Tuesday, 4 September 2007

तब तो अवाम के कोप से आप भी नहीं बचोगे कामरेडों



देर से ही सही वामपंथी अपने ही समर्थन वाली केंद्र सरकार की अवांछित नीतियों का युद्धाभ्यास के विरोध के बहाने जनमत जुटाने सड़क पर उतर गए हैं। वामपंथियों से अवाम को ऐसी अपेक्षा हर उस मुद्दे पर थी जो आम आदमी के हितों के खिलाफ है। चाहे वह नौकरी अथवा जीविका की कानूनी गारंटी हो या फिर पीएफ पर ब्याज का मामला हो। हर बार यूपीए सरकार को बचाते नजर आते वामपंथियों ने भी गरीब या अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे मतदाताओं को निराश ही किया है। यह देश की वह आबादी है जिसे कभी कांग्रेस की रहनुमा इंदिरा गांधी पर बड़ा भरोसा था। गरीब, किसान, नौकरीपेशा और महिलाएं बड़ी उम्मीद रखते थे कांग्रेस और इंदिरा गांधी से। यही वजह थी कि केंद्र से कांग्रेस को तब तक कोई उखाड़ नहीं पाया जब तक कोंग्रेस और उसके नीति नियामकों की इस विशेष जरूरतमंद अवाम के प्रति प्रतिबद्धता रही। इसके बाद अवाम को यह समझते देर नहीं लगी कि कांग्रेस अब उनकी रहनुमा नहीं रही। नतीजा सामने है कि इंदिरा गांधी के रहते ही कांग्रेस का पतन भी शुरू हो गया। धरातल की सोच वाले नेताओं के पार्टी से गायब होते ही कांग्रेस की जमीन भी धसक गई। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश और दक्षिण के आंध्र, तमिलनाडु व कर्नाटक जैसे मजबूत धरातल जातीय और क्षेत्रीय सरोकार वाले नेताओं-पार्टियों के वजूद बन गए। आम आदमी को जब ठगा जाता है तो इसी तरह इस लालू, मुलायम, कांशीराम, मायावती, एनटी रामाराव, जयललिता, प्रफुल्ल महंत, वीपी, चंद्रशेखर, चंद्रबाबू नायडू, ज्योति बसु वगैरह आम आदमी के रहनुमा बनकर उभरते हैं। इसमें कोई बुराई नहीं मगर इस मायने में नुकसान तो देश का ही होता है। मौजूदा परिदृश्य में गरीबी व विकास की जगह क्षेत्रीयता व जातिवाद का बोलबाला है। यानी पूरे देश के अवाम की उपेक्षा और उसको बांधकर न रखकर पाने का खामियाजा अब राष्ट्र को भुगतना पड़ रहा है।
यह सब उदाहरण यहां सिर्फ इसलिए पेश किया ताकि गरीबों, किसानों, मजदूरों की वकालत करने वाले वामपंथी भी सावधान हो जाएं। इनका जब आसरा टूटेगा तो आपका भी वही हश्र होगा जो कांग्रेस का हुआ है। खुद से सवाल करें वामपंथी कि क्या इस देश से गरीबी समाप्त हो गई है? क्या यह देश इतना विकसित हो गया है कि इसे अमेरिका समझने लगें हम? क्या विकसित देशों के सारे मानदंड भारतीयों पर लागू किए जा सकते हैं? अगर नहीं, तो फिर सिर्फ अंधानुकरण कर रही कांग्रेस को सबक क्यों नहीं सिखाते? आम आदमी की परवाह नहीं तो फिर साम्यवाद के क्या मायने? सत्ता की जोड़-तोड़ में कहीं वामपंथ का मूल सिद्धांत तो ही नहीं भूल गए हैं? बुद्धदेव भट्टाचार्य भले मानते हों कि मौजूदा दौर में विकास के लिए नजरिया बदलना होगा मगर यह भी सत्य है कि आम आदमी की फिक्र करनी होगी। राजनीति की हिप्पोक्रेसी से भी लड़ना होगा। लेकिन कहां कोई लड़ रहा है? भाजपा जिस तरह से हिंदू कार्ड का इस्तेमाल कर रही है, उसी तरह से वामपंथियों समेत सभी धर्मनिरपेक्ष पार्टियों ने मुस्लिम और जातिवादी कार्ड का सहारा ले रखा है। अब वामपंथियों को तय करने का समय आ गया है कि वे कांग्रेस व भाजपा की राह जाएंगे या इस देश को अपने सिद्धांतों के अनुकूल नया आयाम देंगे।
शायद तय भी कर लिया है तभी तो युद्धाभ्यास के विरोध के बहाने सड़क पर उतर गए हैं। इस विरोध की हकीकत तो तब सामने आएगी जब जनहित के सारे मुद्दे नकारने का कांग्रेस से हिसाब ले पाएंगे। फिलहाल तो कांग्रेस और वामपंथियों की तथाकथित लड़ाई सड़क पर आ गई है। जनहित या कांग्रेस का साथ दोनों में से एक को चुनना होगा अन्यथा कांग्रेस और वामपंथियों का फर्क भी खत्म हो जाएगा। केंद्र की सीधे सत्ता का जनता के पास अब एक ही प्रयोग बाकी है। और वह है वामपंथ का भारतीय संस्करण। कांग्रेस, भाजपा और दूसरी ताकतों ने हाल के प्रयोगों के बाद यह एक मौका था जब वामपंथी सत्ता में अपनी मौजूदगी का एहसास दिलाते मगर कांग्रेस की फितरत और खुद की नाकामी ने वामपंथियों को ऐसे दोराहे पर खड़ा कर दिया है जहां उन्हें अब दो टूक फैसले लेने हैं। क्या जनहित के लिए सत्ता का मोह छोड़ पाएंगे वामपंथी?

सड़क पर उतरे वामपंथी ॰॰ विरोध का छलावा या हकीकत

अमरीका के साथ संयुक्त नौसैनिक अभ्यास के ख़िलाफ़ वामपंथी दलों के मंगलवार से देशव्यापी विरोध प्रदर्शन शुरु कर दिया है.
वामपंथी दलों ने इस विरोध प्रदर्शन को 'जत्था' नाम दिया है और यह एक हफ़्ते तक चलेगा.

साथ ही वामपंथी नेताओं ने यूपीए सरकार को चेतावनी दी है कि यदि सरकार परमाणु समझौते को लेकर आगे बढ़ती है तो इसके नतीजे भुगतने होंगे.

इस बीच बंगाल की खाड़ी में भारत-अमरीका सहित पाँच देशों की नौसेना का संयुक्त अभ्यास शुरु हो चुका है.

इस अभ्यास में अमरीका के दो विमानवाही पोत और 11 अन्य जलपोत हिस्सा ले रहे हैं.

विरोध प्रदर्शन

जत्था की शुरुआत करते हुए कोलकाता में वरिष्ठ वामपंथी नेता और सीपीएम पोलित ब्यूरो के सदस्य ज्योति बसु ने केंद्र की यूपीए सरकार पर 'अमरीका की ओर झुकाव' का आरोप लगाया.

समचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़ उन्होंने कहा, "यूपीए सरकार देश को अमरीकी पाले में ले जाने की कोशिश कर रही है, जो उस न्यूनतम साझा कार्यक्रम के ख़िलाफ़ है जिसके आधार पर वामपंथी दल यूपीए सरकार को समर्थन दे रहे हैं."

सीपीएम के महासचिव ने साफ़ कहा कि जब तक केंद्र के साथ गठित समिति की रिपोर्ट नहीं आ जाती, सरकार को अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के साथ समझौते की दिशा में कोई बातचीत नहीं करनी चाहिए.

सीपीआई महासचिव एबी बर्धन जो कोलकाता से लेकर विशाखापट्टनम तक जत्थे का नेतृत्व कर रहे हैं, ने कहा, "मैं नहीं जानता कि समिति की रिपोर्ट में क्या होगा लेकिन यदि सरकार ने समिति की चिंताओं को दरकिनार करके समझौते की ओर क़दम बढ़ाया तो उसे नतीजों का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा."

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़ संयुक्त नौसैनिक अभ्यास पर वामपंथियों के विरोध पर सरकार की ओर टिप्पणी करते हुए विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा है कि इस मुद्दे पर यह वामपंथी दलों की चिंता हो सकती है वैसे तो संयुक्त नौसैनिक अभ्यास 1992 से चल रहा है.

जत्था

लगभग एक हफ़्ते तक चलने वाले इस नौसैनिक अभ्यास के विरोध में सीपीआई के महासचिव एबी बर्धन कोलकाता से अपनी यात्रा की शुरु करके उड़ीसा होते हुए आठ सितंबर को विशाखापत्तनम पहुंचेंगे.

रास्ते में जगह-जगह पर रैलियाँ होंगी और विरोध प्रदर्शन आयोजित किए जाएंगे. कोलकाता में इस रैली को ज्योति बसु झंडा दिखा कर रवाना करेंगे.

इसी तरह चेन्नई में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी यानी सीपीएम के नेता प्रकाश कारत विरोध की कमान संभालेंगे.

इस तरह के नौसैनिक अभ्यास पहले भी होते रहे हैं तो इस बार विरोध क्यों. इस पर सीपीआई के नेता अतुल कुमार अंजान का कहना है, “कौन सा अमरीका का हित है जो वह 20 हज़ार किलोमीटर दूर से आकर सैनिक अभ्यास कर रहा है. भारत को किससे ख़तरा है. यहाँ नए लोगों को चौधरी बनाया जा रहा है. ये सब आने वाले समय में विदेश नीति को पलीता लगा कर हमारे मुहाने पर अमरीकी सेना को खड़ा करने की कोशिश है.”

वाम दलों का कहना है कि उनकी अमरीका से कोई शत्रुता नहीं है और उनका विरोध अमरीका की साम्राज्यवादी नीतियों से है.

1 comment:

Ramashankar said...

किसी को आम जनता के हितों से कोई लेना देना नहीं है. हां यह जरूर है नित नए मुद्दे तलाश कर अपना उल्लू जरूर सीधा करते नजर आते हैं.

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