मजीठिया वेतन
बोर्ड की सिफारिशों से संबंधित याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट अगले साल आठ
जनवरी से अंतिम सुनवाई करेगा। प्रिंट मीडिया और समाचार एजेंसियों के
पत्रकार व गैरपत्रकार कर्मचारियों के वेतन तय करने के लिए यह वेतन बोर्ड
केंद्र सरकार ने बनाया था। पर इसकी रिपोर्ट आने से पहले ही इसके गठन के
औचित्य पर सवाल उठाते हुए कुछ मीडिया घरानों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
दी थी। हालांकि बाद में वेतन बोर्ड की सिफारिशों को केंद्र सरकार ने
अधिसूचना के जरिए लागू भी कर दिया। लेकिन मीडिया घरानों ने इन सिफारिशों पर
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बहाने अमल लटका रखा है।
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति आफताब आलम और न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई की खंडपीठ के समक्ष इस मामले से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई हुई। जजों ने शुरुआत में ही मीडिया घरानों के प्रबंधकों से कहा है कि वे अपने कर्मचारियों को वेतन बोर्ड की सिफारिशों के हिसाब से अतिरिक्त भुगतान करने पर विचार करें। गौरतलब है कि अनेक मीडिया संगठनों ने पत्रकारों और गैर पत्रकारों के लिए वेतन बोर्ड की सिफारिशों को शीर्ष अदालत में चुनौती दे रखी है। इन सिफारिशों को सरकार ने 11 नवंबर 2011 को अधिसूचित किया था। इन संगठनों ने इस अधिसूचना पर रोक लगाने का भी अदालत से अनुरोध किया है।
सुनवाई के दौरान जजों ने अखबार मालिकों को सुझाव दिया कि उन्हें ‘बड़ा दिल’ दिखाना चाहिए और अंतरिम भुगतान करने पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। सुनवाई के दौरान कुछ मीडिया समूहों का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील फली नरिमन से जजों ने कहा कि वे इन सुझावों पर विचार करें और प्रबंधकों के विचार मालूम कर आठ अक्तूबर को बताएं। उस दिन अदालत इस मामले में निर्देश देगी। उन्होंने नरिमन से साफ कहा- कोई आदेश दिए बगैर हम जानना चाहते हैं कि क्या आप कुछ कर सकते हैं।
नरिमन की दलीलों के बीच ही जजों ने उनसे कहा कि इस मामले में कोई आदेश दिए बगैर ही वे जानना चाहते हैं कि क्या इन याचिकाओं के लंबित होने के दौरान ही मीडिया समूह अपने कर्मचारियों के लिए कुछ कर सकते हैं। जजों ने कहा- हमने नरिमन को कुछ सुझाव दिए हैं। वे एक या दो हफ्ते के भीतर हमें बताएंगे।
जब नरिमन ने कर्मचारी यूनियनों और केंद्र सरकार के जवाबी हलफनामों का जवाब देने के लिए अधिक समय देने का अनुरोध किया तो कर्मचारी संगठनोंं की तरफ से वरिष्ठ वकील कोलिन गोन्साल्वेज ने कहा कि बगैर किसी विलंब के सुनवाई शुरू होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अदालत को वेतन बोर्ड की सिफारिशें पूरी तरह और तत्काल लागू करने की अनुमति देनी चाहिए। जो लंबित रिट याचिकाओं के नतीजे के दायरे में भी हो सकता है। वरिष्ठ वकील एमएन कृष्णामणि ने भी कहा कि इन कर्मचारियों के वेतन में पिछले 13 साल से कोई बदलाव नहीं हुआ है। लिहाजा अदालत को तत्काल कुछ व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए। ( साभार- जनसत्ता ब्यूरो --नई दिल्ली, 21 सितंबर।)
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति आफताब आलम और न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई की खंडपीठ के समक्ष इस मामले से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई हुई। जजों ने शुरुआत में ही मीडिया घरानों के प्रबंधकों से कहा है कि वे अपने कर्मचारियों को वेतन बोर्ड की सिफारिशों के हिसाब से अतिरिक्त भुगतान करने पर विचार करें। गौरतलब है कि अनेक मीडिया संगठनों ने पत्रकारों और गैर पत्रकारों के लिए वेतन बोर्ड की सिफारिशों को शीर्ष अदालत में चुनौती दे रखी है। इन सिफारिशों को सरकार ने 11 नवंबर 2011 को अधिसूचित किया था। इन संगठनों ने इस अधिसूचना पर रोक लगाने का भी अदालत से अनुरोध किया है।
सुनवाई के दौरान जजों ने अखबार मालिकों को सुझाव दिया कि उन्हें ‘बड़ा दिल’ दिखाना चाहिए और अंतरिम भुगतान करने पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। सुनवाई के दौरान कुछ मीडिया समूहों का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील फली नरिमन से जजों ने कहा कि वे इन सुझावों पर विचार करें और प्रबंधकों के विचार मालूम कर आठ अक्तूबर को बताएं। उस दिन अदालत इस मामले में निर्देश देगी। उन्होंने नरिमन से साफ कहा- कोई आदेश दिए बगैर हम जानना चाहते हैं कि क्या आप कुछ कर सकते हैं।
नरिमन की दलीलों के बीच ही जजों ने उनसे कहा कि इस मामले में कोई आदेश दिए बगैर ही वे जानना चाहते हैं कि क्या इन याचिकाओं के लंबित होने के दौरान ही मीडिया समूह अपने कर्मचारियों के लिए कुछ कर सकते हैं। जजों ने कहा- हमने नरिमन को कुछ सुझाव दिए हैं। वे एक या दो हफ्ते के भीतर हमें बताएंगे।
जब नरिमन ने कर्मचारी यूनियनों और केंद्र सरकार के जवाबी हलफनामों का जवाब देने के लिए अधिक समय देने का अनुरोध किया तो कर्मचारी संगठनोंं की तरफ से वरिष्ठ वकील कोलिन गोन्साल्वेज ने कहा कि बगैर किसी विलंब के सुनवाई शुरू होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अदालत को वेतन बोर्ड की सिफारिशें पूरी तरह और तत्काल लागू करने की अनुमति देनी चाहिए। जो लंबित रिट याचिकाओं के नतीजे के दायरे में भी हो सकता है। वरिष्ठ वकील एमएन कृष्णामणि ने भी कहा कि इन कर्मचारियों के वेतन में पिछले 13 साल से कोई बदलाव नहीं हुआ है। लिहाजा अदालत को तत्काल कुछ व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए। ( साभार- जनसत्ता ब्यूरो --नई दिल्ली, 21 सितंबर।)
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