Wednesday 18 August 2010

यह विरोध का नाटक कहीं जनता को निराश न कर दे ?

   ठोस विरोध या तकनीकी तौरपर किसी जनहित के मुद्दे पर तार्किकता के अभाव में परमाणु दायित्व विधेयक अमलीजामा पहनाने की यूपीए सरकार की रणनीति सफल हो गई है। अब भाजपा समेत तमाम दलों के तैयार हो जाने से इस विधेयक के पास हो जाने का रास्ता साफ हो गया है। यह वहीं विधेयक है जिसके मुद्दे पर वामपंथी दलों ने केंद्र सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। आज भी लालू, मुलायम समेत वामपंथी दलों के सांसद हंगामा किए और संसद नहीं चलने दी। क्या इसे विरोध का सिर्फ नाटक समझा जाना चाहिए ? जनता को समझने लायक तर्क चाहिए। इसी तर्क के अभाव में पश्चिम बंगाल में जनता को वाममोर्चा यह समझा नहीं पाई कि इस परमाणु विधेयक से जनता को क्या नुकसान हैं ? नतीजा यह कि बंगाल की जनता के बीच यह चुनावी मुद्दा तक नहीं बन सका और संसदीय चुनावों में वाममोर्चा को करारा झटका लगा।
    पहले संसद में महिला विधेयक पर कुतर्क का हंगामा और इसके बाद बुधवार ( 18 अगस्त ) को परमाणु विधेयक पर जनता के समझ में आने लायक किसी ठोस दलील के अभाव में विरोध की सारी रणनीति के फेल हो जाने को किस नजरिए से देखा जाना चाहिए ? इसमें किसी दल को राजनीतिक फायदा हुआ तो किसी को नुकसान मगर देश की जनता सिर्फ गुमराह होती रही। बिहार और बंगाल को विधानसभा चुनाव सामने हैं। अगर ऐसे मौकों पर जनता को उसके हक की बात बतानें में विरोध कर रहे लोग नाकाम रहे तो इसके मतलब भी साफ हैं। या तो यह विरोध का नाटक है और देश की जनता को गुमराह किया जा रहा है या फिर यह विरोध के लायक कारगर व जनता के समझ में आने लायक मुद्दा ही नहीं ढूंढ पाए विरोध करने वाले। इसमें मुझे नाटक वाली बात ज्यादा सही लगती है। नेता या राजनैतिक दल भले कुछ कहें पर इस पूरे नाटक को टीवी और समाचार माध्यमों से अवगत होने वाली जनता भी अपने हित खोजती है। और वह जब निराश होती है तो बड़ी से बड़ी सत्ता को भी बिखरने में देर नहीं लगती। देखिए कहीं यह परमाणु विधेयक के विरोध का नाटक भी जनता को निराश न कर दे। अगर ऐसा होगा तो इस निराश जनता से क्या कहकर वोट मांगने जाएंगे ? और यह भी सच है कि विरोध में आपकी हार उस जनता को निराश तो करेगी ही जो आपसे बड़ी उम्मीद लगाए बैठी है। संभल जाइए, क्यों कि सामने अब किसानों का भी मुद्दा है। अपने वेतन बढ़ाने के मुद्दे पर जो एकजुटता संसद में दिखा रहे हैं वही देशहित में भी दिखाइए। आइए अब समझने की कोशिश करते हैं कि परमाणु दायित्व विधेयक क्या है ? और विरोध के मुद्दे क्या हैं ?

परमाणु दायित्व विधेयक -2010

परमाणु दायित्व विधेयक -2010 ऐसा क़ानून बनाने का रास्ता है जिससे किसी भी असैन्य परमाणु संयंत्र में दुर्घटना होने की स्थिति में संयंत्र के संचालक का उत्तरदायित्व तय किया जा सके. इस क़ानून के ज़रिए दुर्घटना से प्रभावित लोगों को क्षतिपूर्ति या मुआवज़ा मिल सकेगा। अमरीका और भारत के बीच अक्तूबर 2008 में असैन्य परमाणु समझौता पूरा हुआ। इस समझौते को ऐतिहासिक कहा गया था क्योंकि इससे परमाणु तकनीक के आदान-प्रदान में भारत का तीन दशक से चला आ रहा कूटनीतिक वनवास ख़त्म होना था। इस समझौते के बाद अमरीका और अन्य परमाणु आपूर्तिकर्ता देशों से भारत को तकनीक और परमाणु सामग्री की आपूर्ति तब शुरु हो सकेगी जब वह परमाणु दायित्व विधेयक के ज़रिए एक क़ानून बना लेगा। इस विधेयक के आरंभिक प्रारुप में प्रावधान किया गया है कि क्षतिपूर्ति या मुआवज़े के दावों के भुगतान के लिए परमाणु क्षति दावा आयोग का गठन किया जाएगा। विशेष क्षेत्रों के लिए एक या अधिक दावा आयुक्तों की नियुक्ति की जा सकती है। इन दावा आयुक्तों के पास दीवानी अदालतों के अधिकार होंगे।

क्या है विवाद?

इस विधेयक पर विपक्षी दलों ने कई आपत्तियाँ दर्ज की थीं जिसके बाद इसे सरकार ने टाल दिया था और इसे संसद की स्थाई समिति को भेज दिया गया था. अब स्थाई समिति ने अपनी सिफ़ारिशें संसद को दे दी हैं। एक विवाद मुआवज़े की राशि को लेकर था. पहले इसके लिए विधेयक में संचालक को अधिकतम 500 करोड़ रुपयों का मुआवज़ा देने का प्रावधान था लेकिन भारतीय जनता पार्टी की आपत्ति के बाद सरकार ने इसे तीन गुना करके 1500 करोड़ रुपए करने को मंज़ूरी दे दी है। कहा गया है कि सरकार ने कहा है कि वह समय समय पर इस राशि की समीक्षा करेगी और इस तरह से मुआवज़े की कोई अधिकतम सीमा स्थाई रुप से तय नहीं होगी. दूसरा विवाद मुआवज़े के लिए दावा करने की समय सीमा को लेकर था. अब सरकार ने दावा करने की समय सीमा को 10 वर्षों से बढ़ाकर 20 वर्ष करने का निर्णय लिया है। तीसरा विवाद असैन्य परमाणु क्षेत्र में निजी कंपनियों को प्रवेश देने को लेकर था. कहा जा रहा है कि सरकार ने अब यह मान लिया है कि फ़िलहाल असैन्य परमाणु क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए नहीं खोला जाएगा और सरकारी या सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम ही इस क्षेत्र में कार्य करेंगे। विवाद का चौथा विषय परमाणु आपूर्तिकर्ताओं को परिवहन के दौरान या इसके बाद होने वाली दुर्घटनाओं को लिए जवाबदेह ठहराने को लेकर है। विधेयक का जो प्रारूप है वह आपूर्तिकर्ताओं को जवाबदेह नहीं ठहराता. आख़िरी विवाद का विषय अंतरराष्ट्रीय संधि, कन्वेंशन फॉर सप्लीमेंटरी कंपनसेशन (सीएससी) पर हस्ताक्षर करने को लेकर है. यूपीए सरकार ने अमरीका को पहले ही यह आश्वासन दे दिया है कि वह इस संधि पर हस्ताक्षर करेगा लेकिन वामपंथी दल इसका विरोध कर रहे हैं।

क्या है सीएमसी पर हस्ताक्षर करने का मतलब

सीएमसी एक अंतरराष्ट्रीय संधि है जिस पर हस्ताक्षर करने का मतलब यह होगा कि किसी भी दुर्घटना की स्थिति में दावाकर्ता सिर्फ़ अपने देश में मुआवज़े का मुक़दमा कर सकेगा। यानी किसी दुर्घटना की स्थिति में दावाकर्ता को किसी अन्य देश की अदालत में जाने का अधिकार नहीं होगा. वैसे यह संधि थोड़ी विवादास्पद है, क्योंकि इसमें जो प्रावधान हैं, उसकी कोई कानूनी अनिवार्यता नहीं है. उल्लेखनीय है कि सीएसई पर वर्ष 1997 में हस्ताक्षर हुए हैं लेकिन दस साल से भी अधिक समय बीत जाने के बाद इस पर अब तक अमल नहीं हो पाया है।

क्या इसकी कोई समय सीमा है?

  यह भारत का अंदरूनी मामला है कि वह परमाणु दायित्व विधेयक को कब संसद से पारित करता है और कब इसे क़ानून का रुप दिया जा सकेगा। लेकिन यह तय है कि असैन्य परमाणु समझौते के तहत परमाणु तकनीक और सामग्री मिलना तभी शुरु हो सकेगा जब यह क़ानून लागू हो जाएगा। लेकिन ऐसा दिखता है कि भारत सरकार नवंबर से पहले इसे क़ानून का रुप देना चाहती ताकि जब अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत के दौरे पर आएँ तो भारत पूरी तरह से तैयार रहे।

परमाणु संयंत्रों से निजी कंपनियों को दूर रखने की सिफारिश

परमाणु दायित्व विधेयक पर संसद की स्थाई समिति ने दुर्घटना की स्थिति में मुआवजे की सीमा 500 करो़ड रूपये से बढ़ाकर 1,500 करो़ड रूपये करने और निजी कंपनियों को इस क्षेत्र से दूर रखने की सिफारिश की है। बुधवार को हंगामे के बीच दोनों सदनों में पेश की गई समिति की रिपोर्ट के मुताबिक सरकार या सरकारी कंपनियां ही देश में परमाणु संयंत्रों का संचालन कर सकती हैं। समिति के सुझावों को स्वीकार किए जाने की स्थिति में मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने संबंधित विधेयक का समर्थन करने की बात कही है। ऑपरेटर की परिभाषा में संशोधन कर किसी प्रायवेट ऑपरेटर के इसमें शामिल होने की बीजेपी की आशंका का भी समाधान किया गया है।

संसद में विरोध, हंगामा

रिपोर्ट पर बीजेपी के अलावा एसपी, जेडी (यू), आरजेडी, एमडीएमके, एनसीपी और एनसी ने अपनी सहमति व्यक्त की है, जबकि सीपीआई, मार्क्सवादी पार्टी, फॉरवर्ड ब्लॉक ने अपनी असहमति दर्ज कराई है। वामपंथी दलों का आरोप है कि सरकार राष्ट्रपति ओबामा को तोहफ़ा देने के लिए हड़बड़ी कर रही है। लालू, मुलायम, पासवान और लेफ्ट के नेताओं ने आरोप लगाया कि विवादास्पद परमाणु दायित्व बिल पर समर्थन के एवज में मोदी को सोहराबुद्दीन मामले में क्लीन चिट देने की बीजेपी और कांग्रेस में सौदेबाजी हुई है। राज्यसभामें भी इन पार्टियों के सदस्यों ने परमाणु दायित्व विधेयक पर बीजेपी के समर्थन के बदले मोदी को कथित रूप से क्लीन चिट देने का मुद्दा उठाया।

विवादास्पद परमाणु दायित्व बिल को लेकर संसद में संसदीय समिति की रपट पेश किए जाने के बीच एसपी, आरजेडी, लेफ्ट और एलजेपी जैसे दलों ने बीजेपी-कांग्रेस में डील आरोप लगाते हुए संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही नहीं चलने दी। इन पार्टियों का आरोप है कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड मामले में सीबीआई से क्लीन चिट दिलाने के एवज में बीजेपी ने कांग्रेस से सांठगांठ की है। राज्यसभा और लोकसभा दोनों की ही बैठक दो बार के स्थगन के बाद पूरे दिन के लिए स्थगित कर दी गई। विभिन्न देशों के साथ परमाणु समझौतों को अमली जामा पहनाने के लिए लाए जाने वाले इस बिल के बारे में समिति के अध्यक्ष टी. सुब्बीरामी रेडडी ने राज्यसभा में रपट पेश की, जबकि लोकसभा में समिति के सदस्य प्रदीप टम्टा ने यह रपट रखी।

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