जनाब, पहले यह खबर पढ़िए।
आर्थिक रूप से मालामाल पंजाब और हरियाणा का एक ऐसा बदसूरत चेहरा भी है, जिसे देखकर मानवता शर्म से पानी-पानी हो जाए। आपको यह जानकर हैरत होगी कि पश्चिम बंगाल और असम से पंजाब व हरियाणा जैसे राज्यों के लिए लड़कियों की तस्करी इसलिए की जाती है क्योंकि इनसे बच्चा चाहिए। यहां इन लड़कियों का तब तक यौन शोषण किया जाता है, जब तक वह लड़का पैदा न कर दें।
संयुक्त राष्ट्र विकास कोष के एक अध्ययन 'दक्षिण एशिया में मानव तस्करी और एचआईवी-इनकी संवदेनशीलता और उनके नियंत्रण के लिए उठाए जाने वाले कदमों की तलाश' रिपोर्ट में कहा गया है कि पश्चिमी बंगाल और असम से पंजाब व हरियाणा जैसे प्रगतिशील राज्यों में बच्चियों और महिलाओं की तस्करी के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है। इस वजह से इन दोनों राज्यों के लिंगानुपात में काफी अंतर आ गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पंजाब और हरियाणा में तस्करी करके लाए जाने के बाद इन महिलाओं का शोषण होता है। उनसे पुत्र पैदा करने के लिए जबरदस्ती की जाती है।
इस संबंध में सबसे दुखदाई पहलू यह है पुत्र पैदा होने के बाद उसकी मां को छोड़ दिया जाता है या फिर किसी दूसरे पुरुष को सौंप दिया जाता है। इस अध्ययन में भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, श्रीलंका और नेपाल को शामिल किया गया है। तस्करी करके लाई गई महिलाओं में युवा महिलाओं की संख्या अधिक है क्योंकि इनकी मांग बहुत है।
अध्ययन ने देश में ऐसे हालात को बेहद 'जटिल' बताते हुए कहा है कि आंतरिक और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानव तस्करी की दर काफी ऊंची है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बड़ी संख्या में भारत, नेपाल और बांग्लोदश में फर्जी विवाह के जरिए लड़कियों को खरीदा जाता है।
दक्षिण एशिया की कुंवारी लड़कियों की मांग बढ़ने की मुख्य वजह एक प्रचलित धारणा भी है कि इनके साथ यौन संबंध बनाने से यौन रोग ठीक हो जाते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण एशिया दुनिया में मानव तस्करी के मामले में दूसरे नंबर पर आता है। यहां से हर साल करीब डेढ़ से दो लाख व्यक्तियों की तस्करी की जाती है। भारत और पाकिस्तान से मुख्य रूप से 16 साल से कम आयु के बच्चों की तस्करी होती है। भारत में बड़ी संख्या में बांग्लादेश और नेपाल से भी महिलाएं तस्करी करके लाई जाती हैं। फिर उन्हें वेश्यावृत्ति के धंधे में धकेला जाता है। यह धंधा खासकर मुंबई और कोलकाता में चलता है।
रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा किया गया है कि भारत में कंट्टरपंथी संगठन 8 से 15 साल के बच्चों की भर्तियां कर रहे हैं। इन बच्चों का इस्तेमाल भोजन की व्यवस्था करने और अपहरण के मामले में चिंट्ठी आदि पहुंचाने में किया जाता है। बच्चों की भर्तियों के पीछे ऐसे संगठनों का मकसद है कि बच्चों पर पुलिस का शक नहीं जाता। हाल ही में पीपुल्स वार ग्रुप (अब कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया-माओवादी) से जुड़े ऐसे ही बच्चों को पकड़ा गया है।
आपको शायद खुद पर यकीन नहीं हो पाएगा कि यह वही हिन्दुस्तान है जहां नारियों को देवियों की तरह पूजा जाता है। हमारी संस्कृति और परम्पराओं में मातृदेवी जैसा सम्मान जहां औरतों को हासिल हो वहां ऐसे कुकृत्य करने वालों को भारतीय तो दूर आदमी भी मानने को दिल नहीं करता। लगता है इनकी नजर में औरत की अहमियत महज बच्चे पैदा करने की मशीन भर है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के हिसाब से तो भारत सरकार और असम व पश्चिम बंगाल की सरकारों को कठोर कदम उठाने चाहिए। मगर अफसोस तो यह है कि गरीबी, मजबूरी में इन हैवानों के चंगुल में फंसी जा रहीं असम व बंगाल की बालाओं की कराह भी ये सरकारें नहीं सुन पा रहीं हैं। सुनाई भी कैसे देगी ? जहां औरतें इन सरकारों की पुलिस की ही जुल्म की शिकार हैं वहां फरियाद भी करें तो किससे ? बच्चा पैदा करने की रिपोर्ट से ज्यादा दिल दहला देने वाली घटनाएं भी अपने लोकतांत्रिक भारत में प्रगतिशील सरकारों के लिये चुनौती बनी हुईं हैं। आखिर कब इनके कानों पर रेंगेंगी जूं ?
घर से उठा ले गए, थाने में लूटी अस्मत
मासूम इंडिया डाट काम की एक रिपोर्ट तो बंगाल में औरतों पर अत्याचार और कानून व व्यवस्था की पोल खोल देने के लिये काफी है। मासूम के निदेशक कीर्तिराय ने अपनी वेबसाइट पर पश्चिम बंगाल के उत्तर चौबीस परगना के गाईघाटा थाने की पुलिस की कानून की धज्जियां उड़ाने की धृष्टता की रिपोर्ट प्रकाशित की है। जिले के दोगाछिया गांव की २० साल की काजोली दास ( स्वपन दास की पत्नी) को गाईघाटा थाने की पुलिस ने नौ दिन तक लाकअप में रखा और उसे कोर्ट में पेश करने की भी जरूरत नहीं समझी। ताज्जुब तो यह है कि बिना किसी पुलिस केस के उसे आधी रात को गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तारी के लिये महिला पुलिस भी लाने की जरूरत नहीं समझी गई। जब काजोली को टार्चर व कथित यौन शोषण के लिये अस्पताल लाया गया तो फिर काजोली व उसके पति को अस्पताल से गायब कर दिया गया। मासूम के निदेशक ने इस पूरे मामले की न्यायिक जांच की मांग की है। इस पूरी रिपोर्ट को आप मासूम के वेबसाईट पर देख सकते हैं।
यह तो महज बानगी है महिलाओं पर अत्याचार के। बंगाल के नंदीग्राम में १४ मार्च २००७ को महिलाओं के साथ नृशंस कृत्य तो लालसलाम ब्लागस्पाट डाट काम पर भी दर्ज है। सालाना आपराधिक आंकड़ों पर नजर डालें तो सबसे ज्यादा अत्याचार की शिकायतें देशभर में महिलाओं व बच्चों के खिलाफ ही होती हैं। क्या इन आंकड़ों से निकली चीख भी हमारी चुनी हुई कल्याणकारी लोकतांत्रिक सरकारों को सुनाई भी नहीं देती हैं। या फिर राजनैतिक फितरत में उलझी सरकारों को हमारी सुरक्षा की ही परवाह नहीं है।
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