हिंदी ब्लागर्स की दुनिया का अभी इतना विस्तार तो नहीं हुआ है मगर इनके तेवर ऐसे हैं कि संबद्ध लोगों को अब ब्लागरों से भी परेशानी होने लगी है। शायद अखबारों व दूसरे समाचार माध्यमों पर तो सत्ता, धन और अपराध के बाहुबली बड़ी आसानी से नजर रख सकते हैं मगर ब्लागरों की आजाद अभिव्यक्ति को रोकना तब तक आसान नहीं होगा जब तक शासन पूरी ब्लागिंग ही न रोक दे। एक विषय पर जहां कुछ गिने चुने अखबार व समाचार माध्यम खबरें छाप सकतें हैं वहीं मिनटों में लाखों ब्लागर्स सारी दुनिया में किसी भी विषय पर अपने विचार पहुंचा सकते हैं। ब्लागर्स के लिए यही बात अच्छी भी है और बुरी भी। बुरी इस लिए कि राजनीति व सत्ता के माफिया तत्व कभी नहीं चाहेंगे कि उनकी हकीकत लोगों को पता लगे। सफेदपोश बनकर जीने की आदत जो हो गई है। इस लिए हे ब्लागर्स बंधु सावधान तो रहो ही क्यों कि आपको भी सउदी अरब के ब्लागर्स फौद अल-फरहान की तरह जेल हो सकती है।
इंटरनेट के फैलते जाल से दुनिया भर में ब्लागर समुदाय का जन्म हुआ, लेकिन सऊदी अरब के ब्लागर्स के लिए दूसरों तक अपनी बात पहुंचाना जान का जोखिम उठाने के बराबर है। समाचार एजेंसी डीपीए ने जेद्दाह से खबर दी है कि 32 वर्षीय फौद अल-फरहान के हवाले से बताया कि पेशे से तकनीकी विशेषज्ञ और मानवाधिकार कार्यकर्ता फौद ब्लाग लिखने के जुर्म में पिछले तीन महीने से कारावास में है। (http://in.jagran.yahoo.com/news/international/crime/3_24_4271492.html )
फौद के अनुसार बिना किसी पुख्ता सबूत के और बिना कारण बताए उन्हे गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तारी से ठीक पहले अपने ब्लाग पर उन्होंने सऊदी अरब के उन दबंग व्यक्तित्वों के बारे में लिखा था जो उन्हे बेहद नापसंद है। इनमें अरबपति राजकुमार वालिद बिन तलाल और कई नामी मौलवियों के नाम शामिल थे। सऊदी अरब में ब्लागर्स की इस गिरफ्तारी के खिलाफ बहुत सी आवाजें उठ रही है। ब्लागर्स पर चलाए जा रहे न्यायिक मामलों के बावजूद उनके परिवार वाले और मानवाधिकार संगठन इस मनमानी का डट कर मुकाबला कर रहे है।
अभी पिछले दिनों मैंने पाकिस्तानी ब्लागरों की अहमियत के बारे में छापा था कि कैसे पाकिस्तानी ब्लागर्स राष्ट्रपति चुनने में अपनी राय व्यक्त कर रहे हैं और नोटिस भी ली जा रही है। यह पाकिस्तान में लोकतंत्र की लहर का दौर था। लेकिन इसके पहले भी जब पाकिस्तान में इमरजेंसी लगी थी तो पाकिस्तानी ब्लागरों ने ही मुशर्रफ की पोल जम कर खोली। दरअसल ब्लागर्स मूलतः आजादखयाल होता है। खेमे में बंटे और पिट्ठू बन चुके समाचार माध्यमों से उबकर ऐसे ब्लागर लिखना ही इसलिए शुरू करता है क्यों कि यहां किसी तथाकथित संपादक का अंकुश नहीं होता। ब्लागर्स की यही आजादी खटकती है लोगों को। फोद को भी इसी आजाद होकर लिखने का खामियाजा भुगतना पड़ा है।
विचारकों, लेखकों के एकमुश्त समूहबद्ध हो चुके ब्लागरों को अब यह भी सोचना पड़ेगा कि फासीवादी लोग क्या अभिव्यक्ति का यह मंच भी उनसे छीन लेंगें ?
2 comments:
पीयूष पाण्डेय (Ogilvy & Mather वाले) से मिले कि नहीं आप. अच्छे भीड़ खेंचू टाइटल रच लेते हैं.
आपकी चिंता जायज है।
एक निवेदन- कृपया कमेंट बॉक्स से “वर्ड वेरीफिकेशनद्ध हटा दें, इससे इरीटेशन होती है।
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