Monday, 9 August 2010
हिंसा व हत्याएं रोकें, बंगाल को शांति की राह दिखाने वाला बनने दीजिए - ममता की माओवादियों से अपील
लालगढ़। पश्चिम बंगाल के लालगढ़ में आयोजित रैली में रेल मंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार से माओवादियों के ख़िलाफ़ अभियान बंद करने और शांतिपूर्ण तरीके से बातचीत करने को कहा है। बंगाल को पूरे देश के लिए एक राह दिखाने वाला बनने दीजिए। हिंसा और हत्याएं रोकिए।
उनके बयान राजनीतिक रूप से संवेदनशील हैं क्योंकि ममता बनर्जी केंद्र सरकार में मंत्री हैं और केंद्र सरकार ने हाल में माओवादियों के ख़िलाफ़ अभियान छेड़ा है.ममता बनर्जी ने कहा,''आज से ही शांति प्रक्रिया शुरू होनी चाहिए. बंगाल इस संबंध में पूरे भारत को रास्ता दिखा सकता है. हिंसा और हत्याएँ बंद होनी चाहिए. यदि आपको मुझसे कोई समस्या है तो मेधा पाटकर और स्वामी अग्निवेश जैसे लोग पहल कर सकते हैं. लेकिन बातचीत शुरू होनी चाहिए.''
ममता ने कहा,''मैं वादा करती हूँ कि जंगलमहल के विकास के लिए जो भी आवश्यक होगा, वो मैं करूंगी. यदि ज़रूरी हुआ तो मैं यहाँ रेलवे फैक्ट्री स्थापित करने पर भी विचार किया जा सकता है.''आज से ही शांति प्रक्रिया शुरू होनी चाहिए. बंगाल इस संबंध में पूरे भारत को रास्ता दिखा सकता है. हिंसा और हत्याएँ बंद होनी चाहिए. यदि आपको मुझसे कोई समस्या है तो मेधा पाटकर और स्वामी अग्निवेश जैसे लोग पहल कर सकते हैं. लेकिन बातचीत शुरू होनी चाहिए.ग़ौरतलब है कि इस रैली को माओवादियों का 'पूरा समर्थन' हासिल था.
ममता ने कहा कि माओवादी समस्या का हल बातचीत, शांति और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं से हो सकता है. उन्होंने कहा, ‘हमें बताइए कि कहां और कब आप बातचीत के लिए बैठना चाहते हैं. हमलोग शांति के लिए बातचीत करना चाहते हैं. हम लोकतंत्र की बहाली और आतंक मुक्त भारत चाहते हैं.’ माकपा पर आतंक से फायदा उठाने का आरोप लगते हुए उन्होंने कहा, ‘मैं आपलोगों से हाथ जोड़कर कह रही हूं कि अब हत्याओं की राजनीति नहीं की जानी चाहिए. मैं मौत पर राजनीति नहीं चाहती हूं.’ ममता ने कहा, ‘अगर माकपा का आदमी मारा जाता है, वह एक परिवार से ताल्लुक रखता है. अगर एक माओवादी मरता है तो वह भी एक परिवार से संबंध रखता है और अगर तृणमूल का एक आदमी मरता है तो वह भी किसी परिवार का सदस्य होता है.’
माओवाद प्रभावित लालगढ़ में रेल मंत्री ने रैली को संबोधित करते हुए कहा, ‘अगर आप हिंसा और हत्याएं रोकने को तैयार हो जाते हैं तो बातचीत शुरू हो सकती है. संयुक्त अभियान भी वापस ले लेना चाहिए.’ उन्होंने माओवादियों से रेल सेवा बाधित नहीं करने का आग्रह किया और कहा, ‘अगर ट्रेन सेवाएं रोज बाधित की गईं तो मैं काम कैसे करूंगी? कभी कुछ लोग आपके नाम पर यह करते हैं तो कभी आप ऐसा करते हैं.’ इस साल जनवरी में झाड़ग्राम में आयोजित अपनी रैली का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि उन्होंने इलाके में दो ट्रेनें शुरू की हैं.
पीसीपीए नेताओं की गिरफ्तारी
पुलिस ने रैली स्थल के पास से पीसीपीए के चार नेताओं को गिरफ्तार किया। सुशील महतो को पुलिस ने दोबारा गिरफ्तार किया है। पहले वह पुलिस हिरासत से भाग निकला था। तीन दूसरे नेताओं को वसूली के आरोप में पकड़ा गया है। मगर बीबीसी संवाददाता अमिताभ भट्टासाली का कहना है कि पीपीसीए के नेतृत्व में बड़ी संख्या में लोग रैली में आकर शामिल हुए लेकिन भारी पुलिस बल के बावजूद किसी भी नेता को गिरफ़्तार नहीं किया गया. अमिताभ भट्टासाली का कहना है कि वो लालगढ़ रैली में शामिल हुए लगभग 10 से 12 आदिवासियों के जत्थे के साथ काफ़ी दूर तक चले. इनका नेतृत्व पीसीपीए के सचिव मनोज महतो कर रहे थे और उन्होंने कई पुलिस नाकों को पार किया लेकिन पुलिस ने उनसे कुछ नहीं कहा. मनोज महतो का कहना था,''मैं पुलिस को चुनौती देता हूँ कि वो मुझे गिरफ़्तार करे. हमने आदिवासियों को इस रैली में शामिल होने के लिए प्रेरित किया क्योंकि ये राज्य के आतंक के ख़िलाफ़ है। मालूम हो कि पश्चिम बंगाल के पुलिस प्रमुख भूपिंदर सिंह ने घोषणा की थी कि माओवादियों से जुड़े पीपुल्स कमेटी अगेस्ट पुलिस एट्रोसिटीज़ (पीसीपीए) के नेता यदि रैली में दिखाई दिए तो उन्हें गिरफ़्तार कर लिया जाएगा।
राजनीतिक मकसद
जंगलमहल तीन जिलों (पश्चिमी मिदनापुर, बांकुड़ा और पुरुलिया) में फैला पश्चिम बंगाल का वह इलाका है, जो वामपंथियों का गढ़ है और नक्सलियों के प्रभाव में आ चुका है। 2006 के विधानसभा चुनाव में माकपा को इस इलाके की 18 विधानसभा सीटों में से ज्यादातर पर जीत मिली थी। 2009 लोकसभा चुनाव में भी यहां तृणमूल को कामयाबी नहीं मिली थी। इसलिए ममता बनर्जी इस इलाके में अपनी पैठ मजबूत कर आने वाले विधानसभा चुनाव में अपनी स्थिति मजबूत करना चाहती हैं।
ममता की मजबूती
रैली को नक्सलियों ने पूरा समर्थन दिया है, जो ममता के लिए उत्साहजनक संकेत है। नक्सली नेता किशनजीके अनुसार रैली गैरराजनीतिक है क्योंकि इसे संघर्ष विरोधी मंच के बैनर तले आयोजित किया गयाहै। और इसीलिए नक्सलियों ने इसे समर्थन दिया है।
ममता बनर्जी ने सोमवार को पिछले महीने नक्सलियों के प्रवक्ता चेरुकुरी राजकुमार उर्फ आजाद को मारने के लिए अपनाए गए तरीके की निंदा की। नक्सलियों के प्रभाव वाले पश्चिमी मिदनापुर जिले में एक विशाल रैली में उन्होंने कहा, 'मैं महसूस करती हूं कि जिस तरह आजाद को मारा गया वह ठीक नहीं है।' उन्होंने नक्सलियों के इस आरोप का लगभग समर्थन किया कि आजाद को फर्जी मुठभेड़ में मारा गया। गौरतलब है कि पुलिस ने दावा किया था कि नक्सलियों के तीसरे नंबर के नेता आजाद की आंध्र प्रदेश के आदिलाबाद जिले के जंगलों में मुठभेड़ में मौत हो गई। बनर्जी ने कहा कि नक्सलियों और सरकार के बीच वार्ता के मध्यस्थ सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश ने आजाद को वार्ता के लिए तैयार किया था। संत्रास विरोधी फोरम के तहत आयोजित एक गैर राजनीतिक रैली में बनर्जी ने कहा, 'जो हुआ वह ठीक नहीं है। लोकतांत्रिक प्रक्रिया के प्रति आजाद ने विश्वास जताया था।'
नक्सल समर्थन जनजातीय संस्था पुलिस संत्रास विरोधी जन समिति (पीसीएपीए) ने इस रैली को समर्थन दिया। इस रैली में स्वामी अग्निवेश, मेधा पाटकर और नक्सल समर्थक लेखिका महाश्वेता देवी जैसे कई सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित थे। केंद्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के दूसरे सबसे बड़े घटक की नेता बनर्जी ने आजाद की मौत पर शोक जताया। स्वामी अग्निवेश ने आजाद के मारे जाने की घटना की न्यायिक जांच की मांग करते हुए आरोप लगाया कि प्रशासन ने अपने संचार माध्यमों का इस्तेमाल करके नक्सली नेता का पता लगाया और उसे मार दिया। वहीं नक्सलियों का कहना है कि आजाद और एक अन्य कार्यकर्ता हेमचंद पांडे को पुलिस ने गत एक जुलाई को नागपुर से उठाया था और अगले दिन आदिलाबाद में मार डाला था। ( साभार-बीबीसी, आजतक, दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण व एजंसियां )
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1 comment:
प्रणाम बहुत ही विचारशील प्रस्तुति हार्दिक बधाई
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