Friday, 1 January 2010

हर की पौड़ीः अपनी जिम्मेदारी भी समझें श्रद्धालु


सभी ब्लागर साथियों व पाठकों को नए साल २०१० की शुभकामनाएं।    नया साल शुरू होने से कुछ पहले ही मैंने हरिद्वार हर की पौड़ी, और वहीं ऊंचे पहाड़ पर अवस्थित मां मनसा देवी के मंदिर की यात्रा की थी। यात्रा तो इसके बाद देहरादून की भी की थी मगर फोटो सिर्फ हरिद्वार की ही खींच पाया। नए साल में शुभकामनाओं के साथ नया यही है कि हरिद्वार की कुछ फोटो भी देख लें।
अपनी जिम्मेदारी भी समझें श्रद्धालु
  हम जब पहुंचे थे तो हरिद्वार में कुंभ की तैयारियां चरम पर थीं। शायद इसी लिए हम अपने मन में जिस सुंदर हरिद्वार व हर की पौड़ी की छवि लेकर गए थे उससे कम ही देखने को मिला। शायद तैयारियों के भी कारण ऐसा हमें दिखा होगा। मसलन हर की पौड़ी पर कई जगह तोड़फोड़ कर दी गई थी। तेजधार से बहता गंगाजल निर्मल नहीं बल्कि गंदा दिखा। पानी में नजदीक से झांककर देखा तो तमाम फूल, पत्तियों समेत लोगों के कपड़े वगैरह पानी में बहते दिखे। अगर आप एक अंजलि जल उठा लें तो उसमें तमाम फूल पत्तियों के टुकड़े मिल जाएंगे। बाहर की तरफ से हर की पौड़ी तक पहुंचने के लिए बने खूबसूरत पुलों से टकराते हुए गंगाजल में पुल के नीचे तमाम कपड़ों के टुकड़ों को फंसे देखा। जिस गंगाजल को सिर माथे पर लेकर पुण्य की कामना करने वालों को पता नहीं यह क्यों नहीं समझ में नहीं आता की अपने वस्त्र वगैरह गंगा में बहाकर आखिर गंगा को गंदा करने का पाप क्यों बटोरते हैं। हर की पौड़ी जो कि महान धार्मिक स्थल के साथ पर्यटकों के लिए एक अच्छी जगह है मगर वहां यत्र-तत्र खाकर फेंके गए दोने वगारह गंदगी में इजाफा करते कहते हैं। ये वे दोने वगैरह होते हैं जिसमें लोगों गरीबों को भोजन दान करते हैं। और वे लोग इसे वहीं खाकर फेंक देते हैं। यह गंदगी देखकर तो यही लगता है कि हर की पौड़ी पर सिर्फ नहाने के अलावा बाकी कर्म पर पाबंदी लगा देनी चाहिए। भिखारियों व अनावश्यक दुकानें लगाकर भीड़ करने वालों को वहां दूर ऐसी जगह पर बैठने की ईजाजत दी जानी चाहिए जहां से स्नान वगैरह के बाद श्रद्धालु गुदरें और दानपुण्य करते हुए बाहर चले जाएं। अर्थात दान कर्म वहां से बाहर निकलकर करने की व्यवस्था की जानी चाहिए। अगर तीर्थस्थलों को बचाना है तो गंदगी रोकने व निगरानी के इंतजाम सरकार को फौरन करने चाहिए। धर्म स्थल साफ सुथरे,पंडों की अराजकता व भिखारियों के तांडव से मुक्त हों तो मन में श्रद्धा और जगती है। अन्यथा मेरी तरह मन में एक पीड़ा लेकर लौटता है श्रद्धालु और पर्यटक।

कुंभ मेला -पौराणिक कथाएँ

कुंभ के मेले में भिखारी बनेंगे मुसीबत

महाकुंभ की तैयारियों में लगे मेला प्रशासन के लिए भिखारी मुसीबत बने हुए है। पुलिस प्रशासन जहां महाकुंभ क्षेत्र को भिखारी मुक्त करने योजना बना रहा है वही सेक्टर व जोन में बंटने वाले इस क्षेत्र की तर्ज पर भिखारी भी व्यवस्थित होने की तैयारी में हैं। इनमें बाग्लादेश भिखारी भी प्रशासन के लिए चिंता का सबब बने हुए है। इन भिखारियों में किसी के हिस्से में हरकी पै़डी है, तो कोई पंतद्वीप, मंसा देवी, चंडी देवी मंदिरों के बाहर कटोरे पकडे हुए है। मेला क्षेत्र के लिए भिखारियों की भी व्यवस्थाओं मे बडे बदलाव होने तय है। दिल्ली, यूपी, बिहार, प.बंगाल व उडीसा से इन दिनों पहुंचे भिखारी इसके लिए बाकयदा कार्ययोजना तैयार कर रहे हैँ। महाकुंभ शुरू होने से कुछ दिन पहले इनके कुनबे व संगी साथी भी यहां पहुंचेंगे। वे अपने-अपने इलाकों में बंट जाएंगे। भिखारियों के इन जत्थों में पांच वर्ष के बच्चों से लेकर 70 साल के बूढ़े तक शामिल रहते है। ये सभी अपनी उम्र व शारीरिक बनावट आदि के अनुसार भीख मांगने के तरीके अपनाते है। पिछली बार अर्द्धकुंभ में भी भिखारियों को मेला क्षेत्र से हटाने की योजना धरी की धरी रह गई थी। श्रद्धालुओं को डरा धमकाकर दान पुण्य करने को मजबूर करना भी भीख मांगने का एक तरीका है। जानकारी के अनुसार कुंभ मेला एक जनवरी, 2010 से भिखारियों को मेला क्षेत्र से हटाकर रोशनाबाद भिक्षुकगृह में रखा जाएगा

कुंभ मेला शहर से बाहर


कुंभ मेले में पाँच करोड़ लोगों के हरिद्वार पहुँचने के दावों के बीच कुंभ मेला प्रशासन ने मेले को पूरी तरह शहर से बाहर कर दिया है। कुंभ मेले में लगने वाली प्रदर्शनीयों का आनंद उठाने के इच्छुक लोगों को दस किलोमीटर सफर कर कठिन रास्तों से गौरीशंकर नगर पहुँचना होगा। कुंभ से जुडे समाचारों को पलक झपकते ही देश-विदेश तक पहुँचाने वाले पत्रकारों के लिए प्रेस शिविर भी गौरीशंकर नगर में ही बनाया जाएगा। बड़े कथा वाचकों के पंडाल भी गौरी शंकर नगर में ही बनेंगे। हरिद्वार शहरी क्षेत्र में जिन अखाड़ों के भवन बने है, उन्हें छोड़कर तमाम अखाड़े और खालसे मंडलेश्वर नगर में अपना डेरा डालेंगे।

महाकुंभ की धर्मध्वजा बडकोट के पेडों से सजेगी

देहरादून। सदी के सबसे बडे धार्मिक मेले :महाकुंभ: में विभिन्न अखाडों की धर्मध्वजा के लिए उत्तरकाशी जिले के बडकोट के जंगलों से पेडो को काटकर लाया जायेगा और उसी के माध्यम से कुल 13 अखाडों के लिए अलग अलग धर्मध्वजा लगायी जायेगी।

महाकुंभ में अधिकृत तौर पर 13 अखाडों के लिए अलग अलग स्थानों पर नगर बसाये जाते है और उनमें परंमरा के अनुसार 52 हाथ ऊंची धर्मध्वजा लगायी जाती है। इस ध्वजा के लगने के बाद ही महाकुंभ की औपचारिक रूप से शुरूआत मानी जाती है। देश के चार स्थानों नासिक, उज्जैन, इलाहाबाद और हरिद्वार में प्रत्येक बारह वर्ष पर लगने वाले महाकुंभ का मेला मुख्य रूप से देश भर के साधु संतों के लिए गठित अखाडो के स्नान के लिए ही आयोजित किया जाता है।

देश में कुल 13 अखाडों को ही आधिकारिक रूप से मान्यता मिली हुई है और सभी अखाडे अखिर भारतीय अखाडा परिषद के सदस्य के तौर पर विभिन्न क्रियाकलापों में हिस्सा लेते है। महांकुभ से जुडे प्रशासनिक सूत्रों ने बताया कि अखाडों के परिसर में धर्मध्वजा के पूरे विधि विधान के साथ स्थापित हो जाने के बाद ही महाकुंभ का औपचारिक रूप से आगाज होता है। इसी के तहत इन ध्वजाओं के लिए 52 हाथ ऊंचे अखंड पेड या बांस की जरूरत होती है।

इस लिंक से देखिए हरिद्वार में हर की पौड़ी व अन्य दृश्य---------।


अमेरिका का कुंभ
मारीशस की शिवरात्रि, थाईलैंड की रामायण, सूरीनाम की रामकथा, इंग्लैंड की बैसाखी, अफ्रीका का आर्य समाज का जलसा और अमेरिका का कुंभ मेला। है न आश्चर्यजनक, क्योंकि ये उत्सव तो भारत की धरोहर हैं, लेकिन जब से भारत के लोग दूर-दराज देशों में अपना बसेरा बना रहे है वे भारत की अनमोल धार्मिक, सांस्कृतिक एवं भाषा की धरोहर के कुछ बीज अपने साथ ले जा रही हैं। यह सिलसिला कई शताब्दी पूर्व आरंभ हुआ था। रामायण काल से ही यूरोप, अफ्रीका, अरब देशों एवं पूर्वी एशिया में भारतीय संस्कृति किसी न किसी रूप में पहुंचाई गई। भारतीयों का दूसरे देशों में स्थाई रूप से बसने का क्रम 150 वर्ष पुराना है। दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका एवं मॉरीशस में भारतीय 19वीं सदी के अंतराल में पहुंचे। इंग्लैंड में भारतीयों का आगमन 70 वर्ष पुराना है तो अमेरिका में भारतीयों का आवास 50 वर्ष से ही होना आरंभ हुआ है। इन सब देशों के आर्थिक, बौद्धिक एवं सामाजिक परिवेश भिन्न हैं पर एक बात समान है और वह है भारतीयों की अपने धर्म-संस्कृति एवं भाषा के जुडे़ रहने की अदम्य लालसा। अमेरिका के प्रत्येक नगर में लघु भारत बसा हुआ मिल जाएगा। अमेरिका में भारतीयों की संख्या दो करोड़ के लगभग है। यह अमेरिका की कुल जनसंख्या का दो प्रतिशत भी नहीं है,पर भारतीयों की मुखरता, समाज एवं व्यवसाय में बढ़ता प्रभाव एवं विश्वविद्यालयों में बहुलता सर्वत्र दिखाई देती है। ऐसी ही बहुलता की एक झलक हाल में यहां आयोजित कुंभ मेले में दिखाई धी।

भारत में कुंभ मेले का इतिहास अति प्राचीन है। कहते हैं कि समुद्र मंथन का महा अभियान ब्रह्मा जी के बारह दिन में पूरा हुआ था। कुंभ मेले का आरंभ कब से हुआ यह तो निश्चित करना मुश्किल है। चंद्र गुप्त मौर्य के काल में यूनानी लेखकों ने कुंभ मेले का मेले का उल्लेख किया है, राजा हर्ष वर्धन के समय तो कुंभ मेला अपने पूर्ण गौरव पर था। जहां एक ओर महात्मा गांधी ने कुंभ मेले में गरीबी, गंदगी और अंधविश्वास का अनुभव किया वहीं अमेरिका के प्रसिद्ध लेखक मार्क ट्वेन ने कुंभ मेले में संगम के तट पर खड़े होकर भारत के आध्यात्मिक पुंज का साक्षात्कार किया था। उन्होंने भारत को अध्यात्मिक गुरू कहा। विदेशों में भारत की बढ़ती आध्यात्मिक छवि का ही परिणाम है कि हाल के प्रयाग कुंभ मेले में तीन हजार से भी अधिक विदेशी भक्त भाग लेने गए। अप्रत्याशित वर्षा के बावजूद उन्हे व्यवस्था एवं स्वयं सेवकों का उत्साह और सेवा भाव आदरणीय लगा। चूंकि प्रत्येक भारतीय कुंभ मेले में नहीं जा सकता है अत: अब कुंभ मेले भारत से बाहर जाने लगे हैं। जो पंचतत्व ब्रह्माण्ड में होते है वही पंचतत्व कुंभ में भी होते है। जिस प्रकार जीव में ब्रह्म का अंश है, जो कि पूर्णता का द्योतक है। वर्ष 2006 के अगस्त माह में कैलिफोर्निया में हिंदू-संगम का आयोजन हुआ था, जिसमें अनेक संगठनों ने भाग लिया और पांच हजार से भी अधिक हिंदुओं ने भाग लिया। इस वर्ष नौ सितंबर रविवार को कैलिफोर्निया के लॉस-एजंलस नगर के निकट यह पर्व कुंभ मेले के नाम से संपन्न हुआ। सनातन मंदिर मंदिर में आयोजित एक दिन का यह कुंभ मेला प्रात: 10 बजे से लेकर रात 10 बजे तक चला। इस आधुनिक, अपारंपरिक एवं अनूठे कुंभ मेले में हजारों श्रद्धालुओं ने भाग लिया। भक्तों में भारतीयों के साथ विश्व के विभिन्न देशों के मूल निवासी भी थे।

अमेरिका में दो लाख से अधिक अमेरिका के निवासी हिंदू जीवन शैली, दर्शन एवं योग का पालन करते हैं। इन्हें (प्रैक्टिसिंग हिंदू) कहा जाता है। जिस तरह भारत का कुंभ मेला हिंदू धर्म की सार्वभौमिकता का प्रतीक है उसी तरह कैलिफोर्निया का कुंभ मेला हिंदू एकता का ध्वज है। इसी ध्वज की छाया में चिन्मय मिशन, रामकृष्ण मिशन, वेदांत सोसाइटी, साईबाबा संगठन, स्वामीनारायण संस्था, मां अमृतानंदमयी सिद्धयोग, हंसा योग, हिंदू स्वयं सेवक संघ आदि 20 से भी अधिक संगठन कुंभ मेले में सम्मिलित हुए। कुंभ मेले का आरंभ आधा मील लंबे जुलूस से हुआ, जिसमें विभिन्न संगठनों की झांकियां दृश्यमान थीं। पूजा अर्चना के बादं विग्रहों का भारत की 21 पवित्र नदियों से लाए गए जल में विसर्जन किया गया। कुंभ मेले का उद्देश्य जगत में सहृदयता प्रेम एवं शांति के लिए प्रार्थना करना था। इस कुंभ मेले में न गंगा थी न त्रिवेणी, न शाही स्नान और न ही अखाड़े और न ही करोड़ों भक्तों की भीड़, परंतु स्वधर्म में अटूट आस्था, उत्साह और विदेश में बसे भारतीयों के उज्जवल भविष्य की ओर संकेत अवश्य था। उम्मीद है ऐसे मेले अमेरिका के अन्य स्थानों पर भी आयोजित होंगे। (लेखिका रेणु राजवंशी गुप्ता )

हरिद्वार में १४ जनवरी से लगने वाले कुंभ मेले की तैयारियों पर कुछ खबरें जनसत्ता में २९ दिसंबर को छपी हैं। जनसत्ता से ये खबरें साभार ली गई हैं। आप भी इनका अवलोकन करें। इनमें से एक खबर है--कुंभ मेला के सभी कार्य सही समय पर पूरे हो रहे हैं-निशंक और दूसरी है-रमता पंच पहुंचे पांडेवाला।------------।




कुंभ मेला के सभी कार्य सही समय पर पूरे हो रहे हैं-निशंक


सुनील दत्त पांडेय


हरिद्वार 28 दिसंबर। हरिद्वार में अगले साल 14 जनवरी से लगने वाले कुंभ मेला की तैयारियां लगभग पूरी कर ली गई है। पहली बार कुंभ मेला के लिए सत्तर फीसद काम स्थायी रूप से करवाए जा रहे हैं। जिसका पूरा फायदा हरिद्वार के वासियों को मिलेगा। कुंभ मेले के लिए इस बार 450 करोड़ रुपए का बजट रखा गया है। यह बात मुख्यमंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक ने बताई। उन्होंने कहा कि कुंभ मेला हमारे लिए एक अवसर और चुनौती दोनों ही है। हमने कुंभ मेला कार्यों की गुणवत्ता के लिए थर्ड पार्र्टी सिस्टम बनाया है, जिसके लिए आला दर्जे की कंपनियों को हर काम पर जांच के लिए लगाया गया है। कुंभ मेला के कार्यों की गुणवत्ता से किसी तरह का समझौता उनकी सरकार नहीं करेगी। उन्होंने कहा कि तीर्थयात्रियों की सहूलियत के लिए गंगा तट पर कई नए घाटों का निर्माण किया गया है। सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए जा रहे हैं।


मुख्यमंत्री ने बताया कि साधु-संतों की सुविधाओं के लिए सभी इंतजाम किए गए हैं। उन्होंने कहा कि कुंभ मेला में जो भी तीर्थयात्री हरिद्वार आए, वह सुखद अनुभूति व मीठी यादें लेकर लेकर जाए, यह हमारा प्रयास होगा। उन्होंने कहा कि इस बार कुंभ मेला 70 फीसद कार्य स्थाई प्रवृति के कराए गए हैं, जिनका लाभ क्षेत्र के लोगों को कुंभ के बाद भी मिलेगा। डॉ निशंक ने बताया कि कुंभ मेला के लिए राज्य सरकार ने 293 योजनाओं की मंजूरी दी है। शासन ने इनके लिए साढ़े चार सौ करोड़ रुपए की धनराशि मंजूर कर दी है और साढ़े तीन सौ करोड़ रुपए अब तक मुक्तकर दिए हैं। कुंभ के साढ़े चार सौ करोड़ रुपयों में से 70 फीसद रुपए यानी सवा तीन सौ करोड़ रुपए के कार्य स्थाई प्रवृति के कराए गए हैं। अस्थाई कार्यों के लिए 11776.58 लाख रुपए आबंटित किए गए हैं।


मुख्यमंत्री ने बताया कि कुंभ मेला कार्यों में सिंचाई विभाग सहित उत्तराखंड गंगा नहर रुड़की, पेयजल निगम, जल संस्थान, गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई, पावर कारपोरेशन, लोक निर्माण विभाग, राजाजी राष्ट्रीय पार्क देहरादून, पेयजल विभाग, शक्ति नहर खंड हरिद्वार, हरिद्वार विकास प्राधिकरण, राजकीय निर्माण निगम, उत्तर प्रदेश, नगर पालिका हरिद्वार ऋषिकेश, नगर पंचायत, वन विभाग, उत्तर प्रदेश राज्य सेतु निगम, वन विभाग हरिद्वार, परिवहन निगम, ग्रामीण अभियंत्रगण सेवा, स्वास्थ्य विभाग, पशुपालन विभाग, मेलाधिष्ठान, पर्यटन विभाग, हौम्योपैथिक चिकित्सा विभाग जुटे हंै। हर विभाग का एक नोेडल अफसर बनाया गया है, जो मेलाधिष्ठान से हर विभाग से तालमेल बिठाने का काम करता है। मुख्यमंत्री ने कहा है कि कुंभ मेला कार्यों में ढिलाई व भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। कुंभ मेला में गंगाघाटों के निर्माण के साथ गंगा नहर पर दो स्थाई पुलों, सड़कों, रेलवे लाई ओवर ब्रिज का निर्माण किया गया है। कुंभ मेले में उनकी सरकार धन की कमी नहीं होने देगी।


डॉ निशंक ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालते ही कुंभ कार्यों का स्थलीय निरीक्षण किया और लोकनिर्माण विभाग, गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई नगर पालिका समेत कई विभागों के अफसरों को निलंबित किया, जिससे कुंभ कार्यों में लगे अफसरों में खौफ छा गया और कुंभ कामों में भ्रष्टाचार पर काफी हद तक पर रोक लगी है। और बेकाबू हुए कुंभ अधिकारियों पर अंकुश लगा है। पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी के जमाने में तो कुंभ मेला से जुड़े अफसर बेकाबू व निरंकुश बने हुए थे। खंडूड़ी के जमाने में एक कांग्रेसी नेता और एक व्यापारी की जमीन मेला भूमि से मुक्त कर दी गई थी, जिससे खंडूड़ी सरकार की खासी फजीहत हुई थी।


डॉ निशंक ने पद संभालते ही सबसे पहले कुंभ कार्यों की समीक्षा की और कुंभ मेला भूमि के कम होने पर चिंता जताते हुए कुंभ भूमि को संरक्षित करने के कड़े निर्देश दिए। खंडूड़ी अपने कार्यकाल में भ्रष्टाचार दूर करने के डंके तो बहुत बजाते थे, लेकिन उनके सचिव पीके सारंगी के कारनामों ने खंडूड़ी सरकार के भ्रष्टाचार दिनों की कारनामों की पोल खोल दी थी। बताते हैं कि जिन दो व्यापारियों की जमीन कुंभ मेला भूमि से मुक्त की गई थी। उसमें सारंगी की अहम भूमिका थी। कुंभ मेलाधिष्ठान के अफसरों ने सांरगी के ही दबाव में कुंभ मेला भूमि की मुक्त करने की कार्यवाही की थी। खंडूड़ी ने अपने कायर्काल में एक दिन भी कुंभ कार्यों का निरीक्षण नहीं किया। जबकि इसके उलट निशंक ने छह से अधिक बार कुंभ कार्यों का गहन निरीक्षण किया, जिससे कुंभ कार्यों में तेजी आई और सभी काम सही समय पर पूरे होते जा रहे हैं। इस बार खास बात यह है कि मुख्यमंत्री डॉ निशंक के दबाव और पहल के बाद केंद्र सरकार ने पहली बार हरिद्वार कुंभ मेला के लिए 400 करोड़ रुपए दिए हैं और कुंभ मेला कार्यों की समीक्षा हर सप्ताह उच्च स्तर पर हो रही है। पहली बार कुंभ मेला पर निगरानी रखने के लिए मुख्यमंत्री के दफ्तर में एक विशेष सेल बनाया गया है, जिसके प्रभारी मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव सुभाष कुमार है।


रमता पंच पहुंचे पांडेवाला


जनसत्ता संवाददाता

हरिद्वार, 28 दिसंबर। हरिद्वार में धार्मिक हिसाब से कुंभ की हलचल रविवार से शुरू हो गई। दशनामी संन्यासी परंपरा के सबसे बड़े पंचदश जूना अखाड़ा के रमता पंच अपने देवता निशान चंद्र प्रकाश जी के साथ अपने ढाई हजार साल पुराने ठिकाने पांडेवाला ज्वालापुर में पहुंचे। जहां उनका गर्मजोशी के साथ तीर्थ पुरोहित समाज के लोगों और श्रीगंगा सभा के सभापति कृष्ण कुमार ठेकेदार, महामंत्री वीरेंद्र श्रीकुंज पंडित रमेश सिखोला आदि ने फूल मालाओं से स्वागत किया।


तीर्थ पुरोहितों के धड़ा पंचायत फिराहैडियान, पांडेवाला ज्वालापुर के अध्यक्ष पंडित राधेश्याम प्रधान, महामंत्री सरदार पंडित श्रवण कुमार, योगेश, शशिकांत वशिष्ठ, कमलकांत, रमेश शुक्ल, राधेश्याम कुएंवाले, जागेश्वर वशिष्ठ , लक्ष्मीराणा, अरविंद राणा, प्रेम पंचभैया आदि ने पांडेवाला के द्वारा पर रमता पंचों के श्रीमंहतों, जूना अखाड़ों के निशान देवता श्री चंद्रप्रकाश जी का रोली चंदन, अक्षत, पुष्प, नवैद्य से पूजन किया। हर-हर महादेव, गंगा मैया की जय, वीर बजरंग बली के नारों से पूरा पांडेवाला गंूज उठा। वैदिक विधि विधान के साथ निशान देवता श्री चंद्रप्रकाश जी की स्थापना रघुनाथ मंदिर और गुघाल देवता के प्रांगण में बड़े पुजारी दिगंबर बाबा ओमगिरी और दिगंबर बाबा दीपक पुरी और थानापति कल्याणपुरी ने की। इस अवसर पर तंबू गाड़कर निशान देवता का अस्थायी मंदिर बनाया गया। इस तरह बारह साल बाद फिर से पांडेवाला ज्वालापुर में जुना अखाड़ के रमता पंचों की रौनक लौट आई है। उनके डेरे लग गए। कुंभ मेला प्रशासन ने पांडेवाला में सड़कों का निर्माण करवाया और बिजली का पुख्ता इंतजाम किया। रमता पंचों के पांडेवाला में आते ही इस क्षेत्र में धार्मिक गतिविधियां बढ़ गई हैं।


पांडेवाला में जूना अखाड़े के नागा संन्यासियों का डेरा 29 जनवरी तक रहेगा। जो 30 जनवरी को पेशवाई के रूप में नगर भ्रमण करते हुए हरिद्वार स्थित मायादेवी के प्रांगण में प्रवेश करेंगे। जहां 14 अपै्रल को कुंभ के मुख्य स्नान के बाद अपने-अपने स्थानों पर लौट जाएंगे। जूना अखाड़े का रमता पंच सन 2007 में हनुमान घाट बनारस से हरिद्वार के लिए चला था। दो साल में लंबा सफर तय करते के बाद रमता पंच हरिद्वार पहुंचे हैं। एक हफ्ते पहले रमता पंच हरिद्वार से पूर्व दिशा में स्थित कांगड़ी गांव में आए। वहां से वे कनखल स्थित भैरव मंदिर आशा रोड़ी पहुंचे। पंचक होने के कारण जहां उन्होंने छह दिन तक विश्राम किया। इसके बाद रविवार सुबह ठीक साढ़े नौ बजे वे भैरव मंदिर कनखल से पांडेवाला ज्वालापुर के लिए निकले। हनुमान गढ़ी, प्रेमनगर चैक, चंद्राचार्य चौक, भगत सिंह चौक, बीएचईएल फांउड्री तिराह होते हुए पांडेवाला के ऐतिहासिक मैदान में सुबह सवा ग्यारह बजे पहुंचे।


कनखल के हनुमान गढ़ी में निर्मल पंचायती अखाड़ा के मंहत और निर्मल संतपुरा के परमाध्यक्ष महंत महेंद्र सिंह ने अपने साथियों के साथ जूना अखाड़े के रमता पंचों का फूल मालाओं से स्वागत किया। ज्वालापुर-भेल मोड़ पर कांग्रेस नेता पूनम भगत ने रमता पंचों का स्वागत किया। ढोल, नगाड़े, नागफनी, तुरई, और शंखनाद के साथ घोड़े पर विराजमान निशान देवता को पांडेवाला लाया गया। निशांन देवता के साथ नागा संयासियों के परंपरागत हथियार भाले फरसे, चल रहें थे। निशान देवता को घोड़े पर सवार दिगंबर बाबा घनश्याम गिरी ने संभाल रखा था।


जूना अखाड़े के सभापति मंहत उमाशंकर भारती ने पांडेवाला पहुंचने पर कहा कि ढाई हजार साल पुराने स्थान पर पहुंच कर हम संतगण गद्-गद् हैं। तीर्थ पुरोहितों ने अपने पूर्वजों की वर्षों पुरानी परंपरा को जिस तरह निभाया है उससे संत समाज अभिभूत है। मंहत कणर्पुरी ने कहाकि 12 साल बाद फिर से पांडेवाला के ऐतिहासिक मैदान में संतों और तीर्थ पुरोहितों का मिलन हुआ है। यहां आज भक्ति भाव की गंगा फिर से प्रवाहित हुई है। पांडेवाला में जूना अखाड़े के साधुओं के काफिले में सभापति श्रीमहंत उमाशंकर भारती, रमता पंच के श्रीमंहत देवेंद्र गिरी, मंहत वेदव्यास पुरी, मंहत विजय गिरी, श्रीमहंत नटराज गिरी, मंहत शंभुगिरी, जूना अखाड़े के सचिव श्रीमंहत हरिगिरी, महंत प्रेमपुरी, मंहत कर्ण पुरी, मंहत प्रेम गिरी, मंहत रमण पुरी, मंहत विद्यानंद सरस्वती, थानापति कल्याण पुरी, अग्नि आखाड़ा के श्री मंहत आनंद चैतन्य, श्री मंहत अच्युतानंद ब्रह्मचारी समेत कई संत महंत उपस्थित थे। मेला अधिष्ठान की ओर से उपकुंभ मेला अधिकारी सरदार हरदेव सिंह और स्वास्थ्य अधिकारी डॉक्टर अनिल त्यागी ने फूल-मालाओं से रमता पंचों का स्वागत किया।

2 comments:

महेन्द्र मिश्र said...

सुन्दर जानकारीपूर्ण आलेख.नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाये और बधाई

Anonymous said...

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