Wednesday, 6 February 2008

सिंगुर, नंदीग्राम और अब दिनहाटा

सिंगुर, नंदीग्राम और अब दिनहाटा के कारण फिर अशांत हो गया बंगाल। राशन व्यवस्था में गड़बड़ी और राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना के तहत गड़बड़ी के विरोध में दिनहाटा में आज फारवर्ड ब्लाक के कार्यकर्ताओं ने एसडाओ दफ्तर में तोड़फोड़ की और पुलिस की दो जीपें फूंक दी। अनियंत्रित हो रही भीड़ पर पुलिस ने फायरिंग कर दी जिसमें चार लोग मारे गए। फारवर्ड ब्लाक के बंगाल के सचिव अशोक घोष का कहना है कि उनके पांच कार्यकर्ता मोरे गए हैं। उनका यह भी आरोप है कि पुलिस ने इतनी निर्दयता से फायरिंग की कि मारे गए लोगों को पहचानना भी मुश्किल हो गया। इस घटना ने वाममोर्चा के घटक दल को इतना क्षुब्ध कर दिया कि उसे २४ घंटे का बंगाल बंद अपनी ही सरकार और सहयोगी दल माकपा व पुलिस के खिलाफ बुलाना पड़ा। जिसका तृणमूल, कांग्रेस व एसयूसीआई समेत कई विरोधी दलों ने समर्थन किया है।
वाममोर्चा के ३१ साल के शासन में ऐसा पहली बार होने जा रहा है जब घटक दल को ही अपनी सरकार के खिलाफ खड़ा होना पड़ रहा है। यह दरार भी सिर्फ एक साल के भीतर पैदा हुई है। जिसमें गलती माकपा की ही ज्यादा मानते है घटक दल। इनमें सेज के लिए किसानों की जमीन का सिंगुर, नंदीग्राम में अधिग्रहण पर सख्ती का एकतरफा फैसला, रिजवानूर की हत्या में पुलिस की संदिग्ध भूमिका, तसलीमा को बंगाल से खदेड़ने व कट्टरपंथियों के आगे झुकने, नंदीग्राम में पुलिस को नरसंहार की छूट और फिर बाद में अपने कैडरों को खुलेआम हिसा की छूट देकर नंदीग्राम में तथाकथित पुनर्दखल जैसे फैसले माकपा के नीति-नियामक विमान बोस व उनके सलाहकारों व मंत्रियों समेत मुख्यमंत्री बुद्धदेव के घटक दलों को अंधेरे में रखकर लिए गए । इसने घटक दलों में इतना अविश्वास पैदा किया कि न सिर्फ घटक दल बल्कि माकपा में आस्था रखने वाले बुद्धिजीवियों से भी माकपा की दूरी बढ़ गई।
मार्च २००७ में नंदीग्राम में विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाए जाने का विरोध कर रहे भूमि उच्छेद समिति के कार्यकर्ताओं पर पुलिस ने फायरिंग की। पुलिस के बल पर स्थिति को नियंत्रित करने का नतीजा यह हुआ कि पुलिस उसी जनता के खिलाफ हिसक हो गई जिसकी रक्षा के लिए तैनात की जाती है। यह पुलिस नहीं उस शासन और सरकार की गलती होती है जो अपने राजनीतिक हित के लिए पुलिस को अपना लठैत बना देती है। और नतीजा यह कि नंदीग्राम में महिलाओं के साथ खुलेआम बलात्कार हुआ और विरोध कर रहे लोग पुलिस की गोली के शिकार हुए। दुबारा पुलिस की आड़ में नंदीग्राम में सीधे माकपा कैडरों ने उत्पात मचाया। इसे पुनर्दखल का नाम दिया गया। यह इतनी बड़ी सरकारी गंडागर्दी थी कि उच्छेद समिति के लोगों को इलाका छोड़कर भागना पड़ा।सीआरपीएफ बुलानी पड़ी। कोलकाता हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणी के बाद बुध्देव सरकार को पुनर्वास का इंतजाम करना पड़ रहा है। जानबूझकर इस इलाके में पुलिस की भमिका संदिग्ध माने जाने के बावजूद सीआरपीएफ को देर से उतारे जाने की राजनीति की गई। संसद में यह मामला गूंजा। यानी पूरे एक साल भी नहीं बीते और बंगाल लगातार अशात होता रहा। घटक दलों में यह अविश्वास भी पैदा होता रहा कि माकपा उनकी अहमियत को मानती ही नहीं है।
अब उसी वाममोर्चा के घटक दल फारवर्ड ब्लाक ने पंचायत चुनाव वाममोर्चा से अलग अकेले लड़ने का फैसला किया। वाममोर्चा में रहकर ही अकेले पंचायत चुनाव लड़ने के इस फैसले ने माकपा को थोड़ा विचलित भी कर दिया है। इसकी वजह यह है कि गांवों में वाममोर्चा की गहरी पकड़ है और इन्हीं ग्रामीण वोटों की बदौलत माकपा घटक दलों में सबसे मजबूत हैं। पंचायतों पर नियंत्रण रखकर ही बंगाल की सत्ता हासिल हो सकती है यह वाममोर्चा का मूल मंत्र है। अब इसी मूलमंत्र को फारवर्ड ब्लाक ने परे रखकर माकपा को उसकी औकात बताने की ठान ली है। इस बंद का इसी अर्थ में दूरगामी असर भी पड़ने वाला है। इस आलोक में अगर बंगाल बंद देहात इलाकों में सफल हो जाता है तो समझ लीजिए माकपा की खतरे की घंटी बज गई। और वाममोर्चा के भीतर रहकर फारवर्ड ब्लाक माकपा के लिए चुनौती बन जाएगा। देखिए बंगाल बंद क्या गुल खिलाता है ?

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