सत्ता जिससे नाखुश हो तो उसकी खैर नहीं? जैलसिंह से इंदिरागांधी नाराज हो गईं थी तो उन्हें ऐसा आवास मिला था जिसमें आए दिन सांप निकलते थे। उस वक्त कई समाचार माध्यमों ने शासन के किसी निवर्तमान राष्ट्रपति के प्रति ऐसे रवैए की निंदा भी की थी। हालांकि यह दंश झेलने के लिए जैलसिंह ज्यादा दिन तक जिंदा भी नहीं रह पाए। अब ऐसी मुसीबत फिर पूर्व राष्ट्रपति ए. पी. जे. अब्दुल कलाम और पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावतके सामने आ खड़ी हुई है। वजह साफ है। कलाम ने वैसा नहीं किया जैसा केंद्र की सत्ताधारी यूपीए चाह रही थी और शेखावत तो हैं ही विरोधी खेमे के। कलाम ने अपने रवैए से सोनिया समेत अन्य नेताओं को नाराज किया। आपको याद होगा कि किसी राष्ट्रपति चुनाव में राजभवन राजनीति का इतना बड़ा अखाड़ा नहीं बना था। सत्ताधारी बहुसंख्यकों ने इसके लिए कलाम को दोषी माना। नतीजा सामने है। दोनों को अपने-अपने पदों से इस्तीफा दिए एक महीने से अधिक का वक्त गुजर चुका है लेकिन प्रशासन उनके आवासों को तैयार नहीं कर पाया है। 75 वर्षीय कलाम दिल्ली छावनी में 'हाई रिस्क कैटिगरी ऑफिसर्स हट' में रह रहे हैं। आर्मी चीफ जनरल जे. जे. सिंह ने 25 जुलाई को राष्ट्रपति का पद छोड़ने के बाद कलाम को यह आवास मुहैया कराने की पेशकश की थी। तीनों सेनाओं के पूर्व सर्वोच्च सेनापति ने सिंह की इस पेशकश को स्वीकार कर लिया और उसके बाद सेना ने इस आवास को विशेष रूप से कलाम के लिए तैयार किया। कलाम को जेड प्लस सिक्युरिटी मिली हुई है, लेकिन वह सेना के गेस्टहाउस में रहने को मजबूर हैं। हालांकि उनका कार्यालय शहरी विकास मंत्रालय को मध्य दिल्ली में उन्हें आवंटित किए गए घर को जल्दी तैयार करने के लिए कई बार प्रतिवेदन दे चुका है। केंद्रीय लोकनिर्माण विभाग धीमी गति से काम कर रहा है।
दूसरी ओर, उपराष्ट्रपति पद से 22 जुलाई को इस्तीफा दे चुके भैरों सिंह शेखावत की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। शेखावत अभी राजस्थान हाउस में रह रहे हैं क्योंकि उनका 31, औरंगजेब रोड स्थित नया आवास उन्हें सौंपा नहीं गया है। शेखावत की मंजूरी के बाद शहरी विकास मंत्रालय ने इस आवास को पूर्व उपराष्ट्रपति के नए घर के रूप में चुना था। टाइप-8 श्रेणी का यह भवन 5,000 वर्ग फुट में बना है और यह लुटियन द्वारा डिजाइन किया गया मूल बंगला है, जिसमें थोड़ा अतिरिक्त निर्माण किया गया है।
यही हालत नौकरशाहों की भी उत्तरप्रदेश में हो रही है। २००५-६ में पुलिस आरक्षी की भर्ती में अनियमितता के आरोप में १२ आईपीएस अधिकारियों को मायावती ने निलंबित कर दिया है। मुलायम सरकार के कार्यकाल में इनके द्वारा भर्ती किए गए ६५०४ आरक्षियों को भी सेवामुक्त कर दिया गया है। अब मायावतीजी कोई यह तो पूछे कि नौकरशाह किसके आदेश या भय से काम करते हैं। और उनके ईशारे पर काम न करने वालों का क्या हश्र होता है यह तो सभी जानते हैं। इन अधिकारियों की क्या बिसात जो किसी मुख्यमंत्री या सत्ताधारी पार्टी की अवहेलना कर दें। फिर ऐसे में इन अधिकारियों को मुअत्तल करने का क्या मतलब? अगर अनियमितता ही साबित हो रही थी तो बेहतर होता कि सारी भर्ती रद्द करके फिर से निरपेक्ष रूप से भर्ती की प्रक्रिया शुरू करातीं। इन तथाकथित दोषी आईपीएस अधिकारियों को कोई ऐसी सजा क्यों दी जानी चाहिए जिसके लिए दोषी खुद मंत्री, मुख्यमंत्री व सत्ताधारी पार्टी है। अगर मायावती जी ने भ्रष्टाचार मिटाने का प्रण ही कर लिया है तो पहले लिए दोषी इन मंत्रियों व मुख्यमंत्री के खिलाफ मुकदमा चलाएं कि उनके शासन में ऐसा कैसे हुआ। राजनीतिक भ्रष्टाचार का ठीकरा इन अधिकारियों के सिर क्यों फोड़ रही हैं।
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