लोहिया से मुलायम तक समाजवादियों का सफर निरंतर बिखराव का ही रहा है। लोहिया से जयप्रकाश तक तो विचारधारा की लौ टिमटिमाती रही। आगे के सफर में यह मशाल अब नए दौर के समाजवादी नेता मुलायम सिंह के हाथों में है। उनकी समाजवादी पार्टीं तो है, मगर समाजवादी विचारधारा के लोग एकजुट नहीं है। अगर इसे आरोप न समझा जाए तो मुलायम सिंह समाजवादी कम मगर यादवों के नेता ज्यादा समझे जाते हैं। ऐसा होने की की मजबूरियां भी हो सकती हैं। समाजवादी चिंतक इसके कई कारण मानते हैं। पहली बात तो यह हैं कि भारत में किसी नेता की पहचान उसकी जमात से ज्यादा है। उसके लोग कितना तादाद में हैं। आजादी के बाद से भारत में धर्म, क्षेत्र और जाति ने नेता और दलों की पहचान तय करने में प्रमुख भूमिका निभाई है। दरअसल लोगों को लुभाने के समाजवादी आर्थिक सिद्धांत कारगर नहीं रहे। समाजवादी नेता अब लोगों को महज विचारधारा से प्रभावित करने में असफल होने लगे। यह बात काफी हद तक वामपंथियों पर भी लागू होती है। लिहाजा संकीर्ण निजी हितों को हथियार बनाना इन नेताओं की मजबूरी हो गई। शायद इसी वजह से मुलायम समाजवादी से ज्यादा पिछड़े तबके ( मूलत: यादवों) के नेता बनकर उभरे। यह उनकी अलग सामाजिक पहचान बनी है जहां समाजवाद दम तोड़ता नजर आता है। भारतीय राजनाति में टिके रहने का यह अलग कारगर राजनीतिक हथियार है जिसे अन्य नेता मसलन मायावती, लालू यादव, रामविलास पासवान वगैरह आजमा रहे हैं। इस नई विधा ने समाजवादियों की लोहिया की उस आर्थिक नीति को ठंडे बस्ते में डाल दिया है, जिसने कभी किसानों, मजदूरों व समाज के अन्य दबे-कुचले व पिछड़े तबके को सर्वाधिक आकर्षित किया था। दरअसल तब समाजवाद उस सामूहिकता का प्रतीक था जो अन्याय के खिलाफ लड़ता था।
धर्म और जाति की अवधारणा पर खड़े दल संकीर्ण विचारधारा को जन्म देते हैं। ये उस समाजवाद के विरोध में खड़े होते हैं, जो आपसी सामाजिक सहयोग की अपेक्षा रखते हैं। नतीजा यह कि समाजवादियों को भी जनप्रिय बनने के हथकंडे अपनाने पड़े। जनप्रिय होने का यह रास्ता समाजवादियों को उस संप्रदायवाद के नजदीक ले जाता जो समाजवाद के लिए वर्ज्य है। सामाजिक न्याय की लड़ाई एक पंथ या समुदाय के हित के रास्ते पर चलकर लड़ी नही जा सकती। मतलब समाजवाद और लोकप्रियता दोनों को साथ लेकर चलने से गरीबों में भ्रम व विभाजन की स्थिति पैदा होती है। यही वह दो बुराईयां हैं जो एक दूसरे का विरोध करतीं हैं। अब गरीबी निवारण की नई अवधारणा जन्म लेती है। इसके तहत अमीर पगार बढ़ाकर सामाजिक अन्याय या गरीबी को कम कर सकते हैं। समाजवादियों के यह मान लेने से कि आय बढ़ने और धन वितरण से गरीबी कम की जा सकती है, समाजवादी उस सिद्धांत को नकार देते हैं जिसमें कहा गया है कि गरीबी आदमी की ही गलतियों का नतीजा है। और गरीबी तब बढ़ती है जब धीमी आर्थिक वृद्धि व पूंजी की अपर्याप्त उपलब्धता हो। लोहिया से चलकर मुलायम तक पहुंचे समाजवाद का यह वह नया चेहरा है जिसे अभी भी उस जमीन की तलाश है जिसमें समाजवाद भी जिंदा रह सकें। मगर वजूद की इस लड़ाई में समाजवादी अभी भी बिखराव ही झेल रहे हैं।
स्वतंत्रता के बाद जिसे समाजवादी आंदोलन के नाम से जाना गया, उसका सबसे ज्यादा श्रेय राममनोहर लोहिया को जाता है। लोहिया कभी भी मार्क्सवादी नहीं रहे। मार्क्स से वे प्रभावित जरूर थे। जो समाजवादी मूलतः मार्क्सवादी थे, उन्होंने स्वतंत्रता के बाद मार्क्सवाद का परित्याग कर दिया। कोई धर्म की तरफ चला गया, किसी ने विनोबा की शरण ली और जो बचे रह गए, वे क्रमशः लुंज-पुंज होते गए और अंततः किसी काम के नहीं रहे। लोहिया ने समाजवाद के चिराग को रोशन रखा और उसमें नए-नए आयाम जोड़ने का काम किया। लोहिया के निधन के बाद जयप्रकाश ने भी इस आंदोलन को आगे बढ़ाया। गैरकांग्रेसवाद को उस अंजाम तक पहुंचाया जहां लोहिया भी समाजवादियों को नहीं ले जा पाए थे। जयप्रकाश की संपूर्ण क्रांति का ही नतीजा था कि आपातकाल में सभी गैरकांग्रेसी एकजुट हुए और १९७७ में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में केंद्र में जनता पार्टी की गैर कांग्रेसी सरकार बनी। यहीं से समाजवादियों के उस पतन का इतिहास भी शुरू होता है जो आज तक जारी है। जनता पार्टीं टूटी तो समाजवादी भी बिखर गए। बाद के समय में मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी का गठन को कर लिया मगर समाजवादी विचारधारा को छिन्न-भिन्न होने से नहीं बचा पाए। फिलहाल मौजूदा दौर के समाजवादी नेता मुलायम सिंह ही हैं।
कोलकाता में समाजवादी
कोलकाता में २१ मई से समाजवादियों का एक जमावड़ा होने जा रहा है। पहले राजबब्बर फिर अमरसिंह प्रकरण के बाद बिखराव झेल चुके मुलायम अब कोलकाता में समाजवादी पार्टी का आधार तलाशने आ रहे हैं। अमरसिंह प्रकरण का कोलकाता पर भी असर पड़ा । कोलकाता में विजय उपाध्याय सपा छोड़कर तृणमूल चले गए हैं। मुलायम सिंह ने अब पश्चिम बंगाल सोशलिस्ट पार्टीं के अध्यक्ष किरणमय नंद को समाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बना दिया है। किरणमय नंद पश्चिम बंगाल की वाममोर्चा सरकार में मत्स्य पाल मंत्री हैं। विजय उपाध्याय के समय से पश्चिम बंगाल के समाजवादियों में जो असंतोष है, उसे क्या कोलकाता में हो रहा सम्मेलन खत्म कर पाएगा। श्यामधर पांडेय जैसे तमाम ऐसे समाजवादी हैं जो लंबे अरसे से पार्टीं से जुड़े हैं मगर हमेशा उनको नजरअंदाज किया गया है। कहा यह जा रहा है कि अगर किरणमय नंद सूझबूझ से काम नहीं लेगें तो कोलकाता में भी समाजवादी और बिखर जाएंगे। आखिर कब और कौन रोकेगा समाजवादियों का बिखराव ? यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि मुलायम सिंह यादव किस बात को तरजीह देते हैं। अगर उनके लिए सिर्फ कुछ व्यक्ति ही महत्वपूर्ण होंगे तो उनकी मनमानी से कोलकाता में समाजवादी पार्टीं की जमीन भी खिसकनी भी तय है। जैसा कि पहले भी हुआ है। सभी को साथ न लेकर का नतीजा यह थी कि तमाम पुराने समाजवादी भी कोलकाता में निष्क्रिय व उदासीन थे। अब उनमें भी आस जगी है। समाजवाद की मशाल तभी जलती रहेगी जब कारवां भी साथ होगा। बिखरना तो इतिहास रहा है समाजवादियों का।
रुका नहीं समाजवादियों का बिखराव
दरअसल पहला आम चुनाव लड़ने वाली देश की जितनी भी प्रमुख राजनीतिक पार्टियां थीं, उन सभी का आजादी के बाद विभाजन हुआ और समाजवादियों में बिखराव सबसे ज्यादा हुआ। 1967 के बाद सत्ता से स्वभाव बदला। नीति, नैतिकता, मान्य मूल्य प्रभावित हुए। 1977 के बाद समाजवादियों में और बिखराव हुआ और इसके नेताओं ने सुविधा एवं सहूलियत के अनुसार नीति स्वीकार करने का काम किया। आजादी की लड़ाई के दौरान कांग्रेस के भीतर रह कर काम करने वाली सोशलिस्ट पार्टी पहली बार 1955 में टूटी जब राम मनोहर लोहिया ने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी बनाई। दोनों पार्टियों ने 1957 और 1962 का चुनाव अलग अलग लड़ा। फिर 1965 में मिल गईं और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी बनी जो उसी साल फिर टूट गई। 67 का चुनाव इन्होंने अलग अलग लड़ा। सोशलिस्ट फिर 1971 में एकजुट हुए लेकिन कुछ राज्यों में इनके छोटे छोटे गुट रह गए। इन सभी ने 1977 में जनता सरकार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन्हीं समाजवादियों की जड़ से मौजूदा समाजवादी पार्टी, जनता दल सेक्युलर, जद यू निकली हैं। कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी में व्यक्तिगत खुन्नस, आकांक्षा और एक दूसरे के प्रति पूर्वाग्रह टूटन का कारण बना। उन्होंने कहा कि सोशलिस्ट पार्टियों के नेता समय के अनुसार बदले नहीं और वे दूसरी पार्टियों में जाते रहे।
भारतीय राजनीति और समाजवादी
पहले सोशलिस्ट मूवमेंट और फिर जेपी आंदोलन ने इस देश में इतिहास रचा। इन्हीं मूवमेंट और आंदोलनों की उपज हैं लालू प्रसाद और मुलायम सिंह यादव। शरद यादव सोशलिस्ट पार्टी में तो नहीं थे, लेकिन उन दिनों एक छात्र नेता के रूप में मध्यप्रदेश में समाजवाद की अलख जगाए हुए थे। लालू और मुलायम सोशलिस्ट मूवमेंट में रहे, लेकिन बाद में लालू प्रसाद जेपी आंदोलन में शरीक हो गए। राजनारायण के बारे में कहा जाता है संसद में मार्शल और राजनारायण एक-दूसरे के पूरक बन गए थे। वे इतनी हठधर्मिता और हंगामा खड़ा करते थे कि उन्हें मार्शल से टंगवाकर बाहर करा दिया जाता था। वह दौर इंदिरा गांधी का था। कांग्रेस सरकार के खिलाफ वर्ष 1973-74 में जेपी आंदोलन ने देश के युवाओं में नया जोश फूंका। 1974 में शरद यादव मध्य प्रदेश के एक संसदीय क्षेत्र से सांसद चुने गए। राजनारायण ने इमरजेंसी (1975) के बाद के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी को रायबरेली में शिकस्त दी।
भारतीय राजनीति में समाजवादी विचारधारा का एक अहम रोल रहा है.1948 में कांग्रेस से अलग हुए समाजवादियों ने जिनमें आचार्य नरेन्द्र देव, लोकनायक जयप्रकाश नारायण और डॉ राम मनोहर लोहिया शामिल थे सोशलिस्ट पार्टी के नाम से एक दल का गठन किया था, बाद में आचार्य जे बी कृपलानी की किसान मज़दूर प्रजा पार्टी का इस दल में विलल हो जाने के बाद इस दल को प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का नाम दिया गया लेकिन इस दल के गठन के कुछ वर्षों बाद ही सोशलिस्ट पार्टी में विभाजन की प्रकिया शुरु हो गई. जय प्रकाश नारायण क्षुब्ध होकर भूदान आंदोलन में शामिल हो गए. डॉ लोहिया ने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के नाम से अलग दल बना लिया और नरेंद्र देव के नेतृत्व में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का अलग अस्तित्व बना रहा.
ग़ैर कांग्रेसवाद की रणनीति
1952, 57 और 1962 में हुए आम चुनावों में समाजवादी दल संख्या के लिहाज़ से तो ज़्यादा सीटें नहीं जीत सके लेकिन संसद में उन्होंने प्रभावी विपक्ष की भूमिका निभाई. 1963 में हुए संसदीय उप चुनावों में आचार्य कृपलानी और डॉ लोहिया के चुनाव जीतने से संसद में विपक्ष की भूमिका और मज़बूत हुई और पहली बार लोक सभा में नेहरु सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास का प्रस्ताव पेश किया गया. इसी साल कलकत्ता में हुए संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के वार्षिक सम्मेलन में डॉ लोहिया ने ग़ैर कॉग्रेसवाद की रणनीति पेश की और सभी विपक्षी दलों से कांग्रेस के ख़िलाफ़ एक साझा गठबंधन बनाने की अपील की.
डॉ. लोहिया की ग़ैर कांग्रेसवाद की रणनीति का पहला प्रयोग 1967 के आम चुनावों में हुआ। इन चुनावों में ग़ैर कांग्रेसी दल यानि समाजवादी, वामपंथी, जनसंघी, स्वतंत्र और रिपब्लिकन पार्टियां कोई एक संयुक्त मोर्चा बनाकर तो चुनाव नहीं लड़ीं, लेकिन 9 राज्यों में इन दलों को भारी सफलता मिली और कांग्रेस से अलग हुए विधायकों को मिलाकर 9 राज्यों में संयुक्त विधायक दल यानि एस.वी.डी. का गठन हुआ और ग़ैर कांग्रेसी सरकारें बनीं। उत्तर प्रदेश में चैधरी चरण सिंह ऐसी ही पहली सरकार के मुख्यमंत्री बनाये गये।
1967 के आम चुनावों में ही डॉ लोहिया के साथ मधुलिमए और जॉर्ज फ़र्नानडीज़ जैसे तेज़ तर्रार समाजवादी लोक सभा में पहुँचे और कांग्रेस के ख़िलाफ़ विपक्षी मुहिम को और तेज़ किया. मगर उत्तर प्रदेश तथा बिहार जैसे उत्तरी राज्यों में समाजवादी अपना जनाधार बनाने में सफ़ल रहे.
वर्ष 1971 में इंदिरा गाँधी के आने के बाद समाजवादियों का एक तरह से सफ़ाया ही हो गया। इसी दौर में प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी का दबदबा बढ़ा और 1969 में कांग्रेस का विभाजन होने और उसके बाद 1971 में हुए लोक सभा चुनावों में उन्हें जो भारी बहुमत मिला उसमें समाजवादी लगभग साफ़ हो गए. इंदिरागांधी ने ही १९७६ में संविधान में ४२वां संशोधन करके समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्द जोड़ा। इतना ही नहीं उनहोंने जनप्रतिनिधित्व कानून में भी संशोधन करके सभी दलों की समाजवादी जिम्मेदारी भी तय की। संविधान में ये परिवर्कन और इंदिरागांधी के गरीबी हटाओ नारे ने समाजवादियों को ध्वस्त कर दिया।
समाजवादी खेमे को उम्मीद की किरण तब दिखी जब. समाजवादी नेता राजनारायण ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक चुनाव याचिका दायर करके आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री ने इस चुनाव में अपने पद का दुरुपयोग किया और चुनाव जीतने के लिए सरकारी तंत्रमंत्र का इस्तेमाल किया.इसी समय गुजरात और बिहार में छात्रों का आंदोलन शुरु हुआ जिसमें दो दशक पहले राजनीति छोड़ चुके समाजवादी नेता जय प्रकाश नारायण शामिल हुए. उनकी अगुवाई में सभी विपक्षी दलों ने 6 मार्च 1975 को दिल्ली में एक ऐतिहासिक रैली का आयोजन किया जिससे इंदिरा गाँधी की सरकार हिल गई.घबराकर इंदिरा गांधी ने २५ जून १९७५ को देश में आपातकाल घोषित कर दिया।
आपातकाल और समाजवादी
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जगमोहन लाल सिन्हा ने 12 जून 1975 को राजनारायण की याचिका पर फ़ैसला सुनाते हुए इंदिरा गाँधी को चुनावी धांधलियां करने का दोषी ठहराया और उनका चुनाव रद्द कर दिया. इलाहाबाद हाईकोर्ट का यही फ़ैसला इंदिरा गांधी के पतन का कारण बना और उन्होंने 25 जून को देश में आपातकाल लागू कर दिया. इसी के तहत देश के लगभग सभी प्रमुख विपक्षी नेताओं और कार्यक्रर्त्ताओं को गिरफ़्तार कर जेल में डाल दिया गया जिनमें समाजवादी भी बड़ी तादाद में शामिल थे.
19 माह के आपातकाल के दौरान ही जेल में जनता पार्टी का गठन हुआ और इसमें भी समाजवादियों की भूमिका अहम रही. आपातकाल ख़त्म होने के बाद 1977 में जब लोक सभा के आम चुनाव हुए तो जनता पार्टी को भारी बहुमत मिला। बड़ी तादाद में समाजवादी संसद में चुनकर आए और पहली बार मंत्री बने. इनमें राजनारायण, जॉर्ज फ़र्नांडीज़, रविराय, ब्रजलाल वर्मा, पुरुषोत्तम कौशिक, जनेश्वर मिश्र आदि शामिल थे. इसी वर्ष हुए विधान सभा चुनावों में समाजवादी आंदोलन से जुड़े कर्पूरी ठाकुर बिहार में, रामनरेश यादव उत्तर प्रदेश में और गोलप बोरबोरा असम में मुख्यमंत्री बने.
1979 में जनता पार्टी में हुए विभाजन के बाद समाजवादी एक बार फिर छिन्न भिन्न हो गए और एक दशक तक सत्ता की राजनीति से दूर हो गए. जब विश्वनाथ प्रताप सिंह ने जनमोर्चा बनाकर राजीव गांधी के ख़िलाफ़ आंदोलन शुरु किया तो समाजवादियों ने उसमें बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया और जनता दल बना कर एक बार फ़िर केंद्र में और कई राज्यों में सत्ता हासिल की.
सामाजिक न्याय की शुरुआत
वी पी सिंह सरकार में रहते हुए ही जार्ज फ़र्नांडीज़, शरद यादव, नीतिश कुमार और रामविलास पासवान ने मंडल आयोग की सिफ़ारिशों को लागू करवाने का फ़ैसला करवाया जिससे भारतीय राजनीति में सामाजिक न्याय की राजनीति की शुरुआत हुई. इसी दौर में मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव उत्तर प्रदेश और बिहार में मुख्यमंत्री बने. लेकिन एक साल में ही वी पी सिंह सरकार का पतन हो जाने के बाद समाजवादियों में जो विभाजन हुआ उससे यह आंदोलन लगातार कमज़ोर ही होता गया। पिछले आम चुनावों से समाजवादी विचारधारा सामूहिक रुप से अपनी कोई छाप या पहचान नहीं बना पा रही है।
समाजवाद की चर्चा के संदर्भ में लोहिया और जयप्रकाश जैसे महानायकों को याद करना उपयुक्त होगा। इससे संबंधित लेखों को पढ़ने के लिए इन शीर्षकों पर क्लिक करें...............।
भारतीय समाजवाद
सत्ता के लिए समाजवाद याद रहा, लोहिया को भूल गए
युवाओं के प्रेरणा श्रोत थे जेपी
राममनोहर लोहिया
"एक असमाप्त जीवनी" का प्रथम अध्याय
समाजवादी आंदोलन : पुनर्जन्म की प्रतीक्षा में
आचार्य नरेन्द्रदेव : समाजवाद के माली
समाजवाद के प्रकार
समाजवादी विचारधारा आज कहाँ है ?
कुछ पार्टियां ऐसी जिन्हें ढूंढते रह जाओगे
Wednesday, 19 May 2010
Tuesday, 4 May 2010
जनगणना व्यथा-- इनकी कौन सुनेगा ?
जनगणना का कार्य बहुत महत्वपूर्ण है। यह जनगणना देश की सुरक्षा, आर्थिक प्रगति और देश के विकास के संबंध में भी महत्वपूर्ण है। पहले चरण में मकानों का सूचीकरण 16 मई से 30 जून तक किया जाएगा। जिसमें मकानों का नजरी नक्शा तैयार करना, मकानों पर नंबर डालना, मकानों का राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर तैयार होगा। इसलिए इसमें सतर्कता बरतना बेहद जरूरी होगा। कोई मकान छूटने नहीं पाये। जो प्रोफार्मा दिया गया है। उसको बारीकी से पढ़ना होगा। उन्होंने कहा कि शहरी एवं ग्रामीण सभी क्षेत्रों के मकानों की गणना होगी। यदि किसी मकान में कई परिवार रहते हैं तो यह ध्यान रखना होगा कि जितने चूल्हे जल रहे हों, उतने परिवार मानें जायेंगे। इस तरह के निर्देश जगह-जगह अधिकारी जनगणना प्रतिनिधि दो रहे हैं मगर फिर भी लोग छूट रहे हैं। गड़बड़ियां हो रही हैं।
हालत यह है कि कई लोगों को एक दूसरे से पूछते हुए देखा जा सकता है कि- क्या आपके यहीं जनगणना वाले आए थे ? पश्चिम बंगाल में अभी जनगणना का पहला दौर चल रहा है। यह दौर १५ मई तक समाफ्त हो जाएगा। ऐसे में कई जागरूक नागरिकों की घबराहट जायज है कि उनका आंकड़ा नहीं लिया गया। मेरे एक मित्र जो सोदपुर ( उत्तर २४ परगना-कोलकाता ) में रहते है, ने मुझे बताया कि जनगणना वाले उनके घर आए मगर मकान मालिक से बात करके चले गए। हो सकता है मकानमालिक ने इनका भी विवरण दे दिया हो। मेरे मित्र को आशंका है कि उनकी आंकड़ा दर्ज नहीं हुआ है। उन्होंने नगरपालिका जाकर जनगणना वालों को फिर उनके घर आने को आग्रह किया साथ ही आकड़ा न लेने की शिकायत की मेल की कापी अपने पूरे पारिवारिक विवरण के साथ मुख्यमंत्री समेत तमाम संबद्ध विभागों को भेजी है। मेरे मित्र को आशंका है कि राजनीतिक कारणों से उनके जैसे तमाम लोगों को जनगणना से वंचित रखा जासकता है। वैसे पश्चिम बंगाल में मतदाता परिचय पत्र या राशन कार्ड बनाने जैसे मामले में ऐसी धांधली का आरोप अक्सर लगता रहा है। यहां पार्टियों की स्थानीय कमिटियों के इशारे पर सबकुछ होता है। ऐसे में मेरे मित्र की घबराहट जायज भी हो सकती है। या फिर जो छूट गया, वह छूट ही जाएगा की भी नौबत आ सकती है।
जो भी हो मगर यह एक उदाहरण है जो स्पष्ट करता है कि जनगणना का काम न तो निरपेक्ष तरीके से और नहीं उतनी गंभीरता से हो रहा है जिसकी अपेक्षा की जा कही है। करीब ३५ सवालों के जवाब हर परिवार से पूछने हैं। जाहिर है इतना वक्त तो नहीं ही मिलेगा कि जनगणना कर्मचारी आपका आंकड़ा लेने कई बार आपके घर आए। तो ऐसे लोगों के पास यह भी विकल्प नहीं है कि खुद वे अपना फार्म जमा कर सकें। भारत सरकार की इंटरनेट पर जनगणना साइट--www.censusindia.gov.in में स्पष्ट लिखा है कि फार्म सिर्फ जनगणना कर्मचारी ही भरकर ले जाएगा। आप चाहें तो साइट से फार्म डाउनलोड करके उसमें आंकड़े भरकर रख सकते हैं, जिससे जनगणना प्रतिनिधि को सूचना देने में आसानी होगी। यह फार्म साइट के बायीं तरफ दर्ज shedules लिंक में उपलब्ध है। यानी पहले चरण में जो छूट गया पता नहीं उसे कब दर्ज किया जाएगा। इस सवाल का जवाब भी इस साइट में नहीं है। हालांकि लोगों की सुविधा के लिए इसमें सवाल और जबाव के जरिए कई बातों को समझाने की कोशिश की गई है।
मैंने इसके पहले एक लेख इसी ब्लाग पर लिखा था कि- कई गड़बड़ियां भी होंगी जनगणना २०११ में । अब वह दिखने भी लगी है। लोगों तो जागरूक और तैयार रहने के लिए व्यापक प्रचार बहुत पहले से किया जाना चाहिए था मगर इसमें कोताही बरती गई। कुछ अखबारों या टीवी चैनलों पर जो सूचना दी गई वह जनगणना की गंभीरता को देखते हुए नाकाफी है। पार्टी या स्थानीय समितियों के स्तर पर तो सिर्फ अपने लोगों तक सूचनाए पहुंचाई जाती हैं। लोगों का कहना है कि जब पहले चरण में ही उन्हें शामिल नहीं किया जाएगा तो राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर में कैसे वे दर्ज हो पाएंगे। लोगों के इन सवालों का जवाब तो सरकार ही दे सकती है कि उसे कैसी जनगणना करवानी है।
जनगणना की कुछ प्रमुख जानकारियां
मैंने लोगों को जानकारियां देने के निमित्त जनगणना से संबंधित कुछ तथ्य इकट्ठा किए हैं। इनमें कुछ अंग्रेजी व कुछ हिंदी में हैं। कृपया अवलोकन करें-------
इतिहास व कुछ अन्य तथ्य
जनगणना या जनसंख्या मालूम करने का सबसे पुराना विवरण ईसापूर्व ८०० से ६०० के मध्य ऋगवेद में मिलता है। इसके बाद ईसापूर्व तीसरी शताब्दी में लिखी गई कौटिल्य की पुस्तक अर्थशास्त्र में टैक्स वसूलने के लिए जनसंख्या ते आंकड़े जुटाने का विवरण मिलता है। इसमें जलसंख्या,आर्थिक व कृषि संबंधित जनगणना कराने की विधि का पूरा विवरण मिलता है। मुगल शासक अकबर के बारे में प्रसिद्ध ग्रंथ आइने अकबरी में एक प्रशासनिक रिपोर्ट है जो जनसंख्या ,उद्योग, संपत्ति जैसे की मामलें के आंकड़ जुटाने का विवरण है।
आधुनिक जनगणना का भारत में अंग्रेजों के समय 1872 में लार्ड मेयो के द्वारा कराई गई थी। इतिहासकारों के अनुसार प्रथम नियमित जनगणना लार्ड रिपन द्वारा 1881 में शुरू की गई थी। इसके बाद से प्रत्येक 10 वर्ष पश्चात जनगणना कराने की प्रथा जारी है। वहीं देश के स्वतंत्रता के पश्चात जनगणना अधिनियम 1948 पारित किया गया। भारत में हर दस साल पर एक बार होने वाली जनगणना की प्रक्रिया गुरुवार से शुरु हो रही है. औपचारिक तौर पर इसकी शुरुआत राष्ट्रपति से होगी. भारत की आज़ादी के बाद ये जनगणना सातवीं बार हो रही है.
इस जनगणना में भारत के 35 राज्य और केंद्र शाषित प्रदेश, 640 ज़िले,1 अरब 20 करोड़ की आबादी और क़रीब 24 करोड़ घर शामिल होंगे. जनगणना की प्रक्रिया दो चरणों में पूरी होनी है.पहला चरण इस वर्ष यानि 2010 में अप्रैल से सितंबर के बीच संपन्न होगा जबकि दूसरा चरण अगले साल यानि 2011 में 9 फ़रवरी से 28 फ़रवरी के बीच पूरा होगा.
इस बार पहली बार देश के सभी नागरिकों का व्यापक डेटाबेस भी तैयार किया जाएगा. साथ ही इस बार राष्ट्रीय जनगणना रजिस्टर (एनपीआर) भी तैयार किया जाएगा.
महत्वपूर्ण जानकारियां
वर्ष 2011 की जनगणना के तहत छ माह का निवासी सामान्य निवासी कहलाएगा। व छ माह से एक दिन ज्यादा व आगामी कुछ महीनों तक रहने की स्थिति में व न्यूनतम 15 वर्ष की आयु पूरी कर लिया हो तब ही उसकी फोटोग्राफी होगी। इसमें नवजात बच्चे की भी काउंटिंग की जानी है। जनगणना अधिकारी परिवार की जानकारी संग्रहित करने के बाद संबधित परिवार को एक पावती भी देंगे। परिवार संबंधित समस्त जानकारी ओएमआर सीट पर ली जाएगी। जिससे हर नागरिक की जानकारी कंप्यूटरीकृत हो जाएगा। इस बार की जनगणना सीट में 1-35 कालम दिए गए है। जिसमें स्वच्छता संबंधी शौचालय समेत पेयजल, विद्युत व्यवस्था व अन्य प्राथमिक आवश्यकताओं की भी गणना में समाहित की गई है। और तो और कौन कितना हाईटेक है और बैकिंग व वाहन का उपभोग करता है इसकी भी जानकारी एकत्र की जा रही है। पिछले 2001 की जनगणना में 23 प्रश्रों की सूची 18 भाषाओं में जारी की गई थी। जो इस बार 35 प्रश्रों के साथ संविधान निहित समस्त 22 भाषाओ में प्रपत्र जारी किए गए हैं।
जनगणना कार्यक्रम के तहत् पहली बार ओएमआर सीट पर परिवार की जानकारी प्राप्त की जा रही है। और कंप्यूटरीकृत प्रणाली में प्रत्येक परिवार की जानकारी एकल फार्म नंबर के तहत संग्रहित होगा। और उसी आधार पर फोटो पहचान पत्र जारी किया जाएगा। जिससे कि एक नागरिक की दोहरी गणना न हो सके। प्रत्येक व्यक्ति का मूल जन्म स्थान व जन्म तिथि उसकी प्रथम आईडी होगी। और फोटो व पढ़े-लिखे होने के बाद भी अंगूठे के निशान से दोहरे करण से बचा जा सकेगा। इससे बढ़ते अपराध व अन्य प्रकार की समस्याओं पर विराम लगेगी।
कई नई जानकारी
इसी रजिस्टर में इकट्ठा की गयी जानकारी से आनेवाले समय में 15 वर्ष की उम्र से ऊपर के हर भारतीय नागरिक को एक यूनीक आईडेंटिटी नंबर यानि यूआईडी जारी किया जाएगा. इस रजिस्टर में हर नागरिक की फोटो और उसकी दसों उँगलियों की छाप (बायोमेट्रिक) भी दर्ज होगी. इस पूरी प्रक्रिया में लगभग 6 हज़ार करोड़ रुपए खर्च होंगे.
ये पहला मौका होगा जबकि जनगणना कर रहे अफसर देशवासियों से आधुनिक युग के संसाधनों के बारे में भी उनसे जानकारी इकट्ठा करेंगे--मसलन उनके पास कौन सी और कितनी गाड़ियां हैं, वो कौन सा मोबाइल फ़ोन इस्तेमाल करते हैं,कितने कंप्यूटर और इन्टरनेट कनेक्शन हैं, वगैरह वगैरह.
इस जनगणना में जाति पर आधारित कोई भी जानकारी नहीं मांगी जाएगी लेकिन धर्म, भाषा,शिक्षा और पेशे संबंधी जानकारी ज़रूर इकट्ठा की जाएगी. जनगणना के वक्त इकट्ठा की गई जानकारी को किसी भी अदालत में पेश नहीं किया जा सकता. ये प्रावधान इसलिए रखा गया है कि देश का हर नागरिक निडर निर्भीक होकर अपने विषय में हर तरह की जानकारी दे सके. गृह मंत्री चिदम्बरम ने इसे मानवता के इतिहास का सबसे बडा जनगणना अभियान बताते हुए कहा कि जनगणना में पहली बार विभिन्न सुविधाओं की उपलब्धता के बारे में आंकडे एकत्र किए जाएंगे जिनसे 12वीं पंचवर्षीय योजना को बेहतर ढंग से तैयार करने में मदद मिलेगी। इस दौरान नल के पानी, बैंकिग सुविधाओं, मोबाइल फोन, कम्प्यूटर और इंटरनेट के इस्तेमाल के बारे में भी सूचनाएं इकट्ठा की जाएंगी। प्रत्येक घर के लिए दो फॉर्म भरे जाएंगे। पहला फार्म घर सूचीकरण और आवासीय गणना से संबंधित होगा।
इसमें 35 प्रश्न होंगे, जो इमारती सामग्री, घरों के उपयोग, पेयजल, शौचालय के प्रकार और उनकी उपलब्धता, बिजली, संपत्ति का अधिकार आदि से संबंधित होंगे। दूसरा फार्म राष्ट्रीय आबादी रजिस्टर से संबंधित होगा। सरकारी जानकारी के अनुसार जनगणना फार्म को 16 और निर्देश पुस्तिकाओं को 18 भाषाओं में छापा गया है।
हमारी जनगणना हमारा भविष्य
यह जनगणना, पिछले दशक में देश की प्रगति की समीक्षा करने का, जारी सरकारी योजनाओं की निगरानी करने का और भविष्य की योजना तैयार करने का आधार होगी। इसीलिए जनगणना 2011 के लिए हमारी जनगणना, हमारा भविष्य जैसा नारा दिया गया है।
पडताल के बाद पहचान कार्ड
जनगणना प्रक्रिया के तहत घर-घर जाकर जनगणना फॉर्म भरवाएं जाएंगे और जुटाए गए आंकडों को स्थानीय तथा अंग्रेजी भाषा में कंप्यूटर में उतारा जाएगा। इसके बाद 15 वर्ष और उससे अधिक उम्र वाले व्यक्तियों के फोटो, 10 अंगुलियों के निशान और आंखों की पुतलियों के बारे में जानकारी शामिल की जाएगी। इसके बाद अंगुलियों के निशान भारतीय विशिष्ट पहचान पत्र प्राधिकरण को सौंप दिए जाएंगे, जहां से जांच के बाद 16 संख्या वाला विशिष्ट नंबर उपलब्ध होगा।
आंकडों में अभियान
25 लाख जनगणना अधिकारी
7000 से ज्यादा शहरों
06 छह लाख गांवों
64 करोड जनगणना फार्म
50 लाख निर्देश पुस्तिकाएं
12 हजार टन कागज
जातिगत सूचनाएं नहीं
इस बीच सरकार ने इन अटकलों को खारिज किया है कि जनगणना के दौरान जाति पर आधारित सूचनाएं एकत्र की जाएंगी। उसने स्पष्ट किया है कि जनगणना के दौरान आमदनी की क्षमता के बारे में सवाल भी नहीं पूछे जाएंगे। जनगणना दो चरणों में होगी। पहले चरण में अप्रैल और जुलाई के बीच मकानों की गिनती की जाएगी जिसके लिए राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को 45 दिन का समय दिया जाएगा। जबकि दूसरे चरण में अगले साल 9 से 28 फरवरी तक देश भर में एक साथ आबादी की गिनती का काम किया जाएगा।
ये सवाल आपसे पूछे जाएंगे
House listing Operations
Use of the census houses
Condition of census houses used as residence
Predominant material of the roof, wall and floor or the census houses
Type of structure of census houses
Number of dwelling rooms
Ownership status of the house
Number of married couples and whether they have independent sleeping rooms
Source of drinking water (e.g., Tap; Hand pump; Tube well; Well; Tank; Pond River;
canal; Spring; Other) and its location
Source of lighting ( e.g., Electricity; kerosene; Solar energy; Other oil, Any other; No lighting)
Availability of bathroom, type of latrine and type of drainage for waste water
Availability of separate kitchen and type of fuel used for cooing (e.g., Firewood; Crop residue;
Cow dung cake; Coal, Lignite, Charcoal; kerosene; LPG; Electricity; Biogas; Other)
Availing of banking services and availability of the specified assets (e.g., Radio, Transistor;
Television; Bicycle; Motor Cycle, Moped; Car, Jeep, Van; None of these
Population Enumeration
For each member of the household :
Relation to head of the household
Sex
Age at last birth day
Current marital status
Age at marriage
Religion
Name of Scheduled Caste / Scheduled Tribe
Mother tongue
Other languages Known
Highest educational level attained
If attending educational institution
Disability status
Worker / non –worker
Main Worker / Marginal Worker
Economic activity of the main or marginal worker
Non –economic activity of Marginal worker and non –worker
Marginal worker or non-worker – seeking / available for work
Distance and mode of travel to place of work
Place of Birth
Place of last residence
Duration of residence at place of enumeration
Reason for migration
For ever married women
1. Number of children ever born
2. Number of children surviving
or currently married women
1. Births during previous year
For the cultivation households
1. Area of land cultivated
2. Tenancy status
आपकी शंकाओं का समाधान
A. What is Census? How is it useful?
The Indian Census is the most credible source of information on Demography (Population characteristics), Economic Activity, Literacy & Education, Housing & Household Amenities, Urbanization, Fertility and Mortality, Scheduled Castes and Scheduled Tribes, Language, Religion, Migration, Disability and many other socio-cultural and demographic data since 1872. Census 2011 will be the 15th National Census of the country. This is the only source of primary data at village, town and ward level. It provides valuable information for planning and formulation of polices for Central & State Governments and is widely used by National & International agencies, scholars, business people, industrialists, and many more. The delimitation/reservation of Constituencies - Parliamentary/Assembly/Panchayats and other Local Bodies is also done on the basis of the demographic data thrown up by the Census. Census is the basis for reviewing the country's progress in the past decade, monitoring the on-going schemes of the Government and most importantly, plan for the future. That is why the slogan of Census 2011 is "Our Census, Our Future".
B. What is the National Population Register? What is its use?
The NPR would be a Register of usual residents of the country. The NPR will be a comprehensive identity database that would help in better targeting of the benefits and services under the Government schemes/programmes, improve planning and help strengthen security of the country. This is being done for the first time in the country.
C. How will both these exercises be conducted?
The Census is a statutory exercise conducted under the provisions of the Census Act 1948 and Rules made there under. The NPR is being created under the provisions of the Citizenship Act and Rules.
Census Process:
The Census process involves visiting each and every household and gathering particulars by asking questions and filling up Census Forms. The information collected about individuals is kept absolutely confidential. In fact this information is not accessible even to Courts of law. After the field work is over the forms are transported to data processing centres located at 15 cities across the country. The data processing will be done using sophisticated software called Intelligent Character Recognition Software (ICR). This technology was pioneered by India in Census 2001 has become the benchmark for Censuses all around the globe. This involves the scanning of the Census Forms at high speed and extracting the data automatically using computer software. This revolutionary technology has enabled the processing of the voluminous data in a very short time and saving a huge amount of manual labour and cost
NPR Process:
Details such as Name, Date of Birth, Sex, Present Address, Permanent Address, Names of Father, Mother and Spouse etc will be gathered by visiting each and every household. All usual residents will be eligible to be included irrespective of their Nationality. Each and every household will be given an Acknowledgement Slip at the time of enumeration. The data will then be entered into computers in the local language of the State as well as in English. Once this database has been created, biometrics such as photograph, 10 fingerprints and probably Iris information will be added for all persons aged 15 years and above. This will be done by arranging camps at every village and at the ward level in every town. Each household will be required to bring the Acknowledgement Slip to such camps. Those who miss these camps will be given the opportunity to present themselves at permanent NPR Centres to be set up at the Tehsil/Town level. In the next step, data will be printed out and displayed at prominent places within the village and ward for the public to see. Objections will be sought and registered at this stage. Each of these objections will then be enquired into by the local Revenue Department Officer and a proper disposal given in writing. Persons aggrieved by such order have a right of appeal to the Tehsildar and then to the District Collector. Once this process is over, the lists will be placed in the Gram Sabha in villages and the Ward Committee in towns. Claims and Objections will be received at this stage also and dealt with in the same manner described above. The Gram Sabha/Ward Committee has to give its clearance or objection within a fixed period of time after which it will be deemed that the lists have been cleared. The lists thus authenticated will then be sent to the Unique Identity Authority of India (UIDAI) for de-duplication and issue of UID Numbers. All duplicates will be eliminated at this stage based on comparison of biometrics. Unique ID numbers will also be generated for every person. The cleaned database along with the UID Number will then be sent back to the Office of the Registrar General and Census Commissioner, India (ORG&CCI) and would form the National Population Register. As the UID system works on the basis of biometric de-duplication, in the case of persons of age 15 years and above (for whom biometrics is available), the UID Number will be available for each individual. For those below the age of 15 years (for whom biometrics is not available), the UID Number will be linked to the parent or guardian.
D. Will an Identity Card be given?
The National Population Register would have the data of every person enumerated during the Census operations irrespective of age. It would also have the biometric data and UID Number of every person of age 15 years and above. National Identity Cards will be given in a phased manner to all usual residents by the Office of the Registrar General and Census Commissioner, India. The issue of Cards will be done in Coastal Villages to start with. After this the coastal Towns will be covered and so on till the entire country is covered
E. Who will collect the Information?
Government servants duly appointed as Enumerators will visit each and every house and collect the information required. They will carry an Identity Card as well as an Appointment Letter. In case of need you may ask them to show these documents. The local Tahsildar can also be contacted in this regard.
F. What information will be collected?
Two Forms will be canvassed in each household. The first relates to the Houselisting and Housing Census. In this, 35 questions relating to Building material, Use of Houses, Drinking water, Availability and type of latrines, Electricity, possession of assets etc. will be canvassed.
The second form relates to the National Population Register. In this the following will be canvassed:
* Name of the Person
* Gender
* Date of Birth
* Place of Birth
* Marital Status
* Name of Father
* Name of Mother
* Name of Spouse
* Present Address
* Duration of stay at Present Address
* Permanent Address
* Occupation
* Nationality as Declared
* Educational Qualification
* Relationship to Head of family
G. Will my Information be disclosed to anybody?
All information collected under the Census is confidential and will not be shared with any agency - Government or private. Certain information collected under the NPR will be published in the local areas for public scrutiny and invitation of objections. This is in the nature of the electoral roll or the telephone directory. After the NPR has been finalised, the database will be used only within the Government.
I. Whom do I contact in case my house is not covered?
The local Tehsildar/Ward Officer of your area is the designated officer. In case of need you can also contact the Collector/DC/DM of your District or the Commissioner of your Town. You can also intimate us over e mail or contact us over the toll free number given in this website.
J. How do I ensure that the information given by me is being correctly entered?
The NPR form has to be signed by you. In case you require, ask the Enumerator to read it out to you and then affix your signature/thumb impression. In any case do ascertain that the details are correctly entered.
K. Do I need to show any documents to the enumerator?
The enumerator will take down all particulars as given by you. You are not required to show any proof. However, be cautioned that it is expected that you will provide correct and authentic information. You are also signing to this effect. The provision of false information can invite penalties under the Census and Citizenship Acts.
L. What is the Link between NPR and Unique ID Authority of India (UIDAI)?
The data collected in the NPR will be subjected to de-duplication by the UIDAI. After de-duplication, the UIDAI will issue a UID Number. This UID Number will be part of the NPR and the NPR Cards will bear this UID Number. The maintenance of the NPR database and updating subsequently will be done by the Office of Registrar General and Census Commissioner, India.
M. How people working abroad will be registered in National Population
Register?
This is a Register of Usual Residents. If a person is staying at a particular place in India for 6 months in the past one-year or intends to stay there(in India) for at least 6 months in the future, they will be covered. If you are not a usual resident you will not be included in the NPR.
N. Can I send my census/NPR information electronically ?
No, however you can download blank schedules from census website from schedule section and keep the information ready. This may help Enumerators when he/she will come to your place for collecting/recording the information in the actual schedules especially designed for the census/NPR
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