Friday 25 April 2008

बड़ा दुखदायी मर्ज है कब्ज

कहते हैं कि आधी बीमारी की जड़ खराब हाजमा का होना है। अगर खाना ठाक से पचता नहीं और कब्ज की शिकायत है तो मानकर चलिए कि आपने कई रोगों को बुलाना शुरू कर दिया है। इस मायने में मुझे बचपन के कुछ ऐसे मामले याद हैं जो तब तो समझ में नहीं आए मगर आज उन मरीजों का दुख समझ पाया हूं जो रोते हुए मेरे पिताजी के पास आते थे और कहते थे कि उन्हें बचा लीजिए।
पहले बता दूं कि मेरे पिताजी श्री शिवगोबिंद सिंह एक नामी वैद्य थे। उनको काशी नरेश से वैद्य शिरोमणि की उपाधि मिली थी। काशी से ही आयुर्वेदाचार्य की डिग्री लेकर उत्तरप्रदेश के आजमगढ़ व गाजीपुर जिले की सीमा पर स्थित गांव गदाईपुर में दवाखाना खोली थी। हमलोग पिताजी की मदद में रहते थे क्यों कि दिन भर मरीज आते थे और कुछ दवाएं मरीजों से ही पिताजी बनवाते थे। पहले उन्हें कुछ जड़ी लाने को कहते थे फिर वहीं उससे उनकी दवा बनवाते थे।वैसे तो पिताजी कई रोगों के विशेषग्य थे मगर यहां कब्ज के उन मरीजों की बात कर रहा हूं जिनका दुख तब समझ में नहीं आया था। अफसोस यह है कि पिताजी अब इस दुनिया में नहीं हैं। मगर उनकी उन मरीजों को दी गई नसीहत अब भी कानों में गूंजती है।
अब मैं खुद कब्ज का मरीज हूं तो और भी समझ में आ रहा है कि यह कितना दुखदायी मर्ज है। कोई भी ऐसा मरीज नहीं था जो बाद में लौटकर पिताजी के चरण छूकर यह न कहा हो कि-आपने उन्हें नया जीवन दिया है। कब्ज की इसी महामारी के बारे में वेब दुनिया में एक जगह पढ़ रहा था तो बहुत सारी बातें पिताजी की नसीहतों से मिलती जुलती लगीं। आप भी इसे आजमाएं। यह भी किसी प्राकृतिक चिकित्सा के पक्षधर चिकित्सक की ही सलाह है। पिताजी की दवाएं तो याद नहीं अन्यथा वह भी आप लोगों को बताता। यह हमारा दुर्भाग्य है कि हम उनका अनुगमन नहीं कर पाए। मेरे पिताजी स्पष्ट तौरपर मानते थे कि कुछ ऐसे रोग हैं जिनका समुचित इलाज सिर्फ आयुर्वेद में ही उपलब्ध है। एलोपैथ को रोग दबाने वाला इलाज बताते थे। कब्ज भी इसी तरह का रोग है।

पर्यावरण प्रदूषण के साथ ही मानव नई-नई बीमारियों से जूझने के लिए विवश हुआ है। आ‍धुनिक जीवन शैली के चलते कब्ज नामक बीमारी ने लगभग 50 प्रतिशत से ज्यादा लोगों को येन-केन प्रकारेण अपनी गिरफ्त में ले लिया है।तमाम तरह के चूर्णों के बावजूद राहत की चाहत अपूर्ण ही रह जाती है।
प्रदूषण के इस नवयुग में दवाइयाँ कब्ज से निजात कदापि नहीं दिला सकती हैं। कुछ प्राकृतिक नुस्खे हैं जो कब्ज के रोगियों को शीघ्र राहत दे सकते हैं। आप भी इन्हें आजमा कर देखिए-----
• सुबह-सुबह बिना मुँह (कुल्ला किए बिना) धोए, एक से चार गिलास पानी पीना शुरू करें।
• शौच और मुख मार्जन से निपटकर 5-7 मिनट के लिए कुछ शारीरिक कसरत (शरीर संचालन) करें।
• दोनों समय के भोजन में सलाद (खीरा ककड़ी, गाजर, टमाटर, मूली, पत्ता गोभी, शलजम, प्याज, हरा धनिया) थोड़ी मात्रा में ही सही, अवश्य शामिल करें।

• शाम का भोजन रात में कदापि न लें। याद रखें, आँतें सूर्य की मौजूदगी में ही अपनी गति बरकरार रख पाती हैं। पाचन की क्रिया का आधार ही आँतों की गति है। अत: कोशिश करें कि सूर्यास्त के पूर्व या सूर्यास्त के कुछ समय बाद तक भोजन कर लें। यह असंभव हो तो भोजन में रेशेदार (छिलके वाली मूँग की दाल, भिंडी, गिल्की, पालक, मैथी, पत्ता गोभी, दलिया, सलाद, फल) पदार्थ अवश्य लें और भोजन के पश्चात कम से कम एक किलोमीटर पैदल चलें ताकि आँतें कृत्रिम तरीके से गति को प्राप्त हों।
• रात्रि में सोने से पूर्व यथाशक्ति गरम पानी एक गिलास भरकर (200-250 मिली) अवश्य पिएँ। पानी पीने के पूर्व एक चम्मच खड़ा मैथी दाना (पहले से साफ धुला-सूखा) अवश्य खाएँ।
• रात्रि में 7 से 11 के मध्य धुली हुई मनुक्का किशमिश आधा गिलास पानी में गला दें। गिलास काँच का हो। सुबह मनुक्का को बीज सहित एक-एक कर, खूब चबाकर खा लें और वह पानी पी जाएँ। इसके विकल्प के रूप में दो अंजीर भी- इसी तरह भिगोकर उपयोग किए जा सकते हैं।
• कब्जियत यदि ज्यादा ही कष्टप्रद हो रही हो तो प्रात: बिस्तर छोड़ने से पूर्व लेटे-लेटे ही कल्पना करें कि आपकी आँतों में गति हो रही है और यह गति आँतों में मौजूद मल को लगातार आगे खिसकाती जा रही है। इस कल्पना को कुछ ही दिनों में आप साकार रूप में देख सकेंगे। यह विश्वास कीजिए।
• कब्जियत के लिए दवा के रूप में कुछ लेना चाहें तो आठ परत सूती कपड़े से छाना हुआ 25-40 मिलीमीटर गोमूत्र (देशी गाय का) नियमित रूप से लें। स्वमूत्र भी शर्तिया फायदा करता है या फिर रात में आधा कप चाय में चिकित्सक की सहमति से आवश्यकतानुसार 1 से 5 चम्मच अरंडी का तेल मिलाकर पी जाएँ।
• पेट के बल लेटकर पिंडलियों को ताकत से दबवाएँ। इस हेतु सरसों के तेल का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
• ठोड़ी पर दो से तीन मिनट के लिए अँगूठे से दबाव डालें। ऐसा पाँच मिनट के अंतर से दो-तीन बार करें।
• संभव हो तो योगाचार्य से सीखकर अग्निसार क्रिया या अर्द्ध शंख प्रक्षालन करें।

याद रखिए, शौचालय में बैठकर अखबार-मैग्जिन न पढ़ें, गीत-मोबाइल न सुनें। हमारे ‍मस्तिष्क में शरीर की विभिन्न क्रियाओं के लिए केंद्र (स्विच) हैं। आप गाने सुनेंगे, खबरें पढ़ेंगे तो मस्तिष्क के लिए ‍मल विसर्जन दोयम दर्जे का हो जाएगा और वह खबर आपको लंबी प्रतीक्षा के बाद मिलेगी, जिसके लिए खासतौर पर आप शौचालय आए थे।

गाने और खबरों में तल्लीन मस्तिष्क शायद मल उत्सर्जन के विषय में कुछ इस तरह का संदेश आपको पहुँचाने की कोशिश करेगा- ‘यह क्रिया कतार में है, कृपया प्रतीक्षा कीजिए।‘ या यह भी हो सकता है 30 से 45 मिनट तक अखबार पढ़ने के बाद आँतों से यह संदेश प्राप्त हो। यदि संभव हो तो भारतीय शैली में ही यह क्रिया निपटाएँ, पिंडलियों का दबना और जाँघों का पेट पर दबाव आँतों (डिसेन्डिंग और एसेन्डिंग कोलन) और मलाशय को गति प्रदान करता है।
शौच करते समय दाँतों को परस्पर दबाने (भींचने) से भी पेट की मांसपेशियों में संकुचन होता है, जिससे आँतों पर दबाव पड़ता है। कब्ज नामक असुर आपके कारण ही जन्मा है, इसके वध के लिए दवा अवतरण नहीं स्वयं प्रयास करे तभी इसका मर्दन हो सकेगा, अन्यथा सोचते रह जाएँगे।

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