 1990 में पहले हिंसा शुरू हुई और उसके बाद जनप्रदर्शन, मगर इस वक़्त बंदूक़ ख़ामोश है और कश्मीरी अलगाववादी संगठन प्रदर्शन की ओट में स्वतंत्रता का आंदोलन चला रहे हैं. दरअसल कश्मीर के उग्रवादी नहीं चाहते हैं कि कश्मीर में बाहर के लोगों का ज्यादा आना-जाना हो। इससे उनकी गतिविधियों पर अंकुश लगेगा। कश्मीर में उग्रवादियों के आधिपत्य का खामियाजा पूरा राज्य भुगत रहा है। कश्मीर का विकास रुका हुआ है।
कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला ने जब कश्मीर के पर्यटन के विकास के निमित्त होटल व अन्य सुविधाओं के विकास के लिए लीज पर जमीन देने की घोषणा की तो इसी तरह का विरोध हुआ जो आज श्राइन बोर्ड को जमीन देने के सवाल पर हो रहा है। तब शेख अब्दुल्ला को कश्मीर विरोधी करार दिया गया था जबकि यह वह रास्ता था जहां से कश्मीर का बड़े पैमाने पर विकास होने वाला था। कश्मीर भले गरीब रहे मगर पूरी तरह से मुस्लिम आबादी वाला बना रहे की मानसिकता हर बार ऐसे रोड़ खड़ा करती है जिससे लगता है कि कश्मीर भारत का राज्य ही नहीं है। दरअसल कश्मीर को ऐसे विशेष राज्य का दर्जा हासिल है जहां की जमीन कोई बाहरी नहीं खरीद सकता न ही स्थाई तौर पर इस्तेमाल कर सकता है। यह राज्यों के गठन के समय की गई वह भारी भूल थी जिसका नतीजा आज सामने है।
जबसे कश्मीर में उग्रवाद भड़का है तब से पूरे कश्मीर में भारत विरोधी ताकतें बंदूकों के बल पर वहां की जनता का भयादोहन कर रहीं हैं। यह बात स्थानीय लोगों के मन में बैठा दी गई है कि भारत सरकार उनका हित नहीं चाहती है। अभी कश्मीर में विरोध प्रदर्शन के बाद केंद्र या भारत सरकार के प्रति अविश्वाश की बात महबूबा मुफ्ती भी कर रही हैं । यह सब सिर्फ इस लिए ताकि देश के दूसरे भागों के लोगों की यहां कश्मीर में गतिविधि न बढ़े। अगर दूसरी आबादी का यहां आना जाना शुरू हो जाएगा तो देर सबेर यहां की जनता उनकी झूठ को पहचान जाए और विकास के उस रास्ते की हामी भर दे जिसे शेख अब्दुल्ला ने शुरू किया था। इसमें कश्मीर का विकास तो होगा, लोग संपन्न् और खुशहाल भी होंगे मगर उग्रवादियों को कश्मीर छोड़ना भी पड़ेगा। तब भारत विरोध पर टिकी पाकिस्तान की राजनीति को भी धक्का लगेगा। इसे न तो पाकिस्तान की आईएसआई बर्दास्त करेगी और न कश्मीर में पनाह लिए उनके उग्रवादी। इसके खिलाफ संत्रास में दबी कश्मीर की जनता क्या बोलेगी जब इस राज्य के नेता ही उग्रवादियों के सुर में सुर मिलाकर बोल रहे हैं। कौन नहीं चाहता कि कश्मीर में अमन चैन हो और विकास की वह बयार बहे जिसमें कश्मीरी भी खुशहाल हो। ऐसा कश्मीर के भारत की मुख्य धारा से जुड़ने से ही संभव है। जबकि उग्रवादी और उनके पिट्ठू कश्मीर को भारत की मुख्य धारा से अलग-थलग रखना चाहते हैं। इसी मकसद को अंजाम देने के लिए अमरनाथ यात्रियों को दी जाने वाली जमीन का बहाना ढूंढ लिया है।
अमरनाथ श्राइन बोर्ड एक ऐसा बहाना है जिसकी आड़ में कश्मीर को हिंदू मुस्लिम खेमे में बांटना आसान हो गया है। विरोध करो नहीं तो कश्मीर में हिंदू बस जाएंगे जैसे भयादोहन के अवसर मिल गए हैं। उग्रवाद की बजाए कश्मीरी जनता को इस तरह बरगलाकर काम करना अब ज्यादा आसान हो गया है। इससे कश्मीरी जनता में अपने आप विद्रोह पनपेगा। एक साल के भीतर कश्मीर में होने वाले चुनाव ने उग्रवादियों और उनकी आड़ में बहुसंख्यक कश्मीरी मुसलमान जनता का वोट हासिल करने की चाहत रखने वाले दलों को और करीब ला दिया है। यह खतरनाक खेल महबूबा जैसी नेता भी खेल रही हैं।
जम्मू-कश्मीर में हालात बिगड़े, 15 की मौत
(देखे बीबीसी का यह समाचार--- http://www.bbc.co.uk/hindi/regionalnews/story/2008/08/080812_kashmir_curfew_lastrites.shtml )
भारत प्रशासित जम्मू-कश्मीर की पुलिस के अनुसार मंगलवार को कश्मीर घाटी के विभिन्न इलाक़ों में हिंसक भीड़ पर हुई पुलिस फ़ायरिंग में कम से कम तेरह लोगों की मौत हुई है. कई अन्य लोग घायल हुए हैं.जबकि सोमवार की फ़ायरिंग में घायल हुए लोगों में से दो की मंगलवार को मौत हो गई. सोमवार से लेकर अब तक कश्मीर घाटी में प्रदर्शनाकरियों और सुरक्षाकर्मियों के बीच झड़पों में 22 लोग मारे जा चुके हैं. उधर जम्मू में मंगलवार को भड़के सांप्रदायिक दंगों के दौरान हुए विस्फोट में दो व्यक्ति की मौत हुई है और इसके बाद किश्तवाड़ के इलाक़े में सेना तैनात कर दी गई है. कश्मीर घाटी के सभी शहरों में कर्फ़्यू लगा दिया गया है और ख़बरें हैं कि घाटी के विभिन्न हिस्से में लोग प्रदर्शन कर रहे हैं. कश्मीर घाटी में लोग वरिष्ठ हुर्रियत नेता शेख़ अब्दुल अज़ीज़ की मौत के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं. सोमवार को मुज़फ़्फ़राबाद मार्च करने की कोशिश कर रहे लोगों पर सेना की फ़ायरिंग में हुर्रियत नेता अज़ीज़ सहित सात लोगों की मौत हो गई थी और पूरी घाटी में तनाव फैल गया था. सोमवार रात से ही फ़ायरिंग का विरोध करते हुए हज़ारों लोग ग़ाजीगुंड, अनंतनाग और गंदरबल क्षेत्रों में सड़कों पर उतर आए थे. उधर पाकिस्तान ने सोमवार की इस घटना की निंदा की है और पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने शेख़ अज़ीज़ की मृत्यु पर अफ़सोस ज़ाहिर किया. पाकिस्तान ने फ़ायरिंग की घटना को 'नाजायज़ और ज़रूरत से ज़्यादा बल का इस्तेमाल' बताया है. भारत प्रशासित कश्मीर की स्थिति पर पाकिस्तान के बयान को गंभीरता से लेते हुए भारत ने कहा है कि इससे शांति वार्ता प्रभावित हो सकती है. भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नवतेज सरना ने कहा, "मैंने जम्मू-कश्मीर की स्थिति पर पाकिस्तानी विदेश मंत्री और उनके मंत्रालय के प्रवक्ता के बयानों को देखा है. ये सीधे-सीधे भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप है." उनका कहना था, "इस तरह के बयानों से जम्मू-कश्मीर में स्थिति सुधारने में मदद नहीं मिलती और ना ही इससे द्विपक्षीय शांति वार्ता को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी." विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने स्पष्ट कहा कि आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप का असर शांति वार्ता पर पड़ सकता है.
किश्तवाड़ में सांप्रदायिक झड़पें
दूसरी ओर जम्मू में बीबीसी संवाददाता बीनू जोशी के अनुसार वहाँ प्रदर्शनों का दौर जारी है और वहाँ कम से कम एक व्यक्ति की मौत हुई है और दर्जन भर अन्य लोग घायल हुए हैं. पुलिस का कहना है कि यह मौत किश्तवाड़ में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच हुई झड़पों के कारण हुई है. प्रशासन ने जम्मू में कर्फ़्यू में दिन भर की छूट दी है. जम्मू में राजौरी में भी कर्फ़्यू में ढील दी गई है. लेकिन किश्तवाड़ में कर्फ़्यू दोबारा लागू कर दिया गया है. पुलिस का कहना है कि किश्तवाड़ में हिंदू और मुसलमान दोनों कर्फ़्यू का उल्लंघन करते हुए सड़कों पर उतर आए और उन्होंने एक दूसरे की संपत्तियों को नुक़सान पहुँचाया. अधिकारियों का कहना है कि इसी बीच किसी ने भीड़ के बीच एक बम फेंक दिया जिससे एक व्यक्ति की मौत हो गई. उनके अनुसार इसके बाद सुरक्षाबलों ने फ़ायरिंग करके भीड़ को तितरबितर किया और उसे नियंत्रित किया. लेफ़्टिनेंट कर्नल एसडी गोस्वामी के अनुसार किश्तवाड़ में सेना को तैनात किया गया है. बीबीसी संवाददाता का कहना है कि इसके अलावा जम्मू के शेष इलाक़े में तनावपूर्ण शांति है.
बातचीत बेनतीजा
इस बीच दिल्ली में सर्वदलीय प्रतिनिधि मंडल की एक बैठक गृहमंत्रलय में हुई है.इस बैठक में सिवाय इस बात के कोई नतीजा नहीं निकल सका कि और बातचीत करनी चाहिए. माना जा रहा है कि अब प्रधानमंत्री एक और बैठक बुला सकते हैं जिसमें जम्मू के नेताओं के अलावा कश्मीरी नेताओं को भी आमंत्रित किया जा सकता है. महत्वपूर्ण है कि हाल में भारतीय गृह मंत्री शिवराज पाटिल के नेतृत्व में एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल जम्मू-कश्मीर गया था जिसका मकसद अमरनाथ संघर्ष समिति के साथ बातचीत कर जम्मू में चल रहे आंदोलन का समाधान खोजना था.
तीस से ज़्यादा राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक संगठनों की अमरनाथ संघर्ष समिति की माँग है कि अमरनाथ मंदिर बोर्ड को ज़मीन दी जाए और अमरनाथ यात्रा का प्रबंधन सरकार की जगह फिर से अमरनाथ मंदिर बोर्ड संभाले.
हालाँकि सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल की संघर्ष समिति के लोगों से बातचीत हुई लेकिन उसका कोई हल नहीं निकल पाया था और जम्मू क्षेत्र में आंदोलन अब भी जारी है. उधर गृह मंत्री शिवराज पाटिल ने भारत प्रशासित कश्मीर के व्यापारियों से अपील की थी कि वे जम्मू में जारी आंदोलन के कारण वैकल्पिक रास्ता खोजने के लिए मार्च न करें.
1 comment:
अमरनाथ मंदिर विवाद में कोई भी दल दूध का धुला नहीं है। सभी सत्ता के समीकरण लगाकर आगे की रणनीति तय कर रहें हैं।
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