सारे समाचार माध्यमों को बंद कराकर चीन तिब्बत में क्या कर रहा है यह पूरी दुनिया को कुछ भी नहीं पता। तिब्बती भारत के कई शहरों में अपनी आजादी के लिए और चीन के दमनचक्र के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। अगर तिब्बत में शांति कायम रखना चीन का अंदरूनी मामला है तो पूरी दुनिया को भी यह जानने का हक है कि तिब्बत में चीन आखिर कर क्या रहा है ? क्या निरंकुशता से तिब्बतियों को कुचल देने को ही चीन तिब्बत में शांति का रास्ता मानता है? या फिर विरोधियों का खात्मा करके दिखाना चाहता है कि तिब्बत में कोई विरोध नहीं कर रहा है, वहां शांति है। अगर चीन लोकतंत्र पर विश्वास रखता है तो दुनिया की पूरी मीडिया को ल्हासा के प्रेस कांफ्रेंस में क्यों नहीं बुलाया? और कुछ चुने लोगों को बुलाया तो उन्हें हकीकत बता रहे भिक्षुओं को पूरी बात क्यों नहीं सुनने दिया। आखिर कौन झूठ बोल रहा है? चीन या चीन के दमन से त्रस्त तिब्बती भिक्षु ? तिब्बत में चीन की मंशा पर यह वह सवाल है जिसका जवाब चीन अगर देना चाहता है तो तिब्बत के दरवाजे मीडिया के लिए खोल दे। मीडिया और तिब्बती दोनों को सेना के बूटों तले इसी तरह रौंदता रहा तो मानवाधिकारों का सवाल तो उठेगा ही। अगर चीन इसी मानवी दुनिया का हिस्सा है तो फिर वह कैसे तिब्बत का हाल जानने से मीडिया को मना कर सकता है। जाहिर है चीन के इरादे नेक नहीं हैं। संभव है पत्रकारों के सामने आकर विरोध जताए भिक्षुओं को भी सेना मार डाले। जब इतनी सी बात चीन बर्दास्त नहीं कर पाया तो तिब्बत की आजादी के सवाल पर बात कैसे करेगा। जबकि खुद दलाई लामा बात करने को तैयार हैं। चीन के खौफनाक इरादे का एक नमूना यह पत्रकार वार्ता थी जिसे अपनी मर्जीं से रोक दिया गया। क्या हुआ था उस वक्त यह जानने के लिए याहू जागरण की यह खबर अवश्य पढिए।
तिब्बती मठ ने चीन को झूठा बताया
Mar 27, 02:42 pm
बीजिंग। तिब्बत की राजधानी ल्हासा के एक प्रमुख मठ में चीन प्रशासन की ओर से आयोजित विशेष संवाददाता सम्मेलन के दौरान तिब्बती भिक्षुओं के समूह ने आकर कहा कि सरकार क्षेत्र में दो हफ्ते से ज्यादा अर्से से व्याप्त असंतोष के बारे में झूठ बोल रही है। यह जानकारी प्रत्यक्षदर्शियों ने दी।
प्रशासन की ओर से कल कुछ चुनींदा विदेशी और चीन के पत्रकारों को ल्हासा के तीन दिन के सरकारी दौरे पर लाया गया था। प्रशासन यह संकेत देना चाहता था कि तिब्बत में हालात सामान्य हैं जहां गत 14 मार्च से चीन विरोधी हिंसा के कारण अस्थिरता का माहौल बना हुआ है।
जोखांग मठ में संवाददाता सम्मेलन चल ही रहा था कि तभी तिब्बती भिक्षुओं का एक समूह वहां आ पहुंचा। यूएसए टूडे के एक संवाददाता केल्लुम मैकलॉड ने बताया कि करीब 30 भिक्षुओं ने वहां आकर कहा कि इन पर यकीन मत करो, ये आपके साथ चालबाजी कर रहे हैं। ये लोग झूठ बोल रहे हैं। कुछ भिक्षुओं ने कहा कि उन्हें गत 10 मार्च से जोखांग मठ से बाहर नहीं निकलने दिया जा रहा।
ताइवान के ईटीटीवी के कैमरामैन वांग शे नैन ने बताया कि यह घटनाक्रम करीब 15 मिनट तक चला। उसके बाद पुलिसकर्मी उन भिक्षुओं को पत्रकारों से दूर मठ के दूसरी ओर ले गए।
वांग ने बताया कि यह पता नहीं चल सका कि बाद में उन भिक्षुओं के साथ क्या सुलूक किया गया। पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों ने संवाददाताओं के नोट्स या फिल्में जब्त नहीं की लेकिन उनसे वहां से चलने कहा। उन्होंने कहा कि यहां समय पूरा हो गया अब दूसरी जगह जाने का समय आ गया है। चीन सरकार द्वारा विदेशी पत्रकारों के लिए आयोजित दौरे में रायटर को आमंत्रित नहीं किया गया था। चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने केवल इतनी खबर दी है कि मीडिया दौरे में कुछ भिक्षुओं ने बाधा पहुंचाई, लेकिन जल्द ही स्थिति संभल गई और तिब्बत में भी हालात तेजी से सामान्य हो रहे हैं। इन भिक्षुओं को तिब्बत में लामा के नाम से जाना जाता है।
अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश ने कल चीन के राष्ट्रपति से दलाईलामा से बातचीत करने का अनुरोध किया था, लेकिन चीनी राष्ट्रपति का कहना है कि दलाईलामा को तिब्बत और ताइवान की आजादी के समर्थन जताना छोड़ना होगा तथा ओलंपिक खेलों में बाधा डालने के लिए की जा रही हिंसा को बढ़ावा देना रोकना होगा।
दलाईलामा तिब्बत में जारी असंतोष के पीछे अपना हाथ होने संबंधी चीन इन आरोपों को गलत ठहराते रहे हैं। उन्होंने आज एक टेलिविजन चैनल से बातचीत में कहा कि ओलंपिक खेल चीन उसके यहां के मानवाधिकारों का रिकार्ड याद दिलाने का अवसर है। उन्होंने कहा कि ओलंपिक खेलों का अच्छा मेजबान बनने के लिए चीन को मानवाधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता का अपना रिकार्ड सुधारना होगा। शुक्र वार को प्रसारित होने वाले इस साक्षात्कार में दलाईलामा ने कहा है कि यह बहुत ही तर्कसंगत और जायज बात है। चीन ने तिब्बत क्षेत्र में व्याप्त असंतोष पर काबू पाने के लिए वहां काफी तादाद में सुरक्षाकर्मी तैनात किए हैं। ह्यूमन राइट्स वाच के मुताबिक संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद को तिब्बत में मानवाधिकारों की स्थिति में सुधार लाना चाहिए। संगठन के बयान में कहा गया है कि वहां के मसले को सुलझाना परिषद का अधिकार ही नहीं दायित्व भी है।
No comments:
Post a Comment