Tuesday, 6 November 2007
कम्युनिष्टों को डरा रहा है रिजवान का भूत !
समकालीन जनमत ने पश्चिम बंगाल में एक मुसलमान लड़के रिजवान-उर-रहमान की एक संपन्न मारवाड़ी लड़की प्रियंका तोदी से प्रेम की कहानी के दुखद अंत की कथा को समेटते हुए टिप्पड़ी छापी है। इस लेख को आप भी इस लिंक http://samkaleenjanmat.blogspot.com/2007/11/blog-post_3659.html पर जाकर पढ़िए। लेख मेंरे मित्र दिलीप मंडल ने लिखा है। मेरे मित्र पत्रकार हैं और हर किस्म की टिप्पड़ी लिखना उनका अधिकार है। लेख दो बातों को एक साथ जोड़ता है। एक रिजवान की घटना और दूसरा बंगाल में मुसलमानों का विकास। जो अनुचित है। समकालीन जनमत प्रगतिशील विचारधारा की पत्रिका है। मुझे आपत्ति दिलीप के लिखने पर नहीं बल्कि समकालीन जनमत से है। वे इस लेख को छापकर क्या संदेश देना चाहते हैं। एक तरफ त्रिलोचनजी पर अपील छाप रहे हैं और दूसरी तरफ रिजवान पर यह गफलत पैदा करने वाला लेख। आपके लेख तो जो सबसे तीब्र होकर बात सामने आ रही है वह यह है कि अब कम्युनिष्टों को डरा रहा है रिजवान का भूत। आर्कुट और समकालीन जनमत में कुछ तो फर्क दिखना चाहिए। हमारी इसी दृष्टि से तो बाकी दुनिया रिजवान के मामले को सिर्फ साम्प्रदायिक घटना मान रही है। जबकि इसका ठीक उल्टा यह है कि अत्यंत लोकतांत्रिक कम्युनिष्टों के शासन की वह संविधानिक खामी उभर कर सामने आई है जिसमें उनका साम्यता का दर्शन धुंधला गया है। शायद इसी हड़बड़ी में कई गलतियां भी कर चुकी है बुध्ददेव सरकार।
आपके लेख से तो मुझे भी यह लगता है कि रिजवान के बहाने शायद कम्युनिष्टों से मुसलमानों का मोह भंग हो जाए लेकिन रिजवान के मुद्दे को मुसलमानों के विकास से कैसे जोड़ा जा सकता है। आबादी के हिसाब से सभी को सरकारी नौकरी कैसे दी जा सकती है? तब तो यह भी देखना चाहिए कि आदिवासियों व शिक्षा के तौर पर दूसरी पिछड़ी जातियों को ही सरकारी नौकरी कहां उपलब्ध है। अगर ऐसे ही विकास का पैमाना हम बनाते रहे तो कई सदियों तक जाति, धर्म और आरक्षण से शायद ही बाहर निकल पाएं। प्रगतिशील होकर तर्क के लिए इस तरह के सहारे लेना छोड़ना होगा। क्या जाति, धर्म से मुक्त होकर अमीर- गरीब की बहस संभव नहीं? सर्वांगीण विकास तभी होगा जब देश के हर गरीब को विकसित होने का मौका मिले। रिजवान का मुद्दा मुसलमानों के बंगाल में विकास से जोड़कर देखना दुखद है। इसे एक शख्स को संविधानिक सुरक्षा न मिल पाने और सरकार को इसमें शामिल होने का दोषी मानना होगा। ऐसा नहीं कि यह पहला रिजवान है जो अन्याय का शिकार हुआ है। ऐसी तमाम प्रेम कहानियों से हम सभी वाकिफ हैं। प्लीज इसे सांप्रदायिक रंग मत दीजिए। यह अपने अधिकारों से वंचित किए जाने की शासकीय गुंडागर्दी की घटना है। इसी तरह देश के दूसरे हिस्से में ऐसी समस्याएं हैं। इन समस्याओं के लिए सिर्फ और सिर्फ सरकारें दोषी हैं। सरकारों की उपेक्षा से जुड़ी ऐसी सभी घटने वाली घटनाओं पर आवाज उठाना लाजिमी होगा।
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