Friday, 5 October 2007
विविधभारती को बचाना होगा !
आज भी विविधभारती का कोई जवाब नहीं। पचास की विविधभारती आज के हल्ला मचाते एफएम चैनलों के लिए नसीहत हैं। यह सही है कि आसानी से और बेहद साफ आवाज में सुने जा सकने वाले एफएम चैनल ने रेडियो की पूरी दुनिया को बदल दिया है। अगर यही सुविधा विविधभारती को मिलती तो शायद शहरी क्षेत्र में भी इन एफएम चैनलों को सिक्का जमाना इतना आसान नहीं होता। यह एक किस्म की बेईमानी ही कहीं जाएगी कि विविधभारती का वैसा आधुनिकीकरण नहीं किया गया जैसा एफएम चैनलों को उपलब्ध हैं। बेहद संतुलित हिंदी में विविधभारती के गूंजते कार्यक्रम कितना सुकून देते थे यह तो वहीं महसूस कर सकता है जो इन पचास सालों में विविध भारती का हमसफर रहा है। छायागीत और जवानों के कार्यक्रम से लेकर हवामहल तक क्या कुछ नहीं दिया विविधभारती ने। कह सकते हैं कि ऐसा शायद ही कोई शख्स हो जिन्होंने विविधभारती नहीं सुनी हो। ग्रामीण भारत के लिए तो अभी भी विविधभारती मनोरंजन के लिए मायने रखती है। यह सही है कि मनोरंजन के तमाम आयामों के विकसित होने के साथ ही विविधभारती अब अपना अस्तित्व खोती नजर आ रही है। क्या विविधभारती के असीम संगीत भंडार यूं ही बेकार हो जाएंगे? अगर ऐसा होगा तो यह अनर्थ ही होगा। एफएम की तरह विविधभारती के भी प्रसारण की व्यवस्था की जानी चाहिए। यही एकमात्र उपाय होगा जो विविधभारती के हम जैसे दीवानों को फिर मनोरंजन की उसी दुनिया में ले जासकेगा जहां एफएम चैनलों का शोर कम होगा साथ ही रेडियो की इस धरोहर को बचाया जा सकेगा।
अब जबकि ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में, जबकि सस्ते मनोरंजन के ढेरों साधन धड़ाधड़ उग रहे हैं, थोक के भाव फिल्में बन रही हैं, मल्टीप्लेक्स खुल रहे हैं और रेडियो स्टेशनों की तो बरसात हुई जा रही है, कुछ ऐसी चीजें हैं, जिन्होंने अपना अर्थ और गरिमा नहीं खोयी। इस दौर में, जबकि वास्तविक अर्थपूर्ण मनोरंजन पर बाजार और मुनाफे की तलवार लटकी हुई है, स्वस्थ मनोरंजन की लंबी विरासत को कायम रखते हुए ‘विविध भारती’ अपनी स्वर्ण जयंती मना रहा है। आज से पचास साल पहले 3 अक्तूबर, 1957 को आजाद हिंदुस्तान में देशवासियों को स्वस्थ और ज्ञानवर्द्धक मनोरंजन परोसने के उम्दा विचार की अभिव्यक्ति विविध भारती सेवा के रूप में सामने आई। तब तक टेलीविजन की शुरुआत नहीं हुई थी, जबकि रेडियो 1927 से ही भारत में आ चुके थे। आजादी की लड़ाई में भी इन नवीन आविष्कारों ने महती भूमिका निभाई थी। बड़े पर्दे पर श्वेत-श्याम फिल्में धीरे-धीरे अपना रंग खोल रही थीं। सोहराब मोदी सरीखी शख्सियतें सिनेमा को एक अर्थ दे रही थीं।यही वह दौर था, जब विविध भारती अस्तित्व में आया। आकाशवाणी के तत्कालीन महानिदेशक गिरिजाकुमार माथुर ने एक ऐसी रेडियो सेवा की परिकल्पना की, जिसमें ढेर सारे रंग और विविधताएँ हों। इस तरह इस रेडिया सेवा का नाम पड़ा - विविध भारती। नरेंद्र शर्मा और गोपालदास आदि इस शुरुआत में सहयोगी रहे। संगीतकार अनिल विश्वास ने नरेंद्र शर्मा द्वारा लिखे गीत को स्वर दिए। यह विविध भारती पर प्रसारित होने वाला पहला गीत था।
उसके बाद विविध भारती के पचास वर्षों की यात्रा में बहुत सारे उतार-चढ़ाव आए हैं। यह राज कपूर और देवानंद से लेकर आज के मसाला युग तक बॉलीवुड के सफर की भी गवाह रही है। विविध भारती के जयमाला और हवामहल आदि कार्यक्रम पचास साल से हिंदी श्रोताओं के दिलों में बसे हैं। आज के युग में, जब हर कुछ अस्थाई है, किसी फिल्म, किसी गीत या किसी कार्यक्रम की उम्र भी बहुत मामूली होती है, विविध भारती के कार्यक्रम पचास सालों से हिंदुस्तान के जनमानस में अपनी जगह बनाए हुए हैं। विविध भारती के संग्रहालय में बहुत से पुराने और दुर्लभ रिकॉर्ड मौजूद हैं। सोहराम मोदी, नौशाद, ओ.पी. नय्यर, नूरजहाँ, कुंदनलाल सहगल, मुकेश, माला सिन्हा और वहीदा रहमान तक की आवाज और उनके साथ कुछ अंतरंग बातचीत के रिकॉर्ड सुने जा सकते हैं। विविध भारती के विज्ञापनों में अक्सर राजकपूर की आवाज सुन पड़ती है, ‘पिताजी ने जब मुझे फिल्मों में भेजा, तो वह भी चौथे असिस्टेंट की हैसियत से। कहते थे, राजू, नीचे से शुरू करोगे तो एक दिन बहुत ऊपर तक जाओगे।’इन आवाजों को आज भी सुनन हमें किसी पुराने स्वप्नलोक में ले जाता है। हिंदी सिनेमा के उस समृद्ध दौर में, उन दिनों की स्मृतियों में, जो आज भी बिल्कुल ताजा मालूम देती हैं।
इतना ही नहीं, हरिवंशराय बच्चन और सुमित्रानंदन पंत तक की आवाज यहाँ सुनी जा सकती है। विविध भारती की शुरुआत उस दौर में हुई थी, जब साहित्य, कला, लेखन और संगीत की लोगों के बीच गहरी जड़ें थीं। विविध भारती ने उस धरोहर और उस दौर की बहुत-सी यादों को सँजोकर रखा है और आज भी उस परंपरा को कायम रखे हुए है। बदलते वक्त के साथ विविध भारती ने अपने कार्यक्रमों में बहुत से परिवर्तन किए। सेहतनामा, मुलाकात, सेल्युलॉइड के सितारे, सरगम के सितारे, मंथन, हलो फरमाइश और सखी-सहेली विविध भारती की माला में गूँथे गए नए मोती है। बेशक विविध भारती ने भी बाजार के साथ कुछ कदमताल करने की कोशिश की है, लेकिन उसकी असल महक और रंग अब भी बरकरार है।
दुश्चिंताएं भी हैं कि क्या व्यावसायिकता के इस दौर में विविधभारती को बचाए रखने की ईमानदार कोशिश की जा रही है? शायद नहीं। तो फिर अब विविधभारती को भी एफएम चैनलों की तरह पूरे देश में सुने जाने की व्यवस्था करने का हमारी सरकार को अवश्य संकल्प लेना चाहिए। एक अच्छी परंपरा को कायम रखने भी धर्म हमारी सरकार को निभाना होगा और विविधभारती को बचाना होगा।
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1 comment:
बहुत अच्छा लेख।
साथ-साथ विविध भारती को बचाने के कुछ सुझाव भी अगर आप देते तो उस पर अच्छी चर्चा चल सकती थी।
मैं तो अपने विचार रेडियोनामा पर रखती हूं यहां मैं औरों के विचार जानना चाहती हूं।
अन्नपूर्णा
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