Wednesday, 2 April 2008

दुनिया की सैर पर निकली है ओलिंपिक मशाल


तिब्बत के विरोध के बावजूद शायद चीन को कोई मुश्किल भारतीय उपमहाद्वीप में पेश नहीं आएगी। इसकी एक वजह तो यही है कि नेपाल समेत भारत भी दलाई लामा को संयम से काम लेने की नसीहत देने लगे हैं। एकदम चुप्पी साध रखी माकपा ने साफ तौर पर एकीकृत चीन के समर्थन में बयान दिया है। यह सब उस वक्त हुआ है जब ग्रीस से लाई गई मशाल पूरी दुनिया की सैर के लिए रवाना कर दी गई है। यह साफ संकेत है कि चीन की विधिवत आलिंपिक कराने में भारत और नेपाल भी साथ दे रहे हैं। इसमें तिब्बत की आजादी का सवाल पीछे छूट गया है। आजादी के इस सवाल को भारत की मदद के बगैर अपने या कुछ यूरोपीय देशों के दम पर तिब्बती कितना जिंदा रख पाएंगे यह तो समय ही बताएगा। फिलहाल भारत सरकार चीन के साथ अपने संबंधो को ही तरजीह दे रही है। चीन इसका कितना एहसान मानेगा और सीमा विवाद जैसे मुद्दे पर कितना चुप रहेगा, यह तो ओलिंपिक का मौका बीत जाने के बाद चीन के रवैए से समझ में आएगा। इतिहास गवाह है कि चीन अपने राष्ट्रहित के सवाल पर कभी नरम नहीं पड़ा है। अगर नरम दिशा है तो बाद में धोखा भी दिया है। तिब्बतियों को भाड़ में झोंककर भारत के कुछ हासिल कर पाने में भी शक है। फिलहाल चीन के खिलाफ कुछ बोलकर कांग्रेस सरकार को न तो संकट में डालना चाहती है और न ही माकपा को नाराज करना चाहती है। यह जानकारों का भी मानना है कि मजबूत तिब्बत भारत की सुरक्षा की बेहतर गारंटी है। पता नहीं हमारे रणनीतिकार इस बात को क्यों नजरअंदाज कर रहे हैं। जबकि चीन इस क्षेत्र के सामरिक ठिकानों को हथियाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। अब बफर स्टेट के उस सिद्धांत को ही दरकिनार कर दिया गया जो भारत के सुरक्षा की गारंटी थी। क्या भारत सरकार के इस रवैए से भारत के कब्जा किए क्षेत्र अक्साई चीन समेत १६०० वर्गमील क्षेत्र को चीन लौटा देगा ? यह एकदम मुमकिन नहीं। तो फिर क्या भारत की अस्मिता और सुरक्षा दोनों को तिब्बत का विरोध करके चीन के पास गिरवी रखने की तैयारी है ? अगर नहीं तो किस खुशी में तिब्बत को एकीकृत चीन का हिस्सा बताया जा रहा है ? फिलहाल तो यही लगता है कि दुनिया की सैर को निकली ओलिंपिक मशाल भारतीयों के उन मंसूबों को भी जलाकर खाक कर देगी जिसके तहत वे अभी भी चीन से १९६२ की लड़ाई में हारे भूखंड को वापस लेने की उम्मीद लगाए बैठे हैं।


विरोध और बीजिंग ओलिंपिक

चीन के राष्ट्रपति हू जिन्ताओ ने बीजिंग में कड़ी सुरक्षा के बीच मशाल पुन: प्रज्जवलित कर 29 वें ओलिंपिक खेलों के लिए मशाल रिले की आधिकारिक रूप से शुरुआत की घोषणा कर दी। बीजिंग में होने वाले ओलंपिक की मशाल जलाने की औपचारिक रस्म ग्रीस के ओलंपिया में आयोजित एक भव्य समारोह में संपन्न की गई जहाँ तीन हज़ार साल पहले इन खेलों की शुरूआत हुई थी. ग्रीस में मशाल जलाने की रस्म को दुनिया भर में टेलिविज़न पर दिखाया गया. मशाल को पारंपरिक रूप से एक दर्पण में रखा गया और सूर्य की किरणों से इसे जलाया गया. पोशाक रिहर्सल के वक्त रविवार को आकाश में बादलों और अंधड़ की आशंका की वजह से डर था कि मशाल पारंपरिक रूप से नहीं जल सकेगी. इसी वजह से आयोजकों ने इस रस्म का समय एक घंटे आगे कर दिया था. इस रस्म में हज़ारों लोग शामिल हुए जिनमें बीजिंग ओलंपिक आयोजक कमेटी के प्रमुख ली की और ग्रीस के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भी शामिल थे.

यूनान से जलाई गई मशाल को ३१ मार्च को एक चार्टर्ड विमान से सुबह करीब 9 बजे (स्थानीय समय) चीन पहुँचने के दो घंटे बाद थ्येनआनमन चौक पर हुए समारोह में राष्ट्रपति हू ने मशाल पुन: प्रज्जवलित की और इसे ओलिंपिक चैम्पियन लिउ जियांग को सुपुर्द किया। इसके बाद सबसे बड़ी ओलिंपिक मशाल रिले शुरू हुई। समारोह के दौरान हजारों रंग-बिरंगे गुब्बारे और फाख्ता छोड़ने के आनंदमय माहौल के बीच हू ने कहा कि मैं बीजिंग 2008 ओलिंपिक खेलों के लिए मशाल रिले की घोषणा करता हूँ। यह मशाल रिले कजाक शहर से शुरू होने के बाद 135 शहरों के लिए रवाना हो चुकी है। नई दिल्ली में यह मशाल 17 अप्रैल को पहुँचेगी। ओलिंपिक मशाल पाकिस्तान से होते हुए भारत पहुंचेगी। भारत में मशाल नई दिल्ली से होते हुए बैंकाक के लिए प्रस्थान करेगी।
130 दिन तक एक लाख 37 हजार किमी की यात्रा करने के बाद यह मशाल 8 अगस्त, 2008 को ओलिंपिक के उद्‍घाटन समारोह के लिए बीजिंग के नेशनल स्टेडियम पहुँचेगी। रिले के इतिहास में सबसे ज्यादा मशालधारक इसमें भाग ले रहे हैं।

कैसी है ओलिंपिक मशाल


एल्युमिनियम धातु से बनी मशाल 72 सेंटीमीटर ऊंची व वजन 985 ग्राम है। हवारहित परिस्थितियों में एक मशाल 25-30 सेंमी ऊंची लौ के साथ 15 मिनट तक जल सकती है। मशाल 65 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से चलने वाली हवा का सामना कर सकती है। सूर्य की रोशनी व तेज चमक में भी इस मशाल की तस्वीर ली जा सकती है। यह मशाल पर्यावरण संरक्षण के नियमों का पालन करती है। मशाल के डिजाइन में चीन के कलात्मक व तकनीकी उत्कृष्टता की झलक दिखती है। मशाल का सूत्रवाक्य है ‘जर्नी ऑफ हारमनी’। मशाल पांचों उपमहाद्वीपों की सैर 130 दिन में पूरा करेगी। मशाल की हिमालय यात्रा को ओलिंपिक खेलों के इतिहास में अभूतपूर्व बताया जा रहा है। मई में मशाल माउंट एवरेस्ट (8844.43) पहुंचेगी। इस मिशन की सफलता के लिए मशाल धावकों में काफी उत्साह है। मशाल यात्रा के लिए 21880 धावक विश्व भर से चुने गए। इनमें से 19400 धावक चीन की धरती पर दौड़ेंगे।


मशाल नहीं थामेंगे बाईचुंग भूटिया

ओलंपिक मशाल रिले में भाग नहीं लेने के निर्णय पर भारतीय फुटबाल टीम के कप्तान बाईचुंग भूटिया ने कहा कि वह हिंसा से नफरत करते हैं और तिब्बत की जनता के साथ एकजुटता दिखाने का यही एक रास्ता है।
ओलंपिक मशाल को लेकर तिब्बतियों के विरोध का समर्थन करते हुए भूटिया ने कहा कि मैं उनका समर्थन करता हूं और उनके संघर्ष में साथ हूं। सिक्किम के जांबाज फुटबालर भूटिया ने कहा कि उन्होंने अपने फैसले से पहले ही भारतीय ओलंपिक संघ को अवगत करा दिया है कि 17 अप्रैल को जब ओलंपिक मशाल दिल्ली पहुंचेगी, तो वह इस रिले में शामिल नहीं हो पाएंगे। भूटिया के अलावा उड़न परी पीटी उषा, जीएस रंधावा व मिल्खा सिंह को भी ओलंपिक रिले दौड़ के लिए आमंत्रित किया गया है।

तिब्बत से होकर गुज़रेगी

आठ अगस्त को खेल शुरू होने से पहले ये मशाल माउंट एवरेस्ट से होकर भी गुज़रेगी. प्रदर्शनकारी नहीं चाहते कि यह मशाल माउंट एवरेस्ट से होकर गुज़रे- ये तिब्बत और नेपाल के बीच का इलाक़ा है. लेकिन चीन ने इस रास्ते में कोई बदलाव करने से इंकार कर दिया. तिब्बत की आज़ादी के समर्थकों ने कहा कि वे इस रस्म के दौरान ओलंपिया में भी अपना प्रदर्शन करेंगे. आज़ाद तिब्बत के लिए छात्रों के उप निदेशक तेनज़िंग दोरजी ने कहा कि आईओसी को तिब्बत से गुज़रने से बचना चाहिए. लेकिन चीन के अधिकारियों का कहना है कि यह मार्ग तय हो चुका है और मशाल को पकड़ने वाले भी चुने जा चुके हैं. दलाई गुट के लोगों और दूसरे सभी व्यवधानों को देखते हुए सुरक्षा के सभी इंतज़ाम पूरे कर लिए गए हैं. अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक कमेटी (आईओसी) के अध्यक्ष ने मशाल जलाने की रस्म से पहले समाचार एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस से कहा कि वे तिब्बत और दूसरे कई मुद्दों पर चीन से लगातार बात कर रहे हैं. उन्होंने यह भी कहा था कि कोई मुख्य राजनीतिक नेता बहिष्कार नहीं चाहता.


बीजिंग का पूरा नक्शा ही बदल देगा चीन

ओलंपिक के लिए तैयार बीजिंग का जायजा लेकर लौंटी बीबीसी संवाददाता रेणु अगाल ने जो खाका खींचा है उससे तो यही लगता है कि बीजिंग का पूरा नक्शा ही बदले देगा चीन। बीजिंग 800 सालों से अपनी आँखों के सामने दुनिया को बदलते देख रहा है. बीजिंग ने राजा को रंक और रंक को राजा बनते देखा है. स्वर्ग पुत्रों का शासन देखा है तो साम्यवादी आंदोलन भी देखा है. सांस्कृतिक क्रांति के घाव झेले हैं तो थियानमन चौक पर उठी लोकतंत्र की आवाज़ भी सुनी है. यानी चेहरे की झुर्रियाँ इसके लंबे अनुभव की कहानी कहती हैं. खेलों के महाकुंभ ओलंपिक की तैयारी के ज़रिए पश्चिमी दुनिया को चकित करने की कोशिश हो रही है. चिड़िया के घोंसले जैसा राष्ट्रीय स्टेडियम हो या फिर बर्फ के क्यूब जैसा तैराकी स्टेडियम, एअरपोर्ट की नई इमारत हो या फिर खेलग्राम, नया नवेला ओपेरा हाउस - सभी पर काम चल रहा है. साथ ही साथ यहाँ के पुराने गली-कूचे अब आप ढूढंने भी निकलेंगे तो आपको मिलेंगे नहीं. पुरानी इमारतें ख़ाक मे मिलाई जा रही हैं और नए चीन की उस पर नींव रखी जा रही है. पूरा शहर ही निर्माणाधीन है. नए सपनों का निर्माण, जिसकी नींव में है एक फ़लसफ़ा-सबसे ऊँचा, बड़ा, बेहतर और विशाल होना. पश्चिमी देशों को मानो ये दिखाना हो कि हम किसी से कम नहीं. इतना ही नहीं बीजिंग ओलंपिक की 58 प्रतिशत टिकटें 13 डॉलर से कम की होंगी. एक दुनिया और एक सपना के नारे को चीनी चरितार्थ करने की कोशिश कर रहे हैं.

अंग्रेज़ी सीख रहे हैं टैक्सी चालक

चीन में खेल महाकुंभ हो और संवाद की दिक्कत हो ये कैसे हो सकता है. सरकारी आँकड़ों की मानें तो पिछले साल लगभग 49 लाख बीजिंग निवासी अंग्रेज़ी बोल सकते थे. टैक्सी चालकों को अंग्रेज़ी सिखाई जा रही है. कम से कम हैलो, आपको कहाँ जाना है, कितने पैसे हुए इतना तो वो बता ही सकें. यहां तक की स्थानीय अख़बारों में रोज एक अंग्रेज़ी वाक्य छापा जाता है. टीवी पर कोई सेलेब्रिटी रोज़ अंग्रेज़ी के दो शब्द सिखाने की कोशिश करता है. यानी कोई कसर नही छोड़ी गई. पिछले 10 सालों मे बीजिंग नगर निगम ने 720 अरब रुपए खर्च किए हैं और पिछले पाँच सालों में करीब 600 अरब रुपए सार्वजनिक यातायात पर खर्च किए गए हैं.

तिब्बत समर्थक भारत विरोधी-माकपा

चीन से तिब्बत के विभाजन का समर्थन करने पर माकपा ने राजग समन्वयक जॉर्ज फर्नांडीज और भाजपा पर हमला करते हुए कहा कि क्या वे जम्मू-कश्मीर तथा नगालैंड के विभाजन की माँग का भी समर्थन करेंगे। तिब्बत को लगातार चीन का अंग बताने के केंद्र सरकार के मत की ओर इंगित करते हुए पार्टी महासचिव प्रकाश करात ने कहा कि कुछ भारतीय राजनेता अमेरिका जैसी पश्चिम की कुछ शक्तियों का अनुसरण कर रहे हैं। इससे मानवाधिकार और अल्पसंख्यकों के अधिकारों के नाम पर बड़े राज्यों का विभाजन हो सकता है। करात ने कहा कि सरकार शुरू से एक चीन के सिद्धांत का समर्थन करती आ रही है। इसने ताइवान को कभी अलग देश नहीं माना है। उन्होंने कहा कि सरकार ने अभी भी अपने नजरिये को दोहराया है।

प्रणब की दलाई लामा को नसीहत

दूसरी ओर पश्चिम बंगाल के बहरामपुर में प्रणब मुखर्जी ने कहा कि कहा कि दलाई लामा को ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिससे चीन के साथ भारत के संबंधों को ठेस पहुँचे। तिब्बत में विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों पर चीनी दबाव के बारे में पूर्व रक्षामंत्री जॉर्ज फर्नांडिस के बयान के संबंध में किए गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि हालाँकि अब वे चीन के खिलाफ बोल रहे हैं, लेकिन रक्षामंत्री के तौर पर वे वहाँ खुद गए थे। उन्होंने कहा तिब्बत चीन का स्वायत्त क्षेत्र है।

तिब्बत मामले में यूएन से दखल की अपील

भारत-तिब्बत मैत्री संघ ने तिब्बत में हिंसा और बर्बरता की घटनाओं की जांच कराने तथा तिब्बती बौद्ध गुरु दलाई लामा से बातचीत के लिए चीन की सरकार पर दबाव डालने का संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून से अनुरोध किया है। संघ ने मून को प्रेषित ज्ञापन में कहा है कि संयुक्त राष्ट्र को तिब्बत में अहिंसक बौद्ध भिक्षुओं के खिलाफ चलाए जा रहे दमन चक्र को रोकने और इस पूरे प्रकरण की एक पैनल द्वारा जांच कराने की दिशा में पहल करनी चाहिए। इसके अलावा दलाई लामा से बिना शर्त बातचीत शुरू करने और तिब्बत को सही अर्थो में स्वायत्तता देने के लिए चीन सरकार पर दबाव डालने का भी मून से अनुरोध किया गया है। गौरतलब है कि तिब्बत में गत महीने हुयी हिंसक वारदातों में सैकड़ों बौद्ध भिक्षु और आम तिब्बती हताहत हुए थे। चीन सरकार ने इसके लिए जहां बौद्ध भिक्षुओं को जिम्मेदार ठहराया है, वहीं दलाई लामा ने इसे चीन सरकार का दमन करार दिया है।

भारत में रहने वाले हजारों तिब्बती लगातार इस हिंसक कार्रवाई के विरोध में धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। इसी क्रम में भारत तिब्बत मैत्री संघ ने भी राजधानी के जंतर-मंतर पर चार दिनों तक उपवास और धरना दिया। गत 31 मार्च को समाप्त हुए धरने में लगभग तीन हजार तिब्बतियों ने शिरकत की। भारत-तिब्बत मैत्री संघ ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव के अलावा भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और चीन के राष्ट्रपति हू जिंताओ को भी इस सिलसिले में ज्ञापन दिए हैं। डा. सिंह को दिए ज्ञापन में चीन सरकार और दलाई लामा के बीच नई दिल्ली में बातचीत कराने की पहल करने का अनुरोध किया गया है। ज्ञापन के अनुसार भारत को तिब्बत में मानवाधिकारों के उल्लंघन पर तत्काल रोक लगाने का चीन से अनुरोध करना चाहिए और अगर चीन ऐसा नहीं करता तो उसके साथ राजनयिक एवं आर्थिक संबंधों पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए।
उधर, जिंताओ को प्रेषित ज्ञापन में तिब्बत में मानवाधिकार उल्लंघन पर रोक लगाने और दलाई लामा से बातचीत शुरू करने का अनुरोध किया गया है। संघ ने अपने ज्ञापन में कहा है कि हमारा मानना है कि चीन की सेना और पुलिस ने मिलकर अहिंसक बौद्ध भिक्षुओं के साथ-साथ निर्दोष आम तिब्बतियों के भी खिलाफ जंग छेड़ी हुई है। तिब्बती अपनी आजादी की मांग करके कोई गलत काम नहीं कर रहे हैं। संघ द्वारा जंतर-मंतर पर आयोजित धरने का समापन मशाल जुलूस से हुआ जिसमें बौद्ध मंत्रों का उच्चारण और तिब्बत की मुक्ति के लिए शांति प्रार्थना भी की गई।

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