Tuesday, 29 May 2007

भारत का राष्ट्रपति

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भारत के राष्ट्रपति के चयन को लेकर राजनीतिक गतिविधियाँ तेज़ हो गई है.
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सोमवार को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम करुणानिधि की मुलाकात की.
ख़बर है कि दोनों नेताओं ने राष्ट्रपति चुनावों के संबंध में चर्चा की.
बैठक के बाद डीएमके नेता करुणानिधि ने कहा कि वो इस मुद्दे पर विचार-विमर्श के लिए जून के पहले सप्ताह में फिर दिल्ली आएंगे.
करुणानिधि ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार और सीपीएम महासचिव प्रकाश कारत से भी मुलाक़ात की.
राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार की राजनीतिक पृष्ठभूमि होनी चाहिए. साथ ही उसकी छवि धर्मनिरपेक्ष होनी चाहिए

वामपंथी दल
पवार ने करुणानिधि के साथ अपनी मुलाक़ात को शिष्टाचार भेंट करार दिया और राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के संबंध में सवालों को टाल दिया.
सीपीएम नेता प्रकाश कारत ने कहा कि यह लगातार चलने वाले विचार विमर्श का हिस्सा है.
उनका कहना था कि वामपंथी दल पहले ही राष्ट्रपति उम्मीदवार के बारे में अपने विचार व्यक्त कर चुके हैं.
वामपंथी दलों ने कहा था कि राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार की राजनीतिक पृष्ठभूमि होनी चाहिए. साथ ही उसकी छवि धर्मनिरपेक्ष होनी चाहिए.
अर्जुन सिंह का इनकार
इधर केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह ने राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल होने से इनकार किया है. उनकी भी करुणानिधि से मुलाक़ात हुई थी.
ग़ौरतलब है कि बहुजन समाज पार्टी की नेता और उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती की हाल में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोनिया से मुलाक़ात की थी.
माना जा रहा है कि अगले राष्ट्रपति पद के चयन में बसपा की महत्वपूर्ण भूमिका होगी.
हालांकि कांग्रेस ने अभी तक इस बारे में किसी के नाम की घोषणा नहीं की है.
एनडीए का उम्मीदवार
दूसरी ओर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की ओर से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को इस संबंध में फ़ैसला लेने के लिए अधिकृत किया गया है.
वाजपेयी ने एक समारोह में कहा था कि राष्ट्रपति पद के लिए सर्वसम्मति से किसी का चुनाव होना चाहिए.
फिलहाल ऐसे कोई संकेत नहीं हैं कि राष्ट्रपति का चुनाव सर्वसम्मति से हो सकेगा.
एनडीए के उम्मीदवार के रूप में उप राष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत का नाम चर्चा में है. हालांकि आधिकारिक रूप से एनडीए ने भी अपने उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है.
मौजूदा राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम 24 जुलाई को अवकाश ग्रहण कर रहे हैं.
उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने शुक्रवार की शाम यूपीए की चेयरपर्सन और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी से मुलाक़ात की है.
उत्तर प्रदेश चुनाव के नतीजे आने के बाद मायावती की सोनिया गाँधी से यह पहली मुलाक़ात थी.
हालांकि इसे औपचारिक मुलाक़ात कहा गया है लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दोनों नेताओं के बीच राष्ट्रपति चुनाव को लेकर अहम चर्चा हुई है.
मायावती शनिवार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाक़ात करेंगी.
चौथी बार उत्तरप्रदेश में मुख्यमंत्री का पद संभालने के बाद पहली बार दिल्ली पहुँची मायावती ने इससे पहले कहा कि पूर्व की सरकार के सभी 'नियम विरुद्ध और जनविरोधी' फ़ैसलों की समीक्षा की जाएगी.
मुख्यमंत्री पद संभालने के बाद पहली बार दिल्ली पहुँची मायावती ने स्पष्ट किया कि उनका कोई भी फ़ैसला राजनीतिक बदले की भावना से प्रेरित नहीं होगा बल्कि उन्हीं मामलों पर पुनर्विचार किया जाएगा जो जनता के हित में नहीं हैं या फिर ग़लत तरीक़े से किए गए हैं.
राष्ट्रपति चुनाव
जैसा कि पहले कहा गया था, मायावती और सोनिया गाँधी के बीच मुलाक़ात चाय पर होनी थी.
लेकिन चाय पर होनी वाली मुलाक़ात थोड़ी लंबी चली और दोनों नेता एक घंटे से भी अधिक समय तक चर्चा करते रहे.
कांग्रेस या यूपीए ने अभी अपने उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि दोनों नेताओं के बीच राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार का मसला अहम रहा होगा.
ऐसा मानना स्वाभाविक भी है क्योंकि उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणामों ने साफ़ कर दिया है कि राष्ट्रपति चुनाव में मायावती की भूमिका निर्णायक होगी.
मायावती ने सोनिया गाँधी से मुलाक़ात के बाद बात नहीं की.
लेकिन दोपहर को वे कह चुकी थीं कि इस संबंध में उन्होंने अभी कोई फ़ैसला नहीं किया है और वो समय आने पर 'अपने पत्ते खोलेंगी'.
उन्होंने कहा है कि राष्ट्रपति चुनाव के संबंध में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी और विभिन्न ज़िलों के पदाधिकारियों की बैठक बुलाई गई है जिसके बाद पार्टी के सांसद और उत्तर प्रदेश के विधायक इस बारे में फ़ैसला करेंगे.
हालांकि शाम को इस बैठक के बाद भी कोई ख़बर नहीं मिली.
लेकिन विश्लेषक उस संकेत को मायावती का मन बताने के लिए पर्याप्त मानते हैं जिसमें उन्होंने कहा, "हम यूपीए के घटक दल नहीं हैं लेकिन सांप्रदायिक ताक़तों को रोकने के लिए हम सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे हैं और आगे भी देते रहेंगे."
इसका मतलब यह भी निकाला जा रहा है कि कम से कम मायावती एनडीए के किसी उम्मीदवार को तो समर्थन नहीं देंगी.


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