Thursday 6 March 2008

उजड़ी हुई मुंबई का सपना देख रहे हैं बाल ठाकरे !



क्या मुंबई में अब सिर्फ मराठी, कोलकाता में बंगाली, केरल में मलयाली, आंध्र प्रदेश में तेलगू, तमिलनाडु में तमिल, असम में असमिया, पंजाब, हरियाणा में पंजाबी व जाट और राजस्थान में मारवाड़ी या दूसरे राज्यों उसके बहुसंख्यक रहेंगे ? सत्ता के लिए देश का यह बंटवारा राजनीति की दुकान खोलकर बैठे जो लोग कर रहे हैं क्या उन्हें पता है कि अगर देश ही नहीं रहेगा तो वे खुद कैसे बंचेंगे। क्या देश की जातिवादी राजनीति कर रहे राजनेताओं को अपनी जाति का देश बनाना है ? बालठाकरे और राजठाकरे को देखकर तो ऐसा ही लगता है। सांप्रदायिक बयानों से राज ठाकरे को जो राजनैतिक फायदा मिलने वाला है उससे डरकर अब उनके चाचा बाल ठाकरे दो कदम आगे बढ़कर हिंदी भाषियों को गाली दे डाली। शिवसेना के मुखपत्र सामना के संपादकीय में छिनाल औरतों की तरह बिहारियों को गरियाया है। अगर आप मराठी समझते हैं तो इस लिंक http://www.saamana.com/ पर जाकर उनके दुर्वचन पढ़ सकते हैं।
कुछ हिंदी पोर्टलो ने भी इसका सार छापा है। जो नीचे उनके लिंक के साथ दिया है। मराठी न जानने वाले इस हिंदी तर्जुमा को पढ़कर बाल ठाकरे का वह संपादकीय पढ़ सकते हैं जिस पर खुद ठाकरे को तो फक्र होगा मगर पूरे देश को ऐसे राजनीतिज्ञों पर शर्म आ रही है। जिस औकात की बात कर रहे हैं उस पर अगर देश का सारा हिदी भाषी उतर आए तो बाल ठाकरे को मुंबई में भी मुंह छिपाने की जगह नहीं मिलेगी। यह अलग बात है कि बेशर्म राजनीति कर रहे उनकी तरह के दूसरे दल और नेता ऐसे मौके पर ठाकरे के सहोदर भाई निकल आएँगे। राष्ट्रीय दलों का देश के पैमाने पर क्षेत्रीय दलों के सामने कमजोर पड़ना और बदले में की जा रही ओछी राजनीति ने देश को ऐसे चौराहे पर ला खड़ा किया हैं जहां राष्ट्रीय कानून के होते हुए भी राष्ट्रीयता की धज्जियां उड़ाई जा रही है। अब बालठाकरे जैसे राजनीति के घटिया उत्पाद को नहीं बल्कि मौजूदा दौर की राजनीति के उन दलालों को दोषी मानें जिन्होंने कभी यह सोचा ही नहीं कि हिंदुस्तान की एकता को चुनौती देने के खिलाफ कड़े कानून बनाए जाने चाहिए जिससे ऐसे तत्व कभी सिर ही नहीं उठा सकें। आखिर इस देश में बार-बार दंगे होते हैं, कभी असम तो कभी पंजाब या दक्षिण भारतीय, पूर्वोत्तर राज्यों में राष्ट्रविरोधी गतिविधियां पनपती हैं मगर इसे रोकने की जगह बड़े या क्षेत्रीय दल सिर्फ राजनीतिक लाभ उठाने की संभावनाएं तलाशते नजर आते हैं।
मलेशिया जैसा देश भी आज भारत के सामने बढ़ी आर्थिक ताकत इस लिए है क्यों कि वहां किसी को राष्ट्रीय अस्मिता के साथ खिलवाड़ की छूट नहीं है। वहां ऐसे कानून हैं जो किसी को भी राष्ट्रविरोधी होने से पहले सौ बार सोचने पर मजबूर कर देते हैं। क्या भारत को ऐसे कानून पर विचार नहीं करना चाहिए। आखिर यहां भी तो ऐसे तमाम उदाहरण हैं जो साबित करते हैं कि इन आंदेलनों ने देश के विकास को प्रभावित किया है।
पश्चिम बंगाल में कभी मारवाड़ियों पर टिप्पणी की जाती है तो असम से बंगालियों को खदेड़ा जाता है। बंगाल में हिंदी माध्यम से पढ़ रहे छात्रों को हिंदी में प्रश्नपत्र सिर्फ इस लिए नहीं दिए जाते हैं कि इससे बंगाली मानसिकता को सरकार भुनाती है। सुनील गंगोपाध्याय जैसे बांग्ला के प्रचंड विद्वान-साहित्यकार हिंदी भाषियों को सरेआम खदेड़ने की बात करते हैं। दक्षिण में हिंदी व हिंदी भाषियों का विरोध जगजाहिर है। पंजाब और असम में सरेआम हिंदी भाषी मजदूरों को वहां के जातीय संगठन मार डालते हैं। लोग भागने और दरबदर होने को मजबूर होते रहते हैं। महाराष्ट्र से बांग्लादेशी के नाम पर बंगालियों को खदेड़ा जाता है और उन पर अत्याचार किया जाता है। यानी किसी जिम्मेदार दल या राजनीतिज्ञ को और कितने उदाहरण चाहिए जिसके आधार राष्ट्रविरोधी गतिविधियों पर अंकुश के कारगर व कड़े नियम बना सके। क्या मानकर चला जाए कि एकछत्र भारत की अब किसी दल को जरूरत नहीं। शायद ऐसा ही लगता है। सभी राजनीतिक अवसरवादिता का रोटी सेंक रहे हैं। आखिर हो क्यों नहीं? यहीं क्षेत्रीय दल तो सरकारें चलवा रहे हैं और सत्ता के भागीदार हैं जो अपने राज्यों में राष्ट्रीयता की जगह क्षेत्रीयता के बल पर खड़े हैं।
एक अंधे मोड़ पर आकर खड़ा हो गया है आज का क्षेत्रीय व सांप्रदायिक ताकत के आगे बेबश हो चुका भारत। हमारे जैसे नागरिक तो अब इस बात पर अफसोस करने लगे हैं कि इस भारत माता की रक्षा के लिए जो जवान सीमा पर अपना खून बहा रहे हैं उन्हें भी हम शर्मसार कर रहे हैं। इन राजनीतिज्ञों की तरह अगर वह जवान अपने बंगाल, पंजाब या हिंदी क्षेत्र के लड़ने लगे तो आप बेशर्म सत्ता के दलाल किस मुंह से रोकेंगे ? क्या जवाब देंगे ? मराठा जवान जिस देश भक्ति के लिए विख्यात है, उसे भी आप शर्मसार कर रहे हैं ठाकरेजी। गोबर और गोबर के कीड़े वे सभी हैं जो आप जैसी सोच रखते हैं।
रही आपके इन कारनामों के बाद मुंबई के भविष्य की बात तो यह मत भूलिए कि मुंबई अपनी बदौलत कुछ है। दुनिया के लिए बालीवुड को जाना पहचाना नाम आपने नहीं दिया है। यह पूरे भारतीय समाज की समग्र कोशिश का नतीजा है। मत भूलिए कि मुख्यधारा से कटकर आप जैसी क्षेत्रीय राजनीति करने वाले दलों ने कोलकाता जैसे संपन्न और खुशहाल शहर को खंडहर बना दिया है। आज वहां नए सिरे से संवारने की कोशिश की जा रही मगर संशय है कि क्षेत्रीय राजनीति का पिशाच फिर कोलकाता को उद्योग व सामाजिक समरसता का मान हासिल करने देगा। संभव है राज ठाकरे की तरह आप भी हिंदी भाषियों पर हमला करवाएं मगर लाख टके की बात भी सुन लीजिए---- क्या आप भी उजड़ी हुई मुंबई का सपना देख रहे हैं?


बाल ठाकरे के अक्षम्य अपराध के ताजा दस्तावेज


एक बिहारी, सौ बीमारी: बाल ठाकरे
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/2838853.cms


महाराष्ट्र में क्षेत्रवाद को लेकर बयानबाजी का सिलसिला फिलहाल खत्म होता नहीं दिख रहा। पिछले दिनों महाराष्ट्र में क्षेत्रवाद और भाषावाद की कवायद शुरु की थी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे ने , अब शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे भी इसी मंत्र का जाप कर रहे हैं। ठाकरे ने पार्टी के मुखपत्र सामना में अपने संपादकीय में बिहार के सांसदों पर हमला बोला है और बिहार के लोगों के बारे में अपशब्द भी कहे हैं।

दरअसल बिहार के एम.पी. ने इस क्षेत्रवाद के विरोध में संसद में काफी हंगामा खड़ा किया , जिसपर बाल ठाकरे ने अपनी प्रतिक्रिया जताते हुए कहा , ' पूरे देश में बिहार के बारे में कैसा बोला जाता है , यह मैं बताता हूं। दरअसल बिहारियों का भेजा ही सड़ा हुआ है। '

उन्होंने कहा कि पूरे हिंदीभाषियों को बिहारियों की वजह से तकलीफ होती है। पिछले दिनों मुंबई में बिहारियों के खिलाफ हुई हिंसा के मामलों पर पर्दा डालते हुए उन्होंने कहा , ' यहां एक दो लोगों को मारा, तो न्यूज चैनलों ने बेवजह का शोर-शराबा किया। बिहारी तो जिस थाली में खाते हैं , उसी में थूकते हैं। '

संसद में हंगामा करने वाले सांसदों पर आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा , ' बुझी हुई आग को फिर से हवा देने की कोशिश कर रहे हैं ये बिहारी सांसद। ' ठाकरे ने यह भी कहा कि कुछ दिन पहले बिहारी सांस्कृतिक संगठनों ने लालू छाप नेताओं को पत्र भी लिखा था कि हमें मुंबई में कोई तकलीफ नहीं है और आप यहां शक्ति प्रदर्शन कर के हमारे मामले में टांग न अड़ाएं।

समय-समय पर हिंदुत्व का नारा बुलंद करने वाले बाल ठाकरे ने बिहारियों के विरोध में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने तो यहां तक कह डाला कि , ' बिहारी गोबर खाते हैं। आखिर वह गोबर के कीड़े हैं और गोबर में ही खुश रहेंगे। '

उन्होंने जेडीयू नेता प्रभुनाथ सिंह के उस बयान पर भी टिप्पणी की जिसमें उन्होंने कहा था कि हम गंगा के किनारे रहते हैं और इसलिए हमारी बोली भी मीठी है। ठाकरे ने इस पर कहा कि , ' हमें पता है कि बिहार में भ्रष्टाचार और रक्त की गंगा बहती है। राम तेरी गंगा मैली हो गई है। बिहार नरक पुरी है। वहां के राजनेता पशुओं का चारा भी खा जाते हैं। '

शिवसेना सुप्रीमो ने बिहारियों के खिलाफ अपनी बयानबाजी का बचाव भी किया है। उन्होंने कहा कि पंजाब में भी बिहारियों को पसंद नहीं किया जाता और उन्हें लेकर पंजाब में इन दिनों एक एसएमएस भी चला हुआ है कि बिहारी भगाओ , पंजाब बचाओ। संपादकीय में यह एसएमएस भी छपा है -


' एक बिहारी , सौ बीमारी
दो बिहारी , लड़ाई की तैयारी
तीन बिहारी , ट्रेन हमारी
पांच बिहारी , सरकार हमारी
चक दे फट्टे
बिहारी भगाओ , पंजाब बचाओ


बिहार के सांसद गोबर के कीड़े: ठाकरे
http://www.bhaskar.com/2008/03/05/0803051340_bal_thakery.html


मुम्बई. शिवसेना सुप्रिमो बाल ठाकरे ने पार्टी के मुखपत्र सामना में छपे संपादकीय में एक बार फिर क्षेत्रवाद की गंदी राजनीति का नमूना पेश किया है। बाल ठाकरे ने अपने लेख में बिहारी सांसदों को जमकर लथाड़ा है। उन्होंने बिहार के सांसदो को गोबर के कीड़े के खिताब से नवाजा है। उन्होंने कहा कि बिहार के नेताओं का दिमाग सड़ गया है और उनके सड़े दिमाग का नमूमा हमें संसद में देखने को मिला है।
बाल ठाकरे ने लिखा है कि बिहार में भ्रष्टाचार की गंगा बह रही है। उनका कहना है कि हमें बिहार के सांसदों से किसी भी तरह की सीख लेने की कोई जरुरत नहीं है क्योकि ज्यादातर बिहारी नेता गुंडे है। इतना ही नहीं उन्होंने बिहार के महराजगंज से सांसद सिंह को 'हत्यारा' बताते हुए लिखा है कि 'उनकी जगह जेल में है लेकिन वह संसद में हैं।' संपादकीय में राजद प्रमुख लालू प्रसाद के खिलाफ भी कुछ टिप्पणी किया है
बाल ठाकरे के इस संपादकीय का बिहारी सांसदों ने खुलकर विरोध किया। बिहार के सांसदों की आलोचना करते हुए संपादकीय लिखे जाने का मुद्दा बुधवार को लोकसभा में उठा और कुछ सदस्यों ने समाचारपत्र के संपादक के खिलाफ कार्रवाई किए जाने की मांग की। कुछ सांसदों ने तो बाल ठाकरे पर मोका का कानून लगाने की भी मांग की है।लालू यादव ने कहा कि बाल ठाकरे सठ्ठीयां गए हैं इसलिए उलजलूल बातें कर रहे हैं।
वहीं महाराष्ट्र के राज्यपाल कृष्णा ने कहा कि इस मामले में राज्य सरकार को तुरंत कार्यवाही करनी चाहिए। वहीं इस मामले में भाजपा के नेताओं ने गोलमोल रुख अपना रखा है। वे इस मामले में कुछ भी कहने से बच रहे हैं।

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