Wednesday 13 February 2008

जलती रहे ब्लागर्स मशाल

एक हिंदी ब्लागर की आत्मकथा
कंप्यूटर पर खबरें लिखने और पेज बना लेने तक कंप्यूटर का सीमित ज्ञान तो था मगर अंतर्जाल पर हिंदी में खुद कुछ लिखने की जगह बन सकती है, यह बिल्कुल नहीं जानता था। अंतर्जाल में कुछ हिंदी पोर्टल वेबदुनिया और गूगल, याहू, एमएसएन वगैरह में जाकर हिंदी खबरें पढ़ लेता था। हिंदी अखबार जो नेट पर उपलब्ध थे, उन्हें भी खाली समय में पढ़ने तक सीमित था। कुछ ब्लाग ( हिंदी के कम मगर ज्यादा अंग्रेजी के थे ) को भी देखकर उन्हें जानने की जिज्ञासा होती थी, मगर यह डर भी समाया रहता था कि खर्चील होगा। इस खर्च के डर ने काफी समय तक आगे बढ़ने नहीं दिया। मेरे मित्र पलाश विश्वास ने बताया कि ईब्लागर में फ्री है। उन्होंने कई महीने पहले अंग्रेजी में अपना ब्लाग बना लिया था और बाकायदा लिख रहे थे। बहरहाल फ्री ब्लाग की सूचना ने मुझे हिंदी ब्लाग बनाने के लिए और भी प्रेरित किया। इस बीच ईबीबो में भी ब्लाग बनाकर लिखना शुरू किया। ईबीबो में हिंदी लिखना ईब्लागर से आसान था इसी लिए हिंदी लिखने का सीधा प्रयास ईबीबों में करने लगा और उसी को कापी करके ईब्लागर के चिंतन ब्लाग पर भी पोस्ट करने लगा। बाद में उसमें भी इतनी तकनीकी खामियां आईँ कि अंततः ईबीबो के ब्लाग को बंद ही कर दिया। सच यह है कि ईब्लागर में आज भी सीधे गति के साथ हिंदी लिखना दुरूह ही है। लेकिन आभारी ईब्लागर्स का ही हूं जहां से ब्लागिंग की दुनियां में अपनी उपस्थिति दर्ज करा पाया। आइए फिर वहीं चलते हैं जब ईब्लागर्स पर ब्लाग बनाने जुटा था।
यह सन् २००७ का मार्च महीना था। कई महीने की चिंतन और काफी मशक्कत के बाद ईब्लागर्स पर चिंतन नामक ब्लाग बना पाया। इस ब्लाग के चिंतन नामकरण की वजह भी यही है कि इसका प्रादुर्भाव बिना किसी की मदद के व्यक्तिगत प्रयास व चिंतन से हुआ। पर असली मुश्किल यह थी कि ब्लाग बना लेने के बाद भी उस पर लिख पाना संभव नहीं हो पा रहा था। कंप्यूटर का तकनीकी ज्ञान अल्प होने के कारण ही सबकुछ समझने में देरी हो रही थी। मेरे मित्र पलाश विश्वास ने तो हिंदी में लिख पाने की उम्मीद छोड़कर अंग्रेजी में ब्लाग लिखना शुरू कर दिया। हालांकि मेरे हिंदी ब्लाग के थोड़ा निखार पर आ जाने पर और वेब दुनिया में ब्लाग बना लेने के बाद उन्होंने भी अंततः हिंदी ब्लाग वेबदुनिया में पूरे एक साल के बाद बना ही लिया है। इसे मैं अपने हिंदी ब्लाग लिखने के निरंतर खोज की जीत मानता हूं। मेरे ही कारण मेरे कई और मित्र हिंदी ब्लाग बना चुके हैं। मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि इनमें से कई वे भी हैं जो मेरे ब्लागिंग या ब्लागिंग का ही उपहास हाल तक उड़ाया करते थे।
क्षमा करें प्रसंगवश मूल कथा से भटक गया। आइए फिर वहीं चलते हैं जब अपने मित्र पलाशजी का अंग्रेजी ब्लाग देखकर हिंदी में ब्लाग बनान का दृढ़ निश्चय करके हिंदी ब्लाग बनाने में जुटा रहा। रोक के हताश होजाने वाले प्रयास के बावजूद मैंने हार नहीं मानी। रोज पलाशजी कहते कि डाक्टर साहब हिंदी लिखने की कोई तरकीब सूझी ? मेरा उत्तर निराश करने वाला ही होता था। अपनी ड्यटी करने से जो थोड़ा वक्त निकलता उसे मैं हिंदी लिखने की खोज में लगा देता था। ईब्लागर्स और नारद अक्षरग्राम की साइट में जाकर पढ़ता था। सबकुछ उसमें साफ-साफ समझाया गया था मगर मुझे यह अबूझ पहेली ही लगती थी। अंततः ईब्लागर्स में हिंदी में लिखने का टूल दिख गया। जहां रोमन में लिखने पर वह हिंदी में बदल देता है। इसमें कुछ मित्रों की मदद से लिखना तो शुरू किया मगर संतुष्ट नहीं हुआ। इस सारी प्रक्रिया में किसी इंजीनियर या ऐसे ब्लागर्स से मुलाकात भी नहीं हो पाई जो मेरे साथ बैठकर दो मिनट में मेरी मुश्किल आसान कर दे। जंगल में भटके राही की तरह खुद ही मंजिल तलाशा मैंने। विस्तार से हिंदी लिखना तब शुरू हो पाया जब हिंदी भाषा समूह की ओर से किसी शुभचिंतक ने कालूआनलाइन का लिंक भेज दिया। अब तक तो इसी टूल से काम चला रहा था मगर अब मायवेबदुनिया के ब्लाग ने सीधे ब्लाग में हिंदी लिखने की ऐसी आजादी मुहैया करायी है कि पिछली सारी तकलीफे अब याद तक नहीं आतीं। मगर ब्लागर्स की दुनिया में मेरे ब्लाग चिंतन ने जब पहला कदम रखा था तो इतनी गर्मजोशी से स्वागत हुआ कि मैं एकदम अवाक रह गया। जो मुझे न जानते हैं और न पहचानते हैं, वे अपने भाई बंधु से भी ज्यादा करीबी लगे।
अब मेरे पास तीन ब्लाग हैं। एक ही ब्लाग लिखने के लिए काफी था मगर तकनीकी दिक्कतें थीं कि पीछा ही नहीं छोड़ रहीं थीं। एक दुर्घटना घटी मेरे साथ। एक दिन एक लेख लिखकर अपने चिंतन ब्लाग पर पोस्ट किया तो किसी तकनीकी कारण से पोस्ट ही नहीं हुआ। बेहद निराश हुआ। लगा कि सब चौपट हो गया। जब चिंतन ब्लाग को तकनीकी तौरपर खराब मान लिया तो मजबूर होकर दूसरा ब्लाग हमारा वतन बनाया। फिर से इस दूसरे ब्लाग को सजाना पड़ा और सभी एग्रीगेटर पर डालने की जहमत उठानी पड़ी। इसे जहमत इस लिए कह रहा हूं क्यों कि तकनीकी कारणों से अक्सर इसमें उलझ जाता हूं। हालांकि अब यह कुछ आसान हो गया है। खासतौर पर नारद ने अपनी जटिल प्रक्रिया को आसान कर दिया है। बहरहाल हमारावतन पर लिखने के क्रम में खुद ही चिंतन की तकनीकी दिक्कतें भी दूर कर लिया। अब दोनों ब्लाग को मिलाकर सौ से अधिक प्रविष्टियां हैं।
अब ब्लाग पर लिखने के मकद पर कुछ बात न करूं तो लगेगा कि कुछ कहना भूल गया हूं। मैंने किसी खास व्यावसायिक मकसद की पूर्ति को जेहन में रखकर ब्लाग नहीं बनाया। यह इस लिए कह रहा हूं क्यों कि ब्लाग अब लोगों की कमाई का भी जरिया बन गया है। मैं इससे परे रहकर जब जिस विषय पर लिखने की तबियत हुई लिख डाला। किसी पार्टी या समुदाय की तरफदारी का तरजीह देना भी जरूरी नहीं समझा। बिल्कुल आजाद तबियत से जो कहना चाहा कह दिया। पत्रकारों के एक ब्लाग भड़ास का सदस्य बना। मगर उसमें जिस भाषा में प्रविष्टियां छप रही थीं या फिर छप रही हैं, उस पर भी ब्लाग के प्रशासक यशवंत से अपनी बात कही। असहमति जताते हुए उस ब्लाग पर भी उनकी भाषा का अनुकरण नहीं किया। अब भी व्यवसायिक ब्लाग समूहों की चकाचौंध से बेफिक्र रहकर लिखे जा रहा हूं।
इस लिखने के दौर में एक और पड़ाव का भी जिक्र करूंगा। अब मैं हिंदी में और बेहतर तरीके से इसी नए पड़ाव पर पहूंचकर ही लिख पारहा हूं। यह है वेबदुनिया का मेरा नया व्लाग कालचिंतन। हिंदी लिखने की इसी सुविधा का इस्तेमाल करके यह पूरी आत्मकथा भी लिख पारहा हूं। आखिर में इसकी शान में इतना ही कहना काफी होगा कि वेबदुनिया पर मुझे लिखते देखकर ही मेरे कई मित्र और वे भी ब्लाग बना लिए जो ब्लाग को तुच्छ समझते थे।
नीचे इसी आत्मकथा की मेरी वह काव्यमय अभ्व्यक्ति है जिसे ब्लाग बनाने के दौर में मैंने महसूस किया। शास्त्रीय काव्य के मानदंड से दूर महज अभिव्यक्ति है। साहित्य जगत के मित्रों से इस धृष्टता के लिए क्षमा चाहूंगा। इस ब्लागर्स राही ने अभी चलना बंद नहीं किया है। दौर जारी है। फिर मिलेंगे।


जलती रहे ब्लागर्स मशाल

अक्सर सोचा करता था, क्या होती है चीज ब्लाग
लगा खोजने इंटरनेट पर, तब भी नहीं खुला यह राज।।

अंग्रेजी के थे बड़े धुरंधर, हिंदी लिखना था बड़ा सवाल।
जिद हिंदी की ठानी थी, और नहीं कुछ आता रास।

अंतर्जाल की घुमक्कड़ी में, खोज लिया ही हिंदी ब्लाग।।
इसी खोज में साधो इक दिन, पाया नारद-अक्षरग्राम व हिंदी ब्लाग।

ब्लाग बनाने, हिंदी लिखने की है यह पाठशाला।
इन्हीं को अपना गुरू मानकर, ब्लाग बनाया हिंदी वाला।।

ई-ब्लागर के तहखाने में, जाकर पाया नया मुकाम।
श्रीश जैसे स्नेही मित्रों ने, हिंदी लिखना कर दिया आसान।।

अंग्रेजी के तोड़ चक्रव्यूह,, हिंदी चिंतन ने लिया अवतार।
साल भर के नन्हें शिशु का, पहला जन्मदिन है आज।।

युग-युग जिओ हिंदी ब्लागर्स, उत्साह बढ़ाया दिया सम्मान।
कामना करें सभी मिलकर, शिशु चिंतन भी बने महान।।

हिंदी चिट्ठों की द्रुतगामी नदियां, बह चलीं पहुंचीं सागर पार।
दुनिया के हर कोने में, अब बह रही है ब्लागर्स बयार।।

ब्लागवाणी चिट्ठाजगत औ नारद जैसा खेवनहार,
अंग्रेजी को मार दुलत्ती, हिंदी पर उड़ेला प्यार।।

बेलौस बको अब खूब लिखो, अभिव्यक्ति का यह नया आकाश।
अब नहीं करना है तुझे, अखबार पत्रिका की तलाश।।

कभी तो थे गिनती के यारों, अब हैं हम हजारों पार।
पाठकों की तो मत ही पूछो, वे भी हैं कई लाखों आज।।

हर विधा हर रंगा के ब्लागर्स, कुछ छोड़ते नहीं सब लिखते खास।
मोहल्ला चिंतन रिजेक्ट माल, कितने गिनाउं छा गए भड़ास।।

कोई कम नहीं हैं सभी धुरंधर, सबके अलह-अलग हैं राग।
किसी लेख से बहती कविता, कोई उगल रहा है आग।।

हिंदी जगत को अंतर्जाल पर, धुरंधर ब्लागर्स ने पहनाए ताज।
एग्रीगेटर्स की महिमा से, अखबारों में भी ब्लागर्स राज।।

ई-ब्लागर्स चिंतन नहीं अकेला अब, हमारा वतन भी देता साथ।
धूम मचाती ब्लागर्स दुनिया के, दोनों योद्धा हैं जांबाज।।

वेबदुनिया का भी लिया सहारा, जहां कालचिंतन है ब्लाग हमारा।
हिंदी लेखन मेल टिप्पणी , सब हिंदी में इसका नारा।।

हिंदी पोर्टल वेबदुनिया को, करता हू शत-शत प्रणाम।
ब्लागर्स की फैलती दुनिया में, यह भी है अब नया मुकाम।।

समानान्तर मीडिया की यह मशाल, ब्लागर्स बन्धु तुम्हारे हाथ।
जले निरंतर कभी बुझे ना, लो अभी शपथ मिला लो हाथ।।



डा. मान्धाता सिंह, कोलकाता
फोन- ०३३-२५२९२२५२

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