Tuesday, 22 April 2008

आखिरी हिंदू राष्ट्र भी मिट गया दुनिया के नक्शे से


भारत का पड़ोसी देश नेपाल सदियों से हिंदू राष्ट्र था मगर दुनिया के नक्शे से अब यह आखिरी हिंदू राष्ट्र भी मिट गया। लिच्छवि, मल्ल और अंततः शाहवंश का आखिरी राजा ज्ञानेन्द्र हिंदू राष्ट्र नेपाल का साक्षी रहा। यहां यह कहना मुनासिब होगा कि ज्ञानेन्द्र की सत्तालोलुपता भी राजशाही के पतन का कारण बनी। ज्ञानेन्द्र प्रशासनिक तौर पर एक कमजोर शासक साबित हुआ जो बदलते नेपाल को भांप नहीं पाया। नतीजे में नेपाल के तेजतर्रार शिक्षक और माओवादी नेता प्रचण्ड ने लंबी लड़ाई के बाद इस राजशाही को पहले बुलेट और फिर बाद में बैलेट (मतपत्र ) से बेदखल कर दिया।
इतिहास साक्षी रहा है कि हर पुरानी व्यवस्था व सत्ता को नई चुनौतियों के सामने झुकना पड़ा है। ऱूढ़ियों में डूबे हिंदू धर्म को पहले बौद्ध और फिर जैनियों ने चुनौती दी। सत्ता, समाज व व्यवस्था सभी कुछ बदल दिया। भक्ति व समाज सुधार आंदोलनों ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके बाद मुस्लिम व हिंदू व्वस्था को अपेक्षाकृत प्रगतिशील अंग्रेजों व ईसाई मिशनरियों ने चुनौती दी। धर्म और आस्था पर टिके हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध व जैन मतावलंबियों के बनाए समाज व सिद्धांत को वामपंथी आंदोलनों ने चुनौती दी। इन सभी चुनौतियों ने एक ऐसी अलग दुनिया कायम करदी जिसका लोहा पथभ्रष्ट हो चुके पुराने समाज को भी मानना पड़ा। इन परिवर्तनों से ऐसी नहीं हुआ कि कोई पूरी तरह से मिट गया। सुधारों के जरिए वह भी अपना वजूद कायम रखे हुए है। मगर यह समाज और धर्म पर लागू होता है। किसी अकर्मण्य शासक पर नहीं। नेपाल में जनता ने परिवर्तन का स्वागत किया मगर अकर्मण्य राजशाही मिट गई। जनता की आंखों इसी परिवर्तन की ललक प्रचणड ने देख ली थी।

इसी परिवर्तन की लहर में अब नेपाल भी भारत की तरह गणतंत्र हो जाएगा। जिस किस्म का नेपाल सदियों तक हिदू राष्ट्र रहा वैसा भारत सिर्फ प्राचीन काल में था। वह भी तुर्कों, सल्तनत से लेकर मुगलों के दौर में तो सिर्फ हिंदू रियासतें ही बचीं थीं। यानी भारत एकछत्र हिंदू राषट्र गुप्तवंश के चक्रवर्ती राजा समुद्रगुप्त तक था। सम्राट अशोक ने भी भारत को एकीकृत किया और कुछ मायने में उनके काल में भी भारत हिंदू राष्ट्र रहा। इस प्रक्रिया को वर्धन वंश के प्रतापी शासक हर्षवर्धन ने भी कायम रखा। तब पूरे भारत वर्ष में तमाम हिंदू रियासतें थीं जो आपस में युद्धरत रहा करतीं थीं।उत्तर भारत के प्रतिहार, बंगाल के पाल और दक्षिणके राष्ट्रकूट वंश के राजाओं ने तो विजय अभियान के तहत पूरे भारत वर्ष को ही रौंद दिया। यह सब होते हुए भी १०वीं शताब्दी तक भारत टुकड़ों में हिंदू राष्ट्र ही बना रहा। मराठा हों या फिर मेवाड़ के राजपूत सभी को मुंह की खानी पड़ी। कोई भी नेपाल का पृथ्वीनारायण शाह नहीं बन पाया। नतीजा यह रहा कि मोहम्मद गजनवी के हमले और अंततः दिल्ली में सल्तनत वंश और उसके बाद मुगल सत्ता काबिज होने के बाद से भारत धीरे-धीरे मुस्लिम शासकों के आधीन हो गया।
दक्षिण भारत में पहले चालुक्यों और बाद में विजयनगर साम्राज्य, या फिर प्रतिहार पाल व राष्ट्रकूट वंश और चौहान वंश के राजाओं ने हिंदू सत्ता बनाए रखी। मगर यह सब कुछ वैसे हिंदू शासक नहीं बन पाए जैसा १८वीं शताब्दी में नेपाल के एकीकरण और हिंदू धर्म व संस्कृति के लिए पृथ्वीनारायण शाह ने कर दिखाया। उसने नसिर्फ नेपाल का एकीकरण किया बल्कि एक ऐसे मजबूत हिंदू राष्ट्र नेपाल का निर्माण किया जिसने अपने ताकत के बल पर चीनियों को रोका और अंग्रेजों को भी अपनी ताकत से धूल चटा दी। भारत में हिंदू सत्ता अंग्रेजी शासन के आगे टिक ही नहीं पाई। मगर नेपाल अप्रैल २००८ के पहले तक दुनिया का इकलौता हिंदू राष्ट्र बना रहा। नेपाल के इस उत्थान पतन की कहानी एक ऐसे हिंदू राष्ट्र की कहानी है जो सदियों तक भारत के मनीषियों की तपस्थली रहा है। नेपाल के प्राचीन इतिहास में एक बार झांककर देखें तो वहां नेपाल नहीं भारत भी दिखाई देगा। आदिकालीन नेपाल के साथ माओवादियों के सत्तासीन होने की गाथा नेपाल में ऐतिहासिक परिवर्तन की गाथा है। आइए अवलोकन करें। यहां सबकुछ समेटना संभव नहीं हुआ अतः जो छूटा हुआ लगे उसे मैं आपकी टिप्पणियों खोजूंगा। आइए सफर शुरू करते हैं।


नेपाल का इतिहास

नेपाल एक दक्षिण एशियायी और भारत का पड़ोसी हिमालयी राष्ट्र है। नेपाल के उत्तर में चीन का वह स्वशासित राज्य तिब्बत है जो आजादी के लिए संघर्ष कर रहा है। यानी नेपाल और चीन के बीच अवस्थित है तिब्बत। नेपाल के दक्षिण, पूर्व व पश्चिम में भारत अवस्थित है। नेपाल मे ८५ प्रतिशत से ज्यादा नागरिक हिन्दू हैं। यह प्रतिशत भारत में हिन्दुओं के आनुपातिक प्रतिशत से भी अधिक है। इस मायने में नेपाल विश्व का सबसे बड़ा हिन्दू धर्मावलम्बी राष्ट्र भी है। नेपाल भौगोलिक विविधता वाला ऐसा देश हैजहां का तराई इलाका गर्म है तो हिमालय पर्वत की श्रृंखलाओं वाला इलाका बेहद ठंडा भी है। संसार का सबसे ऊंची १४ हिमश्रृंखलाओं में से आठ नेपाल में हैं। नेपाल की राजधानी और सबसे बडा शहर काठमाडौं है। नेपाल के प्रमुख शहर लिलतपुर (पाटन), भक्तपुर,मध्यपुर, कीर्तिपुर, पोखरा, विराटनगर, धरान,भरतपुर, वीरगञ्ज, महेन्द्रनगर,बुटवल,हेटौडा भैरहवा, जनकपुर, नेपालगञ्ज, वीरेन्द्रनगर,त्रिभुवननगर आदि है। आज का नेपाल यही है। आइए प्राचीन नेपाल का अवलोकन करते हैं।

प्राचीन नेपाल-मिथकीय युग

भारत और नेपाल का मिथकीय युग एकसाथ शुरू होता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार नेपालकी संस्कृति और सभ्यता का इतिहास मनु से आरम्भ माना जा सकता है। मनु ही नेपाल के पहले राजा थे जिन्हों ने सत्ययुग में यहां राज किया। तब नेपाल सत्यभूमि के नाम से जाना जाता था। त्रेतायुग (सिल्वर युग ) में नेपाल को तपोवन तथा द्वापरयुग (ताम्र युग ) में इसे मुक्तिसोपान भी कहा जाता था। कलियुग (लौहयुग ) यानी मौजूदा समय में इसे नेपाल कहा गया। सत्ययुग में सौर्य वंश ने नेपाल की सभ्यता व संस्कृति के विकास में भरपूर योगदान किया। आज का सौर्य कैलेंडर और उस पर आधारित त्योहार इसी वंश की देन हैं।
जंगलों से आच्छादित नेपाल को तत्कालीन तपस्वियों यथा- कण्व, विश्वमित्र, अगत्स्य, वाल्मीकि, याग्यवलक्य व दूसरे रिषियों ने अपनी तपस्थली बना ली थी। भारत के राजा दुष्यंत ने नेपाल के ही कण्व रिषी की पुत्री शकुन्तला से शादी की थी। उसी के पुत्र भरत ने यहां शासन किया। इसी ने उस विशाल साम्राज्य की स्थापना की जो आज का भारत भी है। भरत के साम्राज्य को महाभारत कहा गया। विभिन्न हिंदू धर्मग्रंथों में नेपाल के बारे में लिखा है। जनकपुर के न्यायप्रिय राजा जनक का भी विवरण इन्हीं ग्रंन्थों में मिलता है। कुछ विचारकों की राय में तो रामायण की रचना यहीं के सप्तगंडकी नदी के तट पर की गई। महर्षि वेदव्यास यहीं पैदा हुए थे। नेपाल के दमौली (व्यास नगर ) में व्यास गुफा है, जो इस अवधारणा को पुष्टि करती है। इसी तरह महाभारत में उल्लिखित महाराज विराट भी नेपाल के विराटनगर के राजा थे। ये सारे तथ्य इस बात के सबत हैं कि मंजूश्री के कांठमांडो घाटी में आने से काफी पहले नेपाल का अश्तित्व था। स्यंभू पुराण में वर्णित है कि चीन से कांठमांडो आकर मंजूश्री ने नागदह नामक विशाल झील के इर्दगिर्द लोगों को बसाया। उसने मंजूपत्तनम नामक शहर बसाया और धर्माकर को राजा बनाया। इसके बाद से नेपाल का इतिहास कांठमांडों के इर्दगिर्द घूमता है। इसके बाद यहां कई राजवंशों ने शासन किया। ये हैं-आहिर या गोपाल, किरात, लिच्छवी, मल्ल और शाह।

नेपाल शब्द की व्युत्पत्ति

"नेपाल" शब्द की उत्त्पत्ति के बारे मे ठोस प्रमाण कुछ नही है, लेकिन एक प्रसिद्ध विश्वास अनुसार यह शब्द ने नामक ऋषि तथा पाल (गुफा) से मिलकर बना है। माना जाता है कि एक समय में बागमती और विष्णुमती नदियों संगमस्थल पर ने ऋषि की तपस्थली थी। ने रिषी ही यहां के राजा के सलाहकार थे। सामान्य तौर पर इस हिमालयी भूभाग पर गोपाल राजवंश का शासन था। इस वंश के लोग नेपा भी कहे जाते थे। इसी नेपा नाम से गोपालवंश शासित भूभाग नेपाल कहा गया।
एक मान्यता यह भी है कि काठमांडो घाटी में रहने वाली नेवर जनजाति के नाम पर नेपाल नाम पड़ा होगा। गंडकी महात्म्य में एक राजा नेपा का उल्लेख है जिसने यहां न सिर्फ शासन किया बल्कि तमामा राज्यों को जीता भी। भगवान शंकर नेपा के आराध्य थे। इसी राजा ने अपने नाम पर इस राज्य का नाम नेपाल रखा।
तिब्बती भाषा में ने का अर्थ होता है घर और पाल का अर्थ होता है ऊन। अर्थात वह इलाका जहां ऊन पाया जाता है। इस ने और पाल से नेपाल बना होगा।जबकि नेवारी भाषा में ने का अर्थ बीच में और पा का अर्थ देश होता है।यानी ऐसा देश जो दो देशों के बीच में अवस्थित हो। भारत और चीन के बीच अवस्थित होने के कारण हा इसका नाम नेपाल पड़ा होगा। इसी तरह लिम्बू बोली में ने को तराई कहा जाता है। काठमांडों भी तराई है इसलिए नेपाल नाम पड़ा होगा।लेप्चा लोगों की बोली में ने का अर्थ पवित्र और पाल का अर्थ गुफा होता है। बौद्धों और हिंदुओं के पवित्र स्थल के कारण यह पवित्र गुफा नेपाल के नाम से जानी गई।
दरअसल तमाम जनश्रुतियां हैं जिनके आधार पर नेपाल शब्द की व्युत्पत्ति मानी जाती है। मगर प्राचीन नेपाल और नेपाल शब्द की इस व्युत्पत्ति के संदर्भ में ठोस लिखित साक्ष्य उपलब्ध नहीं है क्यों कि तत्कालीन समय में विधिवत इतिहास लिखा भी नहीं गया। बाद के जो साक्ष्य उपलब्ध है उसके ही आधार पर प्राचीन नेपाल और आधुनिक नेपाल की कड़ियां जोड़ने का प्रयास इतिहासकार किए हैं। बदलते नेपाल की तस्वीर इसी आधार पर उकेरी जा सकती है।
नेपाल के प्रमाणिक इतिहास को ऐतिहासिक पर इमारतों, सिक्कों, मंदिरों, देवी-देवताओं की प्राचीन मूर्तियों, कलात्मक अभिलेख और तत्कालीन साहित्य और १८०० ईसवी के आसपास के क्रानिकल्स (बस्मावलीज) से ही प्रमाणिक प्रकाश डाला जा सकता है। इनमें से सबसे प्रमाणिक क्रानिकल्स को ब्राह्मणों और बज्रकाचार्य ने संतलित किए हैं। ये राजा द्वारा किए गए धार्मिक कार्यों का विवरण है।
इनमें से एक को राणा बहादुर शाह के समय में बौद्ध भिक्षु पाटन ने लिखा था। डेनियल राइट ने इसका अंग्रेजी में अनवाद किया है। इसमें राजा का इतिहास और कुछ घटनाएं वर्णित हैं मगर इन क्रानिकल्स से सभ्यता, संस्कृति या लोगों के रहन-सहन के बारे में कुछ पता नहीं चलता है।
नेपाल के इतिहास पर प्राचीन काल में हाथों से लिखी गईं पांडुलिपियों से भी प्रकाश डाला गया है। इन पांडुलिपियों (कोलोफोंस) ने समकालीन राजा के विवरण के साथ आखिर पांडुलिपि के लेखक का नाम होता है। इनके अलावा हिंदुओं के प्राचीन धार्मिक ग्रंथों यथा- पुराणों, रामायण और महाभारत इत्यादि में नेपाल के विवरण मिलते हैं। इनकी मदद से भी नेपाल का इतिहास लिखा गया है। मसलन रामायण में नेपाल के जनकपुर के राजा जनक की पुत्री सीता से अयोध्या के राजकुमार राम का विवाह का विवरण है। महाभारत के युद्ध में नेपाल के राजा के भाग लेने का जिक्र भी मिलता है। दमयन्ती के स्वयंबर में नेपाल के राजा ने भाग लिया था। नेपाल के इतिहास के ये सभी लिखित साक्ष्य हैं।
नेपाल का इतिहास लिखने के लिए प्रस्तर और ताम्र अभिलेखों की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। ये अभिलेख पांचवीं से आठवीं शताब्दी के बीच संस्कृत में लिखे गए हैं। इनमें चंगूनारायण के मंदिर से प्राप्त अभिलेख प्रमुख हैं। हालांकि लिच्छवी राजा शिवदेव के बाद के शासकों के अभिलेख अभी तक नहीं मिले हैं। १४वीं शताब्दी से मल्ल राजाओं के शासनकाल के अभिलेख प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। प्राचीन भवन, मंदिर व स्तूप भी प्राचीन नेपाल की कहानी कहते हैं। इनमें चंगूनारायण, पशुपतिनाथ, हनुमान धोका, पाटन का कृष्णमंदिर भक्तपुर का पांचमंजिला न्यातापोल, स्वयंभूनाथ. बौद्धनाथ, महाबौद्ध प्रमुख है। मल्ल राजाओं के बनवाए मंदिर और मूर्तियां ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। विभिन्न जगहों से मिलों सिक्के नेपाल के इतिहास की कड़ी हैं। भारतीय और यूरोपीय इतिहासकारों के विवरणों और ऐतिहासिक स्थलों की खुदाई से मिले अवशेषों में भी प्राचीन नेपाल दर्ज है। काठमांडों घाटी में नवपाषाण युग के अवशेष पाए गए हैं।


१८वीं शताब्दी से पहले का नेपाल

१८वीं शताब्दी से पहले नेपाल देश काठमांडों घाटी तक सीमित था। यानी काठमांडों का वृहद इतिहास ही नेपाल का इतिहास है। १४वीं शताब्दी के पहले का इतिहास हिंदू महाकाव्यों के अलावा बौद्ध और जैन स्रोंतों पर ज्यादा आधारित है। नेपाल का दस्तावेजी इतिहास लिच्छवी वंश के शासक महादेव ( ४६४ शताब्दी से ५५० ईसवी ) के चंगूनारायण मंदिर से प्राप्त अभिलेख से शुरू माना जा सकता है। लिच्छवियों ने नेपाल में ६३० शाल तक शासन किया। इनका आखिरी शासक था जयकामादेव।
लिच्छिवियों के पतन के बाद १२वीं शताब्दी में अरिमल्ल के राजगद्दी हासिल करने करने के साथ ही मल्ल राजाओं का शासन शुरू होता है जो दो शताब्दियों यानी १४वीं शताब्दी के आखिर तक कायम रहता है। इन्हीं शासकों ने कांतिपुर नामक शहर को बसाया जिसे आज हम काठमांडो के नाम से जानते हैं। इन दो शताब्दियों में महत्वपूर्ण सामाजिक व आर्थिक सुधार किए। पूरे काठमांडो घाटी में संस्कृत भाषा को स्थापित किया। जमीन की पैमाइश के नए पैमाने ईजाद किए। जयसाथीतिमल्ल ने १५वीं शताब्दी के आखिर तक काठमांडो घाटी पर शासन किया। इसके मरने के साथ ही घाटी का यह साम्राज्य १४८४ ईसवी में तीन टुकड़ों- काठमांडो, भक्तपुर और पाटन में विभक्त हो गया। मल्ल राजाओं की शक्ति क्षीण होते ही पृथ्वी नारायण शाह ने काठमांडो घाटी पर हमला किया। इसी शाह वंश ने आगे चलकर नेपाल का एकीकरण किया। मल्ल वंश के आखिरी शासक थे- काठमांडो में जयप्रकाश मल्ल, पाटन में तेज नरसिंह मल्ल और भक्तपुर में रंजीत मल्ल।

शाह राजवंश और नेपाल का एकीकरण

आधुनिक नेपाल के एकीकरण के श्रेय शाहवंश के पृथ्वीनारायण शाह ( १७६९-१७७५ ईसवी ) को जाता है। शाह वंश के संस्थापक द्रव्यशाह ( १५५९-१५७० ईसवी ) के नौंवें उत्तराधिकारी पृथ्वीनारायण अपने पिता नारा भूपाल शाह के बाद उस समय के ताकतवर गोरखा शासन की कमान १७४३ ईसवी में संभाली। जिस तरह भारत और चीन के बीच तिब्बत है उसी तरह काठमांडो और गोरखा के बीच नुवाकोट था।

पृथ्वीनारायण शाह ने अपना विजय अभियान १७४४ ईसवी में नुवाकोट की जीत से शुरू किया। इसके बाद काठमांडों घाटी के उन सभी ठिकानों को अपने कब्जे में ले लिया जो सामरिक तौर पर महत्वपूर्ण थे। इसके बाद काठमांडो घाटी का संपर्क बाकी दुनिया से कट गया। सन् १७७५ में कुटी दर्रा पर कब्जे के बाद पृथ्वीनारायण ने अंततः काठमांडो घाटी का तिब्बत से व्यापारिक संपर्क भी छिन्नभिन्न कर दिया। अब पृथ्वीनारायण शाह ने घाटी में प्रवेश करके कीर्तिपुर पर हमला कर दिया। अब तक बेखबर सो रहा मल्ल शासक जयप्रकाश मल्ल घबरा गया और ब्रिटिश सेना से मदद मांगी। १७५६ में ईस्ट इंडिया की और से कैप्टेन किंलोच अपने सिपाहियों के लेकर मदद के लिए हाजिर हुआ। पृथ्वीनारायण शाह की सेना ने फिंरंगियों को परास्त जयप्रकाश मल्ल की उम्मीदों को धूल में मिला दिया।

बड़े नाटकीय तरीके से पृथ्वीनारायण शाह ने २५ सितंबर १७६८ को काठमांडो पर तब कब्जा कर लिया जब वहां के लोग इंद्रजात्रा उत्सव मना रहे थे। काठमांडो के लोगों ने तो पृथ्वीनारायण शाह का राजा के तौर पर स्वागत किया मगर जयप्रकाश मल्ल भाग निकला। ुसने पाटन में शरण ली। जब एक सप्ताह बाद पृथ्वीनारायण शाह ने पाटन को कब्जे में ले लिया तो जयप्रकाश मल्ल और पाटन का राजा तेजनरसिंह मल्ल दोनों ने भक्तपुर में शरण ली। भक्तपुर भी नहीं बचा और नेपाल के एकीकरण अभियान में यह भी जीत लिया गया। इस विजय के बाद १६९ में कांठमांडो को आधुनिक नेपाल की राजधानी बना दिया गया। विभिन्न जातियों को राष्ट्रीयता के दायरे में लाने का पृथ्वीनारायण शाह ने वह अभूतपूर्व कार्य किया जिसके चलते एकीकरण के बाद एक छत्र नेपाल राष्ट्र बन पाया। अंग्रेजों के हमले ने इस एकीकृत नेपाल को भारी क्षति पहुंचाई। अंग्रेजों के साथ नेपाल का पश्चिमी तराई खासतौर पर बुटवल और सेवराज को लेकर था। अंग्रेजों ने १८१४ ईसवी में नेपाल के पश्चिमी सीमा पर स्थित नलपानी पर हमला कर दिया। अंग्रेजी सेना भारी पड़ी और नेपाली सेना को महाकाली नदी का पश्चिमी किनारा खाली करना पड़ा। अंग्रेजों के साथ १८१६ ईसवी में सुगौली की संधि करनी पड़ी जिसमें नेपाल की पश्चिमी सीमा महाकाली और मेची नदियों तक सीमित हो गई। इस समय नेपाल पर राजा गिरवान युद्ध विक्रम शाह नेपाल का राजा था। उनके प्रधानमंत्री भीमसेन थापा थे। इस संधि से नेपाल का वह हश्र नहीं हुआ जो भारतीय राजाओं का हुआ। नेपाल और शाहवंश का इस संधि के बाद भी वजूद रहा मगर भारत की रियासतों को एक-एक कर लील गए अंग्रेज और नतीजे में अंततः भारत गुलाम हो गया।

आखिरी हिंदू राष्ट्र और इसकी राजशाही के पतन तक का घटनाचक्र

1768 – गोरखा शासक पृथ्वी नारायन शाह द्वारा काठमांडू को जीत कर एकीकृत राष्ट्र की स्थापना की गई.
1792 – तिब्बत में चीन के हाथों पराजय के बाद नेपाल के विस्तार पर रोक लगी.
1814-1816 – अंग्रेज़ों के साथ युद्ध, जिसकी समाप्ति पर एक संधि हुई जिसमें नेपाल की वर्तमान सीमाओं का निर्धारण हुआ.
1846 – नेपाल का शासन राणाओं के हाथों में चला गया, जिन्होंने राजतंत्र पर प्रधानता हासिल कर देश को दुनिया के बाक़ी हिस्से से अलग कर दिया.
पूर्ण राजतंत्र
1923 – ब्रिटेन के साथ संधि हुई जिसने नेपाल की संप्रभुता को सुदृढ़ किया.
1950 – भारत में स्थित राणा विरोधी शक्तियों ने नेपाल के सम्राट के साथ समझौता हुआ.
1951 – राणा शासन की समाप्ति हुई. राजघराने की श्रेष्ठता फिर से स्थापित हुई और नेपाली कांग्रेस पार्टी के राणा विरोधी विद्रोहियों ने सरकार का गठन किया.
1953 – 29 मई- न्यूज़ीलैंड़ के एडमंड हिलेरी और नेपाल के शेरपा तेनज़िंग एवरेस्ट शिखर पर पहुँचने वाले पहले पर्वतारोही बने.
1955 – नेपाल संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बना.
1959 – बहुदलीय संविधान को अपनाया गया.
1960 – नेपाली कांग्रेस पार्टी ने बी.पी. कोइराला के नेतृत्व में चुनाव जीता लेकिन महाराजा महेंद्र सत्ता पर नियंत्रण बना कर पार्टी आधारित राजनीति, संसद और संविधान को स्थगित कर देते हैं.
1962 – नए संविधान के तहत ग़ैर दलीय पंचायत का गठन किया गया. इसमें महाराज को सत्ता पर पूरी तरह से नियंत्रण की शक्ति प्रदान की गई. 1963 में राष्ट्रीय पंचायत के पहले चुनाव हुए.
1972 – महाराजा महेंद्र के निधन के बाद सम्राट बीरेन्द्र ने सत्ता संभाली.
बहुदलीय राजनीति
1980 – बदलावों के लिए हुए आंदोलन के बाद संवैधानिक जनमत संग्रह किया गया. कम बहुमत से वर्तमान पंचायत व्यवस्था को जारी रखने का निर्णय हुआ. नेपाल नेरश राष्ट्रीय सभा के लिए ग़ैर-दलीय आधार पर सीधे चुनावों के लिए सहमत हुए.
1985 – नेपाली कांग्रेस पार्टी ने बहुदलीय व्यवस्था को फिर से लागू करने के लिए सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की.
1986 – नए चुनावों का नेपाली कांग्रेस पार्टी ने बहिष्कार किया.
1989 – भारत के साथ व्यापार विवाद के बाद भारत ने द्वारा सीमा की नाकेबंदी की जिससे नेपाल की आर्थिक स्थिति और भी बिगड़ गई.
1990 – प्रजातंत्र के समर्थन में नेपाली कांग्रेस पार्टी और वामपंथी दलों ने आंदोलन की शुरुआत की. धरने प्रदर्शनों को सुरक्षाबलों ने दबाने की कोशिश की जिस दौरान कई लोग मारे जाते हैं और भारी संख्या में लोगों को गिरफ़तार किया जाता है. अतंत महाराज बीरेंद्र दबाव के आगे झुक जाते हैं और नए प्रजातांत्रिक संविधान की रचना के लिए सहमत हो जाते है.
1991 – पहले प्रजातांत्रिक चुनावों में नेपाली कांग्रेस पार्टी की विजय होती है. गिरिजा प्रसाद कोइराला को प्रधानमंत्री बनाया जाता है.

राजनीतिक अस्थिरता

1994 – अविश्वास प्रस्ताव पर कोइराला सरकार की हार हुई और नए चुनावों में कम्युनिस्ट सरकार का गठन किया गया.
1995 – कम्युनिस्ट सरकार का पतन हुआ. कट्टरवादी वामपंथी दल, नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने सम्राट को हटाने और जनतांत्रिक राष्ट्र के गठन को लेकर ग्रामीण इलाकों में विद्रोह की शुरुआत की.
1997 – लगातार राजनीतिक अस्थिरता के चलते प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा की हार हुई और लोकेन्द्र बहादुर चाँद नए प्रधानमंत्री बनाए गए. लेकिन पार्टी में विभाजन के बाद चाँद पर इस्तीफ़ा देने का दबाव पड़ा और सूर्य बहादुर थापा को नया प्रधानमंत्री बनाया गया.
1998 – पार्टी में विभाजन के चलते थापा को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. गिरिजा प्रसाद कोइराला गठबंधन सरकार के प्रधानमंत्री के रुप में एक बार फिर सत्ता संभालते हैं.
1999 – ताज़ा चुनावों में नेपाली कांग्रेस पार्टी को बहुमत मिलता है और कृष्ण प्रसाद भट्टाराई को नया प्रधानमंत्री बनाया जाता है.
2000 – नेपाली कांग्रेस पार्टी में विद्रोह के बाद प्रधानमंत्री भट्टाराई को इस्तीफ़ा देना पड़ता है. पिछले 10 वर्षों में नवीं बार बनने वाली सरकार के प्रधानमंत्री के रुप में गिरिजा प्रसाद कोइराला एक बार फिर प्रधानमंत्री बनाए जाते हैं.
राजमहल में हत्याएँ
2001 – एक जून – नशे में धुत्त राजकुमार दीपेन्द्र ने महाराज बीरेंद्र, महारानी एश्वर्या और अन्य निकट संबधियों की हत्या की. बाद में राजकुमार दीपेन्द्र ने ख़ुद को भी गोली मार ली.
2001 – चार जून – महल में हुई गोलीबारी के दौरान लगी चोटों की वजह से दो जून को सम्राट बनाए गए राजकुमार दीपेन्द्र की मौत हो गई. मौत के बाद राजकुमार ज्ञानेंद्र को महाराज बनाया गया.
2001 – जुलाई – माओवादी विद्रोही अपने हिंसक आंदोलन को उग्र कर देते हैं. गिरिजा प्रसाद कोईराला ने हिंसा के चलते इस्तीफ़ा दिया. इसके बाद शेरबहादुर देउबा 11 वर्षों में ग्यारहवीं बार बनने वाली सरकार के प्रधानमंत्री बनते हैं.
2001 – जुलाई – देउबा की ओर से विद्रोहियों के साथ शांति की घोषणा की जाती है और युद्ध विराम लागू हो जाता है.
2001 – नवंबर – माओवादियों का कहना कि शांतिवार्ता विफल हो गई है और युद्ध विराम लागू रखने का कोई औचित्य नहीं है. माओवादी, पुलिस और सेना की चौकियों पर सुनियोजित हमले करते हैं.
आपातकाल
2001 – नवंबर – चार दिनों की हिंसा में 100 से भी अधिक लोगों के मारे जाने के बाद, आपातकाल की घोषणा की जाती है. महाराजा ज्ञानेंद्र सेना से माओवादियौं को कुचलने का आदेश देते हैं.
2002 – अप्रैल –हमलों में हज़ारों लोगों के मारे जाने के कई दिनों बाद माओवादी विद्रोही पाँच दिनों की राष्ट्रीय हड़ताल का आह्वान करते है.
2002 – मई – देश के दक्षिण में सेना और विद्रोहियों के बीच तीखी झड़पें होती हैं. माओवादी विद्रोही एक महीने के युद्धविराम की घोषणा करते हैं जिसे सरकार ठुकरा देती है. प्रधानमंत्री देउबा, माओवादियों के विरुद्ध युद्ध में मदद के लिए ब्रिटेन और अन्य देशों का दौरा करते है. अमरीकी राष्ट्रपति जार्ज बुश 2 करोड़ डॉलर की मदद देने का वायदा करते हैं.
2002 – मई – संसद भंग कर दी जाती है और आपातकाल की समयसीमा बढ़ाए जाने को लेकर उठे राजनीतिक विवाद के बीच नए चुनावों की घोषणा की जाती है. नेपाली कांग्रेस पार्टी द्वारा निष्कासित किए जाने के बाद देउबा अंतरिम सरकार का प्रतिनिधित्व करते हुए आपातकाल के समय को बढ़ा देते है.
2002 – अक्तूबर – माओवादी हिंसा के चलते प्रधानमंत्री देउबा महाराज ज्ञानेंद्र से चुनावों को एक साल आगे खिसकाने के लिए कहते हैं. महाराज देउबा को हटा कर नवंबर में होने वाले चुनावों को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर देते हैं. लोकेन्द्र बहादुर चाँद को नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाता है.
2003 – जनवरी – विद्रोही और सरकार के बीच युद्ध विराम की घोषणा की जाती है.
2003 – मई-जून- लोकेन्द्र बहादुर चाँद प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे देते हैं. महाराज अपने निकट सहयोगी सूर्य बहादुर थापा को नया प्रधानमंत्री बनाते हैं.
शांति संधि की समाप्ति
2003 – अगस्त – माओवादी विद्रोही, सरकार के साथ शांतिवार्ता समाप्त कर सात महीने से चली आ रही शाँति संधि को तोड़ देते हैं. विद्रोही सितंबर में तीन दिनों की आम हड़ताल का आह्वान करते है.
2003 के आख़िरी महीनों से आगे – राजनैतिक गतिरोध के बाद छात्रों-कार्यकर्ताओं और पुलिस के बीच झड़पें, हिंसा फिर से भड़की.
2004 – अप्रैल – नेपाल विश्व व्यापार संघ का सदस्य बनता है.
2004- मई – विपक्षी गुटों के धरने-प्रदर्शनों के बाद राजघराने की ओर से प्रधानमंत्री बनाए गए सूर्य बहादुर थापा इस्तीफ़ा दे देते हैं.
2004 – जून – महाराज ज्ञानेंद्र शेर बहादुर देउबा का फिर से प्रधानमंत्री नियुक्त करते हैं.
2004 – अगस्त - माओवादी काठमांडू की नाकेबंदी कर देते हैं जो एक सप्ताह तक चलती है. इस कारण राजधानी में ज़रूरी चीज़ों की आपूर्ति ठप्प पड़ जाती है.
इराक में 12 नेपाली बधंकों की हत्या के बाद काठमांडू में हिसंक प्रदर्शन होते हैं.
प्रत्यक्ष सत्ता
2005 – 1 फ़रवरी – महाराज ज्ञानेंद्र प्रधानमंत्री देउबा और उनकी सरकार को सत्ता से हटा देते हैं. वो माओवादियों को परास्त करने की बात कह कर आपातकाल की घोषणा कर देते हैं और प्रत्यक्ष रुप से सत्ता संभाल लेते हैं.
2005 – 30 अप्रैल – महाराज आपातकाल समाप्त करने की घोषणा करते हैं.
2005 – जुलाई –भ्रष्टाचार विरोधी राजसी आयोग पूर्व प्रधानमंत्री देउबा को भ्रष्टाचार के आरोप में 2 वर्ष जेल की सज़ा देता है. फ़रवरी 2006 में आयोग के निरस्त होने के बाद देउबा को मुक्त कर दिया जाता है.
2005 – सितंबर – 2003 में शांति वार्ता समाप्त होने के बाद पहली बार माओवादी विद्रोही तीन महीने के एकतरफ़ा युद्ध विराम की घोषणा करते हैं जिसे बाद में बढ़ा कर चार महीने कर दिया जाता है.
2005 – नवंबर – माओवादी विद्रोही और मुख्य विपक्षी पार्टियाँ प्रजातंत्र को बनाए रखने के लिए एक कार्यक्रम पर सहमत होते हैं.
2006 – जनवरी – माओवादी विद्रोही चार महीने से चले आ रहे युद्ध विराम को समाप्त करने की घोषणा करते है.
2006 – अप्रैल – नेपाल में राजघराने के सत्ता पर सीधे नियंत्रण के विरोध में विपक्षी पार्टियों की ओर से हड़तालों और प्रदर्शनों का आह्वान किया जाता है. राजधानी काठमांडू में तीखी झड़पें होती हैं.
2006 – अप्रैल- नेपाल नरेश ज्ञानेंद्र ने देश की सत्ता जनता को सौंपने की बात कही. राष्ट्र को संबोधन में उन्होंने राजनीतिक दलों से अंतरिम प्रधानमंत्री का नाम सुझाने को कही. लेकिन विपक्षी दलों ने उनके इस प्रस्ताव को नकार दिया है कि वे संयुक्त रुप से एक प्रधानमंत्री चुनकर सरकार का गठन कर लें. सरकार को गठन हुआ जिसमें माओवादी सरकार में शामिल हुए। कई बार चुनाव की तारीखें तय नहीं हो पाईं मगर जो प्रक्रिया शुरू हुई उसके बाद २००७ और अप्रैल २००८ तक पूरी तरह से राजशाही का पतन हो गया। १० अप्रैल २००८ को हुए चुनाव में अप्रत्याशित तौरपर माओवादियों ने जीत दर्ज कर बहुमत हासिल कर लिया है।


संविधान सभा का चुनाव जीत लिया

नेपाल में माओवादियों ने संविधान सभा का चुनाव जीत लिया है. उन्हें लगभग 220 सीटें मिली हैं. हालाँकि ये स्पष्ट बहुमत से कम है. नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) अब नेपाल की नई सरकार में मुख्य भूमिका में होंगे जो देश के लिए नया संविधान तैयार करेगी.नए संविधान के तहत सबसे बड़ा बदलाव होगा 239 वर्षों से चली आ रही राजशाही की समाप्ति. माओवादियों ने कहा है कि वो नई सरकार में सभी दलों को शामिल करना चाहते हैं.
माओवादियों ने अपने नेता पुष्प कमल दहल उर्फ़ प्रचंड को राष्ट्रपति बनाने की योजना बनाई है.
ख़ुद प्रचंड ने गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र प्रतिनिधियों के साथ बैठक के बाद कहा, "मैं राष्ट्रपति बनना चाहता हूँ लेकिन संविधान में इस तरह का प्रावधान नहीं है, इसलिए हमें दूसरे दलों के साथ मिल कर किसी तरह का समझौता करना होगा."

राजशाही की समाप्ति

प्रचंड ने कहा कि अब नेपाल में राजशाही के लिए कोई जगह नहीं है. उनका कहना था, "संविधान सभा की पहली बैठक में ही राजशाही ख़त्म करने का फ़ैसला किया जाएगा और इस पर किसी तरह का समझौता नहीं होगा."
601 सदस्यीय संविधान सभा के चुनावों में 240 सीटों पर प्रत्यक्ष चुनाव हुए थे जिनमें माओवादियों को 120 सीटें मिली हैं.
शेष 335 सीटों पर आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के तहत चुनाव हुए जिनकी मतगणना बुधवार रात ख़त्म हो गई.
चुनाव अधिकारी मत्रिका श्रेष्ठ ने कहा, "माओवादियों को 29 फ़ीसदी से ज़्यादा मत मिले हैं जबकि नेपाली कांग्रेस को लगभग 21 और नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (यूनाइटेड मार्क्सवादी-लेनिनवादी) को लगभग 20 फ़ीसदी मत प्राप्त हुए."
चुनाव आयोग के मुताबिक इस हिसाब से माओवादियों को आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के तहत 97 सीटें मिलेंगी.
इस तरह माओवादी कुल मिलाकर 217 सीटें जीत चुके हैं जबकि नेपाली कांग्रेस के खाते में 107 सीटें गई हैं. नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी (यूएमएल) तीसरे पायदान पर हैं. संविधान सभा के 26 सदस्यों को नामित करने का अधिकार नई सरकार को होगा.

नेपाल नीति में बदलाव लाएगा अमेरिका

चुनावों में माओवादियों की निश्चित विजय को ध्यान में रखकर अमेरिका अपनी नेपाल नीति में बदलाव करने पर विचार कर रहा है। नेपाल में अमेरिका की राजदूत नैंसी जे. पावेल ने इस बात का संकेत दिया है।गौरतलब है कि 2003 में अमेरिका ने माओवादियों को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठनों की सूची में पहली बार शामिल किया था। हालांकि, अमेरिका ने संकेत दिए हैं कि इसकी समीक्षा की जा सकती है। यद्यपि माओवादी 2006 से ही हथियार रखकर गठबंधन सरकार में शामिल हो चुके हैं। पावेल ने नेपाल की संसद के अध्यक्ष सुभाष चंद्र नेमबंग से सोमवार को मुलाकात करके नई सरकार के गठन के संबंध में जानकारी प्राप्त की। अधिकारिक सूत्रों के अनुसार मुलाकात के बाद नेमबंग ने संकेत दिए हैं कि अमेरिका अब अपनी नेपाल नीति को बदल रहा है।

शासन प्रणाली

इस चुनाव मे 240 सीटों पर प्रत्यक्ष चुनाव और 335 सीटों के लिए समानुपातिक पद्धति से चुनाव हुआ है, जिसमें मतदाता को उम्मीदवार को न चुनकर पार्टी को चुनना था. पूरे चुनाव परिणाम आने और गणतंत्र घोषित किए जाने के बाद सबसे बड़ा सवाल होगा कि नेपाल किस शासन की किस प्रणाली को अपनाता है.नेपाल में अमरीका की तरह राष्ट्रपति प्रणाली लागू की जाती है या फिर भारत की तरह सारे कार्यकारी अधिकार प्रधानमंत्री के पास रहते हैं.
हालांकि, माओवादी अपने नेता प्रचंड का नाम नेपाल के भावी राष्ट्रपति के तौर पर पेश कर चुके हैं.
लेकिन खुद प्रचंड का कहना है कि नेपाल क्या प्रणाली अपनाता है वो इसके लिए बहस को तैयार हैं.
वैसे संविधान सभा के बनने के बाद इस नेपाल का संविधान तैयार करने के लिए दो साल का समय होगा और ज़रूरत पड़ने पर इस संविधान सभा का कार्यकाल छह महीने और बढ़ाया जा सकेगा.

5 comments:

Unknown said...
This comment has been removed by the author.
Unknown said...

इस बात में दो मत हो ही नहीं सकता कि आपने गहन अध्ययन किया है।

हिन्दू राष्ट्र के मिटने का हमें भी बहुत अफसोस है। काश! हिन्दू एक जुट हो कर रह पाये होते।

आलोक said...

मान्धाता जी, नेपाल के बारे में इतनी जानकारी! आपका लेख बहुत पसन्द आया।

Sanjay Tiwari said...

मेहनत साफ दिख रही है. मान्धाता जी क्या इसे साभार विस्फोट.काम पर दिया जा सकता है?

हिमवत said...

सर्वप्रथम आपका लेख बहोत अच्छा लगा । मैँ भी एक हिन्दु हुँ । इत्ना हि नहि मैँ एक नेपाली भी हुँ ।मुझको नेपाल हिन्दू होने से सेक्युलर होने मे गौरव लगता हैँ । हिन्दू धर्म वास्तव मे सनातन धर्म हैँ । जो अपना हि नही ,सव लोगोँ का हित कि कामना करनेकि प्रेरणा देता है । सर्वे भवन्तु सुखिन: । अन्तत: मेरा अशुद्ध हिन्दि लेखन के लिए माफी चाहता हुँ ।
सरोज कुमार ढकाल

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