Wednesday, 29 August 2012

यह राजनेताओं का समाजवाद है

 उत्तरप्रदेश में शासकीय फरमान जारी हो चुका है कि वीवीआईपी इलाके में २४ घंटे बिजली सप्लाई की जाए। ऐसा तब संभव हुआ जब संसद में व्यक्तिगत तौरपर खुद सोनिया गांधी समाजवादी पार्टी के सांसद मुलायम सिंह यादव से अमेठी व रायबरेली में बिजली संकट पर शिकायत की और आग्रह किया कि इन दो क्षेत्रों में बिजली संकट दूर करने के उपाय करें। अगर जनता की मांग होती तो शायद बिजली संकट का रोना रोते नेताजी मगर वीवीआईपी की बात थी इसलिए उसी दिन संसद की कार्यवाही खत्म होने के बाद ही अपने मुख्यमंत्री पुत्र अखिलेश यादव को इन इलाकों में २४ घंटे बिजली सप्लाई के फरमान जारी करने को कहा और मुख्यमंत्री ने बिना कोई देरी किए ऐसा कर भी दिया।
    बहरहाल इस फरमान के बाद अमेठी व रायबरेली के अलावा मुलायम सिंह यादव का संसदीय क्षेत्र मनिपुरी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सांसद पत्नी डिम्पल यादव का संसदीय क्षेत्र कन्नौज, उत्तर प्रदेश सरकार के शहरी विकास मंत्री आजम खान का विधानसभा क्षेत्र रामपुर और यादव परिवार का गृह जिला इटावा अब बिजली कटौती से मुक्त हो गया है।
    टाईम्स आफ इंडिया की खबर के मुताबिक उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन लिमिटेड के अधिकारियों ने भी ऐसा किए जाने के निर्देश के सही बताया है। उन्हें बुधवार २९ अगस्त से इस आदेश को तामील भी करने को कहा गया है।
मालूम हो कि पूरा उत्तरप्रदेश भयानक बिजली संकट से जूझ रहा है। गावों को महज कुछ घंटे ही बिजली मिल पा रही है। शहरी इलाके भी बिजली की भारी कटौती से परेशान हैं। किसानों का तो बुरा हाल है।

दरअसल आम जनता के लिए राजनेताओं के पास लुभावने वादे ही होते हैं। राजनीतिक संकट दिखा तो उनमें से कुछ पूरे भी कर दिए जाते हैं। अन्यथा रामभरोसे ही है सब कुछ। अगर किसी वीवीआईपी इलाके में आप नहीं बसते हैं तो मरिए कीड़े मकोड़ों की तरह ? यह राजनेताओं का समाजवाद है।


देखिए इस खबर को जो टाईम्स आफ इंडिया ने २९ अगस्त को छापी है। इसका लिंक भी दिया है।-------

A word from Sonia Gandhi ensures uninterrupted power supply in Rae Bareli, Amethi

UP govt has ordered uninterrupted power supply in Rae Bareli and Amethi after Sonia Gandhi sought Mulayam Singh Yadav's intervention.


http://timesofindia.indiatimes.com/india/A-word-from-Sonia-Gandhi-ensures-uninterrupted-power-supply-in-Rae-Bareli-Amethi/articleshow/15935788.cms

LUCKNOW: It's not without reason that "Forbes" magazine recently ranked Congress president and UPA chairperson Sonia Gandhi the sixth most powerful woman in the world. It needed only a word from her for Rae Bareli, her parliamentary constituency, to have uninterrupted power supply.

Uttar Pradesh chief minister Akhilesh Yadav late on Tuesday issued orders to also ensure round-the-clock power supply to Amethi, the parliamentary constituency of Congress general secretary Rahul Gandhi.

Officials of the Uttar Pradesh Power Corporation Limited (UPPCL) confirmed that a missive to this effect was received from senior officials.

The decision to include the two districts in the 'No power-cut VVIP list' was taken after a request was made by Sonia Gandhi to Samajwadi Party (SP) chief Mulayam Singh Yadav.

Sonia had walked up to Yadav before parliamentary proceedings started in the Lok Sabha on Tuesday and had requested the Yadav chieftain to "do something about the power crisis in Rae Bareli".

"Soniaji told Netaji that owing to poor power supply, the farmers and industry in the district were suffering," said a source, who confirmed that Mulayam Singh Yadav responded warmly to the request.

After the day's proceedings in Parliament were stalled, Yadav rang up his son and UP chief minister Akhilesh Yadav and asked him to ensure 24x7 power supply to Sonia and Rahul Gandhi's constituencies.

Following this, orders were issued to UPPCL officials, compliance with which was ensured on Wednesday morning.

So far, districts exempt from power cuts include Mainpuri (Mulayam Singh Yadav is MP from here), Kannauj (the chief minister's wife Dimple Yadav is a first-time MP from here), Rampur (Urban Development Minister Azam Khan is an MLA from here) and Etawah (the home district of the Yadav family).

The state reels under an unprecedented power crisis. Urban areas suffer outages that last up to four hours, while the countryside routinely faces up to eight hours with no power.


Monday, 20 August 2012

न्यूनतम पेंशन एक हजार रुपए करने का प्रस्ताव

 कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) के अंशधारकों को सेवानिवृत्ति के बाद जल्द 1000 रुपए की न्यूनतम मासिक पेंशन मिल सकती है। वित्त मंत्रालय के पास इस आशय का प्रस्ताव भेजा गया है।
इस मामले से जुड़े एक सूत्र ने कहा कि श्रम मंत्रालय ने हाल में वित्त मंत्रालय के पास ईपीएफओ के अंशधारकों के लिए न्यूनतम 1000 रुपए की पेंशन तय करने का प्रस्ताव भेजा है। इसमें यह नहीं देखा जाएगा कि इस योजना में उनका योगदान कितना है।
कर्मचारी भविष्य निधि संगठन की सिफारिश पर श्रम मंत्रालय ने वित्त मंत्रालय से कहा है कि वह या तो 20 साल की सेवा के बाद दिए जाने वाले दो साल के बोनस को वापस ले या फिर न्यूनतम 1000 रुपए की पेंशन तय कर 539 करोड़ रुपए सालाना का अतिरिक्त बोझ उठाए।
फिलहाल हर अंशदाता को 20 साल की सेवा के बाद दो साल के अतिरिक्त बोनस का लाभ मिलता है। ईपीएफओ का कहना है कि यदि दो साल के बोनस को वापस लिया जाता है तो 1000 रुपए की न्यूनतम पेंशन तय करने की प्रक्रिया ऐसी होगी जो राजस्व की दृष्टि से तटस्थ होगी। इसके अलावा पेंशनधारकों को करीब पांच फीसद की राहत मिलेगी।
वित्त मंत्रालय अगर वैकल्पिक व्यवस्था की ओर नहीं जाता है तो सरकार को हर साल 539 करोड़ रुपए अतिरिक्त खर्च करने पड़ेंगे। यह उन 994 करोड़ रुपए सालाना से अलग होंगे, जो सरकार को पेंशन कोष में मूल वेतन और महंगाई भत्ते में 1.16 फीसद के योगदान के लिए देने पड़ रहे हैं। 31 मार्च, 2010 के आंकड़ों के मुताबिक कुल 35 लाख ईपीएफओ पेंशनधारक हैं। इनमें से 14 लाख ऐसे हैं जिन्हें 500 रुपए से कम पेंशन मिलती है। इसके अलावा सात लाख पेंशनधारक ऐसे हैं जिन्हें 1000 रुपए महीने पेंशन मिलती है। इनके अलावा बड़ी संख्या में ऐसे पेंशनधारक भी हैं जिन्हें 12 और 38 रुपए पेंशन दी जा रही है। (  नई दिल्ली, 20 अगस्त (भाषा)।)

Monday, 13 August 2012

मजीठिया बोर्ड की सिफारिशों को लागू करने के लिए कोई रोक नहीं लगाई सुप्रीम कोर्ट ने- खड़गे

 सरकार ने सोमवार को साफ कर दिया कि मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशों को लागू करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कोई रोक नहीं लगाई है। केंद्रीय श्रम मंत्री मल्लिकार्जुन खड़गे ने लोकसभा में कहा कि पत्रकारों और गैरपत्रकारोंसे जुड़े मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशों को अधिसूचित कर दिया गया है। कई अखबार मालिकों ने इस मामले में 10 रिट याचिकाएं दायर की हैं। लेकिन शीर्ष अदालत से इसके अमल पर कोई स्थगन आदेश नहीं दिया गया है।
लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान मनोहर तिरकी के सवाल के जवाब में खड़गे ने कहा कि सरकार ने एबीपी प्राइवेट लिमिटेड व एएनआर बनाम भारत सरकार एवं अन्य के मामले में 2011 की रिट याचिका संख्या 246 के निष्कर्ष पर 11 नवंबर, 2011 को मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशों को अधिसूचित कर दिया था। उन्होंने कहा कि वेतन बोर्ड की सिफारिशों को लागू कराने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों व केंद्र शासित प्रदेशों की है।
अधिसूचना की प्रति सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को भेजी गई है। उन्होंने बताया कि मंत्रालय ने राज्य सरकारों और संघ राज्य क्षेत्र से बार-बार अनुरोध किया है कि वेतन बोर्ड की सिफारिशों को जल्द से जल्द लागू कराया जाए और इस बारे में हुई प्रगति की निगरानी के लिए विशेष प्रकोष्ठ व त्रिपक्षीय समीक्षा समिति का गठन किया जाए। खड़गे ने कहा कि अधिसूचना पर अमल की समीक्षा के लिए केंद्रीय स्तर की एक समिति बनाई गई है। हालांकि अभी तक किसी राज्य से सिफारिशों के लागू होने के बारे में कोई सूचना नहीं मिली है। (   नई दिल्ली, 13 अगस्त (भाषा)। )

Gogoi urged to ensure Majithia Wage Board implementation

 Guwahati, Aug 2 (PTI) Media associations urged Assam Chief Minister Tarun Gogoi today to ensure implementation of the Majithia Wage Board recommendations in all news organisations and ensure security of all mediapersons. In a letter to Gogoi, representatives of eight media associations said it is ironic that journalists, who often highlight the exploitation faced by workers in other sectors, have to work in an exploitative situation themselves. They are denied economic benefits recommended by statutory wage boards constituted by the Centre and most journalists work without proper appointment letters, PF, ESI, gratuity and leave, while journalist and non-journalist media persons in Assam are even deprived of the benefits recommended by the Minimum Wages Act, 1948. The wage board beneficiaries should include full-time rural correspondents as well as journalists and non-journalists of the electronic media. "So we demand for immediate implementation of Majithia Wage Board award in all newspaper houses in Assam," said the letter signed by representatives of National Federation of Newspaper Employees, Assam Union of Working Journalists, Journalist Union of Assam, Journalists Forum Assam, Assam Press Correspondents Union, All Assam Journalist Union, Assam Tribune Employees Union and Electronic Media Forum Assam. The associations also demanded adequate compensation to families of media persons in case of any unfortunate incident while covering news and life insurance of minimum Rs 10,00,000 for each media person. The letter said working in the insurgency-affected state was becoming increasingly dangerous for journalists. They are subjected to numerous threats from insurgents, surrendered militants and even from anti-insurgent security personnel. Statistics show that Assam has lost over 20 dedicated editors/journalists in the last two decades and not a single culprit has been punished till date, it added.

Supreme Court Final Hearing on Majithia Wage Board for journalists and non-journalists on July 31 2012
Newspaper managements on Wednesday urged early hearing in the Supreme Court of the petitions challenging the Justice Majithia Wage Board report and the subsequent government notification. For, the batch of cases scheduled for hearing on Wednesday was deferred till July 31, 2012.
Senior counsel K.K. Venugopal, appearing for the Indian Newspaper Society, made a mention before a Bench of Justices Dalveer Bhandari, T.S. Thakur and Dipak Misra for early listing. He said that on October 11, an order was passed for listing the cases for final hearing on December 7 but now the matter was put up for July 31, 2012.
Justice Bhandari told counsel: “Subsequent to that order [October 11 order] Rajasthan Patrika also challenged the report. When that petition came before me, I passed an order recusing myself from that case and directed that all connected matters be listed before some other Bench. That is the reason why the petitions are not listed today [Wednesday]. You may make a mention for early hearing before the Registrar concerned, bringing to his notice the order passed on October 11.”
Meanwhile, ABP Ltd., publishers of Telegraph and other newspapers, and Bennett Coleman and Co. Ltd., publishers of The Times of India and other newspapers, filed fresh applications challenging the November 11 notification issued by the government for implementation of the Wage Board recommendations.
The petitioners maintained that the Centre had issued the notification without applying its mind. The recommendations had not considered the wages in similar industries which had been specifically placed before the Wage Board. They argued that the Centre had failed to consider the paying capacity of the newspapers, and various recommendations like variable pay had been made without issuing notice to the affected parties.
Further, the Wage Board had modified Schedule IA and IB Grouping of working journalists in newspaper establishments and functional definitions and they would have the effect of deleting certain designations/categories from a particular group. Contending that the notification was illegal, the petitioners called for abolition of wage boards for the newspaper industry as with the efflux of time, they had lost their significance. In no other industry wages were being regulated by the government under the statutory wage board.
They sought amendment to the prayers, quashing of the notification and an interim stay of its operation.


Wednesday, 8 August 2012

इंडियन एक्सप्रेस कोलकाता की नई आफिस

यह दृश्य मेरी आफिस के सामने राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या ६ की है। आफिस की छत से इंडियन एक्सप्रेस के फोटोग्राफर पार्थ पाल द्वारा खींची गई यह फोटो उस समय की है जब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस रास्ते से पश्चिम मेदिनीपुर के बेलपहाड़ी में एक बुधवार को होने वाले एक कार्यक्रम के सिलसिले में गुजर रही थीं। मुख्यमंत्री १९९८ के बाद अब २०१२ में वहां मंगलवार को गईं। फोटो में सामने एक क्रासिंग है जहां पायलट कार के साथ ममता बनर्जी का छह-सात कारों वाला काफिला दिख रहा है। इस क्रासिंग को अंकुरहाटी चेकपोस्ट कहा जाता है। इंडियन एक्सप्रेस ने अंकुरहाटी के नजदीक ही कोलकाता की अपनी नई आफिस बनाई है।

Monday, 6 August 2012

अपेक्षा के अनुरूप पैसा नहीं मिलने से प्रशिक्षित पत्रकारों का हो रहा है दूसरे क्षेत्रों में पलायन

    पत्रकारिता के पेशे में अपेक्षा के अनुरूप पैसा नहीं मिलने और कामकाज की स्वतंत्रता के अभाव में देश में काफी तादाद में प्रशिक्षित पत्रकार अब इस पेशे को छोड़ कर दूसरे क्षेत्र में पलायन कर गए हैं। मीडिया स्टडीज ग्रुप और जन मीडिया जर्नल ने भारतीय जनसंचार संस्थान के 1984-85 से लेकर 2009-10 तक के शैक्षणिक सत्र के छात्रों की प्रतिक्रिया के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की है।
रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय जनसंचार संस्थान से प्रशिक्षित कुल 73.24 फीसद छात्र ही इस पेशे से जुड़े हुए हंै, जबकि एक चौथाई से ज्यादा पत्रकारों का दूसरे क्षेत्रों में पलायन हो चुका है। अभी तक मीडिया से जुड़े प्रशिक्षित छात्रों में से 32.28 फीसद अखबार, 25.98 फीसद टेलीविजन, 13.39 फीसद साइबर माध्यमों, 8.66 फीसद रेडियो, 7.09 फीसद पत्रिकाओं, 2.88 फीसद विज्ञापन और 5.77 फीसद जनसंपर्क क्षेत्र में कार्यरत हैं।
सर्वेक्षण में कहा गया है कि पत्रकारिता से जुड़े पेशेवरों की काफी बड़ी तादाद इससे असंतुष्ट है। इसके कारण इनमें तेजी से नौकरियां बदलने का चलन देखा गया है। सर्वेक्षण में शामिल 24.77 फीसद लोगों ने ही कहा कि वे अपने कामकाज से पूरी तरह से संतुष्ट हैं। 53.21 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे मामूली संतुष्ट है जबकि 16.51 फीसद लोग अपने कामकाज से असंतुष्ट हैं।
सर्वेक्षण के मुताबिक पत्रकारों और मीडियाकर्मियों की माली हालत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 56.64 फीसद लोगों के पास अपना मकान नहीं है और वे किराए के मकान में रह रहे हैं। 30.97 फीसद मीडियाकर्मियों के पास मकान तो है लेकिन यह उनकी पैतृक संपत्ति है। 6.19 फीसद मीडियाकर्मियों के पास मध्य आय वर्ग (एमआईजी) मकान हैं जबकि 5.31 फीसद मीडियाकर्मियों के पास उच्च आय वर्ग (एचआईजी) मकान हैं।
मीडिया स्टडीज ग्रुप के संयोजक अनिल चमडि़या ने कहा कि देश के विभिन्न क्षेत्रों से बड़े बड़े सपने लेकर छात्र पत्रकारिता का कोर्स करते हैं। वे इस पेशे में अच्छा पैसा मिलने और लिखने की स्वतंत्रता की उम्मीद के साथ आते हैं। लेकिन यहां आने के बाद उन्हें न तो अच्छा पैसा मिलता है और न ही कामकाज की स्वतंत्रता। इससे असंतुष्ट होकर उनका दूसरे क्षेत्रों में पलायन हो रहा है। इस स्थिति से देश का शीर्ष पत्रकारिता संस्थान भारतीय जनसंचार संस्थान भी गंभीर रूप से प्रभावित हो रहा है। नई दिल्ली, 6 अगस्त (भाषा)।

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