इंडिया फ़ैशन वीक बुधवार को दिल्ली में शुरू हो गया। फ़ैशन वीक के दौरान कुल 30 शो होंगे। इस फ़ैशन वीक में देश भर के चुनिंदा 71 डिज़ाइनर हिस्सा ले रहे हैं। फ़ैशन वीक के लिए विशेष रुप से मॉडलों का चयन किया गया है। इंडिया फ़ैशन वीक में फ़िल्मी हस्तियों ने भी भाग लेना शुरू किया है. पहले दिन फ़िल्म अभिनेत्री तनुश्री दत्ता रैंप पर उतरीं। फ़ैशन उद्योग के जानकारों का कहना है कि भारत में फ़ैशन उद्योग अभी शुरुआती दौर में है। बहरहाल जहां फैशन पर इतना बड़ा आयोजन हो रहा है वहीं फ़ैशन वीक में प्रदर्शित होने वाले कपड़ों की उपयोगिता को लेकर भी सवाल उठाए जाते रहे हैं। फ़ैशन डिज़ाइनर
रीना ढाका, शांतनु और निखिल, अंजना भार्गव की डिज़ाइनों की परिकल्पना को प्रदर्शित किया जा रहा है।
अगर आपको इस तरह के आयोजनों को नजदीक से देखने का अवसर मिला हो तो निश्चित रूप से कई सवाल आपके जेहन में भी उभरे होंगे। प्रदर्शित अधिकांश डिजाइनों में से कितनीं इस देश की बहुसंख्यक आबादी के उपयोग की होती हैं। यह भी सत्य है कि भले इन आयोजनों को व्यावसायिकता का अमलीजामा पहना दिया गया हो मगर असल में यह आयोजन पूरी तरह अश्लील लगता है। आधुनिकता और वैश्वीकरण की दलील के आगे तो संस्कृति व सभ्यता की बात करना भी आजकल दकियानूसी समझा जाने लगा है मगर ईमानदारी से सोचें तो पारंपरिक परिधानों को सिरे से नकारा जा रहा है। दरअसल बाजारवाद के खांचे में पारंपरिक परिधान उतने फिट नहीं बैठते जितने कि कम और तंग आधुनिक कपड़े। अश्लीलता को प्रदर्शित करके बाजार को पकड़ना शायद ज्यादा आसान होता है। और असल उद्देश्य तो बाजार को पकड़ना है। शायद इसी आपाधापी में डिजाइनदार कपड़े बेचने के हर हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। रैंप पर माडलों के अर्धनग्न प्रदर्शन भी ऐसे ही हथकंडे हैं। हो भी क्यों नहीं। आजकल उत्पादों के एडवरटाइजमेंट की दुनियां में यह सब जायज जो माना जाता है। यह भी सही है कि इन डिजाइनरों की परिकल्पना ने परिधानों की दुनिया में क्रांति ला दी है मगर यह तब खटकने लगता है जब ऐसी डिजाइनों को तरजीह दी जाती है जो अश्लील तो होती ही हैं, उनकी उपयोगिता भी संदिग्ध लगती है। क्या बाजारवाद की चकाचौंध में आकंठ डूबे ये डिजाइनर आधुनिक परिधानों की खोज के साथ अपने हिंदुस्तान की पहचान भी कायम रख पाएंगे? फिलहाल जो दौर जारी है उसमें तो मुश्किल ही लगता है। इनमे से जो अपनी पहचान भी कायम रखने की दिशा में काम कर रहे हैं उनको हमारी शुभकामनाएं। कृपया बाजारवाद के नाम रोक दीजिए नग्नता का यह प्रदर्शन।
नीचे रैंप की जो तस्वीरें हैं वे बीबीसी से साभार ली गईं हैं। महज आपके अवलोकन के लिए। आप भी तय कर सकें कि इन परिधानों में कितनी भरी है अश्लीलता और कितना अपनी देशज पहचान का ध्यान रखा गया है।
8 comments:
आप ने कहा "असल में यह आयोजन पूरी तरह अश्लील लगता है।"
लगता है नहीं इनका लक्ष्य ही अश्लीलता की मदद से अपना धंधा करना है. नग्नता का बाजारू प्रदर्शन भारतीय संस्कृति के विरुद्ध है, एवं इसका विरोध होना जरूरी है -- शास्त्री जे सी फिलिप
मेरा स्वप्न: सन 2010 तक 50,000 हिन्दी चिट्ठाकार एवं,
2020 में 50 लाख, एवं 2025 मे एक करोड हिन्दी चिट्ठाकार!!
आप सही कह रहे है अश्लीलता को परिवर्तन का जामा पहना रहे है आजकल,और जब मै इसके खिलाफ़ टिप्पनी दे रही हूँ तो मुझे भी RSS वालो का खिताब मिल रहा है...मगर क्या फ़र्क पड़ता है जब जब हम इन सब बातों का विरोध करेंगे यह सब तो सुनना ही पडेगा...आपको एसा नही लगता दिल्ली की सड़के भी फ़ैशन शो से कम नजर नही आती...
चलिये करते है कोशिश शायद खुल कर विरोध करे तो इसपर रोक लग ही जायें...
सुनीता(शानू)
मुझे नही लगता की फैशन शो अश्लीलता फैला रहे है| वस्तुतः इस तरह के आयोजन पश्चिमी सभ्यता से आ रहे हैं जो की इस तरह के कपड़ों को पेहेनना बुरा नही मानती| आपका यह कथन की ऐसे वस्त्र आम लोगों द्वारा पहने जाने लायक नही होते सत्य है| पर आप ये क्यों सोचरहे हैं की प्रदर्शन केवल पहने जाने योग्य वस्त्रों का ही होना चाहिए| वस्त्र बनाना एक कला है और किसी भी अन्य कला की तरह उसका मकसद आम लोगों की रोजमर्रा की जरूरते पूरा करना नही होता | उसका मकसद नए विचारो का विकास होता है | लोग क्या पेहेनते है और क्या नही ये उनका निजी मामला है | इस बारे में निर्णय करने वाले आप और मैं कौन होते हैं?
सौंदर्य ईश्वरीय वरदान है. मनुष्य बुद्धि और पराक्रम अपने कर्म से प्राप्त कर सकता है किंतु सौंदर्य ईश्वरीय छाया है. धन्य हैं वे जिन्हें तन की सुंदरता मिली है. जो मन की सुंदरता की बात करते हैं वे अपने मन को सांत्वना मात्र देते हैं. इसलिए आइए.. धरती पर अवतरित सुंदरता की देवियों का स्तुतिगान करें.
यदि यह निंदनीय है तो काहे इतनी तस्वीर छापे मेरे भाई. सौंदर्य बोध बढ़ाओ. अश्लीलता और कला में बारीक़ अंतर है. इसे समझ विकसित कर समझा जा सकता है. बात आगे बढ़ी तो और टीपने आएँगे. तनुश्री का नाम लिए हो तो ये झेलिए - Tanushree Wallpapers
मैं विनोद जी की बात से सहमत हूं.
किस किस पर रोक लगायेंगे आप ? सड़क पर चलनें वाली उन लड़कियों पर भी जिन के वस्त्र आप को पसन्द नहीं हैं या आप के मूल्यों पर खरे नहीं उतरते ?
क्या आप वही पहन रहे हैं जो आज से ५० बरस पहले आप के दादा जी पहने करते थे ?
परिवर्तन समय की मांग है । मूल्य तय करनें का ठेका किसी एक को नहीं दिया जा सकता ।
these fashion shows are for geting export orders. once the order is achieved they are made in bulk depending on the price . garment / fashion industry and hometextile industry is a sorce to earn dollars . this is work / profession for the designers/ models/ buyers . like a teachers earn by teaching we earn by selling our expertise .
you are commenting on a trade without making any indepth study of the trade . how many people earn and how much revenue they bring to the country is of no significance to you
rachan singh wanted to say "whatever makes economic sense, she would do & let others do.." even that at the expense of our cultural heritage. Why only we need to be in western garb to showcase fabrics & designer trends. we have so much to showcase of our own. the countries like who are really making progress in true sense stick to their originality. Which is a lesson for pseudo-growing nations like india. We have the potential to make it big on our own ethos & heritage.
Post a Comment