Tuesday 4 September 2007

तीन वरिष्ठ पत्रकारों को कारावास की सज़ा

जैसी करनी वैसी भरनी !
लखनऊ की एक अदालत ने एक प्रशासनिक अधिकारी का 'फ़र्ज़ी और छवि को नुक़सान पहुँचाने वाला इंटरव्यू' छापने के लिए तीन वरिष्ठ पत्रकारों को कारावास की सज़ा सुनाई है.
लखनऊ के चीफ़ जुडिशियल मजिस्ट्रेट ने दस साल तक चले मुक़दमे के बाद सोमवार को पॉयनियर अख़बार के तत्कालीन रिपोर्टर रमन कृपाल को एक वर्ष सश्रम कारावास और 5500 रुपए जुर्माना भरने की सज़ा सुनाई.

दो संपादकों और दो मैनेजरों को भी छह-छह महीने की क़ैद और ढाई हज़ार रुपए का जुर्माना भरने की सज़ा सुनाई गई है.

यह सज़ा अंग्रेज़ी दैनिक पॉयनियर और हिंदी दैनिक 'स्वतंत्र भारत' के पत्रकारों और प्रबंधकों को सुनाई गई है.

पॉयनियर के तत्कालीन संपादक अजित भट्टाचार्य, 'स्वतंत्र भारत' के तत्कालीन संपादक घनश्याम पंकज और प्रिंटर-प्रकाशक संजीव कंवर और दीपक मुखर्जी को भी छह-छह महीने की जेल की सज़ा सुनाई गई है.

घनश्याम पंकज ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि "यह एक बहुत कठोर फ़ैसला है" और वह इसके ख़िलाफ़ अपील करेंगे. उन्होंने कहा कि इस मामले में पॉयनियर समूह पूरी लड़ाई लड़ रहा है.

घनश्याम पंकज का कहना था कि उन्होंने तो पॉयनियर में प्रकाशित उस कथित इंटरव्यू के बारे में 'स्वतंत्र भारत' में संपादकीय टिप्पणी कर दी थी और उस इंटरव्यू को प्रकाशित करने या नहीं करने का फ़ैसला पॉयनियर के संपादक का था.

भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी अनंत कुमार सिंह ने आरोप लगाया था कि पॉयनियर और 'स्वतंत्र भारत' ने अक्तूबर 1994 में उनका एक 'फ़र्ज़ी इंटरव्यू' प्रकाशित किया था.

अनंत कुमार सिंह तब मुज़फ़्फ़रनगर के ज़िलाधिकारी थे और उनका कहना है कि उस 'फर्ज़ी इंटरव्यू' में उनकी ओर से आपत्तिजनक बातें लिखी गईं थीं.

यह वो समय था जब उत्तर प्रदेश के पहाड़ी इलाक़ों में उत्तराखंड अलग राज्य बनाने का आंदोलन चल रहा था. अलग राज्य की माँग के साथ भारी संख्या में लोग एक रैली निकालने के लिए दिल्ली की तरफ़ जा रहे थे.

मुज़फ़्फ़रनगर में पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की और बल प्रयोग में कुछ लोगों की मौत भी हो गई. ऐसे भी आरोप लगाए गए थे कि ड्यूटी पर तैनात कुछ पुलिसकर्मियों ने कुछ महिला प्रदर्शनकारियों के साथ बलात्कार किया था.

'फ़र्ज़ी इंटरव्यू'

अंग्रेज़ी दैनिक पॉयनियर ने मुज़फ़्फ़रनगर के ज़िलाधिकारी अनंत कुमार सिंह का एक इंटरव्यू छापा था जिसे शीर्षक दिया गया था - "अगर कोई पुरुष किसी एकांत स्थान पर किसी महिला को अकेला पाएगा तो उसके साथ बलात्कार करने के लिए आतुर होगा."

इस इंटरव्यू में अनंत कुमार को यह कहते हुए बताया गया था, "आप तो जानते ही हैं कि यह मानव प्रवृत्ति है कि जब किसी जंगल में कोई महिला अकेली नज़र आए तो कोई भी पुरुष उसके साथ बलात्कार करने को आतुर होगा."

अनंत कुमार का यह तथाकथित इंटरव्यू पॉयनियर समूह के हिंदी अख़बार 'स्वतंत्र भारत' के लखनऊ संस्करण में भी प्रकाशित हुआ था.

मुज़फ़्फ़रनगर के ज़िलाधिकारी अनंत कुमार सिंह ने अपने लिखित बयान में कहा था कि पॉयनियर और 'स्वतंत्र भारत' में जो उनका इंटरव्यू प्रकाशित हुआ है वो फ़र्ज़ी है और रिपोर्टर रमन कृपाल उनसे कभी मिले ही नहीं हैं.

लेकिन वह अनंत कुमार सिंह का वह तथाकथित इंटरव्यू हर तरफ़ चर्चा का केंद्र बन गया था और अन्य अनेक अख़बारों ने भी उस तथाकथित इंटरव्यू को प्रकाशित किया था. अनेक अख़बारों ने अपने संपादकीय लेखों में ज़िलाधिकारी अनंत कुमार सिंह की तीखी आलोचना भी की थी.

अनेक संगठनों ने प्रस्ताव पारित करके अनंत कुमार सिंह के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई भी करने की माँग की थी.

अनंत कुमार सिंह की शिकायत पर 1996 में प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया ने परिस्थितियों को सनसनीख़ेज़ बनाने के लिए इस तरह का फ़र्ज़ी इंटरव्यू छापने के लिए उन तमाम अख़बारों और पत्रकारों की निंदा और भर्त्सना की थी. काउंसिल ने यह भी कहा था कि इस तरह का फ़र्ज़ी इंटरव्यू छापने से अनंत कुमार सिंह की छवि को नुक़सान पहुँचा है.

लेकिन अनंत कुमार सिंह प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया के इस फ़ैसले से संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने इस मामले को आगे बढ़ाया और ख़ुद भी अदालत में दलीलें पेश कीं.

क़रीब दस साल के बाद गत सोमवार को लखनऊ के चीफ़ जुडीशियल मजिस्ट्रेट सुरेश चंद्र ने रिपोर्टर रमन कृपाल को एक साल के सश्रम कारावास की सज़ा सुनाई.

अदालत ने दोनों पक्षों की बात सुनने के बाद कहा कि वह इंटरव्यू मनगढंत और भड़काऊ था और अभियुक्त पत्रकार यह साबित करने में नाकाम रहे हैं कि उन्होंने वाक़ई अनंत कुमार सिंह का कोई इंटरव्यू लिया था.

अदालत ने टिप्पणी की है कि अभियुक्त पत्रकारों ने प्रेस की आज़ादी के अपने अधिकार का दुरुपयोग किया है और इस मामले के किसी भी अभियुक्त ने अपने इस अधिकार का प्रयोग करने में सावधानी और ज़िम्मेदारी नहीं दिखाई.

अदालत ने यह भी कहा कि नैतिक ज़िम्मेदारी का अहसास रखने वाला कोई भी व्यक्ति ऐसा काम नहीं कर सकता जैसा कि रमन कृपाल ने किया है.

अभियुक्तों को अपील करने के लिए दो महीने का समय दिया गया है.

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