हिदी ब्लाग, तमाम वेब साइट, हिंदी लिखने के टूल, गूगल और हिंदी पोर्टल की महज तीन चार सालों में इंटरनेट पर मौजूदगी भी हिंदी को अभी वह दर्जा नहीं दिला पाई है, जो दर्जा जनसंख्या के हिसाब से उसे हासिल है। इसकी चाहे जितनी वजहें गिनाई जाएं मगर अंग्रेजी जाने बिना हिंदी या भारत की किसी क्षेत्रीय भाषा जानने वाले को इंटरनेट पर कुछ भी कर पाना संभव नहीं है। भारत की शिक्षा पद्धति में व्यवहारिक ज्ञान दिए जाने की खामी के कारण हिंदी वालों को अंग्रेजी में पढ़ने और सीखने पर मजबूर होना पड़ रहा है। इसी कारण लिखने पढ़ने के लिए हिंदी का प्रयोग करने वाले न सिर्फ इंटरनेट पर फिसड्डी हैं बल्कि व्यवसाय और रोजगार की सूचनाक्रांति की दुनियां से वंचित हैं। देश के किस सरकारी हिंदी स्कूल में यह अनिवार्य किया गया है कि छात्र को कंप्यटर प्रयोग का व्यवहारिक ज्ञान दिया जाना अनिवार्य है और उसके लिए प्रत्येक छात्र को कंप्यूटर मुहैया कराया जाता है? अगर कुछ प्राइवेट संपन्न स्कूलों में मंहगी शिक्षा के आधार पर यह सुविधा उपलब्ध है तो इससे कितने हिंदी जानने वाले पैदा होंगे?
कटु सत्य यह है कि जो मंहगी शिक्षा हासिल करने की हैसियत रखता है वह हिंदी नहीं बल्कि अंग्रेजी पढ़ता है। यानी हम तब तक इंटरनेट ही नहीं सूचनाक्रांति की दुनिया में फिसड्डी रहेंगे जबतक सरकारी तौर पर सभी हिंदी माध्यम से पढ़ने वाले छात्रों को कंप्यूटर के प्रयोग की सुविधा मुहैया कराई नहीं जाएगी। भारत की क्षेत्रीय भाषाओं में पढ़ने वालों की भी यही कहानी है। कुल मिलाकर आम आदमी को सूचनाक्रांति का फायदा उठाने लायक बनाने की कोई ऐसी योजना ही नहीं है जिससे सभी हिंदी बोलने वाले उतने ही तादाद में इंटरनेट का प्रयोग करते दिखें।
हिंदी में संपन्न बेवसाइट का भी बहुत अभाव है। विशेष विषयों पर सम्पूर्ण सूचना हिंदी या क्षेत्रीय भाषाओं में खोज पाना लगभग असंभव है। मजबूर होकर जो हिंदी जानते भी हैं उन्हें अंग्रेजी में काम करना आसान लगता है। इन कारणों के आलोक में इंटरनेट पर हिंदी में काम करने वालों की कमी है। यूनिनागरी के आगमन से हिंदी लिखना थोड़ा आसान हुआ है मगर इसकी राह मे तकनीकी ज्ञान न होना बड़ी बाधा है।
इन सारी बाधाओं के कारण इंटरनेट में सबसे ज्यादा प्रयोग की जाने वाली भाषाओं की सूची में हिंदी पहले दस पायदानों में भी नहीं है। इंटरनेटवर्ल्डस्टैट्सडाटकाम नामक वेबसाइट की ताजा जानकारी में यह बात कही गई है। सूचना तकनीक की क्रांति जहां क्षेत्रीय भाषाओं पर गाज बनकर गिरी है वहीं क्षेत्रीय भाषाओं का दायरा बहुत सिकुड़ता जा रहा है। इंटरनेट पर हिंदी के प्रचार-प्रसार पर उम्मीद से बहुत कम ध्यान दिया गया है। आइए उन कारणों व इंटरनेट पर हिंदी की मौजूदगी को आंकड़ों के हिसाब से जानने का कोशिश करते हैं।
* इंटरनेट के जरिए कुछ भाषाओं का वर्चस्व कायम होती जा रही है, जबकि अन्य भाषाएं हाशिए पर जा रही हैं। इंटरनेट में मिलने वाली 98 प्रतिशत जानकारी दुनिया की गिनी-चुनी 12 भाषाओं में ही है।
* विश्व में 80 करोड़ लोग हिंदी समझते हैं, 50 करोड़ लोग हिंदी बोलतेहैं,और 35 करोड़ लोग हिंदी लिख सकते हैं। इसके बावजूद हिंदी इंटरनेट में अपनी सही जगह नहीं बना पाई।
* इंटरनेट में हिंदी और ऐसी ही अन्य लोकप्रिय भाषाओं में जानकारी के अभाव से सूचना तकनीक से जागरूकता और संपन्नता लाने का प्रयास बेमानी हो गया है। जानकारी वहां तक नहीं पहुंच पा रही जहां इसकी खास जरूरत है।
* एक अनुमान के मुताबिक इंटरनेट पर 20 अरब जालपृष्ठ हैं। इनका सम्मिलित आकार 10 लाख जीबी है।
* जस्ट कंसल्ट द्वारा के आंकड़ों में दावा किया गया है कि ऑनलाइन भारतीयों में 60 प्रतिशत अंग्रेजी पाठकों की तुलना में 42 प्रतिशत पाठक गैरअंग्रेजी भारतीय भाषाओं में और 17 प्रतिशत पाठक हिंदी में पढ़ना पसंद करते हैं।
* इस समय इंटरनेट में हिंदी में 20 अच्छी पत्रिकाएं चल रही हैं। इनके पढ़ने वालों की अच्छी तादाद है। उन्होंने एक स्तर बनाया हुआ है। इनमें से कुछ हैं अभिव्यक्ति, सृजनगाथा, शब्दांजलि, साहित्य कुंज, छाया, गर्भनाल, भारत दर्शन इत्यादि।
* नेट में जहां अंग्रेजी के 20 अरब से अधिक पेज मिल जाते हैं वहीं हिंदी के एक करोड़ से ज्यादा नहीं हैं।
* इंटरनेट में हिंदी के पिछड़ने का एक कारण यह भी है कि हिंदी जानने वाले भी अधिकारिक कामकाज के लिए अंग्रेजी का ही प्रयोग करते हैं।
* इंटरनेट में चीनी, जापानी, स्पेनिश, जर्मन, कोरिया इटालियन भाषाओं पर जबरदस्त काम हो रहा है। हिंदी में जहां काम कछुआ चाल से चल रहा है वहीं अभी भी तमाम वेबसाइटों में तकनीकी खामियां मौजूद हैं।
* ‘द वर्ल्ड इज फ्लैट’ के लेखक थॉम एल फ्रीडमैन ने दुनिया में नई ईबारत के लिए तीन चीजों की चर्चा की है पर्सनल कंप्यूटर, इंटरनेट और सॉफ्टवेयर क्रांति। यूनीकोड से हिंदी को नया तोहफा मिला। यूनिकोड प्रत्येक अक्षर के लिए एक विशेष नंबर प्रदान करता है चाहे कोई प्लेटफोर्म हो, प्रोग्राम हो या फिर भाषा हो।
* दुनिया में ऐसे लोगों की खासी तादाद है जो जरूरत के हिसाब से अंग्रेजी जानने के लिए मजबूर हैं। यानी आपको सामान्य कामकाज या अधिकारिक कामकाज जानना है तो अंग्रेजी जाननी ही पड़ेगी। विकी इंसाइक्लोपीडिया में दी गई जानकारी के मुताबिक दुनिया में ऐसे लोगों की संख्या तो 32 करोड़ ही है जिनकी मातृभाषा अंग्रेजी है लेकिन दूसरे ऐसे 35 करोड़ लोग हैं जो अंग्रेजी को संपर्क भाषा मानकर प्रयोग करते हैं।
(आंकड़े राष्ट्रीय सहारा से साभार)
1 comment:
श्रद्धेय, डाक्टर साहब, आपकी राष्ट्रवादी विचारधारा को साधुवाद । एक राष्ट्रवादी विचारक हिन्दी को लेकर चिंतित क्यों नहीं होगा । बहुत विस्तृत आकड़े आपने उल्लेख्ा किये हैं वाकई सोचने पर मजबूर कर रहे हैं। पर मुझे लगता है कि विदेश में बना अंतरताना यंत्र आज भारत में बड़ी संख्या में उपलब्ध है और आम भारतीय की पहुंच में तो है, रही बात भाषा की, हमें जरुरत पढ़ते ही हिन्दी चिट्रठाकारी शुरु हो गई, बहुत बड़ी संख्या में हिन्दी जैसी भाषा जिसे लिखने में कठिनता आती है, जहां आंग्लभाषा के शब्दों के मुकाबले बहुत अधिक जटिलता है फिर भी आज हमने आंग्लभाषा के सहारे ही आम भारतीयों तक हिन्दी लिखने के तरीके प्रसारित कर लिये हैं, सकल भारतीय सात्विकवृत्ति ही हमें दूसरे कोने से देखने में पिछड़ी लगती है, जबकि हम अपने स्थान बहुत आगे है, आज चूंकि अंतरजाल आया है तो हम पीछे लग रहे हैं वरना तो हमारी भाषा आपके आकड़ो के अनुसार ही बहुत विस्तृत क्षेत्र में मौजूद हैं हम पीछे कहां है ? अब अंतरजाल पर कुछ ही समय पर क्या आप जैसे राष्ट्रवादी विचारक इस खुशी से झूम नहीं रहे कि कितने हिन्दी भाषियों ने मातृभाषा को अपनाकर चिट्रठाकारी शुरु कर दी है। शीघ्र ही कछुआ चाल से ही सही, अरबों पृष्ठ जाल पर हिन्दी के होंगे जिसमें आप जैसे राष्ट्रवादियों का महत्वपूर्ण योगदान होगा। साधुवाद एक अच्छे लेख के लिये। आनन्द गांधी efursat.blogspot
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