मान्यता प्राप्त पत्रकार अगर संपादक भी हों तो ऐसे किस कानून का उल्लंघन होता है या फिर संवाददाताओँ और शासन पर कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा। फिलहाल तो यह समझ से परे है। क्या यशवंतजी इस दोहरे मानदंड पर भी सवाल उठाने की कृपा करेंगे। पत्रकारों को बांटने की इस कुटिल चाल का भी पर्दाफास अवश्य किया जाना चाहिए।
हिंदी अखबारों के पत्रकार एवार्ड लायक नहीं होते?
कुछ लोगों का यह भी कहना है कि हिंदी अखबारों के दूर-दराज के रिपोर्टर जिन खबरों को भेजते हैं और वे अखबारों में प्रकाशित होती हैं, उन्हीं खबरों को कई महीने बाद अंग्रेजी अखबारों के रिपोर्टर उठाते हैं और खबर ब्रेक करने का श्रेय भी ले जाते हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि अंग्रेजी अखबारों और टीवी के पत्रकार अपने व्यक्तित्व और काम की 'मार्केटिंग' अच्छी तरह से कर ले जाते हैं, इसीलिए उन्हें पुरस्कार मिल जाता है जबकि हिंदी का भदेस, मेहनती और जुझारू पत्रकार सब कुछ करने के बाद भी सिर्फ अपने किए को ठीक से 'मार्केट' न कर पाने की वजह से पिछड़ा रह जाता है। कुछ लोगों ने सुझाव दिया कि पुरस्कार देने वाली संस्थाओं को एवार्ड के लिए आवेदन आमंत्रित किए जाने की जानकारी सभी पत्रकारों तक पहुंचाने की गारंटी करनी चाहिए। होता यह भी है कि एवार्ड के लिए आवेदन मांगे जाने की जानकारी सिर्फ अंग्रेजी अखबारों में प्रकाशित करा दी जाती है। इससे यह सूचना दूर-दराज के इलाकों को तो छोड़ दीजिए, प्रदेश की राजधानियों के पत्रकारों तक भी नहीं पहुंच पाती।
रामनाथ गोयनका एक्सीलेंस एवार्ड 2007-08 के नामिनी में हिंदी अखबारों के कुछ पत्रकारों के नाम हैं लेकिन इन्हें विजेता घोषित नहीं किया गया। उदाहरण के तौर पर एक्सीलेंस इन जर्नलिज्म एवार्ड हिंदी प्रिंट कैटगरी में अमर उजाला के प्रताप सोमवंशी और दैनिक भास्कर के मनोज सिंह पमार के नाम हैं। इस कैटगरी में एवार्ड के विजेता रहे पुण्य प्रसून वाजपेयी। पुण्य को प्रिंट कैटगरी का पुरस्कार इसलिए दिया गया क्योंकि उन्होंने छत्तीसगढ़ के आदिवासियों पर जो रिपोर्टें लिखीं, उन्हें हिंदी मैग्जीन प्रथम प्रवक्ता में प्रकाशित किया गया। देखा जाए तो यह एवार्ड भी किसी हिंदी प्रिंट वाले को नहीं मिला बल्कि टीवी जर्नलिस्ट को दिया गया। यहां मकसद किसी के काम को कमतर आंकना नहीं है बल्कि पुरस्कार के पैमानों पर बात करना है। हिंदी भाषी इस देश में अगर पत्रकारिता के दो दर्जन से ज्यादा पुरस्कारों में हिंदी के टाप टेन अखबारों के एक भी पत्रकार नहीं आ पाते तो क्या इसे यूं ही संयोग मानकर छोड़ देना चाहिए या फिर इस पर बहस होनी चाहिए?
2 comments:
पूरी दुनिया में ही विसंगतियां हैं.
हिंदी पत्रकारों को क्यों अवार्ड नहीं मिलते....सच मुच..आपने एक गंभीर प्रश्न की ओर इंगित किया है....एक विचारणीय प्रश्न है यह.... !!
Post a Comment