Monday, 14 April 2008
अब सूरज देवता भी निहार पाएंगे भोले को, काफी बड़ा हो गया काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर
कहते हैं भगवान शिव के त्रिशूल पर बसी है काशी नगरी। इसी काशी नगरी में भोले के मंदिर में किसी पर्व पर दर्शन तो मारामारी करके किसी तरह से भक्त कर लेते थे मगर अपने आराध्य के भजन-कीर्तन में शामिल होना या वहां ध्यान लगाने की ईच्छा मन में लिए ही भीड़ से किसी तरह बाहर निकल आना पड़ता था। मगर अब आप कीर्तन में भी शामिल हो सकते हैं और ध्यान भी लगा सकते हैं। परिसर को अब काफी बड़ा कर दिया गया है और आम दर्शनार्थियों के लिए खोल भी दिया गया है।
वाराणसी के करीब 200 वर्ष प्राचीन विश्व प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर के विस्तार के बाद १४ अप्रैल २००८ को पहली बार गर्भगृह में भगवान के 'ज्योतिर्लिंग' पर सूर्य की रोशनी पहुँची और यह छटा देखकर हजारों भक्त भाव विभोर हो गए। वर्ष 1780 में अहिल्याबाई होल्कर द्वारा निर्मित प्राचीन काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर का विस्तार कर दिया गया है। समीप के दो अन्य शिव मंदिरों के परिसरों को समाहित करने के बाद अब इसका क्षेत्र लगभग साढ़े आठ हजार वर्ग फुट हो गया है।
काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के अध्यक्ष एवं वाराणसी के मंडलायुक्त नितिन रमेश गोकर्ण ने मीडिया को बताया कि नए परिसर का निर्माण कार्य प्राचीन काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर की कला एवं स्थापत्य के अनुरुप विशेषज्ञों की राय से पिछले लगभग सात माह से जारी था। इसके लगभग पूर्ण होने पर आज इसे प्राचीन काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर में समाहित कर दिया गया। प्राचीन काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर एवं ताड़केश्वर मंदिर परिसर को अलग करने वाली दीवार को आज जैसे ही हटाया गया काशी विश्वनाथ मंदिर का गर्भगृह सूर्य की रोशनी से नहा गया। इस नयनाभिराम दृश्य को देखकर उपस्थित हजारों भक्त आनंदित हो उठे।
प्राचीन काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर में भगवान विश्वनाथ के गर्भगृह की परिक्रमा के लिए महज दो से तीन फीट का एक गलियारा मौजूद था जिससे भक्तों को परिक्रमा में बहुत कठिनाई होती थी। लेकिन नवनिर्मित परिसर के प्राचीन मंदिर परिसर में समाहित हो जाने के बाद भगवान विश्वनाथ का परिक्रमा स्थल भी वृहद हो गया और प्राचीन मंदिर परिसर में चारों ओर सूर्य की रोशनी आने लगी।
नवनिर्मित परिसर में भगवान विश्वनाथ के गर्भगृह के ठीक सामने एक विशाल भजन मंडप बनाया गया है जहाँ बैठकर भक्तगण काशी विश्वनाथ की आरती कर सकेंगे। प्राचीन परिसर में बहुत कम सँख्या में भक्तगण भगवान विश्वनाथ की आरती में शामिल हो पाते थे। इस परिसर में भजन मंडप के दोनों तरफ पर्याप्त परिक्रमा स्थल छोड़कर विशाल साधना एवं ध्यान स्थल बनाए गए हैं, जिसकी दीवारों पर शिव से जुडे़ पौराणिक आख्यानों को सफेद संगमरमर की दीवारों पर अंकित करने का काम किया जा रहा है।
काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एसएन त्रिपाठी के मुताबिक नए परिसर का कार्य पूर्ण हो जाने के बाद विश्वनाथ मंदिर परिसर में एक साथ कम से कम 500 से 1000 तक भक्त भगवान शिव के दर्शन और पूजन कर सकेंगे। मंदिर न्यास के अध्यक्ष गोकर्ण ने बताया कि भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शनार्थियों की भारी भीड़ की सुविधा को ध्यान में रख कर ही मंदिर न्यास ने पिछले वर्ष बैठक में परिसर के विस्तार का फैसला किया था।
दो परिवर्तनों ने विश्वनाथ मंदिर में दर्शन और चढ़ावा को सुलभ बना दिया है। पहला यह कि काशी विश्वनाथ के प्रसाद की आनलाइन बुकिंग। इससे दुनिया के किसी कोने में भगवान शिव के भक्तों को दर्शन व प्रसाद आनलाइन उपलब्ध हुआ है। दूसरा परिसर का विस्तार। संकरा होने के कारण सुरक्षा के लिहाज से भी यह मंदिर संदेह के घेरे में आने लगा था खासतौर पर जब से आतंकवादियों के बनारस के संकट मोचन परिसर, कचहरी और कैंट स्टेशन पर हमले के बाद से हर त्यौहारों पर काशी विश्वनाथ मंदिर चिंता का विषय बन जाता है। इसकी एक वजह जगह का संकरा होना भी था। प्रशासन के सुरक्षाबल के जवान भारी तादाद में तैनात करना भी मुश्किल होता था मगर अब इतनी जगह हो गई है कि सुरक्षा के लिहाज से नजर रखना भी आसान हो गया है। मंदिर में भीड़ होनी तो मामूली बात है क्यों कि ऐसा कौन है जो काशी पधारे और भोले बाबा के दर्शन न करे ? तो फिर हर हर महादेव। आप भी दर्शन करिए सूरज देवता की उपस्थिति में आदिदेव महादेव के।,
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