Saturday 17 November 2007

सूर्य आराधना का सबसे ब़ड़ा पर्व - छठ महोत्सव








सूर्य आराधना का सबसे ब़ड़ा पर्व है छठ महोत्सव। पूर्वांचल के लोगों द्वारा मनाया जाने वाले में इस पर्व में पहले अस्त होते सूर्य की और फिर दूसरे दिन सुबह उगते सूर्य की पूजा के साथ चार दिन का कठिन तप पूरा होता है। इस व्रत को महिलाएं व पुरूष दोनों करते हैं। ज्यादातर महिलाएं ही यह व्रत करती हैं।
दीपावली बीतते ही इसकी तैयारी शुरू हो जाती है। नदी किनारे पूजा की परंपरा है, लेकिन जहाँ नदी नहीं है वहाँ कुंड या तालाब के किनारे पूजा होती है। इस चार दिनी महोत्सव में पहले दिन छठी माता को जल एवं फूल से आमंत्रण दिया जाता है। इस दिन व्रत रखने वाले श्रद्धालु चने की दाल, चावल एवं घी में बनाई लौकी की सब्जी खाते हैं।
दूसरे दिन निर्जल उपवास रखते हैं। शाम को सूर्यास्त से पूर्व सूर्य देवता को जल एवं पुष्प का अर्घ्य दिया जाता है। रात्रि में गु़ड़ की खीर तथा रोटी खाते हैं। तीसरे दिन पुनः निर्जल उपवास रखा जाता है। शाम को व्रत करने वाले जलकुंड में ख़ड़े होकर बाँस से बने सूप में प्रसाद रखकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। अगले दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने तक व्रत रखने वाले जल भी ग्रहण नहीं करते।
सांध्य अर्घ्य सम्पन्न होते पर व्रती घर लौटकर कोसी भरने की तैयारी करते हैं। पहले गाय के गोबर से आंगन लीपते हैं, फिर आंगन में निर्धारित पूजा स्थल पर मिट्टी के बने हाथी पर दो कलश रखकर उनमें छठ पूजा की समस्त सामग्री भरी जाती है। वहीं पांच ईख से मंडप बनाते हैं। ईख के अंतिम छोर पर नए वस्त्रों में लपेट कर व्रत सामग्री बांध दी जाती है। उसे चानपा कहते हैं। ईख के इस मंडप के चारों तरफ मिट्टी के छोटे-छोटे सकोरों में व्रत का सामान सजाकर उस पर दीप जलाया जाता है। सुगंधित हवन सामग्री से हवन भी होता है। इसी को कोसी भरना कहते हैं। कोसी भरने का दृश्य बड़ा ही मनोरम होता है।
इस पूजा की खास बात यह है कि इसमें किसी ब्राह्मण या पुरोहित की कोई जरूरत नहीं होती। पूरी शुद्धता के साथ व्रती अपने परिवार के साथ इस व्रत को निभाता है।
छठ पूजा का उद्देश्य
छठ पूजा की कई पौराणिक मान्यताएँ हैं। पुत्र प्राप्ति, सुख-समृद्धि, आरोग्यता, पुत्र को निरोगी व दीर्घायु रखने के लिए यह उपवास किया जाता है। कई लोग पूजा स्थल पर मन्नत भी माँगते हैं। जब मन्नत पूरी हो जाती है तो वर्षों तक व्रत रखते हैं। ऐसे कई लोग पूजा स्थल तक लोट लगाते आते हैं। जो व्रत नहीं रख पाते वे पूजा करने वालों की मदद करते हैं। देव माता अदिति के पुत्र सूर्य सब के लिए पूजनीय हैं। छठ उनकी उपासना का महाव्रत है, इस पूजा को कालजेई भी कहा जाता है। सूर्य एकमात्र प्रत्यक्ष देवता हैं। इन्हें समस्त जगत का नेत्र भी कहा जाता है। यह एकमात्र पर्व है जिसमें उदयमान सूर्य के साथ-साथ अस्ताचलगामी सूर्य को भी अर्घ्य दिया जाता है। ऐसी मान्यता है कि यह व्रत करने से सम्पूर्ण सुख की प्राप्ति होती है, पति एवं पुत्र दीर्घायु होते हैं।
कठिन तप, क़ड़े नियम
इस व्रत के लिए काफी क़ड़े नियम बने हैं। धारणा है कि नियमों का उल्लंघन होने से सूर्य देवता तथा छठ माता नाराज हो जाती हैं। इसलिए काफी सावधानी बरतनी होती है। इस व्रत में पवित्रता का सबसे ज्यादा ध्यान रखना प़ड़ता है। दीपावली के बाद से ही सावधानी रखना प़ड़ती है। इस दौरान बाहर के खाद्य पदार्थ व पानी पीना भी वर्जित रहता है। कठोर नियमों के कारण ही कम उम्र की महिलाएँ यह व्रत नहीं रखतीं। व्रत के दौरान जूते-चप्पल का उपयोग भी नहीं किया जाता तथा जमीन पर सोना होता है।

पौराणिक मान्यताएँ
पौराणिक कथाओं में उल्लेख है कि इस व्रत को नाग कन्या, सुकन्या एवं कृष्ण के पुत्र ने भी किया था। अज्ञातवास के समय पांडव जन दौपद्री के साथ जंगल में दाने-दाने को मोहताज थे। उस समय ऋषियों ने दौपद्री को छठ करने को कहा। उन्होंने यह व्रत विधिवत किया। व्रत के महात्म्य का वर्णन करने वाले ऐसा मानते हैं कि इसी से पांडवों ने खोया हुआ अपना राजपाट वापस प्राप्त किया। शिल्प के देवता विश्वकर्मा द्वारा निर्मित भारत में 12 सूर्य मंदिरों का जिक्र पुराणों में मिलता है। उन्हीं में से एक, दिवाकर मंदिर से छठ पूजा का प्रचलन हुआ, ऐसा कहा जाता है।
सूर्य के उदय की शक्ति पर ही ब्रह्मांड का संचालन होता है। पौराणिक आधार पर देखें तो आदि शक्ति छठी वेदमाता का स्वरूप है। स्वामी विश्वामित्र ने साधना कर उनका आह्वान किया था। इसके बाद अदिति माता ने विश्व के तीनों लोक में ऊर्जा के लिए सूर्य का आह्वान किया। अस्त होते समय सूर्य शीतलता लिए होता है, लेकिन दूसरे दिन जब वह उदित होता है तो उसमें वही ऊर्जा व आभा होती है। डूबते सूर्य की प्रार्थना का उद्देश्य यही है कि सूर्य अपने जैसी ही शीतलता व ऊर्जा लोगों के जीवन को भी देता रहे। सूर्य जीवंत सत्य है। इसे वैज्ञानिक भी मानते हैं और निरंतर शोध भी चलते रहते हैं। पूरे ब्रह्मांड पर सूर्य की किरणों से ही प्राण ऊर्जा मिलती है। इस कारण सूर्य का विधिवत आह्वान किया जाता है ताकि आरोग्यता, सुख व समृद्धि बनी रहे। सूर्य से निकले दृश्य प्रकाश के सात रंगों (स्पेक्ट्रम ) को विज्ञान भी स्वीकार करता है।
बिहार एवं पूर्वांचल (पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखण्ड आदि) के हर घर में छह दिन तक चलने वाला यह व्रत बड़े उत्साहपूर्वक संपन्न किया जाता है। इसकी बहुत महिमा मानी जाती है। जैसा उत्साह इस क्षेत्र में छठ पूजा के समय दिखता है, वैसा किसी अन्य त्योहार पर नजर नहीं आता। हिन्दुओं में कार्तिक का महीना अत्यंत पवित्र माना जाता है। इसी महीने में छठ पूजा होती है। छह दिन तक चलने वाले इस व्रत का आरम्भ दीपावली के दिन से ही हो जाता है। कार्तिक शुक्ल पक्ष चौथी को नहा-खा, पंचमी को खरना और सूर्य षष्ठी को महाव्रत यानी छठ पूजा। आज छठ का यह पर्व दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता और चेन्नै सरीखे महानगरों में ही नहीं, मॉरिशस एवं न्यू यॉर्क तक में मनाया जाने लगा है।

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