Wednesday, 1 August 2007

संकट में हैं 400 जड़ी-बूटियाँ

भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्घति आयुर्वेद का लोहा दुनिया मान रही है, लेकिन यह चिंता में डालने वाली बात है कि देश में 400 से ज्यादा औषधीय पौधे खत्म होने की कगार तक पहुँच चुके हैं।राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण के चेयरमैन एस। कन्नाईयन कहते हैं कि देश की समृद्घ औषधीय परंपरा में से 427 ऐसी जड़ी-बूटियाँ हैं जिन पर खत्म होने का खतरा मंडरा रहा है। यदि पौधों को इसी तरह जड़ से उखाड़ने का क्रम जारी रहा तो वह दिन दूर नहीं जब औषधीय पौधों की प्रजाति ही खत्म हो जाएगी। वे कहते हैं कि उपयोग के लिए पौधों की केवल पत्तियाँ ही तोड़ना चाहिए।विश्व स्वास्थ्य संगठन के सर्वेक्षण के अनुसार देश में 80 फीसदी लोग इलाज के लिए देसी और पारंपरिक पद्घतियों पर भरोसा करते हैं इसलिए जड़ी-बूटियों की माँग भी काफी बढ़ गई है। विदेशों में निर्यात होने के कारण भी यहाँ के औषधीय पौधों की माँग ज्यादा है। कन्नाईयन कहते हैं कि देश में 15 हजार से ज्यादा तरह के औषधीय पौधे पाए जाते हैं, जो दुनिया में सबसे ज्यादा संख्या में हैं। इसका कारण भारत की जलवायु है। हालाँकि निर्यात के मामले में भारत का स्थान चीन के बाद दूसरा है।भारत से प्रतिवर्ष तीन हजार करोड़ के औषधीय पौधों का निर्यात किया जाता है। इस काम में देश के पाँच सौ से ज्यादा संस्थान लगे हुए हैं।
चीन के बाद भारत का दूसरा नंबर : भारत में 15 हजार तरह के औषधीय पौधे पाए जाते हैं। इनमें करीब सात हजार जड़ी-बूटियाँ आयुर्वेदिक उपचार में काम आती हैं, 700 का उपयोग यूनानी चिकित्सा में किया जाता है और 600 से ज्यादा सिद्घ दवाएँ बनाने में लगती हैं। भारत में औषधीय पौधे सबसे ज्यादा आंध्रप्रदेश, श्रीशैल, भद्राचल, नागारम, तिरूमाला, पेडू्र में पाए जाते हैं। औषधीय पौधों के उत्पादन के बारे में यदि एशियाई देशों का हिस्सा देखा जाए तो यह दुनिया में 16 फीसदी है जो करीब 62 अरब डॉलर का मार्केट है। एक्सपोर्ट के मामले में चीन का हिस्सा भारत से काफी बड़ा है। एक्सपोर्ट के मामले में भारत का स्थान चीन के बाद आता है। (नईदुनिया)

3 comments:

Shastri JC Philip said...

हिन्दुस्तान की आयुर्वेदसंपदा के बारे में इस खबर के लिये शुक्रिया. इस विषय पर और जानकारी जरूर छापें -- शास्त्री जे सी फिलिप

हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info

अनुनाद सिंह said...

आप ने बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दे पर सबका ध्यान खींचा है। 'औषधीय पौधों की पत्तियाँ तो.दनी चाहिये, उन्हे जड़ से नहीं उखाड़ना चाहिये' यह एक छोटी बात है पर इसकी गहराई बहुत अधिक है; चिन्तनीय है।

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

शुक्रिया. इस बात को थोडा जोर्दारी से उठाएं. कायदे से तो इसे एक आन्दोलन का रुप दिया जाना चाहिए.

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