हाल
ही में टीवी चैनलों ने खबर दी कि नरेन्द्र मोदी ने उत्तराखंड में बाढ़
राहत कार्यों का जायजा लेने के लिए दौरा किया जिससे एक बड़ा राजनीतिक विवाद
पैदा हो गया। कांग्रेस ने मोदी की तुलना रैम्बो से की और आरोप लगाया कि
उनका दौरा सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का हथकंडा था। मधु किश्वर ने इस
आरोप की सच्चाई जानने का प्रयास किया कि यह एक आपदा को लेकर गंभीर प्रयास
था या कुछ और। उनके हाथ जो जानकारी लगी उससे बहुत से लोग असहमत भी हो सकते
हैं लेकिन जो लोग मोदी को एक रैम्बो या सस्ती लोकप्रियता का भूखा
राजनीतिज्ञ बता रहे हैं, उनकी जानकारी के लिए यहां कुछ विचारणीय तथ्य भी हैं।
*
गुजरात आज एक ऐसी नौकरशाही खड़ी करने में सफल हुआ है जिसने अपनी विशेष
योग्यता को बढ़ाया, टीम भावना पैदा की और सर्वाधिक विपरीत परिस्थितियों में
वांछित परिणाम दिए।
* गुजरात आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (जीडीएमए) एक
पूरी तरह से पेशेवर संस्था है जोकि किसी भी प्राकृतिक या मनुष्यों द्वारा
पैदा की गई आपदा से निपटने में सक्षम है। इसकी सातों दिन, चौबीसों घंटों
निगरानी व्यवस्था और बहु प्रचारित हेल्पलाइन नंबर देश या विदेश में बसे
गुजरातियों को भलीभांति पता हैं।
* मोदी गुजरात के नागरिकों को यह
समझाने में सफल हुए हैं कि सरकार हमेशा ही उनकी सेवा करने के लिए तत्पर है।
इसलिए दुनिया में कहीं भी गुजराती किसी भी आपदा में पड़ता है तो वह सबसे
पहले मुख्यमंत्री के कार्यालय से सम्पर्क करता है।
* इस तथ्य पर भी
गौर कीजिए कि मोदी 17 जून की देर रात को योजना आयोग की बैठक में भाग लेने
के लिए नई दिल्ली आए थे, लेकिन 18 जून को जब बादल फटने और भूस्खलन होने की
खबरें टीवी पर आईं तो उन्होंने स्थिति का जायजा लेने के लिए एक आपात बैठक
बुलाई। उन्हें यह बात अच्छी तरह पता थी कि चारधाम की यात्रा करने वाले
श्रद्धालुओं में हजारों की संख्या में गुजराती भी होंगे। इसलिए तुरंत ही
गुजरात भवन में एक कैम्प ऑफिस खोला गया और दिल्ली स्थित रेजीडेंट कमिश्नर
के दल को जिम्मेदारी सौंपी गई कि वे गुजराती तीर्थयात्रियों के साथ समन्वय
बनाएं।
अठारह की सुबह मोदी ने ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार के डॉ.
प्रणव पंडया से बात की और उनसे कहा कि वे अपने शांतिकुंज परिसर में गुजरात
सरकार द्वारा खोले जाने वाले राहत केन्द्र के लिए जगह और बुनियादी सुविधाओं
को उपलब्ध कराएं। उन्होंने इस परिसर का चुनाव इसलिए किया क्योंकि उन्हें
इसके बारे में अच्छी तरह जानकारी थी और उसके साथ बहुत अच्छा तालमेल था
जिससे थोड़ी ही देर में हजारों लोगों को ठहराने और खिलाने की व्यवस्था की
जा सकती है।
उनके पास परिसर में दो हजार स्वयंसेवक थे और इसके
अलावा देव संस्कृति विश्वविद्यालय के तीन हजार से अधिक छात्र भी थे। परिसर
में एक सुव्यविस्थत अस्पताल भी था। अठारह की शाम तक गुजरात सरकार के राहत
कार्य को चलाने में मदद करने के लिए इंटरनेट कनेक्शन्स, टेलीफोन लाइन्स,
टीवी सेट्स के साथ अन्य तामझाम भी लगा लिया गया। इसलिए जब गुजरात सरकार के
आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अधिकारियों का दल आया तो शांति कुंज में पहुंचने
के मिनटों के अंदर ही वह सक्रिय हो गया।
गुजरात के अधिकारियों के दल
में दो अधिकारी उत्तराखंड से थे। ये अधिकारी थे एडीजीपी बिष्ट और वनसेवा
अधिकारी एस.सी. पंत जिन्हें इस बात की अच्छी जानकारी थी कि उत्तराखंड के
भूभाग में फंसे तीर्थयात्रियों और बचाव दलों को निर्देश दे सकें कि वे
जाने, आने के लिए कौन-सा सबसे सुरक्षित रास्ता लें। एडीजी बिष्ट सीधे
गुप्तकाशी पहुंचे जहां से बचाव कार्य चलाए गए।
एक हड्डीरोग
विशेषज्ञ डॉक्टर के नेतृत्व में सात प्रशिक्षित डॉक्टरों का दल नियुक्त
किया गया जो न केवल प्राथमिक चिकित्सा देने में वरन गंभीर रूप से घायल
लोगों का इलाज करने में भी सक्षम था। मैंने देखा कि स्वयंसेवक न केवल अन्य
राहत शिविरों और रेलवे स्टेशनों पर गए वरन उन्होंने गैर-गुजरातियों को भी
बचाया।
उत्तराखंड में टीम गुजरात को यह बात भलीभांति समझाई गई कि
बचाए गए तीर्थयात्रियों की आने पर न केवल अच्छी तरह देखभाल की जाए वरन
सर्वाधिक आरामदायक तरीके से उन्हें यथासंभव जल्द से जल्द उनके घरों को भेजा
जाए। पीडि़तों की संख्या या होने वाले खर्च की चिंता नहीं की जाए।
हमेशा
की तरह इस समय में भी अधिकारियों को अधिकार दिए गए कि वे मौके पर ही
फैसले लें। उन्हें कितनी बसों या टैक्सियों की जरूरत होगी, तुरंत तय करें।
वे यह भी तय करें कि कितने तीर्थयात्रियों को हवाई जहाज से वापस भेजना होगा
और वे इसके लिए किस तरह के हवाईजहाज का ऑर्डर करें।
मैंने वरिष्ठ
आईएएस अधिकारियों को अपने जूनियर स्टाफ के साथ सप्ताह के सातों दिन और
चौबीसों घंटे एक छोटे से कमरे में एक सुव्यवस्थित टीम की तरह काम करते
देखा।
जब मोदी देहरादून पहुंचे तब तक गुजरात के दल ने सभी काम अपने
नियंत्रण में ले लिया था। उन्होंने भी राज्य सरकार को कोसने की बजाय हर
संभव मदद करने की कोशिश की।
इसके अलावा उन्होंने न केवल संसाधनों का
अधिकाधिक बेहतर उपयोग किया वरन भाजपा कार्यकर्ताओं को मदद करने के लिए
प्रोत्साहित किया। उन्होंने न केवल त्वरित राहत के लिए वरन दीर्घकालिक
निर्माण कार्यों पर भी जोर दिया।
उनके सभी अधिकारियों को उत्तराखंड
के सभी 180 ब्लॉक्स के भाजपा पदाधिकारियों के फोन नंबर दिए गए वरन पार्टी
पदाधिकारियों को भी अधिकारियों ने फोन नंबर उपलब्ध कराए गए। स्वाभाविक तौर
पर उन्होंने कार्यों को निर्देशित करने और इन्हें सरल और कारगर बनाने का
काम किया। वहां पर सहयोग और टीमवर्क की वास्तविक भावना थी।
स्वाभाविक
तौर पर कांग्रेस इससे नाराज है क्योंकि उनके मुख्यमंत्री बेकार साबित हुए
और पार्टी मशीनरी गड़बड़ हालत में दिखी। कांग्रेस सेवा दल का एक भी
कार्यकर्ता कहीं नहीं दिखा और जहां तक राहुल गांधी के युवा नेताओं की फौज
की बात है तो उसे सामान्य स्थितियों में ही कुछ नहीं सूझता तो उत्तराखंड
जलप्रलय जैसी बड़ी आपदा का सामना करने की बात छोड़ दी दें। नरेन्द्र मोदी
के नेतृत्व में चलाए गए उत्तराखंड राहत कार्य की यही वास्तविकता है। (
साभार-वेबदुनिया-http://hindi.webdunia.com/news-national )
3 comments:
शत प्रतिशत सत्य है ..मोदी जी का जवाब नहीं प्रबंधन में ..देखना है तो गुजरात आइये
शत प्रतिशत सत्य है ..मोदी जी का जवाब नहीं प्रबंधन में ..देखना है तो गुजरात आइये
अन्धविश्वासी कांग्रेस भक्त इस लेख को पढे।
Post a Comment