सोमवार ८ मार्च को यानी महिला दिवस के मौके पर देश का उच्च सदन महिला आरक्षण के जरिए तमाम विरोध के बावजूद एक नया इतिहास रचने की दहलीज पर खड़ा है। राजनीतिक विरोध की अपनी गणित और मजबूरियां होती हैं। इसमें जनमत बटोरने और सत्ता लाभ के लिए कभी-कभी सही बातों का सिर्फ इसलिए विरोध किया जाता ताकि उसमें उनका अपना श्रेय भी शामिल रहे और वोटबैंक बचा रहे। बहरहाल राजनीति चाहे जो हो मगर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अगुवाई में कांग्रेस ने इस बार महिला आरक्षण विधेयक की नैया पार लगाने के लिए बाकायदा हिसाब करके पूरी ताकत झोंकने की रणनीति बनाई है। मालूम हो कि दसवीं लोकसभा में महिलाओं की भागीदारी 7 प्रतिशत थी। वहीं, 11वीं में 7.36 प्रतिशत, 12वीं में 8.07, 13वीं में 8.83 प्रतिशत, 14वीं में 8.30 प्रतिशत जबकि 15वीं में 10.12 प्रतिशत रही है लेकिन अब यह आंकड़ा 33 प्रतिशत तक पहुंचने वाला है। महिला आरक्षण के लिए सकारात्मक पहलू यह है कि कांग्रेस को राज्यसभा में दो बड़ी पार्टियों भाजपा और वामदलों का समर्थन हासिल है। वहीं बीजद, असम गण परिषद, नेशनल कॉन्फ्रेंस, तेलुगू देशम, राकांपा, द्रमुक, तृणमूल कांग्रेस और जद-एस का भी समर्थन हासिल है। आंकड़े कुछ इस प्रकार हैं----।
राज्यसभा
कुल मौजूदा सदस्य: 233
दो-तिहाई: 155
सपोर्ट में: 164 (कांग्रेस 71, बीजेपी 45, लेफ्ट 22, अन्य 26)
जेडीयू के 7 सदस्यों में आमराय नहीं
लोकसभा
कुल मौजूदा सांसद: 544
दो-तिहाई: 363
सपोर्ट में: 410 (कांग्रेस व सहयोगी 244, बीजेपी 116, लेफ्ट 20, अन्य 30)
जेडीयू के 20 सदस्य विभाजित रहेंगे ।
राजनीति की बिसात और महिला आरक्षण बिल
13 साल तक ठंडे बस्ते में रहने के बाद अब महिला आरक्षण बिल के संसद में पास होने
की राह और आसान होती नजर आ रही है। कभी इस विधेयक की खिलाफत करने वाले जेडीयू नेता नीतीश कुमार भी अब सपोर्ट में आ गए हैं। नीतीश के इस कदम से विधेयक का विरोध कर रहे समाजवादी मूल के दलों को भारी झटका लगा है। उधर डीएमके, नैशनल कॉन्फ्रेंस, बीजेडी और अकाली दल ने भी इस विधेयक के समर्थन का ऐलान कर दिया है। इन तीनों के राज्यसभा में नौ एमपी हैं। हर तरफ से मिल रहे अच्छे संकेतों से उत्साहित प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण को एक पड़ाव भर बताते हुए हर क्षेत्र में महिला सशक्तीकरण को यूपीए सरकार का लक्ष्य बताया।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के शताब्दी वर्ष के मौके पर एक सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने कहा कि स्थानीय निकायों में महिला आरक्षण ने जमीनी स्तर पर शासन के स्वरूप को क्रांतिकारी तरीके से बदल दिया है। अब हम संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण सुनिश्चित करने की दिशा में ठोस कदम बढ़ा रहे हैं। नीतीश द्वारा इस विधेयक का समर्थन करने के पीछे बिहार विधानसभा में होने वाले चुनाव को माना जा रहा है। लगता है, नीतीश अपनी सवर्ण विरोधी इमेज से छुटकारा चाहते हैं। यह बिल पास होने पर महिला आरक्षण के साथ पहला चुनाव बिहार में ही होगा। नीतीश के लिए यह बड़ी और नई परीक्षा होगी।
नीतीश का यह सपोर्ट उनकी पार्टी जेडीयू के अध्यक्ष शरद यादव के लिए तगड़े झटके जैसा है। शरद यादव का कहना है कि अगर कांग्रेस और बीजेपी में इस विधेयक के बारे में एक राय है तो वे बिना विप के बिल पास करवाकर दिखाएं? करीब एक दशक पहले नीतीश जब इसी मसले पर बनी संयुक्त संसदीय समिति के सदस्य थे तो उन्होंने बिल के मौजूदा स्वरूप पर असहमति जताई थी। लेकिन अब नीतीश का कहना है कि संसद और विधानसभाओं में महिला आरक्षण लागू करने का समय आ गया है। हालांकि उन्होंने पिछड़े और अल्पसंख्यक वर्ग की महिलाओं के लिए अलग से आरक्षण की अपनी मांग भी बरकरार रखी है। विधेयक पर वोटिंग के दौरान जेडीयू सांसदों का बंटना भी तय माना जा रहा है। जेडीयू के राज्यसभा में 7 और लोकसभा में 20 सदस्य हैं। बिल सोमवार को महिला दिवस पर राज्यसभा में पेश किया जाएगा।
संविधान संशोधन विधेयक होने के कारण महिला आरक्षण बिल का राज्यसभा और लोकसभा में दो-तिहाई बहुमत से पास होना जरूरी है। इसके बाद, कम से कम आधी विधानसभाओं (15) से दो-तिहाई बहुमत से पास होने के बाद यह कानून बन सकेगा। इसमें हर 10 साल में सीटों का रोटेशन करने का प्रावधान है। इसके पॉजिटिव और नेगेटिव, दोनों पहलू हैं। पॉजिटिव यह कि कोई भी सदस्य अपने निर्वाचन क्षेत्र को अब बपौती नहीं समझ सकता। चुनावी राजनीति में व्यक्ति से ज्यादा राजनीतिक दल का महत्व बढ़ेगा। नेगेटिव पहलू यह है कि निर्वाचन क्षेत्र स्थायी न रहने से कुछ सांसदों की अपने क्षेत्र में लंबे समय के विकास में रुचि कम हो जाएगी।
महिला आरक्षण : कुछ अहम पड़ाव
12 सितंबर,1996 : तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के नेतृत्व में संयुक्त मोर्चा सरकार ने पहली बार महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण संबंधी विधेयक लोकसभा में पेश किया।
9 दिसंबर, 1996 : भाकपा की गीता मुखर्जी की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने महिला आरक्षण पर अपनी रिपोर्ट पेश की। विपक्षी दलों का समर्थन न मिलने की वजह से ११वीं लोकसभा में यह विधेयक पारित नहीं हो पाया।
दिसंबर 1998: 1998 में एनडीए सरकार के दौरान प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने महिला आरक्षण से संबंधित विधेयक दोबारा पेश किया। नेताओं कीकम दिलचस्पी के कारण १२वीं लोकसभा में भी यह पारित नहीं हो पाया।
23 दिसंबर, 1999 : लोकसभा में विपक्षी सांसदों ने महिला विधेयक तत्कालीन कानून मंत्री राम जेठमलानी के हाथ से छीन लिया।
जून 2008 : राष्ट्रपति ने 15वीं लोकसभा के गठन पर अपने अभिभाषण में महिला आरक्षण पर मौजूदा यूपीए सरकार की प्रतिबद्धता का जिक्र किया।
फरवरी 2010: कैबिनेट ने नए संशोधन के साथ विधेयक को सहमति प्रदान की।
4 मार्च 2010: कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने विधेयक पास करने का आह्वान किया।
8 मार्च 2010 : सरकार अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर इसे राज्यसभा में पुन: पेश करेगी।
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