Friday 20 May 2011

शून्य से बंगाल की पहली मुख्यमंत्री तक का ममता का सफर


जुझारू तेवर और सादगी व ईमानदारी की मिशाल बनकर लड़ीं

   जैसे ही घड़ी में दोपहर को घड़ी की सुईयां एक बजकर एक मिनट पर पहुंची ममता बनर्जी भी शपथ ग्रहण के लिए मंच पर पहुंच चुकी थीं। गर्मजोशी से राज्यपाल व शपथग्रहण समारोह में आमंत्रित अतिथियों का अभिवादन करके पश्चिम बंगाल की नई मुख्‍यमंत्री के तौर पर पद और गोपनीयता की शपथ ली। शपथ पश्चिम बंगाल के राज्यपाल एमके नारायणन ने दिलाई। ममता ने बांग्ला में शपथ ग्रहण किया। इसके साथ ही ममता राज्य की 11 वीं और पहली महिला मुख्यमंत्री बन गईं। शपथ ग्रहण समारोह राजभवन में आयोजित किया गया। ममता के बाद अमित मित्रा, मनीष गुप्ता, सुब्रत मुखर्जी, अब्दुल करीम चौधरी, उपेंद्र विश्वास, जावेद खान, साधन पांडेय , सावित्री मित्रा, मदन मित्रा और नूर आलम चौधरी सहित 42 विधायकों ने मंत्री पद की शपथ ली। इनमें तृणमूल कांग्रेस के ३५ कांग्रेस के ७ विधायक थे। शपथ ग्रहण के बाद शाम करीब 4 बजे ममता बनर्जी ने राजभवन में राज्‍यपाल से मुलाकात की। इसके बाद वह राइटर्स बिल्डिंग पैदल ही रवाना हुईं। उनके साथ करीब 1 हजार समर्थक भी चल रहे थे। इसके बाद ममता ने कोलकाता के राइटर्स बिल्डिंग में नई कैबिनेट की पहली बैठक की।

  पश्चिम बंगाल में 34 साल बाद वामपंथी सरकार को हराकर तृणमूल कांग्रेस सत्तारूढ़ हुई है। इसके साथ कांग्रेस का भी गठबंधन है। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी के साथ गृहमंत्री पी चिदंबरम कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए। बिमान बोस, रक्षा मंत्री एके एंटनी भी ममता को बधाई देने पहुंचे। दिलचस्प बात यह रही कि कार्यक्रम में पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य भी शामिल हुए। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह विदेश यात्रा के कारण इस कार्यक्रम में शिरकत नहीं कर पाए जबकि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी किसी और कारण से समारोह में शामिल नहीं हुईं।

जहां हुई थी बेइज्जती वहीं अब शान से पहुंचीं ममता


पश्चिम बंगाल में वामपंथियों का किला ध्वस्त करने के बाद धुन की पक्की ममता बनर्जी शान से शुक्रवार २० मई को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर रॉयटर्स बिल्डिंग में प्रवेश किया। कभी इसी रॉयटर्स बिल्डिंग में ममता बनर्जी को जीवन की सबसे बड़ी बेइज्जती का सामना करना पड़ा था। पुलिस ने ममता बनर्जी को इस बिल्डिंग से बाल पकड़कर बाहर निकाला था और लॉकअप में बंद कर दिया था। ममता का जुर्म सिर्फ यह था कि वो एक गूंगी बहरी लड़की के बलात्कार के मामले में न्याय चाहती थीं।

पश्चिम बंगाल के नदियाया जिले के फूलिया गांव की रहने वाली गूंगी बहरी लड़की दीपाली बसक का एक सीपीएम कार्यकर्ता ने बलात्कार किया था। ममता बनर्जी ने 1992 के इस मामले को रॉयटर्स बिल्डिंग में उठाने की कोशिश की थी। वो दीपाली को लेकर सचिवालय पहुंची थी और तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु से मिलना चाहती थी। ममता ने ज्योति बसु से मिलने के लिए पहले समय नहीं लिया था इसलिए उन्हें उनसे नहीं मिलने दिया गया बल्कि पुलिस ने ममता के साथ बदतमीजी की। 1992 की इस घटना के बाद ममता कभी भी रॉयटर्स बिल्डिंग में नहीं गईं और न ही उन्होंने कभी अपने बाल ठीक से बांधे।

दीपाली का क्या हुआ
दीपाली का बलात्कार एक सीपीएम कार्यकर्ता ने किया था जो बलात्कार के बाद गांव छोड़कर फरार हो गया। पुलिस ने भी इस मामले में दिलचस्पी नहीं ली। ममता बनर्जी ने मुद्दों को कलकत्ता में तो उठाया लेकिन वो भी कभी उससे मिलने फूलिया नहीं पहुंची। कुछ नेता दीपाली के घर पहुंचे लेकिन बंगाल ने धीरे-धीरे उसे भुला दिया। बलात्कार की शिकार दीपाली गर्भवती हो गई थी। उसने एक बेटी को जन्म दिया जो एक आश्रम में पल रही है। दो साल पहले सांप के काटने से दीपाली की मौत हो गई। दीपाली का परिवार अभी भी न्याय की आस लगाए बैठा है।

क्यों अलग हैं ममता


पश्चिम बंगाल में 34 साल से सत्ता में बने हुए वामपंथियों के ख़िलाफ़ एक बड़ा राजनीतिक युद्ध लड़ने के बाद ममता बनर्जी आगे की योजनाएँ बना रही हैं. कहने को इंदिरा गांधी से लेकर सोनिया गांधी, मायावती, उमा भारती और महबूबा मुफ़्ती से जयललिता तक, भारत में महिला राजनेताओं की बड़ी फ़ेहरिस्त है. लेकिन ममता अलग हैं. इंदिरा गांधी के पीछे जवाहर लाल नेहरु थे, सोनिया के पीछे राजीव गांधी, मायावती के पीछे कांशी राम, उमा भारती के पीछे पहले विजयाराजे सिंधिया और बाद में गोविंदाचार्य, महबूबा मुफ़्ती मुफ़्ती मोहम्मद सईद की बेटी हैं तो जयललिता एमजीआर की उत्तराधिकारी हैं. लेकिन ममता के पीछे किसी भी ऐसे बड़े पुरुष राजनेता का नाम नहीं लिया जा सकता जिसके बिना वो वहां पहुँच सकती थीं, जहाँ वो आज हैं. आज जब ममता बोलती है तो उनके शत्रु तक ध्यान से सुनते हैं. वो देश में वामपंथ विरोधी आंदोलन का एक मात्र चेहरा हैं."

उग्र स्वभाव, सादे जीवन ने ममता को बनाया बंगाल की दीदी
ममता बनर्जी का जन्म 5 जनवरी 1955 को कोलकाता के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ। ममता ने छात्र जीवन के शुरुआती दिनों से ही राजनीति में दिलचस्पी लेनी शुरु कर दी थी और 1970 के दशक में वो कांग्रेस की सक्रिय कार्यकर्ता बन गई। 1976 में ममता बंगाल महिला कांग्रेस की महासचिव बन गई थीं। जयप्रकाश नारायण की कार के बोनट पर कूदकर ममता सुर्खियों में आई और उसके बाद से बंगाल की राजनीति में अपना स्थान बनाती चली गईं। 1984 के चुनाव में जादवपुर सीट से सोमनाथ चटर्जी को हराकर ममता बनर्जी ने सबसे युवा सांसद बनने का इतिहास रचा।

1989 में कांग्रेस विरोधी माहौल में ममता सांसद का चुनाव हार गई लेकिन 1991 के आमचुनावों में उन्होंने दक्षिण कलकत्ता सीट से जीत दर्ज की। 1996, 1998, 1999, 2004 और 2009 के चुनावों में ममता ने इस सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा। 1991 में राव सरकार में ममता मानव संसाधन विकास, खेल ओर युवा कल्याण तथा महिला एवं बाल विकास मंत्री भी रहीं। हालांकि अप्रैल 1993 में ममता से मंत्रीपद ले लिया गया। ममता बनर्जी अपने उग्र स्वभाव के चलते काफी विवादों में भी रहीं। 1996 में उन्होंने अलिपुर में एक रैली के दौरान अपने गले में काली शाल से फांसी लगाने की धमकी भी दी। जुलाई 1996 में पेट्रोल की कीमतें बढ़ाने के विरोध में ममता सरकार का हिस्सा रहते हुए भी लोकसभा के पटल पर ही विरोध में पालथी मारकर बैठ गई थीं।

ममता ने इसी दौरान तत्कालीन समाजवादी पार्टी सांसद अमर सिंह का कॉलर भी पकड़ लिया था। फरवरी 1997 में रेल बजट पेश होने के दौरान ममता ने रेलमंत्री रामविलास पासवान पर अपनी शाल फेंककर बंगाल की अनदेखी के विरोध में अपने इस्तीफे की घोषणा कर दी थी। हालांकि बाद में उन्होंने इस्तीफा वापस ले लिया था। 11 दिसंबर 1998 को ममता ने समाजवादी पार्टी के सांसद दरोगा प्रसाद सरोज को महिला आरक्षण बिल का विरोध करने पर कॉलर पकड़कर संसद के बाहर खींच लिया था।

कांग्रेस से अलग होकर ममता ने 1 जनवरी 1998 को अपनी पार्टी आल इंडिया तृणमूल कांग्रेस का गठन किया और 1999 में एनडीए की गठबंधन सरकार में वो रेलमंत्री रहीं। हालांकि वो ज्यादा दिनों तक सरकार का हिस्सा नहीं रही और 2001 में सरकार से अलग हो गई। इसके बाद 2004 में चुनाव से पहले वो फिर एनडीए सरकार में आई और खदान एवं कोयला मंत्री रहीं। 2004 चुनाव में ममता की पार्टी की बुरी हार हुई लेकिन 2009 चुनाव में पार्टी ने अपना अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। ममता फिलहाल केंद्र सरकार में रेल मंत्री हैं। आजीवन कुंवारी रहने वाली ममता बनर्जी ने उतार-चढ़ाव भरे अपने अब तक के राजनीतिक जीवन में सादगी को बनाए रखा है और वो गहनों या कपड़ों पर कभी खर्च नहीं करती हैं। पार्टी में दीदी के नाम से जानी जाती हैं और बेहद सादा जीवन व्यतीत करती हैं।

कभी दूध बेचा करती थीं ममता बनर्जी, 28 किताबें लिख चुकी हैं

आज पश्चिम बंगाल की जिम्‍मेदारी संभालने वालीं ममता बनर्जी को कभी घर की जिम्‍मेदारी पूरी करने के लिए दूध बेचना पड़ा था। ममता के पिता स्वतंत्रता सेनानी थे और जब वे बहुत छोटी थीं तभी उनकी मृत्यु हो गई थी। तब दूध बेच कर उन्होंने अपनी विधवा मां की परिवार चलाने में मदद की। ममता ने 70 के दशक में कांग्रेस की छात्र इकाई से अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत की थी। उस समय इस इकाई ने कोलकाता से नक्सलियों को उखाड़ फेंकने में अहम भूमिका निभाई थी।

ममता ने कानून और शिक्षा के अलावा कला में भी डिग्री हासिल की है। ममता को राजनीति में सुब्रत मुखर्जी लाए थे। अब मुखर्जी तृणमूल कांग्रेस में ममता के अनुयायियों में से एक हैं। ममता को 1984 से पहले पश्चिम बंगाल के बाहर कोई नहीं जानता था, लेकिन जब उन्होंने इस साल के अपने पहले लोकसभा चुनाव में ही जादवपुर से माकपा नेता सोमनाथ चटर्जी को पराजित कर दिया तो वे देशभर में मशहूर हो गईं। इसके बाद उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। ममता राजनीति के अलावा चित्रकारी और लेखन में भी रुचि रखती हैं। वे एक अच्छी रसोईया भी हैं। वे धार्मिक भी हैं और हर साल काली पूजा में जरूर हिस्सा लेती हैं।साल 2009 के और इस बार के चुनावों में भी ममता का नारा 'मां, माटी और मानुष' था। बंगाल के जनमानस में ‘पोरीबोर्तन’ का सपना भरने वाली ममता बनर्जी के जीवन का एक अनजाना पहलू यह भी है कि वे एक संवेदनशील कवयित्री हैं। उनकी कविताओं में भी ‘बदरंग’ हो चुकी राजनीति के ‘पोरीबर्तन’ (बदलाव) की छटपटाहट है और साथ-साथ इसकी इस आशय की हुंकार भी है। उनकी अब तक 28 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें से 25 बांग्ला और तीन अंग्रेजी में हैं। इसके अलावा वह कुछ बांग्ला गीत लिखने के साथ-साथ उन गीतों को संगीतबद्ध भी कर चुकी हैं। सहयोगियों के अनुसार ममता चित्रकार भी हैं और लगभग पांच हजार से अधिक चित्र उकेर चुकी हैं। उन चित्रों को बेचने से हुई आय वे अपनी पार्टी के फंड एवं अन्य दान कार्यों के लिए देती रही हैं।


राजनीतिक सफर


जीवन के शुरुआती दिनों से ही राजनीति में दिलचस्पी लेनी शुरु कर दी थी और 1970 के दशक में ममता बनर्जी कांग्रेस की सक्रिय कार्यकर्ता बन गई. 1976 में ममता बंगाल महिला कांग्रेस की महासचिव बन गई थीं. जयप्रकाश नारायण की कार के बोनट पर कूदकर ममता सुर्खियों में आई और उसके बाद से बंगाल की राजनीति में अपना स्थान बनाती चली गईं. 1984 के चुनाव में जादवपुर सीट से सोमनाथ चटर्जी को हराकर ममता बनर्जी ने सबसे युवा सांसद बनने का इतिहास रचा. 1989 में कांग्रेस विरोधी माहौल में ममता सांसद का चुनाव हार गई लेकिन 1991 के आमचुनावों में उन्होंने दक्षिण कलकत्ता सीट से जीत दर्ज की.

1996, 1998, 1999, 2004 और 2009 के चुनावों में ममता ने इस सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा. 1991 में राव सरकार में ममता मानव संसाधन विकास, खेल ओर युवा कल्याण तथा महिला एवं बाल विकास मंत्री भी रहीं. हालांकि अप्रैल 1993 में ममता से मंत्रीपद ले लिया गया. ममता बनर्जी अपने उग्र स्वभाव के चलते काफी विवादों में भी रहीं. 1996 में उन्होंने अलीपुर में एक रैली के दौरान अपने गले में काली शॉल से खुद को फांसी लगाने की धमकी भी दी. जुलाई 1996 में पेट्रोल की कीमतें बढ़ाने के विरोध में ममता सरकार का हिस्सा रहते हुए भी लोकसभा के पटल पर ही विरोध में ज़मीन पर बैठ गई थीं. फरवरी, 1997 में रेल बजट पेश होने के दौरान ममता ने रेलमंत्री रामविलास पासवान पर अपनी शॉल फेंककर बंगाल की अनदेखी के विरोध में अपने इस्तीफे की घोषणा कर दी थी. हालांकि बाद में उन्होंने इस्तीफा वापस ले लिया था.

11 दिसंबर 1998 को ममता ने समाजवादी पार्टी के सांसद दरोगा प्रसाद सरोज को महिला आरक्षण बिल का विरोध करने पर कॉलर पकड़कर संसद के बाहर खींच लिया था. कांग्रेस से अलग होकर ममता ने 1 जनवरी, 1998 को अपनी पार्टी आल इंडिया तृणमूल कांग्रेस का गठन किया और 1999 में एनडीए की गठबंधन सरकार में वो रेलमंत्री रहीं. हालांकि वो ज्यादा दिनों तक सरकार का हिस्सा नहीं रही और 2001 में सरकार से अलग हो गई. इसके बाद 2004 में चुनाव से पहले वो फिर एनडीए सरकार में आई और खदान एवं कोयला मंत्री रहीं. 2004 चुनाव में ममता की पार्टी की बुरी हार हुई लेकिन 2009 चुनाव में पार्टी ने अपना अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया.


बंगाल में 34 साल बाद ईश्वर के नाम पर शपथ


पश्चिम बंगाल में बदलाव के पहले प्रतीक के रूप में तृणमूल कांग्रेस की नई सरकार के कई मंत्रियों ने शुक्रवार को ईश्वर को साक्षी मानकर पद और गोपनीयता की शपथ ली। इससे पहले वामपंथी सरकारों के मंत्री संविधान के प्रति निष्ठा के नाम पर शपथ लेते थे प्रदेश में वर्ष 1977 के बाद से लगातार सत्ता में रहे वाम मोर्चे की राजनीतिक विचारधारा नास्तिक है इसलिए मोर्चे के नेता शपथ ग्रहण के दौरान संविधान के प्रति निष्ठा व्यक्त करते थे। इसके विपरीत तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस के ज्यादातर मंत्रियों ने शुक्रवार को भगवान के नाम पर पद और गोपनीयता की शपथ ली। तृणमूल कांग्रेस के पूर्णेदू बोस जैसे कुछ ही नेताओं ने संविधान के प्रति सत्यनिष्ठा के नाम पर शपथ ली।
एक अन्य बदलाव के तहत प्रदेश की नई मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राजभवन से प्रदेश सचिवालय तक का दो किलोमीटर का रास्ता पैदल चलकर तय किया। इससे पहले वामपंथी शासन के समय नेतागण कार से ही यह रास्ता तय करते थे। ममता बनर्जी ने सभी मंत्रियों को धोती-कुर्ता पहनकर और महिला मंत्रियों को साड़ी पहनकर शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा लेने का निर्देश दिया था।



कभी मारी थी सिर पर लाठी, अब पैरों पर गिरना चाहता है

16 अगस्त 1990 को पश्चिम बंगाल में बंद के दौरान ममता बनर्जी कांग्रेस की रैली लेकर कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) के हाजरा रोड पर निकली थीं। इस रैली के दौरान सीपीआई की यूथ ब्रिगेड डीवाईएफआई का कार्यकर्ताओं ने चारों से घेरकर ममता पर हमला किया था। डीवाईएफआई के कार्यकर्ता लालू आलम ने ममता के सिर पर लाठी मारी थी। ममता के सिर में फ्रैक्चर हुआ था और उन्हें एक महीने अस्पताल में रहना पड़ा था। लालू अब अपने किए पर पछता रहा है। लालू अब अपने किए पर इतना ज्यादा शर्मिंदा है कि वो ममता के पैर पकड़कर माफी मांगना चाहता है। 21 साल पहले ममता पर हमला करने के मामले में लालू पर मुकदमा चल रहा है। 51 वर्षीय आलम का कहना है कि वो निर्दोष है क्योंकि उसका इरादा ममता की हत्या करने का नहीं था। ममता पर हमले के बाद सीपीआई ने भी लालू को पार्टी से निकाल दिया था। लालू आलम फिलहाल एक स्टूडियो चलाता है।


अब बंगाल के लिए खजाना खोलने को तैयार हैं 

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को मिली ऐतिहासिक जीत के बाद अब अप्रवासी भारतीय भी वहां निवेश के लिए अपना खजाना खोलने को तैयार दिख रहे हैं। कनाडा में रह रहे अप्रवासी भारतीयों ने ममता बनर्जी से अपील की है कि वे पश्चिम बंगाल में औद्योगिकीकरण को अपने एजेंडे में खास प्राथमिकता दें।

इस सिलसिले में कनाडा के सेर्टेक्स कार्पोरेशन के अध्यक्ष जय सरकार ने कहा है कि यह वक्त की बात है कि पश्चिम बंगाल बदलाव चाहता है और बदलाव हुआ है। नई सरकार को लोगों की आवाज सुनते हुए तेजी से काम करने की जरुरत है। उन्होंने यह भी कहा है कि वे पश्चिम बंगाल में उद्योग स्थापित करना चाहते हैं। और इसके लिए काम भी कर रहे हैं लेकिन पश्चिम बंगाल की स्थिति को लेकर अब तक वे आशंकित थे। लेकिन उन्हे उम्मीद है कि अब उद्योगों के लिए पश्चिम बंगाला में स्थिति बेहतर होगी।

जय सरकार ने यह भी कहा कि उनके अलावा भी ऐसे तमाम एनआरआई हैं जो बंगाल में निवेश करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। लेकिन इसके लिए वहां सुस्त पड़ी औद्योगिक विकास की रफ्तार में तेजी लाने की जरूरत है। दरअसल जानकारों का यह मानना है कि बीते कई सालों से बंगाल में औद्योगिक मामले में खास तेजी नहीं देखी गई है। ऐसे में वहां निवेश करना उद्योगपतियों के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है। दूसरी ओर इससे मुश्किल दौर से गुजर रही बंगाल की इकोनॉमी को भी मदद मिलेगी। ऐसे में इसे नई सरकार के लिए भी एक सुनहरे मौके के तौर पर देखा जा सकता है।

बंगाल में लहराया ममता का परचम, लेफ्ट के 26 मंत्री हारे

देश के चार राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश की विधानसभाओं के लिए हुए चुनाव में सबसे बड़ा उलटफेर बंगाल में हुआ है, जहां ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस के गठबंधन ने 34 साल से सत्ता पर काबिज वाम मोर्चे का लाल गढ़ ढहा दिया है। विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की अगुवाई वाले गठबंधन ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। सीएम बुद्धदेव भट्टाचार्य सहित लेफ्ट के कई दिग्‍गज अपनी सीट भी नहीं बचा सके हैं। तृणमूल-कांग्रेस गठबंधन 228 सीटें जीत चुका है। चुनाव परिणामों से उत्‍साहित ममता बनर्जी ने राज्‍य के मतदाताओं का शुक्रिया अदा किया है। उन्‍होंने कहा, ‘हमें उन शहीदों को याद करना चाहिए जो तीन दशक तक चले लंबे संघर्ष में मारे गए हैं।’ यह कहते-कहते ममता भावुक हो उठीं और उनकी आंखों से आंसू छलक उठे।

ममता ने दक्षिण कोलकाता में हरीश चटर्जी स्‍ट्रीट स्थित अपने घर के बाहर जुटी समर्थकों की भारी भीड़ को संबोधित करते हुए कहा, 'यह बंगाल की दूसरी आज़ादी है। यह मां, माटी और मानुष की जीत है। यह लोकतंत्र की जीत है। यह वामपंथियों की उत्‍पीड़न पर जीत है। अब राज्‍य में शांति और खुशहाली बहाल होगी।' ममता बनर्जी ने राज्‍य के लोगों से शांति की अपील की है। उन्‍होंने कहा कि यह बेहद खुशी की बात है कि उन्‍हें यह जीत रविंद्र नाथ टैगोर की 150वीं जयंती पर मिली है। उन्‍होंने कहा कि राज्‍य में शिक्षा और स्‍वास्‍थ्‍य से जुड़ी नीतियों में बदलाव की जरूरत है और ऐसा अब किया जाना संभव है। उन्‍होंने पीएम मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्‍यक्ष सोनिया गांधी के समर्थन के लिए शुक्रिया अदा किया।

क्‍यों ढहा लेफ्ट का किला?

लेफ्ट का गढ़ माने जा रहे पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस प्रमुख और रेल मंत्री ममता बनर्जी ने सेंध लगा दी। राज्य में वाम मोर्चे का 34 साल पुराना किला ढहने के संकेत पिछले लोकसभा चुनाव में ही मिल गए थे, जब तृणमूल कांग्रेस का जादू जनता के सिर चढ़कर बोला। 2010 में हुए स्‍थानीय निकाय के चुनावों में तृणमूल कांग्रेस का जोरदार प्रदर्शन रहा था। भूमि अधिग्रहण का शिकार हुए कमजोर गांववालों और किसानों की आवाज बनकर उभरी। वाम मोर्चा की अगुवाई वाली सरकार ने वर्ष 2006 में सत्ता में आने के बाद औद्योगिक नीतियों में बदलाव किया जिसके कारण सरकार के प्रति लोगों का विश्वास घट गया था। इसके बाद ‘नंदीग्राम’ और ‘सिंगूर’ की घटना ने आग में घी का काम किया। तृणमूल कांग्रेस ने इन मौका का भरपूर फायदा उठाया और खासकर ग्रामीण इलाकों में अपनी पकड़ मजबूत की।


पश्चिम बंगाल : सीट- 294
तृणमूल कांग्रेस 186
कांग्रेस 42
माकपा 39
सहयोगी 19
अन्य 08

2 comments:

prerna argal said...

mamta didi ke baare main bahut achchi jaankaari di aapne .wakai tariaf ke kabil hai mamtadi ka jujhaaru byaktitva aur aapka lekh.badhaai sweekaren.



please visit my blog and feel free to comment.thanks.

दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है .
कृपया पधारें
चर्चा मंच

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