Monday, 7 January 2008

हर धर्म का मूल : सात महापाप और महापुण्य

दुनिया के सभी धर्म चाहे वह हिंदू, बौद्ध, जैन, ईसाई, इस्लाम या यहूदी हो सभी ने सात्विक आचरण पर जोर दिया। जब पहले से प्रचलित धर्म के अनुयायी लंपट और पथभ्रष्ट हो गए तो उसकी जगह ने धर्म ने लोगों को सही आचरण सात्विक जीवन का संदेश दिया। भारत के इतिहास में भक्ति आंदोलन ने ऐसी ही भूमिका निभाई। छठीं शताब्दी ईसापूर्व में बौद्ध और तदुपरान्त जैन धर्म ने इसी कारण लोगों को राह दिखाई। और जब इन धर्मों में आडंबर और पाखंड का बोलबाला हुआ तो फिर हिंदू धर्म ने जगह बना ली। प्राचीन भारत में आमजीवन की सात्विकता के संदेश के बल पर ही लोगं ने इन धर्मों को अपनाया। मध्यकाल में इस्लाम ने अपने अनुयायी शासकों की बदौलत जगह बनाई। ईसाई मिशनरियों ने भी भारत में अपने विजेता शासकों के पीछे ही रहकर जड़ जमा ली। इन सभी का इस तरह आगमन और अपने समर्थक बनाना नहीं बल्कि सभी धर्मों का पाप, पुण्य और सद्आचरण जैसी बातों में एकरूप होना महत्वपूर्ण है। यहां इन धर्मों की महानता के बारे में मैं कुछ नहीं कहना चाहता हूं बल्कि हाल में चर्चित हुए सात किस्म के महापाप की पश्चिमी जगत में चर्चा के बारे में आपका ध्यान खींचना चाहता हूं। इन सात महापापों की बीबीसी हिंदी सेवा और यहीं से लेकर वेबदुनिया ने चर्चा की है। दरअसल दुनिया के सात आश्चर्यों की तरह ये सात महापाप और सात महापुण्य ही वह मूल तत्व हैं जो युगों से प्रचलित धर्मों के आधार रहे हैं। धर्मों के विस्तृत उपदेशों के ये वह सूक्ष्म तत्व हैं जो सामान्य जीवन के लिए बेहद आवश्यक हैं। देखिए कैसे हैं ये सात महापाप और सात महापुण्य--------------।

सात महापाप और सात महापुण्य

आप में से अकसर लोगों ने दुनिया के सात आश्चर्य के बारे में सुना पढ़ा और देखा होगा इन अजूबों में अब भारत का ताजमहल भी शामिल है, लेकिन क्या आप सात महापाप के बारे में भी जानते हैं? अंग्रेज़ी में इन्हें सेवेन डेडली सिंस (Seven deadly sins) या कैपिटल वाइसेज़ (Capital vices) या कारडिनल सिंस (Cardinal sins) भी कहा जाता है. जब से मनुष्य ने होश संभाला है तभी से उनमें पाप-पुण्य, भलाई-बुराई, नैतिक-अनैतिक जैसे आध्यात्मिक विचार मौजूद हैं. सारे धर्म और हर क्षेत्र में इसका प्रचलन किसी न किसी रूप में ज़रूर है. यह सेवेन डेडली सिंस (Seven deadly sins) या कैपिटल वाइसेज़ (Capital vices) या कारडिनल सिंस (Cardinal sins) इस प्रकार हैं:
लस्ट (Lust)
ग्लूटनी (Gluttony)
ग्रीड (Greed)
स्लौथ (Sloth)
रैथ (Wrath)
एनवी (Envy)
प्राइड (Pride)


यह सारे शब्द भाववाचक संज्ञा (Abstract Noun) के रूप हैं लेकिन इनमें से कई का प्रयोग क्रिया और विशेषण के रूप में भी होता है. अगर इन्हें ग़ौर से देखें तो पता चलता है कि इन सारे महापाप की हर जगह भरमार है और हम में से हर एक इसमें से किसी न किसी पाप से ग्रसित है. पुराने ज़माने में इन सब को बड़े पाप में शामिल किया जाता था और उनसे बचने की शिक्षा दी जाती थी. पुराने ज़माने में ईसाई धर्म में इन सबको घोर पाप की सूची में रखा गया था क्यों की इनकी वजह से मनुष्य सदा के लिए दोषित ठहरा दिया जाता था और फिर बिना कंफ़ेशन के मुक्ति का कोई चारा नहीं था.
लस्ट (Lust) यानी उत्कंठा, लालसा, कामुकता, कामवासना (Intense or unrestrained sexual craving) यह मनुष्य को दंडनिय अपराध की ओर ले जाते हैं और इनसे समाज में कई प्रकार की बुराईयां फैलती हैं. विशेषण में इसे लस्टफुल (lustful) कहते हैं
ग्लूटनी (Gluttony) यानी पेटूपन. इसे भी सात महापापों में रखा गया है. जी हां दुनिया भर में तेज़ी से फैलने वाले मोटापे को देखें तो यह सही लगता है की पेटूपन बुरी चीज़ हैं और हर ज़माने में पेटूपन की निंदा हुई है और इसका मज़ाक़ उड़ाया गया है. ठूंस कर खाने को महा पाप में इस लिए रखा गया है कि एक तो इसमें अधिक खाने की लालसा है और दूसरे यह ज़रूरतमंदों के खाने में हस्तक्षेप का कारण है.
मध्यकाल में लोगों ने इसे विस्तार से देखा और इसके लक्षण में छह बातें बताईं जिनसे पेटूपन साबित होता है. वह इस प्रकार हैं.eating too soon
eating too expensively
eating too much
eating too eagerly
eating too daintily
eating too fervently

ग्रीड (Greed) यानी लालच, लोभ. यह भी लस्ट और ग्लूटनी की तरह है और इसमें में अत्यधिक प्रलोभन होता है. चर्च ने इसे सात महापाप की सूची में अलग से इस लिए रखा है कि इस से धन-दौलत की लालच शामिल है (An excessive desire to acquire or possess more than what one needs or deserves, especially with respect to material wealth)

स्लौथ (Sloth) यानी आलस्य, सुस्ती और काहिली (Aversion to work or exertion; laziness; indolence). पहले स्लौथ का अर्थ होता था उदास रहना, ख़ुशी न मनाना और इसे महापाप में इसलिए रखा गया था कि इस से ख़ुदा की दी हुई चीज़ से परहेज़ करना. इस अर्थ का पर्याय आज melancholy, apathy, depression, और joylessness होगा. बाद में इसे इसलिए पाप में शामिल रखा गया क्योंकि इस की वजह से आदमी अपनी योग्यता और क्षमता का प्रयोग नहीं करता है.

रैथ (Wrath) ग़ुस्सा, क्रोध, आक्रोश. इसे नफ़रत और ग़ुस्से का मिला जुला रूप कहा जा सकता है जिस में आकर कोई कुछ भी कर जाता है. यह सात महापाप में अकेला पाप है जिसमें हो सकता है कि आपका अपना स्वार्थ शामिल न हो (Forceful, often vindictive anger)
एनवी (Envy) यानी ईर्ष्या, डाह, जलन, हसद. यह ग्रीड यानी लालच से इस अर्थ में अलग है कि ग्रीड में धन-दौलत ही शामिल है जबकि यह उसका व्यापक रूप है. यह महापाप इस लिए है कि कोई गुण किसी में देख कर उसे अपने में चाहना और दूसरे की अच्छी चीज़ को देख न पाना.
प्राइड (Pride) यानी घमंड, अहंकार, अभिमान को सातों माहापाप में सबसे बुरा पाप समझा जाता है और किसी भी धर्म में इसकी कठोर निंदा और भर्त्सना की गई है. इसे सारे पाप की जड़ समझा जाता क्योंकि सारे पाप इसी के पेट से निकलते हैं. इसमें ख़ुद को सबसे महान समझना और ख़ुद से अत्यधिक प्रेम शामिल है.
अंग्रेज़ी के सुप्रसिद्ध नाटककार क्रिस्टोफ़र मारलो ने अपने नाटक डॉ. फ़ॉस्टस में इन सारे पापों का व्यक्तियों के रूप में चित्रण किया है. उनके नाटक में यह सारे महापाप इस क्रम pride, greed, envy, wrath, gluttony, sloth, lust में आते हैं.
सात अजूबों के साथ सात महापाप सात और महापुण्य भी देख लें. यह इस प्रकार हैं.

सात महापाप

लस्ट (Lust)
ग्लूटनी (Gluttony)
ग्रीड (Greed)
स्लौथ (Sloth)
रैथ (Wrath)
एनवी (Envy)
प्राइड (Pride)

सात महापुण्य

Chastity पाकीज़गी, विशुद्धता
Temperance आत्म संयम, परहेज़
Charity यानी दान, उदारता,
Diligence यानी परिश्रमी,
Forgiveness यानी क्षमा, माफ़ी
Kindness यानी रहम, दया,
Humility विनम्रता, दीनता, विनय

इन सात महापाप और सात महापुण्य में ही समाहित हैं सारे धर्म। अगर धर्मों के पूजा पाखंड को छोड़कर सिर्फ उन चीजों को चुना जाए जो जीवन के लिए अनिवार्य होते हैं तो वे यही सात पुण्य और पाप हैं। शायद कोई प्रगतिशील धर्म की कल्पना की जाए जिसमें किसी ईश्वर व उससे जुड़े चमत्कार व पूजापाठ जैसी चीज न हो तो वह प्रगतिशील धर्म इन्हीं सात वर्ज्य तत्वों के इर्दगिर्द होगा। इस नए पंथ में किसी किस्म की सांप्रदायिकता की कोई गुंजाइश भी नहीं होगी। क्या हम कभी ऐसी दुनियां बना पाएंगे?

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