यह सूचना उन मित्रों के लिए है जो उत्तर प्रदेश के राज्य कर्मचारी हैं और हिंदी व हिंदी साहित्य के विकास के लिए कार्यरत हैं। आप अपनी प्रविष्टि नीचे लिखी सूचना के अनुसार भेजें। सूचना के आखिर में संस्थान का ब्लाग पता है। उसमें जाकर पूरा विवरण हासिल कर सकते हैं।
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राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान, मुख्य भवन, कक्ष संख्या-119 ब, भूतल,
गेट नं0 9 के निकट, उत्तर प्रदेश सचिवालय, हज़रतगंज, लखनऊ-226001 द्वारा
उत्तर प्रदेश के राज्य कर्मचारियों/अधिकारियों को सम्मानित करने की शासन
की योजना के अन्तर्गत वित्तीय वर्ष 2007-08 के लिये देवनागरी लिपि में
लिखित प्रदेश की भाषाओं/बोलियों (6 पुरस्कार) एवं उर्दू भाषा में (2
पुरस्कार) (फारसी लिपि में) दीर्घकालीन साहित्यिक सेवाओं तथा गद्य/पद्य
की पिछले चार वर्षों के अन्दर प्रकाशित मौलिक कृतियों के लिए 51-51 हजार
रूपये के पुरस्कार प्रदान किये जाने हैं। अन्य जानकारी के लिए यह ब्लाग
देंखें-http://sansthan.blogspot.com/
Wednesday, 24 October 2007
Friday, 19 October 2007
महिलाओं की भी अब अलग पार्टी
भारत में किसी और बात का लोकतंत्र भले न दिखे मगर एक बात की पूरी छूट और भरमार भी है। वह यह कि जब मौसम ठीक लगे और ठाक-ठाक मददगार हो तो कोई राजनैतिक पार्टी खड़ी कर लीजिए। और शौक से करिए जनता की खेती। ज्यादातर अचानक पैदा होने वाली पार्टियां सिर्फ कद्दावर नेताओं या बड़ी पार्टियों के समीकरण ठीक करने को ऐन वक्त पर मैदान में उतरती हैं। यह अलग बात है कि इनमें से कुछ के मकसद नेक होते हैं मगर आप भी तो जानते हैं कि खरबूजे को देखकर खरबूजा भी रंग बदलता है। इसी कारण सत्ता का कुछ मजा लेने के बाद ये पार्टियां परिदृश्य से ही गायब हो जाती हैं। जनता ठगी रह जाती है और वादे हवा हो जाते हैं।
देश में बढ़ रही ऐसी ही राजनीतिक पार्टियों की भीड़ में एक अलग तरह की एक और पार्टी उभरी है और इस पार्टी की विशेषता यह है कि इसमें सिर्फ़ महिला सदस्य हैं. 'यूनाइटेड वीमेन फ़्रंट' (यूडब्लूएफ़) के नाम से गठित इस पार्टी का उद्देश्य भ्रष्टाचार और ग़रीबी से लड़ना और महिलाओं को समाज में बराबरी का हक़ दिलाना है. इस पार्टी में इस समय कोई 100 सदस्य हैं और यह चाहती है कि गुजरात और हिमाचल में लड़ा जाए और इसके बाद 2009 के लोकसभा चुनाव में भी उम्मीदवार उतारे जाएँ. इस पार्टी की प्रमुख हैं सुमन कृष्णकांत. वे समाजसेविका हैं और दिवंगत उपराष्ट्रपति कृष्णकांत की पत्नी हैं. इनकी शिकायत है कि "महिलाएँ कई सालों से अपनी जगह पाने के लिए संघर्ष कर रही हैं.। पिछले दस सालों में एनडीए और यूपीए दोनों ने महिलाओं को बहुत कुछ देने का वादा किया लेकिन दिया कुछ नहीं." ।जब देश में सिर्फ़ आठ प्रतिशत महिलाएँ विधायिका का हिस्सा हों और सिर्फ़ दो प्रतिशत महिलाओं को न्यायपालिका में जगह मिल सकी हो तो संघर्ष करना ज़रूरी है. इस महिलावादी पार्टी में पुरुषों को ५० फासद आरक्षण देने का वादा किया गया है।
देर सबेर और भी लुभावने इनके वायदे आएँगे। देखना तो यह है कि यह पार्टी सचमुच में सशक्त महिलावादी पार्टी बनकर महिलाओं की लड़ाई लड़ेगी या किसी बड़ी पार्टी का चुनावी समीकरण बनकर महिलाओं को धोखा देगी।
देश में बढ़ रही ऐसी ही राजनीतिक पार्टियों की भीड़ में एक अलग तरह की एक और पार्टी उभरी है और इस पार्टी की विशेषता यह है कि इसमें सिर्फ़ महिला सदस्य हैं. 'यूनाइटेड वीमेन फ़्रंट' (यूडब्लूएफ़) के नाम से गठित इस पार्टी का उद्देश्य भ्रष्टाचार और ग़रीबी से लड़ना और महिलाओं को समाज में बराबरी का हक़ दिलाना है. इस पार्टी में इस समय कोई 100 सदस्य हैं और यह चाहती है कि गुजरात और हिमाचल में लड़ा जाए और इसके बाद 2009 के लोकसभा चुनाव में भी उम्मीदवार उतारे जाएँ. इस पार्टी की प्रमुख हैं सुमन कृष्णकांत. वे समाजसेविका हैं और दिवंगत उपराष्ट्रपति कृष्णकांत की पत्नी हैं. इनकी शिकायत है कि "महिलाएँ कई सालों से अपनी जगह पाने के लिए संघर्ष कर रही हैं.। पिछले दस सालों में एनडीए और यूपीए दोनों ने महिलाओं को बहुत कुछ देने का वादा किया लेकिन दिया कुछ नहीं." ।जब देश में सिर्फ़ आठ प्रतिशत महिलाएँ विधायिका का हिस्सा हों और सिर्फ़ दो प्रतिशत महिलाओं को न्यायपालिका में जगह मिल सकी हो तो संघर्ष करना ज़रूरी है. इस महिलावादी पार्टी में पुरुषों को ५० फासद आरक्षण देने का वादा किया गया है।
देर सबेर और भी लुभावने इनके वायदे आएँगे। देखना तो यह है कि यह पार्टी सचमुच में सशक्त महिलावादी पार्टी बनकर महिलाओं की लड़ाई लड़ेगी या किसी बड़ी पार्टी का चुनावी समीकरण बनकर महिलाओं को धोखा देगी।
Tuesday, 9 October 2007
संगति बुरी असाधु की .............!
हमारे धर्मग्रन्थों में कहा गया है कि भले ही थोड़े दिन के लिए हो मगर किसी बुरे व्यक्ति की संगति अच्छी नहीं होती। यानी संगति बुरी असाधु की.........। यह चाहे जिन अर्थों में कहा गया हो मगर संबंधों का स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है। अब कुछ शोधकर्ताओं ने भी यह साबित कर लिया है कि बुरे लोगों की संगति आपको अनजाने में ही कई बीमारियों का शिकार बना देती है। आपके दिल को बीमार बना देते हैं ऐसे संबंध। एपी के हवाले से जारी एक खबर में लंदन के रोबर्टो डी वोगली ने इस किस्म के अपने शोध को उजागर किया है। करीब १२ साल तक उन्होंने अध्ययन करके यह निष्कर्ष निकाला है। अधिकतर शादीशुदा ९०११ ब्रितानी नौकरशाहों पर यह अध्ययन किया गया। इसमें स्पष्ट तौरपर देखा गया कि इनमें से ऐसे ३४ फीसद लोग जिनका वैवाहिक जीवन कलहपूर्ण था ,उन्हें दिल का दौरा पड़ने का खतरा बढ़ गया। इन लोगों पर १२ साल तक लगातार नजर रखी गई थी। यह खतरा सिर्फ कलहपूर्ण वैवाहिक जीवन से ही नहीं बल्कि खराब दोस्तों, सगे-संबंधियों व रिश्तेदारों के कारण भी बढ़ा। वोगली ने नया वैवाहिक जीवन शुरू करने वालों को आगाह किया है कि वे जीवनसाथी चुनते वक्त इस बात की सावधानी बरतें। क्यों कि खराब जीवनसाथी अंततः ऐसी पीड़ा व तनाव देता है जो बहुत जल्द आपको दिल का मरीज बना देता है। अच्छे संबंधों की जरूरत पर एक और शोध सामने आया है। यह शोध भी वोगली ने ही किया है, जो जर्नल साइकोमैटिक मेडिसिन में छपा है। ४००० महिलाओं और पुरुषों पर दस साल तक किए गए इस अध्ययन से स्पष्ट हुआ कि वे महिलाएं जो अपने खराब संबंधों के कारण घुट-घुटकर जीती हैं वे जल्दी मौत को करीब बुला लेती हैं। इनकी अपेक्षा वे महिलाएं स्वस्थ पाईं गईं जो अपनी भावनाओं को व्यक्त करती हैं और इसके लिए अपनी लड़ाई भी लड़ती हैं। इसी अध्ययन में एकाकी जीवन गुजार रहे लोगों का सच भी सामने आया। शादीशुदा मर्द उन मर्दों की अपेक्षा ज्यादा स्वस्थ पाए गए जो एकाकी जीवन गुजारते हैं। १२ साल तक जिन लोगों पर यह अध्ययन किया गया उनसे कुछ प्रश्न पूछे गए थे। जिन लोगों ने ज्यादा नकारात्मक उत्तर दिए उन्हें उतना ही ज्यादा बीमार पाया गया। हालांकि पेंन्सिल्वानिया विश्वविद्यालय के मनोविग्यान के प्रोफेसर जेम्स कोयने सामाजिक संबंधों के स्वास्थ्य पर प्रभाव के इस अध्ययन को पूरा सही नहीं मानते।
अब इन अध्ययनकर्ताओं को जैसा भी लगे मगर हमारे मनीषी तो पहले ही कह चुके हैं कि बुरी संगति विनाश का कारण बनती है। इसीलिए हमारे जीवन को चार भागों में विभक्त करके सभी जिम्मेदारियां तय कर दी हैं। सदाचार और इस अनुशासन को मानने पर तनाव के खतरे कम ही रहते हैं। मानसिक शांति के उन नुस्खों की आज के तनाव भरे जीवन में समरसता लाने की ज्यादा जरूरत पड़ रही है। योग व ध्यान का प्रयोग करके आप एकाकी व खुशहाल जीवन गुजार सकते हैं। कुल मिलाकर यह अध्ययन हमारे उस जीवन दर्शन के ज्यादा करीब है जिसे पाश्चात्य चकाचौंध में हमने लगभग भुला ही दिया है। अपनी जीवनशैली को बेतहासा बदलने का खामियाजा भी भुगतना ही पड़ेगा। आधुनिक बनना बुरी बात नहीं है अगर उसके साथ जीवन की समरसता कायम रहे।
अब इन अध्ययनकर्ताओं को जैसा भी लगे मगर हमारे मनीषी तो पहले ही कह चुके हैं कि बुरी संगति विनाश का कारण बनती है। इसीलिए हमारे जीवन को चार भागों में विभक्त करके सभी जिम्मेदारियां तय कर दी हैं। सदाचार और इस अनुशासन को मानने पर तनाव के खतरे कम ही रहते हैं। मानसिक शांति के उन नुस्खों की आज के तनाव भरे जीवन में समरसता लाने की ज्यादा जरूरत पड़ रही है। योग व ध्यान का प्रयोग करके आप एकाकी व खुशहाल जीवन गुजार सकते हैं। कुल मिलाकर यह अध्ययन हमारे उस जीवन दर्शन के ज्यादा करीब है जिसे पाश्चात्य चकाचौंध में हमने लगभग भुला ही दिया है। अपनी जीवनशैली को बेतहासा बदलने का खामियाजा भी भुगतना ही पड़ेगा। आधुनिक बनना बुरी बात नहीं है अगर उसके साथ जीवन की समरसता कायम रहे।
Friday, 5 October 2007
विविधभारती को बचाना होगा !
आज भी विविधभारती का कोई जवाब नहीं। पचास की विविधभारती आज के हल्ला मचाते एफएम चैनलों के लिए नसीहत हैं। यह सही है कि आसानी से और बेहद साफ आवाज में सुने जा सकने वाले एफएम चैनल ने रेडियो की पूरी दुनिया को बदल दिया है। अगर यही सुविधा विविधभारती को मिलती तो शायद शहरी क्षेत्र में भी इन एफएम चैनलों को सिक्का जमाना इतना आसान नहीं होता। यह एक किस्म की बेईमानी ही कहीं जाएगी कि विविधभारती का वैसा आधुनिकीकरण नहीं किया गया जैसा एफएम चैनलों को उपलब्ध हैं। बेहद संतुलित हिंदी में विविधभारती के गूंजते कार्यक्रम कितना सुकून देते थे यह तो वहीं महसूस कर सकता है जो इन पचास सालों में विविध भारती का हमसफर रहा है। छायागीत और जवानों के कार्यक्रम से लेकर हवामहल तक क्या कुछ नहीं दिया विविधभारती ने। कह सकते हैं कि ऐसा शायद ही कोई शख्स हो जिन्होंने विविधभारती नहीं सुनी हो। ग्रामीण भारत के लिए तो अभी भी विविधभारती मनोरंजन के लिए मायने रखती है। यह सही है कि मनोरंजन के तमाम आयामों के विकसित होने के साथ ही विविधभारती अब अपना अस्तित्व खोती नजर आ रही है। क्या विविधभारती के असीम संगीत भंडार यूं ही बेकार हो जाएंगे? अगर ऐसा होगा तो यह अनर्थ ही होगा। एफएम की तरह विविधभारती के भी प्रसारण की व्यवस्था की जानी चाहिए। यही एकमात्र उपाय होगा जो विविधभारती के हम जैसे दीवानों को फिर मनोरंजन की उसी दुनिया में ले जासकेगा जहां एफएम चैनलों का शोर कम होगा साथ ही रेडियो की इस धरोहर को बचाया जा सकेगा।
अब जबकि ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में, जबकि सस्ते मनोरंजन के ढेरों साधन धड़ाधड़ उग रहे हैं, थोक के भाव फिल्में बन रही हैं, मल्टीप्लेक्स खुल रहे हैं और रेडियो स्टेशनों की तो बरसात हुई जा रही है, कुछ ऐसी चीजें हैं, जिन्होंने अपना अर्थ और गरिमा नहीं खोयी। इस दौर में, जबकि वास्तविक अर्थपूर्ण मनोरंजन पर बाजार और मुनाफे की तलवार लटकी हुई है, स्वस्थ मनोरंजन की लंबी विरासत को कायम रखते हुए ‘विविध भारती’ अपनी स्वर्ण जयंती मना रहा है। आज से पचास साल पहले 3 अक्तूबर, 1957 को आजाद हिंदुस्तान में देशवासियों को स्वस्थ और ज्ञानवर्द्धक मनोरंजन परोसने के उम्दा विचार की अभिव्यक्ति विविध भारती सेवा के रूप में सामने आई। तब तक टेलीविजन की शुरुआत नहीं हुई थी, जबकि रेडियो 1927 से ही भारत में आ चुके थे। आजादी की लड़ाई में भी इन नवीन आविष्कारों ने महती भूमिका निभाई थी। बड़े पर्दे पर श्वेत-श्याम फिल्में धीरे-धीरे अपना रंग खोल रही थीं। सोहराब मोदी सरीखी शख्सियतें सिनेमा को एक अर्थ दे रही थीं।यही वह दौर था, जब विविध भारती अस्तित्व में आया। आकाशवाणी के तत्कालीन महानिदेशक गिरिजाकुमार माथुर ने एक ऐसी रेडियो सेवा की परिकल्पना की, जिसमें ढेर सारे रंग और विविधताएँ हों। इस तरह इस रेडिया सेवा का नाम पड़ा - विविध भारती। नरेंद्र शर्मा और गोपालदास आदि इस शुरुआत में सहयोगी रहे। संगीतकार अनिल विश्वास ने नरेंद्र शर्मा द्वारा लिखे गीत को स्वर दिए। यह विविध भारती पर प्रसारित होने वाला पहला गीत था।
उसके बाद विविध भारती के पचास वर्षों की यात्रा में बहुत सारे उतार-चढ़ाव आए हैं। यह राज कपूर और देवानंद से लेकर आज के मसाला युग तक बॉलीवुड के सफर की भी गवाह रही है। विविध भारती के जयमाला और हवामहल आदि कार्यक्रम पचास साल से हिंदी श्रोताओं के दिलों में बसे हैं। आज के युग में, जब हर कुछ अस्थाई है, किसी फिल्म, किसी गीत या किसी कार्यक्रम की उम्र भी बहुत मामूली होती है, विविध भारती के कार्यक्रम पचास सालों से हिंदुस्तान के जनमानस में अपनी जगह बनाए हुए हैं। विविध भारती के संग्रहालय में बहुत से पुराने और दुर्लभ रिकॉर्ड मौजूद हैं। सोहराम मोदी, नौशाद, ओ.पी. नय्यर, नूरजहाँ, कुंदनलाल सहगल, मुकेश, माला सिन्हा और वहीदा रहमान तक की आवाज और उनके साथ कुछ अंतरंग बातचीत के रिकॉर्ड सुने जा सकते हैं। विविध भारती के विज्ञापनों में अक्सर राजकपूर की आवाज सुन पड़ती है, ‘पिताजी ने जब मुझे फिल्मों में भेजा, तो वह भी चौथे असिस्टेंट की हैसियत से। कहते थे, राजू, नीचे से शुरू करोगे तो एक दिन बहुत ऊपर तक जाओगे।’इन आवाजों को आज भी सुनन हमें किसी पुराने स्वप्नलोक में ले जाता है। हिंदी सिनेमा के उस समृद्ध दौर में, उन दिनों की स्मृतियों में, जो आज भी बिल्कुल ताजा मालूम देती हैं।
इतना ही नहीं, हरिवंशराय बच्चन और सुमित्रानंदन पंत तक की आवाज यहाँ सुनी जा सकती है। विविध भारती की शुरुआत उस दौर में हुई थी, जब साहित्य, कला, लेखन और संगीत की लोगों के बीच गहरी जड़ें थीं। विविध भारती ने उस धरोहर और उस दौर की बहुत-सी यादों को सँजोकर रखा है और आज भी उस परंपरा को कायम रखे हुए है। बदलते वक्त के साथ विविध भारती ने अपने कार्यक्रमों में बहुत से परिवर्तन किए। सेहतनामा, मुलाकात, सेल्युलॉइड के सितारे, सरगम के सितारे, मंथन, हलो फरमाइश और सखी-सहेली विविध भारती की माला में गूँथे गए नए मोती है। बेशक विविध भारती ने भी बाजार के साथ कुछ कदमताल करने की कोशिश की है, लेकिन उसकी असल महक और रंग अब भी बरकरार है।
दुश्चिंताएं भी हैं कि क्या व्यावसायिकता के इस दौर में विविधभारती को बचाए रखने की ईमानदार कोशिश की जा रही है? शायद नहीं। तो फिर अब विविधभारती को भी एफएम चैनलों की तरह पूरे देश में सुने जाने की व्यवस्था करने का हमारी सरकार को अवश्य संकल्प लेना चाहिए। एक अच्छी परंपरा को कायम रखने भी धर्म हमारी सरकार को निभाना होगा और विविधभारती को बचाना होगा।
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