Monday, 27 August 2007
ब्लोग्गिंग पर क्या है आपकी राय
वेबदुनिया हिंदी पोर्टल ने भी हिंदी ब्लागिंग को चर्चा का विषय बनाना तय किया है। इसके पहले एनडीटीवी, हिंदी अखबार प्रभात खबर समेत तमाम माध्यमों ने भी इसपर चर्चा की है मगर विस्तार से चर्चा पहली बार वेबदुनिया हिंदी पोर्टल ( http://hindi.webdunia.com ) कराने जा रहा है। यह सामयिक और महत्वपूर्ण फैसला इस लिए भी माना जा सकता है क्यों कि इंटरनेट पर हिंदी चिट्ठाकार बेहद मजबूती से अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं। अब कमी है तो सिर्फ इसके दशा-दिशा की। इसी लिए चिट्ठों का व्यवस्थित प्रवाह स्वस्थ मानदंडों का पालन करते हुए देश-दुनिया के सुधी पाठकों तक पहुंचाने पर अब सार्थक चर्चा होनी जरूरी है। चिट्ठों के लेखन सामग्री पर या फिर कई चिट्ठाकारों को चिट्ठों के दायरे तय करने पर आपत्ति होती है। तो साथियों अब जमकर आपत्तियां दर्ज कराइए और चिट्ठों के अपने मनमुताबिक दायरे भी तय करिए। आपकी राय अब चिट्ठों के एग्रीगेटरों या महज चिट्ठाकारों की मनमानी तक सीमित न रह कर सीधे आम पाठकों की अदालत में होगी। शायद आम पाठकों व चिट्ठों के विशेषग्यों की यही राय चिट्ठो की नई वैश्विक दुनिया का स्वरूप तय कर पाएगी।
वेब दुनिया की अपील
सूचना क्रांति के साथ हिंदी लेखन की दुनिया का बहुत तेजी के साथ विस्तार हुआ है। इंटरनेट पर हिंदी का दखल बढ़ता जा रहा है और हिंदी उन माध्यमों में भी अपनी पहचान बना रही है, जिन पर अब तक सिर्फ अँग्रेजी का एकाधिकार था।
ऐसी ही एक दुनिया में हिंदी ने अँग्रेजी के वर्चस्व को तोड़ा है, और वह है हिंदी ब्लॉग की दुनिया। हिंदी में ब्लॉग और ब्लॉगरों की निरंतर बढ़ती हुई संख्या ने नए प्रकार के लेखन और विभिन्न विषयों पर विमर्श को नया मंच प्रदान किया है। अब तक अखबार और पत्र-पत्रिकाएँ ही इसका माध्यम हुआ करते थे, पर वहाँ भी बहुत सारे बंधन और सीमाएँ थीं। लेकिन ब्लॉग के रूप में हिंदी लिखने और पढ़ने वालों के लिए एक खुला आकाश मौजूद है, जहाँ अपने विचार और सृजनधर्मिता को बिना किसी सेंसरशिप के व्यक्त किया जा सकता है। यूनीकोड हिंदी ने हिंदी को यूनीवर्सल कर दिया है। अब दुनिया के किसी भी कोने में बैठकर इंटरनेट पर अपनी भाषा में अध्ययन और लेखन संभव है।
हिंदी ब्लॉग की दुनिया का बहुत तेजी से विस्तार हो रहा है। वर्तमान में 300 से अधिक ब्लॉग हिंदी में सक्रिय हैं। भारत समेत दुनिया के कोने-कोने से लोग हिंदी ब्लॉग को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बना रहे हैं। पत्रकारों से लेकर शिक्षक, सॉफ्टवेयर इंजीनियर, निजी कंपनियों के व्यवसायी और यहाँ तक कि गृहणियाँ और विद्यार्थी भी हिंदी ब्लॉग की दुनिया में सक्रिय हैं। पर इनमें पत्रकारों की संख्या अधिक है।
अब प्रश्न उठता है, उन मुद्दों और विषयों का, जिन पर विमर्श और लेखन किया जा रहा है। रचनात्मक साहित्य से लेकर कविता, कहानी, संस्मरण, चिट्ठी-पत्री और भी ऐसी तमाम चीजें लेखन का विषय बन रही हैं। इन ब्लॉगों की विषय-वस्तु और प्रसार के बारे में विभिन्न संदर्भों में चर्चा की जा सकती है।
आगामी शु्क्रवार से हम एक नया स्तंभ शुरू करने जा रहे हैं - ब्लॉग चर्चा। इस स्तंभ में हर शुक्रवार हिंदी के किसी प्रसिद्ध ब्लॉग के बारे में जानकारी दी जाएगी। यदि आपका भी कोई ब्लॉग है, तो आप उसका लिंक और उससे संबंधित जानकारियाँ हमें भेज सकते हैं। हो सकता है, अगली ब्लॉग-चर्चा का विषय आपका ही ब्लॉग हो।
तो फिर इंतजार करिए, अगले शुक्रवार का, और आप भी शिरकत करिए, वेबदुनिया की ब्लॉग-चर्चा में।
Friday, 24 August 2007
बच्चा पैदा करने की मशीन समझ रखा है क्या ?
जनाब, पहले यह खबर पढ़िए।
आर्थिक रूप से मालामाल पंजाब और हरियाणा का एक ऐसा बदसूरत चेहरा भी है, जिसे देखकर मानवता शर्म से पानी-पानी हो जाए। आपको यह जानकर हैरत होगी कि पश्चिम बंगाल और असम से पंजाब व हरियाणा जैसे राज्यों के लिए लड़कियों की तस्करी इसलिए की जाती है क्योंकि इनसे बच्चा चाहिए। यहां इन लड़कियों का तब तक यौन शोषण किया जाता है, जब तक वह लड़का पैदा न कर दें।
संयुक्त राष्ट्र विकास कोष के एक अध्ययन 'दक्षिण एशिया में मानव तस्करी और एचआईवी-इनकी संवदेनशीलता और उनके नियंत्रण के लिए उठाए जाने वाले कदमों की तलाश' रिपोर्ट में कहा गया है कि पश्चिमी बंगाल और असम से पंजाब व हरियाणा जैसे प्रगतिशील राज्यों में बच्चियों और महिलाओं की तस्करी के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है। इस वजह से इन दोनों राज्यों के लिंगानुपात में काफी अंतर आ गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पंजाब और हरियाणा में तस्करी करके लाए जाने के बाद इन महिलाओं का शोषण होता है। उनसे पुत्र पैदा करने के लिए जबरदस्ती की जाती है।
इस संबंध में सबसे दुखदाई पहलू यह है पुत्र पैदा होने के बाद उसकी मां को छोड़ दिया जाता है या फिर किसी दूसरे पुरुष को सौंप दिया जाता है। इस अध्ययन में भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, श्रीलंका और नेपाल को शामिल किया गया है। तस्करी करके लाई गई महिलाओं में युवा महिलाओं की संख्या अधिक है क्योंकि इनकी मांग बहुत है।
अध्ययन ने देश में ऐसे हालात को बेहद 'जटिल' बताते हुए कहा है कि आंतरिक और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानव तस्करी की दर काफी ऊंची है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बड़ी संख्या में भारत, नेपाल और बांग्लोदश में फर्जी विवाह के जरिए लड़कियों को खरीदा जाता है।
दक्षिण एशिया की कुंवारी लड़कियों की मांग बढ़ने की मुख्य वजह एक प्रचलित धारणा भी है कि इनके साथ यौन संबंध बनाने से यौन रोग ठीक हो जाते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण एशिया दुनिया में मानव तस्करी के मामले में दूसरे नंबर पर आता है। यहां से हर साल करीब डेढ़ से दो लाख व्यक्तियों की तस्करी की जाती है। भारत और पाकिस्तान से मुख्य रूप से 16 साल से कम आयु के बच्चों की तस्करी होती है। भारत में बड़ी संख्या में बांग्लादेश और नेपाल से भी महिलाएं तस्करी करके लाई जाती हैं। फिर उन्हें वेश्यावृत्ति के धंधे में धकेला जाता है। यह धंधा खासकर मुंबई और कोलकाता में चलता है।
रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा किया गया है कि भारत में कंट्टरपंथी संगठन 8 से 15 साल के बच्चों की भर्तियां कर रहे हैं। इन बच्चों का इस्तेमाल भोजन की व्यवस्था करने और अपहरण के मामले में चिंट्ठी आदि पहुंचाने में किया जाता है। बच्चों की भर्तियों के पीछे ऐसे संगठनों का मकसद है कि बच्चों पर पुलिस का शक नहीं जाता। हाल ही में पीपुल्स वार ग्रुप (अब कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया-माओवादी) से जुड़े ऐसे ही बच्चों को पकड़ा गया है।
आपको शायद खुद पर यकीन नहीं हो पाएगा कि यह वही हिन्दुस्तान है जहां नारियों को देवियों की तरह पूजा जाता है। हमारी संस्कृति और परम्पराओं में मातृदेवी जैसा सम्मान जहां औरतों को हासिल हो वहां ऐसे कुकृत्य करने वालों को भारतीय तो दूर आदमी भी मानने को दिल नहीं करता। लगता है इनकी नजर में औरत की अहमियत महज बच्चे पैदा करने की मशीन भर है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के हिसाब से तो भारत सरकार और असम व पश्चिम बंगाल की सरकारों को कठोर कदम उठाने चाहिए। मगर अफसोस तो यह है कि गरीबी, मजबूरी में इन हैवानों के चंगुल में फंसी जा रहीं असम व बंगाल की बालाओं की कराह भी ये सरकारें नहीं सुन पा रहीं हैं। सुनाई भी कैसे देगी ? जहां औरतें इन सरकारों की पुलिस की ही जुल्म की शिकार हैं वहां फरियाद भी करें तो किससे ? बच्चा पैदा करने की रिपोर्ट से ज्यादा दिल दहला देने वाली घटनाएं भी अपने लोकतांत्रिक भारत में प्रगतिशील सरकारों के लिये चुनौती बनी हुईं हैं। आखिर कब इनके कानों पर रेंगेंगी जूं ?
घर से उठा ले गए, थाने में लूटी अस्मत
मासूम इंडिया डाट काम की एक रिपोर्ट तो बंगाल में औरतों पर अत्याचार और कानून व व्यवस्था की पोल खोल देने के लिये काफी है। मासूम के निदेशक कीर्तिराय ने अपनी वेबसाइट पर पश्चिम बंगाल के उत्तर चौबीस परगना के गाईघाटा थाने की पुलिस की कानून की धज्जियां उड़ाने की धृष्टता की रिपोर्ट प्रकाशित की है। जिले के दोगाछिया गांव की २० साल की काजोली दास ( स्वपन दास की पत्नी) को गाईघाटा थाने की पुलिस ने नौ दिन तक लाकअप में रखा और उसे कोर्ट में पेश करने की भी जरूरत नहीं समझी। ताज्जुब तो यह है कि बिना किसी पुलिस केस के उसे आधी रात को गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तारी के लिये महिला पुलिस भी लाने की जरूरत नहीं समझी गई। जब काजोली को टार्चर व कथित यौन शोषण के लिये अस्पताल लाया गया तो फिर काजोली व उसके पति को अस्पताल से गायब कर दिया गया। मासूम के निदेशक ने इस पूरे मामले की न्यायिक जांच की मांग की है। इस पूरी रिपोर्ट को आप मासूम के वेबसाईट पर देख सकते हैं।
यह तो महज बानगी है महिलाओं पर अत्याचार के। बंगाल के नंदीग्राम में १४ मार्च २००७ को महिलाओं के साथ नृशंस कृत्य तो लालसलाम ब्लागस्पाट डाट काम पर भी दर्ज है। सालाना आपराधिक आंकड़ों पर नजर डालें तो सबसे ज्यादा अत्याचार की शिकायतें देशभर में महिलाओं व बच्चों के खिलाफ ही होती हैं। क्या इन आंकड़ों से निकली चीख भी हमारी चुनी हुई कल्याणकारी लोकतांत्रिक सरकारों को सुनाई भी नहीं देती हैं। या फिर राजनैतिक फितरत में उलझी सरकारों को हमारी सुरक्षा की ही परवाह नहीं है।
आर्थिक रूप से मालामाल पंजाब और हरियाणा का एक ऐसा बदसूरत चेहरा भी है, जिसे देखकर मानवता शर्म से पानी-पानी हो जाए। आपको यह जानकर हैरत होगी कि पश्चिम बंगाल और असम से पंजाब व हरियाणा जैसे राज्यों के लिए लड़कियों की तस्करी इसलिए की जाती है क्योंकि इनसे बच्चा चाहिए। यहां इन लड़कियों का तब तक यौन शोषण किया जाता है, जब तक वह लड़का पैदा न कर दें।
संयुक्त राष्ट्र विकास कोष के एक अध्ययन 'दक्षिण एशिया में मानव तस्करी और एचआईवी-इनकी संवदेनशीलता और उनके नियंत्रण के लिए उठाए जाने वाले कदमों की तलाश' रिपोर्ट में कहा गया है कि पश्चिमी बंगाल और असम से पंजाब व हरियाणा जैसे प्रगतिशील राज्यों में बच्चियों और महिलाओं की तस्करी के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है। इस वजह से इन दोनों राज्यों के लिंगानुपात में काफी अंतर आ गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पंजाब और हरियाणा में तस्करी करके लाए जाने के बाद इन महिलाओं का शोषण होता है। उनसे पुत्र पैदा करने के लिए जबरदस्ती की जाती है।
इस संबंध में सबसे दुखदाई पहलू यह है पुत्र पैदा होने के बाद उसकी मां को छोड़ दिया जाता है या फिर किसी दूसरे पुरुष को सौंप दिया जाता है। इस अध्ययन में भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, श्रीलंका और नेपाल को शामिल किया गया है। तस्करी करके लाई गई महिलाओं में युवा महिलाओं की संख्या अधिक है क्योंकि इनकी मांग बहुत है।
अध्ययन ने देश में ऐसे हालात को बेहद 'जटिल' बताते हुए कहा है कि आंतरिक और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानव तस्करी की दर काफी ऊंची है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बड़ी संख्या में भारत, नेपाल और बांग्लोदश में फर्जी विवाह के जरिए लड़कियों को खरीदा जाता है।
दक्षिण एशिया की कुंवारी लड़कियों की मांग बढ़ने की मुख्य वजह एक प्रचलित धारणा भी है कि इनके साथ यौन संबंध बनाने से यौन रोग ठीक हो जाते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण एशिया दुनिया में मानव तस्करी के मामले में दूसरे नंबर पर आता है। यहां से हर साल करीब डेढ़ से दो लाख व्यक्तियों की तस्करी की जाती है। भारत और पाकिस्तान से मुख्य रूप से 16 साल से कम आयु के बच्चों की तस्करी होती है। भारत में बड़ी संख्या में बांग्लादेश और नेपाल से भी महिलाएं तस्करी करके लाई जाती हैं। फिर उन्हें वेश्यावृत्ति के धंधे में धकेला जाता है। यह धंधा खासकर मुंबई और कोलकाता में चलता है।
रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा किया गया है कि भारत में कंट्टरपंथी संगठन 8 से 15 साल के बच्चों की भर्तियां कर रहे हैं। इन बच्चों का इस्तेमाल भोजन की व्यवस्था करने और अपहरण के मामले में चिंट्ठी आदि पहुंचाने में किया जाता है। बच्चों की भर्तियों के पीछे ऐसे संगठनों का मकसद है कि बच्चों पर पुलिस का शक नहीं जाता। हाल ही में पीपुल्स वार ग्रुप (अब कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया-माओवादी) से जुड़े ऐसे ही बच्चों को पकड़ा गया है।
आपको शायद खुद पर यकीन नहीं हो पाएगा कि यह वही हिन्दुस्तान है जहां नारियों को देवियों की तरह पूजा जाता है। हमारी संस्कृति और परम्पराओं में मातृदेवी जैसा सम्मान जहां औरतों को हासिल हो वहां ऐसे कुकृत्य करने वालों को भारतीय तो दूर आदमी भी मानने को दिल नहीं करता। लगता है इनकी नजर में औरत की अहमियत महज बच्चे पैदा करने की मशीन भर है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के हिसाब से तो भारत सरकार और असम व पश्चिम बंगाल की सरकारों को कठोर कदम उठाने चाहिए। मगर अफसोस तो यह है कि गरीबी, मजबूरी में इन हैवानों के चंगुल में फंसी जा रहीं असम व बंगाल की बालाओं की कराह भी ये सरकारें नहीं सुन पा रहीं हैं। सुनाई भी कैसे देगी ? जहां औरतें इन सरकारों की पुलिस की ही जुल्म की शिकार हैं वहां फरियाद भी करें तो किससे ? बच्चा पैदा करने की रिपोर्ट से ज्यादा दिल दहला देने वाली घटनाएं भी अपने लोकतांत्रिक भारत में प्रगतिशील सरकारों के लिये चुनौती बनी हुईं हैं। आखिर कब इनके कानों पर रेंगेंगी जूं ?
घर से उठा ले गए, थाने में लूटी अस्मत
मासूम इंडिया डाट काम की एक रिपोर्ट तो बंगाल में औरतों पर अत्याचार और कानून व व्यवस्था की पोल खोल देने के लिये काफी है। मासूम के निदेशक कीर्तिराय ने अपनी वेबसाइट पर पश्चिम बंगाल के उत्तर चौबीस परगना के गाईघाटा थाने की पुलिस की कानून की धज्जियां उड़ाने की धृष्टता की रिपोर्ट प्रकाशित की है। जिले के दोगाछिया गांव की २० साल की काजोली दास ( स्वपन दास की पत्नी) को गाईघाटा थाने की पुलिस ने नौ दिन तक लाकअप में रखा और उसे कोर्ट में पेश करने की भी जरूरत नहीं समझी। ताज्जुब तो यह है कि बिना किसी पुलिस केस के उसे आधी रात को गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तारी के लिये महिला पुलिस भी लाने की जरूरत नहीं समझी गई। जब काजोली को टार्चर व कथित यौन शोषण के लिये अस्पताल लाया गया तो फिर काजोली व उसके पति को अस्पताल से गायब कर दिया गया। मासूम के निदेशक ने इस पूरे मामले की न्यायिक जांच की मांग की है। इस पूरी रिपोर्ट को आप मासूम के वेबसाईट पर देख सकते हैं।
यह तो महज बानगी है महिलाओं पर अत्याचार के। बंगाल के नंदीग्राम में १४ मार्च २००७ को महिलाओं के साथ नृशंस कृत्य तो लालसलाम ब्लागस्पाट डाट काम पर भी दर्ज है। सालाना आपराधिक आंकड़ों पर नजर डालें तो सबसे ज्यादा अत्याचार की शिकायतें देशभर में महिलाओं व बच्चों के खिलाफ ही होती हैं। क्या इन आंकड़ों से निकली चीख भी हमारी चुनी हुई कल्याणकारी लोकतांत्रिक सरकारों को सुनाई भी नहीं देती हैं। या फिर राजनैतिक फितरत में उलझी सरकारों को हमारी सुरक्षा की ही परवाह नहीं है।
Monday, 13 August 2007
पत्रकारों पर हमला : एकजुट होइए या फिर पिटते रहिए
बेहद शर्म की बात है पत्रकारों पर हमला। दरअसल निरंकुश होने की चाह वाली किसी भी सत्ता की आंख में सबसे पहले पत्रकार, लेखक और बुध्दिजीवी ही खटकता है। लोकतंत्र को यही त्रिवर्ग ही जिंदा रखे हुए है। इनमें से जनता की आवाज को सत्ता के गलियारों तक और सत्ता की पोल खोलकर जनता तक पहुंचाने की सबसे अहम कड़ी पत्रकार शासकीय अत्याचार का सबसे पहले निशाना बनता है। यही वह आवाज है जो दबा दी जाए तो शासकीय मनमानी को खुली छूट मिल जाती है। यही वजह रही है कि पत्रकारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता छीनने की कई बार कोशिश भी की जा चुकी है। पत्रकारों को मारा-पीटा जाता है या फिर हमेशा के लिए उसकी आवाज दबा दी जाती है। खुद को लोकतांत्रिक होने का दंभ भरने वाली सरकारें आखिर सत्ता और जनता के बीच पारदर्शिता लाने की अहम भूमिका निभाने वाले पत्रकारों, लेखकों व बुध्दिजीवियों को क्यों बर्दाश्त नहीं कर पाती हैं ? अगर यह सच है कि सरकारें और पत्रकारों के साथ का त्रिवर्ग सभी देश और अवाम की प्रगति व खुशहाली चाहते हैं तो आपस में यह खूनी टकराहट क्यों है ? यह ऐसा सवाल है जिसपर भारत के चौथे स्तंभ को गंभीरता से विचार करना चाहिए।
शायद हम खुद इस मुद्दे पर एकजुट नहीं हैं। अगर ऐसा है तो फिर वह दिन भी दूर नहीं जब कोई निरंकुश सत्ता पत्रकारों से उनकी अभिव्यक्ति की वह स्वतंत्रता भी छीन लेगी जो उसे हमेशा खटकती रहती है। कानपुर की ताजा घटना भी थोड़े दिन में ठंडी पड़ जाएगी। हो सकता है मायावती सरकार भी कोई लीपापोती करके पत्रकारों का गुस्सा शांत कर दे। पर क्या यह सथाई समाधान होगा ? शायद नहीं। तो फिर मित्रों अब पूरे देशभर के पत्रकारों को पार्टियों का कारिंदा बनना छोड़कर एकजुट होना पड़ेगा। इतनी ईमानदारी है हममें ? क्या यह संभव है ? अगर नहीं तो पिटते रहिए इसी तरह। जानें भी गंवाते रहिए। ईश्वर आपका भला करे।
शायद हम खुद इस मुद्दे पर एकजुट नहीं हैं। अगर ऐसा है तो फिर वह दिन भी दूर नहीं जब कोई निरंकुश सत्ता पत्रकारों से उनकी अभिव्यक्ति की वह स्वतंत्रता भी छीन लेगी जो उसे हमेशा खटकती रहती है। कानपुर की ताजा घटना भी थोड़े दिन में ठंडी पड़ जाएगी। हो सकता है मायावती सरकार भी कोई लीपापोती करके पत्रकारों का गुस्सा शांत कर दे। पर क्या यह सथाई समाधान होगा ? शायद नहीं। तो फिर मित्रों अब पूरे देशभर के पत्रकारों को पार्टियों का कारिंदा बनना छोड़कर एकजुट होना पड़ेगा। इतनी ईमानदारी है हममें ? क्या यह संभव है ? अगर नहीं तो पिटते रहिए इसी तरह। जानें भी गंवाते रहिए। ईश्वर आपका भला करे।
Sunday, 5 August 2007
बोधिसत्व को सलाम
भाई बाधिसत्व जी
नमस्कार
दो तीन दिन से कंप्यूटर नहीं खोला था, इसीलिए आपको जवाब नहीं दे पाया। क्षमा चाहूंगा। त्रिलोचनजी के पोते मनु का मोबाइल नंबर दे रहा हूं। उम्मीद करता हूं कि मनु से ही त्रिलोचनजी के बेटे अमितजी और बहू ऊषाजी से संपर्क का रास्ता प्रशस्त हो जाएगा। कोई दिक्कत पेश आए तो बेहिचक मुझसे फिर संपर्क साधिएगा। मैं हर पल मुंतजिर हूं आपकी खातिर। बातचीत में आसानी के लिए मनु से मेरा जिक्र कर सकते हैं। मैं जनसत्ता कोलकाता में कार्यरत हूं और मनु भी यहीं कोलकाता में ही हैं। त्रिलोचन जी की महादशा को शायद आपने बेहद संजीदगी से महसूस किया है। आपकी कविता और अब उनके परिजनों की खोज ही इसकी सबसे बडी गवाह है। बेहद आशान्वित हूं कि बोधिसत्व की यह कोशिश हिंदी साहित्य जगत को कुछ तो रोशनी दे सकेगी। धन्यवाद।
मनु का फोन नंबर--- ०९८३०७६६२९९, ०९४३३३५५१३२ अमितजी का फोन नंबर---०९८६८३१८५५२
मनु का फोन नंबर--- ०९८३०७६६२९९, ०९४३३३५५१३२ अमितजी का फोन नंबर---०९८६८३१८५५२
बोधिसत्व चिंतित
भाई बोधिसत्व जी
नमस्कार
दो तीन दिन से कंप्यूटर नहीं खोला था, इसीलिए आपको जवाब नहीं दे पाया। क्षमा चाहूंगा। त्रिलोचनजी के पोते मनु का मोबाइल नंबर दे रहा हूं। उम्मीद करता हूं कि मनु से ही त्रिलोचनजी के बेटे अमितजी और बहू ऊषाजी से संपर्क का रास्ता प्रशस्त हो जाएगा। कोई दिक्कत पेश आए तो बेहिचक मुझसे फिर संपर्क साधिएगा। मैं हर पल मुंतजिर हूं आपकी खातिर। बातचीत में आसानी के लिए मनु से मेरा जिक्र कर सकते हैं। मैं जनसत्ता कोलकाता में कार्यरत हूं और मनु भी यहीं कोलकाता में ही हैं। त्रिलोचन जी की महादशा को शायद आपने बेहद संजीदगी से महसूस किया है। आपकी कविता और अब उनके परिजनों की खोज ही इसकी सबसे बडी गवाह है। बेहद आशान्वित हूं कि बोधिसत्व का यह कोशिश हिंदी साहित्य जगत को कुछ तो रोशनी दे सकेगी। धन्यवाद।
मनु का फोन नंबर--- ०९८३०७६६२९९, ०९४३३३५५१३२
अमितजी का फोन नंबर---०९८६८३१८५५२
मान्धाता सिंह
कोलकाता
फोन--०३३-२५२९२२५२
Wednesday, 1 August 2007
संकट में हैं 400 जड़ी-बूटियाँ
भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्घति आयुर्वेद का लोहा दुनिया मान रही है, लेकिन यह चिंता में डालने वाली बात है कि देश में 400 से ज्यादा औषधीय पौधे खत्म होने की कगार तक पहुँच चुके हैं।राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण के चेयरमैन एस। कन्नाईयन कहते हैं कि देश की समृद्घ औषधीय परंपरा में से 427 ऐसी जड़ी-बूटियाँ हैं जिन पर खत्म होने का खतरा मंडरा रहा है। यदि पौधों को इसी तरह जड़ से उखाड़ने का क्रम जारी रहा तो वह दिन दूर नहीं जब औषधीय पौधों की प्रजाति ही खत्म हो जाएगी। वे कहते हैं कि उपयोग के लिए पौधों की केवल पत्तियाँ ही तोड़ना चाहिए।विश्व स्वास्थ्य संगठन के सर्वेक्षण के अनुसार देश में 80 फीसदी लोग इलाज के लिए देसी और पारंपरिक पद्घतियों पर भरोसा करते हैं इसलिए जड़ी-बूटियों की माँग भी काफी बढ़ गई है। विदेशों में निर्यात होने के कारण भी यहाँ के औषधीय पौधों की माँग ज्यादा है। कन्नाईयन कहते हैं कि देश में 15 हजार से ज्यादा तरह के औषधीय पौधे पाए जाते हैं, जो दुनिया में सबसे ज्यादा संख्या में हैं। इसका कारण भारत की जलवायु है। हालाँकि निर्यात के मामले में भारत का स्थान चीन के बाद दूसरा है।भारत से प्रतिवर्ष तीन हजार करोड़ के औषधीय पौधों का निर्यात किया जाता है। इस काम में देश के पाँच सौ से ज्यादा संस्थान लगे हुए हैं।
चीन के बाद भारत का दूसरा नंबर : भारत में 15 हजार तरह के औषधीय पौधे पाए जाते हैं। इनमें करीब सात हजार जड़ी-बूटियाँ आयुर्वेदिक उपचार में काम आती हैं, 700 का उपयोग यूनानी चिकित्सा में किया जाता है और 600 से ज्यादा सिद्घ दवाएँ बनाने में लगती हैं। भारत में औषधीय पौधे सबसे ज्यादा आंध्रप्रदेश, श्रीशैल, भद्राचल, नागारम, तिरूमाला, पेडू्र में पाए जाते हैं। औषधीय पौधों के उत्पादन के बारे में यदि एशियाई देशों का हिस्सा देखा जाए तो यह दुनिया में 16 फीसदी है जो करीब 62 अरब डॉलर का मार्केट है। एक्सपोर्ट के मामले में चीन का हिस्सा भारत से काफी बड़ा है। एक्सपोर्ट के मामले में भारत का स्थान चीन के बाद आता है। (नईदुनिया)
चीन के बाद भारत का दूसरा नंबर : भारत में 15 हजार तरह के औषधीय पौधे पाए जाते हैं। इनमें करीब सात हजार जड़ी-बूटियाँ आयुर्वेदिक उपचार में काम आती हैं, 700 का उपयोग यूनानी चिकित्सा में किया जाता है और 600 से ज्यादा सिद्घ दवाएँ बनाने में लगती हैं। भारत में औषधीय पौधे सबसे ज्यादा आंध्रप्रदेश, श्रीशैल, भद्राचल, नागारम, तिरूमाला, पेडू्र में पाए जाते हैं। औषधीय पौधों के उत्पादन के बारे में यदि एशियाई देशों का हिस्सा देखा जाए तो यह दुनिया में 16 फीसदी है जो करीब 62 अरब डॉलर का मार्केट है। एक्सपोर्ट के मामले में चीन का हिस्सा भारत से काफी बड़ा है। एक्सपोर्ट के मामले में भारत का स्थान चीन के बाद आता है। (नईदुनिया)
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