Wednesday, 23 December 2009

लोकतात्रिक सरकार का जनविरोधी राजशाही चरित्र

  अगर इतिहास की बात करें तो भारत के विभिन्न भूभागों में शासन कर रहे कई राजाओं को इतिहास के वर्तमान मूल्यांकन में जनविरोधी, आततायी इसी लिए कहा गया क्यों कि उन्होंने बेरहमी से जनता से जाजिया, जकात जैसे कर वसूले और उसे अपनी जरूरतों और विलासिता पर खर्च किया। इनमें सल्तनत काल के बलवन और मुगल बादशाह औरंगजेब का नाम कुख्यात है। आज वे भी जिंदा होते तो कर वसूलने की तमाम वजहें गिनाते और उसे जायज करार देते। मगर यह सच है की बेवश तत्कालीन जनता ने इसे सही नहीं माना। आज उसी जनता की दुख की कहानी इतिहास में दर्ज होकर उन बादशाहों की क्रूरता की मिशाल बन चुकी हैं। वह तो राजशाही का युग था मगर क्या हमारी आज की लोकतांत्रिक सरकार अपनी जनता के साथ क्या कर रही है? अगर आप आम नागरिक हैं तो इस सवाल पर गंभीरता से सोचिए। यकीन दिलाता हूं कि जिस दिन आप अपनी सरकारों के कामकाज का खुद मूल्यांकन करने लगेंगे आपका इस लोकतांत्रिक व्यवस्था और अपने रहनुमाओं पर से भरोसा उठ जाएगा। क्या आप कभी सोचते हैं जिन आलीशान भवनों में आपके रहनुमा रहते हैं और शाही जिंदगी जीते हैं वह सब आपकी कमाई से खर्च होता है। अपनी सारी जरूरतें के लिए बेहिसाब खर्च तो इनको वाजिब लगता है मगर जनता की सुविधाओं को यह कहकर छीनते हैं कि देश के खजाने में पैसा नहीं है।


अपनी इसी मनोवृत्ति ( मध्यकालीन क्रूर बादशाहों की मानसिकता ) के तहत वेतनभोगी भारतीयों को यह सरकार नया साल आने से पहले ही ऐसा तोहफा देने की शुरुआत कर दी है जिसके बोझ तले वेतनभोगियों व उसके परिवार के अरमान कुचल दिए जाएंगे। एक अप्रैल २००९ से ही एक अधिसूचना जारी कर आवास व यात्रा समेत कई मिलने वाले भत्तों को कर के दायरे में डाल दिया गया है। बजट से पहले ऐसा जानबूझकर किया गया है ताकि बजट के इससे अलग रखकर साफ सुथरा दिखाया जा सके। आपको याद होगा कि आम आदमी के सवाल पर सरकार के खजाने में पैसा नहीं होने का रोना रोया जाता है और दूसरी तरफ अपने वेतन भत्ते व सुविधाएं वगैरह बेहयाई से संसद में पास करा ली जाती है। अगर आप भूल रहे हों तो याद दिला दें कि भविष्य निधि की ब्याज दरों के साथ कैसा खिलवाड़ किया गया। यह बताने की जरूरत नहीं है कि भविष्यनिधि सचमुच में कर्मचारियों का भविष्य ही संवारती है मगर उस पर चोट करने से नही चूकती है हमारी जनहितकारी सरकार। १४ प्रतिशत से ८.५ प्रतिशत पर तो ला पटका और एहसान भी जताया कि हम आपके हिमायती हैं।


अपने दिमाग पर जोर डालिए तो ऐसे तमाम इनके कृत्य आपको भी दिखाई देने लगेंगे ।अभी ताजा उदाहरण तो यही है कि मंदी और खर्चों पर रोक के सरकारी नाटक के बावजूद मंत्रियों के हवाई यात्रा संबंधी विधेयक को मंजूरी २१ दिसंबर को दे दी गई। जबकि इसके ठाक पहले वेतनभोगियों की कमाई पर कर के ग्रहण की अधिसूचना जारी कर दी गई। पहले यह जानने की कोशिश करते हैं कि मंत्रियों को क्या दिया गया।

 जनसत्ता में २२ दिसंबर २००९ के अंक में छपी खबर देखिए----------।



मंत्रियों के हवाई यात्रा संबंधी विधेयक को मंजूरी

नई दिल्ली, 22 दिसंबर। मंत्रियों के हवाई यात्रा भाड़े संबंधी प्रावधान वाले एक विधेयक को संसद ने मंगलवार को मंजूरी दे दी। राज्यसभा ने इस संशोधन विधेयक को चर्चा के बिना ही ध्वनिमत से पारित कर दिया। लोकसभा ने इसे पहले ही अपनी मंजूरी दे दी थी। राज्यसभा में विधेयक को गृहराज्यमंत्री अजय माकन ने पेश किया था।

विधेयक के प्रावधान के हिसाब से किसी भी मंत्री, उसकी पत्नी और उसके आश्रितों को साल में एक बार देश के भीतर की जाने वाली हवाई यात्रा के भाड़े की राशि का भुगतान उसी तरह किया जाएगा जैसे उसे सरकारी यात्राओं के लिए किया जाता है। (जनसत्ता ब्यूरो )
 

भरपाई सिर्फ जनता से ही क्यों ?

   चुनाव जीतने के लिए पहले वेतन में बेतहासा वृद्धि की। इसके बाद बाकी खर्चे रोककर उसकी भरपाई करने की जगह आम वेतनभोगी की सुविधाओं को छीनने में जुट गए हैं। सभी जानते हैं कि सांसद निधि का क्या होता है? इसे खत्म करने की मांग खुद लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी कर चुके हैं। बार बार इसकी प्रासंगिकता पर सवाल उठाया जा चुका है । इसपर रोक लगाने की बजाए इसे २ करोड़ से बढ़ाकर पांच करोड़ करने की मांग की जा रही। जबकि समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद रामगोपाल यादव ने इसे खत्म करने की मांग फिर राज्यसभा में २१ दिसंबर को उठाई। खजाना भरने का तो यह भी तरीका ठीक ही था कि सासद निधि रोक दी जाए। या फिर देश किसी को कहीं से भी मिल रही सुविधाओं पर कर लगा दिया जाए। मगर ऐसा नहीं करेंगे। खुद पर आंच नहीं आने देंगे जनता के ये प्रतिनिधि मगर जनता को तकलीफ में डालने के हर बिल पास करा देंगे। अब उस खबर को देखिए जो इससे दो दिन पहले सभी अखबारों व समाचार एजंसियों ने प्रकाशित किए हैं। जिसमें वेतनभोगियों की कमाई छीनकर अपनी फिजूलखरची की भरपाई करने में लगी है हमारी सरकार। -----।



कर्मचारियों के भत्तों पर भी लग सकता है कर

नई दिल्ली, 19 दिसंबर (भाषा)। सरकार अब कर्मचारियों को मिलने वाले लाभों (पर्क्स) मसलन आवास और यातायात भत्ते पर भी इसी वित्त साल से कर लगाने पर विचार कर रही है। सूत्रों के मुताबिक वेतनभोगी वर्ग को अब उन्हें मिलने वाली सुविधाओं या लाभ पर भी कर का बोझ झेलना पड़ सकता है। सूत्रों ने बताया कि पर्क्स पर यह कर इसी साल एक अप्रैल से लगाया जा सकता है। समझा जाता है कि सरकार जल्द ही आवास किराया भत्ते और यातायात भत्ते पर कर के आकलन के लिए अधिसूचना जारी कर सकती है। बजट 2009-10 में फ्रिंज बेनिफिट टैक्स को खत्म कर दिया गया था। एफबीटी के खत्म होने के बाद अब सरकार की निगाह वेतनभोगी वर्ग को मिलने वाले लाभों पर कर लगाने की है। एफबीटी में कर का बोझ नियोक्ता पर पड़ता था। लेकिन इस कर का बोझ कर्मचारियों को उठाना पड़ेगा।

भत्तों पर इसी साल लग सकता है टैक्स

नई दिल्ली। सरकार ने वेतनभोगी कर्मचारियों के विभिन्न अनुलाभ भत्तों पर कर लगाने के नए कानून को अंतिम रूप दे दिया है। इससे उन्हें मकान और वाहन भत्ते के रूप में मिलने वाले पैसे पर टैक्स भरना जरूरी हो जाएगा। नया कानून फ्रिज बेनिफिट टैक्स (एफबीटी) की जगह लेगा। यह व्यवस्था चालू वित्त वर्ष से भी लागू हो सकती है। इससे महंगाई की मार झेर रहे कर्मचारियों पर अतिरिक्त बोझ बढेगा।

सूत्रों के अनुसार नियोक्ता द्वारा अपने कर्मचारी के परिवार को दिए जाने वाले आवास भत्ते, यात्रा भत्ते तथा अन्य अनुलाभा को शीघ्र ही आयकर काटने के उद्देश्य से वेतन में शामिल किया जा सकता है। सरकार इन भतों की गणना आदि की अधिसूचना जल्द जारी कर सकती है। उल्लेखनीय है कि अब तक वेतनभोगी कर्मचारी के इन भतों पर कर नियोक्ता कंपनी को कानून एफबीटी जमा कराना पडता था।

वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी ने एफबीटी को 2009-10 के बजट में समाप्त कर एक नई व्यवस्था का प्रस्ताव किया था जो एक अप्रैल 2010 से लागू होनी थी। जिन लाभो को कर योग्य वेतन में शामिल किया जाएगा उसमें नियोक्ता द्वारा देय आवास सुविधा, आधिकारिक तथा व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिए वाहन पर खर्च, चालक का वेतन, नियोक्ता द्वारा दिए जाने पर माली और सफाई कर्मचारी का वेतन तथा कर्मचारी के बच्चों को देय रियायती शिक्षा शामिल है। अर्नेस्ट एंड यंग कर सहयोगी अभिताब सिंह ने नए आयकर आकलन नियमों के बार में पूछने पर कहा, एफबीटी प्रणाली के तहत अनुलाभ का कर बोझ नियोक्ता पर रहता था लेकिन अब यह कर्मचारी पर होगा।

वित्त मंत्रालय आकलन नियमों की घोष्ाणा अभी करेंगा। इनके इस साल एक अप्रैल की पूर्व तिथि से लागू होने संभावना है। इससे कर्मचारियों मुश्किलें बढता तय है।

इस लिंक पर भी क्लिक करके पढ़िए -------------


अलाउंस पर टैक्स अप्रैल 2009 से लगेगा


पिछली तारीख से देना पड़ सकता है भत्तों पर कर




उपर्युक्त उदाहरणों के बाद अगर कुछ समझ में नहीं आ रहा हो तो हिंदी इकोनामिक टाइम्स में २५ अगस्त को डायरेक्ट टैक्स पर छपे इस लेख को पढ़िए। ------------।

नए डायरेक्ट टैक्स कोड से आम लोगों पर पड़ेगी मार

आम करदाता, छोटे निवेशक और इंडिया इंक सबकी जेब पर वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी का प्रस्तावित टैक्स कोड भारी पडे़गा। नए कोड से सब पर टैक्स का बोझ बढ़ेगा, ईटीआईजी का मानना है कि ऐसे में यह कोड अपने मकसद में शायद कामयाब न हो पाए। आइए जानें क्या हैं वे वजहें कि यह आम लोगों के लिए चाबुक का काम करेगा। जानकारों की राय में तो यह भारत के हक में है ही नहीं। यूपीए सरकार दावा करती आई है कि उसकी नीतियों के केंद्र में देश का आम आदमी है। क्या सरकार का यह दावा खोखला है? नए डायरेक्ट टैक्स कोड (डीटीसी) से तो यही लगता है कि आम आदमी के हितों का यूपीए सरकार का दावा हवाई है। यह कोड मध्यवर्ग के खिलाफ है। इस कोड का मकसद ज्यादातर करदाताओं पर टैक्स का बोझ बढ़ाना है। यही नहीं डीटीसी कम आय वर्ग वाले लोगों के लिए ज्यादा बुरा है।

इससे उन पर टैक्स का बोझ और बढ़ेगा वहीं इससे ज्यादा कमाने वाले लोगों के हाथों में टैक्स चुकाने के बाद ज्यादा पैसा आएगा। नए कोड की सबसे ज्यादा मार 5-6 लाख रुपए सालाना आमदनी वाले वर्ग पर पडे़गी। कर चुकाने वालों में सबसे ज्यादा संख्या ऐसे ही लोगों की है। नए कोड के लागू होने का बचत पर क्या असर पड़ेगा, ईटी ने इसका पता लगाने की कोशिश की है। टैक्स लायक आमदनी तय करने के लिए स्लैब दरों में बड़ा बदलाव किया गया है। नए कोड के मुताबिक भी 1.6 लाख रुपए की आमदनी पर कोई कर नहीं चुकाना होगा। अभी तक 5 लाख रुपए से ज्यादा की आमदनी पर 30 फीसदी कर लगता था, इस स्लैब को बढ़ाकर 25 लाख रुपए करने का प्रस्ताव है।

सबसे ज्यादा चर्चा इसी की हो रही है। नए कोड में सरचार्ज और सेस को खत्म करने की भी बात कही गई है। लेकिन नए कोड का दूसरा पहलू आम करदाताओं के हक में नहीं है। अभी टैक्स छूट के दायरे में शामिल होम लोन पर चुकाए गए ब्याज, हाउस रेंट अलाउंस, लीव ट्रैवल अलाउंस, मेडिकल रिम्बर्समेंट को इससे बाहर कर दिया जाएगा या इन्हें टैक्स लायक आमदनी माना जाएगा। यहां हम 3 सैलरी लेवल के लिए नए टैक्स कोड का मतलब समझने की कोशिश कर रहे हैं। इन सभी के लिए हमने यह माना है कि तनख्वाह की 10 फीसदी से ज्यादा रकम पर उन्हें आयकर छूट नहीं मिलेगी। बेसिक सैलरी हमने कुल सैलरी का 40 फीसदी तय किया है। हमने बेसिक सैलरी का 50 फीसदी एचआरए के मद में रखा है। 4 बडे़ मेट्रो में आयकर कानून के मुताबिक बेसिक सैलरी का 50 फीसदी एचआरए तय किया जाता है। होम लोन के लिए हमने 1.5 लाख रुपए और आयकर छूट के तहत 1.6 लाख रुपए की मान्य सीमा को शामिल किया है।

आयकर कानून की धारा 80सी के तहत कर छूट योग्य आमदनी, जो फिलहाल 1 लाख रुपए है, वह प्रस्तावित कोड के मुताबिक 3 लाख रुपए हो जाएगी। लेकिन पेंच यह है कि जिस आदमी की तनख्वाह 5 लाख रुपए सालाना है, अगर वह टैक्स छूट के लिए 3 लाख रुपए निवेश करता है तो उसके हाथ में कुछ भी नहीं बचेगा। ऐसे में हमने कर छूट के लिए निवेश को यहां 1.5 लाख रुपए माना है। आंकड़े बताते हैं कि इस आधार पर 5-6 लाख रुपए की सालाना आमदनी वाले लोगों पर टैक्स का बोझ बढ़ेगा। हालांकि, 10 लाख रुपए से ज्यादा तनख्वाह वाले लोगों पर टैक्स का बोझ नए कोड के मुताबिक कम हो सकता है।

नए टैक्स कोड से माइक्रो लेवल पर यह लगता है कि इससे लोगों के हाथ में खर्च करने लायक ज्यादा रकम बचेगी। नए कोड के तहत इफेक्टिव टैक्स रेट आम करदाताओं के लिए 5-6 फीसदी होगा। हालांकि नए कोड का सबसे ज्यादा फायदा ऊपरी स्लैब में शामिल लोगों को मिलेगा। ऐसे में इसका लाभ ऊपरी मध्यवर्ग लोगों की जरूरतें पूरी करने वाली कंपनियों को मिल सकता है। इनमें एफएमसीजी, एंटरटेनमेंट, रीटेल, वित्तीय सेवाओं और दूसरे लाइफ स्टाइल प्रोडक्ट बनाने वाली कंपनियों को शामिल किया जा सकता है। वहीं, इससे रियल्टी और एनबीएफसी को नुकसान होगा। हालांकि, यहां यह भी याद रखने की जरूरत है कि नया डायरेक्टर टैक्स कोड 1 अप्रैल 2011 से लागू होगा। उससे पहले इस पर संसद की मुहर लगनी जरूरी है। अगले दो साल में इस टैक्स कोड में काफी बदलाव भी आ सकता है।

Wednesday, 2 December 2009

जल्द अमीर बनने का ख्वाब भी टूटा !

 

       दावे चाहे जितना करें मगर यह कड़वा सच है कि दुबई में छोटी-मोटी नौकरियों के सहारे गुजर-बसर कररहे भारतीय परिवारों पर तो संकट के बादल मंडराने लगे हैं। किसी बड़े आंकड़े के चक्कर में न पड़कर सिर्फ यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सामान्य लोग इससे कितने प्रभावित हो रहे हैं या होंगे । मेरी जानकारी में मेरे गांव के करीब दर्जनों ऐसे बेरोजगार लड़के कंप्यूटर की डिप्लोमा सिर्फ इसलिए ले रहे हैं कि उन्हें दुबई में रह रहे लोगों ने साथ ले जाने और नौकरी दिलाने को कहा है। अभी वे घोर निराशा में जी रहे हैं। जो नौकरियां दिलाने की बात कर रहे थे, अब वे ही मुश्किल में यातो फंस गए हैं या फिर फंसने वाले हैं। कम से कम निर्माणकार्य में लगे हजारों मजदूरों को तो बेहद धक्का पहुंचा है।


     मेरठ के एक नौकरीपेशा भारतीय की नौकरीदुबई से एसएमएस भेजकर नौकरी खत्म किए जाने की कहानी तो सभी अखबारों में छप चुकी है।कुल मिलाकर दुबई संकट ने तमाम बरोजगारों के सपने भी तोड़ दिए हैं। एक तो बड़ी मुश्किल से दुबई जाने का मौका हाथ लगता है वह भी इस दुबई संकट ने छीन लिया। थोड़े दिनों में अमीर बन जाने का इनका भी सपना चनाचूर हो गया है। क्यों कि दुबई का आकर्षण शाहरूख खान से लेकर मामूली मजदूर तक को खांचकर यहां लाता है।


       दुबई आज दुनिया की सर्वाधिक आकर्षक जगहों में से एक है। यह सारा श्रेय दुबई वर्ल्ड को जाता है। यानी दुबई में तेज़ी से हुई विकास के पीछे बहुत हद तक दुबई वर्ल्ड का ही हाथ है। अब विश्व की आर्थिक मंदी का ग्रहण इसपर भी लग गया है। संयुक्त अरब अमीरात में सात स्वयं-शासित अमीरात या राज्य हैं और दुबई उनमें से एक है। इसी दुबई की मुख्य निवेश कंपनी दुबई वर्ल्ड संकट में है। यह दुनिया को इस संकट का तब पता चला जब दुबई की यह सरकारी कंपनी दुबई वर्ल्ड ने अनुरोध किया कि जिन कंपनियों ने उसे कर्ज़ दिया है वो उसे छह महीने की अवधि और दें ताकि वो ऋण चुका सके। कंपनी को पांच करोड़ नब्बे लाख डॉलर का कर्ज़ चुकता करना है। दरअसल छह साल से तेज़ गति से विकास के बाद 2008 से वहाँ अर्थव्यवस्था डगमगाई है. इस कारण प्रॉपर्टी मार्केट में दाम गिरे हैं। विदेशी पैसे और बड़ी योजनाओं पर आधारित आर्थिक मॉडल अपनाने का खामियाज़ा दुबई को भुगतना पड़ रहा है।
 
    दुबई वर्ल्ड के कर्ज़ अदायगी से संबंधित संकट के सार्वजनिक होने के बाद भारत समेत दुनिया भर के शेयर बाज़ार गिरे हैं। अनेक भारतीय जो दुबई में दशकों से काम करते रहे हैं, उनकी नौकरियाँ ख़तरे में आ गई हैं क्योंकि निवेश कंपनी दुबई वर्ल्ड कोई एक प्रतिष्ठान नहीं बल्कि पूँजी निवेश के हिसाब से उसका अनेक कंपनियों और प्रतिष्ठानों में दख़ल है।
दुबई संकट की मार वहां काम कर रहे भारतीय कर्मचारियों पर पड़ने लगी है। दुबई से ईद की छुट्टी पर मेरठ और कोच्चि आए हुए साठ से ज्यादा लोगों को एसएमएस के जरिए बताया गया है कि वो काम पर वापस न लौटें। इनमें से ज्यादातर लोग दुबई के ढ़ांचा निर्माण क्षेत्र की अलग-अलग कंपनियों में टाइल बनाने वाली इकाई में काम करते थे। प्रवासी भारतीय मामलों के मंत्री व्यालार रवि ने भी भरोसा दिलाया है कि दुबई वित्तीय संकट से ज्यादा घबराने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि इसमें नया कुछ नहीं है। मंदी की शुरूआत के समय से ही स्थिति खराब थी। उस वक्त करीब 1 लाख लोग देश वापस लौटे थे। लेकिन उनमें से ज्यादातर लोग वापस दुबई में काम के लिए चले गए हैं।

संकट और गहराएगा ?

   भारत के वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी ने भरोसा दिलाया है कि भारत पर दुबई संकट का कोई असर नहीं पड़ेगा। संभव है ऐसा हो मगर दुबई सरकार के दुबई वर्ल्ड के कर्ज की गारंटी लेने से मना कर देने के बाद दुबई का संकट अब और गहराता नजर आ रहा है। दुबई सरकार ने कहा है कि वह दुबई वर्ल्ड को सशर्त मदद देगी। साथ ही उसने कर्जदाताओं से री-स्ट्रक्चरिंग के जरिए मसला सुलझाने को कहा है। सरकार इस कंपनी की मालिक है। लेकिन सरकार ने कंपनी की कोई गारंटी नहीं ली है। दुबई वर्ल्ड द्वारा लिए गए कर्ज की भी सरकार गारंटी नहीं ले रही है।
 
 दुबई वल्र्ड के 80 अरब डॉलर के कर्ज में ज्यादातर गल्फ बैंकों की हिस्सेदारी है। इससे इन बैंकों के सामने भी समस्या खड़ी होने की बात से भी मना नहीं किया जा सकता। हालांकि यूएई के सेंट्रल बैंक ने भरोसा जताया है कि इन बैंकों पर आंच नहीं आने दी जाएगी। हालांकि सेंट्रल बैंक का यह बयान भी बाजार के दबाव को कम करने में असफल रहा।जिन कंपनियों के 26 अरब डॉलर की कर्ज़ अदायगी के बारे में बात हो रही है वे हैं - लिमिट्लेस और नाखील. इसमें छह अरब डॉलर के इस्लामी बॉंड भी हैं जिन पर इस्लामी क़ानून के हिसाब से ब्याज नहीं दिया जाता। फिलहाल दुबई वर्ल्ड ने अपना कर्ज़ नए सिरे दिए जाने की व्यवस्था करने पर बैंकों से बातचीत शुरु की है।यह घोषणा तब हुई है जब दुबई की सरकार ने स्पष्ट तौर पर दुबई वर्ल्ड के कर्ज़ की गारंटी लेने से इनकार कर दिया है.

दुबई को लेकर बॉलीवुड भी हुआ चिंतित
दुबई ऋण संकट ने बॉलीवुड निर्माताओं और वितरकों को भी चिंता में डाल दिया है। हिंदी फिल्मों के लिए पश्चिम एशिया बाजार में दुबई की अहम भूमिका रहती है।
बॉलीवुड की आगामी फिल्म 'पा', जिसमें अमिताभ बच्चन और अभिषेक बच्चन दिखाई देंगे, ने पहले ही अपने दुबई प्रीमियर को टाल दिया है, हालांकि फिल्म के सह-निर्माता, रिलायंस बिग पिक्चर्स ने इसके लिए साजो-सामान की किल्लत को जिम्मेवार बताया है।
फिल्म उद्योग के विशेषज्ञों के मुताबिक विदेशी बाजार कई बॉलीवुड की नई रिलीज होने वाली फिल्मों, दे दना दन, रेडियो, रॉकेट सिंग, पा और 3 इडियट्स के कारोबार के लिए अहम है। विदेशी बाजारों में भी खाड़ी क्षेत्र हिंदी फिल्मों के लिए अहम बाजार बनता जा रहा है।
मुंबई के एक उद्योग विशेषज्ञ का कहना है, 'लगभग 50 करोड़ रुपये इन फिल्मों में विदेशी बाजारों से हासिल होने की उम्मीद है, क्योंकि अनुमान लगाए जा रहे हैं कि इन फिल्मों की कलेक्शन का कम से कम 25 से 30 फीसदी हिस्सा यही से मिलेगा। निर्माताओं को लगभग विदेशी बाजारों से 50 करोड़ रुपये कमा पाने की उम्मीद है।'
हिंदी फिल्मों के वितरकों के मुताबिक दुबई के बाजार से बॉलीवुड फिल्मों के कुल विदेशी क्लेक्शन का लगभग 40 से 45 फीसदी हासिल होता है। किसी भी प्रमुख बॉलीवुड अभिनेता जैसे शाह रुख खान, आमिर खान, अमिताभ बच्चन या अक्षय कुमारकी कोई भी फिल्म विदेशी बाजारों में लगभग 35 से 40 फीसदी क्लेक्शन कर पाती है।
फिल्म निर्माता और वितरक कंपनी शेमारू फिल्म के निदेशक हीरेन गाडा का कहना है कि खाड़ी क्षेत्र, अमेरिका और ब्रिटेन से कुल मिलाकर किसी भी बॉलीवुड की फिल्म के लिए विदेशी कलेक्शन का 70 से 75 फीसदी हिस्सा हासिल होता है, जिसमें से पश्चिम एशिया हमेशा शीर्ष दो विदेशी बाजारों में शामिल होता है।
डागा बताते हैं, 'बॉलीवुड फिल्में दुबई की 40 से 50 स्क्रीनों पर काफी अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं। अक्षय कुमार की एक्शन फिल्म ब्लू हाल में ही खाड़ी बाजारों में बढ़िया कारोबार कर पाई है।' शेमारू के पास 'ब्लू' के अंतरराष्ट्रीय वितरण अधिकार हैं।
दुबई बाजार में बॉलीवुड फिल्मों के वितरक और एक फिल्म वितरक कंपनी अल-मनसूर की प्रवर्तक खुशी खटवानी का कहना है, 'रियल एस्टेट के लिए में कोई विशेषज्ञ नहीं हूं। लेकिन दुबई में बॉलीवुड बाजार पर क्या असर होगा, यह कह पाना जल्दबाजी होगा।' दुबई में फिल्म एवं वीडियो वितरण एजेंसी के साथ काम करने वाले एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि दुबई की विशेष जनसंख में लगभग 40 फीसदी भारतीय हैं।
रिलायंस बिग पिक्चर्स के अंतरराष्ट्रीय वितरण के प्रमुख जवाहर शर्मा मानते हैं, 'पिछले साल वित्तीय संकट के बावजूद अमेरिका में बॉक्स ऑफिस कलेक्शन को देखते हुए कह सकते हैं कि मंदी में भी लोग फिल्म पर खर्च कर रहे थे। लेकिन थिएटरों में फिल्म देखने जाने वालों की रफ्तार में कमी आई थी।'

दुबई वर्ल्ड में निवेश का ब्योरा दें बैंक : आरबीआई

     भारतीय रिजर्व बैंक दुबई वर्ल्ड में भारतीय बैंकों के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष निवेश की विस्तृत जानकारी मांगेगा।  उल्लेखनीय है कि दुबई सरकार के स्वामित्व वाली संकटग्रस्त होल्डिंग कंपनी दुबई वर्ल्ड ने अपना कर्ज चुकाने के लिए ऋणदाताओं से और अधिक समय देने की गुजारिश की है। आरबीआई ने हालांकि इस मुद्दे को ज्यादा तवज्जो नहीं दी लेकिन बैंक ऑफ बड़ौदा के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि दुबई वर्ल्ड में इसका निवेश तकरीबन 928 करोड़ रुपये का है।
बैंक के एक अधिकारी ने कहा, 'इस राशि का भुगतान साल 2012 के बाद किया जाना है। कंपनी ब्याज का भुगतान कर रही है और कोई बकाया नहीं है। इसलिए हमें तात्कालिक तौर पर कोई चिंता नहीं है।' अधिकारी ने कहा कि यूनाइटेड अरब अमीरात में बैंक का कुल निवेश अनुमानत: 10,000 करोड रुपये का है जिसमें दुबई की हिस्सेदारी लगभग 4,000 करोड रुपये की है।
यद्यपि यूएई की रियल एस्टेट कंपनियों में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का निवेश लगभग 600 करोड़ रुपये का है लेकिन अधिकारी ने बताया कि इस ऋणदाता ने दुबई वर्ल्ड की रियल एस्टेट इकाई नखील को किसी प्रकार का कर्ज नहीं दिया है।
उल्लेखनीय है कि रियल एस्टेट की कीमतों में लगभग 50 प्रतिशत तक की गिरावट आने से नखील को सर्वाधिक नुकसान उठाना पड रहा है। दुबई वर्ल्ड में बैंक ऑफ बड़ौदा के निवेश की खबरों से निवेशकों की धारणाओं पर विपरीत प्रभाव पड़ा और बैंक के शेयर की कीमतों में बंबई स्टॉक एक्सचेंज पर 4.64 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। इसके शेयर 521.40 रुपये पर बंद हुए।
  
  दुबई और यूएई में परिचालन कर रही कंपनियों में ऐक्सिस बैंक, आईसीआईसीआई बैंक और इंडियन ओवरसीज बैंकों (आईओबी) का भी निवेश है। भारतीय रियल एस्टेट डेवलपर्स की दुबई इकाई में निवेश के बारे में आईओबी ने बताया कि इसका निवेश तकरीबन 70 करोड़ रुपये का है जबकि ऐक्सिस बैंक के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इसका निवेश लगभग 46 करोड रुपये का है।
बैंक ऑफ इंडिया के अधिकारी ने कहा कि पश्चिम एशिया में बैंक की कोई शाखा नहीं है और इस क्षेत्र की रियल एस्टेट कंपनियों में इइसका कोई प्रत्यक्ष निवेश नहीं है। अधिकारी के अनुसार, इन कंपनियों में कुल निवेश लगभग 100 करोड रुपये का है, हालांकि उन्होंने कंपनियों के नाम नहीं बताए। उन्होंने कहा, 'ये सब निष्पादित परिसंपत्तियां हैं और हमें नहीं लगता कि पुनर्भुगतान में अधिक परेशानी होगी।'

रेमिटेंस नहीं होगा प्रभावित: चावला
वित्त मंत्रालय ने कहा कि रियल एस्टेट बाजार में आई मंदी से पैदा हुए वित्तीय संकट के चलते खाड़ी देश में भारतीयों द्वारा स्वदेश भेजा जाने वाला धन :रेमिटेंस: प्रभावित होने की संभावना नहीं है। वित्त सचिव अशोक चावला ने बताया, '' जब बड़ा संकट था उस दौरान भारतीयों द्वारा स्वदेश धन भेजने के रुख में कमी नहीं आई। इसलिए इस संकट का रोजगार, वेतन और रेमिटेंस पर असर पड़ने की संभावना नहीं है।''

यह भी देखें। लिंक पर क्लिक करें



दुबई की मार भारतीयों पर  video

ब्रिटेन में भारतीय छात्रों को पड़े खाने के लाले

घर लौटे कर्ज़ का बोझ लेकर

दुबई की मार भारतीयों पर

Pranab plays down impact

Saturday, 21 November 2009

अन्नदाता का संकट कब समझेगी सरकार ?



   किसानों की परेशानियों-दुखों के प्रति कभी सचेत नहीं रही है सरकार। लगभग हर अनाज को किसानों को औने-पौने भाव में बेचना मजबूरी है। अपना अनाज तो उसे सस्ता बेचना पड़ता है मगर बाजार में वहीं अनाज का भाव आसमान छूने लगता है। यह लाभ किसान ले सके, इसकी कभी किसी सरकार को चिंता नहीं रहती। अनाज व्यापारी तो मालामाल हो जाता है और किसान के किस्मत में बस रोना ही रह जाता है। वैसे तो तमाम मंडियों व विपणन के आंकड़े सरकार के पास हैं मगर ये सिर्फ दिखावे के हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओड़ीशा समेत तमाम राज्यों के किसान आत्महत्या क्यों करने पर मजबूर हो रहे हैं? गन्ना पैदा करने वाले किसान को मंहगी चीनी खरीदनी पड़ती है और गेहूं पैदा करने वाले किसान को मंहगा आंटा खरीदना पड़ता है। आखिर कृषि विपणन व अनाजों के समर्थन मूल्य की ऐसी कोई व्यस्था लाने के प्रति सरकारें क्यों नहीं ईमानदार दिखातीं, जिसमें किसानों को भी उसकी उपज का पर्याप्त लाभ मिले। यह अन्याय आखिर कबतक किसान झेलेगा कि सभी की भलाई की खातिर किसानों को बेमौत मरने को छोड़ दें। किसान के खेतों में काम करने वाले मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी, अनाज का सरकारी दाम तो सरकारें तय करने में इतनी रुचि दिखाती हैं मगर बाजार की आसमान छूती कीमतों के लिए जिम्मेदार व्पापारियों को अपने सामान न्यूनतम मूल्य पर बेचने पर कभी मजबूर नहीं कर पाती। नियत्रण का आखिर यह कौन सा तरीका है जिसमें अंततः किसान को ही पिसना पड़ता है। अन्नदाता किसान आखिर क्यों बेहाली का जीवन जीने को मजबूर रहे ? यह कड़वा सच सभी को मालूम है कि कृषि प्रधान देश कृषि में सबसे पिछड़ा हुआ है। मुफलिसी की त्रासद जिंदगी से परेशान किसान आत्महत्या करने पर मजबूर हैं। गन्ना किसानों को आंदोलन करने को मजबूर होना पड़ा। देश में तमाम वेतन आयोग गठित करके नौकरीपेशा लोगों को तो बेहतर जिंदगी प्रदान करने को अगर आवश्यक माना गया है तो किसानों की बेहतरी के ऐसे उपाय व मानक क्यों नहीं तय कर पाती हैं सरकारें? अन्नदाता के साथ यह बेईमानी कब करती रहेंगी सरकारें ?



अब जैसे ही गन्ना किसान सड़क पर उतरे सभी राजनैतिक दलों के कान खड़े हो गए। राजनीति की रोटियां सेंकने के लिए इनके हमदर्द बन गए। आखिर इन सभी दलों के बाकायदा संगठन काम करते हैं मगर कभी भी इनके एजंडे में किसानों का सुखदुख नहीं रहा। चुनावी लाभ की खातिर तो ये कुछ भी करते हैं मगर हकीकत में किसानों के हित में कोई आंदोलन नहीं खड़ा किया। तेलंगाना आंदोलन से लेकर शेतकारी संगठन तक सभी वोटबैंक की राजनीति की भेंट चढ़ गए। संभव है कि गन्ना किसानों का आंदोलन भी थोड़ी सुविधाएं देकर दरकिनार करदिया जाए। जबकि होना यह चाहिए कि किसानों की हर परेशानियों को समझनेऔर उसके हल की कोशिश की जानी चाहिए।


   एक सवाल यह भी है कि आखिर सिर्फ गन्ना के लिए ही आंदोलन क्यों ? क्या किसानों की खेती की जमीन का अधिग्रहण, किसानों के लिए अनिवार्य बिजली, बाकी अनाजों या कृषि उत्पादों के सरकारी समर्थन मूल्य का संकट समस्या नहीं है? इसकी एक वजह बड़े किसान हो सकते हैं जिनके ये समर्थन मूल्य ज्यादा प्रभावित करते हैं। हालांकि मध्यम या लघु किसान भी इससे प्रभावित होता है मगर ये गन्ना की पेराई करके गुड़ वगैरह बनाकर खुद को बचा पाते हैं मगर बड़े किसान ऐसा चाहकर भी नहीं कर सकते हैं। उन्हे हर हाल में खेत में खड़ा गन्ना चीनी मिलों पर भेजना ही होगा। अगर उसके सही दाम नहीं मिले तो इनके आय में भारी कमी आ जाएगी। राजनैतिक दलों पर दबदबा भी इन्हीं किसानों का है। इसी लिए बड़े किसानों के इस आंदोलन ने संसद में तूफान खड़ा कर दिया। लगातार दूसरे दिन संसद में हंगामा हुआ। सरकार झुक गई और अब गन्ने का समर्थन मूल्य बदलने के लिए नया अध्यादेश लाएगी सरकार। हालांकि इसका फायदा छोटे गन्ना किसानों को भी मिल पाएगा। लेकिन सवाल यह है कि क्या इससे ही किसानें की समस्याए खत्म हो गईं। शायद नहीं। यह अलबत्ता है कि सरकार के सिर से फिलहाल यह बला टल गई। तब आखिर कैसे बदलेगी भारत के किसानों की तकदीर? कैसे मिलेगा किसानों की उपज का वाजिब दाम ? क्या हर फसल की कटाई के वक्त किसानों को दिल्ली में धरना देना होगा ? बाजार और समर्थन मूल्य में तालमेल की जबतक ठोस नीति सरकार अख्तियार नहीं करेगी तब तक किसान बदहाल ही रहेगा।

मैं भी किसान हूं
मैं भी किसान हूं और हमारे खेतों में भी सबसे ज्यादा गन्ने की फसल लहलहाती थी। मगर अब सिर्फ जरूरत भर को गन्ना बोया जाता है। मिल पर गन्ना भेजने से मेरे इलाके के जादातर किसानों ने तौबा कर ली है। मैं उत्तरप्रदेश के गाजीपुर जिले का रहने वाला हूं। सैदपुर के पास सिहोरी में अत्याधुनिक गन्नामिल खोली गई। कुछ साल चलने के बाद बंद भी हो गई। जानना चाहते हैं क्यों ? जब मिल खुली तो बड़ा उत्साह था जंगीपुर से लेकर बहरियाबाद तक के किसानों में। यह उत्साह दो-एक साल में ही ठंडा पड़ गया। हुआ यह कि गन्ना किसानों को भुगतान मिल ने समय पर नहीं दिया। बकाया लेने के लिए इतने पापड़ बेलने पड़ कि सभी को गन्ने की जगह दूसरी फसल बोना ज्यादा फायदेमंद दिखा। देखते-देखते इलाके के प्रायः सभी मझोले व छोटे किसान हताश हो गए। मिल पर स्थानीय गन्ना आना कम होगया। इसके बादजूद गन्ना किसानों को प्रोत्साहित करने की कोई कोशिश नही की गई। उल्टे बाहर से गन्नामंगाना शुरू किया गया जिसने अंततः मिल को बंदी के कगार पर पहुंचा दिया। हमारे इलाके की नंदगंज सिहोरी सुगर मिल उत्तर प्रदेश की सुगर मिलों की सूची में तो है मगर अब यह रायबरेली के दरियापुर में है। मालूम हो कि देशभर में सबसे ज्यादा चीनी मिलें उत्तरप्रदेश में ही हैं। मगर बदहाल भी सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश के ही गन्ना किसान हैं।

     इस इलाके में आलू की खेती का भी यही हाल हुआ। हताशगन्ना किसान आलू की बड़ पैमाने पर खेती करने लगे। कोल्ड स्टोरेज में रखना और अच्छे मूल्य पाकर बेचना फायदेमंद साबित हुआ मगर किसानों की यह कोशिश भी सरकार की अव्यवस्था की भेट चढ़ गई। आलू के अधिक उत्पादन और विपणन की सरकारी संरक्षण में उचित व्यवस्था के अभाव में आलू इतने गिरे भाव में बिके कि किसानों की लागत भी निकलनी मुश्किल हो गई। उपर से बिजली की कमी से आलू भारी तादाद में सड़ गए। इतना घाटा होने लगा कि इस इलाके के किसान आलू की खेती से पीछे हटे और हताश हो गए। किसानों के इन हालात की जानकारी सरकार और सरकार चलाने वाले दलों को भी थी मगर इसकी फिक्र किसी को नही हुई। अगर एकजुट होकर यही किसान आंदोलन करते , दलों के वोंट बैंक पर इससे आंच आती तो संभव था कि सिहोरी सुगर मिल भी बंद नहीं होती और आलू किसान भी तबाह नहीं होते। मगर किसानों ने चुपचाप सबकुछ सह लिया और हर चुनाव में वोट देने भी जाते हैं। ये छोटे और मझोले किसानों की प्रवृत्ति होती है कि जल्दी वे आंदोलन की राह नहीं पकड़ते। इसी लिए सियासत की रोटियां सेंकने वाले दलों को इनसे भय नहीं लगता है।वे बड़े किसानों पर आश्रित हैं कि आंदोलन वे ही करेंगे और लाभ तो उनको भी मिल ही जाएगा। यह भ्रम आखिर कब टूटेगा ? क्या सिहोरी खुलवाने कोई बड़ा किसान आया ? यह जरूरी है कि छोटे किसान भी जागें और सरकार की तंद्रा तोड़ें। अपने हक के लिए आवाज उठाएं ताकि संसद में उनकी भी गूंज उठे। अब देश के किसानों के खुद ही अपनी क्रांति की मशाल उठानी होगी। तभी बदलेगी भारत की तकदीर ।

( इस लेख के आखिर में मौजूदा गन्ना किसान आंदोलन परपिछले दिनों छपे कुछ समाचार और सरकार की लागत मूल्य की पूर्व कहानी भी दे रखी है। आप चाहें तो अवलोकन कर लें।)

भण्‍डारण, विपणन एवं मूल्‍य निर्धारण
कृषि जिन्‍सों का भण्‍डारण, मूल्‍य निर्धारण एवं विपणन उत्‍पादन की प्रक्रिया की तरह उच्‍च लाभों के लिए महत्‍वपूर्ण है। यही वजह है कि सरकार ने 1951 से विभिन्‍न पंच वर्षीय योजनाओं के माध्‍यम से भौतिक व्‍यापार खेतों पर तथा खेतों से बाहर भण्‍डारण, मूल संरचना, मानकीकरण एवं स्‍तरीकरण के लिए सुविधाओं, पैकेजिंग और पविहन के विकास पर जोर दिया हैं। उपयुक्‍त भण्‍डारण सुविधाओं के अभाव के कारण कीटों एवं अन्‍य जीवों द्वारा आक्रमण किया गया हैं। ऐसी जन्‍तु बाधा से हुई क्षति के कारण क्षति की सीमा के अधीन बाजार मूल्‍य में कमी आती है। कुछ मामलों में उत्‍पाद को उपयोग हेतु अनुपयुक्‍त घोषित कर दिया जाता है एवं उसे नष्‍ट करना पडता हैं। इसके फलस्‍वरूप किसानों को भारी क्षति उठानी पडती है। समझदार किसान अपने कृषि उत्‍पादों को सावधानी पूर्वक भण्‍डारण करने के लिए उपाय करने चाहिए ताकि बाजार में अधिकतम कीमत प्राप्‍त की जा सकें।
अधिकतर कृषि जिन्‍स बाजार नियमित मांग एवं आपूर्ति की नियमित ताकतों के अधीन कार्य करती हैं। सरकार कुछ फसलों के लिए न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य अथवा संबंधित मूल्‍य भी निर्धारित करती है ताकि किसानों के हितों की रक्षा की जा सके तथा उत्‍पादन बढाने के लिए उन्‍हें प्रोत्‍साहित किया जा सकें। यदि इन जिन्‍सों की कीमत समर्थन सीमा से नीचे गिरती है तो सरकार राज्‍य खाते में इन फसलों को खरीदने की व्‍यवस्‍था करती हैं।

सरकार भारत में एक विनियमित बाजार प्रणाली के माध्‍यम से कृषि उत्‍पादों के सुंसगठित विपणन का समर्थन करती है। इन भौतिक बाजारों का आशय यह सुनिश्चित करने से है कि किसान ईमानदारी का माहौल बना करके उचित लाभ प्राप्‍त कर सकें। यह ईमानदारी मांग तथा आपूर्ति की ताकतों, बाजार व्‍यवहारों के विनियमन तथा लेन-देन में पारदर्शिता से संबंधति होता हैं। यहां स्‍थानीय भण्‍डारण भण्‍डागारों, विपणन नेटवर्कों तथा सामग्री कीमतों के बारे में कुछ सूचना है जिससे आपके कृषि उत्‍पाद के लिए अच्‍छे मूल्‍य प्राप्‍त करने में मदद मिलेगी।


फसल वार, बाजार वार तथा न्‍यूनतम मूल्‍य


कृषि जिन्‍सों के क्रय एवं विक्रय की एक कारगर प्रणाली प्राप्‍त करने के लिए अधिकतर राज्‍य सरकारों एवं संघ शासित क्षेत्रों ने कृषि उत्‍पाद बाजारों के विनियमन के लिए व्‍यवस्‍था करने हेतु कृषि उत्‍पाद विपणन समिति जैसे विधानों को अधिनियमित किया है। इन विनियमित भौतिक बाजारों की स्‍थापना इसलिए की गई है। ताकि कृषकों को अपनी फसलों एवं अन्‍य कृषि उत्‍पादों के लिए लाभ की मुनासिव राशि सुनिश्चिम की जा सकें।

आजादी के समय भारत में लगभग 286 विनियमित बाजार थे। इस समय, देश में 7500 से अधिक ऐसे बाजार हैं। इनमें से अधिकतर विनियमित बाजार थोक़ बाजार हैं। इन बाजारों के अलावा, लगभग 30000 ग्रामीण आवधिक बाजार हैं जिनमें से 15 प्रतिशत विनियमन की परिधि के अंतर्गत काम करते हैं। वर्तमान में एकल विनियमित बाजार की औसत पहुंच 459 वर्ग कि.मी हैं। इसका अर्थ यह है कि किसानों को यह सुविधा प्राप्‍त करने के लिए काफी लम्‍बी दूरी तय करनी पडती है।
80 प्रतिशत से अधिक बाजारों में आंतरिक सडकों, चार दीवारी विद्युत प्रकाश, चढाने एवं उतारने की सुविधा तथा माप-तोल उपस्‍कर जैसी मूलभूत सुविधाएं उपलब्‍ध हैं। किसानों के विश्राम गृह आधे से अधिक विनियमित बाजारों में हैं। सरकार जिन मूलभूत ढांचे को सभी विनियमित बाजारों तक पहुंचाना चाहती है वे है, नीलामी मंच, शोषक प्रांगण एवं शीत भण्‍डार इकाइयां हैं।( स्रोत: राष्‍ट्रीय पोर्टल विषयवस्‍तु प्रबंधन दल )


जब किसानों ने संसद घेरा


   गन्ने के समर्थन मूल्य को लेकर संसद में विपक्ष और दिल्ली की सड़कों पर किसानों के तेवर देखने के बाद केंद्र सरकार नरम पड़ती दिख रही है। सरकार ने इस मसले पर सोमवार को सभी पार्टियों की बैठक बुलाई है। कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा कि सरकार किसानों की मांग के देखते हुए गन्ना अध्यादेश पर विचार करने के लिए तैयार है। इसके बाद किसानों ने अपना प्रदर्शन बंद कर दिया है।
इससे पहले संसद के शीतकालीन सत्र के पहले ही दिन लोकसभा में एनडीए, आरजेडी और समाजवादी पार्टी के सदस्यों ने गन्ने के मूल्य के सवाल को लेकर भारी हंगामा किया। इसके बाद सदन की बैठक एक बार के स्थगित करने के बाद दिन भर के लिए स्थगित कर दी गई। संसद के बाद दिल्ली की सड़कों पर भी गन्ने का समर्थन मूल्य बढ़ाए जाने को लेकर किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत और राष्ट्रीय लोकदल के नेता अजीत सिंह के अगुआई में हजारों किसानों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है। पश्चिमी यूपी से हजारों की संख्या में गन्ना किसान सुबह से ही दिल्ली पहुंचने लगे थे। इसकी वजह से कई इलाकों में सड़कों पर ट्रैफिक जाम हो गया। भारी विरोध प्रदर्शन को देखने के बाद सरकार तुरंत हरकत में आई। प्रधानमंत्री ने गृहमंत्री पी. चिदंबरम, वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी, कानून मंत्री वीरप्पा मोइली और कृषि मंत्री शरद पवार के साथ चर्चा की । इसमें गन्ना के समर्थन मूल्य पर फिर से विचार करने का फैसला किया गया। बताया जा रहा है कि केंद्र सरकार ने इस मुद्दे पर गतिरोध दूर करने के लिए राज्य सरकार और गन्ना मिल के मालिकों से भी बात करने का फैसला किया है। कृषि मंत्रालय के अधिकारियों ने मीटिंग में लिए फैसले की तो कोई जानकरी नहीं दे लेकिन बताया कि जो भी फैसला लिया गया है उसे आज शाम होने वाली कैबिनेट की मीटिंग में रखा जाएगा। कैबिनेट की मीटिंग से पहले शरद पवार मंत्रालय के अधिकारियों के साथ भी इस पर चर्चा करेंगे।
गन्ने के मूल्य को तय करने के लिए केंद्र सरकार का एक अध्यादेश लाई है जिसमें गन्ने का उचित और लाभकारी मूल्य (एफआरपी) वर्ष 2009-10 के लिए 129.85 रुपये प्रति क्विंटल रखा गया है। साथ ही केंद्र सरकार का कहना है कि अगर राज्य सरकार एफआरपी से अधिक मूल्य तय करती है तो उसकी भरपाई भई राज्य सरकार को ही करनी होगी। उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) 165 रुपये से 170 रुपये निर्धारित किया है। किसानों की मांग है कि उन्हें गन्ने की कीमत ढाई सौ रुपये से अधिक प्रति क्विंटल दी जाए।

गन्ना मूल्य के सवाल पर लोस में हंगामा,कार्यवाई स्थगित
नयी दिल्ली। संसद के शीतकालीन सत्र के पहले ही दिन लोकसभा में आज विपक्षी राजग के साथ साथ समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के सदस्यों ने गन्ने के मूल्य के सवाल को लेकर भारी हंगामा किया जिसके चलते सदन की बैठक एक बार के स्थगन के बाद कल सुबह तक के लिए स्थगित कर दी गयी।
अध्यक्ष ने जैसे ही प्रश्नकाल शुरू करने की घोषणा की कि सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव और रालोद प्रमुख अजित सिंह की अगुवाई में पार्टी सदस्य आसन के समक्ष आकर गन्ने के मूल्य के सवालों को लेकर नारेबाजी करने लगे।
यह सदस्य गन्ना किसानों की लूट बंद करो’’ के नारे लगा रहे थे। उधर भाजपा सहित राजग सदस्य भी अपने स्थानों पर खड़े होकर कुछ बोल रहे थे लेकिन शोर के कारण उनकी बात सुनी नहीं जा सकी। कई अन्य विपक्षी दलों के सदस्य भी अपने स्थानों पर खड़े हुए थे।
अध्यक्ष ने सदस्यों को शांत कराने का प्रयास करते हुए कहा कि इस मुद्दे पर बाद में पूरी चर्चा करायी जा सकती है लेकिन अभी प्रश्नकाल चलने दें। हंगामा थमते न न देख अध्यक्ष ने बैठक आधे घंटे बाद दोपहर 12 बजे तक के लिए स्थगित कर दी।
सदन की बैठक दोबारा शुरू होने पर भी यही नजारा था। सपा और रालोद के सदस्यों के साथ साथ राजग के भी अनेक सदस्य अपने स्थानों से उठकर आसन के समक्ष आ गए।
अध्यक्ष ने शोरशराबे के बीच ही जरूरी दस्तावेज सदन के पटल पर रखवाए और स्थिति शांत होते न न देख बैठक दिनभर के लिए स्थगित कर दी। इससे पूर्व आज सुबह सदन की बैठक शुरू होने पर फिरोजाबाद से कांग्रेस टिकट पर चुन कर आए राज बब्बर तथा दो मनोनीत एंग्लो इंडियन सदस्यों चार्ल्स डायस तथा इंग्रीद मैक्लेयोड ने सदन की सदस्यता की शपथ ली। अध्यक्ष मीरा कुमार ने सदन के नौ पूर्व सदस्यों के निधन का उल्लेख किया और सदन ने दिवंगत नेताओं को कुछ क्षण का मौन रखते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की।

गन्ना किसानों के लिए एफआरपी तय करना प्रदेश सरकार का अधिकार
लखनऊ। उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा है कि केन्द्र सरकार का एफआरपी (उचित एवं लाभकारी मूल्य) जो भी हो राज्य में गन्ना किसानों को चीनी मिलों से सामान्य प्रजाति के लिए प्रति कुंतल 165 रुपये और अगैती प्रजाति के लिए प्रति कुंतल 170 रुपये का राज्य परामर्शित मूल्य सुनिश्चित करायेगा। प्रदेश के मंत्रिमंडलीय सचिव शशांक शेखर सिंह ने आज यहां संवाददाताओं से बातचीत में सर्वोच्च न्यायालय के एक निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि गन्ना किसानों के लिए राज्य परामर्शित मूल्य निर्धारित करना प्रदेश सरकार का अधिकार है और प्रदेश के गन्ना किसानों को वह मूल्य सुनिश्चित किया जायेगा।
सिंह ने बताया कि राज्य सरकार ने प्रदेश के सभी जिलाधिकारियों एवं आयुक्तों को निर्देश दिये हैं कि वे अपने क्षेत्रों में चीनी मिलों में पेराई शुरू कराएं और गन्ना किसानों के हितों की सुरक्षा सुनिश्चित करें। केन्द्र सरकार द्वारा एफआरपी की नयी नीति के तहत गन्ने का दाम प्रति कुंतल 129.84 रुपये तय किये जाने पर शेखर सिंह ने बताया कि मुख्यमंत्री मायावती ने पूर्व मे लागू नीति ही जारी रखने का आग्रह करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखा है। उन्होंने बताया कि हालांकि केन्द्र सरकार से इस संबंध में कोई उत्तर नही मिला है मगर राज्य सरकार सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व में दिये आदेश के अनुसार राज्य परामर्शित मूल्य निर्धारित करने के लिए स्वतंत्र है और राज्य सरकार ने पेराई वर्ष 2009-10 के लिए पिछले वर्ष के मुकाबले पहले ही प्रति कुंतल 25 रुपये की बढोत्तरी कर दी है।

गन्ना मूल्य विवाद से चीनी उद्योग को भी लगेगा झटका

सरकार द्वारा लागू की गई गन्ना मूल्य की नई व्यवस्था फेयर एंड रिम्यूनेरेटिव प्राइस (एफआरपी) केवल किसानों के लिए ही नहीं, बल्कि चीनी उद्योग के लिए भी संकट का सबब बन सकती है। यह विवाद देश के चीनी उद्योग के लिए दीर्घकालिक रूप से घातक साबित हो सकता है। खासतौर से पिछले कुछ बरसों में उत्तर भारत में चीनी उत्पादन की क्षमता में निवेश करने वाली कंपनियां इसकी चपेट में आ सकती हैं। इसकी वजह पिछले करीब चार साल में इन राज्यों में चीनी कंपनियों द्वारा बढ़ाई गई क्षमता के बेकार हो जाने की आशंका है। अभी भी कई समूह अपनी पेराई क्षमता का पूरा उपयोग नहीं कर रहे हैं। इसका कारण पिछले दो साल में गन्ना किसानों द्वारा क्षेत्रफल में लगातार कमी किया जाना रहा है।
यही वजह है कि केंद्र सरकार द्वारा लागू एफआरपी व्यवस्था को लेकर चीनी उद्योग भी बंट गया है। इसने उत्तर भारत के राज्यों में निजी चीनी उद्योग की चिंता काफी बढ़ी है। भले ही एक वर्ग एफआरपी को उद्योग की सेहत के लिए फायदेमंद मान रहा है, लेकिन पूरा उद्योग इसके पक्ष में नहीं है। उनको यह समझ में आ गया है कि 129.84 रुपये प्रति क्विंटल के एफआरपी पर उनको गन्ना मिलने वाला नहीं है। यही वजह है कि मंगलवार को दिल्ली में गन्ना मूल्य पर कृषि मंत्री शरद पवार की बैठक के नाकामयाब होने के बाद वह किसी नए मध्यस्थ की तलाश में जुट गए हैं। इस मुद्दे पर खुलकर बात करने से भी निजी चीनी कंपनियों के मालिक कतरा रहे हैं। त्नबिजनेस भास्करत्न के साथ बातचीत में उत्तर प्रदेश के एक बड़े चीनी समूह के प्रबंध निदेशक ने कहा कि हमारे पास सालाना पांच लाख टन चीनी बनाने की क्षमता है, लेकिन हम पिछले साल दो लाख टन चीनी भी नहीं बना सके। इसकी वजह गन्ने का न मिलना है। चालू साल में विवाद के चलते किसानों ने गन्ने की प्लांटिंग रोक दी है जो हमारे लिए घातक हो सकती है। ऐसे में हमारे निवेश पर रिटर्न कैसे मिलेगा, जबकि हम चीनी उद्योग पर अपने समूह का सबसे अधिक फोकस कर रहे हैं।

वहीं, उद्योग सूत्रों का कहना है कि चीनी मिलों को धीरे-धीरे बात समझ में आ रही है। यही वजह है कि गन्ना मूल्य के झंझट को लेकर वह राज्य सरकार का दरवाजा खटखटाने जा रही हैं। बुधवार को निजी चीनी मिलों की उत्तर प्रदेश सरकार के साथ इस विवाद को सुलझाने के लिए बैठक हो रही है। देश की कुल चीनी उत्पादन क्षमता करीब 290 लाख टन है। इसमें से करीब 75 लाख टन क्षमता उत्तर प्रदेश में है और इससे कुछ कम करीब 72 लाख टन की क्षमता महाराष्ट्र में है। बाकी राज्यों में कर्नाटक की क्षमता करीब 20 लाख टन, तमिलनाडु की क्षमता लगभग 18 लाख टन और आंध्र प्रदेश की क्षमता करीब दस लाख टन है। वर्ष 2004 में उत्तर प्रदेश की मुलायम सिंह सरकार द्वारा लाई गई प्रोत्साहन नीति के बाद राज्य में करीब 10,000 करोड़ रुपये का निवेश चीनी उत्पादन क्षमता स्थापित करने में हुआ था।
इस मुद्दे पर कर्नाटक के एक बड़े चीनी उद्योग समूह के पदाधिकारी का कहना है कि अगर गन्ना मूल्य की अनिश्चितता के चलते किसान दूसरी फसलों की ओर रुख कर लेते हैं तो इस निवेश का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। वहीं, उद्योग से लंबे समय तक जुड़े रहने वाले एक विशेषज्ञ का कहना है कि बजाज हिंदुस्थान और बलरामपुर चीनी मिल के बीच सौदेबाजी टूटने में एक बड़ा कारण आने वाले दिनों में गन्ना उपलब्धता को लेकर खड़ी हो रही अनिश्चितता भी रही है। इसके साथ ही उनका कहना है कि किसानों को दूसरी फसलों में बेहतर आय के विकल्प हासिल हो गए हैं। इसलिए यह जरूरी नहीं कि वह गन्ना मूल्य की अनिश्चितता के चलते इसकी फसल को प्राथमिकता दें। उत्तर प्रदेश के अलावा पिछले कुछ वषरें में पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश में भी चीनी मिलों की नई क्षमता स्थापित करने में निवेश हुआ है।

गन्ना मूल्य पर पहली बार सख्त हुए पवार

गन्ना मूल्य पर आंदोलित किसानों के बढ़ते दबाव और संसद के आगामी सत्र में इस मुद्दे के उछलने की आशंका से परेशान केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने निजी चीनी मिलों को साफ कर दिया है कि अगर अगले कुछ दिनों में वे किसानों को ऊंचा दाम देने की घोषणा नहीं करती हैं तो वह खुद गन्ना मूल्य की सार्वजनिक घोषणा कर देंगे। गुरुवार को आयातित चीनी के मुद्दे पर बुलाई गई उद्योग की एक बैठक में पवार का यह लहजा दिखा। उन्होंने चीनी मिलों को लगभग धमकी देते हुए कहा कि अगर वे अगले दो-तीन दिन के भीतर किसानों के साथ गन्ना मूल्य पर समझौता नहीं करती हैं तो वह खुद गन्ने के वाजिब दाम की घोषणा कर देंगे। यह दाम 200 रुपये प्रति क्विंटल से ज्यादा हो सकता है।
बैठक में मौजूद एक सूत्र के मुताबिक पवार ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और हरियाणा की निजी चीनी मिलों के मालिकों से साफ कहा कि महाराष्ट्र और कर्नाटक में चीनी मिलें किसानों के साथ चीनी की ऊंची कीमतों का 90 फीसदी तक बंटवारा कर रही हैं। लेकिन आप लोग किसानों के साथ इस ऊंची कमाई को बांटना नहीं चाहते हैं। अगर इस मामले पर कोई रास्ता जल्दी नहीं निकलता है तो मुझे मजबूर होकर ऊंची कीमत की सार्वजनिक घोषणा करनी पड़ेगी। खासतौर से उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों से उन्होंने कहा कि दो दिन पहले आप लोग इस मुद्दे पर मुझसे बात करके गये थे। उसके बाद अभी तक किसानों के साथ कीमत का कोई समझौता नहीं हो सका है। इस अनिश्चितता को तुरंत समाप्त करना जरूरी है।
बैठक में मौजूद एक अन्य सूत्र के मुताबिक पवार का कहना था कि मौजूदा 129.84 रुपये प्रति क्विंटल के फेयर एंड रिम्यूनेरेटिव प्राइस (एफआरपी) पर गन्ना खरीदने की स्थिति में चीनी मिलों को 100 रुपये प्रति क्विंटल तक मुनाफा हो रहा है। इस मुनाफे को उन्हें किसानों के साथ बांटने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। उत्तरी राज्यों में गन्ने का एसएपी 162.50 रुपये से 185 रुपये प्रति क्विंटल तक घोषित किया गया है। लेकिन नई व्यवस्था में एसएपी को परोक्ष रूप से समाप्त कर दिया गया है। जबकि महाराष्ट्र में चीनी मिलों ने किसानों को 210 रुपये प्रति क्विंटल तक का पहला एडवांस दिया है। इस बैठक में चीनी मिलों ने कहा कि आयातित चीनी पर न तो स्टॉक लिमिट लागू है और न ही लेवी। इसके अलावा इसका कोई रिलीज मैकेनिज्म भी नहीं है। यह घरेलू उद्योग के लिए ठीक नहीं है।

धान पर 50 रुपये बोनस व गन्ने का एफआरपी तय
केंद्र सरकार ने चालू विपणन सीजन में धान की सरकारी खरीद पर 50 रुपये का बोनस देने का फैसला किया है। चालू सीजन के लिए सरकार ने धान की सामान्य किस्म का न्यू्नतम समर्थन मूल्य 950 रुपये और ग्रेड ए के लिए 980 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। किसानों को 50 रुपये का बोनस एमएसपी के ऊपर मिलेगा। पहली अक्टूबर से शुरू हुए खरीद सीजन में बोनस के बाद किसानों को ग्रेड ए धान का भाव 1,030 रुपये और सामान्य धान का 1,000 रुपये प्रति क्विंटल मिलेगा।
प्रधानमंत्री मनमोहन की अध्यक्षता में गुरुवार को हुई आर्थिक मामलों की मंत्रीमंडलीय समिति (सीसीईए) की बैठक में यह फैसला लिया गया।सीसीईए ने गन्ने के वैधानिक न्यूनतम मूल्य (एसएमपी) की जगह अध्यादेश के जरिये आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन कर लागू की गई गन्ने के फेयर एंड रिम्यूनरेटिव प्राइस (एफआरपी) की भी घोषणा कर दी। चालू पेराई सीजन (2009-10) के लिए गन्ने का एफआरपी 129.84 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है।
फैसले की जानकारी देते हुए गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने कहा कि गन्ने के वैधानिक न्यूनतम मूल्य (एसएमपी) की जगह अब उचित और लाभकारी मूल्य, एफआरपी तय किया गया है। वर्ष 2009-10 के गन्ना पेराई सीजन (अक्टूबर से सितंबर) के लिए चीनी मिलें किसानों को गन्ने का एफआरपी 129.84 रुपये प्रति क्विंटल (9.5 रिकवरी) के आधार पर भुगतान करेंगी। धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद पहली अक्टूबर से शुरू हो चुकी है लेकिन तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव के कारण बोनस की घोषणा में देरी हुई। चालू खरीफ सीजन में प्रतिकूल मौसम से देश में चावल की पैदावार में लगभग 160 लाख टन की कमी आने की आशंका है। पिछले खरीफ सीजन में देश में 845 लाख टन चावल का उत्पादन हुआ था।

रुक नहीं रहीं किसानों की आत्महत्याएँ
महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में कर्ज़ में डूबे चार और किसानों ने आत्महत्या कर ली है और इसी के साथ इस क्षेत्र में आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या 1000 हो गई है.
आत्महत्याओं का यह ताज़ा मामला ऐसे समय में सामने आया है जब पूरा देश दिवाली का पर्व मना रहा है.एक अनुमान के मुताबिक पिछले वर्ष जून से लेकर अभी तक 1000 किसान आत्महत्या कर चुके हैं. जानकारों का मानना है कि इस तरह की घटनाओं के सामने आने की एक वजह यह भी है कि राज्य सरकार इन किसानों से कपास खरीदने में देर कर रही है. उधर किसानों ने भी माँग की है कि सरकार को उनसे जल्द ही फसल ख़रीद लेनी चाहिए और उसके बदले में उन्हें उचित दाम दिया जाना चाहिए.किसानों का कहना है कि अगर सरकार उनसे तुरंत कपास नहीं ख़रीदती है तो स्थितियाँ और भी बदतर हो सकती हैं.
ग़ौरतलब है कि यह क्षेत्र बड़े पैमाने पर कपास की खेती के लिए जाना जाता है पर पिछले 16 महीनों से यहाँ किसानों की आत्महत्या के मामले लगातार सामने आ रहे हैं.

किसानों की आत्महत्या दुर्भाग्यपूर्ण-राष्‍ट्रपति

Wednesday, 18 November 2009

लालू की रेल पर ममता का श्वेतपत्र

भारतीय रेल पर बहुप्रतीक्षित श्वेत पत्र संसद के आगामी सत्र में पेश होने की संभावना है जिसमें रेलवे की वित्तीय स्थिति और लालू प्रसाद के रेलवे में आमूल परिवर्तन के दावे की असलियत दिख सकती है। रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा यह :श्वेत पत्र: लगभग तैयार है और इसे अंतिम स्वरूप दिया जा रहा है। उन्होंने बिना ब्यौरा दिए कहा इसमें रेलवे के परिचालन और वित्तीय स्थिति से जुड़े कुछ आधारभूत आंकड़े होंगे। रेल मंत्री ममता बनर्जी ने रेल बजट में वायदा किया था कि वह पिछले पांच साल के प्रदर्शन के आधार पर रेल की सांगठनिक, परिचालन और वित्तीय स्थिति के संबंध में श्वेत पत्र लेकर आएंगी और विजन..2020 को दीर्घ और अल्पकालिक रणनीति और कार्य योजना के साथ विकसित करेंगी। लालू प्रसाद ने अपने कार्यकाल के दौरान रेलवे में कुल 90, 000 करोड़ रुपए का अधिशेष दिखाया था जबकि बनर्जी ने कहा था कि वेतन आयोग की सिफारिशों पर अमल करने के लिए पिछले साल 13, 600 करोड़ रुपए और इस साल 2, 600 करोड़ रुपए के व्यय के बाद केवल 8, 361 करोड़ रुपए का कोष ही बचा है।

बनर्जी ने कहा कि अधिशेष धन नहीं होने से भारतीय रेल टक्कर रोधी उपकरण के लिए रकम की व्यवस्था नहीं हो सकी है। रेलवे ने श्वेत पत्र तैयार करने के लिए वरिष्ठ अधिकारियों की एक समिति बनायी है। रेल मंत्री बनर्जी से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा,‘मैंने संसद से वायदा किया है और उसे वहीं प्रस्तुत किया जाएगा।

Monday, 19 October 2009

समुद्र में विलीन हो जाएंगे कई देश !

फिजी के एक वैज्ञानिक ने चेतावनी दी है कि समुद्र के बढ़ते जलस्तर से प्रशांत क्षेत्र के कई द्वीपों के जलमग्न होने का खतरा पैदा हो गया है। उन्होंने सुझाव दिया कि कोपेनहेगन में होने जा रहे जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में इन द्वीपों को पुनर्वास सहायता की मांग करनी चाहिए। फिजी में यूनिवर्सिटी आफ साउथ पैसिफिक में जलवायु परिवर्तन पर शोध कर रहे प्रोफेसर पैट्रिक नून ने कहा कि यह कहना मुश्किल है कि सन 2100 तक कितने द्वीपों पर आबादी सलामत रहेगी।

नून मार्शल द्वीप की राजधानी माजुरो में सोमवार को शुरू हुई पैसिफिक क्लाइमेट चेंज राउंडटेबल बैठक की अध्यक्षता कर रहे हैं। इस बैठक में प्रशांत क्षेत्र के चौदह देश दिसंबर में कोपेनहेगन में होने वाली बैठक के लिए अपनी रणनीति पर विचार विमर्श करेंगे। नून ने कहा कि 2007 में जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल की ओर से पेश की गई तस्वीर के मुकाबले समुद्र का जलस्तर बहुत ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है। इस सदी के अंत तक समुद्र के जलस्तर में तीन फुट से ज्यादा की बढ़ोतरी होगी। नून ने कहा कि निचले स्तर पर बसे मार्शल आयलैंड, किरिबाती और तुवालू जैसे द्वीपीय देश नक्शे से गायब हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी चुनौती नीति निर्धारकों को यह समझाने की है कि आज प्रशांत क्षेत्र के लोगों की पूरी जीवन शैली में व्यापक बदलाव की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि इस बहस में पुनर्वास का मुद्दा सबसे पेचीदा है। लोगों को यह समझाना मुश्किल है कि जहां वे सदियों से रहते आए हैं वहां रहना अब व्यावहारिक विकल्प नहीं रह गया है (एजंसियां)।

Thursday, 15 October 2009

अनाज कम पड़ जाएगा, लोग भूखे रह जाएंगे ?

 भारत एक विषम संकट में फंस सकता है अगर खेती की जमीन को उद्योग धंधों को खड़ा करने की मुहिम में अंधाधुंध इस्तेमाल में परहेज नहीं बरता गया। अभी कहा जा रहा है कि उद्योग धंधो के बिना पूरा विकास संभव नहीं है। इस उद्देश्य की पूर्ति में खेती की उपजाऊ जमान पर उद्योग लगाने की कोशिश हो रही है। इतना ही नहीं भविष्य के खाद्यान्न की जरूरत को दरकिनार कर बंजर पड़ी जमीनों को खेती योग्य बनाने की मुहिम भी लगभग ठंडी पड़ गई है। इसका खामियाजा यह भुगतना होगा कि आने वाले कुछ दशकों में दुनिया की जो आबादी बढ़ेगी उसके लिए पेट भर अनाज भी मयस्सर नहीं हो पाएगा। कम से कम भारत इस संकट में ज्यादा फंसता नजर आ रहा है। इसकी कई वजहें हैं। पहला यह कि खेती योग्य जमीन बढ़ाने की जगह उपजाऊ जमीन पर उद्योग लगाने की मुहिम चल रही है। दूसरा यह कि खेती और किसानों की हालत भारत में सोचनीय होती जा रही है। इसी कारण किसान अब पीढ़ी दर पीढ़ी किसान नहीं रहना चाहता। खेत मजदूरों का गांवों से भारी पैमाने पर पलायन हो रहा है। अगर खेती इतने फायदे का धंधा नही बन पाती जिससे किसान खुशहाल रह सके तो यह दशा किसा भी सरकार के लिए सोचनीय हो सकती है। मैं भी एक किसान का बेटा हूं मगर सपने में भी नहीं सोच पारहा हूं कि अच्छी तालीम पाने को बाद एपने बेटे को पुस्तैनी खेती के धंधे में लगा पाऊं। आखिर क्यों ? क्या कोई सरकार इस बात के लिए चिंतित है कि खेती को मूलभत ढांचा ध्वस्त न होने पाए। कोई ठोस प्रयास की जगह किसानों की भलाई के दिखावे भर किए जा रहे हैं जबकि किसान आत्महत्या करने तक को मजबूर हो रहे हैं। वह भी ऐसे समय जब संयुक्त राष्ट्रसंघ ने चेतावनी दे डाली है कि एशिया प्रशांत क्षेत्र में खाद्यान्न का भारी संकट पैदा हो सकता है। दुनिया भर में विश्व खाद्य दिवस मनाए जाने के इस मौके पर कम से कम भारत का हर नागरिक इन सवालों का जवाब ढूंढे कि आखिर क्यों उन्हें इस संकट में धकेल रही हैं हमारी सरकारें ? जाहिर है अनाज किसी मंत्री, उद्योगपति या उनके दलालों को कम नहीं पड़ेगा। भूख से मरेगा आम आदमी ही।  आप भी देखें इस रिपोर्ट में क्या है ?

 अगले 4 दशकों में 40 करोड़ लोग भूखे रह जाएंगे.

  संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि अगर दुनिया में खेती योग्य अतिरिक्त ज़मीन का इंतजाम नहीं किया गया और खाद्यान्न की पैदावार 70 फ़ीसदी नहीं बढ़ी तो अगले 4 दशकों में 40 करोड़ लोग भूखे रह जाएंगे. रोम स्थित संयुक्त राष्ट्र खाद्यान्न और कृषि संस्था का कहना है कि दुनिया में अनाज और बाक़ी खाद्यान्न की उत्तरोत्तर कमी होती जा रही है. संस्था ने अपनी दो दिवसीय संगोष्ठी के बाद यह राय दी कि इस वक़्त दुनिया में कृषि योग्य जो ज़मीन उपलब्ध है वह विश्व की बढ़ती आबादी के लिए अनाज और खाद्यान्न पैदा करने के लिए पर्याप्त नहीं है.

सन् 2050 तक खाद्यान्न के उत्पादन में कम से कम 70 फ़ीसदी की वृद्धि की आवश्यकता होगी क्योंकि अनुमान है कि अगले चार दशकों में दुनिया की आबादी बढ़कर नौ अरब हो जाएगी.
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि दुनिया की वर्तमान कृषि योग्य ज़मीन की पैदावार अगर बढ़ाई भी जाती है तो भी 2050 तक दुनिया में कम से कम 37 करोड़ लोग भुखमरी के शिकार होंगे.

संस्था का यह भी कहना है कि कृषियोग्य ज़मीन की कमी के अलावा धरती के जलवायु में हो रहे परिवर्तन और खेतिहर मज़दूरों की घटती संख्या भी खाद्यान्न की कमी के कारण होंगे. इसलिए खाद्यान्न की पर्याप्त आपूर्ति के लिए अभी से उचित क़दम उठाने की ज़रुरत है.
 
'खाद्यान्न पर ख़र्च बढ़ाना होगा'


खाद्य पदार्थों की विकासशील देशों से माँग बढ़ रही है और लागत भी बढ़ रही है संयुक्त राष्ट्र  ने चेतावनी दी है कि दुनिया के खाद्यान्न संकट से निपटने के लिए विकासशील देशों को कृषि क्षेत्र में 10 गुना अधिक राशि ख़र्च करनी होगी. संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन के प्रमुख ज़ाक डियूफ़ ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि इस समस्या के समाधान के लिए 20 से 30 अरब डॉलर की ज़रूरत होगी. खाद्यान्न संकट के कारण दुनिया के कई देशों में गंभीर स्थिति उत्पन्न हो गई थी. इसको देखते हुए रोम में खाद्यान्न सुरक्षा सम्मेलन बुलाया गया है. संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून की ओर से इस सम्मेलन में दुनिया के नेताओं से खाद्यान्न की लगातार बढ़ रही कीमतों को काबू में करने के लिए प्रभावी प्रयास करने का प्रस्ताव आना है. इस मौके पर मून व्यापारिक रोक के रूप में कीमतों पर लगाम कसने के लिए कोई उपाय पेश कर सकते हैं.

खाद्य और कृषि संगठन ने चेतावनी दी है कि अगर खाद्यान्न की पैदावार बढ़ाने और उन लोगों तक इसे पहुँचाने का इंतज़ाम नहीं किया गया तो हालात बद से बदतर हो सकते हैं. भुखमरी से 10 करोड़ से ज़्यादा लोग प्रभावित हुए हैं

ऐसा माना जा रहा है कि इस खाद्यान्न संकट ने 10 करोड़ लोगों को भुखमरी की तरफ़ ढकेल दिया है.आंकड़ों के अनुसार इस साल ग़रीब देशों को खाद्यान्न आयात करने के लिए 40 प्रतिशत ज़्यादा खर्च करना पड़ा है.

खाद्य और कृषि संगठन ने दानकर्ता देशों से माँग की है कि वो विकासशील देशों की और अधिक मदद करें ताकि किसान बीज, खाद और किसानी से जुड़ी दूसरी चीज़ों को खरीद सकें. इस बैठक का एक बड़ा मुद्दा जैविक ईंधन भी होगा. पिछले कुछ सालों में मक्के का इस्तेमाल इथेनॉल बनाने में किया गया है. ऐसा माना जा रहा है कि बान की मून अमरीका से माँग कर सकते हैं कि वो जैविक ईंधन की पैदावार के लिए दी जाने वाली सब्सिडी को वापस लें ताकि इसका इस्तेमाल खाद्यान्न के तौर पर किया जा सके.

बढ़ती लागत

इसके पहले संयुक्त राष्ट्र ने कहा था कि खाद्य पदार्थों की विकासशील देशों से माँग बढ़ रही है और उत्पादन की लागत भी बढ़ रही है.खाद्य संकट ने कई देशों में दंगे तक करा दिए हैं संयुक्त राष्ट्र संस्था खाद्य और कृषि संगठन ने चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि दुनिया भर में खाद्य पदार्थों की जो क़ीमतें बढ़ी हैं वो पिछले सभी रिकॉर्ड से कहीं ज़्यादा है और उसकी कुछ वजह ये भी थी कि ख़राब मौसम की वजह से बहुत सी फ़सलें तबाह हो गई थीं.

विश्व खाद्य संगठन की वार्षिक अनुमान रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2017 तक गेहूँ की क़ीमतों में 60 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी हो सकती है और वनस्पति तेल उस समय तक लगभग 80 प्रतिशत महंगा हो सकता है. दुनिया भर में वर्ष 2005 और 2007 के बीच गेहूँ, मक्का और तिलहन फ़सलों के दाम लगभग दोगुने हो चुके हैं. संगठन ने हालाँकि इन चीज़ों क़ीमतों में कुछ कमी होने की संभावना जताई है लेकिन यह कमी हाल के समय में हुई महंगाई के मुक़ाबले बहुत धीमी होगी.
   
     
इसे भी पढ़िए-------- लिंक पर क्लिक करिए ।

भारत पर खाद्य संकट का ख़तरा?

Tuesday, 13 October 2009

फिर भौंका चीन

   चीन ने अभी ३ अक्तूबर को प्रधानमंत्री के अरूणांचल दौरे पर भौंका और पिछले साल भी प्रधानमंत्री की अरुणाचल प्रदेश की यात्रा पर विरोध जताया था। पिछले साल प्रधानमंत्री चीन से लौटने के बाद 31 जनवरी और 1 फरवरी को अरुणाचल के दौरे पर गए थे। चीन ने निर्वासित आध्यात्मिक नेता दलाई लामा की पिछले महीने की राज्य की यात्रा का भी विरोध किया था। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, 'चीन की चिंताओं को दरकिनार कर भारतीय नेता के विवादित क्षेत्र के दौरे से हम बहुत असंतुष्त हैं। हम चाहते हैं कि भारतीय पक्ष चीन की गंभीर चिंताओं का समाधान करे और विवादित क्षेत्र में गड़बड़ी पैदा न करे ताकि दोनों देशों के बीच संबंध स्वस्थ तरीके से विकसित होते रहें।'
मंत्रालय की वेबसाइट पर डाले गए बयान में प्रवक्ता ने कहा है कि चीन और भारत ने भी आधिकारिक रूप से अपनी सीमा को चिह्नित करने के मसले को सुलझाया नहीं है। बायन में यह भी कहा गया है कि भारत-चीन सीमा के पूर्वी हिस्से पर चीन का रुख स्थिर और साफ है।
चीन के इस रुख के बाद भारत में चीन के राजदूत चंग यान को विदेश मंत्रालय में तलब किया गया है। वह पूर्वी एशिया मामलों के प्रभारी संयुक्त सचिव विजय गोखले मिले हैं। चीन के विरोध को खारिज करते हुए वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग है और प्रधानमंत्री देश के किसी भी हिस्से में जा सकते हैं। विदेश मंत्री एस. एम. कृष्णा ने भी कहा है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अविभाज्य हिस्सा है।

भारत का कहना है कि चीन ने गैर-कानूनी रूप से जम्मू कश्मीर के 43, 180 वर्ग किलोमीटर भाग पर कब्जा जमा रखा है। दूसरी ओर, चीन भारत पर उसके करीब 90 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा जमाने का आरोप लगाता है जिसका अधिकतर हिस्सा अरुणाचल प्रदेश में है।
भारत अरुणाचल को अपना अटूट अंग मानता है लेकिन चीन इसे विवादास्पद कहता है. भारत ने चीन की इस आपत्ति पर विरोध प्रकट किया है कि प्रधनमंत्री मनमोहन सिंह को इस 'विवादित सीमाक्षेत्र' का दौरा नहीं करना चाहिए था. चीन की इस पर भारतीय विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता विष्णु प्रकाश ने मंगलवार को कहा, "अरुणाचल प्रदेश भारत का एक अभिन्न और अटूट हिस्सा है. अरूणाचल प्रदेश में रहने वाले लोग भारत के नागरिक हैं और वे भारतीय लोकतंत्र की मुख्य धारा में शामिल रहने पर गौरवान्वित महसूस करते हैं. चीन सरकार भी भारत के इस स्पष्ट रुख़ से भली-भाँति परिचित है."

चीन ने भारत के प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह की अरुणाचल प्रदेश की यात्रा पर यह कहते हुए 'ज़ोरदार आपत्ति' जताई है कि वो एक ऐसा सीमावर्ती क्षेत्र है जिस पर विवाद चल रहा है. चीन के विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता मा झाओक्सू ने सरकारी ने समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने एक वक्तव्य जारी करके कहा है, "भारतीय नेता ने विवादित सीमावर्ती क्षेत्र का दौरा करके एक बार फिर चीन की गंभीर चिंताओं को नज़रअंदाज़ किया है और इस यात्रा पर चीन प्रबल रूप से असंतुष्ट है." प्रवक्ता ने कहा कि चीन और भारत ने अपनी सीमा रेखा का कभी भी आधिकारिक रूप से रेखांकन नहीं किया है और चीन-भारत सीमा के पूर्वी हिस्से पर चीन का रुख़ बिल्कुल स्पष्ट है.

प्रवक्ता मा झाओक्सू का कहना था, "हम माँग करते हैं कि भारत सरकार चीन की गंभीर चिंताओं पर ध्यान दे और विवादित क्षेत्र में अशांति को ना भड़काए ताकि चीन और भारत संबंधों के सदभाव के साथ आगे बढ़ाने में मदद मिल सके. " भारतीय मीडिया संगठनों में छपी ख़बरों में कहा गया है कि प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने मंगलवार को अरूणाचल प्रदेश का दौरा किया और वहाँ एक चुनाव रैली को संबोधित किया.

भारतीय प्रवक्ता ने अपने बयान में यह भी कहा कि "भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह एक प्रचलित परंपरा है कि जब संसद या राज्य विधानसभाओं के लिए चुनाव होते हैं तो राजनीतिक नेता उन क्षेत्रों का दौरा करते हैं. भारत सरकार देश के किसी भी हिस्से में रहने वाले अपने नागरिकों की सुरक्षा और कल्याण सुनिश्चित करने के लिए कटिबद्ध है."

भारतीय जनता पार्टी ने कड़ी आपत्ति जताई

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अरुणचल प्रदेश यात्रा पर चीन की ओर जताए गए विरोध पर देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने कड़ी आपत्ति जताई है। भाजपा ने सरकार से इसका कड़ा प्रतिवाद करने की मांग की। पार्टी प्रवक्ता राजीव प्रताप रूडी ने संवाददाताओं से बातचीत के दौरान कहा- ‘प्रधानमंत्री की अरुणाचल प्रदेश यात्रा के बारे में चीन ने अपना विरोध जताने के लिए जिस शब्‍दावली का प्रयोग किया है वह बेहद आपत्तिजनक और अस्‍वीकार्य है।‘

रूड़ी ने कहा कि विदेश मंत्रालय को चाहिए कि वह भारत स्थित चीन के राजदूत को बुला कर इस बारे में कड़ा प्रतिवाद दर्ज कराए। भाजपा प्रवक्ता ने कहा- यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि चीन की ओर से बार-बार किए जाने वाले सीमा उल्लंघनों और प्रधानमंत्री की अरुणाचल यात्राओं पर उसके विरोध का भारत की ओर से उचित जवाब नहीं दिया जाता है।'
भाजपा प्रवक्‍ता ने कहा कि हम चीनी हरकतों का जवाब देना तो दूर की बात है। सरकार इन उल्लंघनों को मीडिया की ओर से खड़ा किया गया हव्‍वा बताकर बता कर टालने की ही कोशिश करती है। उधर सरकार ने सिंह की अरुणाचल यात्रा पर चीन की आपत्ति को खारिज करते हुए आज दिए कड़े बयान में कहा कि यह प्रदेश भारत का एक अभिन्‍न अंग है। भारत ने चीन की इस टिप्‍पणी को निराशाजनक बताया है। इसके साथ ही भारत की ओर से यह भी कहा गया है कि इस तरह की टिप्‍पणियों से सीमा वार्ता की प्रक्रिया को मदद नहीं मिलेगी।

Wednesday, 17 June 2009

लालगढ़- नंदीग्राम के बाद अब एक और खूनी जंग की आशंका


सिंगुर और नंदीग्राम में सरकार का विपक्ष ने जमीन अधिग्रहण के कारण जो विरोध किया था उसे रोकने में सरकार ने सख्ती का जो रवैया अपनाया था उसकी चरम परिणति भारी पैमानों पर खूनखराबे में बदल गई। दोनों तरफ इलाके में दबदबा कायम रखने की छिड़ी जंग में ताकतवर माकपा ने नंदीग्राम से अंततः विरोधिओं को खदेड़ दिया। सिंगुर में ममता बनर्जी ने सरकार व टाटा के खिलाफ जो जंग छेड़ी उसमें भी खूनखराबा तो हुआ ही, नैनो जैसा उद्योग भी पश्चिम बंगाल के हाथ से निकल गया। सरकार की हर मामले को ताकत से निबटाने की प्रवृत्ति का नतीजा यह रहा कि लोकसभा चुनावों में पश्चिम बंगाल में ३२ सालों से सत्तासीन माकपा को अप्रत्याशित हार का सामना करना पड़ा। यह सब ताकत के आगे उभरे उस जनविरोध का नतीजी था वाममोर्चा सरकार के जिद के कारण पैदा हुआ था। यानी जनता में यह विरोध विपक्ष ने नहीं बल्कि खुद वाममोर्चा सरकार और पार्टी के तानाशाह रवैए ने पैदा किया। कहते हैं दूध का जला छाछ भी फूंककर पीता है। अब लालगढ़ की समस्या में एक बार फिर वाममोर्चा सरकार फिर फंस गई है। तब कांग्रेस साथ थी मगर अब कांग्रेस भी तृणमूल के साथ खड़ी हो गई है।
लालगढ़ की हालत बदतर है और पूरे इलाके पर सरकार से नाराज आदिवासियों की मदद से माओवादियों का कब्जा है। माकपा के लोग दिन दहाड़े मारे जा रहे हैं। सरकार चाहकर भी कारवाई नहीं कर पा रही है क्यों कि उसे डर है कि अपने कार्यकर्ताओं को बचाने की कार्रवाई में कहीं फिर कोई नंदीग्राम या सिंगुर के हालात पैदा हो जाएं और विपक्ष इसका राजनीतिर फायदा उठा ले। २९ नगरपालिकाओं के लिए २८ जून को होने वाले चुनाव ने और भी सोचने पर मजबूर कर दिया है। अब तो इस बेसब्री का बांध भी टूट कहा है। माकपा के राज्य सचिव विमान बोस ने तो स्पष्ट तौरपर कहा है कि सरकार लालगढ़ में कार्रवाई करे। केंद्र ने भी राज्यसरकार के पाले में गेंद डाल दिया है। केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदम्बरम ने कहा है कि उस इलाके में अमन कायम रखना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है। कुल मिलाकर लालगढ़ के मुद्दे पर केंद्र भी मदद तो दे रहा है मगर चाहता है कि माओवादियों के खिलाफ जंग राज्य सरकार छेड़े। अब अगर सरकार कार्रवाई की जाती है तो माओवादियों से खूनी जंग लड़नी होगी और इसमें हजारों आदिवासी भी मारे जाएंगे। यह इस लिए भी क्यों कि माओवादी आदिवासियों को आगे करके जंग लड़ रहे हैं। सामने से कारिवाई होगी तो भी आदिवासी मारे जाएंगे और आदिवासी पीछे लौटे तो भी मारे जाएंगे। दोनों सूरत में दोषी सरकार ही होगी। शायद यही वजह है कि लालगढ़ में कुछ करने से हिचक रही है सरकार। इस खेल में कांग्रेस और तृणमूल तमाशाई बनकर उस वक्त का इंतजार कर रहे हैं जब व्यापक पैमाने पर हिंसा हो और सरकार को इसका जिम्मेदार ठहराकर राजनीतिक लाभ उठाया जा सके। अकेली पड़ी माकपा की गति सांप-छंछूदर की हो गई है। इलाके से माकपाइयों की उस ताकत को भी माओवादियों रणनीतिक तौरकर नष्ट कर दिया है। मारे जाने के भय से सभी नेता इलाका छोड़कर पहले ही भाग चुके हैं। अगर कुशल रणनीति और राजनीति का परिचय इस बार माकपा ने नहीं दिया तो मुसलमानों के बाद पूरे राज्य में उसका आदिवासी वोट बैंक भी धराशायी हो जाएगा। जाहिर है ताकत के इस्तेमाल से हर हाल में माकपा को बचना होगा। इस समस्या की कुछ अहम खबरों के अलावा आइए यह भी जानें कि क्यों ऐसा हुआ और अब क्या हो रहा है ?


'पश्चिम बंगाल की सरकार में मतभेद'

भारत के गृह मंत्री पी चिदंबरम ने कहा है कि पश्चिम बंगाल के लालगढ़ इलाक़े में हो रही हिंसा की रोकथाम के लिए कार्रवाई करने के बारे में राज्य सरकार में मतभेद हैं.उनका कहना है. कि हिंसा का सामना करने के लिए पर्याप्त संख्या में केंद्रीय अर्धसैनिक बल उपलब्ध हैं. दिल्ली में पत्रकारों से बातचीत करते हुए गृह मंत्री पी चिदंबरम ने कहा, "ऐसा प्रतीत होता है कि (पश्चिम बंगाल) सरकार का एक पक्ष कार्रवाई करना चाहता है लेकिन सरकार में दूसरा पक्ष ऐसा करने के नतीजों के बारे में चिंतित है. समाचार एजेंसियों के अनुसार उनका कहना था, "ये फ़ैसला मुख्यमंत्री को करना है. उन्हें अपने सुरक्षा बल प्रभावित क्षेत्र में भेजने चाहिए और उस इलाक़े पर नियंत्रम कायम करना चाहिए जो मार्क्सवादियों के प्रभाव में है. केंद्रीय अर्धसैनिक बल पर्याप्त संख्या में उपलब्ध हैं और वे राज्य पुलिस को सहयोग और सहायता देंगे."
उधर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी नेता सीताराम येचुरी ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि केंद्र को प्रभावित इलाक़े में रह रहे लोगों की मदद करनी चाहिए और कुछ हद तक मदद मिली शुरु हो गई है. उनका कहना था कि ऐसा इसलिए ज़रूरी है क्योंकि भारत को सबसे बड़ी आंतरिक चुनौती माओवादियों से ही मिल रही है. ग़ौरतलब है कि इससे पहले केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पश्चिम बंगाल की सरकार को हिदायत दी थी कि वह 'अपने सुरक्षा बलों की पूरी ताकत उस इलाक़े में झोंक दे क्योंकि क़ानून व्यवस्था कायम करना राज्य सरकार की ज़िम्मेदारी है.'

सीपीएम के छह कार्यकर्ताओं की हत्या
पश्चिम बंगाल के लालगढ़ इलाक़े में संदिग्ध माओवादी विद्रोहियों ने सत्तारुढ़ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) के छह कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी है.पार्टी के छह अन्य कार्यकर्ता अभी लापता बताए जा रहे हैं. उधर विद्रोहियों की मदद से गाँव वालों ने सड़कों पर जाम लगा दिया है, जिससे सुरक्षा बल उस क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर पा रहे हैं. आदिवासियों के प्रभाव वाला लालगढ़ क्षेत्र पश्चिम बंगाल के पश्चिम मिदनापुर ज़िले में है और वहाँ पर पिछले साल नवंबर महीने से ही माओवादी विद्रोहियों का नियंत्रण रहा है.

पिछले कुछ दिनों में विद्रोहियों की मदद से गाँव वालों ने उस क्षेत्र में और ज़्यादा गाँवों पर क़ब्ज़ा कर लिया है. साथ ही उन्होंने माकपा के कार्यालयों को आग लगा दी और उन्हें ध्वस्त कर दिया. मंगलवार सुबह संदिग्ध माओवादियों ने माकपा के तीन कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी थी. वे तीनों माओवादी एक मोटर साइकिल पर वहाँ पहुँचे थे और उन्होंने उन लोगों पर गोलियाँ चला दी थीं. पुलिस के अनुसार उस समय वे तीनों कार्यकर्ता वहाँ एक चाय की दुकान पर थे.
लालगढ़ में माओवादियों ने अब सड़कों पर गश्त शुरू कर दी है गाँव वालों ने पेड़ काटकर लालगढ़ की ओर जाने वाले आठ रास्तों पर रुकावटें खड़ी कर दी हैं, जिससे सुरक्षा बल वहाँ नहीं पहुँच सकें.इसके बाद ख़बरें हैं कि पश्चिम बंगाल सरकार ने एक हज़ार और अर्द्धसैनिक बलों की माँग की है जिससे वे लालगढ़ पर क़ब्ज़ा कर सकें.सैनिक वहाँ पहुँचने भी लगे हैं मगर अभी ये अस्पष्ट है कि वे उस क्षेत्र में प्रवेश कब करेंगे.
ख़बरों के अनुसार पुलिस के उस क्षेत्र से जाने के बाद से ही वहाँ सशस्त्र विद्रोही सड़कों पर गश्त लगा रहे हैं.कोलकाता में मौजूद बीबीसी संवाददाता अमिताभ भट्टासाली का कहना है कि सैकड़ों की संख्या में माकपा कार्यकर्ता लालगढ़ क्षेत्र छोड़कर भाग गए हैं. माओवादियों ने इसे पश्चिम बंगाल का पहला 'आज़ाद क्षेत्र' बताया है.

असंतोष
लालगढ़ क्षेत्र में माकपा का अंतिम गढ़ है धरमपुर जहाँ पुलिस की एक चौकी पर आग लगा दी गई और माओवादियों ने एक स्थानीय कम्युनिस्ट नेता का घर गिरा दिया. लालगढ़ में कई महीनों से असंतोष रहा है.वहाँ हिंसा पिछले साल नवंबर में तब शुरू हुई थी जब पुलिस ने पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेब भट्टाचार्य की हत्या की कोशिश के आरोप में कुछ स्थानीय लोगों को गिरफ़्तार किया था. उस समय मुख्यमंत्री संदिग्ध माओवादियों के एक हमले में बाल-बाल बचे थे.उसके बाद गिरफ़्तारियों का विरोध करने के लिए 'पीपुल्स कमेटी अगेंस्ट पुलिस एट्रोसिटीज़' यानी पीसीपीए नाम से एक संगठन बना था. उन लोगों ने हिंसक प्रदर्शन और स्थानीय पुलिस के विरुद्ध हमले किए हैं.
उसी समय से लालगढ़ क्षेत्र में पुलिस और प्रशासन का नियंत्रण लगभग नहीं के बराबर रहा है. हाल के आम चुनाव के समय तो वहाँ पर मतदान केंद्र भी नहीं बनाए जा सके थे. यहाँ सीपीएम और माओवादियों के बीच वर्चस्व की लड़ाई चलती रही है लेकिन पिछले कुछ सालों में माओवादियों का दखल बढ़ा है.
पश्चिम बंगाल के लालगढ़ और सालबोनी इलाक़े में हथियारों से लैस 'माओवादियों' और आदिवासियों ने लगभग पच्चीस गाँवों पर नियंत्रण कर लिया है.पश्चिमी मिदनापुर के इन इलाक़ों से आंदोलन कर रहे लोगों ने पुलिस को खदेड़ दिया है और वे अर्धसैनिक बलों को भी वहाँ नहीं घुसने दे रहे हैं. इन लोगों ने पश्चिम बंगाल में सत्तारुढ़ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपएम) के दफ़्तरों को निशाना बनाया और सीपीएम के कार्यकर्ता इलाक़े से भागने को मजबूर हो गए.
माओवादियों का दावा है कि पश्चिम बंगाल में यह उनका पहला 'आज़ाद क्षेत्र' बन गया है. स्थानीय आदिवासी 'पीपुल्स कमेटी अगेंस्ट पुलिस एट्रोसिटीज़' यानी पीसीएपीए के बैनर तले सीपीएम का विरोध कर रहे हैं.सीपीएम के एक नेता ने बताया, "माओवादियों ने सोमवार को धरमपुर गाँव में उत्पात मचाया और हमारे एक कार्यालय में आग लगा दी. तीन या चार लोग मारे गए हैं और छह से ज़्यादा लापता हैं." धरमपुर में सीपीएम का नियंत्रण रहा है जबकि आस-पास के बाक़ी गाँवों पर पिछले नवंबर से ही माओवादियों का नियंत्रण रहा है.

समस्या की जड़

पिछले साल नवंबर में ही पुलिस ने राज्य के मुख्यमंत्री बुद्धदेब भट्टाचार्य की हत्या करने के प्रयास के आरोप में कुछ स्थानीय लोगों को गिरफ़्तार किया था. लोगों ने सीपीएम कार्यालय में आग लगा दी तब एक बारूदी सुरंग के हमले में बुद्धदेब बाल-बाल बचे थे. लेकिन गिरफ़्तारियों के विरोध में उस इलाक़े में पीसीपीए का गठन हुआ.स्थानीय लोगों की मदद से माओवादियों ने इस इलाक़े में पुलिस और प्रशासन के लोगों को आने की मनाही कर दी.
लोकसभा चुनाव में चुनाव आयोग भी वहाँ मतदान केंद्र बनाने में विफ़ल रहा और इलाक़े से बाहर मतदान केंद्र बनाए गए. यहां सीपीएम और माओवादियों के बीच वर्चस्व की लड़ाई चलती रही है लेकिन पिछले कुछ सालों में माओवादियों का दखल बढ़ा है.एक वरिष्ठ माओवादी नेता ने कहा, "हम स्थानीय गांव वालों की मदद से बांधों, नहरों और सड़कों का निर्माण कर रहे हैं. हम स्वास्थ्य शिविर भी चला रहे हैं. सरकार ने यहां विकास का कोई काम नहीं किया है. इसलिए हमें ये ज़िम्मेदारी लेनी पड़ी." पश्चिम बंगाल में भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) प्रतिबंधित संगठन नहीं है और सत्तारूढ़ सीपीएम कहता रहा है कि वो माओवादियों का मुक़ाबला राजनीतिक स्तर पर करेंगे. (खबरस्रोत- बीबीसी, गूगल व एजंसियों की खबर )

Friday, 12 June 2009

कहां चले गए गोरख पांडेय के जांबाज ?

  गोरख पांडेय। एक जीवट का शख्स। समाजवाद बबुआ धीरे-धीरे आई............। जब भी गुनगुनाता हूं काशी हिंदू विश्वविद्यालय के छात्र जीवन के वो दिन याद आ जाते हैं जब बिरला छात्रावास में इनकी चर्चाएं हुआ करती थीं। हम संबंधित गोष्ठियों में जाया करते थे। यद्यपि मैं व्यक्तिगत तौरपर किसी आंदोलन से कभी जुड़ा-बंधा नहीं रहा मगर अपने को ऐसी किसी बंदिश में भी डालकर नहीं रखा कि मुझे वहां नहीं जाना है। मानवतावादी होते हुए भी इसी आजाद खयाल के कारण किसी संगठन से नहीं जुड़ पाया। बहरहाल मेरे मित्र अशोक सिंह और मैं एक साथ इन गतिविधियों से जुड़े भी रहे। अशोक के चाचा देवेंद्र सिंह इनसे जुड़ने की हमारी कड़ी थे। श्रीकांत, चाचा देवेंद्र सिंह, सुभाष गताड़े, शशि, अरविंद वगैरह गंभीरता से प्रगतिशील संगठनों में भाग लेते थे। बाद में हमें एक दिन खबर मिली कि श्रीकांतजी अचानक कालकवलित हो गए। यह गोरखपांडेय के इसी दशा को प्राप्त होने के बाद की घटना है। श्रीकांत बाद में अवसादग्रस्त हो गए थे। उन्हें पटना आज अखबार में काम करने के लिए देवेंद्र सिंह वगैरह मित्रों ने जबरन भेजा था मगर संभवतः उनका दिल नहीं लगा। बीएचयू लौटे जरूर मगर दोस्तों को अकेला छोड़कर चले गए। इन सभी लोगों के साथ साहित्यिक चर्चाओं में हम भी शामिल रहते थे। प्रगतिशील चर्चाओं में हिस्सा भी लेते थे। इनमें से देवेंद्र सिंह अब लखीमपुर खीरी में हिंदी के प्रोफेसर हैं।
  उनदिनों की ये बातें मेरे जेहन में इसलिए उभरी हैं क्यों कि कोलकाता में मेरे मित्र पलाश विश्वास ने मुझे एक मेल भेजकर राजेश राहुल  की चर्चा की। गोरखपांडेय की मौत के बाद से राहुल भी अवसादग्रस्त हो गए थे और अबतक लापता हैं। उस दौर के आंदोलनों से पलाश जी भी गंभीरता से जुड़ हुए थे। आप इन सारी गतिविधियों और अचानक कालकवलित हो गए लोगों की कहानी कृपया इस पोस्ट के नीचे ही दर्ज पलाश जी के मेल से पढ़ लें। राहुल का भतीजा ( अब अमेरिका में रहता है ) पलाशजी के ब्लाग पर विवरण पढ़कर अब पूछरहा है कि- क्या आपलोग उसके चाचा को जानते हैं?  हिंदी ब्लाग की दुनिया में यह पोस्ट इसी सवाल का जवाब पाने की गरज से कर रहा हूं। अगर आप गोरख पांडेय व उनके दोस्तों से सहानुभूति रखते हैं तो पहले आप पलाश जी का अंग्रेजी में लिखा विवरण जरूर पढ़ लें। इसे समयाभाव में हिंदी में अनूदित न कर पाने के लिए क्षमा चाहूंगा।

 
Dr. Mandhata Singh
From Kolkata (INDIA)

These are my sites. ...........
http://apnamat.blogspot.com
​अपनी भाषा को पहचान दें, हिंदी का प्रसार करें।।
Want to write in hindi. Try it please.....
http://kaulonline.com/uninagari/inscript/
http://lipik.in/hindi.html
THANKS


Have you Seen Rajesh RAHUL Any where Any Time? Pl Help Us to LOCATE Him! The Brilliant Student Activist from JNU in 1979 Onwards is MISSING for Ten Years or More!
 
Remebering GORAKH Pandey Once Again!
 
Troubled Galaxy Deastroyed Dreams: Chapter  253
 
Palash Biswas
 

 
to
palashbiswaskl@gmail.com
 
cc
chetan.anand@hcl.in

"Anand, Chetan" <chetan_anand@merck.com>,
thinkofchetan@yahoo.co.in,
thinkofchetan@gmail.com
dateTue, Jun 9, 2009 at 12:05 PM
subjectRajesh Rahul
mailed-bymerck.com
Hi Sir,
I have no words to thank you for your time and help.
Have written this small note as a message, I am not that good in writing.Please review for any changes required.
Hi Rajesh Chacha,
This is sonu, I know your memories would have faded enough to remember me, but this kid has been searching for you limited to his own means since years.
Please chacha, please contact me. please get back to me. You cannot imagine the spark in eyes of mom, dad, chote chacha, bade papa just for a glimpse of yours.
Please let me know where you are, I will be right there within 24 hours.
Miss you,
Chetan Anand (Sonu)
Merck Inc.
Blue Bell, 19422
PA, United States
Desk: 001-267 305 9491 Cell: 001-408 329 8661
Chetan Anand
S/o Anand Kumar
Village: Baraulli Post: Ghosi
District: Mau Nath Bhanjan (Azamgarh)
U.P.
Cell Number : 9305625497 (Anand Kumar)
 
Regards, Chetan
palashcbiswas,
gostokanan, sodepur, kolkata-700110 phone:033-25659551


Chetan stumbled into one of my BLOGS and invented our friendship as I have written something about my JNU memories.He just claaed me from states where he is staying for just two years.
 
Chetan is the 27 years old Nephew of our friend Rajesh Rahul, a brilliant student activist in JNU during late seventies and early eighties. He was a close associate of Vtearn Journalist URMILESH, then a research student and PSO leader in JNU.But he was closer to Philosopher Poet GORAKH Pandey.
 
I would not blame any one but the TRUTH is that  a DISILLUSIONED Poet and Political Activist GORAKH Committed Suicide and another, Rajesh Rahul lost in DRUG ADDICTION. We could not SAVE Gorakh nor we could ever try to REHAB Rahul.
 
I should not remind my friends that GORAKH and RAHUL mobilised the New Delhi Convention in SAPRU House perhaps in mid eighties when we formed JANA SANSKRITI MANCH. After this TASK Accomplished, GORAKH and RAHUL were thrown into ISOLATION and into the wildness of SEGREGATION as the leadership never cared for the OLD Activists!
 
These events might be mere coincidence! But we perhaps EVADED the RESPONSIBILITY to bail out them from Personality Disorder!
 
Rather an EMINENT Poet wrote a well known SHORT Story with the theme of GORAKH`s Starvation for love and his poetic romanticism making a joke of his COMMITMENT. This SHORT Story was widely circulated in JNU Campus and one day the news was published that GORAKH was DICOVERED hanging in his Hostel room!
 
I am just not opening the CUP Board. I am trying to suggest the apathy towards thosed who dreamt and worked hard for a CHANGE in India. We could not help them a little bit but, somehow, betrayed them with UNDECLARED ENIMITY!
 
I last met Rajesh Rahul in 1999 in SRIRAM Centre Cafe. I could not recognise him. But my friends told me that it was Rajesh who was accompanied by some DRUG Peddlers. We got him. He instantly recognised us. He was in poor health. We ordered coffee. Rajesh wanted to go to the bathroom and we allowed. He never returned.
 
Chetan rang me on TUES DAY morning. I often get calls from USA. But it was UNPRECEDENTED. Chetan was asking me about his lost UNCLE and was seeking my help who forgot the man long ago as I am based in Kolkata for about twenty years and have virtually no contact with the OLD Friends as most of them are well recognised and settled and I have a very low Profile.
 
But I decided to knock the doors and windows of the Memories for another time when all of us tried to be best COMMITTED!
 
I could not return my village BASANTIPUR for last three years after my Mother`s death. My Nephew Shekhar expired in a road accident. I was not amongst my family. My childhood friend Krishna requested me to attend the Marriage ceremony of his only daughter.  The poor girl Asha lost her mother when she was born. She lost her father very early after her marriage. I could not go home. My DSB friend Nirmal expired. My friend Pawan rakesh lost his only son Gaurav who was  a few years older than my son, Excallibur Stevens TUSSU! I could not visit neither Hills nor the Palins in Uttarakhand to celebrate the moments of Joy and share the grief. But we are connected ONLINE or on Mobile. I get every day to day Update. My united family and my Village include me in day to day decision making. So I am connected with the HIMALYAS which happens to be my ULTIMATE IDENTITY.
 
But last week I could not attend the marriage ceremony at Shamsherda`s home where all friends gathered. I could not go to New delhi while my Niece Supriya, the fashion designer was married away. I could not join friends in the Marriage ceremonies of the daughters of Anand Swaroop Verma and Pankaj Bisht. My friends lost their sons in tragedies , I could not solace them. So many faces of the Past or lost including Baba Nagarjun, Shalabh shriram singh and Trilochan shastri. Then, Vishnu Prabhakar! I was no where. My village lost so many memebers! I could not mourn!
 
ALL the meemories and all the Pain returned me once again. Amongst them, the brightened eyes of Gorakh reciting folk glitters like GOLD in the Ivory towers of memory! I can see Rajesh Rahul opening the pouch of Bikaneri Bhujia in Periayar or Poorvanchal Hostel!
 
We may see him POSTERING or shouting slogans in the Anti Imperialist Procession. Anandji published the Anti US demonstration photos in Teesri Dunia!
 
Then Chetan informed me that Rajesh rahul lost his mother as well as his sister. The Poor ladies died waiting Rajesh. I just could not bear!
 
How may we help Rajesh?
 
Last year, I was standing aside the Dius where RASHEEDA B and bhopal gas victims were singing Gorakh`s songs. I could not help myself and talked to CPIML Secretary DIPANKAR Bhattachary that we must do something diffrent from the Power Hegemony as well as Resistance Hegemony which happen to be the wings of Manusmriti Rule! Their national or Global  interests and stance, vison or practice replicate each other. We must work for a real Anti Imperialist Anti fascist resistance. He called on Kartik Paul and set a meeting. The meeting had been postponed time and again and Never took place.
 
Kanchan Kumar Mukherjee translated the poems of Sukanta Bhattacharya. We knew and believed him from our student days. He led the Redical students` movement as well as radical Writers movement. He is the key man in Bandi Mukti samiti. As I was away in North East, I gave him all the documents relevant to dalit Bengali Refugges deported from the History and Geography of Bengal and had been demographically adjusted as captured Vote Bank countrywide. I gave him the draft of the CITIZENSHIP Bill. I talked to the Convenor Sainath that Mukherjee would present the documents. The issue was raised by our JNU friends and Bihar comrades. Mukherjee just kept mum.
 
We planned and published BHASHA Bandhan led by Mahashweta Debi. But she refused our lot the adequate SPACE. I gave her each and every document relevant to REFUGEE Problem. But she adviced me to mobilise the movement myself as she may not help. I had to disaasociate from Bhasha Bandhan.Though we consider DIDI our leader till date and branded ourselves as GIRAFFE!
 
I sent the first copy of my NOVEL AMERICA SE Savdhan to Smakallen Janmat editor, Ramji Roy. But he rejected the Novel for Jana snskriti Manch as he thought it loud. But a daily newspaper AWAZ published the Novel simultaneously from Dhanbad and Jamshedpur for two years. scores of little mags published one or another chapter or few of them. It happened during 1993 to 1997. Mahashweta di wrote an article on me in dainik Hindustan and emphasising the relevance of the NOVEL in Anti Imperialist movement.
 
I had been committed to the IDEOLOGY since my students` life. I did never join any Political Parties even though I had been proposed MP tickets from Nainital by more than one party. But I realised it very hard that no Political party or Ideology seem to save our people, Five Corores of them dprived of citizenship, human and civil rights, mother tongue and reseravtion! Nor these ideologies or parties have to do anything with Resistance against Tri IBLIS Satanic Global manusmriti Order of Fascism as well as Imperialism!
 
My pepole in Dandakarany have been branded as Bangladeshi as well as Maoist. How may we save them? How may we save the Indigenous Aboriginal Minority Communities predestined to be KILLED?
 
Chetan reminded me of those friends lost in the past who were most CONCERNED with these question but neither IDELOGY nor Parties could take a little bit of CARE for the Most SENSITIVE personalities of our time.
 
Sorry, friends, I had to IGNITE some OLD Memories of lost faces and lost time!
 
May we help CHETAN anyway?
 
Remebering GORAKH Pandey Once Again!
India, US discuss regional, global issues
Economic Times - ‎1 hour ago‎
NEW DELHI: Keeping its options open about resuming the dialogue with Pakistan, India on Tuesday conveyed to the US that Islamabad's continuing inaction against the 26/11 perpetrators hobbles any effort to normalise their ties.
India conveys dismay to US over Pak inaction against Mumbai attackers Press Trust of India
Most Read Articles Indian Express
Livemint - Indopia - Hindu - Times Now.tv
all 502 news articles »
Email this story
 
CTV.ca
Gunman, guards exchange fire in Holocaust Museum
The Associated Press - ‎21 minutes ago‎
WASHINGTON (AP) - A gunman exchanged fire with security guards inside the US Holocaust Memorial Museum on Wednesday. US Park Police Sgt.
Two people shot at US Holocaust Museum: police Reuters
Two wounded in Washington Holocaust museum shooting AFP
BBC News - FOXNews - Washington Post - Los Angeles Times
all 995 news articles »
Email this story
 
guardian.co.uk
French cops dismiss terror names report: Jet crash
Times of India - ‎1 hour ago‎
PARIS: Two passengers on the Air France jet that crashed into the Atlantic shared names with terror suspects but this was a simple coincidence, police said Wednesday, ruling out a link to the accident.
Video: Air France Flight Data Recorders Still Missing The Associated Press
French nuclear submarine to hunt for black boxes of crashed plane Xinhua
Reuters - BBC News - Hindustan Times - Times Online
all 8,263 news articles »
हिंदी में
Email this story
 
indian ocean : hille le jhakjhor duniya : Live @ NLIU Bhopal
 
indian ocean performing hilleyle jhakjhor duniya (lyrics of the song inspired frm a famous poem of late Shree Gorakh Prasad Pandey) live @ NLIU Bhopal ...... \m/ dhaansu desi song ........ :d "a...
 
http://www.youtube.com/watch?v=qi0FCMEdzGY
 
<object width="425" height="344"><param name="movie" value="http://www.youtube.com/v/qi0FCMEdzGY&hl=en&fs=1&"></param><param name="allowFullScreen" value="true"></param><param name="allowscriptaccess" value="always"></param><embed src="http://www.youtube.com/v/qi0FCMEdzGY&hl=en&fs=1&" type="application/x-shockwave-flash" allowscriptaccess="always" allowfullscreen="true" width="425" height="344"></embed></object>
 Our Scholars
Awadhesh Kumar Tripathi, "Gorakh Pandey Ki Kavya Drishti Aur Unka Rachna Samsar", (Manager Pandey, CIL/SLLCS). Obaidul Ghaffar, "Ibne Insha Ke Safar Namon ...
www.jnu.ac.in/JNUNewsArchives/JNUNews_Jan_March07/scholars.htm - Cached - Similar pages -
 
Communal politics: facts versus myths - Google Books Result
by Ram Puniyani - 2003 - History - 309 pages
Box 14.1 Riot: A Poem This time the riot was massive, horrific It rained tears and blood Next year there will be a good ... (Gorakh Pandey, Gujarat Ki Aog, ...
books.google.co.in/books?isbn=0761996672... -
 
Narmada to Nandigram
3 Jun 2007 ... As the great radical poet Gorakh Pandey said, "women are the ... Gorakh Pandey's celebrated Bhojpuri song "Sutal rahalin sapan ek dekhlin" ...
o3.indiatimes.com/singurkatha/archive/2007/06/03/4484844.aspx - Cached - Similar pages -
 
Poems and Poets » Gorakh pandey - [ Translate this page ]
यहाँ से. पुलिस का डंडा. आग. बाहर है पंडाल के. भीतर. झरना ठंडा । No Comments »; Posted in Gorakh pandey ...
theenlightenedworld.org/poems/category/gorakh-pandey/ - Cached - Similar pages -
 
THE SONG OF THE SENSIBLE
by Gorakh Pandey
 
 
What way the winds blow, I can understand
Why we show our backs to it, I can understand
I understand the meaning of blood
The value of money I understand
What is for and what is against, I can understand
I even understand this
We are scared to be able to understand, and remain silent.
 
I can understand the meaning of remaining quiet
When we speak we speak with thinking and understanding
The freedom to speak
Its meaning, I can understand
For a pathetic and measly employment
To sell our freedom, the meaning of that I can understand
But what can we do
When unemployment
Rises faster than the injustice
The dangers of freedom and unemployment, I understand
We narrowly escape the dangers of terror
I can understand
Why we escape and get saved, this too I can understand.
 
We remain disappointed and are pained by the Almighty if he does not just remain an imagination
We remain disappointed and are pained by the Government why it does not understand
We remain disappointed and pained by the common man because it succumbs to a herd mentality.
 
We remain pained by the pain of the entire world
I can understand
But how much we remain pained by this pain this too
I can understand
That opposition is the desired step to take
I can understand
At every step we make compromising understandings
I can understand
We make deep commitments for this understanding
Every deep commitment we present in ambiguous language
I can understand
The reason for this ambiguous language also
I understand.
 
Incidently, we do not consider ourselves
Less than anyone, I can understand
Every black to white
And white to black we are capable of converting
We are capable of creating a storm in a tea cup
If we want we can start a revolution also
If the Government is weak and the common man understanding
But I can understand
That there is nothing that we can do
Why there is nothing that we can do
This too I can understand.
 
The above a poem by poet Gorakh Pandey and my very inept translation. It was given to me by a journalist of a Hindi Daily, when he came to interview me on the occasion of my Father's Birthday. My Father's Birthday is today, November 27th. He would have been 101 years old.
The poet was a troubled human. Intelligent and anguished by the state of the nation. He had wanted to inspire with his writing and the strength of his thinking. When he failed he committed suicide. He was a brilliant student from the Benares Hindu University and later was with JNU - Jawaharlal Nehru University in Delhi.
 
The entire day has been spent in front of the TV and watching in anguish and in anger the proceedings on the streets of Mumbai. I have been riveted to Times Now and to the incredible anchoring of Arnab. He has been at it non stop for almost 24 hrs; reporting, discussing, interviewing, taking opinion, tirelessly.
My pain has been the sight and plight of my innocent and vulnerable and completely insecure countrymen, facing the wrath of this terror attack. And my anger has been at the ineptitude of the authorities that have been ordained to look after us. I have simply loved and endorsed the sentiments expressed by one of those that came on for comments on the Arnab reportage, Suhel Seth. They were strong, precise and most apt. And of course I have had the greatest pride in those from the forces that have and continue to fight for our freedom. Brilliant officers and police personnel have laid down their lives for us. I can only but salute them and respect their sincerity in the call of duty.
I have been at the receiving end of a million calls and an equal number of sms's the whole day to come live on TV or on the print media to express my views on the current situation and am being lured by words such as 'we need you to speak to express solidarity and for the people to maintain their calm'.
This is disgusting !! I will NOT do that. TELL ME AND ORDER ME INSTEAD THAT WE REQUIRE FOR EVERY INDIAN TO GET UP AND WALK INTO THE FACILITIES WHERE THE ACTION IS ON AND I WILL BE THE FIRST TO WALK. But, please do not ask me to come and make sloppy statements that will do nothing more than create viewer interest in said particular channel ! I respect what the media is doing in serving the nation with its continuous information bulletins and I admire the brave and diligent manner in which they have devoted themselves to the cause. But what they expect me do I find against my ethics and want to be excused from it.
And for God's sake, let us stop reiterating that cliched "Sprit of Mumbai" retort. Yes Mumbai is strong and resilient and shall not be cowed down by any such occurrence. But let us not conveniently use it as our cover sheet, pull it over our heads and go off to sleep. Because that is what has been happening every time. Incidents of grave disaster have continued to be camouflaged with 'oh, this is Mumbai, we have a great spirit, we will spring back'. Fine, we will, of course. But who is assuring us that the disaster will not !!
As an Indian, I need to live in my own land, on my own soil with dignity and without fear. And I need an assurance on that.
I am ashamed to say this and not afraid to share this now with the rest of the cyber world, that last night, as the events of the terror attack unfolded in front of me I did something for the first time and one that I had hoped never ever to be in a situation to do.
Before retiring for the night, I pulled out my licensed .32 revolver, loaded it and put it under my pillow. For a very disturbed sleep.
 
 
Amitabh Bachchan
  http://blogs.siliconindia.com/Amitabhbachchan/DAY_218-bid-4w7V8hDF1811235.html.
 
'Sone ki nagri' will be Indian Ocean's new mascot
February 24th, 2008 - 4:52 pm ICT by admin
 
By Madhusree Chatterjee
New Delhi, Feb 24 (IANS) A single number changed the course of contemporary fusion music in India in 2000, which till then was dominated by popular music formats from the West and Bollywood. Now leading contemporary fusion band Indian Ocean is set to recreate the magic of "Kandisa", a song that gave footloose India something to hum 24×7.
A loose remake of an Aramaic hyme, "Kandisa" was set to a raucous ethnic Indian beat on the drums, tabla, the guitar and powerful vocals. It achieved near-iconic status.
Indian Ocean wants to bring back the same old magic with its new song "Sone ki Nagri" from the movie "Halla", being directed by Jaydeep Verma.
"It's a very contemporary song about the state of affairs in the country," explains percussionist Asheem Chakraborty.
The band is now "loaded" with work from Bollywood, admits lead guitarist Sushmit Sen.
"We don't even have time to take a break to cut our own album. The past months have been so loaded," Sen, who is 'fiercely loyal' about the band's originality and purity of sounds, told IANS minutes after the band played some of their "latest originals" at the ongoing East Wind Music Festival here.
"We have just sung six numbers for 'Bhumi', a movie by newcomer Aveek Mukhopadhyay. One of them has the live version of 'Hille Le', a verse by poet Gorakh Pandey from Bihar, set to tune by us," Sen said.
The numbers they played on stage are yet to be released, he adds.
The band has earlier provided music for Anurag Basu's "Black Friday".
Rahul Ram, a doctorate in environmental toxicology from Cornell University, anchors Indian Ocean along with Sushmit Sen on the guitars. While Asheem Chakraborty plays the tabla, the versatile Amit Keelam accompanies on the drums, vocals and many other forms of percussion.
The band was formed in 1990 when Sushmit met Asheem at a jamming session and they broke into the mainstream in 1998 after Times Music brought the foursome into its fold.
The movie "Bhumi" releases July 15, while "Halla" has been awaiting release since November 2007. "Shunya", a movie about a sportsman starring Kay Kay Menon, for which the group sang a number in 2005, is also set to hit the theatres soon.
"Can't set the time frame though… that's how Bollywood works," reasons Rahul. "We have also sung a one-and-a-half-minute number for a short film made by Anurag Basu," he added.
Why was "Kandisa" iconic?
"'Kandisa' was iconic because it sounded good and was promoted well. It struck the right chord in the listener, but there have been other songs after 'Kandisa' that became hits like 'Ma Rewa', 'Hille Re' and 'Are Ruk Ja Re Bande' from 'Black Friday'… Who knows if our next song will be another 'Kandisa'," says Rahul, the group's lead vocalist.
The group is said to cull its influences from folk, Sufi music, rock, Indipop, jazz and blues.
"Anything that sounds good forms the basis of our music. Be it classical, rock, jazz, Sufi and folk, though the later dominates most of our numbers," he admits.
"For us, music is something more than just hammering out numbers. It has to have a profound universal feel," he explains. Which is why probably the group takes "six months to a year to cut a new album".
"We are choosy. And we are glad that the right kind of directors and producers are approaching us to make music for them.
"We simply refuse to compromise on originality. We keep the copyrights of the songs that we have sung for movies. Later, we throw out their lyrics and replace them with our own. This way the numbers are essentially Indian Ocean's," Rahul says.
The foursome is also planning a new CD.
"We have six to eight songs in our kitty. Two numbers from the movies 'Halla' and 'Bhumi', and four tentative numbers we are toying with," reveals Rahul.
They include "one Kabir's song, an old Kannada folk song that I heard as a four-year-old, a Bheelali (of Bhil tribals) folk song and a couple of Rajasthani folk tunes.
"But we'd never do a night club number, mind you," laughs Rahul, proving that Indian Ocean still has its moorings intact.
http://www.thaindian.com/newsportal/entertainment/sone-ki-nagri-will-be-indian-oceans-new-mascot_10020667.html
 
 
Monday, January 26, 2004
Kein Dhafna, Gil mashrao, dayotshi dayotshi Meli Bahar

What more could be the best way to end the World Social Forum..with a performance by "Indian Ocean" ..the Indian rock band..the band that sings in Indian about India…
I think they can be easily judged the best Indian rock band..coz they sing about our issues in our languages.
This was the second time I caught them live..with a more powerful performance than last time..with people from all over the world grooving to their music..be it the Koreans on my left or the Dutch on my right..it didn't matter if the song was in hindi..bihari..kashmiri..or aramaic..the music..the thought was universal and for everyone it meant something..if nothing else good music for their ears.

Maa Reva..tharo paani nirmal..khal khal bahto jayo re..
Amarkhand se nikli O Reva..jan jan.karirayo tari seva..
Seva se sab pawe mewa..aiso Ved puran batayo re…

'Maa Reva' had all the vendors and people from M.P who were there for the forum joining in..it was the song from their land..Medha Patkar should use it as a promotional song and it will be a big hit. It talks bout the beautiful Narmada…one helluva song

Kandisa Alahaye Kandisa Esana..Aalam Balam Aalam..
Amenu Aamen…Sliha Mar Yose, Almaduba Kudisa…
Aangen dhanusa..nehave dukharana…

It can give you goose-bumps. The language of jesus..its in Aramaic..meaning 'praise'. The best ever song...this song still gives such high its unbeatable. The Hindustani classical lyrics with aremaic take the song to even higher grounds..Even attended church with Gaia to hear other aramaic hymns but nothing beats 'Kandisa'

Hille le Jhakjhor duniya..hille le jhakjhor..
Dah gaye Rajwade..dahe Maharajwa..
Rani kari dhool mein lutaniya..

The last song on the show 'hille le' by the bihari poet Gorakh Pande..talking bout power of people to shake anything..corruption..brutality…the perfect ending to WSF on that cold night in bombay.

Posted by jo .. on 01:10 AM 34 Comments
http://soulcurry.rediffblogs.com/2004_25_01_soulcurry_archive.html
 

LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...