हैदराबाद में इंटरनेट गवर्नेस फोरम में इंटरनेट पर भारतीय भाषाओं की उपस्थिति पर ही सवाल उठा दिया गया है। यह सवाल एक सर्वे के आधार पर उठाया गया। सर्वे यह किया गया था कि इंटरनेट यूजर किस भाषा के प्रयोग को प्राथमिकता देते हैं ? इसका जवाब आया कि ९९ प्रतिशत यूजर अंग्रेजी चाहते हैं। टेकट्री न्यूज स्टाफ ने यह खबर जारी की है। दो सवाल पूछे गए थे। पहला सवाल था-- कौन सी वह भाषा है जिसे भारतीय सीखना चाहते हैं ? दूसरा सवाल था --- वह कौन सी भाषा है जिसे संपर्क के लिए इंटरनेट पर भारतीय इस्तेमाल करते हैं। यह दूसरा सवाल ही इंटरनेट पर हिंदी समेत भारतीय भाषाओं की नगण्य उपस्थिति की कहानी कहता है। हालांकि दोनों सवालों में जवाब अंग्रेजी ही था।
रेडिफ डाटकाम के सीईओ अजीत बालाकृष्णन ने जो कहा उससे तो भारतीय भाषाओं के यूजर की इंटरनेट पर उपस्थिति और भी शर्मनाक है। बालाकृष्णन ने कहा कि पिठले दस सालों के इंटरनेट यूजर के आंकड़ों को प्रमाण माना जाए तो कहा जा सकता है कि यूजर भारतीय भाषाओं को नहीं चाहते। मालूम हो कि रेडिफ पर ११ भाषाओं में ईमेल की सुविधा उपलब्ध है। और रिपोर्ट के अनुसार ९९ प्रतिशत यूजर अंग्रेजी ईमेल का प्रयोग करते हैं। बालाकृष्णन मानते हैं की भारतीय भाषाओं से संबद्ध यूजर इंटरनेट पर होते हैं मगर उनकी गतिविधियां भाषाई न होकर सिर्फ संदेश भेजने, संगीत डाउनलोड करने, वीडियो या चित्र देखने तक ही सीमित होती है। इनकी गतिविधियां भाषाई लेखन या प्रयोग के स्तर पर नहीं के बराबर है। दस सालों से भाषाई मेल का सुविधा दिए जाने और उस पर भारी-भरकम निवेश के बावजूद बालाकृष्णन अब मानते हैं कि अपने यूजर को ११ भाषाओं में सुविधा मुहैया कराना निरर्थक रहा। फिर भी उन्हें उम्मीद है कि जब इंटरनेट शहरों की सीमा तोड़कर गांवों में पहुंचेगा तो शायद क्षेत्रीय भाषाओं का प्रयोग बढ़े।
भाषाई यूजर क्यों मजबूर है अंग्रेजी अपनाने को ?
इस सर्वे से जो तस्वीर सामने आई हो मगर एक बात तो यह साफ है कि भाषाई और उसमें भी हिंदी यूजर की इंटरनेट बेशुमार वृद्धि हुई है। अखबारों के इंटरनेट संस्करण, हिंदी के तमाम पोर्टल, भाषाई पत्र-पत्रिकाएं अब इंटरनेट पर माजूद हैं। बालाकृष्णन साहब से मैं पूछना चाहता हूं कि क्या यह सब इंटरनेट पर भाषागत उपस्थिति के प्रमाण नहीं हैं। बेशक अंग्रेजी की तुलना में कम हैं मगर इतनी निराशाजनक भी स्थिति भी नहीं है जितना उनको दिख रही है। हालांकि कुछ बातें तो सच्चाई से कबूल करने में कोई हर्ज नहीं कि हिंदी में इंटरनेट पर सामग्री इतनी कम उपलब्ध हैकि अंततः अंग्रेजी का ही सहारा लेना पड़ता है। लेकिन बालाकृष्णन खुद अपनी अंतरआत्मा से पूछें कि हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओं में इंटरनेट पर मौलिक सामग्री उपलब्ध कराने की कोशिश हो रही है जितनी अंग्रेजी के लिए की जा रही है। अगर नहीं तो सर्वे में संसाधनों को भी सामने रखकर यूजर का प्रतिशत निकाला जाना चाहिए था। ऐसे में इस सर्वें की कितनी प्रमाणिकता मानी जाए।
दूसरा सवाल इंटरनेट पर हिंदी या भाषाई यूजर की मुश्किलों पर गौर न करने का है। अभी कुछ ही साल हुए हैं जब हिंदी समेत दूसरी भारतीय भाषाओँ के लिए इंटरनेट पर सुविधाएं चालू की गईँ। क्या सर्वे में इस बात का ध्यान नहीं रखा जाना चाहिए था। भला हो गूगल का जिसने हिंदी या दूसरी भारतीय भाषाओं को इंटरनेट पर फलने-फूलने का तकनीकी साधन मुहैया कराया। हिंदी के पोर्टल वेबदुनिया भारतीय भाषाओँ और हिंदी को इंटरनेट पर और सुगम बना दिया मगर यूनिनागरी के जरिए हिंदी की क्रांति का सेहरा तो गूगल को बांधा जाना चाहिए। चलिए कम से कम गूगल ने तो अभी तक हिंदी या अन्य भारतीय भारतीय भाषाओँ पर अपने प्रयोग को निर्थक प्रयास नहीं बताया है। अब सिफी निराश है तो उसे अपने प्रयासों की फिर से समीक्षा करनी चाहिए।
हिंदी में ईमेल अब भी आसान नहीं
सारे प्रयासों के बावजूद टेढ़ी खीर है हिंदी या भारतीय भाषाओं में मेल लिखना। हालांकि हिंदयुग्म जैसे ब्लाग संचालकों, कई तकनीकी दक्षता हासिल किए ब्लागरों ने लोगों को हिंदी लिखने के लिए खूब मदद की। फोन पर निशुल्क हिंदी लिखना सिखाने का तो हिंदयुग्म ने बीड़ा ही उठा लिया है। हिंदी भारत समूह, हिंदी इंटरनेट समूह, हिंदी भाषा समूह और हजारों हिंदी ब्लाग जैसे प्रयास ने सक्रिय तौर पर हिंदी इंटरनेट यूजर को प्रोत्साहित किया है मगर हिंदी लिखने की तकनीकी समस्या इन्हें रोमन या सीधे अंग्रेजी लिखने पर मजबूर करती रहती है। इस कारण हतोत्साहित लोग भी अंग्रेजी की गणना में शामिल हैं।
2 comments:
उपरोक्त तथ्य तो चिंताजनक है | लेकिन अब गूगल द्वारा हिन्दी टाईपिंग टूल उपलब्ध कराने के बाद हिन्दी का उपयोग काफी बढ़ा है और आने वाले समय में परिस्थितयां काफी बदलेगी | हिन्दी का प्रचार प्रसार भी बढेगा | अब तो हिन्दी विरोधी अलगाववादी भी हिन्दी सिखने लगे है |
Kuch mahatvpurna tathyon se avgat karane ke liye dhanyawd.
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