Tuesday, 9 October 2007

संगति बुरी असाधु की .............!

हमारे धर्मग्रन्थों में कहा गया है कि भले ही थोड़े दिन के लिए हो मगर किसी बुरे व्यक्ति की संगति अच्छी नहीं होती। यानी संगति बुरी असाधु की.........। यह चाहे जिन अर्थों में कहा गया हो मगर संबंधों का स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है। अब कुछ शोधकर्ताओं ने भी यह साबित कर लिया है कि बुरे लोगों की संगति आपको अनजाने में ही कई बीमारियों का शिकार बना देती है। आपके दिल को बीमार बना देते हैं ऐसे संबंध। एपी के हवाले से जारी एक खबर में लंदन के रोबर्टो डी वोगली ने इस किस्म के अपने शोध को उजागर किया है। करीब १२ साल तक उन्होंने अध्ययन करके यह निष्कर्ष निकाला है। अधिकतर शादीशुदा ९०११ ब्रितानी नौकरशाहों पर यह अध्ययन किया गया। इसमें स्पष्ट तौरपर देखा गया कि इनमें से ऐसे ३४ फीसद लोग जिनका वैवाहिक जीवन कलहपूर्ण था ,उन्हें दिल का दौरा पड़ने का खतरा बढ़ गया। इन लोगों पर १२ साल तक लगातार नजर रखी गई थी। यह खतरा सिर्फ कलहपूर्ण वैवाहिक जीवन से ही नहीं बल्कि खराब दोस्तों, सगे-संबंधियों व रिश्तेदारों के कारण भी बढ़ा। वोगली ने नया वैवाहिक जीवन शुरू करने वालों को आगाह किया है कि वे जीवनसाथी चुनते वक्त इस बात की सावधानी बरतें। क्यों कि खराब जीवनसाथी अंततः ऐसी पीड़ा व तनाव देता है जो बहुत जल्द आपको दिल का मरीज बना देता है। अच्छे संबंधों की जरूरत पर एक और शोध सामने आया है। यह शोध भी वोगली ने ही किया है, जो जर्नल साइकोमैटिक मेडिसिन में छपा है। ४००० महिलाओं और पुरुषों पर दस साल तक किए गए इस अध्ययन से स्पष्ट हुआ कि वे महिलाएं जो अपने खराब संबंधों के कारण घुट-घुटकर जीती हैं वे जल्दी मौत को करीब बुला लेती हैं। इनकी अपेक्षा वे महिलाएं स्वस्थ पाईं गईं जो अपनी भावनाओं को व्यक्त करती हैं और इसके लिए अपनी लड़ाई भी लड़ती हैं। इसी अध्ययन में एकाकी जीवन गुजार रहे लोगों का सच भी सामने आया। शादीशुदा मर्द उन मर्दों की अपेक्षा ज्यादा स्वस्थ पाए गए जो एकाकी जीवन गुजारते हैं। १२ साल तक जिन लोगों पर यह अध्ययन किया गया उनसे कुछ प्रश्न पूछे गए थे। जिन लोगों ने ज्यादा नकारात्मक उत्तर दिए उन्हें उतना ही ज्यादा बीमार पाया गया। हालांकि पेंन्सिल्वानिया विश्वविद्यालय के मनोविग्यान के प्रोफेसर जेम्स कोयने सामाजिक संबंधों के स्वास्थ्य पर प्रभाव के इस अध्ययन को पूरा सही नहीं मानते।
अब इन अध्ययनकर्ताओं को जैसा भी लगे मगर हमारे मनीषी तो पहले ही कह चुके हैं कि बुरी संगति विनाश का कारण बनती है। इसीलिए हमारे जीवन को चार भागों में विभक्त करके सभी जिम्मेदारियां तय कर दी हैं। सदाचार और इस अनुशासन को मानने पर तनाव के खतरे कम ही रहते हैं। मानसिक शांति के उन नुस्खों की आज के तनाव भरे जीवन में समरसता लाने की ज्यादा जरूरत पड़ रही है। योग व ध्यान का प्रयोग करके आप एकाकी व खुशहाल जीवन गुजार सकते हैं। कुल मिलाकर यह अध्ययन हमारे उस जीवन दर्शन के ज्यादा करीब है जिसे पाश्चात्य चकाचौंध में हमने लगभग भुला ही दिया है। अपनी जीवनशैली को बेतहासा बदलने का खामियाजा भी भुगतना ही पड़ेगा। आधुनिक बनना बुरी बात नहीं है अगर उसके साथ जीवन की समरसता कायम रहे।

2 comments:

बोधिसत्व said...

बहुत अच्छा लिख रहे हैं मान्धाता जी। बधाई ....

Satyendra Prasad Srivastava said...

अच्छी जानकारी दी है

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