Friday, 25 April 2008

बड़ा दुखदायी मर्ज है कब्ज

कहते हैं कि आधी बीमारी की जड़ खराब हाजमा का होना है। अगर खाना ठाक से पचता नहीं और कब्ज की शिकायत है तो मानकर चलिए कि आपने कई रोगों को बुलाना शुरू कर दिया है। इस मायने में मुझे बचपन के कुछ ऐसे मामले याद हैं जो तब तो समझ में नहीं आए मगर आज उन मरीजों का दुख समझ पाया हूं जो रोते हुए मेरे पिताजी के पास आते थे और कहते थे कि उन्हें बचा लीजिए।
पहले बता दूं कि मेरे पिताजी श्री शिवगोबिंद सिंह एक नामी वैद्य थे। उनको काशी नरेश से वैद्य शिरोमणि की उपाधि मिली थी। काशी से ही आयुर्वेदाचार्य की डिग्री लेकर उत्तरप्रदेश के आजमगढ़ व गाजीपुर जिले की सीमा पर स्थित गांव गदाईपुर में दवाखाना खोली थी। हमलोग पिताजी की मदद में रहते थे क्यों कि दिन भर मरीज आते थे और कुछ दवाएं मरीजों से ही पिताजी बनवाते थे। पहले उन्हें कुछ जड़ी लाने को कहते थे फिर वहीं उससे उनकी दवा बनवाते थे।वैसे तो पिताजी कई रोगों के विशेषग्य थे मगर यहां कब्ज के उन मरीजों की बात कर रहा हूं जिनका दुख तब समझ में नहीं आया था। अफसोस यह है कि पिताजी अब इस दुनिया में नहीं हैं। मगर उनकी उन मरीजों को दी गई नसीहत अब भी कानों में गूंजती है।
अब मैं खुद कब्ज का मरीज हूं तो और भी समझ में आ रहा है कि यह कितना दुखदायी मर्ज है। कोई भी ऐसा मरीज नहीं था जो बाद में लौटकर पिताजी के चरण छूकर यह न कहा हो कि-आपने उन्हें नया जीवन दिया है। कब्ज की इसी महामारी के बारे में वेब दुनिया में एक जगह पढ़ रहा था तो बहुत सारी बातें पिताजी की नसीहतों से मिलती जुलती लगीं। आप भी इसे आजमाएं। यह भी किसी प्राकृतिक चिकित्सा के पक्षधर चिकित्सक की ही सलाह है। पिताजी की दवाएं तो याद नहीं अन्यथा वह भी आप लोगों को बताता। यह हमारा दुर्भाग्य है कि हम उनका अनुगमन नहीं कर पाए। मेरे पिताजी स्पष्ट तौरपर मानते थे कि कुछ ऐसे रोग हैं जिनका समुचित इलाज सिर्फ आयुर्वेद में ही उपलब्ध है। एलोपैथ को रोग दबाने वाला इलाज बताते थे। कब्ज भी इसी तरह का रोग है।

पर्यावरण प्रदूषण के साथ ही मानव नई-नई बीमारियों से जूझने के लिए विवश हुआ है। आ‍धुनिक जीवन शैली के चलते कब्ज नामक बीमारी ने लगभग 50 प्रतिशत से ज्यादा लोगों को येन-केन प्रकारेण अपनी गिरफ्त में ले लिया है।तमाम तरह के चूर्णों के बावजूद राहत की चाहत अपूर्ण ही रह जाती है।
प्रदूषण के इस नवयुग में दवाइयाँ कब्ज से निजात कदापि नहीं दिला सकती हैं। कुछ प्राकृतिक नुस्खे हैं जो कब्ज के रोगियों को शीघ्र राहत दे सकते हैं। आप भी इन्हें आजमा कर देखिए-----
• सुबह-सुबह बिना मुँह (कुल्ला किए बिना) धोए, एक से चार गिलास पानी पीना शुरू करें।
• शौच और मुख मार्जन से निपटकर 5-7 मिनट के लिए कुछ शारीरिक कसरत (शरीर संचालन) करें।
• दोनों समय के भोजन में सलाद (खीरा ककड़ी, गाजर, टमाटर, मूली, पत्ता गोभी, शलजम, प्याज, हरा धनिया) थोड़ी मात्रा में ही सही, अवश्य शामिल करें।

• शाम का भोजन रात में कदापि न लें। याद रखें, आँतें सूर्य की मौजूदगी में ही अपनी गति बरकरार रख पाती हैं। पाचन की क्रिया का आधार ही आँतों की गति है। अत: कोशिश करें कि सूर्यास्त के पूर्व या सूर्यास्त के कुछ समय बाद तक भोजन कर लें। यह असंभव हो तो भोजन में रेशेदार (छिलके वाली मूँग की दाल, भिंडी, गिल्की, पालक, मैथी, पत्ता गोभी, दलिया, सलाद, फल) पदार्थ अवश्य लें और भोजन के पश्चात कम से कम एक किलोमीटर पैदल चलें ताकि आँतें कृत्रिम तरीके से गति को प्राप्त हों।
• रात्रि में सोने से पूर्व यथाशक्ति गरम पानी एक गिलास भरकर (200-250 मिली) अवश्य पिएँ। पानी पीने के पूर्व एक चम्मच खड़ा मैथी दाना (पहले से साफ धुला-सूखा) अवश्य खाएँ।
• रात्रि में 7 से 11 के मध्य धुली हुई मनुक्का किशमिश आधा गिलास पानी में गला दें। गिलास काँच का हो। सुबह मनुक्का को बीज सहित एक-एक कर, खूब चबाकर खा लें और वह पानी पी जाएँ। इसके विकल्प के रूप में दो अंजीर भी- इसी तरह भिगोकर उपयोग किए जा सकते हैं।
• कब्जियत यदि ज्यादा ही कष्टप्रद हो रही हो तो प्रात: बिस्तर छोड़ने से पूर्व लेटे-लेटे ही कल्पना करें कि आपकी आँतों में गति हो रही है और यह गति आँतों में मौजूद मल को लगातार आगे खिसकाती जा रही है। इस कल्पना को कुछ ही दिनों में आप साकार रूप में देख सकेंगे। यह विश्वास कीजिए।
• कब्जियत के लिए दवा के रूप में कुछ लेना चाहें तो आठ परत सूती कपड़े से छाना हुआ 25-40 मिलीमीटर गोमूत्र (देशी गाय का) नियमित रूप से लें। स्वमूत्र भी शर्तिया फायदा करता है या फिर रात में आधा कप चाय में चिकित्सक की सहमति से आवश्यकतानुसार 1 से 5 चम्मच अरंडी का तेल मिलाकर पी जाएँ।
• पेट के बल लेटकर पिंडलियों को ताकत से दबवाएँ। इस हेतु सरसों के तेल का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
• ठोड़ी पर दो से तीन मिनट के लिए अँगूठे से दबाव डालें। ऐसा पाँच मिनट के अंतर से दो-तीन बार करें।
• संभव हो तो योगाचार्य से सीखकर अग्निसार क्रिया या अर्द्ध शंख प्रक्षालन करें।

याद रखिए, शौचालय में बैठकर अखबार-मैग्जिन न पढ़ें, गीत-मोबाइल न सुनें। हमारे ‍मस्तिष्क में शरीर की विभिन्न क्रियाओं के लिए केंद्र (स्विच) हैं। आप गाने सुनेंगे, खबरें पढ़ेंगे तो मस्तिष्क के लिए ‍मल विसर्जन दोयम दर्जे का हो जाएगा और वह खबर आपको लंबी प्रतीक्षा के बाद मिलेगी, जिसके लिए खासतौर पर आप शौचालय आए थे।

गाने और खबरों में तल्लीन मस्तिष्क शायद मल उत्सर्जन के विषय में कुछ इस तरह का संदेश आपको पहुँचाने की कोशिश करेगा- ‘यह क्रिया कतार में है, कृपया प्रतीक्षा कीजिए।‘ या यह भी हो सकता है 30 से 45 मिनट तक अखबार पढ़ने के बाद आँतों से यह संदेश प्राप्त हो। यदि संभव हो तो भारतीय शैली में ही यह क्रिया निपटाएँ, पिंडलियों का दबना और जाँघों का पेट पर दबाव आँतों (डिसेन्डिंग और एसेन्डिंग कोलन) और मलाशय को गति प्रदान करता है।
शौच करते समय दाँतों को परस्पर दबाने (भींचने) से भी पेट की मांसपेशियों में संकुचन होता है, जिससे आँतों पर दबाव पड़ता है। कब्ज नामक असुर आपके कारण ही जन्मा है, इसके वध के लिए दवा अवतरण नहीं स्वयं प्रयास करे तभी इसका मर्दन हो सकेगा, अन्यथा सोचते रह जाएँगे।

Tuesday, 22 April 2008

आखिरी हिंदू राष्ट्र भी मिट गया दुनिया के नक्शे से


भारत का पड़ोसी देश नेपाल सदियों से हिंदू राष्ट्र था मगर दुनिया के नक्शे से अब यह आखिरी हिंदू राष्ट्र भी मिट गया। लिच्छवि, मल्ल और अंततः शाहवंश का आखिरी राजा ज्ञानेन्द्र हिंदू राष्ट्र नेपाल का साक्षी रहा। यहां यह कहना मुनासिब होगा कि ज्ञानेन्द्र की सत्तालोलुपता भी राजशाही के पतन का कारण बनी। ज्ञानेन्द्र प्रशासनिक तौर पर एक कमजोर शासक साबित हुआ जो बदलते नेपाल को भांप नहीं पाया। नतीजे में नेपाल के तेजतर्रार शिक्षक और माओवादी नेता प्रचण्ड ने लंबी लड़ाई के बाद इस राजशाही को पहले बुलेट और फिर बाद में बैलेट (मतपत्र ) से बेदखल कर दिया।
इतिहास साक्षी रहा है कि हर पुरानी व्यवस्था व सत्ता को नई चुनौतियों के सामने झुकना पड़ा है। ऱूढ़ियों में डूबे हिंदू धर्म को पहले बौद्ध और फिर जैनियों ने चुनौती दी। सत्ता, समाज व व्यवस्था सभी कुछ बदल दिया। भक्ति व समाज सुधार आंदोलनों ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके बाद मुस्लिम व हिंदू व्वस्था को अपेक्षाकृत प्रगतिशील अंग्रेजों व ईसाई मिशनरियों ने चुनौती दी। धर्म और आस्था पर टिके हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध व जैन मतावलंबियों के बनाए समाज व सिद्धांत को वामपंथी आंदोलनों ने चुनौती दी। इन सभी चुनौतियों ने एक ऐसी अलग दुनिया कायम करदी जिसका लोहा पथभ्रष्ट हो चुके पुराने समाज को भी मानना पड़ा। इन परिवर्तनों से ऐसी नहीं हुआ कि कोई पूरी तरह से मिट गया। सुधारों के जरिए वह भी अपना वजूद कायम रखे हुए है। मगर यह समाज और धर्म पर लागू होता है। किसी अकर्मण्य शासक पर नहीं। नेपाल में जनता ने परिवर्तन का स्वागत किया मगर अकर्मण्य राजशाही मिट गई। जनता की आंखों इसी परिवर्तन की ललक प्रचणड ने देख ली थी।

इसी परिवर्तन की लहर में अब नेपाल भी भारत की तरह गणतंत्र हो जाएगा। जिस किस्म का नेपाल सदियों तक हिदू राष्ट्र रहा वैसा भारत सिर्फ प्राचीन काल में था। वह भी तुर्कों, सल्तनत से लेकर मुगलों के दौर में तो सिर्फ हिंदू रियासतें ही बचीं थीं। यानी भारत एकछत्र हिंदू राषट्र गुप्तवंश के चक्रवर्ती राजा समुद्रगुप्त तक था। सम्राट अशोक ने भी भारत को एकीकृत किया और कुछ मायने में उनके काल में भी भारत हिंदू राष्ट्र रहा। इस प्रक्रिया को वर्धन वंश के प्रतापी शासक हर्षवर्धन ने भी कायम रखा। तब पूरे भारत वर्ष में तमाम हिंदू रियासतें थीं जो आपस में युद्धरत रहा करतीं थीं।उत्तर भारत के प्रतिहार, बंगाल के पाल और दक्षिणके राष्ट्रकूट वंश के राजाओं ने तो विजय अभियान के तहत पूरे भारत वर्ष को ही रौंद दिया। यह सब होते हुए भी १०वीं शताब्दी तक भारत टुकड़ों में हिंदू राष्ट्र ही बना रहा। मराठा हों या फिर मेवाड़ के राजपूत सभी को मुंह की खानी पड़ी। कोई भी नेपाल का पृथ्वीनारायण शाह नहीं बन पाया। नतीजा यह रहा कि मोहम्मद गजनवी के हमले और अंततः दिल्ली में सल्तनत वंश और उसके बाद मुगल सत्ता काबिज होने के बाद से भारत धीरे-धीरे मुस्लिम शासकों के आधीन हो गया।
दक्षिण भारत में पहले चालुक्यों और बाद में विजयनगर साम्राज्य, या फिर प्रतिहार पाल व राष्ट्रकूट वंश और चौहान वंश के राजाओं ने हिंदू सत्ता बनाए रखी। मगर यह सब कुछ वैसे हिंदू शासक नहीं बन पाए जैसा १८वीं शताब्दी में नेपाल के एकीकरण और हिंदू धर्म व संस्कृति के लिए पृथ्वीनारायण शाह ने कर दिखाया। उसने नसिर्फ नेपाल का एकीकरण किया बल्कि एक ऐसे मजबूत हिंदू राष्ट्र नेपाल का निर्माण किया जिसने अपने ताकत के बल पर चीनियों को रोका और अंग्रेजों को भी अपनी ताकत से धूल चटा दी। भारत में हिंदू सत्ता अंग्रेजी शासन के आगे टिक ही नहीं पाई। मगर नेपाल अप्रैल २००८ के पहले तक दुनिया का इकलौता हिंदू राष्ट्र बना रहा। नेपाल के इस उत्थान पतन की कहानी एक ऐसे हिंदू राष्ट्र की कहानी है जो सदियों तक भारत के मनीषियों की तपस्थली रहा है। नेपाल के प्राचीन इतिहास में एक बार झांककर देखें तो वहां नेपाल नहीं भारत भी दिखाई देगा। आदिकालीन नेपाल के साथ माओवादियों के सत्तासीन होने की गाथा नेपाल में ऐतिहासिक परिवर्तन की गाथा है। आइए अवलोकन करें। यहां सबकुछ समेटना संभव नहीं हुआ अतः जो छूटा हुआ लगे उसे मैं आपकी टिप्पणियों खोजूंगा। आइए सफर शुरू करते हैं।


नेपाल का इतिहास

नेपाल एक दक्षिण एशियायी और भारत का पड़ोसी हिमालयी राष्ट्र है। नेपाल के उत्तर में चीन का वह स्वशासित राज्य तिब्बत है जो आजादी के लिए संघर्ष कर रहा है। यानी नेपाल और चीन के बीच अवस्थित है तिब्बत। नेपाल के दक्षिण, पूर्व व पश्चिम में भारत अवस्थित है। नेपाल मे ८५ प्रतिशत से ज्यादा नागरिक हिन्दू हैं। यह प्रतिशत भारत में हिन्दुओं के आनुपातिक प्रतिशत से भी अधिक है। इस मायने में नेपाल विश्व का सबसे बड़ा हिन्दू धर्मावलम्बी राष्ट्र भी है। नेपाल भौगोलिक विविधता वाला ऐसा देश हैजहां का तराई इलाका गर्म है तो हिमालय पर्वत की श्रृंखलाओं वाला इलाका बेहद ठंडा भी है। संसार का सबसे ऊंची १४ हिमश्रृंखलाओं में से आठ नेपाल में हैं। नेपाल की राजधानी और सबसे बडा शहर काठमाडौं है। नेपाल के प्रमुख शहर लिलतपुर (पाटन), भक्तपुर,मध्यपुर, कीर्तिपुर, पोखरा, विराटनगर, धरान,भरतपुर, वीरगञ्ज, महेन्द्रनगर,बुटवल,हेटौडा भैरहवा, जनकपुर, नेपालगञ्ज, वीरेन्द्रनगर,त्रिभुवननगर आदि है। आज का नेपाल यही है। आइए प्राचीन नेपाल का अवलोकन करते हैं।

प्राचीन नेपाल-मिथकीय युग

भारत और नेपाल का मिथकीय युग एकसाथ शुरू होता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार नेपालकी संस्कृति और सभ्यता का इतिहास मनु से आरम्भ माना जा सकता है। मनु ही नेपाल के पहले राजा थे जिन्हों ने सत्ययुग में यहां राज किया। तब नेपाल सत्यभूमि के नाम से जाना जाता था। त्रेतायुग (सिल्वर युग ) में नेपाल को तपोवन तथा द्वापरयुग (ताम्र युग ) में इसे मुक्तिसोपान भी कहा जाता था। कलियुग (लौहयुग ) यानी मौजूदा समय में इसे नेपाल कहा गया। सत्ययुग में सौर्य वंश ने नेपाल की सभ्यता व संस्कृति के विकास में भरपूर योगदान किया। आज का सौर्य कैलेंडर और उस पर आधारित त्योहार इसी वंश की देन हैं।
जंगलों से आच्छादित नेपाल को तत्कालीन तपस्वियों यथा- कण्व, विश्वमित्र, अगत्स्य, वाल्मीकि, याग्यवलक्य व दूसरे रिषियों ने अपनी तपस्थली बना ली थी। भारत के राजा दुष्यंत ने नेपाल के ही कण्व रिषी की पुत्री शकुन्तला से शादी की थी। उसी के पुत्र भरत ने यहां शासन किया। इसी ने उस विशाल साम्राज्य की स्थापना की जो आज का भारत भी है। भरत के साम्राज्य को महाभारत कहा गया। विभिन्न हिंदू धर्मग्रंथों में नेपाल के बारे में लिखा है। जनकपुर के न्यायप्रिय राजा जनक का भी विवरण इन्हीं ग्रंन्थों में मिलता है। कुछ विचारकों की राय में तो रामायण की रचना यहीं के सप्तगंडकी नदी के तट पर की गई। महर्षि वेदव्यास यहीं पैदा हुए थे। नेपाल के दमौली (व्यास नगर ) में व्यास गुफा है, जो इस अवधारणा को पुष्टि करती है। इसी तरह महाभारत में उल्लिखित महाराज विराट भी नेपाल के विराटनगर के राजा थे। ये सारे तथ्य इस बात के सबत हैं कि मंजूश्री के कांठमांडो घाटी में आने से काफी पहले नेपाल का अश्तित्व था। स्यंभू पुराण में वर्णित है कि चीन से कांठमांडो आकर मंजूश्री ने नागदह नामक विशाल झील के इर्दगिर्द लोगों को बसाया। उसने मंजूपत्तनम नामक शहर बसाया और धर्माकर को राजा बनाया। इसके बाद से नेपाल का इतिहास कांठमांडों के इर्दगिर्द घूमता है। इसके बाद यहां कई राजवंशों ने शासन किया। ये हैं-आहिर या गोपाल, किरात, लिच्छवी, मल्ल और शाह।

नेपाल शब्द की व्युत्पत्ति

"नेपाल" शब्द की उत्त्पत्ति के बारे मे ठोस प्रमाण कुछ नही है, लेकिन एक प्रसिद्ध विश्वास अनुसार यह शब्द ने नामक ऋषि तथा पाल (गुफा) से मिलकर बना है। माना जाता है कि एक समय में बागमती और विष्णुमती नदियों संगमस्थल पर ने ऋषि की तपस्थली थी। ने रिषी ही यहां के राजा के सलाहकार थे। सामान्य तौर पर इस हिमालयी भूभाग पर गोपाल राजवंश का शासन था। इस वंश के लोग नेपा भी कहे जाते थे। इसी नेपा नाम से गोपालवंश शासित भूभाग नेपाल कहा गया।
एक मान्यता यह भी है कि काठमांडो घाटी में रहने वाली नेवर जनजाति के नाम पर नेपाल नाम पड़ा होगा। गंडकी महात्म्य में एक राजा नेपा का उल्लेख है जिसने यहां न सिर्फ शासन किया बल्कि तमामा राज्यों को जीता भी। भगवान शंकर नेपा के आराध्य थे। इसी राजा ने अपने नाम पर इस राज्य का नाम नेपाल रखा।
तिब्बती भाषा में ने का अर्थ होता है घर और पाल का अर्थ होता है ऊन। अर्थात वह इलाका जहां ऊन पाया जाता है। इस ने और पाल से नेपाल बना होगा।जबकि नेवारी भाषा में ने का अर्थ बीच में और पा का अर्थ देश होता है।यानी ऐसा देश जो दो देशों के बीच में अवस्थित हो। भारत और चीन के बीच अवस्थित होने के कारण हा इसका नाम नेपाल पड़ा होगा। इसी तरह लिम्बू बोली में ने को तराई कहा जाता है। काठमांडों भी तराई है इसलिए नेपाल नाम पड़ा होगा।लेप्चा लोगों की बोली में ने का अर्थ पवित्र और पाल का अर्थ गुफा होता है। बौद्धों और हिंदुओं के पवित्र स्थल के कारण यह पवित्र गुफा नेपाल के नाम से जानी गई।
दरअसल तमाम जनश्रुतियां हैं जिनके आधार पर नेपाल शब्द की व्युत्पत्ति मानी जाती है। मगर प्राचीन नेपाल और नेपाल शब्द की इस व्युत्पत्ति के संदर्भ में ठोस लिखित साक्ष्य उपलब्ध नहीं है क्यों कि तत्कालीन समय में विधिवत इतिहास लिखा भी नहीं गया। बाद के जो साक्ष्य उपलब्ध है उसके ही आधार पर प्राचीन नेपाल और आधुनिक नेपाल की कड़ियां जोड़ने का प्रयास इतिहासकार किए हैं। बदलते नेपाल की तस्वीर इसी आधार पर उकेरी जा सकती है।
नेपाल के प्रमाणिक इतिहास को ऐतिहासिक पर इमारतों, सिक्कों, मंदिरों, देवी-देवताओं की प्राचीन मूर्तियों, कलात्मक अभिलेख और तत्कालीन साहित्य और १८०० ईसवी के आसपास के क्रानिकल्स (बस्मावलीज) से ही प्रमाणिक प्रकाश डाला जा सकता है। इनमें से सबसे प्रमाणिक क्रानिकल्स को ब्राह्मणों और बज्रकाचार्य ने संतलित किए हैं। ये राजा द्वारा किए गए धार्मिक कार्यों का विवरण है।
इनमें से एक को राणा बहादुर शाह के समय में बौद्ध भिक्षु पाटन ने लिखा था। डेनियल राइट ने इसका अंग्रेजी में अनवाद किया है। इसमें राजा का इतिहास और कुछ घटनाएं वर्णित हैं मगर इन क्रानिकल्स से सभ्यता, संस्कृति या लोगों के रहन-सहन के बारे में कुछ पता नहीं चलता है।
नेपाल के इतिहास पर प्राचीन काल में हाथों से लिखी गईं पांडुलिपियों से भी प्रकाश डाला गया है। इन पांडुलिपियों (कोलोफोंस) ने समकालीन राजा के विवरण के साथ आखिर पांडुलिपि के लेखक का नाम होता है। इनके अलावा हिंदुओं के प्राचीन धार्मिक ग्रंथों यथा- पुराणों, रामायण और महाभारत इत्यादि में नेपाल के विवरण मिलते हैं। इनकी मदद से भी नेपाल का इतिहास लिखा गया है। मसलन रामायण में नेपाल के जनकपुर के राजा जनक की पुत्री सीता से अयोध्या के राजकुमार राम का विवाह का विवरण है। महाभारत के युद्ध में नेपाल के राजा के भाग लेने का जिक्र भी मिलता है। दमयन्ती के स्वयंबर में नेपाल के राजा ने भाग लिया था। नेपाल के इतिहास के ये सभी लिखित साक्ष्य हैं।
नेपाल का इतिहास लिखने के लिए प्रस्तर और ताम्र अभिलेखों की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। ये अभिलेख पांचवीं से आठवीं शताब्दी के बीच संस्कृत में लिखे गए हैं। इनमें चंगूनारायण के मंदिर से प्राप्त अभिलेख प्रमुख हैं। हालांकि लिच्छवी राजा शिवदेव के बाद के शासकों के अभिलेख अभी तक नहीं मिले हैं। १४वीं शताब्दी से मल्ल राजाओं के शासनकाल के अभिलेख प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। प्राचीन भवन, मंदिर व स्तूप भी प्राचीन नेपाल की कहानी कहते हैं। इनमें चंगूनारायण, पशुपतिनाथ, हनुमान धोका, पाटन का कृष्णमंदिर भक्तपुर का पांचमंजिला न्यातापोल, स्वयंभूनाथ. बौद्धनाथ, महाबौद्ध प्रमुख है। मल्ल राजाओं के बनवाए मंदिर और मूर्तियां ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। विभिन्न जगहों से मिलों सिक्के नेपाल के इतिहास की कड़ी हैं। भारतीय और यूरोपीय इतिहासकारों के विवरणों और ऐतिहासिक स्थलों की खुदाई से मिले अवशेषों में भी प्राचीन नेपाल दर्ज है। काठमांडों घाटी में नवपाषाण युग के अवशेष पाए गए हैं।


१८वीं शताब्दी से पहले का नेपाल

१८वीं शताब्दी से पहले नेपाल देश काठमांडों घाटी तक सीमित था। यानी काठमांडों का वृहद इतिहास ही नेपाल का इतिहास है। १४वीं शताब्दी के पहले का इतिहास हिंदू महाकाव्यों के अलावा बौद्ध और जैन स्रोंतों पर ज्यादा आधारित है। नेपाल का दस्तावेजी इतिहास लिच्छवी वंश के शासक महादेव ( ४६४ शताब्दी से ५५० ईसवी ) के चंगूनारायण मंदिर से प्राप्त अभिलेख से शुरू माना जा सकता है। लिच्छवियों ने नेपाल में ६३० शाल तक शासन किया। इनका आखिरी शासक था जयकामादेव।
लिच्छिवियों के पतन के बाद १२वीं शताब्दी में अरिमल्ल के राजगद्दी हासिल करने करने के साथ ही मल्ल राजाओं का शासन शुरू होता है जो दो शताब्दियों यानी १४वीं शताब्दी के आखिर तक कायम रहता है। इन्हीं शासकों ने कांतिपुर नामक शहर को बसाया जिसे आज हम काठमांडो के नाम से जानते हैं। इन दो शताब्दियों में महत्वपूर्ण सामाजिक व आर्थिक सुधार किए। पूरे काठमांडो घाटी में संस्कृत भाषा को स्थापित किया। जमीन की पैमाइश के नए पैमाने ईजाद किए। जयसाथीतिमल्ल ने १५वीं शताब्दी के आखिर तक काठमांडो घाटी पर शासन किया। इसके मरने के साथ ही घाटी का यह साम्राज्य १४८४ ईसवी में तीन टुकड़ों- काठमांडो, भक्तपुर और पाटन में विभक्त हो गया। मल्ल राजाओं की शक्ति क्षीण होते ही पृथ्वी नारायण शाह ने काठमांडो घाटी पर हमला किया। इसी शाह वंश ने आगे चलकर नेपाल का एकीकरण किया। मल्ल वंश के आखिरी शासक थे- काठमांडो में जयप्रकाश मल्ल, पाटन में तेज नरसिंह मल्ल और भक्तपुर में रंजीत मल्ल।

शाह राजवंश और नेपाल का एकीकरण

आधुनिक नेपाल के एकीकरण के श्रेय शाहवंश के पृथ्वीनारायण शाह ( १७६९-१७७५ ईसवी ) को जाता है। शाह वंश के संस्थापक द्रव्यशाह ( १५५९-१५७० ईसवी ) के नौंवें उत्तराधिकारी पृथ्वीनारायण अपने पिता नारा भूपाल शाह के बाद उस समय के ताकतवर गोरखा शासन की कमान १७४३ ईसवी में संभाली। जिस तरह भारत और चीन के बीच तिब्बत है उसी तरह काठमांडो और गोरखा के बीच नुवाकोट था।

पृथ्वीनारायण शाह ने अपना विजय अभियान १७४४ ईसवी में नुवाकोट की जीत से शुरू किया। इसके बाद काठमांडों घाटी के उन सभी ठिकानों को अपने कब्जे में ले लिया जो सामरिक तौर पर महत्वपूर्ण थे। इसके बाद काठमांडो घाटी का संपर्क बाकी दुनिया से कट गया। सन् १७७५ में कुटी दर्रा पर कब्जे के बाद पृथ्वीनारायण ने अंततः काठमांडो घाटी का तिब्बत से व्यापारिक संपर्क भी छिन्नभिन्न कर दिया। अब पृथ्वीनारायण शाह ने घाटी में प्रवेश करके कीर्तिपुर पर हमला कर दिया। अब तक बेखबर सो रहा मल्ल शासक जयप्रकाश मल्ल घबरा गया और ब्रिटिश सेना से मदद मांगी। १७५६ में ईस्ट इंडिया की और से कैप्टेन किंलोच अपने सिपाहियों के लेकर मदद के लिए हाजिर हुआ। पृथ्वीनारायण शाह की सेना ने फिंरंगियों को परास्त जयप्रकाश मल्ल की उम्मीदों को धूल में मिला दिया।

बड़े नाटकीय तरीके से पृथ्वीनारायण शाह ने २५ सितंबर १७६८ को काठमांडो पर तब कब्जा कर लिया जब वहां के लोग इंद्रजात्रा उत्सव मना रहे थे। काठमांडो के लोगों ने तो पृथ्वीनारायण शाह का राजा के तौर पर स्वागत किया मगर जयप्रकाश मल्ल भाग निकला। ुसने पाटन में शरण ली। जब एक सप्ताह बाद पृथ्वीनारायण शाह ने पाटन को कब्जे में ले लिया तो जयप्रकाश मल्ल और पाटन का राजा तेजनरसिंह मल्ल दोनों ने भक्तपुर में शरण ली। भक्तपुर भी नहीं बचा और नेपाल के एकीकरण अभियान में यह भी जीत लिया गया। इस विजय के बाद १६९ में कांठमांडो को आधुनिक नेपाल की राजधानी बना दिया गया। विभिन्न जातियों को राष्ट्रीयता के दायरे में लाने का पृथ्वीनारायण शाह ने वह अभूतपूर्व कार्य किया जिसके चलते एकीकरण के बाद एक छत्र नेपाल राष्ट्र बन पाया। अंग्रेजों के हमले ने इस एकीकृत नेपाल को भारी क्षति पहुंचाई। अंग्रेजों के साथ नेपाल का पश्चिमी तराई खासतौर पर बुटवल और सेवराज को लेकर था। अंग्रेजों ने १८१४ ईसवी में नेपाल के पश्चिमी सीमा पर स्थित नलपानी पर हमला कर दिया। अंग्रेजी सेना भारी पड़ी और नेपाली सेना को महाकाली नदी का पश्चिमी किनारा खाली करना पड़ा। अंग्रेजों के साथ १८१६ ईसवी में सुगौली की संधि करनी पड़ी जिसमें नेपाल की पश्चिमी सीमा महाकाली और मेची नदियों तक सीमित हो गई। इस समय नेपाल पर राजा गिरवान युद्ध विक्रम शाह नेपाल का राजा था। उनके प्रधानमंत्री भीमसेन थापा थे। इस संधि से नेपाल का वह हश्र नहीं हुआ जो भारतीय राजाओं का हुआ। नेपाल और शाहवंश का इस संधि के बाद भी वजूद रहा मगर भारत की रियासतों को एक-एक कर लील गए अंग्रेज और नतीजे में अंततः भारत गुलाम हो गया।

आखिरी हिंदू राष्ट्र और इसकी राजशाही के पतन तक का घटनाचक्र

1768 – गोरखा शासक पृथ्वी नारायन शाह द्वारा काठमांडू को जीत कर एकीकृत राष्ट्र की स्थापना की गई.
1792 – तिब्बत में चीन के हाथों पराजय के बाद नेपाल के विस्तार पर रोक लगी.
1814-1816 – अंग्रेज़ों के साथ युद्ध, जिसकी समाप्ति पर एक संधि हुई जिसमें नेपाल की वर्तमान सीमाओं का निर्धारण हुआ.
1846 – नेपाल का शासन राणाओं के हाथों में चला गया, जिन्होंने राजतंत्र पर प्रधानता हासिल कर देश को दुनिया के बाक़ी हिस्से से अलग कर दिया.
पूर्ण राजतंत्र
1923 – ब्रिटेन के साथ संधि हुई जिसने नेपाल की संप्रभुता को सुदृढ़ किया.
1950 – भारत में स्थित राणा विरोधी शक्तियों ने नेपाल के सम्राट के साथ समझौता हुआ.
1951 – राणा शासन की समाप्ति हुई. राजघराने की श्रेष्ठता फिर से स्थापित हुई और नेपाली कांग्रेस पार्टी के राणा विरोधी विद्रोहियों ने सरकार का गठन किया.
1953 – 29 मई- न्यूज़ीलैंड़ के एडमंड हिलेरी और नेपाल के शेरपा तेनज़िंग एवरेस्ट शिखर पर पहुँचने वाले पहले पर्वतारोही बने.
1955 – नेपाल संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बना.
1959 – बहुदलीय संविधान को अपनाया गया.
1960 – नेपाली कांग्रेस पार्टी ने बी.पी. कोइराला के नेतृत्व में चुनाव जीता लेकिन महाराजा महेंद्र सत्ता पर नियंत्रण बना कर पार्टी आधारित राजनीति, संसद और संविधान को स्थगित कर देते हैं.
1962 – नए संविधान के तहत ग़ैर दलीय पंचायत का गठन किया गया. इसमें महाराज को सत्ता पर पूरी तरह से नियंत्रण की शक्ति प्रदान की गई. 1963 में राष्ट्रीय पंचायत के पहले चुनाव हुए.
1972 – महाराजा महेंद्र के निधन के बाद सम्राट बीरेन्द्र ने सत्ता संभाली.
बहुदलीय राजनीति
1980 – बदलावों के लिए हुए आंदोलन के बाद संवैधानिक जनमत संग्रह किया गया. कम बहुमत से वर्तमान पंचायत व्यवस्था को जारी रखने का निर्णय हुआ. नेपाल नेरश राष्ट्रीय सभा के लिए ग़ैर-दलीय आधार पर सीधे चुनावों के लिए सहमत हुए.
1985 – नेपाली कांग्रेस पार्टी ने बहुदलीय व्यवस्था को फिर से लागू करने के लिए सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की.
1986 – नए चुनावों का नेपाली कांग्रेस पार्टी ने बहिष्कार किया.
1989 – भारत के साथ व्यापार विवाद के बाद भारत ने द्वारा सीमा की नाकेबंदी की जिससे नेपाल की आर्थिक स्थिति और भी बिगड़ गई.
1990 – प्रजातंत्र के समर्थन में नेपाली कांग्रेस पार्टी और वामपंथी दलों ने आंदोलन की शुरुआत की. धरने प्रदर्शनों को सुरक्षाबलों ने दबाने की कोशिश की जिस दौरान कई लोग मारे जाते हैं और भारी संख्या में लोगों को गिरफ़तार किया जाता है. अतंत महाराज बीरेंद्र दबाव के आगे झुक जाते हैं और नए प्रजातांत्रिक संविधान की रचना के लिए सहमत हो जाते है.
1991 – पहले प्रजातांत्रिक चुनावों में नेपाली कांग्रेस पार्टी की विजय होती है. गिरिजा प्रसाद कोइराला को प्रधानमंत्री बनाया जाता है.

राजनीतिक अस्थिरता

1994 – अविश्वास प्रस्ताव पर कोइराला सरकार की हार हुई और नए चुनावों में कम्युनिस्ट सरकार का गठन किया गया.
1995 – कम्युनिस्ट सरकार का पतन हुआ. कट्टरवादी वामपंथी दल, नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने सम्राट को हटाने और जनतांत्रिक राष्ट्र के गठन को लेकर ग्रामीण इलाकों में विद्रोह की शुरुआत की.
1997 – लगातार राजनीतिक अस्थिरता के चलते प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा की हार हुई और लोकेन्द्र बहादुर चाँद नए प्रधानमंत्री बनाए गए. लेकिन पार्टी में विभाजन के बाद चाँद पर इस्तीफ़ा देने का दबाव पड़ा और सूर्य बहादुर थापा को नया प्रधानमंत्री बनाया गया.
1998 – पार्टी में विभाजन के चलते थापा को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. गिरिजा प्रसाद कोइराला गठबंधन सरकार के प्रधानमंत्री के रुप में एक बार फिर सत्ता संभालते हैं.
1999 – ताज़ा चुनावों में नेपाली कांग्रेस पार्टी को बहुमत मिलता है और कृष्ण प्रसाद भट्टाराई को नया प्रधानमंत्री बनाया जाता है.
2000 – नेपाली कांग्रेस पार्टी में विद्रोह के बाद प्रधानमंत्री भट्टाराई को इस्तीफ़ा देना पड़ता है. पिछले 10 वर्षों में नवीं बार बनने वाली सरकार के प्रधानमंत्री के रुप में गिरिजा प्रसाद कोइराला एक बार फिर प्रधानमंत्री बनाए जाते हैं.
राजमहल में हत्याएँ
2001 – एक जून – नशे में धुत्त राजकुमार दीपेन्द्र ने महाराज बीरेंद्र, महारानी एश्वर्या और अन्य निकट संबधियों की हत्या की. बाद में राजकुमार दीपेन्द्र ने ख़ुद को भी गोली मार ली.
2001 – चार जून – महल में हुई गोलीबारी के दौरान लगी चोटों की वजह से दो जून को सम्राट बनाए गए राजकुमार दीपेन्द्र की मौत हो गई. मौत के बाद राजकुमार ज्ञानेंद्र को महाराज बनाया गया.
2001 – जुलाई – माओवादी विद्रोही अपने हिंसक आंदोलन को उग्र कर देते हैं. गिरिजा प्रसाद कोईराला ने हिंसा के चलते इस्तीफ़ा दिया. इसके बाद शेरबहादुर देउबा 11 वर्षों में ग्यारहवीं बार बनने वाली सरकार के प्रधानमंत्री बनते हैं.
2001 – जुलाई – देउबा की ओर से विद्रोहियों के साथ शांति की घोषणा की जाती है और युद्ध विराम लागू हो जाता है.
2001 – नवंबर – माओवादियों का कहना कि शांतिवार्ता विफल हो गई है और युद्ध विराम लागू रखने का कोई औचित्य नहीं है. माओवादी, पुलिस और सेना की चौकियों पर सुनियोजित हमले करते हैं.
आपातकाल
2001 – नवंबर – चार दिनों की हिंसा में 100 से भी अधिक लोगों के मारे जाने के बाद, आपातकाल की घोषणा की जाती है. महाराजा ज्ञानेंद्र सेना से माओवादियौं को कुचलने का आदेश देते हैं.
2002 – अप्रैल –हमलों में हज़ारों लोगों के मारे जाने के कई दिनों बाद माओवादी विद्रोही पाँच दिनों की राष्ट्रीय हड़ताल का आह्वान करते है.
2002 – मई – देश के दक्षिण में सेना और विद्रोहियों के बीच तीखी झड़पें होती हैं. माओवादी विद्रोही एक महीने के युद्धविराम की घोषणा करते हैं जिसे सरकार ठुकरा देती है. प्रधानमंत्री देउबा, माओवादियों के विरुद्ध युद्ध में मदद के लिए ब्रिटेन और अन्य देशों का दौरा करते है. अमरीकी राष्ट्रपति जार्ज बुश 2 करोड़ डॉलर की मदद देने का वायदा करते हैं.
2002 – मई – संसद भंग कर दी जाती है और आपातकाल की समयसीमा बढ़ाए जाने को लेकर उठे राजनीतिक विवाद के बीच नए चुनावों की घोषणा की जाती है. नेपाली कांग्रेस पार्टी द्वारा निष्कासित किए जाने के बाद देउबा अंतरिम सरकार का प्रतिनिधित्व करते हुए आपातकाल के समय को बढ़ा देते है.
2002 – अक्तूबर – माओवादी हिंसा के चलते प्रधानमंत्री देउबा महाराज ज्ञानेंद्र से चुनावों को एक साल आगे खिसकाने के लिए कहते हैं. महाराज देउबा को हटा कर नवंबर में होने वाले चुनावों को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर देते हैं. लोकेन्द्र बहादुर चाँद को नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाता है.
2003 – जनवरी – विद्रोही और सरकार के बीच युद्ध विराम की घोषणा की जाती है.
2003 – मई-जून- लोकेन्द्र बहादुर चाँद प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे देते हैं. महाराज अपने निकट सहयोगी सूर्य बहादुर थापा को नया प्रधानमंत्री बनाते हैं.
शांति संधि की समाप्ति
2003 – अगस्त – माओवादी विद्रोही, सरकार के साथ शांतिवार्ता समाप्त कर सात महीने से चली आ रही शाँति संधि को तोड़ देते हैं. विद्रोही सितंबर में तीन दिनों की आम हड़ताल का आह्वान करते है.
2003 के आख़िरी महीनों से आगे – राजनैतिक गतिरोध के बाद छात्रों-कार्यकर्ताओं और पुलिस के बीच झड़पें, हिंसा फिर से भड़की.
2004 – अप्रैल – नेपाल विश्व व्यापार संघ का सदस्य बनता है.
2004- मई – विपक्षी गुटों के धरने-प्रदर्शनों के बाद राजघराने की ओर से प्रधानमंत्री बनाए गए सूर्य बहादुर थापा इस्तीफ़ा दे देते हैं.
2004 – जून – महाराज ज्ञानेंद्र शेर बहादुर देउबा का फिर से प्रधानमंत्री नियुक्त करते हैं.
2004 – अगस्त - माओवादी काठमांडू की नाकेबंदी कर देते हैं जो एक सप्ताह तक चलती है. इस कारण राजधानी में ज़रूरी चीज़ों की आपूर्ति ठप्प पड़ जाती है.
इराक में 12 नेपाली बधंकों की हत्या के बाद काठमांडू में हिसंक प्रदर्शन होते हैं.
प्रत्यक्ष सत्ता
2005 – 1 फ़रवरी – महाराज ज्ञानेंद्र प्रधानमंत्री देउबा और उनकी सरकार को सत्ता से हटा देते हैं. वो माओवादियों को परास्त करने की बात कह कर आपातकाल की घोषणा कर देते हैं और प्रत्यक्ष रुप से सत्ता संभाल लेते हैं.
2005 – 30 अप्रैल – महाराज आपातकाल समाप्त करने की घोषणा करते हैं.
2005 – जुलाई –भ्रष्टाचार विरोधी राजसी आयोग पूर्व प्रधानमंत्री देउबा को भ्रष्टाचार के आरोप में 2 वर्ष जेल की सज़ा देता है. फ़रवरी 2006 में आयोग के निरस्त होने के बाद देउबा को मुक्त कर दिया जाता है.
2005 – सितंबर – 2003 में शांति वार्ता समाप्त होने के बाद पहली बार माओवादी विद्रोही तीन महीने के एकतरफ़ा युद्ध विराम की घोषणा करते हैं जिसे बाद में बढ़ा कर चार महीने कर दिया जाता है.
2005 – नवंबर – माओवादी विद्रोही और मुख्य विपक्षी पार्टियाँ प्रजातंत्र को बनाए रखने के लिए एक कार्यक्रम पर सहमत होते हैं.
2006 – जनवरी – माओवादी विद्रोही चार महीने से चले आ रहे युद्ध विराम को समाप्त करने की घोषणा करते है.
2006 – अप्रैल – नेपाल में राजघराने के सत्ता पर सीधे नियंत्रण के विरोध में विपक्षी पार्टियों की ओर से हड़तालों और प्रदर्शनों का आह्वान किया जाता है. राजधानी काठमांडू में तीखी झड़पें होती हैं.
2006 – अप्रैल- नेपाल नरेश ज्ञानेंद्र ने देश की सत्ता जनता को सौंपने की बात कही. राष्ट्र को संबोधन में उन्होंने राजनीतिक दलों से अंतरिम प्रधानमंत्री का नाम सुझाने को कही. लेकिन विपक्षी दलों ने उनके इस प्रस्ताव को नकार दिया है कि वे संयुक्त रुप से एक प्रधानमंत्री चुनकर सरकार का गठन कर लें. सरकार को गठन हुआ जिसमें माओवादी सरकार में शामिल हुए। कई बार चुनाव की तारीखें तय नहीं हो पाईं मगर जो प्रक्रिया शुरू हुई उसके बाद २००७ और अप्रैल २००८ तक पूरी तरह से राजशाही का पतन हो गया। १० अप्रैल २००८ को हुए चुनाव में अप्रत्याशित तौरपर माओवादियों ने जीत दर्ज कर बहुमत हासिल कर लिया है।


संविधान सभा का चुनाव जीत लिया

नेपाल में माओवादियों ने संविधान सभा का चुनाव जीत लिया है. उन्हें लगभग 220 सीटें मिली हैं. हालाँकि ये स्पष्ट बहुमत से कम है. नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) अब नेपाल की नई सरकार में मुख्य भूमिका में होंगे जो देश के लिए नया संविधान तैयार करेगी.नए संविधान के तहत सबसे बड़ा बदलाव होगा 239 वर्षों से चली आ रही राजशाही की समाप्ति. माओवादियों ने कहा है कि वो नई सरकार में सभी दलों को शामिल करना चाहते हैं.
माओवादियों ने अपने नेता पुष्प कमल दहल उर्फ़ प्रचंड को राष्ट्रपति बनाने की योजना बनाई है.
ख़ुद प्रचंड ने गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र प्रतिनिधियों के साथ बैठक के बाद कहा, "मैं राष्ट्रपति बनना चाहता हूँ लेकिन संविधान में इस तरह का प्रावधान नहीं है, इसलिए हमें दूसरे दलों के साथ मिल कर किसी तरह का समझौता करना होगा."

राजशाही की समाप्ति

प्रचंड ने कहा कि अब नेपाल में राजशाही के लिए कोई जगह नहीं है. उनका कहना था, "संविधान सभा की पहली बैठक में ही राजशाही ख़त्म करने का फ़ैसला किया जाएगा और इस पर किसी तरह का समझौता नहीं होगा."
601 सदस्यीय संविधान सभा के चुनावों में 240 सीटों पर प्रत्यक्ष चुनाव हुए थे जिनमें माओवादियों को 120 सीटें मिली हैं.
शेष 335 सीटों पर आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के तहत चुनाव हुए जिनकी मतगणना बुधवार रात ख़त्म हो गई.
चुनाव अधिकारी मत्रिका श्रेष्ठ ने कहा, "माओवादियों को 29 फ़ीसदी से ज़्यादा मत मिले हैं जबकि नेपाली कांग्रेस को लगभग 21 और नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (यूनाइटेड मार्क्सवादी-लेनिनवादी) को लगभग 20 फ़ीसदी मत प्राप्त हुए."
चुनाव आयोग के मुताबिक इस हिसाब से माओवादियों को आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के तहत 97 सीटें मिलेंगी.
इस तरह माओवादी कुल मिलाकर 217 सीटें जीत चुके हैं जबकि नेपाली कांग्रेस के खाते में 107 सीटें गई हैं. नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी (यूएमएल) तीसरे पायदान पर हैं. संविधान सभा के 26 सदस्यों को नामित करने का अधिकार नई सरकार को होगा.

नेपाल नीति में बदलाव लाएगा अमेरिका

चुनावों में माओवादियों की निश्चित विजय को ध्यान में रखकर अमेरिका अपनी नेपाल नीति में बदलाव करने पर विचार कर रहा है। नेपाल में अमेरिका की राजदूत नैंसी जे. पावेल ने इस बात का संकेत दिया है।गौरतलब है कि 2003 में अमेरिका ने माओवादियों को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठनों की सूची में पहली बार शामिल किया था। हालांकि, अमेरिका ने संकेत दिए हैं कि इसकी समीक्षा की जा सकती है। यद्यपि माओवादी 2006 से ही हथियार रखकर गठबंधन सरकार में शामिल हो चुके हैं। पावेल ने नेपाल की संसद के अध्यक्ष सुभाष चंद्र नेमबंग से सोमवार को मुलाकात करके नई सरकार के गठन के संबंध में जानकारी प्राप्त की। अधिकारिक सूत्रों के अनुसार मुलाकात के बाद नेमबंग ने संकेत दिए हैं कि अमेरिका अब अपनी नेपाल नीति को बदल रहा है।

शासन प्रणाली

इस चुनाव मे 240 सीटों पर प्रत्यक्ष चुनाव और 335 सीटों के लिए समानुपातिक पद्धति से चुनाव हुआ है, जिसमें मतदाता को उम्मीदवार को न चुनकर पार्टी को चुनना था. पूरे चुनाव परिणाम आने और गणतंत्र घोषित किए जाने के बाद सबसे बड़ा सवाल होगा कि नेपाल किस शासन की किस प्रणाली को अपनाता है.नेपाल में अमरीका की तरह राष्ट्रपति प्रणाली लागू की जाती है या फिर भारत की तरह सारे कार्यकारी अधिकार प्रधानमंत्री के पास रहते हैं.
हालांकि, माओवादी अपने नेता प्रचंड का नाम नेपाल के भावी राष्ट्रपति के तौर पर पेश कर चुके हैं.
लेकिन खुद प्रचंड का कहना है कि नेपाल क्या प्रणाली अपनाता है वो इसके लिए बहस को तैयार हैं.
वैसे संविधान सभा के बनने के बाद इस नेपाल का संविधान तैयार करने के लिए दो साल का समय होगा और ज़रूरत पड़ने पर इस संविधान सभा का कार्यकाल छह महीने और बढ़ाया जा सकेगा.

Monday, 14 April 2008

नेपाल में रामकथा और रामायण


भारत से हिंदू और बौद्ध पूरे दक्षिणपूर्व एशिया में गए और धर्म व संस्कृति का प्रसार किया। बौद्ध तो भारत से मध्य एशिया में भी छा गए। दसवीं शताब्दी तक मलेशिया, कंबोडिया, इंडोनेशिया जैसे दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों में हिंदू राजाओं का शासन था। इंडोनेशिया में तो मजपहित साम्राज्य ने भारतीय संस्कृति व धर्म की ऐसी नींव डाली कि आज मुस्लिम देश होने के बावजूद वहां बाली द्वीप में हिंदू संस्कृति विराजमान है। रामायण की कथा से जुड़े स्थल और मंदिर आज भी हैं। गंगा, जमुना और सरस्वती जैसी पवित्र नदियों के भी वजूद हैं। संस्कृति के इसी विस्तार क्रम में रामायण और महाभारत और पुराण भी इन देशों में प्रेरणास्रोत बने। आज भी कंबोडिया में दुनिया सबसे बड़ा विष्णु मंदिर अंकोरवाट का मंदिर हिंदू संस्कृति के लोगों में रचबस जाने की कहानी कह रहा है। इसी कारण दक्षिण एशिया के तमाम देशों में हिंदुओं के आदर्श व पूज्य भगवान राम की कथा थोड़े बहुत परिवर्तनों के साथ प्रचलित रही है। भारत के पड़ोसी हिंदू देश नेपाल में रामकथा को सर्वोच्च स्थान हासिल है।
नेपाल के राष्ट्रीय अभिलेखागार में वाल्मीकि रामायण की दो प्राचीन पांडुलिपियाँ सुरक्षित हैं। इनमें से एक पांडुलिपि के किष्किंधा कांड की पुष्पिका पर तत्कालीन नेपाल नरेश गांगेय देव और लिपिकार तीरमुक्ति निवासी कायस्थ पंडित गोपति का नाम अंकित है। इसकी तिथि सं. १०७६ तदनुसार १०१९ई. है। दूसरी पांडुलिपि की तिथि नेपाली संवत् ७९५ तदनुसार १६७४-७६ई. है।

नेपाल में रामकथा का विकास मुख्य रुप से वाल्मिकि तथा अध्यात्म रामायण के आधार पर हुआ है। जिस प्रकार भारत की क्षेत्रीय भाषाओं क साथ राष्ट्रभाषा हिंदी में राम कथा पर आधारित अनेकानेक रचनाएँ है, किंतु उनमें गोस्वामी तुलसी दास विरचित रामचरित मानस का सर्वोच्च स्थान है, उसी प्रकार नेपाली काव्य और गद्य साहित्य में भी बहुत सारी रचनाएँ हैं। 'रामकथा की विदेश-यात्रा' के अंतर्गत उनका विस्तृत अध्ययन एवं विश्लेषण हुआ है।

नेपाली साहित्य में भानुभक्त कृत रामायण को सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। नेपाल के लोग इसे ही अपना आदि रामायण मानते हैं। यद्यपि भनुभक्त के पूर्व भी नेपाली राम काव्य परंपरा में गुमनी पंत और रघुनाथ भक्त का नाम उल्लेखनीय है। रघुनाथ भक्त कृत रामायण सुंदर कांड की रचना उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में हुआ था। इसका प्रकाशन नेपाली साहित्य सम्मेलन, दार्जिलिंग द्वारा कविराज दीनानाथ सापकोरा की विस्तृत भूमिका के साथ १९३२ में हुआ।


नेपाली साहित्य के क्षेत्र में प्रथम महाकाव्य रामायण के रचनाकार भानुभक्त का उदय सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना है। पूर्व से पश्चिम तक नेपाल का कोई ऐसा गाँव अथवा कस्वा नहीं है जहाँ उनकी रामायण की पहुँच नहीं हो। भानुभक्त कृत रामायण वस्तुत: नेपाल का 'राम चरित मानस' है। भानुभक्त का जन्म पश्चिमी नेपाल में चुँदी-व्याँसी क्षेत्र के रम्घा ग्राम में २९ आसढ़ संवत १८७१ तदनुसार १८१४ई. में हुआ था। संवत् १९१० तदनुसार १८५३ई. में उनकी रामायण पूरी हो गयी थी,२ किंतु एक अन्य स्रोत के अनुसार युद्धकांड और उत्तर कांड की रचना १८५५ई. में हुई थी।

भानुभक्त कृत रामायण की कथा अध्यात्म रामायण पर आधारित है। इसमें उसी की तरह सात कांड हैं, बाल, अयोध्या, अरण्य, किष्किंधा, सुंदर, युद्ध और उत्तर।
बालकांड का आरंभ शिव-पार्वती संवाद से हुआ है। तदुपरांत ब्रह्मादि देवताओं द्वारा पृथ्वी का भारहरण के लिए विष्णु की प्रार्थना की गयी है। पुत्रेष्ठियज्ञ के बाद राम जन्म, बाल लीला, विश्वामित्र आगमन, ताड़का वध, अहिल्योद्धार, धनुष यज्ञ और विवाह के साथ परशुराम प्रसंग रुपायित हुआ है।
अयोध्या कांड में नारद आगमन, राज्याभिषेक की तैयारी, कैकेयी कोप, राम वनवास, गंगावतरण, राम का भारद्वाज और वाल्मीकि से मिलन, सुमंत की अयोध्या वापसी, दशरथ का स्वर्गवास, भरत आगमन, दशरथ की अंत्येष्ठि, भरत काचित्रकूट गमन, गुह और भारद्वाज से भरत की भेंट, राम-भरत मिलन, भरत की अयोध्या वापसी औ राम के अत्रि आश्रम गमन का वर्णन हुआ है।

अरण्यकांड में विराध वध, शरभंग, सुतीक्ष्ण और आगस्तमय से राम की भेंट, पंचवटी निवास, शूपंणखा-विरुपकरण, मारीच वध, सीता हरण और राम विलाप के साथ जटायु, कबंध और शबरी उद्धार की कथा है। किष्किंधा कांड में सुग्रीव मिलन, वालि वध, तारा विलाप, सुग्रीव अभिषेक, क्रिया योग का उपदेश, राम वियोग, लक्ष्मण का किष्किंधा गमन, सीतानवेषण और स्वयंप्रभा आख्यान के उपरांत संपाति की आत्मकथा का उद्घाटन हुआ है।

सुंदर कांड में पवन पुत्र का लंका गमन, रावण-सीता संवाद, सीता से हनुमानकी भेंट, अशोक वाटिका विध्वंस, ब्रह्मपाश, हनुमान-रावण संवाद, लंका दहन, हनुमान से सीता का पुनर्मिलन और हनुमान की वापसी की चर्चा हुई है।

युद्ध कांड में वानरी सेना के साथ राम का लंका प्रयाण, विभीषण शरणागति, सेतुबंध, रावण-शुक संवाद, लक्ष्मण-मूर्च्छा, कालनेमिकपट, लक्ष्मणोद्धार, कुंभकर्ण एवं मेघनाद वध, रावण-यज्ञ विध्वंस, राम-रावण संग्राम, रावण वध, विभीषण का राज्याभिषेक, अग्नि परीक्षा, राम का अयोध्या प्रत्यागमन, भरत मिलन और राम राज्याभिषेक का चित्रण हुआ है।

उत्तरकांड में रावण, वालि एवं सुग्रीव का पूर्व चरित, राम-राज्य, सीता वनवास, राम गीता, लवण वध, अश्वमेघ यज्ञ, सीता का पृथ्वी प्रवेश और राम द्वारा लक्ष्मण के परित्याग के उपरांत उनके महाप्रस्थान के बाद कथा की समाप्ति हुई है।

कुछ समीक्षकों का कहना है कि भानुभक्त कृत रामायण अध्यात्म रामायण का अनुवाद है, किंतु यह यथार्थ नहीं है। तुलनात्मक अध्ययन से स्पष्ट होता है कि भानुभक्त कृत रामायण में कुल १३१७ पद हैं, जबकि अध्यात्म रामायण में ४२६८ श्लोक हैं। अध्यात्म रामायण के आरंभ में मंगल श्लोक के बाद उसके धार्मिक महत्व पर प्रकाश डाला गया है, किंतु भानुभक्त कृत रामायण सीधे शिव-पार्वती संवाद से शुरु हो जाती है। इस रचना में वे आदि से अंत तक अध्यात्म रामायण की कथा का अनुसरण करते प्रतीत होते हैं, किंतु उनके वर्णन में संक्षिप्तता है और यह उनकी अपनी भाषा-शैली में लिखी गयी है। यही उनकी सफलता और लोकप्रियता का आधार है।

भानुभक्त कृत रामायण में अध्यात्म रामायण के उत्तर कांड में वर्णित 'राम गीता' को सम्मिलित नहीं किया गया था। भानुभक्त के मित्र पं. धर्मदत्त ग्यावली को इसकी कमी खटक रही थी। विडंबना यह थी कि उस समय भानुभक्त मृत्यु शय्या पर पड़े थे। वे स्वयं लिख भी नहीं सकते थे। मित्र के अनुरोधपर महाकवि द्वार अभिव्यक्त 'राम गीता' को उनके पुत्र रामकंठ ने लिपिबद्ध किया। इस प्रकार नेपाली भाषा की यह महान रचना पूरी हुई जो कालांतर में संपूर्ण नेपाल वासियों का कंठहार बन गयी।


अब सूरज देवता भी निहार पाएंगे भोले को, काफी बड़ा हो गया काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर


कहते हैं भगवान शिव के त्रिशूल पर बसी है काशी नगरी। इसी काशी नगरी में भोले के मंदिर में किसी पर्व पर दर्शन तो मारामारी करके किसी तरह से भक्त कर लेते थे मगर अपने आराध्य के भजन-कीर्तन में शामिल होना या वहां ध्यान लगाने की ईच्छा मन में लिए ही भीड़ से किसी तरह बाहर निकल आना पड़ता था। मगर अब आप कीर्तन में भी शामिल हो सकते हैं और ध्यान भी लगा सकते हैं। परिसर को अब काफी बड़ा कर दिया गया है और आम दर्शनार्थियों के लिए खोल भी दिया गया है।
वाराणसी के करीब 200 वर्ष प्राचीन विश्व प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर के विस्तार के बाद १४ अप्रैल २००८ को पहली बार गर्भगृह में भगवान के 'ज्योतिर्लिंग' पर सूर्य की रोशनी पहुँची और यह छटा देखकर हजारों भक्त भाव विभोर हो गए। वर्ष 1780 में अहिल्याबाई होल्कर द्वारा निर्मित प्राचीन काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर का विस्तार कर दिया गया है। समीप के दो अन्य शिव मंदिरों के परिसरों को समाहित करने के बाद अब इसका क्षेत्र लगभग साढ़े आठ हजार वर्ग फुट हो गया है।
काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के अध्यक्ष एवं वाराणसी के मंडलायुक्त नितिन रमेश गोकर्ण ने मीडिया को बताया कि नए परिसर का निर्माण कार्य प्राचीन काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर की कला एवं स्थापत्य के अनुरुप विशेषज्ञों की राय से पिछले लगभग सात माह से जारी था। इसके लगभग पूर्ण होने पर आज इसे प्राचीन काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर में समाहित कर दिया गया। प्राचीन काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर एवं ताड़केश्वर मंदिर परिसर को अलग करने वाली दीवार को आज जैसे ही हटाया गया काशी विश्वनाथ मंदिर का गर्भगृह सूर्य की रोशनी से नहा गया। इस नयनाभिराम दृश्य को देखकर उपस्थित हजारों भक्त आनंदित हो उठे।
प्राचीन काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर में भगवान विश्वनाथ के गर्भगृह की परिक्रमा के लिए महज दो से तीन फीट का एक गलियारा मौजूद था जिससे भक्तों को परिक्रमा में बहुत कठिनाई होती थी। लेकिन नवनिर्मित परिसर के प्राचीन मंदिर परिसर में समाहित हो जाने के बाद भगवान विश्वनाथ का परिक्रमा स्थल भी वृहद हो गया और प्राचीन मंदिर परिसर में चारों ओर सूर्य की रोशनी आने लगी।
नवनिर्मित परिसर में भगवान विश्वनाथ के गर्भगृह के ठीक सामने एक विशाल भजन मंडप बनाया गया है जहाँ बैठकर भक्तगण काशी विश्वनाथ की आरती कर सकेंगे। प्राचीन परिसर में बहुत कम सँख्या में भक्तगण भगवान विश्वनाथ की आरती में शामिल हो पाते थे। इस परिसर में भजन मंडप के दोनों तरफ पर्याप्त परिक्रमा स्थल छोड़कर विशाल साधना एवं ध्यान स्थल बनाए गए हैं, जिसकी दीवारों पर शिव से जुडे़ पौराणिक आख्यानों को सफेद संगमरमर की दीवारों पर अंकित करने का काम किया जा रहा है।
काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एसएन त्रिपाठी के मुताबिक नए परिसर का कार्य पूर्ण हो जाने के बाद विश्वनाथ मंदिर परिसर में एक साथ कम से कम 500 से 1000 तक भक्त भगवान शिव के दर्शन और पूजन कर सकेंगे। मंदिर न्यास के अध्यक्ष गोकर्ण ने बताया कि भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शनार्थियों की भारी भीड़ की सुविधा को ध्यान में रख कर ही मंदिर न्यास ने पिछले वर्ष बैठक में परिसर के विस्तार का फैसला किया था।
दो परिवर्तनों ने विश्वनाथ मंदिर में दर्शन और चढ़ावा को सुलभ बना दिया है। पहला यह कि काशी विश्वनाथ के प्रसाद की आनलाइन बुकिंग। इससे दुनिया के किसी कोने में भगवान शिव के भक्तों को दर्शन व प्रसाद आनलाइन उपलब्ध हुआ है। दूसरा परिसर का विस्तार। संकरा होने के कारण सुरक्षा के लिहाज से भी यह मंदिर संदेह के घेरे में आने लगा था खासतौर पर जब से आतंकवादियों के बनारस के संकट मोचन परिसर, कचहरी और कैंट स्टेशन पर हमले के बाद से हर त्यौहारों पर काशी विश्वनाथ मंदिर चिंता का विषय बन जाता है। इसकी एक वजह जगह का संकरा होना भी था। प्रशासन के सुरक्षाबल के जवान भारी तादाद में तैनात करना भी मुश्किल होता था मगर अब इतनी जगह हो गई है कि सुरक्षा के लिहाज से नजर रखना भी आसान हो गया है। मंदिर में भीड़ होनी तो मामूली बात है क्यों कि ऐसा कौन है जो काशी पधारे और भोले बाबा के दर्शन न करे ? तो फिर हर हर महादेव। आप भी दर्शन करिए सूरज देवता की उपस्थिति में आदिदेव महादेव के।,

Thursday, 10 April 2008

गरीब सवर्णों को भी चाहिए आरक्षण

क्या अब केंद्र सरकार सवर्ण गरीबों को भी आरक्षण पर पहल करेगी? सुप्रीमकोर्ट ने बृहस्पतिवार को एक अहम फैसले में केंद्रीय उच्च शिक्षण संस्थानों में अन्य पिछडा वर्ग [ओबीसी] के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण को मंजूरी दे दी, लेकिन इस वर्ग की क्रीमीलेयर को आरक्षण के दायरे से बाहर रखने के निर्देश दिए। कोर्ट ने साथ आरक्षण की इस नीति की समय-समय पर समीक्षा करने का भी आदेश दिया। क्रीमी लेयर को परे रखने का फैसला तो स्वागत योग्य है मगर यह न्यायपूर्ण तभी होगा जब सवर्ण गरीबों को भी आरक्षण का लाभ मिले। इस बात को परे रखने के कारण ही मायावती ने सवर्णों के लिए यह मांग रख दी है। चुनाव जीतने के साथ ही उन्होंने सवर्ण गरीबों को आरक्षण का वायदा किया था। अब जबकि केंद्र में प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नजर है इस लिए फौरन सवर्णों की मांग रख दी। दलितों की तो वे नेता हैं ही मगर सशक्त तरीके से गरीब सवर्णों के लिए आवाज भी उठा रही हैं।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले आने के साथ ही उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने अन्य पिछड़ा वर्ग को केंद्रीय उच्च शिक्षण संस्थानों में 27 प्रतिशत आरक्षण की मंजूरी के सुप्रीमकोर्ट के फैसले का स्वागत किया और कहा कि उच्च वर्ग के गरीब तबके को भी इस प्रकार का लाभ दिया जाना चाहिए। मायावती ने कहा कि अन्य पिछड़ा वर्ग के अधिकांश लोग आर्थिक एवं शैक्षिक रूप से तरक्की नहीं कर सके हैं, इसलिए उन्हें इस प्रकार के लाभ देने की सख्त आवश्यकता थी और उन्हें आरक्षण का फायदा मिलना ही चाहिए था। मुख्यमंत्री ने कहा कि वह केंद्र सरकार को पत्र लिखकर मांग कर रही हैं कि उच्च वर्ग के गरीब वर्ग को भी उच्च शिक्षण संस्थानों में आरक्षण दिया जाए, ताकि उनके बच्चे भी उच्च शिक्षा ग्रहण कर अपना जीवन स्तर सुधारने के साथ-साथ देश की प्रगति में भी सहायक बन सकें। मायावती की यह मांग भले राजनीति के कारण है मगर न्यायसंगत है कि गरीब सवर्णों को भी आरक्षण दे सरकार।
आज मुख्य न्यायाधीश के जी बालाकृष्णन की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण दिलाने वाले 2006 के केंद्रीय शिक्षण संस्थान [प्रवेश में आरक्षण] कानून को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए लंबी बहस के बाद उक्त कानून को वैध ठहराया, लेकिन साथ ही यह भी निर्देश दिया कि यदि आरक्षण का आधार जाति है तो इस वर्ग के सुविधा संपन्न यानी क्रीमीलेयर को आरक्षण के दायरे से बाहर रखा जाए। पीठ ने चार एक के बहुमत से उक्त कानून को वैध ठहराया। न्यायमूर्ति दलबीर भंडारी ने इससे असहमति जताई। पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति अरिजित पसायत, न्यायमूर्ति सी के ठक्कर और न्यायमूर्ति आर वी रवींद्रन शामिल हैं।
ओबीसी के आरक्षण में दायर याचिकाओं में सरकारी कदम का जबरदस्त विरोध करते हुए कहा गया था कि पिछड़े वर्गो की पहचान के लिए जाति को शुरुआती बिंदु नहीं माना जा सकता। आरक्षण विरोधी याचिकाओं में क्रीमीलेयर को आरक्षण नीति में शामिल किए जाने का भी विरोध किया गया था। इस फैसले से न्यायालय के 29 मार्च 2007 के अंतरिम आदेश में कानून के कार्यान्वयन पर लगाई गई रोक समाप्त हो जाएगी। फैसले के बाद अब आरक्षण नीति को 2008-09 शैक्षणिक सत्र में लागू किया जा सकेगा।

ओबीसी का आरक्षण सफरनामा

आईआईटी और आईआईएम सहित केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने से संबंधित विवादास्पद कानून की संवैधानिक वैधता को लेकर घटनाक्रम इस प्रकार रहा:-

20 जनवरी 2006: सामाजिक और शैक्षणिक स्तर पर पिछड़े वर्गो तथा अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजातियों को शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश देने के लिए सरकार को विशेष प्रावधान बनाने की शक्ति देने वाला संवैधानिक [93वां संशोधन] अधिनियम 2005 प्रभाव में आया।
16 मई 2006: सामाजिक न्याय और अधिकारिता मामलों की स्थायी समिति ने अपनी 15वीं रिपोर्ट सौंपी जिसमें कहा गया कि पिछड़े वर्गो के मुद्दे को लेकर कोई जनगणना नहीं कराई गई। इसमें कहा गया कि भारत के महापंजीयक की रिपोर्ट के अनुसार 2001 की जनगणना में अन्य पिछड़ा वर्ग से संबंधित आंकड़ों के बारे में कोई जानकारी नहीं है।
22 मई 2006: अशोक कुमार ठाकुर ने सुप्रीमकोर्ट में याचिका दायर कर अधिनियम 2006 के तहत केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों के दाखिलों में आरक्षण दिए जाने के मामले को चुनौती दी। उस समय अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान [एम्स] में आरक्षण विरोधी आंदोलन अपने चरम पर था।
27 मई 2006: प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उच्च शैक्षणिक संस्थानों में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण कार्यान्वयन से संबंधित अधिनियम को देखने के लिए एक निगरानी समिति बनाई। समिति ने अपनी रिपोर्ट में सरकार को चेताया कि अधिनियम के कार्यान्वयन से शैक्षणिक योग्यता के साथ समझौता होगा और इससे जनसांख्यिकी आपदा पैदा होगी।
29 मई 2006: सुप्रीमकोर्ट ने याचिका पर केंद्र को नोटिस भेजा।
31 मई 2006: सुप्रीमकोर्ट ने सभी संबंधित नागरिकों को याचिका पर पार्टी बनने की अनुमति दी और उनसे नई याचिका दायर करने को कहा।
1 दिसंबर 2006: मानव संसाधन और विकास मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने अपनी 186वीं रिपोर्ट संसद के दोनों सदनों में पेश की और कहा कि 1931 के बाद जाति के आधार पर कोई जनगणना नहीं हुई।
1 जनवरी 2007: अधिनियम के कार्यान्वयन को चुनौती देने वाली एक और याचिका सुप्रीमकोर्ट में दायर।
29 मार्च 2007: सुप्रीमकोर्ट ने अधिनियम के कार्यान्वयन को स्थगित करते हुए अंतरिम आदेश दिया।
7 अगस्त 2007: पांच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ ने अधिनियम की वैधता पर फैसला देने के लिए सुनवाई शुरू की।
11 नवंबर 2007: 25 दिन की सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा गया।
10 अप्रैल 2008: सुप्रीमकोर्ट ने शैक्षणिक संस्थानों में अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण उपलब्ध कराने वाले केंद्रीय शैक्षणिक संस्थान [प्रवेश आरक्षण] अधिनियम 2006 की वैधता को बरकरार रखा।

Monday, 7 April 2008

बुझानी पड़ी ओलिंपिक मशाल

पेरिस में तिब्बतियों ने इतना विरोध किया कि बीजिंग ओलंपिक की मशाल को बुझाकर एक बस के जरिये रिले रेस संपन्न की गई। ओलंपिक इतिहास में यह पहली घटना है जब मशाल बुझाकर रिले पूरी की गई। पेरिस के मशहूर एफिल टावर से शुरू हुई मशाल रिले ने अभी दो सौ मीटर की दूरी ही तय की थी कि तिब्बत समर्थकों ने नारेबाजी शुरू कर दी। उस वक्त एक एथलीट मशाल को व्हील चेयर पर ले जा रहा था कि तभी प्रदर्शनकारियों ने 'तिब्बत' 'तिब्बत' के नारे लगाना शुरू कर दिया। भारी शोरगुल के कारण कुछ देर के लिए मशाल रिले को रोकना पड़ा। इसके बाद मशाल को प्रदर्शनकारियों से दूर रखने के लिए भारी पुलिस सुरक्षा के बीच इसे बुझाकर बस के जरिये सीन नदी के तट तक ले जाया गया। इससे पहले रविवार को लंदन में भी तिब्बत समर्थक प्रदर्शनकारियों ने मशाल रिले के मार्ग में बाधा डालने की कोशिश की थी। उन्होंने मशाल छीनने की भी कोशिश की थी और इस सिलसिले में कई लोगों को गिरफ्तार किया गया था।

माकपा और प्रकाश करात दोनों की होगी अग्नि परीक्षा


लालबंगाल के युगपुरुष ज्योति बसु की पार्टी और राजनीति में भूमिका कम कर दी गई है। इसके लिए काफी पहले ज्योति बसु और हरकिशन सिंह सुरजीत ने आग्रह भी किया था। माकपा की १९वीं पार्टी कांग्रेस ने पोलित ब्यूरों के १५ सदस्यों में इनका नाम दर्ज नहीं किया। बसु को पोलितब्यूरो का और सुरजीत को केंद्रीय समिति का आमंत्रित सदस्य का दर्जा दिया गया है। प्रकाश करात के अलावा पार्टी कांग्रेस ने केरल के मुख्यमंत्री वी. एस. अच्युतानंदन, बुद्धदेव भट्टाचार्य और मानिक सरकार, सीताराम येचुरी, सीटू अध्यक्ष एम. के. पांधे. पी. विजयन, एस रामचंद्रन पिल्लै, और बिमान बोस को पोलित ब्यूरो का सदस्य बनाए रखा है। के. वरदराजन, बी. पी. राघावुलु और बृंदा करात पोलित ब्यूरो के अन्य सदस्य हैं। पार्टी कांग्रेस ने 17 नये सदस्यों समेत 87 सदस्यीय नयी केंद्रीय समिति का भी चुनाव किया। इन सदस्यों में केरल के वित्त मंत्री थॉमस इसाक और पश्चिम बंगाल के मंत्री गौतम देव शामिल हैं।
पोलित ब्यूरो माकपा का नीति निर्धारण का सर्वोच्च मंच है। इसकी सदस्यता का अर्थ है पार्टी में अहमियत का बढ़ जाना। मगर बसु और सुरजीत इन मायनों से ऊपर हैं। छह दिनों तक पोलित ब्यूरो के विचार मंथन के बाद प्रकाश करात को पोलित ब्यूरो का दुबारा महासचिव बनाया जाना भी यह संकेत है कि पार्टी ने न सिर्फ भरोसा जताया बल्कि उनपर अगले लोकसभा चुनाव की जिम्मेदारी भी डाल दी है। इसका लक्ष्य होगा तीसरे विकल्प की तलाश। करात ने दिल्ली में २००५ में हरकिशनसिंह सुरजीत से यह उत्तराधिकार हासिल किया था। अब यह भी जिम्मेदारी करात पर है कि उत्तर भारत में माकपा के विस्तार के लिए क्या कर सकते हैं जबकि इस बार हरकिशनसिंह सुरजीत के बाद पोलित ब्यूरो में उत्तर भारत का कोई प्रतिनिधि नहीं है।

रिटायर हो गए सभी संस्थापक कामरेड
बहरहाल माकपा की स्थापना के ४४ साल बाद यह पहला पोलित ब्यूरो है जिसमें कोई संस्थापक सदस्य नहीं है। नौ संस्थापक सदस्यों की यह आखिरी जोड़ी थी जिसने खुद के लिए आराम मांगा और मिल भी गया। कोलकाता में हुए एक सम्मान समारोह में ज्योति बसु ने कहा था कि- कामरेड कभी रिटायर नहीं होता। सच भी है। ज्योति बसु अभी भी आमंत्रित सदस्य हैं। हों भी क्यों नहीं अपने समकक्षीय सुरजीत से दो साल बड़े होते हुए भी मानसिक और शारीरिक तौर पर उनसे काफी ठीक हैं। इन दोनों के नाम यह भी रिकार्ड है कि इन दोनों ने स्वेच्छा से अवकाश लिया जबकि बाकी सात या तो निधन या खुद पोलित ब्यूरो से जुदा हुए।
११ अप्रैल १९६४ में भाकपा से मतभेद के बाद ३२ सदस्यों ने आंध्रप्रदेश के तेनाली में स्थापना के अगले ही साल सम्मेलन किया। यहीं पर तय हुआ कि अलग पार्टी माकपा का गठन किया जाएगा। औपचारिक तौरपर सीपीएम का गठन कोलकाता में १९६४ में ३१ अक्तूबर से ७ नवंबर तक चली सातवीं कांग्रेस में हुआ। प्रथम पोलित ब्यूरो का गठन हुआ। इसके नौ संस्थापक सदस्य थे-
१- पी. सुन्दरैया
२- एम. बासवपुनैया
३- ईएमएस नम्बूदिरिपाद
४- ए. के. गोपालन
५- बी. टी. रणदिवे
६- पी. रामामूर्ति
७- प्रमोद दासगुप्ता
८- ज्योति बसु
९- हरकिशन सिंह सुरजीत
पोलित ब्यूरो के ये संस्थापक सदस्य ही भारतीय राजनीति के इतिहास में माकपा की वह नींव डाली जिसके बलबूते माकपा किंगमेकर बन गई है। पोलित ब्यूरो के ये पितामह आजादी के संघर्ष के दिनों में साथ-साथ बैठकें किए, जेल गए या फिर भूमिगत रहे। यह जरूर है कि माकपा के गठन के बाद नक्सलवादियों के अलग होने तक इन नौ धुरंधरों के बीच भी दरार पड़ी। यह विचारों के टकराव के कारण हुआ। मसलन पहले महासचिव पी सुन्दरैया पोलित ब्यूरो के इस फैसले से सहमत नहीं थे कि माकपा का मासपार्टी में तब्दील किया जाए। यह सैद्धांतिक विरोध इतना गहराया कि १९७६ में उन्होंने पोलित ब्यूरो छोड़ दी। तब भारत में आपातकाल लगा हुआ था। औपचारिक तौर पर उन्हें तब पद से हटाया गया जब उनकी जगह आपातकाल हटने के बाद माकपा की १९७८ में हुई १०वीं पार्टी कांग्रेस में ईएमएस नम्बूदिरिपाद महासचिव बना दिए गए। इस लिहाज से सुन्दरैया पहले संस्थापक सदस्य थे जिन्होंने पद पहले छोड़ा और निधन १९८५ में हुआ। मगर माकपा सबसे लोकप्रिय और जमीनी नेता गोपालन पद पर रहते हुए १९७७ में अपने कामरेड साथियों को अलविदा कह गए। इनकी जगह १९८३ में प्रमोददासगुप्ता को लाया गया। सुन्दरैया के बाद तमिलनाडु के मजदूर नेता पी रामामूर्ति १९८७ में निधन से पहले ही पोलित ब्यूरो छोड़ गए। तीन और संस्थापक सदस्य- रणदिवे, वासवपुनैया और नम्बूदिरिपाद आखिरी समय तक पोलित ब्यूरो से जुड़ रहे। १९९० तक इन तीनों का क्रमशः निधन हो गया।



बसु और सुरजीत की लंबी पारी
१९वीं पार्टी कांग्रेस इसी लिहाज से ऐतिहासिक रही कि इसने अपने दो संस्थापकों ज्योति बसु और हरकिशन सिंह सुरजीत को उनके ही आग्रह पर कार्यमुक्त कर दिया। इन दोनों ने अपनी लंबी पारी में माकपा को वहां पहुंचाया है जहां वह केंद्र सरकार की नीति नियामक बन गई है। इनका सबसे बड़ा योगदान अपने बेहतर उत्तराधिकारी तैयार करना और मजबूत कैडर आधारित संगठन तैयार करना रहा है। नए तेजतर्रार नेताओं की ऐसी जमात खड़ी कर दी है जो उनकी विरासत संभालने में सक्षम है। इनके इस कार्य से दूसरे दलों को सीखना चाहिए कि संगठन तभी मजबूत रह सकता है जब उभरते हुए प्रतिभाशाली पार्टी कैडरों का ईर्ष्या का शिकार नहीं बनाकर उनको और आगे बढ़ने को न सिर्फ प्रोत्साहित किया जाए बल्कि नई प्रतिभाओं के सम्मानपूर्वक पार्टीं में जिम्मेदारी देकर प्रशिक्षित किया जाए। माकपा के संस्थापक सदस्यों खासतौरपर इस आखिरी जोड़ी ने यह भूमिका बखूबी निभाई। बंगाल में मजबूत सत्ता कायम रहने के पीछे ज्योति बसु की यही कार्यप्रणाली कारगर सिद्ध हुई। अभी माकपा जिन हाथों में सौंपी गई है उनमें से प्रकाश करात पहले महासचिव सुन्दरैया और गोपालन की ईजाद हैं। इतना ही नहीं इन्हें तीसरे सेस्थापक नम्बूदिरिपाद से भी सीखने को मिला।
पश्चिम बंगाल के मौजूदा मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य, और बंगाल में पार्टी का कामकाज देख रहे विमान बोस भी प्रमोददासगुप्ता और ज्योति की प्रेरणा से माकपा के कर्णधार बने। माकपा के बड़े और लोकप्रिय नेता सीताराम येचुरी को प्रेरणा तो बासवपुनैया से मिली मगर राजनीति के हुनर के मामले में उनके गुरू हरकिशन सिंह सुरजीत हैं।


केंद्रीय राजनीति में सुरजीत ने फहराया लाल झंडा
हरकिशनसिहं सुरजीत वह नाम है जिसने ४४ सालों से माकपा का लाल झंडा बुलंद कर रखा था। ९२ वर्षीय यह वही कामरेड है जिसने २००४ में यूपीए सरकार के गठन में अहम भूमिका निभाई। १९६४ में जब भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी के विभाजन के बाद माकपा बनी तो ऐसा नहीं लगता था कि बाद में चलकर यही भाकपा से बड़ी पार्टी बन जाएगी। हिंदी इलाकों में माकपा ( देखें इसी पास्ट के साथ पीडीएफ लेख- हिंदी इलाकों में सिकुड़ गई है माकपा ) हालाकि वह सम्मानजनक स्थिति नहीं हासिल कर पाई जो तब और अब भी भाकपा को हासिल है मगर तीन राज्यों केरल, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल माकपा के गढ़ बन गए हैं। यह अलग बात है कि सत्ता पर काबिज होने में उसे भाकपा, फारवर्ड ब्लाक और आरएसपी ने मजबूत सहारा दिया है।

हिंदी क्षेत्रों में माकपा के प्रभावी नही पाने की शायद यह भी वजह रही है कि माकपा ने क्षेत्रीयता के पैमाने से सत्ता को हासिल किया और देश के दूसरे हिस्से में अपना कोई दूसरा ज्योति बसु और ईएमएस नम्बूदिरी पाद पैदा नहीं होने दिया। जालंधर में जन्में इस कामरेड की किंगमेकर की गतिविधियों को माकपा कभी भुला नहीं पाएगी। ज्योति बसु जैसे समर्पित कामरेड ने जहां सजबूत सत्ता के लिए माकपा को बंगाल में समेट लिया वहीं माकपा को राष्ट्रीय राजनीति में जिंदा रखने का स्मरणीय कार्य हरकिशन सिह सुरजीत ने किया। धर्मनिरपेक्ष सरकार कायम कराने में भी आगे रहे। जब केंद्र में भाजपा की सरकार अल्पमत में आ गई थी तब कांग्रेस जैसी धर्मनिरपेक्ष पार्टी के लिए किंगमेकर की सुरजीत ने भूमिका निभाई। यानी १९८९ में विश्वनाथ सिंह की सरकार हो या फिर १९९६ में यूनाइटेड फ्रंट की सरकार या फिर २००४ में यूपीए की सरकार हो सभी के रणनीतिकार हरकिशन किंह सुरजीत ही रहे।
यह माकपा के कर्णधारों की चूक थी अन्यथा १९९६ में सुरजीत की रणनीति देश को वामपंथी प्रधानमंत्री देने की थी। इसके लिए पूरा खाका तैयार हो गया था मगर माकपा की केंद्रीय समिति ने बसु को प्रधानमंत्री बनाने से रोक दिया। बाद में बसु के प्रधानमंत्री न बनाए जाने को ऐसिहासिक भूल भी पार्टी और बसु दोनों को मानना पड़ा। कुल मिलाकर सुरजीत ही वह कामरेड जिनकी सूझबूझ से केंद्र में माकपा समेत वाममोर्चा का महत्व बढ़ा। ज्योति बसु का वामपंथियों के लिए इस मायने में योगदान सराहनीय नहीं रहा। एक क्षेत्र में वामपंथी राजनीति कर रहे बसु ने राष्ट्रीय महत्व को लगभग भुला दिया था। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि वामपंथी सत्ता की मजबूती के लिए बंगाल में जो कुछ हो रहा था उसका असर पूरे देश पर पड़ा।

दरअसल राष्ट्रीयता और क्षेत्रीयता दोनों की राजनीति एकसाथ संभव भी नहीं है। इसी कारण हिंदीक्षेत्रों में वामपंथी आंदोलनों के अगुवा रहे माकपा या भाकपा समर्थकों की जमीन ही खिसक गई। इस क्रम में उत्तरप्रदेश के सिर्फ दो बड़े नेताओं का जिक्र किया जाना काफी होगा जिनकी राजनीतिक सक्रियता पर इस क्षेत्रीयता का असर पड़ा। इनमें से एक गाजीपुर के सरयू पांडेय और दूसरे थे घोषी के झारखंड राय। दोनों ऐसी जमीन के नेता थे जिन्हें मजदूर स्वतः अपना रहनुमा समझते थे। मगर इनका इतना लोकप्रिय होना इस लिए काम नहीं आया क्यों कि तत्कालीन कांग्रेस की चतुर संचालक इंदिरा गांधी ने वामपंथियों के विखंडन का फायदा गरीबी हटाओ नारा देकर उठाया।



सर्वमान्य बनने की अग्नि परीक्षा
बंगाल में बाहरी लोगों के प्रति दुराव की खबरें देश के दूसरे कोने तक पहुंचने लगीं थी। बंगाल की इन खबरों ने वामपंथियों के गढ़ में भी माकपा के समर्थकों के कांग्रेस की तरफ विस्थापन का काम किया। नतीजा बंगाल के हक में तो अच्छा रहा क्यों कि इससे स्थानीय बहुमत उनके पक्ष में गया। ज्योति बसु जैसे माकपा के रणनीतिकार ने समय को भांपकर इस खिचाव को वोट और सत्ता में तबदील कर लिया और उसी ठोस धरातल पर बंगाल में माकपा सत्ता पर काबिज है। नुकसान इसका यह हुआ कि हिंदी क्षेत्रों में वामपंथी जमीन लगभग खिसक ही गई। इसका दुखद पहलू यह भी है कि देशभर के मजदूरों और गरीबों के भरोसे का वामपंथी सिर्फ बंगाल का ही प्रतीक बनकर रह गया। इसका खामियाजा अब देश भी भुगत रहा है और बंगाल भी। जो भी हो मगर माकपा को क्षेत्रीयता के कलंक बंगाल से मिटाने होंगे और राष्ट्रीय क्षितिज पर सर्वमान्य भूमिका में आना होगा। सवाल यह है कि क्या क्षेत्रीयता और राष्ट्रीयता दोनों एक साथ संभव है ? अगर हां तो बंगाल में क्षेत्रीय पार्टी की भूमिका से बाहर निकलना होगा जो बंगाल और देश दोनों के हित में है। प्रकाश करात की यही अग्निपरीक्षा भी है।

माकपा और प्रकाश करात दोनों की होगी अग्नि परीक्षा


लालबंगाल के युगपुरुष ज्योति बसु की पार्टी और राजनीति में भूमिका कम कर दी गई है। इसके लिए काफी पहले ज्योति बसु और हरकिशन सिंह सुरजीत ने आग्रह भी किया था। माकपा की १९वीं पार्टी कांग्रेस ने पोलित ब्यूरों के १५ सदस्यों में इनका नाम दर्ज नहीं किया। बसु को पोलितब्यूरो का और सुरजीत को केंद्रीय समिति का आमंत्रित सदस्य का दर्जा दिया गया है। प्रकाश करात के अलावा पार्टी कांग्रेस ने केरल के मुख्यमंत्री वी. एस. अच्युतानंदन, बुद्धदेव भट्टाचार्य और मानिक सरकार, सीताराम येचुरी, सीटू अध्यक्ष एम. के. पांधे. पी. विजयन, एस रामचंद्रन पिल्लै, और बिमान बोस को पोलित ब्यूरो का सदस्य बनाए रखा है। के. वरदराजन, बी. पी. राघावुलु और बृंदा करात पोलित ब्यूरो के अन्य सदस्य हैं। पार्टी कांग्रेस ने 17 नये सदस्यों समेत 87 सदस्यीय नयी केंद्रीय समिति का भी चुनाव किया। इन सदस्यों में केरल के वित्त मंत्री थॉमस इसाक और पश्चिम बंगाल के मंत्री गौतम देव शामिल हैं।
पोलित ब्यूरो माकपा का नीति निर्धारण का सर्वोच्च मंच है। इसकी सदस्यता का अर्थ है पार्टी में अहमियत का बढ़ जाना। मगर बसु और सुरजीत इन मायनों से ऊपर हैं। छह दिनों तक पोलित ब्यूरो के विचार मंथन के बाद प्रकाश करात को पोलित ब्यूरो का दुबारा महासचिव बनाया जाना भी यह संकेत है कि पार्टी ने न सिर्फ भरोसा जताया बल्कि उनपर अगले लोकसभा चुनाव की जिम्मेदारी भी डाल दी है। इसका लक्ष्य होगा तीसरे विकल्प की तलाश। करात ने दिल्ली में २००५ में हरकिशनसिंह सुरजीत से यह उत्तराधिकार हासिल किया था। अब यह भी जिम्मेदारी करात पर है कि उत्तर भारत में माकपा के विस्तार के लिए क्या कर सकते हैं जबकि इस बार हरकिशनसिंह सुरजीत के बाद पोलित ब्यूरो में उत्तर भारत का कोई प्रतिनिधि नहीं है।

रिटायर हो गए सभी संस्थापक कामरेड
बहरहाल माकपा की स्थापना के ४४ साल बाद यह पहला पोलित ब्यूरो है जिसमें कोई संस्थापक सदस्य नहीं है। नौ संस्थापक सदस्यों की यह आखिरी जोड़ी थी जिसने खुद के लिए आराम मांगा और मिल भी गया। कोलकाता में हुए एक सम्मान समारोह में ज्योति बसु ने कहा था कि- कामरेड कभी रिटायर नहीं होता। सच भी है। ज्योति बसु अभी भी आमंत्रित सदस्य हैं। हों भी क्यों नहीं अपने समकक्षीय सुरजीत से दो साल बड़े होते हुए भी मानसिक और शारीरिक तौर पर उनसे काफी ठीक हैं। इन दोनों के नाम यह भी रिकार्ड है कि इन दोनों ने स्वेच्छा से अवकाश लिया जबकि बाकी सात या तो निधन या खुद पोलित ब्यूरो से जुदा हुए।
११ अप्रैल १९६४ में भाकपा से मतभेद के बाद ३२ सदस्यों ने आंध्रप्रदेश के तेनाली में स्थापना के अगले ही साल सम्मेलन किया। यहीं पर तय हुआ कि अलग पार्टी माकपा का गठन किया जाएगा। औपचारिक तौरपर सीपीएम का गठन कोलकाता में १९६४ में ३१ अक्तूबर से ७ नवंबर तक चली सातवीं कांग्रेस में हुआ। प्रथम पोलित ब्यूरो का गठन हुआ। इसके नौ संस्थापक सदस्य थे-
१- पी. सुन्दरैया
२- एम. बासवपुनैया
३- ईएमएस नम्बूदिरिपाद
४- ए. के. गोपालन
५- बी. टी. रणदिवे
६- पी. रामामूर्ति
७- प्रमोद दासगुप्ता
८- ज्योति बसु
९- हरकिशन सिंह सुरजीत
पोलित ब्यूरो के ये संस्थापक सदस्य ही भारतीय राजनीति के इतिहास में माकपा की वह नींव डाली जिसके बलबूते माकपा किंगमेकर बन गई है। पोलित ब्यूरो के ये पितामह आजादी के संघर्ष के दिनों में साथ-साथ बैठकें किए, जेल गए या फिर भूमिगत रहे। यह जरूर है कि माकपा के गठन के बाद नक्सलवादियों के अलग होने तक इन नौ धुरंधरों के बीच भी दरार पड़ी। यह विचारों के टकराव के कारण हुआ। मसलन पहले महासचिव पी सुन्दरैया पोलित ब्यूरो के इस फैसले से सहमत नहीं थे कि माकपा का मासपार्टी में तब्दील किया जाए। यह सैद्धांतिक विरोध इतना गहराया कि १९७६ में उन्होंने पोलित ब्यूरो छोड़ दी। तब भारत में आपातकाल लगा हुआ था। औपचारिक तौर पर उन्हें तब पद से हटाया गया जब उनकी जगह आपातकाल हटने के बाद माकपा की १९७८ में हुई १०वीं पार्टी कांग्रेस में ईएमएस नम्बूदिरिपाद महासचिव बना दिए गए। इस लिहाज से सुन्दरैया पहले संस्थापक सदस्य थे जिन्होंने पद पहले छोड़ा और निधन १९८५ में हुआ। मगर माकपा सबसे लोकप्रिय और जमीनी नेता गोपालन पद पर रहते हुए १९७७ में अपने कामरेड साथियों को अलविदा कह गए। इनकी जगह १९८३ में प्रमोददासगुप्ता को लाया गया। सुन्दरैया के बाद तमिलनाडु के मजदूर नेता पी रामामूर्ति १९८७ में निधन से पहले ही पोलित ब्यूरो छोड़ गए। तीन और संस्थापक सदस्य- रणदिवे, वासवपुनैया और नम्बूदिरिपाद आखिरी समय तक पोलित ब्यूरो से जुड़ रहे। १९९० तक इन तीनों का क्रमशः निधन हो गया।



बसु और सुरजीत की लंबी पारी
१९वीं पार्टी कांग्रेस इसी लिहाज से ऐतिहासिक रही कि इसने अपने दो संस्थापकों ज्योति बसु और हरकिशन सिंह सुरजीत को उनके ही आग्रह पर कार्यमुक्त कर दिया। इन दोनों ने अपनी लंबी पारी में माकपा को वहां पहुंचाया है जहां वह केंद्र सरकार की नीति नियामक बन गई है। इनका सबसे बड़ा योगदान अपने बेहतर उत्तराधिकारी तैयार करना और मजबूत कैडर आधारित संगठन तैयार करना रहा है। नए तेजतर्रार नेताओं की ऐसी जमात खड़ी कर दी है जो उनकी विरासत संभालने में सक्षम है। इनके इस कार्य से दूसरे दलों को सीखना चाहिए कि संगठन तभी मजबूत रह सकता है जब उभरते हुए प्रतिभाशाली पार्टी कैडरों का ईर्ष्या का शिकार नहीं बनाकर उनको और आगे बढ़ने को न सिर्फ प्रोत्साहित किया जाए बल्कि नई प्रतिभाओं के सम्मानपूर्वक पार्टीं में जिम्मेदारी देकर प्रशिक्षित किया जाए। माकपा के संस्थापक सदस्यों खासतौरपर इस आखिरी जोड़ी ने यह भूमिका बखूबी निभाई। बंगाल में मजबूत सत्ता कायम रहने के पीछे ज्योति बसु की यही कार्यप्रणाली कारगर सिद्ध हुई। अभी माकपा जिन हाथों में सौंपी गई है उनमें से प्रकाश करात पहले महासचिव सुन्दरैया और गोपालन की ईजाद हैं। इतना ही नहीं इन्हें तीसरे सेस्थापक नम्बूदिरिपाद से भी सीखने को मिला।
पश्चिम बंगाल के मौजूदा मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य, और बंगाल में पार्टी का कामकाज देख रहे विमान बोस भी प्रमोददासगुप्ता और ज्योति की प्रेरणा से माकपा के कर्णधार बने। माकपा के बड़े और लोकप्रिय नेता सीताराम येचुरी को प्रेरणा तो बासवपुनैया से मिली मगर राजनीति के हुनर के मामले में उनके गुरू हरकिशन सिंह सुरजीत हैं।


केंद्रीय राजनीति में सुरजीत ने फहराया लाल झंडा
हरकिशनसिहं सुरजीत वह नाम है जिसने ४४ सालों से माकपा का लाल झंडा बुलंद कर रखा था। ९२ वर्षीय यह वही कामरेड है जिसने २००४ में यूपीए सरकार के गठन में अहम भूमिका निभाई। १९६४ में जब भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी के विभाजन के बाद माकपा बनी तो ऐसा नहीं लगता था कि बाद में चलकर यही भाकपा से बड़ी पार्टी बन जाएगी। हिंदी इलाकों में माकपा ( देखें इसी पास्ट के साथ पीडीएफ लेख- हिंदी इलाकों में सिकुड़ गई है माकपा ) हालाकि वह सम्मानजनक स्थिति नहीं हासिल कर पाई जो तब और अब भी भाकपा को हासिल है मगर तीन राज्यों केरल, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल माकपा के गढ़ बन गए हैं। यह अलग बात है कि सत्ता पर काबिज होने में उसे भाकपा, फारवर्ड ब्लाक और आरएसपी ने मजबूत सहारा दिया है।

हिंदी क्षेत्रों में माकपा के प्रभावी नही पाने की शायद यह भी वजह रही है कि माकपा ने क्षेत्रीयता के पैमाने से सत्ता को हासिल किया और देश के दूसरे हिस्से में अपना कोई दूसरा ज्योति बसु और ईएमएस नम्बूदिरी पाद पैदा नहीं होने दिया। जालंधर में जन्में इस कामरेड की किंगमेकर की गतिविधियों को माकपा कभी भुला नहीं पाएगी। ज्योति बसु जैसे समर्पित कामरेड ने जहां सजबूत सत्ता के लिए माकपा को बंगाल में समेट लिया वहीं माकपा को राष्ट्रीय राजनीति में जिंदा रखने का स्मरणीय कार्य हरकिशन सिह सुरजीत ने किया। धर्मनिरपेक्ष सरकार कायम कराने में भी आगे रहे। जब केंद्र में भाजपा की सरकार अल्पमत में आ गई थी तब कांग्रेस जैसी धर्मनिरपेक्ष पार्टी के लिए किंगमेकर की सुरजीत ने भूमिका निभाई। यानी १९८९ में विश्वनाथ सिंह की सरकार हो या फिर १९९६ में यूनाइटेड फ्रंट की सरकार या फिर २००४ में यूपीए की सरकार हो सभी के रणनीतिकार हरकिशन किंह सुरजीत ही रहे।
यह माकपा के कर्णधारों की चूक थी अन्यथा १९९६ में सुरजीत की रणनीति देश को वामपंथी प्रधानमंत्री देने की थी। इसके लिए पूरा खाका तैयार हो गया था मगर माकपा की केंद्रीय समिति ने बसु को प्रधानमंत्री बनाने से रोक दिया। बाद में बसु के प्रधानमंत्री न बनाए जाने को ऐसिहासिक भूल भी पार्टी और बसु दोनों को मानना पड़ा। कुल मिलाकर सुरजीत ही वह कामरेड जिनकी सूझबूझ से केंद्र में माकपा समेत वाममोर्चा का महत्व बढ़ा। ज्योति बसु का वामपंथियों के लिए इस मायने में योगदान सराहनीय नहीं रहा। एक क्षेत्र में वामपंथी राजनीति कर रहे बसु ने राष्ट्रीय महत्व को लगभग भुला दिया था। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि वामपंथी सत्ता की मजबूती के लिए बंगाल में जो कुछ हो रहा था उसका असर पूरे देश पर पड़ा।

दरअसल राष्ट्रीयता और क्षेत्रीयता दोनों की राजनीति एकसाथ संभव भी नहीं है। इसी कारण हिंदीक्षेत्रों में वामपंथी आंदोलनों के अगुवा रहे माकपा या भाकपा समर्थकों की जमीन ही खिसक गई। इस क्रम में उत्तरप्रदेश के सिर्फ दो बड़े नेताओं का जिक्र किया जाना काफी होगा जिनकी राजनीतिक सक्रियता पर इस क्षेत्रीयता का असर पड़ा। इनमें से एक गाजीपुर के सरयू पांडेय और दूसरे थे घोषी के झारखंड राय। दोनों ऐसी जमीन के नेता थे जिन्हें मजदूर स्वतः अपना रहनुमा समझते थे। मगर इनका इतना लोकप्रिय होना इस लिए काम नहीं आया क्यों कि तत्कालीन कांग्रेस की चतुर संचालक इंदिरा गांधी ने वामपंथियों के विखंडन का फायदा गरीबी हटाओ नारा देकर उठाया।



सर्वमान्य बनने की अग्नि परीक्षा
बंगाल में बाहरी लोगों के प्रति दुराव की खबरें देश के दूसरे कोने तक पहुंचने लगीं थी। बंगाल की इन खबरों ने वामपंथियों के गढ़ में भी माकपा के समर्थकों के कांग्रेस की तरफ विस्थापन का काम किया। नतीजा बंगाल के हक में तो अच्छा रहा क्यों कि इससे स्थानीय बहुमत उनके पक्ष में गया। ज्योति बसु जैसे माकपा के रणनीतिकार ने समय को भांपकर इस खिचाव को वोट और सत्ता में तबदील कर लिया और उसी ठोस धरातल पर बंगाल में माकपा सत्ता पर काबिज है। नुकसान इसका यह हुआ कि हिंदी क्षेत्रों में वामपंथी जमीन लगभग खिसक ही गई। इसका दुखद पहलू यह भी है कि देशभर के मजदूरों और गरीबों के भरोसे का वामपंथी सिर्फ बंगाल का ही प्रतीक बनकर रह गया। इसका खामियाजा अब देश भी भुगत रहा है और बंगाल भी। जो भी हो मगर माकपा को क्षेत्रीयता के कलंक बंगाल से मिटाने होंगे और राष्ट्रीय क्षितिज पर सर्वमान्य भूमिका में आना होगा। सवाल यह है कि क्या क्षेत्रीयता और राष्ट्रीयता दोनों एक साथ संभव है ? अगर हां तो बंगाल में क्षेत्रीय पार्टी की भूमिका से बाहर निकलना होगा जो बंगाल और देश दोनों के हित में है। प्रकाश करात की यही अग्निपरीक्षा भी है।

Wednesday, 2 April 2008

देखिये ये है आपके ब्लाग भ्रमण के सबूत

संगणित भूमंडल की अद्भुत सृष्टि हैं चिट्ठे। इन चिट्ठों के पूरी दुनिया के कई भाषाओं में अपने-अपने तपोवन हैं। इनमें से हिंदी भाषा में मेरे तीन तपोवन हैं- चिंतन, हमारावतन-हमारासमाज और कालचिंतन। इन्हीं तपोवन में विचरते रहते हैं आज के पाठक परिव्राजक। मेरे जेहन में सवाल उठा कि कितना महत्वपूर्ण है इन तपोवनों में पाठक परिव्राजकों का परिभ्रमण। महाकाव्यकालीन भारत में इन तपस्वियों ने तपोवनों को एक आदर्श व पावन भूमि बना डाला था। तब तपोवन को तपस्वियों और परिव्राजकों दोनों ने पर्याप्त योगदान दिया था। आज हम संगणित दुनिया के जीव हैं फिर भी चिट्ठों के तपोवन की मर्यादा हमसे ही है। आज भी चिट्ठों के संदर्भ तपस्वियों और परिव्राजकों की भूमिका उतनी ही महत्वपूर्ण है। इन्हीं कारणों से मैंने पाठक परिव्राजकों की महत्वपूर्ण भूमिका पर विचार करने की ठानी। सोचा ऐसा तभी संभव है जब पाठक परिव्राजक इन तपोवनों में विचरण के अपने सबूत छोड़ जाएं। इन्हीं दस्तावेजों को जुटाना शुरू किया तो पता चला कि वे परिव्राजक धन्यवाद व आभार जताने के पात्र हैं जिन्होंने मेरे चिट्ठे पर अपने भ्रमण के सबूत छोड़े हैं। इस लिहाज से चिट्ठों की उपयोगिता और गंभीरता भी काबिले तारीफ है।

दरअसल ब्लागिंग ने अभिव्यक्ति का वह साधन मुहैया कराया है जो लेखक और पाठक दोनों को समान रूप से हासिल है। अगर आप कोई पत्रिका, उपन्यास, कहानी या कविता पढ़ते हैं तो नतो उस लेखक से तुरंत संपर्क कर सकते हैं और न ही लिखित तौर पर कोई नाराजगी जाहिर कर सकते हैं। मगर ब्लाग पर आप किसी लेखक से तुरंत सहमति या असहमति जाहिर करते हैं। जितना सशक्त तरीके लेखक अपनी बात रखता है आप भी अपनी टिप्पणी उतनी ही आजादी से दर्ज कर सकते हैं। यह आजादी लेखन की दुनिया में और कहीं भी उपलब्ध नहीं है। इस लिहाज से ब्लाग अभिव्यक्ति का ज्यादा पारदर्शी और लोकतांत्रिक माध्यम है। ब्लाग पर टिप्पणियों और नोंकझोक ने वह दस्तावेज भी तैयार किया है जो साबित करता है कि आप सभलकर लिखिए ब्लाग अन्यथा आप की धज्जियां भी उड़ सकती हैं। इन्हीं दस्तावेजों ने मुझे यह पोस्ट तैयार करने को प्रेरित किया है। मैं आभार जताना चाहता हूं उन पाठकों का जो सिर्फ पढ़ना नहीं बल्कि सहमति और असहमति भी दर्ज कराना जरूरी समझते हैं। इस पोस्ट में एक साल के भीतर मेरे ब्लाग पर उन अधिकतर पाठकों की उपस्थिति को दस्तावेज के तौर पर डाला है जिससे वे भी मेरे ब्लाग के इस एक साल के इतिहास का हिस्सा बन पाएं।


बहरहाल समय का चक्र घूमकर वहां पहुंच गया है जहां इस ब्लागर ने अपने एक साल पूरे कर लिए हैं। हिंदी ब्लागिंग के उस दौर से यह सफर शुरू हुआ जब नारद या इक्का- दुक्का ब्लाग एग्रीगेटर पर ४००-५०० के आसपास ब्लागर जमे हुए थे। अब यह तादाद तीन हजार के पार है। ब्लागिंग का यह इतिहास उस दौर से गुजर रहा है, जहां नित नए प्रयोग भी जारी हैं। मसलन समूह ब्लाग का चलन ज्यादा ही हो गया है। ब्लागिंग कमाई का जरिया भी बन गया है। लिखने की मर्यादा पर भी सवाल उठाए जाने लगे हैं। ब्लाग लेखन को एक समानान्तर मीडिया का दर्जा भी हासिल हो गया है। हिंदी साहित्य के अलावा विविध विषयों पर विशेषज्ञ की हैसियत से भी ब्लाग रचे गए हैं। विज्ञान, सूचना तकनीक, स्वास्थ्य और राजनीति वगैरह कुछ भी अछूता नहीं है। यह विस्तार इस ब्लागर ने बीते एक साल में देखे हैं। विविध विषयों पर टिप्पणी विस्तार से सूचना सहित देते हुए १०० के पार पोस्ट ब्लाग पर डाल चुका हूं। अब लिखता कम हूं मगर साथी ब्लागरों को पढ़ता ज्यादा हूं। इसी घुमक्कड़ी ने ब्लाग पर कई ऐसे मित्रों को रूबरू कराया जिनसे कई सालों से संपर्क नहीं था और न संपर्क की कोई उम्मीद थी। टिप्पणियों के युद्ध में कई से खरीखोटी भी सुननी पड़ी। कुल मिलाकर बहुत रोचक रहा एक साल का यह सफर। इस दौर में भड़ास का भी सदस्य बना। दरअसल शुरू से ही मेल पर यशवंतजी से बातचीत होती रहती थी। मैं उन्हें पत्रकारों का एक मंच बनाने का सुझाव देता रहता था। यह उनदिनों की बात है जब भड़ास अचानक किन्हीं कारणों से बंद हो गया था। जिन कारणों से मुझे आशंका थी कि ऐसा होगा, दरअसल कुछ भी उगल देने के उन्हीं कारणों ने यशवंत को मुश्किल में डाला।
जब दुबारा भड़ास अवतरित हुआ तो भी मैंने यशवंतजी से एक स्तरीय पत्रकार मंच बनाने का आग्र किया और इसी मकसद से भड़ास का सदस्य बन गया। दो-चार पोस्ट भी उसपर डाली। इस बात के लिए भड़ास का आभारी हूं कि मेरी एक पोस्ट-गांव को गांव ही रहने दो यारों- को १९ जनवरी २००८ को दैनिक भास्कर ने अपने राष्ट्रीय संस्करण के पेज नौ पर ब्लागउवाच कालम पर भड़ास की समीक्षा के तहत छापा ( एकाकी व्यक्तित्व को एक्सपोजर की चाहत शीर्षक से छपी सामग्री का पीडीएफ यहां ब्लाग पर पोस्ट के साथ दिया है )।

इसके बाद भड़ास के माडरेटर यशवंतजी ने इसकी सूचना पोस्ट की कि डा. मान्धाता सिंह की पोस्ट पर समीक्षा के बहाने भड़ास छा गया। निश्चित ही इसके बाद से भड़ास ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज की तारीख में तमाम संकटों को झेलते हुए अपने कुछ भी उगल देने के उसी अंदाज में छाया ही नहीं बल्कि सबसे बड़ा ब्लाग माना जाता है। मैं इस उगल देने की रवायत से पूरी तरह सहमत नहीं हूं मगर ठीक भी इस लिए मानता हूं क्यों कि पत्रकारिता की मठाधीशी की दुनिया भीतर से इतनी ही गंदी है। यह बात अगर किसी को बुरी लगी हो तो क्षमा चाहूंगा।

जो हो मगर ब्लागिंग में कुछ ऐसा मन रमा कि विचार व्यक्त करते-करते अपनी ब्लागिंग की संघर्ष गाथा ही लिख डाली। जब इसे पोस्ट किया तो ढेर सारी शुभकामनाएं मिलीं। संभवतः रविरतलामीजी को लगा कि इस गाथा को और भी लोगों तक पहंचाया जाना चाहिए। उन्होंने मेल भेजा कि इस वे पुनः प्रकाशित करेंगे। ब्लागिंग के ऐसे महायोद्धा का आमंत्रण कैसे नहीं मानता। मान लिया और आभार भी जताया। मेरी संघर्ष गाथा रविजी की टिप्णी के साथ यहां देखें --( http://raviratlami.blogspot.com/2008/02/blog-post_29.html)।

रविजी ने यह मेल भेजा था-----------।

On 19/02/2008, *Ravishankar Shrivastava* raviratlami@gmail.com

mailto:raviratlami@gmail.com wrote:

धन्यवाद. मैं आपके ब्लॉग लेखन की संधर्ष गाथा से प्रभावित हूं. इसे लोगों के उत्साह वर्धन के लिए अपने चिट्ठे पर डालना चाहूंगा. कृपया अनुमति देंगे.

डॉ. मान्धाता जी,
आपका आलेख यहाँ पर पुनर्प्रकाशित किया है-
http://raviratlami.blogspot.com/2008/02/blog-post_29.html
धन्यवाद.
रवि

इसके बाद यह मेल भेजकर आभार जताया

नमस्कार रविजी
जब ब्लागिंग सीख रहा था तब मदद के लिए रवि रतलामी, श्रीश, घुघुती बासूती, काकेश के हाथ बढ़े थे। आज फिर आपने मेरी संघर्षगाथा अपने ब्लाग पर प्रकाशित करके मेरा उत्साह वर्धन किया है। आभारी हूं। धन्यवाद।

संतों मैं आप सभी का भी आभारी हूं

आभारी मैं उन सभी ब्लागर बंधुओं का भी हूं जिन्होंने किसी भी तरह मेरा उत्साहवर्धन किया। यह पोस्ट आप सभी का आभार जताने और आपके सम्मान की खातिर डाल रहा हूं। रविजी के मेल के विवरण के साथ पूरी कहानी कुछ इस तरह है। ब्लागिंग इतिहास के इन सभी घटनाओं व किरदारों का फिर कभी मौका मिला तो अलग से लिखूंगा रोमांचक इतिहास । फिलहाल सिर्फ दस्तावेज ही देखिए।

यहां से शुरू हुआ था सफर

तब ब्लागस्पाट डाटकाम पर सिर्फ चिंतन ब्लाग था। बाद में इसमें एक और ब्लाग हमारावतन-हमारासमाज जुड़ा। नीचे चिंतन और हमारावतन-हमारासमाज पर आप की उपस्थिति के वही दस्तावेज दिखेंगे जिन्हें मैं बटोर पाया हूं। बहुत सारा छूटा भी है। अब आप इन्हें देखिए और पहचानिए अपने निशान। आखिर में तीसरे ब्लाग कालचिंतन पर उपस्थिति के सबूत दिए हैं। पहले ब्लागस्पाट के दोनों ब्लागों पर आप सभी के पदचाप----------

अक्षरग्राम पर यह मदद मांगी थी।---------

मैं हिंदी पत्रकार हूँ । खबरों की दुनिया में तो रहता ही हूँ इसी लिए अब अपने विचारों को लेकर अक्षरग्राम के चिट्ठाकारों से भी जुडना चाहता हूँ। खबर उनकी भी लेनी है जिन्होंने अपने विचारों से अक्षरग्राम में धूम मचा रखी है। मैं काशी का रहने वाला हूँ। और अब कोलकाता में पत्रकारिता कर रहा हूँ। हिंदी पत्रकार हूँ इस लिए हिंदी जगत से जुडना मेरी हाबी है। आपलोगों का सानिध्य पाकर मुझे बड़ी ख़ुशी होगी।
धन्यवाद
डा.मान्धाता सिंह
कोलकाता
Posted by डा.मान्धाता सिंह at 8:37:00 AM
Labels: chitthakaaron

इसके बाद इस तरह स्वागत हुआ।-------
---------------------------------------------


Mired Mirage said...
आपका स्वागत है, किन्तु कृपया हमारी खबर मत लीजियेगा, हमने कुछ नहीं किया है ।
घुघूती बासूती


June 6, 2007 9:47 AM काकेश said...
स्वागत है आपका... कोलकता से अपना पुराना रिश्ता रहा है.. आशा है आपसे अच्छा कुछ सुनने को मिलेगा.


June 6, 2007 9:51 AM Shrish said...
हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है मान्धाता जी। उम्मीद है अच्छी खबर लेंगे।

नए चिट्ठाकारों के स्वागत पृष्ठ पर भी जाएं।
http://akshargram.com/sarvagya/index.php/welcome


June 6, 2007 6:00 PM मोहिन्दर कुमार said...
स्वागत है चिट्ठा जगत में आपका...
अब तो अक्सर मिलते रहेंगे


June 7, 2007 12:47 AM डा.मान्धाता सिंह said...
धन्यवाद मित्रों । नया ब्लॉगर हूँ। पंजीकृत होते ही आप लोगों ने स्वागत की जो तत्परता दिखायी उससे मैं और भी उत्साहित हूँ। मिलते रहेंगे।

मान्धाता

Shrish said... This post has been removed by the author. May 6, 2007 1:24 AM Shrish said...
हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है। हिन्दी (देवनागरी) में लिखना अत्यंत आसान है। हिन्दी टाइपिंग और ब्लॉगिंग संबंधी संपूर्ण जानकारी सर्वज्ञ विकी पर उपलब्ध है। सभी हिन्दी ब्लॉगों को आप नारद पर पढ़ सकते हैं।

मेरे विचार से आप अब तक नारद से नहीं जुड़े हैं। यदि आप चाहते हैं कि अन्य हिन्दी पाठक आपके ब्लॉग को पढ़ें तो नारद पर अपना ब्लॉग रजिस्टर करें।

नए चिट्ठाकारों के स्वागत पृष्ठ पर भी अवश्य जाएं।

किसी भी प्रकार की सहायता हेतु निसंकोच संपर्क करें।

ई-पंडित: http://ePandit.blogspot.com


May 6, 2007 1:30 AM Dr. Mandhata Singh said...
shrishji
namaskar

madad ke liye dhanyavad.

mandhata


May 16, 2007 7:38 AM Dr. Mandhata Singh said...
shrishji
namaskar
aapke sujhava par narad par apane blog ko darj karna chaha magar usmein 2 2 mein kya bharein samajha mein nahi aaya. kya karna hoga agar mail karke batayein to badi kripa hogi. hindi mein comment kaise karein yah bhi tarika batane ki kripa karein.
mera mail-drmandhata@gmail.com

dhanyavad
mandhata


और इस के बाद आपके पदचाप मेरे ब्लाग पर इस कदर बिखरे हैं


Reetesh Gupta ने आपकी प्रविष्टि पर नई टिप्पणी दी है "मधुमेह : कुछ देसी नुस्खे और योग":

इस लाभदायक जानकारी के लिये आपका हार्दिक धन्यवाद...

11 जून, 2007 1:59 अपराह्न को Reetesh Gupta द्वारा चिन्तन को प्रविष्टित
अनुनाद सिंह ने आपकी प्रविष्टि पर नई टिप्पणी दी है "धर्मांतरण":

आपके लेख काफी संतुलित हैं और पक्षपात से रहित हैं।



11 जून, 2007 9:30 अपराह्न को अनुनाद सिंह द्वारा चिन्तन को प्रविष्टित
हरिराम ने आपकी प्रविष्टि पर नई टिप्पणी दी है "मधुमेह : कुछ देसी नुस्खे और योग":

आपने बहुत उपयोगी जानकारियों संग्रहीत करके प्रकाशित कीं हैं। धन्यवाद। मधुमेह में चीनी के बदले मुलहठी (य़ष्टिमधु) का उपयोग करना एक रामबाण औषधि माना जाता है। कैंथ के पत्ते का रस एक चम्मच रोज सुबह पीया जाए तो 45 दिन में मधुमेह जड़ से खत्म हो सकता है।



11 जून, 2007 10:36 अपराह्न को हरिराम द्वारा चिन्तन को प्रविष्टित
Kavi Kulwant ने आपकी प्रविष्टि पर नई टिप्पणी दी है "मधुमेह : कुछ देसी नुस्खे और योग":

मधुमेह के लिए मेरे पास एक प्राकृतिक दवा है, जिसके लगभग एक माह के सेवन से इसका स्थाई इलाज संभव है। यह दवा मैं नि:शुल्क देता हूँ। कोई भी मुझे शाम 7-8 बजे के बीच संपर्क कर मुझसे यह दवा प्राप्त कर सकता है।
कवि कुलवंत सिंह 09819173477

अभय तिवारी ने आपकी प्रविष्टि पर नई टिप्पणी दी है "कांशीराम और अंबेडकर":

अच्छा तथ्यपरक लेख..



14 जून, 2007 8:09 अपराह्न को अभय तिवारी द्वारा चिन्तन को प्रविष्टित


12 जून, 2007 4:05 पूर्वाह्न को Kavi Kulwant द्वारा चिन्तन को प्रविष्टित
अभय तिवारी ने आपकी प्रविष्टि पर नई टिप्पणी दी है "कांशीराम और अंबेडकर":

नेट पर इस तरह की जानकारी अभी कम है.. सम्भव हो तो अम्बेदकर के लेखों को भी छापें..हिन्दी में अभी वो नेट पर कहीं नहीं हैं..



14 जून, 2007 8:11 अपराह्न को अभय तिवारी द्वारा चिन्तन को प्रविष्टित

Raviratlami ने आपकी प्रविष्टि पर नई टिप्पणी दी है "आज के दलित":

"...मंडल आयोग से पहले तक राजनीतिक पार्टियाँ सत्ता में आती थीं. मंडल आयोग की रिपोर्ट के सामने आने के बाद से अब जातियाँ सत्ता में आती है...."

सही ऑकलन है आपका. और, शायद अभिशप्त भारत का एक कड़वा सच भी!



14 जून, 2007 10:00 अपराह्न को Raviratlami द्वारा चिन्तन को प्रविष्टित
गिरीन्द्र नाथ झा ने आपकी प्रविष्टि पर नई टिप्पणी दी है "मायावती : दलितों की नई उम्मीद":

aapka blog jagat me swagat hai,
dar asal main pahli baar aapke blog pe aya hun..
sayad aab aana- jana laga rahega.
Girindra
www.anubhaw.blogspot.com
girindranath@gmail.com



17 जून, 2007 7:35 पूर्वाह्न को गिरीन्द्र नाथ झा द्वारा चिन्तन को प्रविष्टित
" JNuno ® " ने आपकी प्रविष्टि पर नई टिप्पणी दी है "उम्रदराज को ही मिलती है ऊंची कुर्सी !":

good blog



21 जून, 2007 3:26 अपराह्न को " JNuno ® " द्वारा चिन्तन को प्रविष्टित
Atul Sharma ने आपकी प्रविष्टि पर नई टिप्पणी दी है "'सेक्स ट्वाय' : कंडोम का नया अवतार":

बहुत ही तथ्यपरक जानकारी है। धन्यवाद।



22 जून, 2007 3:42 पूर्वाह्न को Atul Sharma द्वारा चिन्तन को प्रविष्टित

Raviratlami ने आपकी प्रविष्टि पर नई टिप्पणी दी है "गुर्जर महापंचायत की धमकी":

मंधाता जी,
आपका आलेख विचारोत्तोजक है.

अपने आलेख को छोटे-छोटे पैराग्राफ में तोड़ दें तो पठन-पाठन में सुविधा होगी. इसके लिए जहाँ पैराग्राफ तोड़ना है, वहाँ दो बार एन्टर बटन दबा दें.



25 जून, 2007 6:03 पूर्वाह्न को Raviratlami द्वारा चिन्तन को प्रविष्टित
शैलेश भारतवासी ने आपकी प्रविष्टि पर नई टिप्पणी दी है "बिहार की सड़कें या हेमामालिनी के गाल !":

महोदय,

आज पहली बार आपकी ब्लॉग पर आया हूँ। यहाँ सामग्री तो बहुत है लेकिन इस ब्लॉग की साज-सज्जा में थोड़ी कसर रह गई है। इसका अलंकरण करें। किसी मदद के लिए मैं तैयार हूँ। धन्यवाद।



1 जुलाई, 2007 10:58 पूर्वाह्न को शैलेश भारतवासी द्वारा चिन्तन को प्रविष्टित
जोगलिखी संजय पटेल की ने आपकी प्रविष्टि पर नई टिप्पणी दी है "मुझको मेरे बाद जमाना ढूँढेगा !":

हमारे अपने घर के बुज़ुर्गों की जो बेहाली हमने कर रखी है उसके चलते हम त्रिलोचन का मोल क्या जानेंगे....और यह भी नोट कर लें हम कि समय हम से भी जवाब मांगेगा...जो हमने बडे-बूढ़ों के साथ किया है उससे बदतर हमारे साथ होगा..हम में ही निहित है समाज,संगठन और सत्ता.हम सब भी दोषी हैं इन दुर्गतियों के लिये.



30 जुलाई, 2007 3:32 अपराह्न को जोगलिखी संजय पटेल की द्वारा चिन्तन को प्रविष्टित
अनूप शुक्ला ने आपकी प्रविष्टि पर नई टिप्पणी दी है "मुझको मेरे बाद जमाना ढूँढेगा !":

अच्छी तरह से सारे लेख संजोये हैं। त्रिलोचनजी के अच्छे स्वास्थ्य के लिये हम कामना करते हैं।



30 जुलाई, 2007 5:29 अपराह्न को अनूप शुक्ला द्वारा चिन्तन को प्रविष्टित

Shastri JC Philip ने आपकी प्रविष्टि पर नई टिप्पणी दी है "संकट में हैं 400 जड़ी-बूटियाँ":

हिन्दुस्तान की आयुर्वेदसंपदा के बारे में इस खबर के लिये शुक्रिया. इस विषय पर और जानकारी जरूर छापें -- शास्त्री जे सी फिलिप

हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info



1 अगस्त, 2007 8:26 अपराह्न को Shastri JC Philip द्वारा चिन्तन को प्रविष्टित
अनुनाद सिंह ने आपकी प्रविष्टि पर नई टिप्पणी दी है "संकट में हैं 400 जड़ी-बूटियाँ":

आप ने बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दे पर सबका ध्यान खींचा है। 'औषधीय पौधों की पत्तियाँ तो.दनी चाहिये, उन्हे जड़ से नहीं उखाड़ना चाहिये' यह एक छोटी बात है पर इसकी गहराई बहुत अधिक है; चिन्तनीय है।



2 अगस्त, 2007 4:55 पूर्वाह्न को अनुनाद सिंह द्वारा चिन्तन को प्रविष्टित
Isht Deo Sankrityaayan ने आपकी प्रविष्टि पर नई टिप्पणी दी है "संकट में हैं 400 जड़ी-बूटियाँ":

शुक्रिया. इस बात को थोडा जोर्दारी से उठाएं. कायदे से तो इसे एक आन्दोलन का रुप दिया जाना चाहिए.



2 अगस्त, 2007 6:44 पूर्वाह्न को Isht Deo Sankrityaayan द्वारा चिन्तन को प्रविष्टित
बोधिसत्व ने आपकी प्रविष्टि पर नई टिप्पणी दी है "मुझको मेरे बाद जमाना ढूँढेगा !":

भाई त्रिलोचन जी के परिजनों का पता और नंबर मिल सकता है क्या



3 अगस्त, 2007 7:40 पूर्वाह्न को बोधिसत्व द्वारा चिन्तन को प्रविष्टित
Shrish has left a new comment on your post "बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन से हाथापाई":

शर्मनाक, अतिथि देवो भव की परंपरा वाले देश में अतिथि के साथ ऎसा स‌लूक!



Posted by Shrish to हमारा वतन at August 11, 2007 10:50 PM
Mired Mirage has left a new comment on your post "एकजुट होइए या फिर पिटते रहिए":

अतुल जी यदि आप ऐसा सोचते है तो हममें से कौन ऐसा है जिसे पिटना नहीं चाहिये। जिस दिन पत्रकारिता पर बंदिशें लगेंगी उस दिन से हम सब भी स्वतंत्रता से नहीं जी सकेंगे । सो याद रखिये पत्रकारों पर हमला हमारी स्वयं की स्वतंत्रता पर हमला है ।
घुघूती बासूती



Posted by Mired Mirage to हमारा वतन at August 13, 2007 11:52 AM
Udan Tashtari has left a new comment on your post "बच्चा पैदा करने की मशीन समझ रखा है क्या ?":

कुछ कहने की स्थिती नही है...भीड़ के साथ सब मौन और....क्या!!!



Posted by Udan Tashtari to हमारा वतन at August 23, 2007 7:51 PM
अनूप शुक्ला has left a new comment on your post "बच्चा पैदा करने की मशीन समझ रखा है क्या ?":

बहुत दुखद सच !



Posted by अनूप शुक्ला to हमारा वतन at August 23, 2007 6:54 PM

bhuvnesh sharma has left a new comment on your post "बच्चा पैदा करने की मशीन समझ रखा है क्या ?":

यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते वाले देश में ऐसा हो रहा है
पता नहीं हम किस कारण अपनी महान संस्कृति का ढिंढोरा पीटते हैं



Posted by bhuvnesh sharma to हमारा वतन at August 24, 2007 5:26 AM
Suresh Chiplunkar has left a new comment on your post "वेब दुनिया ब्लाग चर्चा":

वेबदुनिया का यह प्रयास सराहनीय है, गत दो-तीन वर्षों से मैंने भी वेबदुनिया के प्रिंट संस्करण (नईदुनिया) में लेख भेजना बन्द कर दिया, पता नहीं क्यों, मेरे लेख कचरे के डब्बे में पहुँचा दिये जाने लगे, फ़िर मुझे मिला "यूनिकोड" और मैने ब्लॉग शुरु किया, बस फ़िर क्या था, अब तो आकाश ही सीमा है, किसी का बन्धन नहीं, जो चाहे लिखो, कोई पढे या ना पढे, फ़िर भी वेबदुनिया ने बदलते जमाने के साथ 'ब्लॉग" पर चर्चा करने की ठानी है तो इससे कुछ भला ही होगा... शुभकामनायें...
http://sureshchiplunkar.blogspot.com



Posted by Suresh Chiplunkar to हमारा वतन at August 27, 2007 6:51 AM
परमजीत बाली has left a new comment on your post "वेब दुनिया ब्लाग चर्चा":

यह चिठ्ठाकारों के लिए एक अच्छा समाचार है।यदि ऐसा हो रहा है तो इस से चिठ्ठाकारों को बहुत प्रोत्साहन मिलेगा।



Posted by परमजीत बाली to हमारा वतन at August 27, 2007 10:56 AM
Udan Tashtari ने आपकी पोस्ट " ब्लोग्गिंग पर क्या है आपकी राय " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

हमारा url भी नजर में रखें कृप्या. :)

तीन दिन के अवकाश (विवाह की वर्षगांठ के उपलक्ष्य में) एवं कम्प्यूटर पर वायरस के अटैक के कारण टिप्पणी नहीं कर पाने का क्षमापार्थी हूँ. मगर आपको पढ़ रहा हूँ. अच्छा लग रहा है.



Udan Tashtari द्वारा चिन्तन के लिए 27 अगस्त, 2007 6:32 अपराह्न को पोस्ट किया गया
Nishikant Tiwari ने आपकी पोस्ट " ब्लोग्गिंग पर क्या है आपकी राय " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

लहर नई है अब सागर में
रोमांच नया हर एक पहर में
पहुँचाएंगे घर घर में
दुनिया के हर गली शहर में
देना है हिन्दी को नई पहचान
जो भी पढ़े यही कहे
भारत देश महान भारत देश महान ।
NishikantWorld



Nishikant Tiwari द्वारा चिन्तन के लिए 1 सितंबर, 2007 2:35 पूर्वाह्न को पोस्ट किया गया
Shrish ने आपकी पोस्ट " ब्लोग्गिंग पर क्या है आपकी राय " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

वैबदुनिया का यह प्रयास प्रशंसा के योग्य है। खुशी की बात है कि जो हिन्दी आम जीवन में सिमटती जा रही है वही नैट पर फैलती जा रही है।



Shrish द्वारा चिन्तन के लिए 1 सितंबर, 2007 7:01 पूर्वाह्न को पोस्ट किया गया
Rama ने आपकी पोस्ट " तब तो अवाम के कोप से आप भी नहीं बचोगे कामरेडों " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

किसी को आम जनता के हितों से कोई लेना देना नहीं है. हां यह जरूर है नित नए मुद्दे तलाश कर अपना उल्लू जरूर सीधा करते नजर आते हैं.



Rama द्वारा चिन्तन के लिए 4 सितंबर, 2007 2:55 अपराह्न को पोस्ट किया गया
arvind mishra has left a new comment on your post "तीन वरिष्ठ पत्रकारों को कारावास":

kya sachmuch sachhai vahi hai jo saamane aaie hai?
abhi aage bhi pyaj ki parat dar parat sachhaie aage aati jaayegi!
Han khabarnaveeson ko saavadhaan ho janaa chahiye .agali baar jab scoop theyn to pukhtaa p[ramaan bhi rakhen.



Posted by arvind mishra to हमारा वतन at September 4, 2007 7:08 PM

संजय बेंगाणी has left a new comment on your post "तब तो अवाम के कोप से आप भी नहीं बचोगे कामरेडों":

ऐसी ही रैली चीन के विरूध्ह भी निकालते तो मजा आ जाता, जब उसने अरूंणांचल को अपना हिस्सा बताया.



Posted by संजय बेंगाणी to हमारा वतन at September 4, 2007 9:57 PM
Vinod Khare has left a new comment on your post "यादगार बने कमाई के कूपन":

हिन्दी भाषा में किया जा रहा आपका ये प्रयास प्रशंसनीय है | एक बेहतरीन ब्लॉग चलने के लिए बधाई |



Posted by Vinod Khare to हमारा वतन at September 6, 2007 11:50 AM

Shastri JC Philip has left a new comment on your post "यादगार बने कमाई के कूपन":

आज पहली बार आपके चिट्ठे पर आया एवं आपकी रचनाओं का अस्वादन किया. आप स्पष्ट एवं सशक्त लिखते हैं -- शास्त्री जे सी फिलिप

मेरा स्वप्न: सन 2010 तक 50,000 हिन्दी चिट्ठाकार एवं,
2020 में 50 लाख, एवं 2025 मे एक करोड हिन्दी चिट्ठाकार!!



Posted by Shastri JC Philip to हमारा वतन at September 6, 2007 11:53 AM
sunita (shanoo) ने आपकी पोस्ट " रोक दीजिए नग्नता का यह प्रदर्शन " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

आप सही कह रहे है अश्लीलता को परिवर्तन का जामा पहना रहे है आजकल,और जब मै इसके खिलाफ़ टिप्पनी दे रही हूँ तो मुझे भी RSS वालो का खिताब मिल रहा है...मगर क्या फ़र्क पड़ता है जब जब हम इन सब बातों का विरोध करेंगे यह सब तो सुनना ही पडेगा...आपको एसा नही लगता दिल्ली की सड़के भी फ़ैशन शो से कम नजर नही आती...
चलिये करते है कोशिश शायद खुल कर विरोध करे तो इसपर रोक लग ही जायें...

सुनीता(शानू)



sunita (shanoo) द्वारा चिन्तन के लिए 6 सितंबर, 2007 11:58 पूर्वाह्न को पोस्ट किया गया
Vinod Khare ने आपकी पोस्ट " रोक दीजिए नग्नता का यह प्रदर्शन " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

मुझे नही लगता की फैशन शो अश्लीलता फैला रहे है| वस्तुतः इस तरह के आयोजन पश्चिमी सभ्यता से आ रहे हैं जो की इस तरह के कपड़ों को पेहेनना बुरा नही मानती| आपका यह कथन की ऐसे वस्त्र आम लोगों द्वारा पहने जाने लायक नही होते सत्य है| पर आप ये क्यों सोचरहे हैं की प्रदर्शन केवल पहने जाने योग्य वस्त्रों का ही होना चाहिए| वस्त्र बनाना एक कला है और किसी भी अन्य कला की तरह उसका मकसद आम लोगों की रोजमर्रा की जरूरते पूरा करना नही होता | उसका मकसद नए विचारो का विकास होता है | लोग क्या पेहेनते है और क्या नही ये उनका निजी मामला है | इस बारे में निर्णय करने वाले आप और मैं कौन होते हैं?



Vinod Khare द्वारा चिन्तन के लिए 6 सितंबर, 2007 12:07 अपराह्न को पोस्ट किया गया

Vinod Khare has left a new comment on your post "रोक दीजिए नग्नता का यह प्रदर्शन":

मुझे नही लगता की फैशन शो अश्लीलता फैला रहे है| वस्तुतः इस तरह के आयोजन पश्चिमी सभ्यता से आ रहे हैं जो की इस तरह के कपड़ों को पेहेनना बुरा नही मानती| आपका यह कथन की ऐसे वस्त्र आम लोगों द्वारा पहने जाने लायक नही होते सत्य है| पर आप ये क्यों सोचरहे हैं की प्रदर्शन केवल पहने जाने योग्य वस्त्रों का ही होना चाहिए| वस्त्र बनाना एक कला है और किसी भी अन्य कला की तरह उसका मकसद आम लोगों की रोजमर्रा की जरूरते पूरा करना नही होता | उसका मकसद नए विचारो का विकास होता है | लोग क्या पेहेनते है और क्या नही ये उनका निजी मामला है | इस बारे में निर्णय करने वाले आप और मैं कौन होते हैं?



Posted by Vinod Khare to हमारा वतन at September 6, 2007 12:09 PM

sunita (shanoo) has left a new comment on your post "रोक दीजिए नग्नता का यह प्रदर्शन":

सही लिखा है आपने हम और आप ही मिल कर कुछ करना ही पड़ेगा हमसे ही मिल कर समाज बना है अगर सभी सोचने लगे कि रहने दिजिये यह तो निजी मामला है सभी का हमे इससे क्या तो यह गलत होगा...जब बात सड़को पर आ जाये तो वह आम हो जाती है निजी नही रहती...



Posted by sunita (shanoo) to हमारा वतन at September 6, 2007 12:48 PM

उन्मुक्त has left a new comment on your post "रोक दीजिए नग्नता का यह प्रदर्शन":

इसे रोकना मुश्किल है। इसके अतिरिक्त आप इसे जितना रोकेंगे यह उतना बढ़ेगी। शायद अनदेखा करना ही उचित होगा।



Posted by उन्मुक्त to हमारा वतन at September 6, 2007 8:21 PM
Shastri JC Philip ने आपकी पोस्ट " रोक दीजिए नग्नता का यह प्रदर्शन " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

आप ने कहा "असल में यह आयोजन पूरी तरह अश्लील लगता है।"

लगता है नहीं इनका लक्ष्य ही अश्लीलता की मदद से अपना धंधा करना है. नग्नता का बाजारू प्रदर्शन भारतीय संस्कृति के विरुद्ध है, एवं इसका विरोध होना जरूरी है -- शास्त्री जे सी फिलिप

मेरा स्वप्न: सन 2010 तक 50,000 हिन्दी चिट्ठाकार एवं,
2020 में 50 लाख, एवं 2025 मे एक करोड हिन्दी चिट्ठाकार!!



Shastri JC Philip द्वारा चिन्तन के लिए 6 सितंबर, 2007 11:15 पूर्वाह्न को पोस्ट किया गया

Neeraj नीरज نیرج ने आपकी पोस्ट " रोक दीजिए नग्नता का यह प्रदर्शन " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

सौंदर्य ईश्वरीय वरदान है. मनुष्य बुद्धि और पराक्रम अपने कर्म से प्राप्त कर सकता है किंतु सौंदर्य ईश्वरीय छाया है. धन्य हैं वे जिन्हें तन की सुंदरता मिली है. जो मन की सुंदरता की बात करते हैं वे अपने मन को सांत्वना मात्र देते हैं. इसलिए आइए.. धरती पर अवतरित सुंदरता की देवियों का स्तुतिगान करें.

यदि यह निंदनीय है तो काहे इतनी तस्वीर छापे मेरे भाई. सौंदर्य बोध बढ़ाओ. अश्लीलता और कला में बारीक़ अंतर है. इसे समझ विकसित कर समझा जा सकता है. बात आगे बढ़ी तो और टीपने आएँगे. तनुश्री का नाम लिए हो तो ये झेलिए - Tanushree Wallpapers



Neeraj नीरज نیرج द्वारा चिन्तन के लिए 6 सितंबर, 2007 1:00 अपराह्न को पोस्ट किया गया
Ankur Gupta ने आपकी पोस्ट " रोक दीजिए नग्नता का यह प्रदर्शन " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

मैं विनोद जी की बात से सहमत हूं.



Ankur Gupta द्वारा चिन्तन के लिए 6 सितंबर, 2007 10:13 अपराह्न को पोस्ट किया गया
अनूप भार्गव ने आपकी पोस्ट " रोक दीजिए नग्नता का यह प्रदर्शन " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

किस किस पर रोक लगायेंगे आप ? सड़क पर चलनें वाली उन लड़कियों पर भी जिन के वस्त्र आप को पसन्द नहीं हैं या आप के मूल्यों पर खरे नहीं उतरते ?
क्या आप वही पहन रहे हैं जो आज से ५० बरस पहले आप के दादा जी पहने करते थे ?
परिवर्तन समय की मांग है । मूल्य तय करनें का ठेका किसी एक को नहीं दिया जा सकता ।



अनूप भार्गव द्वारा चिन्तन के लिए 6 सितंबर, 2007 11:06 अपराह्न को पोस्ट किया गया

Rachna Singh has left a new comment on your post "रोक दीजिए नग्नता का यह प्रदर्शन":

these fashion shows are for geting export orders. once the order is achieved they are made in bulk depending on the price . garment / fashion industry and hometextile industry is a sorce to earn dollars . this is work / profession for the designers/ models/ buyers . like a teachers earn by teaching we earn by selling our expertise
you have commented on a trade about which i think you have made no study in depth
all the skin show that you are saying is part of a trade and before you critsize a trade please make a effort to see how much revenue is being earned by that trade



Posted by Rachna Singh to हमारा वतन at September 7, 2007 6:43 AM

Rachna Singh ने आपकी पोस्ट " रोक दीजिए नग्नता का यह प्रदर्शन " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

these fashion shows are for geting export orders. once the order is achieved they are made in bulk depending on the price . garment / fashion industry and hometextile industry is a sorce to earn dollars . this is work / profession for the designers/ models/ buyers . like a teachers earn by teaching we earn by selling our expertise .

you are commenting on a trade without making any indepth study of the trade . how many people earn and how much revenue they bring to the country is of no significance to you



Rachna Singh द्वारा चिन्तन के लिए 7 सितंबर, 2007 6:49 पूर्वाह्न को पोस्ट किया गया
Shastri JC Philip ने आपकी पोस्ट " ठीक ही फरमा रहे हैं सीताराम येचुरी ! " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

"सांसदों पर भी 'काम नहीं तो वेतन नहीं' का प्रावधान लागू होना चाहिए। "

यह एक बहुत अच्छा सुझाव है. काम करो, दाम लो!

-- शास्त्री जे सी फिलिप

मेरा स्वप्न: सन 2010 तक 50,000 हिन्दी चिट्ठाकार एवं,
2020 में 50 लाख, एवं 2025 मे एक करोड हिन्दी चिट्ठाकार!!



Shastri JC Philip द्वारा चिन्तन के लिए 10 सितंबर, 2007 11:19 पूर्वाह्न को पोस्ट किया गया
अजित has left a new comment on your post "ठीक ही फरमा रहे हैं सीताराम येचुरी !":

इस देश में कुछ भी ग़लत नहीं है डॉ saab :)



Posted by अजित to हमारा वतन at September 10, 2007 4:59 PM

deepanjali ने आपकी पोस्ट " सत्ता के कोपभाजन बने कलाम, शेखावत और यूपी के 12 आई... " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा.
ऎसेही लिखेते रहिये.
क्यों न आप अपना ब्लोग ब्लोगअड्डा में शामिल कर के अपने विचार ऒंर लोगों तक पहुंचाते.
जो हमे अच्छा लगे.
वो सबको पता चले.
ऎसा छोटासा प्रयास है.
हमारे इस प्रयास में.
आप भी शामिल हो जाइयॆ.
एक बार ब्लोग अड्डा में आके देखिये.



deepanjali द्वारा चिन्तन के लिए 25 सितंबर, 2007 4:03 पूर्वाह्न को पोस्ट किया गया
बोधिसत्व ने आपकी पोस्ट " संगति बुरी असाधु की .............! " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

बहुत अच्छा लिख रहे हैं मान्धाता जी। बधाई ....



बोधिसत्व द्वारा चिन्तन के लिए 9 अक्‍तूबर, 2007 6:48 पूर्वाह्न को पोस्ट किया गया
सत्येंद्र प्रसाद श्रीवास्तव ने आपकी पोस्ट " संगति बुरी असाधु की .............! " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

अच्छी जानकारी दी है



सत्येंद्र प्रसाद श्रीवास्तव द्वारा चिन्तन के लिए 9 अक्‍तूबर, 2007 9:01 पूर्वाह्न को पोस्ट किया गया
Sanjeet Tripathi has left a new comment on your post "सास मीरा और बहू आशा भोसले":

अफ़सोस जनक!!

हमारी श्रद्धांजलि उन्हें!!



Posted by Sanjeet Tripathi to हमारा वतन at October 16, 2007 1:28 AM

बोधिसत्व has left a new comment on your post "सास मीरा और बहू आशा भोसले":

जब मीरा के साथ ऐसा हो सकता है...तो साधारण के साथ क्या नहीं हो सकता ....पर साधारण शायद स्नेह के बंधन को इतनी आसानी से नहीं तोड़ते.....आप ने बहुत अच्छा लिखा...



Posted by बोधिसत्व to हमारा वतन at October 16, 2007 2:38 AM
Puneet Bindlish ने आपकी पोस्ट " रोक दीजिए नग्नता का यह प्रदर्शन " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

rachan singh wanted to say "whatever makes economic sense, she would do & let others do.." even that at the expense of our cultural heritage. Why only we need to be in western garb to showcase fabrics & designer trends. we have so much to showcase of our own. the countries like who are really making progress in true sense stick to their originality. Which is a lesson for pseudo-growing nations like india. We have the potential to make it big on our own ethos & heritage.



Puneet Bindlish द्वारा चिन्तन के लिए 17 अक्‍तूबर, 2007 9:17 अपराह्न को पोस्ट किया गया
मिहिरभोज ने आपकी पोस्ट " यह जो नंदीग्राम है - माकपा की बला और तृणमूल की संज... " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

माकपा का इतना लंबा राज्य आतंक के दम पर ही रहा है,पर आश्चर्य किसी मानवाधिकार संगठन ने इस मुद्दे को प्रभावी रूप से अभी नहीं उठाया.संभवतया ठेका उठने का इंतजार है



मिहिरभोज द्वारा चिन्तन के लिए 11 नवंबर, 2007 5:59 अपराह्न को पोस्ट किया गया
हर्षवर्धन ने आपकी पोस्ट " नंदीग्राम में सत्ता और पूंजी के मुखौटे में दिखे क... " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

आप कोलकाता में हैं। पूरी विस्तृत रिपोर्टिंग की है। बढ़िया है सारी सच्चाई लोगों को पता चलना चाहिए। मुझे तो पाकिस्तान औऱ पश्चिम बंगाल के हालात एक जैसे दिखने लगे हैं। आप भी देखिए
http://www.batangad.blogspot.com/



हर्षवर्धन द्वारा चिन्तन के लिए 13 नवंबर, 2007 5:54 अपराह्न को पोस्ट किया गया
संजय तिवारी has left a new comment on your post "तब तो बांग्लादेश भी लौट सकती हैं तस्लीमा !":

कहां गयी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता?



Posted by संजय तिवारी to चिन्तन at November 30, 2007 9:39 PM
swapandarshi has left a new comment on your post "प्रभाष जोशी, राजेंद्र यादव और उदयप्रकाश":

aapka dhanyavaad, inhe padhane ke liye.



Posted by swapandarshi to चिन्तन at December 3, 2007 8:49 AM

शैलेश भारतवासी has left a new comment on your post "प्रभाष जोशी, राजेंद्र यादव और उदयप्रकाश":

यहाँ उपलब्ध कराने का शुक्रिया। सोचको थोड़ा सा विस्तार मिला



Posted by शैलेश भारतवासी to चिन्तन at December 4, 2007 3:07 AM
संजय बेंगाणी has left a new comment on your post "बाबरी मस्जिद का तमाशा !":

विस्तृत जानकारी. बहुत सही.



Posted by संजय बेंगाणी to चिन्तन at December 6, 2007 9:04 PM
Sanjeet Tripathi has left a new comment on your post "कामरेड बुद्धदेव का अब राम से युद्ध !":

पहले पैराग्राफ की तीसरी चौथी पंक्ति में संशोधन कर लें ताकि पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री एम करूणानिधि न कहलाएं।



Posted by Sanjeet Tripathi to चिन्तन at December 7, 2007 6:02 AM
अनुनाद सिंह has left a new comment on your post "कामरेड बुद्धदेव का अब राम से युद्ध !":

कम्यूनिस्ट, मुसलमानों को तुष्ट करने के लिये कुछ भी कर सकते हैं।



Posted by अनुनाद सिंह to चिन्तन at December 7, 2007 8:31 PM
बोधिसत्व has left a new comment on your post "त्रिलोचन शास्त्री : हार गए जीने की जंग !":

त्रिलोचन जी को मेरा नमन......



Posted by बोधिसत्व to चिन्तन at December 9, 2007 11:28 AM
Rama has left a new comment on your post "त्रिलोचन शास्त्री : हार गए जीने की जंग !":

डा. रमा द्विवेदी said...

परम श्रद्धेय त्रिलोचन जी के निधन से हिन्दी साहित्य जगत की अपूर्णनीय क्षति हुई है,उनको कादम्बिनी परिवार,हैदराबाद का शत-शत नमन।



Posted by Rama to चिन्तन at December 9, 2007 8:04 PM
आभा has left a new comment on your post "विदा हुए त्रिलोचन":

त्रिलोचन जी को खोकर खुद को कंगाल सा पा रही हूँ....
क्या करूँ....



Posted by आभा to चिन्तन at December 10, 2007 11:47 AM
राजीव जैन Rajeev Jain has left a new comment on your post "क्या अश्वत्थामा जीवित हैं...?":

अश्‍वत्‍थामा का खैर जो भी हो
इस किले और इसके इतिहास से परिचित कराने के लिए साधुवाद



Posted by राजीव जैन Rajeev Jain to हमारा वतन at December 11, 2007 12:57 PM
Mired Mirage has left a new comment on your post "क्या अश्वत्थामा जीवित हैं...?":

दिलचस्प किस्सा है ।
घुघूती बासूती



Posted by Mired Mirage to हमारा वतन at December 11, 2007 2:47 PM
अभय तिवारी has left a new comment on your post "क्या अश्वत्थामा जीवित हैं...?":

रहस्य रोमांच की दुनिया..



Posted by अभय तिवारी to हमारा वतन at December 11, 2007 7:08 PM
Sanjeeva Tiwari has left a new comment on your post "अपने ही घर में हुए बेगाने":

कमाल है मान्धाता जी यह सब हमें विस्‍तार से नहीं मालूम था । आपकी पत्रकारिता की छबि बेहतर झलक रही है इस चिंतन में । धन्‍यवाद ।

मॉं : एक कविता श्रद्वांजली



Posted by Sanjeeva Tiwari to चिन्तन at December 12, 2007 7:03 PM
मिहिरभोज has left a new comment on your post "जानलेवा है त्वचा रोग भी !":

मेरी बात को अन्यथा न लें पर इस तरह के लेख बिना छान बीन किये नहीं लिखे जाने चाहिये,यहां जो भी लिखा गया हे सत्य का अंश मात्र तो है पर पूरा सच नहीं,किसी रोगी का आत्मविश्वास पैदा करने में चिकित्सक को महिनों लग जाते हैं पर इस तरह की सार्वजनिक सूचनाएं उनका विश्वास तोङ डालती है,सोरायसिस सर्वथा जानलेवा रोग नहीं है,मैं स्वयं एक चर्म रोग विशेषज्ञ हूं.



Posted by मिहिरभोज to चिन्तन at December 18, 2007 9:45 AM
Popular India has left a new comment on your post "ईद उल जुहा पर गायों की न दें कुर्बानी: दारुल उलूम...":

किसी भी पर्व पर या कभी भी हमें जीव हत्या नहीं करनी चाहिए
मांसाहार भोजन कहाँ तक उचित है?
मंथन : विजया दशमी और मांसाहार भोजन
मांसाहार भोजन : उचित या अनुचित
शाकाहारी भोजन : शंका समाधान
http://popularindia.blogspot.com



Posted by Popular India to हमारा वतन at December 20, 2007 8:19 AM
संजय तिवारी has left a new comment on your post "ईद उल जुहा पर गायों की न दें कुर्बानी: दारुल उलूम...":

निश्चय ही स्वागतयोग्य पहल.



Posted by संजय तिवारी to हमारा वतन at December 21, 2007 12:01 AM

महेंद्र मिश्रा has left a new comment on the post "आज का संसार":

बहुत बढ़िया सराहनीय

Post a comment.

Unsubscribe to comments on this post.

Posted by महेंद्र मिश्रा to दिल की आवाज़ at Friday, 21 December, 2007 6:12:00 PM IST


इष्ट देव सांकृत्यायन has left a new comment on your post "त्यौहारों का संविधान - मजहब बैर नहीं सिखाता":
बहुत अच्छा किया आपने इस विषय को आगे बढा कर. इसके पहले देवबंद ने एक और फतवा जारी किया था. हराम की कमाई वाली दावतों में शामिल न होने का. ऐसे सभी फैसलों और फतवों का स्वागत किया ही जाना चाहिए. कष्टकर बात यह है कि हमारी तथाकथित धर्म निरपेक्ष ताकतें ऊल-जलूल बातों का समर्थन जरूर करतीं हैं लेकिन उन बातों का जिनसे समाज में आपसी सौहार्द बढे कोई जिक्र तक नहीं करता. शायद उनका स्वार्थ मुस्लिम समाज के रूढिवादी और कट्टरपंथी बनाए रखने से ज्यादा आसानी से सधता है. उन्हें बेनकाब किए जाने की जरूरत भी उतनी ही ज्यादा है. Posted by इष्ट देव सांकृत्यायन to हमारा वतन at December 22, 2007 12:40 AM

अजित वडनेरकर has left a new comment on your post "सारसंसार की नई पठनीय सामग्री- स्वीनिया के कुत्ताखो...":
आपको हमारा मेल मिल ही गया होगा। कृपया ज़रूर जवाब दें।
Posted by अजित वडनेरकर to चिन्तन at December 25, 2007 3:28 PM


Mired Mirage has left a new comment on your post "पार्टीबाजों, इस विद्यालय से सीखो !":
विचार तो अच्छा लगा ।
घुघूती बासूती
Posted by Mired Mirage to चिन्तन at January 6, 2008 10:52 AM



शास्त्री जे सी फिलिप् has left a new comment on your post "हर धर्म का मूल : सात महापाप और महापुण्य !":
हर व्यक्ति को यह विश्लेषण जरूर पढना चाहिये !!
Posted by शास्त्री जे सी फिलिप् to हमारा वतन at January 7, 2008 10:17 AM
Sanjay Gulati Musafir has left a new comment on your post "हर धर्म का मूल : सात महापाप और महापुण्य !":


धन्यवाद
मेरे बहुत काम की जानकारी है।
Posted by Sanjay Gulati Musafir to हमारा वतन at January 7, 2008 10:32 AM


annapurna has left a new comment on your post "विविधभारती को बचाना होगा !":
बहुत अच्छा लेख।
साथ-साथ विविध भारती को बचाने के कुछ सुझाव भी अगर आप देते तो उस पर अच्छी चर्चा चल सकती थी।
मैं तो अपने विचार रेडियोनामा पर रखती हूं यहां मैं औरों के विचार जानना चाहती हूं।
अन्नपूर्णा



Posted by annapurna to चिन्तन at January 11, 2008 1:42 AM

Mired Mirage has left a new comment on your post "पचास रुपए रोज में दुनिया की सबसे सस्ती कार ‘नैनो’":

हम तो यह कार खरीद रहे हैं ।
घुघूती बासूती


Posted by Mired Mirage to हमारा वतन at January 11, 2008 10:04 AM
डा.मान्धाता सिंह has left a new comment on the post "कमीने तो हर डाल पर बैठे हैं गालिब........":

भाई विनीत जी कुछ उग्र हो जाने के लिए क्षमा चाहूंगा। मेरी प्रतिक्रिया इस बात के लिए ज्यादा थी कि जनसत्ता नाम सुनकर लोग हंस देते हैं। बाकी जवाब मेरी तरफ से आशीषजी ने इसी लेख की टिप्पणी में दे दिया है। अब रूपेशजी से मुखातिब हूं। हम लड़ नहीं रह रहे हैं बल्कि अपनी गलतफहमियां दूर करने की कोशिश कर रहे हैं। आपका नजरिया अब भी सही है क्यों कि इसी हालात पर यशवंतजी को इसी अंदाज में आपने जवाब दिया था। मेंने यशवंतजी से पूछा था कि आप भड़ास को किस मानदंड पर खरा उतरते देखना चाहते हैं ? बहरहाल अपनी बिरादरी के साथ ही हूं मैं। बहस बंद। जय भड़ास ।
डा. मान्धाता सिंह
कोलकाता


दिलीप मंडल has left a new comment on your post "बड़ाबाजार में आग, नजरिया और कोलकाता के मारवाड़ी":
डॉक्टर साहेब, बढ़िया सामग्री दी है। मारवाड़ियों के बारे में बनी रूढ़ियों पर फिर से विचार करने को प्रेरित करता आलेख। Posted by दिलीप मंडल to हमारा वतन - हमारा समाज at February 3, 2008 9:21 PM


डा०रूपेश श्रीवास्तव has left a new comment on the post "बड़ाबाजार की आग, मारवाड़ी और पत्रकार":
निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छंवाय....
ये साला मैं कब समीक्षा ,आलोचना और निंदा मे अंतर समझ पाऊंगा ?
मुझे पत्रकारिता के एक पुरोधा ने कहा था कि हो सकता है कि मैं तुम्हारी इसी भी बात से सहमत न रहूं किन्तु यदि कोई तुम्हारा बोलने का अधिकार छीनेगा तो मैं तुम्हारे साथ उससे लड़ूंगा...


डा.मान्धाता सिंह has left a new comment on the post "बड़ाबाजार की आग, मारवाड़ी और पत्रकार":
डा. रूपेशजी, बहुत अच्छा लगा आपका सुझाव। मगर आप की कुछ बातों से मैं सहमत नहीं हूं। मसलन बड़ाबाजार पर अपना लिखा लेख जारी न करके सीधे इसे परोसा तो सिर्फ इसलिए कि आप वह भी जानें जो इस किस्म के लोग कहते हैं। दूसरी बात यह कि एक विशेष समदाय के लिए लिखे लेख में लेखक का जो आक्रोश दिखता है उसे शायद संपादित करने की नहीं बल्कि आप जैसे लोगों से इस नजरिए पर बेहतर टिप्पणी की जरूरत थी। ये क्या कहना चाहते हैं वह इनके लेख में बहुत स्पष्ट है। नाराज पत्रकारों से भी इसी लिए हैं क्यों कि कुछ अखबारों की भूमिका भी ऐसी ही थी। कोलकाता शहर में बड़ाबाजार सरकारी उपेक्षा और अव्यवस्था की वह त्रासदी झेल रहा जिसे कुछ शब्दों में शंभू चौधरी ने कहने की कोशिश की है। यह अलग बात है कि भुक्तभोगी के पास कम धैर्य होता है। आपसे वैचारिक मरहम और उनके गलत नजरिए पर सार्थक टिप्पणी की उम्मीद थी। आपने शायद गुस्से में न मुझे बख्सा और न लेखक को। फिर भी तल्ख टिप्पणी जैसी भी हो मुझे अच्छी ही लगती है। उम्मीद है आप सार्थक निंदक की भूमिका छोड़ेंगे नहीं। धन्यवाद।

rakee has left a new comment on your post "प. बंगाल में बर्डफ्लू फैला":
i have seen your web page its interesting and informative.
I really like the content you provide in the web page.


डा.मान्धाता सिंह has left a new comment on the post "एक दलित पत्रकार की तलाश - भाग 2":
दिलीपजी सिर्फ गिनने के लिए अगर दलित पत्रकार की बात की जा रही है तो सन्मार्ग के प्रसादजी को भी शामिल कर लीजिए। कुछ और अखबारों में भी मिल जाएंगे मगर मुखिया कब बनेंगे। यानी सचमुच प्रभावशाली हो उनका अधिकार और पद। खैर छोड़िए, मायावती जी ने निजी संस्थानों में आरक्षण को कारगर तरीके से लागू करने वादा किया है मगर कितना कर पाएंगी जबकि पासवान जैसे नेता ही उनके विरोध में खड़े हो रहे हैं। शायद दलितों का भी सवर्ण वर्ग तैयार हो गया है।

दिलीप मंडल has left a new comment on the post "एक दलित पत्रकार की तलाश - भाग 2":
सही चिंता है डॉक्टर साहब। किसी का दलित होना अपने आप में उसे बदलाव का पक्षधर नहीं बना देता। पासवान और जगजीवन राम इसके उदाहरण हैं।


Mrs. Asha Joglekar has left a new comment on your post "मैंग्रोव नष्ट हुआ तो सुंदरवन भी नहीं बचेगा":
जानकारी भरे सुंदर लेख के लिये आपको बहुत बहुत बधाई ।
Posted by Mrs. Asha Joglekar to हमारा वतन - हमारा समाज at February 13, 2008 6:45 AM


संजय तिवारी has left a new comment on your post "80 करोड़ लोग समझते हैं हिंदी मगर विश्व की दस भाषाओं...":
चिंताजनक बात. शायद चार-पांच सालों में यह स्थिति बदले.
वैसे भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और हिन्दी उसकी आधिकारिक भाषा फिर भी आज तक यूएन ने उसको घास नहीं डाला है.



दैनिक फुर्सत में फुरसत has left a new comment on your post "इंटरनेट पर अभी फिसड्डी ही है हिंदी !":

श्रद्धेय, डाक्‍टर साहब, आपकी राष्‍ट्रवादी विचारधारा को साधुवाद । एक राष्‍ट्रवादी विचारक हिन्‍दी को लेकर चिंतित क्‍यों नहीं होगा । बहुत विस्‍तृत आकड़े आपने उल्‍लेख्‍ा किये हैं वाकई सोचने पर मजबूर कर रहे हैं। पर मुझे लगता है कि विदेश में बना अंतरताना यंत्र आज भारत में बड़ी संख्‍या में उपलब्‍ध है और आम भारतीय की पहुंच में तो है, रही बात भाषा की, हमें जरुरत पढ़ते ही हिन्‍दी चिट्रठाकारी शुरु हो गई, बहुत बड़ी संख्‍या में हिन्‍दी जैसी भाषा जिसे लिखने में कठिनता आती है, जहां आंग्‍लभाषा के शब्‍दों के मुकाबले बहुत अधिक जटिलता है फिर भी आज हमने आंग्‍लभाषा के सहारे ही आम भारतीयों तक हिन्‍दी लिखने के तरीके प्रसारित कर लिये हैं, सकल भारतीय सात्विकवृत्ति ही हमें दूसरे कोने से देखने में पिछड़ी लगती है, जबकि हम अपने स्‍थान बहुत आगे है, आज चूंकि अंतरजाल आया है तो हम पीछे लग रहे हैं वरना तो हमारी भाषा आपके आकड़ो के अनुसार ही बहुत विस्‍तृत क्षेत्र में मौजूद हैं हम पीछे कहां है ? अब अंतरजाल पर कुछ ही समय पर क्‍या आप जैसे राष्‍ट्रवादी विचारक इस खुशी से झूम नहीं रहे कि कितने हिन्‍दी भाषियों ने मातृभाषा को अपनाकर चिट्रठाकारी शुरु कर दी है। शीघ्र ही कछुआ चाल से ही सही, अरबों पृष्‍ठ जाल पर हिन्‍दी के होंगे जिसमें आप जैसे राष्ट्रवादियों का महत्‍वपूर्ण योगदान होगा। साधुवाद एक अच्‍छे लेख के लिये। आनन्‍द गांधी efursat.blogspot
Posted by दैनिक फुर्सत में फुरसत to चिन्तन at February 19, 2008 9:29 AM


आलोक has left a new comment on your post "कौन सी जिम्मेदारी निभा रहे हैं हिंदी ब्लागर ?":
मान्धाता जी,
सिर्फ़ चिट्ठे ही नहीं हैं अन्तर्जाल पर। और भी बहुत कुछ है। मञ्च, सवाल जवाब के स्थल, समाचार समूह आदि। इन सब का सामूहिक असर होगा।
आलोक
Posted by आलोक to हमारावतन - हमारासमाज at February 25, 2008 7:49 AM


Samrendra Sharma has left a new comment on your post "कौन सी जिम्मेदारी निभा रहे हैं हिंदी ब्लागर ?":


बिल्कुल ऐसा होना चाहिए मै तैयार हु
Posted by Samrendra Sharma to हमारावतन - हमारासमाज at February 25, 2008 8:38 AM


मन्धाता जी
अभी अभी आप का ब्लोग देख कर आ रही हूँ, बहुत ही रोचक है, ई-मेल से स्बस्क्राइब करने का तरीका नहीं मिला, नही तो अपने ब्लोग रोल में जोड़ लेती…शुभकामनाएं
अनिता--
http://anitakumar-kutchhumkahein.blogspot.com/


MANISH RAJ has left a new comment on your post "आज का क्षत्रिय":

EK KSHATRIY HONE KE NAATE MUJHE HARDIK KHUSHI HUI KI APNE IS JAATI KO ANTARJAAL PAR CHARCHA KA VISHAY BANAYAA HAI.
APEKSHIT TATHY PRASTUT KARNE KA PRAYAS KARUNGA.
Posted by MANISH RAJ to हमारावतन - हमारासमाज at March 11, 2008 8:15 AM



Amit has left a new comment on your post "11 अंकों का होगा मोबाइल नंबर !":

मोबाइल उद्योग में जिस तरह से नित नई प्रौद्योगिकी आ रही है उसके मद्देनजर वह दिन दूर नहीं लगता जब कीपैड की जगह सिर्फ टचस्क्रीन का वक्त आ जाए। जनाब सिर्फ़ टच स्क्रीन वाले फोन काफ़ी समय से बाज़ार में हैं। सोनी एरिकस्सन का P990i और P910i आया था जिसमें कीपैड तो था लेकिन उसमें टच स्क्रीन भी थी और स्क्रीन पर वर्चुअल कीपैड भी उपलब्ध हो जाता था। O2 के XDA सीसीज़ के फोन में कीपैड होता ही नहीं, सिर्फ़ टचस्क्रीन ही होती है। पिछले वर्ष Apple Computers ने अपना बहुचर्चित iPhone निकाला जो कि पूरा टच स्क्रीन वाला ही है बिना कीपैड के। उसके मुकाबले पर LG ने अपना Prada निकाला और हाल ही में सैमसंग भी वैसा ही फोन निकाल लाया है। और रोटेशन के अनुसार स्क्रीन का माल बदलने की बात तो वह भी बाज़ार में उपलब्ध है। उदाहरण के लिए नोकिआ N95 8GB वाले फोन को लीजिए, उसमें आप कोई वीडियो देख रहे हैं, फोन को सीधे पकड़ने की जगह आप साइड में टेढ़ा कर देते हैं तो फोन अपने आप वीडियो को घुमा देगा ताकि वह आपको सीधा ही दिखाई दे!!iPhone में भी शायद यह सुविधा है!!
Posted by Amit to हमारावतन - हमारासमाज at March 16, 2008 12:24 PM


ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ has left a new comment on your post "सावधान ब्लागर्स, जेल भी हो सकती !":

आपकी चिंता जायज है।
एक निवेदन- कृपया कमेंट बॉक्स से “वर्ड वेरीफिकेशनद्ध हटा दें, इससे इरीटेशन होती है।
Posted by ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ to चिंतन at March 17, 2008 3:16 AM



JaCk has left a new comment on your post "आजादी के लिए लहूलुहान तिब्बत !":

Greetings from Italy :d

please visit my blog
Posted by JaCk to चिंतन at March 18, 2008 1:58 PM


Anonymous has left a new comment on your post "सिर्फ धनी वर्ग के लिए ही विश्वस्तरीय संस्थान की वक...":

Well, since 'independence' the "Votethursties" have unofficially notified upper class as untochables and they would never ever ponder on the plight A very poor brahmin's child, having all the brains but not enough money.

On the other hand, having not much brains is never going to be a problem to any millionair's child to buy Mata Saraswati!!!

Posted by Anonymous to हमारावतन - हमारासमाज at March 19, 2008 1:38 AM


दिलीप मंडल has left a new comment on your post "अब इस चमन में तुम्हारा गुजारा नहीं !":

...ये देश हुआ बेगाना। डॉक्टर साहब, अच्छी जानकारी मिली इस लेख से। धन्यवाद। तस्लीमा मुद्दे पर वाममोर्चा की कलई उतर गई है।
Posted by दिलीप मंडल to चिंतन at March 19, 2008 12:25 PM




बेदुनिया के कालचिंतन पर आपकी उपस्थिति

Comment from ravindra Vyas on 21 Mar 2008 13:22:02 IST in response to:
अलविदा तसलीमा, भारत छोड़ कहीं और बसो जाकर

काल चिंतन में मन्धाता सिंह का ब्लाग पढा। मैं उन लोगों में शामिल हूँ जो यह मानते हैं कि तस्लीमा नसरीन एक औसत दर्जे की लेखिका हैं। पहली बार जब वे अपने उपन्यास लज्जा के कारण सुर्खियों में आई थी तब मैंने बडी हसरत से पढना शुरू किया था और बडी मुशकिल से इसे पूरा कर पाया था। तब मुझे ऎसा लगा था कि इसमें ऎसा क्या है जिसकी वज़ह से यह चर्चा में है। इसमें न तो लैंग्वेज को लेकर सचेतपन है और न ही अपनी बात को लेकर नए ढंग से लिखने का जोखिम। कहानी लगभग सपाट है और यथार्थ की रूढ अभिव्यक्ति है। लेकिन मैं तस्लीमा को इसलिए सलाम करता हूं कि वे अपने लेखन के प्रति न केवल प्रतिबध्द हैं बल्कि निरन्तर रचनारत हैं। जर्मनी के लेखक हाइनरिख ब्योल ने लिखा है कि एक रचनाकार की मृत्यु उसकी सबसे खराब रचना में नहीं होती बल्कि तब होती है जब वह रचने का अनिवार्य जोखिम लेना छोड़ देता है। कहने दीजिए तस्लीमा ने रचने का अनिवार्य जोखिम बखूबी उठाया है और वे तमाम प्रतिकूल परिस्थियों में लगातार लिख रहीं हैं। अपने आंतरिक और बाहरी यथार्थ के हाहाकार को वे जैसा भी रच रहीं हैं वह इस मायने में अर्थ रखता है कि उनका लेखन निर्भीक का लेखन है। प. बंगाल सरकार ने उनके साथ अपमानजनक व्यवहार किया है। उनका यूं हमारा देश छोड़कर जाना हमारे लिए शर्मनाक है।


Comment from Keanu on 19 Mar 2008 14:16:01 IST in response to:
भारत में सांस्कृतिक एकता का अलख जगाया था चैतन्य ने

Commies harp that for masses, religion is opium. But if this opium brings harmony, peace and love then rather than the dictatorship of Stalin, the "Unmadi" state of Shree Chaitanya is always welcome! People like Shree Chaitanya have nothing to impose, nothing to prove, and nothing to make others obey forcefully for their life itself is the light which shows myriads of troubled people the WAY to peace, love and harmony and people lovingly follow their path with the key words being "own volition".

Comment from Keanu on 18 Mar 2008 13:02:58 IST in response to:
तिब्बत की आजादी का सवाल

"Samarath Ko Nahin Dosh Gusaeen" - An alltime apt short liner by TulasidasJi. China's theories, however irrational they may be, become valid because of its military power. Otherwise, even the cultural difference between Communist China and Unique Tantrik Buddhism of Tibet who believe strongly in re-incarnation makes a sifficient cause for Tibet to be a Separate Sovereign State. The people of the land do not want Communist Control. It is only with Violent use of Force, that China has got Tibet otherwise the referendum is Blatantly against China. It is a pity that rest of the world is unable to help preserve this sterling Culture of Non-Violent Tibetans, who have never ever resorted to Bombings or terrorist attacks or any means of violence. In fact, from the perspective of these non-violent Tibetans, China is a Terrorist State.

Comment from Anonymous on 06 Mar 2008 22:50:48 IST in response to:
उजड़ी हुई मुंबई का सपना देख रहे हैं बाल ठाकरे !

मुम्बे मए आ कर बात करो तो मजा है. बिहार मे रह कर कय बात करते हो.

Comment from Anonymous on 06 Mar 2008 13:04:35 IST in response to:
उजड़ी हुई मुंबई का सपना देख रहे हैं बाल ठाकरे !

"एक बिहारी सब पे भरी" बाल ठाकरे सुधर जाओ तुम्हे नही मालुम जब एक बिहारी सरकता है तो सब पे भारी होता है. तुमने जो शेर लिखा है पढ़ कर आंनद आया - अब मेरा शेर सुनो उङीया , तेलगु कपटी चोर , महा मराठी , महामादर (आगे क्या लिखु आप लोग खुद हि समझदार है) मैं ना तो किसी राजनितिक दल से हु और ना हि कोई नेता हु. मै सबसे पहले एक भारतीय हु.फिर एक बिहारी हु .तुम नेता लोग जो भी राजनिती करनी है करो लेकिन एक बात जान लो "एक बिहारी सब पे भरी" नोट:-{यहाँ पर तेलगु तथा उङीया क उपयोग केवल इस शेर को सार्थक बनाने के लिये किया गया है क्रिपा कर के बुरा ना माने } डॉन

Email sent by sudhakar mishra [sudhakar_mishra@webdunia.com] on portal: http://chintan.mywebdunia.com/

लेखक महान लेखक

महान आप एक महान लेखक हैं आप की रचना देश भक्ती की मिशाल हैं . आप सत्य को लिखने वाले महान लेखल हैं शुभ कामनायेkaamanaaye

Comment from Anonymous on 25 Feb 2008 19:26:13 IST in response to:
पाकिस्तान में ब्लागरों की अहमियत

आपने आंखे खोल दी सही है हर बार पाकिस्तानीयों का मअजाक उडाने के बजाय इस बार कुछ सिखना चाहिए... कोशिश की जाएगी की हम भी इस प्रकार की कोई मुहिम शुरू करें

Comment from Anonymous on 18 Feb 2008 23:53:50 IST in response to:
जलती रहे ब्लागर्स मशाल

डा साहब बहुत रोचक वर्णन रहा ब्लोग की सालगिरह मुबारक हो

Comment from sachin sharma on 17 Feb 2008 21:40:55 IST in response to:
सेतुसमुद्रम बनाम इतिहास राम के सेतु का

शानदार लेख लिखा है..इसे लेख तो क्या कहूं, यह अपने आप में पूरा एक शोधपत्र है.....आपने निश्चित ही बढ़िया होमवर्क किया है.....बहुत सारी बातें बताई हैं....विषय को कापई विस्तार दिया है.....अच्छा लिखने के लिए बधाई....।

Comment from sachin sharma on 11 Feb 2008 21:00:05 IST in response to:
समुद्र लील सकता है कोलकाता को

बहुत अच्छी बात उठाई है......रुपए पैसे के कारण आदमी को अब प्रकृति की चिन्ता नहीं रही....सब अपनी-अपनी देख रहे हैं......लेकिन हमें इस बारें में गंभीरता से सोचना होगा....अच्छे विषय के लिए साधुवाद..।

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